हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #223 ☆ एक पूर्णिका – हमें  ऐतवार  है वफा  पर  अपनी… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक पूर्णिका – हमें  ऐतवार  है वफा  पर  अपनी आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 223 ☆

☆ एक पूर्णिका – हमें  ऐतवार  है वफा  पर  अपनी ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बंद जब उनकी ज़ुबां  होती है

बात  नजरों से  बयां  होती  है

*

मोम  क्या है  वो क्या  समझेंगे

संग-दिल जिनकी अदा होती है

*

तिश्नगी प्यार की बढ़ी इस कदर

लरजते  होठों  से अयां  होती है

*

सुकूं  रूह को  मिले  जो प्यार  में

तनवीर    ऐसी   कहाँ   होती   है

*

याद   उनकी  लाती  है  बे- सुधी

देख  उनको  उम्मीदें जवां होती हैं

*

हमें  ऐतवार  है वफा  पर  अपनी

पर तकदीर सभी की जुदा होती है

*

“संतोष” प्यार में खोए हैं इस तरह

न आग लगती है, न धुआँ  होती है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पर्यायवाची ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पर्यायवाची ? ?

कितना ही डराओ,

दबाओ, कुचलो,

मारो, पीटो, वध करो,

बार-बार संघर्ष करते हो,

हर बार उठ खड़े होते हो,

तुम पर क्या

मृत्यु का असर नहीं होता?

मैं हँस पड़ा,

मात्र शरीर नश्वर होता है,

पर शब्द ईश्वर होता है..,

सुनो,

अशेष का पर्यायवाची होता है,

सर्जक, जगत में

आठवाँ चिरंजीवी होता है!

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 5 :05 बजे, 18 जुलाई 2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना ज्येष्ठ पूर्णिमा तदनुसार 21 जून से आरम्भ होकर गुरु पूर्णिमा तदनुसार 21 जुलाई तक चलेगी 🕉️

🕉️ इस साधना में  – 💥ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। 💥 मंत्र का जप करना है। साधना के अंतिम सप्ताह में गुरुमंत्र भी जोड़ेंगे 🕉️

💥 ध्यानसाधना एवं आत्म-परिष्कार साधना भी साथ चलेंगी 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 292 ☆ कविता – सेवा निवृत्ति पर ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 292 ☆

? कविता – सेवा निवृत्ति पर ?

तीस-पैंतीस साल पहले, एक नौजवान,

मिठाई बांट रहा था नौकरी में चयन पर,

मां खुश थी, बहनें हर्षित,

पिता की चिंता थी खत्म हुई।

 

आज वही युवक बन चुका है एक परिपक्व पुरुष,

कुछ खिचड़ी बाल अब वह रखता है,

साथ ब्लड प्रेशर और शुगर की दवाएं,

नौकरी की गाथा पूरी हुई,

पत्नी प्रसन्न हुई,

अब आपका समय सिर्फ मेरा होगा।

 

खूब मेहनत की है आपने,

अब समय है आराम और सुकून का,

घूमना है दुनियां,

अब यादें हैं अनगिनत,

अनुभव हैं अमूल्य,

डायरियां भर भर,

सीखा और जिया है जीवन,

नित नई चुनौतियों की फाइलों के बीच।

 

अब समय है खुद के लिए समय निकालने का,

अपने सपनों को पूरा करने का,

नई उम्मीदों के साथ,

जीवन के नए मुकाम की ओर बढ़ने का,

जीवन के नए अध्याय रचने हैं,

कुछ खुद के लिए,

कुछ परिवार के लिए,

और कुछ समाज के लिए।

 

जुड़ना है अब दोबारा गांव की मिट्टी से,

करने हैं पूरे अपने शौक,

बेरोकटोक जीना है अपने आप के लिए।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 212 ☆ बाल गीत – पुस्तक बाँचें ज्ञान-वान की ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 212 ☆

बाल गीत – पुस्तक बाँचें ज्ञान-वान की  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

चिड़िया बैठी शमी-डाल पर

करती आज सवेरा।

आँख दिखाई चिड़िया ने जब

भागा दूर अँधेरा।।

एक-एक करके बहुतेरी

चिड़ियाँ हैं आईं।

पुस्तक बाँचें ज्ञान-वान की

मन से करें पढ़ाई।

 *

पढ़तीं क,ख,ग,घ,अं,अः,

कोई ठ से पढ़े ठठेरा।।

 *

कोई पढ़ती ए,बी,सी,डी,

पढ़तीं अ , आ , इ , ई।

गणित और विज्ञान पढ़ें सीखें

तकनीकें नई -नई।

 *

कोई पढ़ती बाल पत्रिका

उपवन में उनका डेरा।

 *

शिक्षा से ही ज्योतिर्मय हो

मिटती द्वेष कुरीती।

देश प्रेम जगता है मन में

बढ़े सुमति सँग प्रीती।

 *

अहंकार भी मिट जाता है

मन से तेरा – मेरा।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #238 – कविता – ☆ है उम्मीद अभी भी बाकी… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता है उम्मीद अभी भी बाकी…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #238 ☆

☆ है उम्मीद अभी भी बाकी… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

बीता वक्त साथ में

बीत गए स्वर्णिम पल

मची हुई स्मृतियों में हलचल।

*

शिथिल पंख अनंत इच्छाएँ

कैसे अब उड़ान भर पाएँ

आसपास पसरे बैठे हैं

लगा मुखौटे छल-बल के दल

मची हुई स्मृतियों में हलचल…

*

कल परसों सी रही न बातें

अनजानी सी अंतरघातें

सद्भावी नहरे हैं खाली

हुआ प्रदूषित नदियों का जल

मची हुई स्मृतियों में हलचल…

*

सूरज से थे आँख मिलाते

चंदा से जी भर बतियाते

कैद दीवारों में एकाकी

शेष शून्यमय मन की हलचल

मची हुई स्मृतियों में हलचल…

*

ऋतु बसंत अब भी है आती

होली दिवाली शुभ राखी

परंपरागत करें निर्वहन

पर न प्रेम वह रहा आजकल

मची हुई स्मृतियों में हलचल…

*

है उम्मीद अभी भी बाकी

उदित सूर्य किरणें उषा की

आलोकित होंगे अंतर्मन

होंगे फिर जीवन पथ उज्जवल

मची हुई स्मृतियों में हलचल…

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 62 ☆ रोशनी की आस… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “रोशनी की आस…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 62 ☆ रोशनी की आस… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(पहाड़ों पर प्रकृति की विध्वंसक लीला पर एक गीत)

पास सब कुछ

पर है लगता

कुछ नहीं है पास।

*

आस्थाओं

पर है भारी

प्रकृति का यह दंड

हो गया

है आदमी का

उजागर पाखंड

*

रो रही है

धरा पावन

हँस रहा आकाश ।

*

हाहाकारों

से पटी

छाती हिमालय की

हिल गईं

सब मान्यताएँ

पूजा शिवालय की

*

डगमगा कर

रह गया है

लोगों का विश्वास ।

*

दृष्टियाँ

बस खोजती हैं

अपनेपन की धूप

बेचती है

नियति पल-पल

विवशता के रूप

*

मौन करुणा

में छुपी है

रोशनी की आस ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 66 ☆ दोस्त इसको मरे जमाना हुआ… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “दोस्त इसको मरे जमाना हुआ“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 66 ☆

✍ दोस्त इसको मरे जमाना हुआ… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

ढूढती क्या है ज़िन्दगी मुझमें

इश्क़ की आग जल रही मुझमें

 *

मैं उठाता हूँ ज़िन्दगीं का मज़ा

जब से आयी है सादगी मुझमें

 *

 डूब जाएगी दहर की नफ़रत

है रवाँ प्यार की नदी मुझमें

तेरी नजदीकियों का क्या कहना

खिल रही ख़ूब चाँदनी मुझमें

 *

इक तेरे बज़्म छोड़ देने से

रक़्स-फरमा है तीरगी मुझमें

 *

दोस्त इसको मरे जमाना हुआ

ढूढता क्यूँ है आदमी मुझमें

 *

अच्छे लोगों का फैज़ है ये अरुण

ज़िंदा है अब भी मुख़लिसी मुझमें

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 63 – धुंधले नक्शे कदम रह गये… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना –धुंधले नक्शे कदम रह गये।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 63 – धुंधले नक्शे कदम रह गये… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

अपनी हद में न हम रह गये

दंग, दैरो हरम रह गये

*

अनुसरण न बड़ों का किया 

धुंधले, नक्शे कदम रह गये

*

छोड़ महफिल को, सब चल दिये

सहते हम ही सितम रह गये

*

आशिकी का नतीजा है ये 

सर हमारे कलम, रह गये

*

हुस्न उनका जो ढलने लगा

चाहने वाले, कम रह गये

*

वो न साकी न वैसी है मय 

मयकशी के वहम रह गये

*

मयकशी के, चले दौर फिर 

जब, न महफिल में हम रह गये

 

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 137 – हल कुछ निकले तो सार्थक है… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “हल कुछ निकले तो सार्थक है…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 137 –  हल कुछ निकले तो सार्थक है… ☆

हल कुछ निकले तो सार्थक है, लिखना और सुनाना ।

वर्ना क्या रचना, क्या गाना, क्या मन को बहलाना ।।

*

अविरल नियति-नटी सा चलता, महा काल का पहिया ।

विषधर सा फुफकार लगाता, समय आज का भैया ।।

*

भीष्म – द्रोण अरु कृपाचार्य सब, बैठे अविचल भाव से ।

ज्ञानी – ध्यानी मौन साधकर, बंधे हुये सत्ता सुख से ।।

*

ताल ठोंकते दुर्योधन हैं, घूम रहे निष्कंटक ।

पांचों पांडव भटक रहे हैं, वन-बीहड़ पथ-कंटक ।।

*

धृतराष्ट्र सत्ता में बैठे, पट्टी बाँधे गांधारी ।

स्वार्थ मोह की राजनीति से, धधक रही है चिनगारी ।।

*

गांधारी भ्राता शकुनि ने, चौपड़ पुनः बिछाई है ।

और द्रौपदी दाँव जीतने, चौसर – सभा बुलाई है ।।

*

शाश्वत मूल्यों की रक्षा में, अभिमन्यु की जय है ।

किन्तु आज भी चक्रव्यूह के, भेदन में संशय है ।।

*

क्या परिपाटी बदल सकेगी, छॅंट पायेगी घोर निशा ।

खुशहाली की फसल कटेगी, करवट लेगी नई दिशा ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मन ? ?

राजहंस और भेड़िया,

एक ही पिंजड़े में बंद देखता हूँ,

मन की चारदीवारी में,

कैसे-कैसे रंग देखता हूँ !

© संजय भारद्वाज  

(प्रात: 11: 47 बजे, 6 जुलाई 2024)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना ज्येष्ठ पूर्णिमा तदनुसार 21 जून से आरम्भ होकर गुरु पूर्णिमा तदनुसार 21 जुलाई तक चलेगी 🕉️

🕉️ इस साधना में  – 💥ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। 💥 मंत्र का जप करना है। साधना के अंतिम सप्ताह में गुरुमंत्र भी जोड़ेंगे 🕉️

💥 ध्यानसाधना एवं आत्म-परिष्कार साधना भी साथ चलेंगी 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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