(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है श्री अनिल माधव दवेजी की पुस्तक “शिवाजी व सुराज” की समीक्षा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 110 ☆
☆ “शिवाजी व सुराज” … श्री अनिल माधव दवे ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
पुस्तक – शिवाजी व सुराज
लेखक. अनिल माधव दवे, दिल्ली
पृष्ठ संख्या 224
प्रभात प्रकाशन, दिल्ली
भारत के इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज एक सर्वगुण संपन्न सुयोग्य शासक के रूप में प्रतिष्ठित है। उनका चरित्र वीरता , राज्य व्यवस्था, राजनैतीक चातुरी, परिस्थितियों की समझ, समस्याओं के समाधान निकालने की सूझबूझ और शांति की चिन्ता के गुण उन्हे युग युगों तक एक आदर्श राजा के रूप में याद करने को विवश करते रहेंगे। वे आदर्श राजा थे और विवेकशील निर्णय लेकर उसे जनहित में कार्यान्वित करने में अद्वितीय सफल शासक थे। भारत 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से मुक्त हो गया पर अभी तक सुराज स्थापित नहीं हो सका है। मार्ग में नित नई कठिनाइयाॅं आ पड़ती हैं। लेखक एक विवेकवान व्यक्ति है। अतः आज की परिस्थितियों में सुधार कैसे हो, सुराज की स्थापना कैसे की जाय इसकी चिंता है और इसी भावना को व्यक्त करने के लिये उन्होंने इस पुस्तक की रचना की है । जिसमें शिवाजी के राज्य काल की व्यवस्था उनके सफल निर्णयों की योग्यता, उनके जन हित कारी दृष्टिकोण से संकलित सभी कार्यो का प्रमाणिक प्रस्तुतीकरण कर (शिवाजी के राज्य व्यवस्था के विभिन्न दस्तावेजों की प्रति देते हुये) एक सही रीति नीति के अपनाये जाने का संकेत आज के शासन करता के लिये उपस्थित किया है। आज शिवाजी महाराज की रीति नीति अनुकरणीय है यही लेखक के द्वारा संकेत दिया गया है।
शिवाजी के बचपन से उनके राज्य के सुयोग्य शासक होने तक के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख मार्ग की समस्याओं और उनके सामयिक सफल निर्णयों का सहज उल्लेख कर लेखक ने शासन को सुखद और सफल रीति से संचालन को शिवाजी से सीखने का मनोभाव है। प्रतिकूलतायें व्यक्ति को तराषती हैं। गल्तियाॅं उपलब्धियाॅं और अवसर से हर रोज एक नया पाठ पढ़ाते है। समय के साथ चलते-चलते यही व्यक्तित्व एक आकार ग्रहण कर लेता है।
आज भारतीय राजनीति के विभिन्न पदों पर पहुॅंचने के लिये पाखण्ड प्रधान गुण बन गया है। छद्म विनम्रता का अभिनय, संस्था संगठन व सरकारों में चयन और निर्णयों के कारण बनने लगे तब हर शासक के लिये यह समय सम्हल कर चलने और स्वयं को सार्वजनिक जीवन में जीवन बनाये रखने के लिये पूर्व नायकों से सीख लेकर सत्य व धर्म की स्थापना कर सुव्यवस्थित सरकार चलाने की जरूरत का है। उन सबके लिये जो आज शासन में किसी भी पद पर है, शिवाजी के स्वराज संचालन के सभी गुण दिशा सूचक यंत्र बनें तथा उनके सफलता मंत्र भी। इस आस्था और विश्वास के साथ यह कृति सत्य के साधकों को सादर प्रस्तुत है।
व्यक्तिगत गुण – निर्भीकता, शीघ्र निर्णय क्षमता, परिस्थिति की सही समझ और दूरदर्शिता, सही समय पर निर्णायक चोट करने की योग्यता, जन साधारण के प्रति स्नेह भाव, चारित्रिक पवित्रता, धार्मिकता, आत्म विश्वास, स्त्री जाति के लिए सम्मान की भावना, ईमानदारी, देश प्रेम, सबके साथ सद्भाव व प्रामाणिक व्यवहार, शासन में सदाचार, कुशल शासन व्यवस्था, कृषि, व्यापार की प्रगति की नीति, न्याय की प्रखर व्यवस्था, जन संपर्क की सजगता कर्मचारियों के मन में विश्वास जगाना उनका उचित सम्मान, दुष्मन के प्रति कठोरता, विज्ञान की प्रगति, आवागमन के साधनों को बढ़ाना। विद्वत जनों की सुरक्षा तथा सम्मान योग्य मंत्रि मण्डल का गठन सेना का सही संगठन और प्रशिक्षण, कूटनीति, योजाना संचालन, भ्रष्टाचार पर रोक, विकास के उपक्रम व सुराज के संवर्धन की हार्दिक चाह और कार्य शिवाजी के मौलिक गुण हैं जो सबके लिए अनुकरणीय हैं।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈