हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – यह आदमी मरता क्यों नहीं है? ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – शब्दयुद्ध-आतंक के विरुद्ध  ? ?

(26 नवंबर 2019 को प्रकाशित >> ☆ संजय दृष्टि  –  शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध ☆  अपने आप में विशिष्ट है। ई-अभिव्यक्ति परिवार के सभी सम्माननीय लेखकगण / पाठकगण श्री संजय भारद्वाज जी एवं श्रीमती सुधा भारद्वाज जी के इस महायज्ञ में अपने आप को समर्पित पाते हैं। मेरा आप सबसे करबद्ध निवेदन है कि इस महायज्ञ में सब अपनी सार्थक भूमिका निभाएं और यही हमारा दायित्व भी है। – हेमन्त बावनकर) 

श्री संजय भरद्वाज जी के ही शब्दों में – “आम आदमी की अदम्य जिजीविषा को समर्पित यह कविता *’शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध’* प्रदर्शनी और अभियान में चर्चित रही। विनम्रता से आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ। यदि आप किसी महाविद्यालय/ कार्यालय/ सोसायटी/ क्लब/ बड़े समूह के लिए इसे आयोजित करना चाहें तो आतंक के विरुद्ध  जन -जागरण के इस अभियान में आपका स्वागत है।”

सर्वप्रथम 26/11 और देश भर में अलग-अलग आतंकी घटनाओं में प्राण गंवाने वाले आम आदमी और आतंकियों से मुकाबला करते हुए बलिदान देनेवाले सुरक्षाकर्मियों की स्मृति को सादर नमन। 26/11 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद श्री संजय भारद्वाज जी एवं श्रीमति सुधा भारद्वाज जी द्वारा शब्दयुद्ध-आतंक के विरुद्ध अभियान आरम्भ किया गया। 16 वर्ष से यह अभियान अनवरत जारी है।

शब्दयुद्ध-आतंक के विरुद्ध में सम्मिलित रचना ‘यह आदमी मरता क्यों नहीं है’ का जन्म 26 से 28 नवम्बर 2008 के बीच कभी हुआ था। सामान्य आदमी की असामान्य जिजीविषा को समर्पित इस रचना को पाठकों और श्रोताओं ने अपूर्व समर्थन दिया। आम आदमी के इसी अदम्य साहस को समर्पित है शब्दयुद्ध-आतंक के विरुद्ध अभियान।

? यह आदमी मरता क्यों नहीं है? ?

💐 नागरिकों की रक्षा के लिए आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए सशस्त्र बलों के सैनिकों और आतंकी वारदातों में प्राण गंवाने वाले  नागरिकों को श्रद्धांजलि💐

हार क़ुबूल करता क्यों नहीं है,

यह आदमी मरता क्यों नहीं है?

 

कई बार धमाकों से उड़ाया जाता है,

गोलीबारी से

परखच्चों में बदल दिया जाता है,

ट्रेन की छतों से खींचकर

नीचे पटक दिया जाता है,

अमीरज़ादों की ‘ड्रंकन ड्राइविंग’

के जश्न में कुचल दिया जाता है,

 

कभी दंगों की आग में

जलाकर ख़ाक कर दिया जाता है,

कभी बाढ़ राहत के नाम पर

ठोकर दर ठोकर

कत्ल कर दिया जाता है,

कभी थाने में उल्टा लटका कर

दम निकलने तक

बेदम पीटा जाता है,

कभी बराबरी की ज़ुर्रत में

घोड़े के पीछे बांधकर खींचा जाता है,

 

सारी ताकतें चुक गईं,

मारते-मारते खुद थक गईं,

न अमरता ढोता न कोई आत्मा है,

न ईश्वर, न अश्वत्थामा है,

फिर भी जाने इसमें क्या भरा है,

हज़ारों साल से सामने खड़ा है,

मर-मर के जी जाता है,

सूखी ज़मीन से

अंकुर-सा उग आता है,

 

ख़त्म हो जाने से डरता क्यों नहीं है,

यह आदमी मरता क्यों नहीं है..?

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 84 ☆ बोझ तुम मान  के बेटी नहीं रुखसत करना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “बोझ तुम मान  के बेटी नहीं रुखसत करना“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 84 ☆

✍ बोझ तुम मान  के बेटी नहीं रुखसत करना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

क्या रखा दर्प में छोड़ो ये फ़ज़ीयत करना

चाह इज्जत की है तो सीख ले इज्जत करना

 *

हर इबादत का शरफ़ दोस्त मिलेगा तुझको

दरमन्दों से गरीबों से मुहब्बत करना

 *

पहले कर लेना हुक़ूमत से गुज़ारिश फिर भी

कान पर जूं न जो रेंगें तो बगावत करना

 *

एक हद तक ही मुनाफे को कहा है जायज़

दीन को ध्यान में रखके ही तिज़ारत करना

 *

आसतीनों के लिए नाग भी बन जाते हैं

आदमी देख के ही आज रफाक़त करना

 *

हम सफ़र उंसके हो लायक जो उसे दे सम्मान

बोझ तुम मान  के बेटी नहीं रुखसत करना

 *

दोसती करके निभाना है अरुण मुश्किल पर

कितना आसान किसी से भी अदावत करना

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सजन… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कविता ?

☆ सजन☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

(डमरू घनाक्षरी)

तरसत मन अब, सजन जलत मन

असफल हर पल, पवन करत छल ।।

*

डगर डगर पर, सहज नजर धर

इधर उधर सब, बहत नयन जल ॥

*

जहर अधर पर, कहत कपट कर

दरस हरस कब, भटकत जल थल ॥

*

 बहकत पग अब, खबर नगर भर

सरस सबल मन, पनघट पर चल ॥

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 80 – कुछ चेहरे, कुछ लोग न भूले… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कुछ चेहरे, कुछ लोग न भूले।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 80 – कुछ चेहरे, कुछ लोग न भूले… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

पत्रा, पाती, जोग न भूले 

मनवांछित संयोग न भूले

 *

तुम्हें रिझाने, तुमको पाने 

कितने किये प्रयोग, न भूले

 *

अग्नि-साक्ष्य से, अग्निदाह तक

हम, सुयोग, दुर्योग न भूले

 *

कठिन समय में, कदम मिलाकर 

किये गये उद्योग न भूले

 *

गंध, रूप, रस, दरश, परस के 

सरस आचमन, भोग न भूले

 *

यूँ तो सुध-बुध नहीं स्वयं की 

कुछ चेहरे, कुछ लोग न भूले

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 315 ☆ कविता – “हरियाली… और AI की कविता पर प्रतिक्रिया …” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 315 ☆

? कविता – हरियाली… और  ? AI की कविता पर प्रतिक्रिया ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

शहर की चकचौंध

गांव का सुकून

छीन लेती है

 खो जाती है,एआई

मन की शांति

जंगल की हरियाली ही,

जीवन की सांस है।

 

कार्बन उत्सर्जन की समस्या

पर्यावरण की स्थिति

ए क्यू आई

बदतर हो रहा है,

पर्यावरण की रक्षा कर

पेड़ लगाकर,

 प्रदूषण कम करके,

और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाकर,

हम एक स्वच्छ और हरित भविष्य का निर्माण कर सकते हैं,

आओ मिलकर पर्यावरण की रक्षा करें,

और एक बेहतर भविष्य का निर्माण करें।

हमारे हर प्रयास से

हमारा ही भविष्य सुरक्षित होगा,

और पृथ्वी हरित और स्वच्छ रहेगी।

 ?

 ? AI की कविता पर प्रतिक्रिया ?

मैने AI को यह कविता पोस्ट कर पूछ लिया कि उसे कविता कैसी लगी, तो उत्तर मिला

आपकी कविता बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण है! आपने पर्यावरण की समस्याओं और उनके समाधानों को बहुत ही स्पष्ट और प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है।

आपकी कविता की कुछ विशेषताएं जो मुझे बहुत पसंद आईं:

– आपने शहर और गांव के बीच के अंतर को बहुत ही सुंदर ढंग से व्यक्त किया है।

– आपने पर्यावरण की समस्याओं को बहुत ही स्पष्ट और प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है।

– आपने पर्यावरण की रक्षा के लिए कुछ व्यावहारिक समाधान भी सुझाए हैं।

– आपकी कविता की भाषा बहुत ही सरल और स्पष्ट है, जो इसे सभी के लिए समझने योग्य बनाती है।

आपकी कविता से मुझे यह सीखने को मिला कि पर्यावरण की रक्षा हम सभी की जिम्मेदारी है, और हमें इसके लिए कुछ व्यावहारिक कदम उठाने होंगे। धन्यवाद आपकी कविता के लिए!

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रयोग ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – प्रयोग ? ?

?

अदल-बदल कर

समय ने किए

प्रयोग कई पर

निष्कर्ष वही रहा,

धन, रूप, शक्ति,

सब खेत हुए,

केवल ज्ञान

चिरंजीव रहा!

?

© संजय भारद्वाज  

रात्रि 12:08 बजे, 21-10-2018

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 153 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 153 – मनोज के दोहे ☆

हँसी-खुशी परिवार की, आनंदित तस्वीर।

सुख-दुख में सब साथ हैं, धीर-वीर गंभीर।।

 *

माया जोड़ी उम्रभर, फिर भी रहे उदास।

नहीं काम में आ सकी, व्यर्थ लगाई आस।।

 *

टाँग रखी दीवार पर, मात-पिता तस्वीर

जिंदा रहते कोसते, उनकी यह तकदीर।।

 *

यादें करें अतीत की, बैठे सभी बुजुर्ग।

सुदृढ़ थी परिवार की, बचा तभी था दुर्ग।।

 *

कविता साथी है बनी, चौथेपन में आज।

साथ निभाती प्रियतमा, पहनाया सरताज।।

 *

तन-मन आज जवान है, नहीं गए दरगाह।

उम्र पचासी की हुई, देख करें सब वाह।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 215 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 215 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

और

नारी की अस्मिता

सब कुछ

हो गया

भस्म ।

और

माधवी से

रमण कर

आपने

अपने पौरुष को पंकिल

और तप तेज को भी

कर दिया कलंकित ।

क्यों किया आपने

यह

अकरणीय

कृत्य !

सच कहिये

माधवी के

देव दुर्लभ सौन्दर्य ने

मेनका की

सुधि दिलाकर

हिला दिया था न

आपका ब्रह्मचर्य ।

ओ ! त्रिकालज्ञ !

आप तो जानते थे

श्यामकर्ण अश्वों का

इतिहास,

लौटा सकते थे

माधवी को,

लेकिन

आपने ऐसा नहीं किया।

क्यों? क्यों? क्यों?

धिक्कार है

महातपस्वी ।

ले ली थी

शिष्य की परीक्षा ।

ससम्मान

लौटा सकते थे

 माधवी को, लेकिन

आपने ऐसा नहीं किया।

 क्यों ?क्यों ?क्यों ?

धिक्कार है

महातपस्वी।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 215 – “मानवता की ओढ़-सुन्दरता…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “मानवता की ओढ़-सुन्दरता…...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 215 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “मानवता की ओढ़-सुन्दरता…...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

तोड़ दिया

जिसका डैना |

गौरैया थी वो,

है  ना !!

 

काश कि वो

बाज़ , चील  होती

तब फिर कैसी 

दलील होती

 

पैनी करती रहती

चोंच स्वयं

और डरा 

करती मैना ||

 

यों क्या फिर

कोई सकोरे भरता

मानवता   की

ओढ़ – सुन्दरता

 

आदमीअपनी

धुन का पक्का 

देखता इसके

बदलते  नैना ||

 

बस गौरैया तो

केवल गौरैया

सच में बेहद

निरीह है भैया

 

जा देखो इनकी

बसाहट  में

कम से कम एक-

दो-दिवस-रैना ||

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

15-05-2019

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कलंदर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – कलंदर ? ?

?

तुम्हें छूने थे शंख, सीप,

खारेपन की उजलाहट,

मैं लगाना चाहता था

उर्वरापन में आकंठ डुबकी,

पर कुछ अलग ही पासे

फेंकता रहा समय का कलंदर,

मैंग्रोव की जगह उग आए कैक्टस,

न तुम नदी बन सकी, न मैं समंदर…!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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