हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 201 ☆ # “महापरिनिर्वाण के अवसर पर…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता महापरिनिर्वाण के अवसर पर…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 200 ☆

☆ # “महापरिनिर्वाण के अवसर पर…” # ☆

(6 दिसंबर महापरिनिर्वाण दिवस पर विशेष)

तुम्हारे महापरिनिर्वाण पर

आंख भर भर आईं हैं

हर शख्स रूदन कर रहा

आँखें डबडबाई हैं

 

जीवन पथ पर चलने की

तुमने राह दिखाई है

संघर्षों में लड़ने की

तुमने चाह जगाई है

सदियों से अंधेरे में थे

तुमने ज्योत जलाई है

हर शोषित, वंचित के मन में

तुमने आस बंधाई है

शिक्षा हथियार है

यह बात तुमने सिखाई है

छीन लो हक अपने

यह बात समझाई है

तुम ही हो भगवान हमारे

यही एकमात्र सच्चाई है

आज तुम्हारे महापरिनिर्वाण पर

आँखें भर भर आईं हैं

 

आजकल तूफानों में

बहुत जोर है

आंधियों और हवाओं में

बहुत शोर है

चारों तरफ छाई हुई

घटाएं घनघोर हैं

चमकती बिजलीयां

चहुं और है

बदलने तुम्हारे संविधान को

दुष्ट ताकतें

लगा रही जोर जोर हैं

जो भी टकराया है हमसे

उसने मुंह की खाई है

आज तुम्हारे महापरिनिर्वाण पर

आँखें भर भर आईं हैं

 

अब यह सैलाब बहा देगा

ऊंची ऊंची चट्टानों को

कोई भी ना रोक सकेगा

दृढ़ संकल्प दीवानों को

सर पर कफ़न बांधकर

मरने निकले परवानों को

देख कुर्बानी के इस जज्बे को

दुनिया भी थर्राई है

आज तुम्हारे महापरिनिर्वाण पर

आँखें भर भर आईं हैं

 

तुम्हारे अनुयायी अब

जागृत और सचेत हैं  

माना हमारे बीच में

कुछ थोड़े से मतभेद हैं

विचारों की जंग है

अरमानों के खेत हैं  

टीले हैं जज्बातों के

ज़मीं हुई रेत है

जिस्म है अलग अलग पर

सबका लक्ष्य समवेत है

यही समाज के उन्नति और

बदलाव के संकेत हैं

हमने संकल्पों के दीपक में

उम्मीद की बातीं जलाई है

आज तुम्हारे महापरिनिर्वाण पर

आँखें भर भर आईं हैं /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हे शब्द अंतरीचे # 197 ☆ अभंग… प्रेम, शांति, और सुख का गान ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 197 ? 

अभंग… प्रेम, शांति, और सुख का गान ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

हिंदी रचना ( हे शब्द अंतरीचे.)

निरामय हो जीवन मेरा,

न हो कोई दु:ख का डेरा।

मन के कोने उजियारे हों,

सत्य-प्रेम के तारे हों।

*

चंचल मन भी शांत रहे,

हर दुख से अछूता रहे।

तन-मन में ऐसा प्रकाश हो,

जैसे सूरज का आभास हो।

*

न बैर हो, न कोई राग,

हर दिशा में केवल सुहाग।

नफरत का हर रंग मिटे,

प्यार में सब ही सिमटे।

*

निरामय हो काया सारी,

न हो कोई चिंता भारी।

प्रेम, शांति, और सुख का गान,

हो जीवन का सच्चा मान।

*

साथ निभाएं, साथ बढ़ें,

प्रेम का संदेश लाएं,

दिल में हो इंसानियत,

भेदभाव सब मिटाएं।

*

कविराज की यही पुकार

दुःख दूर हो हे महाराज

अर्ज मेरी स्वीकार करो

मेरे जीवन को तेरा ही साज।

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 214 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 214 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 214) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 213 ?

☆☆☆☆☆

बिना रिश्ते के जो अजनबी

अपने हो जाते हैं…. 

कभी-कभी खून के रिश्तों से

भी बड़े हो जाते हैं …

☆☆

Relationships with strangers

Become such treasured ones

That sometimes they become

Precious than the blood relations

☆☆☆☆☆

मुसाफिर कल भी था

मुसाफिर आज भी हूँ;

कल अपनों की तलाश में था

आज अपनी तलाश में हूँ…

☆☆ 

Upheavals and storms inside

Endless rounds of tourists outside

How coast manages co-ordination

Of  so many diverse contradictions

☆☆☆☆☆

हम तो नरम पत्तों की…

शाख़ हुआ करते थे…!

छीले इतने गए कि…

खंज़र  हो गए…!!

☆☆

Used to be lush tender branch 

Laden with soft green leaves…

Got chiseled off so much

That  turned into a dagger…!

☆☆☆☆☆

कौन बहीखाता रखे…

किसको कितना दिया

और किसने कितना बचाया

ख़ुदा ने आसान हिसाब बनाया

सबको खाली हाथ भेजा

और खाली हाथ ही बुलाया…

☆☆ 

Who to keep a book of account

How much did someone give

And how much did one save

God simplified the calculations

Sent everyone empty handed

And called back empty handed …

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 213 ☆ श्रृंगार गीत : हरसिंगार मुस्काए ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक श्रृंगार गीत : हरसिंगार मुस्काए)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 213 ☆

☆ श्रृंगार गीत : हरसिंगार मुस्काए ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

खिलखिलायीं पल भर तुम

हरसिंगार मुस्काए

.

अँखियों के पारिजात

उठें-गिरें पलक-पात

हरिचंदन देह धवल

मंदारी मन प्रभात

शुक्लांगी नयनों में

शेफाली शरमाए

.

परिजाता मन भाता

अनकहनी कह जाता

महुआ मन महक रहा

टेसू तन झुलसाता

फागुन में सावन की

हो प्रतीति भरमाए

.

कर-कुदाल-कदम माथ

पनघट खलिहान साथ,

सजनी-सिन्दूर सजा-

चढ़ सिउली सजन-माथ?

हिलमिल चाँदनी-धूप

धूप-छाँव बन गाए

हरसिंगार पर्यायवाची: हरिश्रृंगार, पारिजात, शेफाली, श्वेतकेसरी, हरिचन्दन, शुक्लांगी, मंदारी, परिजाता, पविझमल्ली, सिउली, night jasmine, coral jasmine, jasminum nitidum, nycanthes arboritristis, nyclan.

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१७-२-२०१७

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पहचान… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, दो कविता संग्रह, पाँच कहानी संग्रह,  दो  उपन्यास “फिर एक नयी सुबह” और  “औरत तेरी यही कहानी” प्रकाशित। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। हाल ही में आशीर्वाद सम्मान से अलंकृत । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता पहचान… ।)  

☆ कविता ☆ पहचान… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

’पहचान’ नहीं मात्र शब्द…

मानव के मानव होने की,

धरोहर है हर मानव की,

मानव के उसूलों से बनती पहचान

संघर्ष जिंदगी में पड़ता करना,

न तेरा या मेरा न दूसरों का,

यह तो मात्र बात पहचान की,

क्यों भागते हो पहचान के पीछे,

मत भागो सम्मान के पीछे,

स्वयं को बना काबिल इन्सान,

लोग पहचानने लगेंगे आप ही,

सोच ऊँची पर्वत के समान करो,

छुओ गगन को विचारों से…

स्वयं आप ही लोग बुलायेंगे,

होते बड़े इन्सान अपने कर्मों से,

कर अच्छे कर्म औ’ देखो,

पहचानता सारा जग इन्सान,

पग- पग पर मिलेंगे पथरीले कांटे,

उसे बनाना है फूल…

रौंदकर काँटो को बढ़ना आगे,

राह में आएंगे अनेक कंकड,

उस पर चुभेंगे पत्थर,

पडेंगे छाले पैरों में ….

शोणित रक्त की नहीं करनी परवाह,

बहने दो लहू को बेलौस,

उसको नज़र अंदाज कर,

हँसते- हँसते रोना सीखो,

अगर प्राप्त करना है लक्ष्य,

लक्ष्य नहीं पहचान बनाना,

 

शख्सियत ऐसी बनानी है,

लोग याद करें जिंदगी भर,

चाहे तो भी न भूल पाये,

अगर सच में हो सके औ’…

काबिल मानव बन पाए तो,

समाज के झंझावात से दूर,

बलि की वेदी पर चढ़कर,

करना काबू लोगों के मन पर,

अपने सुकर्मो के आधार पर,

पहुचना है लक्ष्य की ओर,

लक्ष्य का निर्धारण मात्र ध्येय,

हे मानव! होगी पहचान स्वयं,

हँसते – हँसते कर कर्म,

रोना नहीं जिंदगी में कभी,

आँखे कभी न मूँदना गुमनाम,

ज़िंदगी में राह चुनो दुरुस्त,

कर गुज़रना अच्छा कार्य जिंदगी में,

विचरण करना संसार रुपी सागर में,

संसार के अथाह सागर में डूबना है,

बेशक बनेगी मानव की पहचान।

© डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, लेखिका व कवयित्री, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मेरे हिस्से का प्रेम… ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ मेरे हिस्से का प्रेम… ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

मैं तुम से

         दूर  हूँ

 धूप    और   छाँव   की   तरह

पुष्प   और   सुगंध   की   तरह

धरा और नील  गगन  की तरह

दिवस  और  निशा   की   तरह

जनवरी और दिसम्बर की तरह

    साथ-साथ होते हुए भी

         बहुत दूर- बहुत दूर

 

             परन्तु

   प्रति दिन मिलता हूँ

              तुम से

  तुम्हारी नयी कविता के रूप में

         नये शब्दों के रूप में

 

              जीवन में

   कभी कोई सुयोग बना..तो

          मैं तुम से मिल कर

   कभी रोना – कभी  हँसना चाहूँगा

   अनजान  राहों पर चलना चाहूँगा

          जीवन गुज़र रहा है

              अनुकूलता में

               प्रतिकूलता में

                  आभाव में

                 बिखराव में

              मन सुरभित है

            मधुर स्मृतियों से

                  अब मेरे पास

      इस के अतिरिक्त

               कुछ भी नहीं है

     प्रेम जीवन में

           सर्वस्व

      ले कर आता है

              इस लिए

        यदि हो सके तो

            एक काम करना

           

           तुम

              मेरे हिस्से का

                 प्रेम बचा कर रखना…।

 डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ताकि… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – ताकि  ? ?

सुनते हैं,

मरुस्थल कभी समंदर था,

एक समंदर है मेरे भीतर,

एक समंदर है तेरे भीतर,

चलो मिलें, बैठें, बतियाएँ,

ताकि हमारे समंदर में

कभी कोई मरुस्थल न उग पाए.. !

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 12:07 बजे, 20.12.24

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆ गीत – ।।आज के नौनिहाल कल के कर्णधार होते हैं।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆

☆ गीत – ।।आज के नौनिहाल कल के कर्णधार होते हैं।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।

मासूमियत में ईश्वर का आभास होता है।।

**

मन के सच्चे और मिट्टी  से कच्चे होते हैं।

जिस राह चलाओ उधर ही बच्चे होते हैं।।

बच्चों के ह्रदय चंचलता का निवास होता है।

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।।

****

बचपन से ही सिखाना है बातें  अच्छी- अच्छी।

नींव बनाना है उनकी शुरू से ही सच्ची-सच्ची।।

बच्चे नौनिहाल कर्णधार निश्चल लिबास होता है।

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।।

****

आज की जरूरत कि  मोबाइल से बचाना है।

बच्चों को संस्कार     संस्कृति सिखाना है।।

बड़ों से सीखते अच्छे बुरे का अहसास होता है।

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 205 ☆ गजल – जियो और जीने दो… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “गजल – जियो और जीने दो। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 205 ☆ गजल – जियो और जीने दो ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

जियो और जीने दो सबको यह सिद्धांत सुहाना है

निश्चित हो जन हितकारी है औं जाना पहचाना है

इसके द्वारा ही जग मे सुख शांति हमेशा आती है

किंतु आज आतंकवाद का उभरा नया जमाना है

*

निर्दोषो का खून हो रहा गाँव गली शैतानी है

कब किसके संग कैसे क्या हो कोई नही ठिकाना है

जब होता सदभाव प्रेम है मिलता है आनंद तभी

हर बुराई को तज के मन से सहज भाव अपनाना है

*

तरस रहे है तडप रहे है दीन दुखी अंधियारों मे

स्नेह दीप ले सबको मन से सही राह दिखलाना है

बिन समझे जो भटक रहे है स्वार्थो के गलियारो मे

जीवन औ ममता का मतलब उन्हें साफ समझाना है

*

द्वेष हमेशा दुखदायी है प्रेमभाव सुखदाता है

आपस का संबंध मधुर कर जग को स्वर्ग बनाना है

सबको साथ लिये बढने से ही हो समृद्धि सहज

बैर भव रखने वालों को यह ही मंत्र पढाना है

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #31 – गीत – भावों की बहती सुरसरिता… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतभावों की बहती सुरसरिता

? रचना संसार # 31 – गीत – भावों की बहती सुरसरिता…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

☆ 

भावों की बहती सुरसरिता,

कमल पुष्प से हम खिल जाते।

पूनम की संध्या बेला में,

सप्त सुरों में यदि तुम गाते।।

 *

प्रीत सुधा रसधारा बहती,

घोर अमावस भी छट जाती।

उजियारा फिर जग में होता,

पूनम की ये रात सुहाती।।

मधुरिम बोल मधुर धुन सुनते,

पुष्प देवता भी बरसाते।

 *

भावों की बहती सुरसरिता,

कमल पुष्प से हम खिल जाते।।

 *

पावन छुअन सजन की पाकर,

अंग- अंग संदल हो जाता।

धरती अंबर से मिल जाती,

झंकृत रोम -रोम हो जाता।।

अलि करते गुंजार मनोहर,,

सजन लाज से हम सकुचाते।

 *

भावों की बहती सुरसरिता,

कमल पुष्प से हम खिल जाते।।

 *

 मादक इन नयनों में खोकर,

 छंद छंद रस गागर भरता।

 आल्हादित कण- कण हो जाता,

 अलंकार से सृजन निखरता।।

 रति सा सुंदर रूप देखकर ,

 कामदेव बन मुझे लुभाते ।

 *

भावों की बहती सुरसरिता,

कमल पुष्प से हम खिल जाते।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares
image_print