☆ पुस्तक चर्चा ☆ कथा संग्रह – प्रेमार्थ – श्री सुरेश पटवा ☆ डॉ.वन्दना मिश्रा ☆
डॉ.वन्दना मिश्रा
(शिक्षाविद, कवि, लेखक, समीक्षक)
(ई- अभिव्यक्ति ने अपने प्रबुद्ध पाठकों के लिए श्री सुरेश पटवा जी के कथा संग्रह “प्रेमार्थ “ की कुछ कहानिया साझा की थीं। इस सन्दर्भ में आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध कहानीकार, नाटककार एवं समीक्षक श्री युगेश शर्मा जी द्वारा प्रेमार्थ की प्रस्तावना 13 फ़रवरी 2021 को प्रकाशित की थी जिसे आप इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं 👉 ☆ कथा संग्रह – प्रेमार्थ – श्री सुरेश पटवा ☆ प्रस्तावना – श्री युगेश शर्मा ☆)
(गम्भीर संयत साहित्यकार डॉक्टर वंदना मिश्रा जी ने मेरे कहानी संग्रह की समीक्षा लिखी है। उनको साधुवाद सहित आज आपके समक्ष प्रस्तुत है। – श्री सुरेश पटवा)
☆ खोजी यात्रा और सम्यक समृति से रची अद्भुत कहानियाँ : प्रेमार्थ – डॉ.वन्दना मिश्रा ☆
कहानी संग्रह -प्रेमार्थ
लेखक-सुरेश पटवा
समीक्षक-डॉ.वन्दना मिश्रा
प्रकाशन- वंश पब्लिकेशन भोपाल
मूल्य-250/
प्रेमार्थ कहानी संग्रह कहन की धारा में लिखा गया संस्मरण, यात्रा वृतांत रिपोर्ताज, रेखाचित्र, आत्मकथ्यात्मक कहानी संग्रह है। संवाद और वृत्तांत इसे सायास कहानी बनाते हैं। कहानीकार पौराणिक कथाओं, प्रसंगों, ऐतिहासिक तथ्यों दार्शनिक शास्त्रों का अध्ययन करता हुआ विविध यात्राओं से साक्ष्य बटोरता पुष्ट करता सृजनरत है। अध्ययन शील होने से लेखक अपनी सूक्ष्म दृष्टि से यहाँ के इतिहास, नदी पहाड़, ताल, जंगल, जानवर, आगम-निर्गम, सबकी टोह लेता व्यापक फलक तैयार करता है।
‘प्रेमार्थ’ की कहानियाँ शीर्षक को पुष्ट करते हुए भारतीय सामाजिक जीवन मूल्यों को संजोती हैं। लेखक यात्रा करते हुए स्थान विशेष की ऐतिहासिकता, पौराणिक संदर्भो की पड़ताल करते हुए अनुभूत लौकिक तथ्यों तथा स्थानीयता से जुड़ी पौराणिक प्रेम कथाओं को लेखन में स्थान देता है। संग्रह की अधिकांश कहानियों में एक बैंक कर्मी खोजी यात्रा पर निकलता हुआ अनुसंधान कर संवादों के माध्यम से यथार्थ की भावभूमि पर पहुँचता है। कहानियों के पात्र संगी- साथी, पड़ोसी, कलाकार, समाजसेवी व जीवन से जुड़े हुए पहलू हैं। कुछेक कहानियों में कहानी की प्राणवायु लौ तनिक मद्धिम है पर खोजी यात्रा वृतांत बन कहन से बनता कहानी का आकार गढ़ता है…आरंभ से अंत तक बाँधे रहने का यह शिल्प अनूठा कहानीकार बनाता है। परिचित शब्दों में जिसे हम नवाचार कहते हैं।
हर कहानी ज्ञान की धार छोड़ती है और आप क्रमशः पढ़ते हुए उस क्षेत्र विशेष की खूबियों जानकारियों से लबरेज होते जाते हैं। लगता है आप उस स्थान के बारे में सब जान गये। सोहागपुर से जबलपुर पिपरिया मढ़ई से बैतूल के बीच आए छोटे छोटे गाँव कस्बे, क्षेत्र उनकी बानगी कला सबका बाग-सा सजा लगता है। लेखन की यह कला रेखाचित्र से भी जोड़ती पर तुरंत ही कहानी की नब्ज पकड़ जाती है।
इन कहानियों में प्रेम केन्द्रीय भाव है जैसा शीर्षक ही ‘प्रेमार्थ’ इंगित कर आकर्षित करता है। प्रेम के प्रेमार्थ भौगोलिक प्रेम है तो पर्यावरण प्रेम, अलौकिक के साथ लौकिक प्रेम कहानियों में भी रस सिक्त हैं। आम आदमी के सुख-दुःख सबकी नैसर्गिक यात्रा इन कहानियों में देखी जा सकती है।
लेखक ने यह भी स्पष्ट किया है कि बैंक कर्मी को बैंक से दो/ चार वर्षों के अन्तराल से पर्यटन के लिए तय दूरी रेल किराया /यात्रा अवकाश मिलता है। इस पर्यटन वृत्ति का सार्थक उपयोग कर श्री पटवा ने ज्ञानार्जन कर सृजन किया है। इससे उनकी खोजी दृष्टि ने मानव से जुड़ी विविध रूपों प्रवृत्तियों को समझने और उसे प्रमाणिक करने का कार्य किया है। यही कारण है कि उनकी हर एक कहानी में अनुभूति की गहराई से गंभीर यथार्थ बोध मिलता है।
इतिहास वेत्ता कहानीकार श्री सुरेश पटवा के संग्रह ‘प्रेमार्थ’ की पहली कहानी ‘अहंकार’ में बैंक से मिलने वाली यात्रा सुविधा अवकाश का उपयोग लेखक ने वर्तमान सिद्ध संस्थाओं, भक्ति, ज्ञान, योग ध्यान की व्यवहारिक जानकारी प्राप्त करने में लगाया है। इस दौरान पांडुचेरी स्थित अरविंद आश्रम में श्री आर के तलवार से परिचय हुआ। इस कहानी में श्री तलवार की महानता और विलक्षणता से परिचय कराते हुए एक कर्मयोगी की सच्चाई और ईमानदारी को जीवन मूल्यों में संजोए हुए उनके गांधीवादी व्यक्तित्व और कृतित्व को उभारा है। श्री तलवार की दिव्यता से प्रेरित अहंकार को परिभाषित करती कहानी ‘अहंकार’ में उन्हें प्रेमरस में पगे कर्त्तव्य पथी बताया है। लेखक कहता है कि अहंकार जहाँ “दूसरों से श्रेष्ठ होने का भाव है “.. (पृष्ठ15). यह भी कि “अहंकार व्यक्ति के निर्माण के लिए आवश्यक होता है।” (पृष्ठ15) अहंकार आभूषण भी है के राम के विवेक सम्मत परिमित अहंकार को दिखाया है….विनय न मानत “जलधि जड़, गये तीन दिन बीत” (पृष्ठ15)
‘गालिब का दोस्त’ दोस्ती की मिसाल कायम करती कहानी में मशहूर शायर गुलजार ने मिर्जा गालिब की वीरान हवेली को स्मारक बनाया और गालिब और उनके दोस्त बंशीधर की दोस्ती की प्रगाढ़ता का परिचय देती है। उनके शायराना अंदाज को लेखन ने कहानी में ढाला है।
‘अनिरुद्ध ऊषा’ कहानी पौराणिक पात्र श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और राजा वाणासुर की पुत्री शोणितपुर की राजकुमारी ऊषा की प्रेमकथा है।
‘कच देवयानी’ शीर्षक कहानी भी पौराणिक पात्रों को लेकर रची गयी कहानी है। बृहस्पति के पुत्र कच एवं शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी की प्रेमकथा महाभारत में वर्णित प्रसंग पर आधारित है।
‘गेंदा और गुलाबो’ सुहागपुर के माटी कलाकारों की आजीविका की व्यथा को समेटे अन्तर प्रेमकथा को भी बिलोया है। ‘शब्बो राजा’ एक रसभरी प्रेम कहानी है जिस प्रेम का दुखद अंत होता है यहाँ मजहब से ज्यादा प्रेम की ईर्ष्या है। षडयंत्र पूर्वक लौकिक प्रेम का अमानवीय अंत है। सुहागपुर की सुराही दूर-दूर तक प्रसिद्धि पा चुकी है ।उन कलाकारों के त्रासद पक्ष को भी श्री पटवा के कहानीकार ने सहानुभूति पूर्वक उकेरा है।
श्री सुरेश पटवा सुहागपुर की माटी की सुगंध वहाँ का इतिहास और पौराणिक मान्यता में स्थान भी सप्रमाण प्रस्तुत करना भी नहीं भूलते। ‘सोहनी और मोहनी’ राजतंत्र में राजाओं की प्रेमाशक्ति नर्तकियों से भी हो जाती है। ‘एक थी कमला’ कमला जैसी स्त्रियों के त्रासद प्रसंगों का बयान करती कथा है।
‘अंग्रेज बाबा देशी बाबा’ प्रसिद्ध समाजसेवी बाबा आमटे ने कुष्ठ रोगियों की सेवा को जीवन अर्पित किया। यह समाज सेवा को प्रेरित करती कथा है। उन्होंने अपना सब कुछ छोड़कर कुष्ठ रोगियों की सेवा में लगा दिया.अब उनका पूरा परिवार भी इसी कार्य को समर्पित हैं। इस तथ्य को उकेरते हुए वे कहानी को प्रेरक बनाते हैं। ‘गढ़ चिरौली की रुपा’ ‘बीमार ए दिल’ एक तरह से आत्मकथ्य है। ‘सभ्य जंगल की सैर ‘भोपाल से पचमढ़ी के रास्ते में देनवा नदी का नजारा ‘मढ़ई’ के अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन रिपोर्ताज़ शैली में किया गया है। यहाँ के नदी, पहाड़, पशु -पक्षी,कीट पंतगों, जीव जन्तुओं, पेड़ पौधों, फलों और साग सब्जियों तक का वर्णन कर एक कुशल गाइड का परिचय दिया है।
प्रेमार्थ…..
‘भर्तृहरि वैराग्य’ कुल मिलाकर काफी श्रम और शोध सृजन की अद्भुत परिणति यह किताब ‘प्रेमार्थ’ है।संग्रह की प्रत्येक कहानी ऐतिहासिक प्रसंगों, स्थलों नदियों पहाड़ों जानवरों विशिष्ट प्रसंगों कला रूपों का परिचय कराया है। इन कहानियों में श्री पटवा के सखा साथी सहकर्मी प्रेरक पुरुष, नैसर्गिक सौन्दर्य स्थान पाता है। मध्यप्रदेश के विशिष्ट स्थल होशंगाबाद, सोहागपुर, पचमढ़ी की इतिहास और पौराणिक मान्यताओं को आज तक सहेजा है।
कहानी कला का यह बाजीगर एक साथ संस्मरणात्मक गतिविधियों को समाहित कर रिपोर्ताज (साहित्यिकता, पत्रकारिता) सा प्रतीत होता कहन में बाँध लेता है। यहाँ कहानी अपनी सीमाएँ लाँघती आत्मकथ्य, संस्मरण तक जा पहुँचती है। हम कह सकते है खोजी यात्रा और सम्यक स्मृति से रची अद्भुत कहानियाँ हैं, ‘प्रेमार्थ’ की कहानियाँ। कहानियों की भाषा शिष्ट है जो अपनी बात प्रेषण में सहायक है। संवाद और कथन गति देते हैं इस तरह भाषा भावों का अनुगमन करती है। पात्रों ने अनुसार वाक्य विन्यास आकार लेता है। कुल मिलाकर एक बहुत अच्छे संग्रह के लिए बधाई। एक सलाह आप यात्रा संस्मरण जरुर लिखिए। श्री पटवा की लेखनी इसी तरह चलती रहे।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. वन्दना मिश्रा
शिक्षाविद, कवि, लेखक, समीक्षक
भोपाल, मध्यप्रदेश।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈