हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – आउट ऑफ बॉक्स ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  –  आउट ऑफ बॉक्स

 

माप-जोखकर खींचता रहा

मानक रेखाएँ जीवन भर

पर बात नहीं बनी..,

निजी और सार्वजनिक

दोनों में पहचान नहीं मिली,

आक्रोश में उकेर दी

आड़ी-तिरछी, बेसिर-पैर की

निरुद्देश्य  रेखाएँ

यहाँ-वहाँ अकारण,

बिना प्रयोजन..,

चमत्कार हो गया!

मेरा जय-जयकार हो गया!

आलोचक चकित थे-

आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग का

ऐसा शिल्प आज तक

देखने को नहीं मिला,

मैं भ्रमित था,

रेखाएँ, फ्रेम, बॉक्स,

आउट ऑफ बॉक्स,

मैंने यह सब

कब सोचा था भला?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

सुबह 10.45 बजे,27.11.19

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (6) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

 

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्‌।

तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ।।6।।

 

जो जो जिसको याद कर तजते है यह देह

वे उसको ही पाते है क्योंकि उस पर स्नेह।।6।।

 

भावार्थ :  हे कुन्ती पुत्र अर्जुन! यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है।।6।।

 

Whosoever at the end leaves the body, thinking of any being, to that being only does he go, O son of Kunti (Arjuna), because of his constant thought of that being!।।6।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (5) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

 

अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ।।5।।

 

मुझको करते याद जो तजते सहज शरीर
वे पाते मुझको सदा यह विचार गंभीर।।5।।

 

भावार्थ : जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है।।5।।

 

And whosoever, leaving the body, goes forth remembering Me alone at the time of death, he attains My Being; there is no doubt about this.।।5।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – चयन ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  –  चयन

 

‘न रूप न रंग, न स्टाइल न स्मार्टनेस, न हाई पैकेज न गवर्नमेंट जॉब, न खानदानी रईस, न जागीरदार..,’ खीजकर उसकी सहेली बोले जा रही थी।..’कैसे हाँ कह दी? आख़िर क्या देखा तुमने इस लड़के में?’

 

‘…साथ चलने और साथ जीने की संभावना..,’  मुस्कराते हुए उसने उत्तर दिया।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

सुबह 10.45 बजे,27.11.19

 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (4) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

 

अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम्‌।

अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ।।4।।

 

नाशवान अधिभूत है आद्यिदैव पुरूषार्थ

अहंभाव अधियज्ञ है,यही समझना सार।।4।।

            

भावार्थ :  उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष (जिसको शास्त्रों में सूत्रात्मा, हिरण्यगर्भ, प्रजापति, ब्रह्मा इत्यादि नामों से कहा गया है) अधिदैव है और हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन! इस शरीर में मैं वासुदेव ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ।।4।।

 

Adhibhuta (knowledge  of  the  elements)  pertains  to  My  perishable  Nature,  and  the Purusha or soul is the Adhidaiva; I alone am the Adhiyajna here in this body, O best among the embodied (men)!।।4।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – अखंड महाकाव्य ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  –  अखंड महाकाव्य

 

अखंड रचते हैं,

कहकर परिचय

कराया जाता है,

कुछ हाइकू भर

उतरे काग़ज़ पर

भीतर घुमड़ते

अनंत सर्गों के

अखंड महाकाव्य

कब लिख पाया,

सोचकर संकोच

से गड़ जाता है!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

सुबह 9.24, 20.11.19

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (3) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

 

श्रीभगवानुवाच

अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ।

भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः ।।3।।

भगवान ने बताया-

है अध्यात्म पर ब्रम्ह का स्वाभाविक आधार

कर्म ही प्राणि स्वभाव के उद्भव का व्यवहार।।3।।

      

भावार्थ :  श्री भगवान ने कहा- परम अक्षर ‘ब्रह्म’ है, अपना स्वरूप अर्थात जीवात्मा ‘अध्यात्म’ नाम से कहा जाता है तथा भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है, वह ‘कर्म’ नाम से कहा गया है।।3।।

Brahman is the Imperishable, the Supreme; His essential nature is called Self-knowledge;  the  offering  (to  the  gods)  which  causes  existence  and  manifestation  of  beings  and  which  also sustains them is called action.।।3।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – यह आदमी मरता क्यों नहीं है? ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

(☆ संजय दृष्टि  –  शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध ☆  अपने आप में विशिष्ट है। ई- अभिव्यक्ति परिवार के सभी सम्माननीय लेखकगण / पाठकगण श्री संजय भारद्वाज जी एवं श्रीमती सुधा भारद्वाज जी के इस महायज्ञ में अपने आप को समर्पित पाते हैं। मेरा आप सबसे करबद्ध निवेदन है कि इस महायज्ञ में सब अपनी सार्थक भूमिका निभाएं और यही हमारा दायित्व भी है।)

☆ संजय दृष्टि  –  यह आदमी मरता क्यों नहीं है?

नागरिकों की रक्षा के लिए आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए सशस्त्र बलों के सैनिकों और आतंकी वारदातों में प्राण गंवाने वाले  नागरिकों को श्रद्धांजलि।

 

हार कबूल करता क्यों नहीं है,

यह आदमी मरता क्यों नहीं है?

 

धमाकों से उड़ाया जाता है,

परखच्चों में बदल दिया जाता है,

ट्रेनों की छत से खींच कर

पटक दिया जाता है,

‘ड्रंकन ड्राइविंग’ के

जश्न में कुचल दिया जाता है,

 

दंगों की आग में जलाकर

ख़ाक कर दिया जाता है,

बाढ़ राहत के नाम पर

ठोकर दर ठोकर

कत्ल कर दिया जाता है,

थाने में उल्टा लटकाकर

बेदम पीटा जाता है,

बराबरी की ज़ुर्रत में

घोड़े के पीछे बांधकर

खींचा जाता है,

 

सारी ताकतें चुक गईं

मारते मारते खुद थक गईं,

 

न अमरता ढोता कोई आत्मा है,

न अश्वत्थामा न परमात्मा है,

फिर भी जाने इसमें क्या भरा है,

हजारों साल से सामने खड़ा है,

 

मर मर के जी जाता है,

सूखी ज़मीन से अंकुर -सा

फूट आता है,

खत्म हो जाने से डरता क्यों नहीं है,

यह आदमी मरता क्यों नहीं है?

 

आम आदमी की अदम्य जिजीविषा को समर्पित यह कविता *’शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध’* प्रदर्शनी और अभियान में चर्चित रही। विनम्रता से आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ।  

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

यदि आप किसी महाविद्यालय/ कार्यालय/ सोसायटी/ क्लब/ बड़े समूह के लिए इसे आयोजित करना चाहें तो आतंक के विरुद्ध  जन -जागरण के इस अभियान में आपका स्वागत है।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (2) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

 

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

 

अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन ।

प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ।।2।।

 

ब्रम्ह अधियज्ञ इस देह में,बतलायें भगवान

कैसे योगी,मृत्यु पर करते तव पहचान।।2।।

 

भावार्थ :  हे मधुसूदन! यहाँ अधियज्ञ कौन है? और वह इस शरीर में कैसे है? तथा युक्त चित्त वाले पुरुषों द्वारा अंत समय में आप किस प्रकार जानने में आते हैं॥2॥

 

Who and how is Adhiyajna here in this body, O destroyer of Madhu (Krishna)? And how, at the time of death, art Thou to be known by the self-controlled one?।।2।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

(आज का दैनिक स्तम्भ ☆ संजय दृष्टि  –  शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध ☆  अपने आप में विशिष्ट है। ई- अभिव्यक्ति परिवार के सभी सम्माननीय लेखकगण / पाठकगण श्री संजय भारद्वाज जी एवं श्रीमती सुधा भारद्वाज जी के इस महायज्ञ में अपने आप को समर्पित पाते हैं। मेरा आप सबसे करबद्ध निवेदन है कि इस महायज्ञ में सब अपनी सार्थक भूमिका निभाएं और यही हमारा दायित्व भी है।)

☆ संजय दृष्टि  –  शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध

नागरिकों की रक्षा के लिए आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए सशस्त्र बलों के सैनिकों और आतंकी वारदातों में प्राण गंवाने वाले  नागरिकों को श्रद्धांजलि।

मित्रो!

26/11/2008 से शुरू हुई अगली तीन भयावह रातें शायद ही कोई भारतीय भूला होगा। भारत की औद्योगिक राजधानी मुम्बई विदेशी खूनियों के मानो कब्जे में थी। भारतीय होने के नाते मैं और सुधा जी भी करोड़ों देशवासियों की तरह व्यथा और आक्रोश में थे। निरंतर विचार चल रहा था कि एक आम नागरिक की हैसियत से आतंक के विरुद्ध इस लड़ाई में हम सहयोग कैसे कर सकते हैं? लेखक होने के नाते मुझे शस्त्र के रूप में कलम दिखी। डिजाइनर सुधा जी ने ग्राफिक्स को चुना। शब्द और चित्र के इस संगम ने जन्म दिया संभवतः एक अनन्य प्रदर्शनी-‘शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध’ को।

*’शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध’* में लगभग 150 पोस्टर हैं। इनमें मुम्बई हमले के बाद भारतीय और अप्रवासी भारतीयों की कविताओं पर आधारित पोस्टर, आतंक को लेकर नागरिक द्वारा अपेक्षित सतर्कता, आतंक से लड़ने में  आम आदमी की भूमिका, आतंकी हमलों के चित्र, आतंकवाद के दूरगामी परिणाम जैसे अनेक विषय शब्द और चित्र के माध्यम से दर्शाये गए हैं।    

मित्रो! 26 जनवरी 2009 को पुणे के यशवंतराव आर्ट गैलरी से आरम्भ यह यात्रा मुम्बई के रवीन्द्र नाट्य मंदिर होते हुए अब तक हजारों नागरिकों तक पहुँच चुकी है।  पिछले कुछ वर्षों से इसे सीधे महाविद्यालयीन छात्र- छात्राओं तक पहुँचाने के लिए हमने इसका एक लघु संस्करण तैयार किया है। अनेक महाविद्यालयों में इसे प्रदर्शित किया जा चुका है।

यदि आप किसी महाविद्यालय/ कार्यालय/ सोसायटी/ क्लब/ बड़े समूह के लिए इसे आयोजित करना चाहें तो आतंक के विरुद्ध  जन -जागरण के इस अभियान में आपका स्वागत है।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

: 5.04 बजे, 23.11.2019

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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