सुश्री स्वप्ना अमृतकर
*बस इतना ही चाहता हूँ….*
(सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी मराठी की एक बेहतरीन कवियित्रि हैं. प्रस्तुत है उनकी एक हिन्दी गजल।)
सुश्री स्वप्ना अमृतकर
*बस इतना ही चाहता हूँ….*
(सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी मराठी की एक बेहतरीन कवियित्रि हैं. प्रस्तुत है उनकी एक हिन्दी गजल।)
डा. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी के अतिसुन्दर एवं भावप्रवण मुक्तक – एक प्रयोग।)
दुनिया में अच्छे लोग
बड़े नसीब से मिलते हैं
उजड़े गुलशन में भी
कभी-कभी फूल खिलते हैं
बहुत अजीब सा
व्याकरण है रिश्तों का
कभी-कभी दुश्मन भी
दोस्तों के रूप में मिलते हैं
◆◆◆
मैंने पलट कर देखा
उसके आंचल में थे
चंद कतरे आंसू
वह था मन की व्यथा
बखान करने को आतुर
शब्द कुलबुला रहे थे
क्रंदन कर रहा था उसका मन
परन्तु वह शांत,उदारमना
तपस्या में लीन
निःशब्द…निःशब्द…निःशब्द
◆◆◆
मेरे मन में उठ रहे बवंडर
काश! लील लें
मानव के अहं को
सर्वश्रेष्ठता के भाव को
अवसरवादिता और
मौकापरस्ती को
स्वार्थपरता,अंधविश्वासों
व प्रचलित मान्यताओं को
जो शताब्दियों से जकड़े हैं
भ्रमित मानव को
◆◆◆
© डा. मुक्ता
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
सुश्री शारदा मित्तल
दोहे
(सुश्री शारदा मित्तल जी का e-abhivyakti में स्वागत है। आप महिला काव्य मंच चड़ीगढ़ इकाई की संरक्षक एवं वूमन टी वी की पूर्व निर्देशक रही हैं। प्रस्तुत हैं उनके दोहे। हम भविष्य में उनकी और रचनाओं की अपेक्षा करते हैं।)
कंकर पत्थर सब सहे, मैंने तो दिन रात ।
सागर सी ठहरी रही, मैं नारी की जात ।।
साथ निभाया हर घड़ी, मन की गाँठें खोल।
रिश्तों को महकाऐं हैं, तेरे मीठे बोल ।।
मानवता देखें नहीं, सब देखें औकात ।
इस सदी ने दी हमें, ये कैसी सौगात ।।
अड़ियल कितना झूठ हो, सब लेते पहचान ।
खामोशी भी बोलती, सच में कितनी जान ।।
मात-पिता का हाथ यूँ, ज्यूँ बरगद की छाँव ।
तू जन्नत को खोजता, जन्नत उनके पाँव ।।
बौराया जग में फिरे, कैसे आऐ हाथ ।
तू बाहर क्यूँ खोजता, वो है तेरे साथ ।।
खुद पर, तुझ पर, ईश पर, है इतना विश्वास ।
तूफ़ा कितने हों मगर, छू लूँगी आकाश ।।
शाखों से झरने लगे, अब हरियाले पात ।
शायद अपनों ने दिया, इनको भी आघात ।।
तुझे स्मरित जब किया, झुक जाता है शीश ।
प्रभु हमेशा ही मिले, बस तेरा आशीष ।।
नदी किनारे बैठकर कब बुझती है प्यास।
बिना भरे अंजलि यहाँ, रहे अधूरी आस।।
© शारदा मित्तल
605/16, पंचकुला
डॉ भावना शुक्ल
स्त्री शक्ति
स्त्री शक्ति स्वरूपा है
जगत रूपा है।
स्त्री की महिमा जग में अपार
थामी है उसने घर की पतवार
उसमे समाया ममता का सागर
जीवन भर भरती सदा स्नेह की गागर।
प्रेम दया करुणा की है मूर्ति
करती है हर रूपों में पूर्ति।
स्त्री ही है पालनहार
उसी से है जन्मा सकल संसार
स्त्री शक्ति की ललकार है
स्त्री
दुर्गा,लक्ष्मी,सरस्वती का है अवतार
मां ,बहन, बेटी है जग का सार।
स्त्री है सबसे न्यारी
है वो हर सम्मान की अधिकारी।
©डॉ.भावना शुक्ल
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
निश्चित हो मतदान
(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित “लोकतन्त्र के पर्व – मतदान दिवस” पर रचित प्रत्येक नागरिक को जागरूक करती कविता ‘निश्चित हो मतदान’।)
जो कुछ जनहित कर सके, उसकी कर पहचान
मतदाता को चाहिये, निश्चित हो मतदान ।
अगर है देश प्यारा तो, सुनो मत डालने वालों
सही प्रतिनिधि को चुनने के लिये ही अपना मत डालो।
सही व्यक्ति के गुण समझ, कर पूरी पहचान
मतदाताओ तुम करो, सार्थक निज मतदान।
सोच समझ कर, सही का करके इत्मिनान
भले आदमी के लिये, करो सदा मतदान।
जो अपने कर्तव्य का, रखता पूरा ध्यान
मतदाता को चाहिये, करे उसे मतदान।
लोकतंत्र की व्यवस्था में, है मतदान प्रधान
चुनें उसे जो योग्य हो, समझदार इंसान।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
सुश्री प्रभा सोनवणे “कात्यायनी”
चिट्ठियाँ
(प्रस्तुत है ज्येष्ठ मराठी साहित्यकार सुश्री प्रभा सोनवणे जी की भावप्रवण कविता “चिट्ठियाँ “)
अक्सर हमे मिलने आती है चिट्ठियाँ
चाहत भरे नगमे गाती है चिट्ठियाँ
आहट तुम्हारे पैरों की जब आती है
खबर कोई मीठी लाती है चिट्ठियाँ
चिठ्ठी नही यह तो मेरी धडकन ही है
दर्द कितने सनम छुपाती है चिट्ठियाँ
छोडा हमारे ख्वाबों को तन्हाँ तुमने
यादे तुम्हारी संजोती है चिट्ठियाँ
वादा कभी कोई करके भुला भी दे
आँसू बहाती है रोती है चिट्ठियाँ
रौनक’ प्रभा’ तुमने माँगी अंधेरोंसे
किस्मत यहाँ पर चमकाती है चिट्ठियाँ
© प्रभा सोनवणे”कात्यायनी”
गणराज ,135/2 सोमवार पेठ पुणे 411011 (महाराष्ट्र)
मोबाईल -9270729503
डा. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है एक सामयिक एवं मार्मिक रचना जिसकी पंक्तियां निश्चित ही आपके नेत्र नम कर देंगी और आपके नेत्रों के समक्ष सजीव चलचित्र का आभास देंगे।)
© डा. मुक्ता
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
श्रीमति सुजाता काले
मासूम से परिंदों का
अब न वासता कहीं,
कौन जिया कौन मरा,
अब कोई खबर नहीं ।
दुबक गए पहाड़ भी,
लुटी सी है नदी कहीं,
ये कौन चित्रकार है,
जिसने भरे न रंग अभी।
शाम हैं रूकी- रूकी,
दिन है बुझा कहीं,
सहर तो रोज होती है,
रात का पता नहीं ।
मंज़िलों की लाश ये,
कर रही तलाश है,
बेखबर सा हुस्न है,
इश्क से जुदा कहीं ।
जहां बनाया या ख़ुदा,
और तूने जुदा किया,
साँस तो रूकी सी है,
आह है जमीन हुई।
लुट चुका जहां मेरा,
अब कोई खुशी नहीं,
राह तो कफ़न की है,
ये साज़ का चमन नहीं ।
© सुजाता काले ✍…
श्री जय प्रकाश पाण्डेय
जीवन-प्रवाह
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की विश्व कविता दिवस पर जीवन की कविता –“जीवन –प्रवाह” )
सबसे बड़ी होती है आग,
और सबसे बड़ा होता है पानी,
तुम आग पानी से बच गए,
तो तुम्हारे काम की चीज़ है धरती,
धरती से पहचान कर लोगे,
तो हवा भी मिल सकती है,
धरती के आंचल से लिपट लोगे,
तो रोशनी में पहचान बन सकती है,
तुम चाहो तो धरती की गोद में,
पांव फैलाकर सो भी सकते हो,
धरती को नाखूनों से खोदकर,
अमूल्य रत्नों भी पा सकते हो,
या धरती में खड़े होकर,
अथाह समुद्र नाप भी सकते हो,
तुम मन भर जी भी सकते हो,
धरती पकडे यूं मर भी सकतेहो,
कोई फर्क नहीं पड़ता,
यदि जीवन खतम होने लगे,
असली बात तो ये है कि,
धरती पर जीवन प्रवाह चलता रहे।
© जय प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर
(श्री जय प्रकाश पाण्डेय, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा हिन्दी व्यंग्य है। )
श्रीमति सखी सिंह
(श्रीमति सखी सिंह जी का e-abhivyakti में स्वागत है।
प्रस्तुत कर रहा हूँ प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमति सखी सिंह जी की कविता बिना किसी भूमिका के उन्हीं के शब्दों के साथ – एक ख्याल आया रात कि जो शहीद हुए हैं पिछले कुछ दिनों में उनके घर का आलम क्या होगा इस वक़्त। मन उदासी से भर गया। आंखें नम हो गयी। )
© सखी सिंह, पुणे