सुश्री सुषमा भंडारी
ये जीवन दुश्वार सखी री
(सुश्री सुषमा भंडारी जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। आप साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य मंथन की महासचिव एवं प्रणेता साहित्य संस्थान की अध्यक्षा हैं ।आपको यह कविता आपको ना भाए यह कदापि संभव नहीं है। आपकी विभिन्न विधाओं की रचनाओं का सदैव स्वागत है। )
ये जीवन दुश्वार सखी री
मरती बारम्बार सखी री
ये जीवन दुश्वार सखी री
जब घन घिर- घिर आये सखी री
पी की याद दिलाये सखी री
मुझमें रहकर भी क्यूं दूरी
ये मुझको न भाये सखी री
ये जीवन ——
कान्हा हो या राम सखी री
हो जाउँ बदनाम सखी री
उसकी खातिर छोडूं दुनिया
भाये उसका धाम सखी री
ये जीवन——-
बन्धन माया- मोह है सखी री
झूठी काया – कोह सखी री
वो प्रीतम मैं उसकी प्रीता
मन अन्तस अति छोह सखी री
ये जीवन——-
निराकार से प्यार सखी री
वो सब का आधार सखी री
जड़-चेतन सब अंश उसी के
करता वो उद्धार सखी री
ये जीवन ——————
© सुषमा भंडारी
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