हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 110 –“शिवाजी व सुराज” … श्री अनिल माधव दवे ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री अनिल माधव दवेजी  की पुस्तक “शिवाजी व सुराज” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 110 ☆

☆ “शिवाजी व सुराज” … श्री अनिल माधव दवे ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆ 

पुस्तक – शिवाजी व सुराज

लेखक. अनिल माधव दवे, दिल्ली

पृष्ठ संख्या 224

प्रभात प्रकाशन, दिल्ली

भारत के इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज एक सर्वगुण संपन्न सुयोग्य शासक के रूप में प्रतिष्ठित है। उनका चरित्र वीरता , राज्य व्यवस्था, राजनैतीक चातुरी, परिस्थितियों की समझ, समस्याओं के समाधान निकालने की सूझबूझ और शांति की चिन्ता के गुण उन्हे युग युगों तक एक आदर्श राजा  के रूप में याद करने को विवश करते रहेंगे। वे आदर्श राजा थे और  विवेकशील  निर्णय लेकर उसे जनहित में कार्यान्वित करने में अद्वितीय सफल शासक थे। भारत 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से मुक्त हो  गया पर अभी तक सुराज स्थापित नहीं हो सका है। मार्ग में नित नई कठिनाइयाॅं आ पड़ती हैं। लेखक एक विवेकवान व्यक्ति है। अतः आज की परिस्थितियों में सुधार कैसे हो, सुराज की स्थापना कैसे की जाय इसकी चिंता है और इसी भावना को व्यक्त करने के लिये उन्होंने इस पुस्तक की रचना की है । जिसमें शिवाजी के राज्य काल की व्यवस्था उनके सफल निर्णयों की योग्यता, उनके जन हित कारी दृष्टिकोण से संकलित सभी कार्यो का प्रमाणिक प्रस्तुतीकरण कर (शिवाजी के राज्य व्यवस्था के विभिन्न दस्तावेजों की प्रति देते हुये) एक सही रीति नीति के अपनाये जाने का संकेत आज के शासन करता के लिये उपस्थित किया है। आज शिवाजी महाराज की रीति नीति अनुकरणीय है यही लेखक के द्वारा संकेत दिया गया है।

शिवाजी के बचपन से उनके राज्य के सुयोग्य शासक होने तक के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख मार्ग की समस्याओं और उनके सामयिक सफल निर्णयों का सहज उल्लेख कर लेखक ने शासन को सुखद और सफल रीति से संचालन को शिवाजी से सीखने का मनोभाव है। प्रतिकूलतायें व्यक्ति को तराषती हैं। गल्तियाॅं उपलब्धियाॅं और अवसर से हर रोज एक नया पाठ पढ़ाते है। समय के साथ चलते-चलते यही व्यक्तित्व एक आकार ग्रहण कर लेता है। 

आज  भारतीय राजनीति के विभिन्न पदों पर पहुॅंचने के लिये पाखण्ड प्रधान गुण बन गया है। छद्म विनम्रता का अभिनय, संस्था संगठन व सरकारों में चयन और निर्णयों के कारण बनने लगे तब हर शासक के लिये यह समय सम्हल कर चलने और स्वयं को सार्वजनिक जीवन में जीवन बनाये रखने के लिये पूर्व नायकों से सीख लेकर सत्य व धर्म की स्थापना कर सुव्यवस्थित सरकार  चलाने की जरूरत का है। उन सबके लिये जो आज शासन में किसी भी पद पर है, शिवाजी के स्वराज संचालन के सभी गुण दिशा सूचक यंत्र बनें तथा उनके सफलता मंत्र भी। इस आस्था और विश्वास के साथ यह कृति सत्य के साधकों को सादर प्रस्तुत है।

व्यक्तिगत गुण – निर्भीकता, शीघ्र निर्णय क्षमता, परिस्थिति की सही समझ और दूरदर्शिता, सही समय पर निर्णायक चोट करने की योग्यता, जन साधारण के प्रति स्नेह भाव, चारित्रिक पवित्रता, धार्मिकता, आत्म विश्वास, स्त्री जाति के लिए सम्मान की भावना, ईमानदारी, देश प्रेम, सबके साथ सद्भाव व प्रामाणिक व्यवहार, शासन में सदाचार, कुशल शासन व्यवस्था, कृषि, व्यापार की प्रगति की नीति, न्याय की प्रखर व्यवस्था, जन संपर्क की सजगता कर्मचारियों के मन में विश्वास जगाना उनका उचित सम्मान, दुष्मन के प्रति कठोरता, विज्ञान की प्रगति, आवागमन के साधनों को बढ़ाना। विद्वत जनों की सुरक्षा तथा सम्मान योग्य मंत्रि मण्डल का गठन सेना का सही संगठन और प्रशिक्षण, कूटनीति, योजाना संचालन, भ्रष्टाचार पर रोक,  विकास के उपक्रम व सुराज के संवर्धन की हार्दिक चाह और कार्य शिवाजी के मौलिक गुण हैं जो सबके लिए अनुकरणीय हैं।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 109 –“कुछ नीति कुछ राजनीति” … स्व.भवानी प्रसाद मिश्र ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है स्व.भवानी प्रसाद मिश्र जी  की पुस्तक “कुछ नीति कुछ राजनीति” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 109 ☆

☆ “कुछ नीति कुछ राजनीति” … स्व.भवानी प्रसाद मिश्र ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  

कुछ नीति कुछ राजनीति

लेखक स्व.भवानी प्रसाद मिश्र

प्रति श्रुति प्रकाशन कोलकाता

मूल्य  280/- ,  पृष्ठ 128

भवानी प्रसाद मिश्र के 17 काव्य संग्रह प्रकाशित हुए थे। उनकी  पहचान एक कवि के रूप में ही हिंदी जगत में की जाती है।

वे वर्धा के महिला आश्रम में शिक्षक के रूप में कार्य कर चुके थे और उन्हें गांधी जी का सानिध्य मिला था। वह बहुत अच्छे अध्येता भी थे.. उन्होंने फ्रेडरिक केनियान, जेम्स कजंस, पी सोरोकिन जैसे अंग्रेज विचारकों की संस्कृति समाज को लेकर रची गई किताबें पढ़ी और  भारतीय परिदृश्य में गांधीवाद के विचारों के साथ उनकी विवेचना भी की। अनेक सभ्यताओं जैसे बेबिलोनिया, मेंसेपोटमिया की संस्कृति समय केे साथ मिट गई। कितु, भारत की संस्कृति अनेकों बदलाव के बीच अपनी मूल प्रवृत्ति को संभाले रही और विकसित होती रही। भारतीय दर्शन स्नेह, करुणा, विश्व मैत्री का रहा है जबकि पाश्चात्य दर्शन सुख सुविधाओं का रहा है ..  समाजवाद के दर्शन ने वर्ग विहीन समाज की कल्पना  की व इसके लिए खोजों के आधार पर अपने विचारों को दूसरे पर प्रभुत्व से स्थापित करने के लिए विनाशकारी शस्त्रों का निर्माण किया।

दुनिया के देशों को बाजार बनाया गया। संसार में अपने तथाकथित धर्म इस्लाम या ईसाई धर्म को एकमात्र विचार की तरफ फैलाने के प्रयास हो रहे हैं।  हम आज सारे संसार में सब कुछ भूलकर सुविधाएं जुटाने और उन्हें अपने लिए छीनने की जो दौड़ देख रहे हैं वह इंद्रीय प्रधान पाश्चात्य मूल्यों की देन है। आज की हमारी संस्कृति का मुख्य स्वर पारलौकिक, धार्मिक, नैतिक और सर्व हितकारी ना होकर इह लौकिक कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक और स्वार्थ परक हो गया है।  कुछ नीति कुछ राजनीति पुस्तक में संग्रहित लेख इस विडंबना का निदान और उपचार प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते हैं। इन लेखों को पढ़कर लगता है कि भवानी दादा एक बहुत अच्छे विचारक और दार्शनिक भी थे।

गांधी, टालस्टाय, अहिंसा, सर्वोदय, लोकतंत्र, की विशद एवं सुन्दर  व्याख्या किताब में पढ़ने को मिली।

गाँधी की परिकल्पना का भारत उस से बिल्कुल भिन्न था जिस गांधी का उपयोग आज भारत की राजनीति मे किया जा रहा है। गांधी को समझने के लिए यह किताब पढ़ने की जरुरत है।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 108 –“कालः क्रीडति” … श्री श्याम सुंदर दुबे ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री श्याम सुंदर दुबे जी  की पुस्तक “कालः क्रीडति” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 108 ☆

☆ “कालः क्रीडति” … श्री श्याम सुंदर दुबे ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  

किताब ..कालः क्रीडति 

लेखक …श्याम सुंदर दुबे

यश पब्लिकेशनस

मूल्य ४९५ रु

हिन्दी में ललित निबंध लेखन बहुत अधिक नही है.श्याम सुंदर दुबे अग्रगण्य, वस्तुपरक ललित लेखन हेतु चर्चित हैं. उनके निबंधो में प्रवाह है, साथ ही भारतीय संस्कृति की विशद जानकारी, तथ्य, व संवेदन है. प्रस्तुत पुस्तक में कुल ३३ लेख हैं. पहला ही लेख ” एक प्रार्थना आकाश के लिये ” किसी एक कविता पर निबंध भी लिखा जा सकता है यह मैं इस लेख को पढ़कर ही समझ पाया, महाप्राण निराला की वीणा वादिनी वर दे, पर केंद्रित यह निबंध इस कविता की समीक्षा, विवेचना, व्याख्या विस्तार बहुत कुछ है. अन्य लेखो में पहला दिन मेरे आषाढ़ का,, सूखती नदी का शोक गीत, जल को मुक्त करो, तीर्थ भाव की खोज, सूखता हुआ भीतर का निर्झर, नीम स्तवन, सूखी डाल की वासंती संभावना सारे ही फुरसत में बड़े मनोयोग से पढ़ने समझने और आनंद लेने वाले निबंध हैं. प्रत्येक निबंध चमत्कृत करता है, अकेला पड़ता आदमी, इंद्र स्मरण और रंगो की माया, फूल ने वापस बुलाया है, कालः क्रीडति, फागुन की एक साम आदि निबंध स्वयं किसी लंबी कविता से कम नही हैं. हर शब्द चुन चुन कर सजाया गया है, इसलिये वह सम्यक प्रभाव पेदा करता है. किताब को १० में से ९ अंक देना ही पड़गा. जरूर पढ़िये, खरीदकर या पुस्तकालय से लेकर.

 

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा #113 – “भारतीय इतिहास दृष्टि और मार्क्सवादी लेखन” – श्री शंकर शरण ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री शंकर शरण जी की पुस्तक “भारतीय इतिहास दृष्टि और मार्क्सवादी लेखन”  की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 113 ☆

☆ “भारतीय इतिहास दृष्टि और मार्क्सवादी लेखन” – श्री शंकर शरण ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  

पुस्तक.. भारतीय इतिहास दृष्टि और मार्क्सवादी लेखन

लेखक.. शंकर शरण

प्रकाशक.. कृति कृति प्रकाशन कोलकाता

मूल्य 560 रु

पृष्ठ..224

भारतीय संस्कृति में  आत्म प्रदर्शन को बहुत अच्छा नहीं माना जाता था  यही कारण है कि  कालिदास जैसे महान लेखकों की जीवनी तक सुलभ नहीं है. इसलिये तटस्थ वास्तविक भारतीय इतिहास अलिखित रहा.अतीत पर गर्व करना मनुष्य की आदत रही है जिसका शासन रहा उसके महत्व को अधिक प्रदर्शित करते हुए तोड़फोड़ कर इतिहास लिखे गए.

एनसीईआरटी नई दिल्ली के प्रोफेसर शंकर शरण ने बहुत तार्किक और संदर्भ सहित भारतीय इतिहास दृष्टि, कार्ल की भारत दृष्टि, इतिहास लेखन में राजनीति, धर्म और सांप्रदायिकता, दोहरे मानदंडों का घालमेल, कवि निराला और रामविलास शर्मा,भूमिका,तथा

उपसंहार  इन खंडो में यह बहुत महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। आजादी के बाद से देश के एकेडमिक संस्थाओं में मार्क्सवादी विचारधारा के समर्थकों का प्रभाव रहा जिसके चलते भारतीय इतिहास का जो लेखन किया गया उसमें मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव रहा.   इतिहास वास्तविकता से भिन्न रूप में वर्णित हुआ. देश की मिली जुली संस्कृति  का श्रेय इन इतिहासकारों ने इस्लाम को दिया जबकि वास्तविकता यह है कि इस्लामी शासकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी की हिंदू संस्कृति का विनाश कर केवल इस्लाम को ही एक धर्म के रूप में स्थापित किया जाए.दरअसल यह  हिंदू संस्कृति एवं धर्म की विशेषता ही है की इन नितांत दुष्कर तथा कठिन परिस्थितियों में भी हिंदू संस्कृति जीवित बनी रही. इसी तरह युद्धों के वर्णन, अंग्रेज तथा मुगल शासको की राज व्यवस्था के इतिहास लेखन में भी हिंदूवाद की उपेक्षा की गई है, जिसकी ओर तार्किक तथ्यों के आधार पर इस पुस्तक में सविस्तार वर्णन है. पुस्तक पठनीय है व सन्दर्भों के लिये महत्वपूर्ण है.

लोगो को इतिहासकारों द्वारा यह बताया ही नही गया की निराला ने रामायण पर 20 खंडों में टीका लिखी है महाराणा प्रताप भी इस भक्त प्रहलाद भक्त ध्रुव पर पूरे पूरे उपन्यास लिखें इनके अलावा निराला के विस्तृत निबंध ओं लेखों के शीर्षक ही देख ले तो तुलसीकृत रामायण में अद्वैत तत्व विज्ञान और गोस्वामी तुलसीदास श्री देव राम कृष्ण परमहंस युग अवतार भगवान श्री राम कृष्ण भारत में श्री राम कृष्ण अवतार आदि लेख उन्हीं के हैं किंतु उन्हें इतिहासकारों ने मार्क्सवादी विचारधारा का कवि ही निरूपित किया है इस तरह के शुद्ध पूर्ण तथ्य इस पुस्तक में उजागर किए गए हैं.

टिप्पणी… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ ‘२१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्यप्रदेश’’ – संपादक : आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆ समीक्षक – प्रो. (डॉ.) साधना वर्मा ☆

☆ ‘२१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्यप्रदेश’’ – संपादक : आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆ समीक्षक – प्रो. (डॉ.) साधना वर्मा ☆

कृति विवरण : २१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्य प्रदेश, संपादक आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’, प्रथम संस्करण २०२२,

आकार २१.५ से.मी.x १४ से.मी., आवरण बहुरंगी लेमिनेटेड पेपरबैक, पृष्ठ संख्या ७०, मूल्य १५०/-, प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स नई दिल्ली।

२१ श्रेष्ठ बुंदेली लोक कथाएँ मध्यप्रदेश : लोक में नैतिकता अब भी हैं शेष – प्रो. (डॉ.) साधना वर्मा, सेवानिवृत्त प्राध्यापक

लोक कथाएँ ग्राम्यांचलों में पीढ़ी दर पीढ़ी कही-सुनी जाती रहीं ऐसी कहानियाँ हैं जिनमें लोक जीवन, लोक मूल्यों और लोक संस्कृति की झलक अंतर्निहित होती है। ये कहानियाँ श्रुतियों की तरह मौखिक रूप से कही जाते समय हर बार अपना रूप बदल लेती हैं। कहानी कहते समय हर वक्ता अपने लिए सहज शब्द व स्वाभाविक भाषा शैली का प्रयोग करता है। इस कारण इनका कोई एक  स्थिर रूप नहीं होता। इस पुस्तक में हिंदी के वरिष्ठ साहित्य साधक आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ने देश के केंद्र में स्थित प्रांत मध्य प्रदेश की एक प्रमुख लोकभाषा बुंदेली में कही-सुनी जाती २१ लोक कथाएँ प्रस्तुत की हैं। पुस्तकारंभ में प्रकाशक नरेंद्र कुमार वर्मा द्वारा भारत की स्वतंत्रता के ७५ वे वर्ष में देश के सभी २८ राज्यों और ९ केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित नारी मन, बाल मन, युवा मन और लोक मन की कहानियों के संग्रह प्रकाशित करने की योजना की जानकारी दी है।

पुरोवाक के अन्तर्गत सलिल जी ने पाठकों की जानकारी के लिये लोक कथा के उद्गम, प्रकार, बुंदेली भाषा के उद्भव तथा प्रसार क्षेत्र की लोकोपयोगी जानकारी दी है। लोक कथाओं को चिरजीवी बनाने के लिए सार्थक सुझावों ने संग्रह को समृद्ध किया है। लोक कथा ”जैसी करनी वैसी भरनी” में कर्म और कर्म फल की व्याख्या है। लोक में जो ‘बोओगे वो काटोगे’ जैसे लोकोक्तियाँ चिरकाल से प्रचलित रही हैं। ‘भोग नहीं भाव’ में राजा सौदास तथा चित्रगुप्त जी की प्रसिद्ध कथा वर्णित है जिसका मूल पदम् पुराण में है। यहाँ कर्म में अन्तर्निहित भावना का महत्व प्रतिपादित किया गया है। लोक कथा ‘अतिथि देव’  में गणेश जन्म की कथा वर्णित है. साथ ही एक उपकथा भी है जिसमें अतिथि सत्कार का महत्व बताया गया है। ‘अतिथि देवो भव’ लोक व्यवहार में प्रचलित है ही। सच्चे योगी की पहचान संबंधी उत्सुकता को शांत करने के लिए एक राज द्वारा किए गए प्रयास और मिली सीख पर केंद्रित है लोक कथा ‘कौन श्रेष्ठ’। ‘दूधो नहाओ, पूतो फलो’ का आशीर्वाद नव वधुओं के घर के बड़े देते रहे हैं। छठ मैया का पूजन बुंदेलखंड में बहुत लोक मान्यता रखता है। यह लोक कथा छठ मैया पर ही केंद्रित है।

लोक कथा ‘जंगल में मंगल’ में श्रम की प्रतिष्ठा और राज्य भक्ति (देश भक्ति) के साथ-साथ वृक्षों की रक्षा का संदेश समाहित है। राजा हिमालय की राजकुमारी पार्वती द्वारा वनवासी तपस्वी शिव से विवाह करने के संकल्प और तप पर केंद्रित है लोक कथा ‘सच्ची लगन’। यह लोक कथा हरतालिका लोक पर्व से जुडी हुई है। मंगला गौरी व्रत कथा में प्रत्युन्नमतित्व तथा प्रयास का महत्व अंतर्निहित है। यह संदेश ‘कोशिश से दुःख दूर’ शीर्षक लोक कथा से मिलता है। आम जनों को अपने अभावों का सामना कर, अपने उज्जवल भविष्य के लिए मिल-जुलकर प्रयास करने होते हैं। यह प्रेरक संदेश लिए है लोककथा ‘संतोषी हरदम सुखी’। ‘पजन के लड्डू’ शीर्षक लघुकथा में सौतिया डाह तथा सच की जीत वर्णित है। किसी को परखे बिना उस पर शंका या विश्वास न करने की सीख लोक कथा ‘सयाने की सीख’ में निहित है।

भगवान अपने सच्चे भक्त की चिंता स्वयं ही करते हैं, दुनिया को दिखने के लिए की जाती पिजा से प्रसन्न नाहने होते। इस सनातन लोक मान्यता को प्रतिपादित करती है लोक कथा ‘भगत के बस में हैं भगवान’। लोक मान्यता है की पुण्य सलिला नर्मदा शिव पुत्री हैं। ‘सुहाग रस’ नामित लोक कथा में भक्ति-भाव का महत्व बताते हुए इस लोक मान्यता के साथ लोक पर्व गणगौर का महत्व है। मध्य प्रदेश के मालवांचल के प्रतापी नरेश विक्रमादित्य से जुडी कहानी है ‘मान न जाए’ जबकि ‘यहाँ न कोई किसी का’ कहानी मालवा के ही अन्य प्रतापी नरेश राजा भोज से संबंधित है। महाभारत के अन्य पर्व में वर्णित किन्तु लोक में बहु प्रचलित सावित्री-सत्यवान प्रसंग को लेकर लिखी गयी है ‘काह न अबला करि सकै’। मनुष्य को किसी की हानि नहीं करनी चाहिए और समय पर छोटे से छोटा प्राणी भी काम आ सकता है। यह कथ्य है ‘कर भला होगा भला’ लोक कथा का। गोंडवाना के पराक्रमी गोंड राजा संग्रामशाह द्वारा षडयंत्रकारी पाखंडी साधु को दंडित करने पर केंद्रित है लोक कथा ‘जैसी करनी वैसी भरनी’। ‘जो बोया सो काटो’ में वर्णित कहानी पशु-पक्षियों की दाना-पानी आदि सुविधाओं का ध्यान देने की सीख देती है। ताकतवर को अपनी ताकत का उपयोह निर्बलों की सहायता करने के लिए करना चाहिए तथा कंबलशाली भी मिल-जुलकर अधिक बलशाली को हरा सकते हैं यह सबक कहानी ‘अकल बड़ी या भैंस’ में  बताया गया है। संकलन की आखिरी कहानी ‘कर भला होगा भला’ में बुंदेलखंड में अति लोकप्रिय नर्मदा-सोन-जुहिला नदियों की प्रेम कथा है।  यह कहानी प्रेम और वासना के अंतर को इंगित करते हुए त्याग और लोक हित की महत्ता बताती है।

इस संकलन की कहानियाँ मध्य प्रदेश के विविध अंचलों में लोकप्रिय होने के साथ लोकोपयोगी तथा संदेशवाही भी हैं। कहानियों में सलिल जी ने अपनी और से कथा-प्रवाह, रोचकता, सन्देशपरकता, सहज बोधगम्यता तथा टटकेपन के पाँच तत्वों को इस तरह मिलाया है कि एक बार पढ़ना आरंभ करने पर बीच में छोड़ते नहीं बनता। कहानियों का शिल्प तथा संक्षिप्तता पाठक को बाँधता है। लोक कथाओं के शीर्षक कथानक से जुड़े हुए और मुहावरों पर आधृत है। इस संकलन को माध्यमिक कक्षाओं में पाठ्य पुस्तक के रूप होना चाहिए ताकि बच्चे अपने अतीत, परिवेश, लोक मान्यताओं और पर्यावरण से परिचित हो सकेंगे। लोक कथाओं में अंतर्नित संदेश कहानी में इस तरह गूंथे गए हैं कि वे बोझिल नहीं लगते। सलिल जी हिंदी गद्य-पद्य की लगभग सभी विधाओं में लगभग ४ दशकों से निरंतर सृजनरत आचार्य संजीव ‘सलिल’ ने लोक कथाओं का केवल संचयन नहीं किया है।  उन्होंने इनका पुनर्लेखन इस तरह किया है कि ये उनकी अपनी कहानियाँ  बन गयी हैं। संकलन में पाठ्यशुद्धि (प्रूफरीडिंग) पर कुछ और सजगता होना चाहिए। मुद्रण और कागज़ अच्छा है। आवरण पर ग्वालियर किले के मान मंदिर की आकर्षक छवि है। लोक कथाओं के साथ बुंदेलखं के वन्यांचलों के अप्रतिम सौंदर्य का चित्र आवरण के लिए अधिक उपयुक्त होता। सारत:, यह संकलन हिंदी भाषी क्षेत्र के हर विद्यालय के पुस्तकालय में होना चाहिए। लेखक और प्रकाशक इस सारस्वत अनुष्ठान हेतु साधुवाद के पात्र हैं।

प्रो. (डॉ.) साधना वर्मा, सेवानिवृत्त प्राध्यापक

संपर्क : २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “बोधगम्य, प्रबुद्ध – सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध” – श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(भारतीय नव वर्ष के अवसर पर दिनांक 2 अप्रैल को श्रीमती वीनु जमुआर द्वारा लिखित पुस्तक ‘सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध’ का ऑनलाइन लोकार्पण हुआ। यह कार्यक्रम क्षितिज प्रकाशन और इन्फोटेनमेंट के तत्वाधान में आयोजित किया गया था।)

? पुस्तक चर्चा ☆ “बोधगम्य, प्रबुद्ध – सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध” – श्री संजय भारद्वाज ☆ ??

 

जिस तरह बीज में वृक्ष होने की संभावना होती है, उसी प्रकार मनुष्य की दृष्टि में सृष्टि का बीज होता है। अनेक बार बीज को अंकुरण के लिए अनुकूल स्थितियों की दीर्घ अवधि तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। लेखिका वीनु जमुआर की इस पुस्तक के संदर्भ में भी यही कहा जा सकता है। युवावस्था में पर्यटन की दृष्टि से बोधगया में बोधिवृक्ष के तले खड़े होकर नववधू लेखिका की दृष्टि में जो समाया, लगभग साढ़े पाँच दशक बाद, वह शब्दसृष्टि के रूप में काग़ज़ पर आया। बोधगम्य, प्रबुद्ध शब्दसृष्टि का नामकरण हुआ, ‘सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध।’

श्रीमती वीनु जमुआर

 

‘सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध’, का बड़ा भाग बुद्ध की जीवनयात्रा का कथा शैली में वर्णन करता है। उत्तरार्द्ध में जातक कथाओं, ऐतिहासिक तथ्यों, बौद्ध मठों की जानकारी, बुद्ध के विचारों का संकलन भी दिया गया है। इस आधार पर इसे मिश्र विधा का सृजन कहा जा सकता है। तथ्यात्मक जानकारी के साथ अनुभूत बुद्ध को पाठकों तक पहुँचाने की अकुलाहट इसमें प्रमुखता से व्यक्त हुई है। पुस्तक की भूमिका में लेखिका ने इस बात को कुछ यूँ अभिव्यक्त भी किया है- ‘सत्य और शांति के अटूट रिश्ते का महात्म्य हम तभी समझ पाते हैं जब आंतरिक शांति की जिजीविषा हृदय को कचोटने लगती है।’ विचारों की साधना से यह कचोट, जटिलता से सरलता की ओर चल पड़ती है। लेखिका के ही शब्दों में-‘विचारों को साध लो तो जीवन सरल हो जाता है।’ पग पग पर पगता अनुभव एक समृद्ध पिटारी भरता जाता है। बकौल लेखिका, ‘सत्य की सर्वदा जीत होती है, इस बात की पुष्टि अनुभवों की पिटारी करती है।’

जैसाकि उल्लेख किया गया है, कथासूत्र के साथ सम्बंधित स्थान, काल, घटना विशेष के इतिहास की यथासंभव जानकारी और पुरातत्व अभिलेखों का उल्लेख भी पुस्तक में हुआ है। उदाहरण के लिए लोकमान्यता में ‘पिप्राहवा’ को कपिलवस्तु मानना पर पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा ‘तौलिहवा’ को कपिलवस्तु के रूप में मान्यता देने का उल्लेख है। बुद्ध के जन्म स्थान लुम्बिनी का वर्णन करते हुए चीनी यात्रियों फाहियान तथा ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत का उल्लेख किया गया है। इस संदर्भ में सम्राट अशोक द्वारा ईसा पूर्व वर्ष 249 में स्थापित बलवा पत्थर के स्तंभ पर प्राकृत भाषा में बुद्ध का जन्म लिखा होने की जानकारी भी है। इस तरह की जानकारी किंवदंती, लोक-कथा, सत्य को तर्क, तथ्य, इतिहास और पुरालेख के प्रमाण देकर पुष्ट करती है। यही इस पुस्तक को विशिष्टता भी प्रदान करती है।

बुढ़ापा, रोग और मृत्यु के पार जाने का विचार बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण का आधार बना। एक संन्यासी के संदर्भ में सारथी चन्ना द्वारा कहा गया वाक्य- ‘इसने जग से नाता तोड़ ईश्वर से नाता जोड़ लिया है’, उनके लिए नये मार्ग का आलोक सिद्ध हुआ। तथापि नया नाता जोड़ने की प्रक्रिया में यशोधरा से नाता तोड़ने और स्त्री के मान को पहुँची ठेस तथा पीड़ा को भी लेखिका ने विस्मृत नहीं किया है। पिता राजा शुद्धोदन के आग्रह पर अपने गृह नगर कपिलवस्तु पहुँचे संन्यासी बुद्ध से गृहस्थ जीवन में पत्नी रही यशोधरा ने मिलने आने से स्पष्ट मना कर दिया। यशोधरा का दो टूक उत्तर है, “मैंने उन्हें नहीं त्यागा था, वे त्याग गए थे हमें।”

इतिहास को तटस्थ दृष्टिकोण से देखना वांछनीय होता है। इससे तात्कालिक सामाजिक मूल्यों के अध्ययन का अवसर मिलता है। जटाधारी साधुओं के प्रमुख पंडित काश्यप द्वारा गौतम बुद्ध को रात्रि निवास के लिए आश्रम में स्थान देना, ‘मतभेद हों पर मनभेद न हों’ की तत्कालीन सुसंगत सामाजिक सहिष्णुता का प्रतीक है। पुस्तक इस सहिष्णुता को अधोरेखित करती है।

भारतीय दर्शन में सम्यकता की जड़ें गहरी हैं। इसकी पुष्टि बुद्ध द्वारा अपने पिता राजा शुद्धोदन को किये उपदेश से होती है। बुद्ध ने पिता से कहा, ” महाराज जितना स्नेह और प्रेम अपने पुत्र से करते हैं, वही स्नेह और प्रेम राज्य के प्रत्येक व्यक्ति से रखेंगे तो सभी उनके पुत्रवत हो, वैसा ही प्रेम महाराज से करने लगेंगे।” राजवंश के दिनों में किये गए इस उपदेश में काफी हद तक प्रजातंत्र की ध्वनि भी अंतर्निहित है। यह उपदेश काल के वक्ष पर पत्थर की लकीर है।

‘सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध’ अनित्य से नित्य होने का मार्ग है। यह पुस्तक महात्मा के जीवन दर्शन को सामने रखकर पाठक को विचार करने के लिए प्रेरित करती है। इस प्रेरणा से पाठक अपने भीतर, अपने बुद्ध को तलाशने की यात्रा पर निकल सके तो लेखिका की कलम धन्य हो उठेगी।

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ ‘नयी प्रेम कहानी’ – श्री कमलेश भारतीय ☆ समीक्षक – श्री मुकेश पोपली ☆

 

☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘नयी प्रेम कहानी’ – श्री कमलेश भारतीय ☆ समीक्षक – श्री मुकेश पोपली ☆

पुस्तक: नयी प्रेम कहानी

लेखक: कमलेश भारतीय

प्रकाशक: हंस प्रकाशन, नई दिल्ली

वर्ष: 2022

मूल्य: 250/- रुपये

☆ भावनाओं और संवेदनाओं का ज्वार है ‘नयी प्रेम कहानी’ – श्री मुकेश पोपली☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

साहित्य जगत में एक जाना पहचाना नाम है कमलेश भारतीय।  अगर हम यह कहें कि पुरानी पीढ़ी से संबंध रखते हुए भी नयी पीढ़ी के लिए यह लेखक आज भी प्रेरणा प्रदान कर रहा है तो गलत नहीं होगा।  कमलेश भारतीय की कहानियाँ पढ़ते हुए हम इनके पात्रों में ही खो जाते हैं।  केवल खो ही नहीं जाते बल्कि ऐसा अहसास होने लगता है कि सब कुछ हमारे साथ ही घटित हो रहा है।  कमलेश भारतीय ने स्वयं यातनाओं को झेला है और अनेक प्रकार की विसंगतियों के बावजूद पहले एक शिक्षक,उसके बाद एक संपादक और अंतत: एक लेखक के रूप में उभरकर सामने आए हैं।  सुप्रसिद्ध कथाकार चित्रा मुद्गल ने भूमिका में लिखा है कि एक पीढ़ी जो साहित्य के प्रति समर्पित रही, कमलेश भारतीय ने उस विरासत को सँभाल लिया है । यह सच है कि समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता और यही बात पुस्तक ‘नयी प्रेम कहानी’ के साथ लागू होती है।  पुस्तक में संकलित कहानियों में भावनाओं और संवेदनाओं का ज्वार है।  इन कहानियों में व्यक्ति, घर और समाज को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा गया है, उसे जिया गया है और चुनौतियाँ पूरी भी की गई हैं।  पुस्तक की कहानियों को पढ़ने के बाद एक पुरानी दुनिया में खो जाने का मन करता है और साथ ही नए जीवन में खुशियाँ ढूँढ़ने के लिए भी हम आगे कदम बढ़ाने को तैयार होते हैं।

शीर्षक कहानी ‘नयी प्रेम कहानी’ चाहे एक नायक की असफल प्रेम कहानी है और यह प्रेम कहानी हजारों-लाखों दिलों में पनपती रहती है लेकिन  उसे बयान ही नहीं किया जाता।  कहीं आर्थिक अभाव या असमानता, कहीं क्षेत्रवाद, कहीं बदनामी का डर तो कहीं लव जिहाद का आतंक।  हमारे समाज में प्रारंभ से ही प्रेम करना एक घृणित कार्य की श्रेणी में आता है।  बहुत से उदाहरण दे-देकर युवाओं को बरगलाया जाता है।  प्रसंगवश यह भी पूछना ज़रूरी है कि जो विवाह परिपाटी के अनुसार हुए हैं, क्या वो सब के सब आदर्श बने?  कहानी में बार-बार यह प्रदर्शित होता है कि प्रेम गुनाह नहीं है लेकिन सभ्यता एवं संस्कृति में घुली नफरत को चाशनी की मिठास में लपेट दिया जाता है।    नायक एक दूसरे युवा के मुंह से यह सुनकर कि हम तो पंजाबी हैं और वो लड़की पहाड़ी है,  हमारी शादी नहीं हो सकी,  नायक भी अपने आपको भी इसी प्रकार की श्रेणी में ले जाता है।  हालांकि नायिका शांता की शादी उसकी मां पक्की कर देती है क्योंकि वह अपने अंत के निकट है और शांता इस बात को चुपचाप मान लेती है।  कहानी में कोई प्रेम प्रसंग नहीं है और न ही वह मिलकर कोई ख्वाब बुनते हैं।  सिर्फ नायक अपनी ही कल्पनाओं में उसे अपने साथ रखता है और फिर उसके विवाह पर जाने का निश्चय भी कर लेता है ताकि बाद में भी संबंध बने रहें । इस कहानी में एक अलग सी विशेषता  और भी है और वो है इसमें प्रकृति का खूबसूरत वर्णन।  कुछ उदाहरण-

“किश्ती आगे बढ़ती जा रही है।  झील के धुंधलके में, स्याह हो गए पानी में उदास चाँद डगमगाने लगा है- काँपता प्रतिबिंब लहरों के बीच दिखाई दे रहा है।”

“सुंदरनगर… सुनहरी धूप बिलासपुर में ही छूट गई है, हाथ आई है सुंदरनगर की नन्ही-नन्ही बूंदें और काले-काले उड़ते बादल… जाने कब बरस जाएं… कहाँ बरस जाएं… कहाँ बरस जाएं…”

“बाहर बादल सफ़ेद रूई से सफ़ेद हैं । इकट्ठे हो रहे हैं- बरसने के लिए… ये भी मेरा साथ देने आ गए हैं।  मैं तो इन्हें आँखों में पी जाता हूँ पर बादल बरस ही उठे हैं।”

‘नयी प्रेम कहानी’ में खूबसूरत नजारे देखने की उत्कंठा और अपने आपको प्रकृति के हवाले कर देने की जिद्द है।  इस प्रकार के दृश्यों से कहानी को सहज ही गति मिली है।

डॉ. नरेंद्र मोहन के नाम समर्पित इस कथा संग्रह में शामिल कहानियों के बारे में लेखक ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि ‘महक से ऊपर’ कहानी उनके सबसे पहले कहानी संग्रह की शीर्षक कहानी है।  इस कहानी को पढ़ने के बाद यह साफ नजर आता है कि यदि वरिष्ठ लेखिका राजी सेठ ने अपने समय के जाने-माने कथाकार महीप सिंह को इसे छपवाने न दिया होता तो कमलेश भारतीय के साहित्य संसार को वहीं विराम लग गया होता । आज भी इस कहानी को पढ़ते समय आँखों के सामने वो पिता आकर खड़ा हो जाता है जो अपनी बेटियों के लिए हमेशा खुशी और सुकून तलाश करता है।  उसके भीतर के द्वंद्व को एक बेटी का पिता ही महसूस कर सकता है।  यह मान लिए जाने के बावजूद कि रिश्ते ऊपर से बनकर आते हैं फिर भी एक परिवार की लड़की के ब्याह के बाद भी मां-बाप उसके एक सुखी परिवार की कामना करते नहीं थकते।  कहानी में पूर्व में ब्याही गई घर की लड़कियों के जीवन से सबक लेते हुए सबसे छोटी लड़की को वह किस्मत के भरोसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं।  वास्तव में कुछ तो मिट्टी की महक से ऊपर है।  कहानी एक पिता की तमाम संवेदनाओं को प्रकट करने में सक्षम दिखाई पड़ती है।

कहानी लिखने की कला तो लेखक में कूट-कूट कर भरी हुई है और उससे भी अधिक सार्थक बन पड़ा है किसी पाठक को कहानी के साथ बहाकर ले जाना।  पाठक एक पसोपेश में रहते हुए ‘उसके बावजूद’ कहानी को अंत तक जल्दी से पढ़ लेना चाहता है।  यह कहानी  एक भाई और एक बहन के निश्छल प्रेम की पराकाष्ठा है।  बहन के जीवन की कुछ समस्याओं से भाई परिचित तो है लेकिन उसके अंदर की एक और कथा से वह अनजान है । बहन उसे एक कथा के रूप में अपनी जीवन गाथा सुनाती हुई एक नई राह बुनने लगती है।  इस कहानी से हम इतना भर तो जान ही लेते हैं कि हमारा अतीत हमें छोड़ता नहीं है।  कहानी में हम पाते हैं कि उसकी दीदी बार-बार अतीत में लौटती दिखाई देती है । प्रेम के प्रति रुझान एक सामान्य चीज है लेकिन प्रेम में जीना उससे कहीं बिलकुल अलग है।  विभिन्न उतार-चढ़ाव कहानी को बोझिल नहीं बनाते और यही विशेषता इसे आम कहानियों से अलग करती है।

‘नयी प्रेम कहानी’ में उनकी ताजातरीन कहानियाँ ‘पड़ोस’, ‘अपडेट’ और ‘जय माता पार्क’ संकलित हैं । इन कहानियों में हमारे आस-पास का आधुनिकीकरण दिखलाई पड़ता है।  देश में मीडिया की गिरती साख को महसूस किया जा सकता है।  निश्चित रूप से गंदी और स्वार्थ की राजनीति हमारे यहाँ इस कदर हावी हो गई है कि एक ईमानदार अधिकारी अपने आपको चारों ओर से घिरा हुआ पाता है।  फटाफट और सबसे पहले हम की दुर्भावना ने पत्रकारिता के स्तर को गर्त में ले जाने का प्रयास किया है।  ‘अपडेट’ और  ‘जयमाता पार्क’ इसी प्रकार की कहानियाँ हैं जिनमें आजकल का माहौल हम देख सकते हैं।  ‘पड़ोस’ कहानी में एक तरफ तो भावनाएं और संवेदनाएं हैं जबकि दूसरी तरफ केवल अपने बारे में सोचने की प्रवृत्ति भी है।  यह ठीक है कि हालात हमेशा एक जैसे नहीं रहते फिर भी यह सोचकर दुख होता है कि इनसान के भीतर सबकुछ मर चुका है।  यह भी ठीक है कि भविष्य हम नहीं देख पाते लेकिन जब मजबूरी हावी हो जाती  है तब सभी मान्यताएं और परम्पराएं स्वत: ही ढह जाती हैं।  कोई किसी की मदद के लिए आगे नहीं आता और जो आते हैं उनको भी शक की निगाह से ही देखा जाता है।  फलत: हर आदमी अकेला पड़ जाता है और भटक भी जाता है।

‘किसी भी शहर में’ कहानी के भीतर चारों ओर एक अजीब सा तनाव फैला हुआ है।  यह किसी अकेले का तनाव नहीं है।  इस तनाव में भी राशन की चिंता भी है ।  एक दहशत भरे माहौल में जब नायक बच्चों के लिए कुछ खाने-पीने का सामान लेने के लिए बाहर निकल पड़ता है तब पाठक भी भयभीत रहता है।   जब मौत सिर पर नाचती दिखाई देती है तो डर तो लगता ही है।   यही बात नायक को समझाई जाती है तो वो मौत को किनारे रख देता है और खुले आम राशन की खोज में घूमता है।

एक और कहानी भी तनाव से भरपूर है मगर उसमें एक बच्चे की ज़िद्द है कि पिकनिक पर जाना ही जाना है।  इस तनाव से मुक्त हो जाने पर बच्चे के चेहरे पर खुशियों के फूल खिल जाते हैं और बच्चे का नाना भी सोचने लगता है कि ‘कब गए थे पिकनिक पर’।  वास्तव में इस तनाव भरी दुनिया में हम अपने लिए, अपने बच्चों के लिए और इस समाज को खुशनुमा बनाने के लिए समय कहाँ निकाल पाते हैं।  आखिर इतनी व्यस्तता किस काम की?

‘बस, थोड़ा सा झूठ’ कहानी पूरी तरह दर्द से भरी हुई है।  जिसके सीने में दर्द है, वह बुजुर्ग है और आशावादी भी है और उसे विश्वास है कि यह सभी दुख-दर्द एक न एक दिन दूर हो जाएँगे॥   उसकी इसी आशावादिता को बनाए रखने के लिए एक मित्र दूसरे मित्र से यह वादा लेता है कि पीड़ित व्यक्ति के लिए थोड़ा सा झूठ बहुत बड़ा संबल है। कहानी के भीतर से हम सबके जीवन का सच उभर आता है और यही सच इस कहानी में सांस भरने का काम करता है।

‘नयी प्रेम कहानी’ की कहानियों के संवाद हमें उकसाते भी हैं और बहुत सी मजबूरियों से हमारा परिचय भी कराते हैं।   इन कहानियों में रिश्तों का आदर मुखरित हुआ है जबकि विभिन्न पात्रों में कशमकश भी मौजूद है।   यह कहानियाँ केवल घर में घटित होने वाली कहानियाँ नहीं हैं।  इन कहानियों की घटनाओं को हम हमेशा अपने आस-पास देखते हैं।   दरअसल इस संसार में किसी के जीवन की खुशियाँ और किसी का सुख दूसरे से देखा नहीं जाता।  इन कहानियों को पढ़कर लगता है कि अगर जीवन में समझौता नाम का शब्द नहीं होता तो न जाने अभी तक कितने घर टूट गए होते, प्रेम बदनाम हो गया होता, रिश्ते तार-तार हो गए होते और नव निर्माण की तो कल्पना ही नहीं होती। कमलेश भारतीय की कहानियों को पढ़ने पर अहसास होता है कि वह यह सब भुगत चुके हैं।  सच तो यह है कि हम सब लोग भी इस जीवन की उधेड़बुन से बाहर नहीं निकल पाते हैं।  सभी कहानियों के पात्र सहज ही हमारे इर्द-गिर्द मँडराते दिखाई देते हैं।  इन कहानियों में कोरी कल्पना नहीं बल्कि एक ऐसा यथार्थ है कि हम उससे मुंह मोड़ने का साहस ही नहीं कर सकते । ‘नयी प्रेम कहानी’ पुस्तक प्रेम करने लायक है।

विभिन्न कहानी संग्रहों, लघु-कथाओं और अन्य पुस्तकों के रचयिता कमलेश भारतीय की ‘नयी प्रेम कहानी’ को हंस प्रकाशन ने प्रकाशित किया है जिसका खूबसूरत आवरण कुँवर रवीन्द्र ने तैयार किया है।

समीक्षक – श्री मुकेश पोपली

‘स्वरांगन’, ए-38-डी, करणी नगर, पवनपुरी, बीकानेर-334003

मोबाइल: 7073888126

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा #112 – “एकता और शक्ति” – श्री अमरेन्द्र नारायण ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री अमरेंद्र नारायण जी की पुस्तक “एकता और शक्ति”  की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 112 ☆

☆ “एकता और शक्ति” – श्री अमरेन्द्र नारायण ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  

Unity And Strength

एकता और शक्ति 

लेखक… अमरेन्द्र नारायण

प्रकाशक :  राधाकृष्ण प्रकाशन,राजकरल प्रकाशन समूह, 7/31 अंसारी रोड दरयागंज, नई दिल्ली  

अमेज़न लिंक >> एकता और शक्ति

एकता और शक्ति उपन्यास स्वतंत्र भारत के शिल्पकार  लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के अप्रतिम योगदान पर आधारित कृति है। इस उपन्यास की रचना  गुजरात के रास ग्राम के एक सामान्य कृषक परिवार को केन्द्र में रख कर की गयी है।श्री वल्लभभाई पटेल के महान  व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हजारो लोग खेड़ा सत्याग्रह के दिनों से ही उनके अनुगामी हो गए थे और उनकी संघर्ष यात्रा के सहयोगी बने थे।पुस्तक में सरदार पटेल के व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण पक्षों को और उनके अद्वितीय योगदान का प्रामाणिक रूप से वर्णन किया गया है।

महान स्वतंत्रता सेनानी… कर्मठ देशभक्त…  दूरदर्शी नेता… कुशल प्रशासक…! सरदार वललभभाई पटेल के सन्दर्भ में ये शब्द विशेषण नहीं हैं। ये दरअसल उनके व्यक्तित्व की वास्तविक छबि है.   स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद अनेक समस्याओं से जूझते हुए भारतवर्ष को संगठित करने, उसे सुदृढ़ बनाने और नवनिर्माण के पथ पर अग्रसर कराने में उनकी भूमिका अविस्मरणीय रही है। ‘एकता और शक्ति’ स्वतंत्र भारत के इस महान शिल्पी को लेखक की विनम्र श्रद्धांजली  है। यह उपनयास एक सामान्य कृषक परिवार  के किरदार से सरदार की कार्य -कुशलता, उनके प्रभावशाली नेतृत्व और अनुपम योगदान का का ताना-बाना बुनता है।उपन्यास सरदार श्री के जीवन से सबंधित कई अल्पज्ञात या लगभग अनजान पहलुओं को भी नये सिरे और नये नजरिये से छूता है। 

यह उपन्यास सरदार वल्लभभाई पटेल के अप्रतिम जीवन से  नयी पीढ़ी में राष्ट्रनिर्माण की अलख जगाने का कार्य कर सकता है. आज की पीढ़ी को सरदार के जीवन के संघर्ष से परिचित करवाना आवश्यक है, जिसमें यह उपन्यास अपनी महती भूमिका निभाता नजर आता है.  

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देशी रियासतों का भारत में त्वरित विलय कराने, स्वाधीन देश में उपयुक्त प्रशासनिक व्यवस्था बनाने और कई कठिनाइयों से जूझते हुए देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर कराने में, लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का योगदान अप्रतिम रहा है। वे लाखों लोगों के लिए अक्षय प्रेरणा-स्रोत हैं। एकता और शक्ति, सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान पर आधारित एक ऐसा उपन्यास है जिसमें एक सामान्य कृषक परिवार की कथा के माध्यम से, सरदार श्री के प्रभावशाली कृशल नेतृत्व का एवं तत्कालीन घटनाओं का वर्णन किया गया है। साथ ही, एक सम्पन्न एवं सशक्त भारत के निर्माण हेतु उनके प्रेरक दिशा-निर्देशों पर भी प्रकाश डाला गया है।

श्री अमेरन्द्र नारायण

अमेरन्द्र नारायण एशिया एवं प्रशान्त क्षेत्र के अन्तरराष्ट्रीय दूर संचाार संगठन एशिया पैसिफिक टेली कॉम्युनिटी के भूतपूर्व महासचिव एवं भारतीय दूर संचार सेवा के सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं। उनकी सेवाओं की प्रशंसा करते हुए उन्हें भारत सरकार के दूरसंचार विभाग ने स्वर्ण पदक से और संयुक्त राष्ट्र संघ की विशेष एजेंसी अन्तर्राष्ट्रीय दूरसंचार संगठन ने टेली कॉम्युनिटी को स्वर्ण पदक से और उन्हें व्यक्तिगत रजत पदक से सम्मानित किया।

श्री नारायण के अंग्रेजी उपन्यास—“फ्रैगरेंस बियॉन्ड बॉर्डर्स”  का उर्दू अनुवाद “खुशबू सरहदों के पास” नाम से प्रकाशित हो चुका है। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम अब्दुल कलाम साहब, भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने इस पुस्तक की सराहना की है। महात्मा गांधी के चम्पारण सत्याग्रह और फिजी के प्रवासी भारतीयों की स्थिति पर आधारित उनका संघर्ष नामक उपन्यास काफी लोकप्रिय हुआ है। उनकी पाँच काव्य पुस्तकें—सिर्फ एक लालटेन जलती है, अनुभूति, थोड़ी बारिश दो, तुम्हारा भी, मेरा भी और श्री हनुमत श्रद्धा सुमन पाठकों द्वारा प्रशंसित हो चुकी हैं। श्री नारायण को अनेक साहित्यिक संस्थाओं ने सम्मानित किया है।

 श्री अमरेन्द्र नारायण जी  के इस प्रयास की व्यापक सराहना की जानी चाहिये. यह विचार ही रोमांचित करता है कि यदि देश का नेतृत्व लौह पुरुष सरदार पटेल के हाथो में सौंपा जाता तो आज कदाचित हमारा इतिहास भिन्न होता. पुस्तक पठनीय व संग्रहणीय है.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’, भोपाल

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा #111 – “ठहरना जरूरी है प्रेम में” (काव्य संग्रह)  – अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है  सुश्री अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’  की पुस्तक “ठहरना जरूरी है प्रेम में”  की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 111 ☆

☆ “ठहरना जरूरी है प्रेम में” (काव्य संग्रह)  – अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  

पुस्तक चर्चा

पुस्तक – ठहरना जरूरी है प्रेम में (काव्य संग्रह) 

कवियत्री… अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ 

बोधि प्रकाशन, जयपुर, १५० रु, १०० पृष्ठ

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव

जब किसी अपेक्षाकृत नई लेखिका की किताब आने से पहले ही उसकी कविताओ का अनुवाद ओड़िया और मराठी में हो चुका हो, प्रस्तावना में पढ़ने मिले कि ये कवितायें खुद के बूते लड़ी जाने वाली लड़ाई के पक्ष में खड़ी मिलती हैं, आत्मकथ्य में रचनाकार यह लिखे कि ” मेरे लिये, लिखना खुद को खोजना है ” तो किताब पढ़ने की उत्सुकता बढ़ जाती है. मैने अमनदीप गुजराल विम्मी की “ठहरना जरूरी है प्रेम में ” पूरी किताब आद्योपांत पढ़ी हैं.

बातचीत करती सरल भाषा में, स्त्री विमर्श की ५१ ये अकवितायें, उनके अनुभवों की भावाभिव्यक्ति का सशक्त प्रदर्शन करती हैं.

पन्ने अलटते पलटते अनायास अटक जायेंगे पाठक जब पढ़ेंगे

” देखा है कई बार, छिपाते हुये सिलवटें नव वधु को, कभी चादर तो कभी चेहरे की “

या

” पुल का होना आवागमन का जरिया हो सकता है, पर इस बात की तसल्ली नहीं कि वह जोड़े रखेगा दोनो किनारों पर बसे लोगों के मन “

अथवा

” तुम्हारे दिये हर आक्षेप के प्रत्युत्तर में मैंने चुना मौन “

और

” खालीपन सिर्फ रिक्त होने से नहीं होता ये होता है लबालब भरे होने के बाद भी “

माँ का बिछोह किसी भी संवेदनशील मन को अंतस तक झंकृत कर देता है, विम्मी जी की कई कई रचनाओ में यह कसक परिलक्षित मिलती है…

” जो चले जाते हैं वो कहीं नही जाते, ठहरे रहते हैं आस पास… सितारे बन टंक जाते हैं आसमान पर, हर रात उग आते हैं ध्रुव तारा बन “

अथवा…

” मेरे कपड़ो मेंसबसे सुंदर वो रहे जो माँ की साड़ियों को काट कर माँ के हाथों से बनाए गये “

 और एक अन्य कविता से..

” तुम कहती हो मुझे फैली हुई चींजें, बिखरा हुआ कमरा पसन्द है, तुम नही जानती मम्मा, जीनियस होते हैं ऐसे लोग “

“ठहरना जरूरी है प्रेम में” की सभी कविताओ में बिल्कुल सही शब्द पर गल्प की पंक्ति तोड़कर कविताओ की बुनावट की गई है. कम से कम शब्दों में भाव प्रवण रोजमर्रा में सबके मन की बातें हैं. इस संग्रह के जरिये  अमनदीप गुजराल संभावनाओ से भरी हुई रचनाकार के रूप में स्थापित करती युवा कवियत्री के रूप में पहचान बनाने में सफल हुई हैं. भविष्य में वे विविध अन्य विषयों पर बेहतर शैली में और भी लिखें यह शुभकामनायें हैं. मैं इस संग्रह को पाठको को जरूर पढ़ने, मनन करने के लिये रिकमेंड करता हूं. रेटिंग…पैसा वसूल, दस में से साढ़े आठ.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’, भोपाल

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा #110 – “विचारों का टैंकर” (व्यंग्य संग्रह) – श्री अशोक व्यास ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है  श्री अशोक व्यास जी की पुस्तक  “विचारों का टैंकर” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 110 ☆

☆ “विचारों का टैंकर” (व्यंग्य संग्रह)  – श्री अशोक व्यास ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  

पुस्तक चर्चा

व्यंग संग्रह  … विचारों का टैंकर

व्यंगकार … श्री अशोक व्यास

पृष्ठ : १३२     मूल्य : २६० रु.

प्रकाशक : अयन प्रकाशन , दिल्ली

आईएसबीएन : ९७८९३८८३४७१४६६    

संस्करण : प्रथम , वर्ष २०१९

मैंने श्री अशोक व्यास को व्यंग्य पढ़ते सुना है. वे लिखते ही बढ़िया नही हैं, पढ़ते भी प्रभावी तरीके से हैं. व्यंग्य में निहित आनंद, चटकारे और अंततोगत्वा लेखन जनित संदेश का विस्तार ही  रचनात्मक उद्देश्य होता है, जो व्यंग्यकार को संतुष्टि प्रदान करता है. अशोक व्यास पेशे से इंजीनियर रहे हैं, सेवानिवृति के बाद वे निरंतरता से स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं, उन्हें मैंने अखबारो में अनेक बार पढ़ा था, कुछ समय पूर्व उनका जबलपुर आगमन हुआ और भेंट भी. विचारों का टैंकर उनकी सद्यः प्रकाशित पहली व्यंग्य कृति है. किताब बढ़िया गेटअप में हार्ड बाउंड प्रकाशित हुई है. इसके लिये प्रकाशक को पूरे नम्बर जाते हैं. पुस्तक में संजोये  गये  व्यंग्य आलेख मैंने पिछले दो तीन दिनो में  पढ़े. वे व्यवहारिक बोलचाल की भाषा का उपयोग करते हैं. अंग्रेजी शब्दो का भी बहुतायत में प्रयोग है, तो  तत्सम शुद्ध शब्द कटाक्ष के लिये प्रयुक्त किये गये हैं.अशोक जी अधिकांशतः बातचीत की शैली में  लिखते हैं.

व्यंग्य अनुभव जनित लगते हैं. सच तो यह है कि  व्यंग्यकार की संवेदन शीलता उसके अपने व्यक्तिगत या उसके परिवेश में किसी अन्य के सामाजिक कटु अनुभव व विसंगती तथा लोगो का व्यवहारिक दोगलापन ही व्यंग्य लेखन के लिये प्रेरित करते हैं. व्यंग्यकार का रचनाकार संवेदन शील मन सामाजिक विडंबनाओ को पचा नही पाता तो उसके मन में विचारो का बवंडर खड़ा हो जाता है वह  अपने मन में चल रही उथल पु्थल और खलबली को  लिखकर किंचित शांति पाने का यत्न करता है. इस प्रक्रिया में जब रचनाकार अमिधा की जगह लक्षणा और व्यंजना शक्तियो का प्रयोग करता है तो उसके कटाक्ष पाठक को कभी गुदगुदाते हैं, कभी हंसाते हैं, कभी भीतर ही भीतर रुला देते हैं.अपने इन विचारो को ही अशोक जी ने एक टैंकर में  भर कर पाठको के सम्मुख सफलता पूर्वक रखा है.

पाठक या श्रोता व्यंग्य के आस पास से ही उठाये गये  विषय की वैचारिक विडम्बना पर सोचने को मजबूर हो जाता है.उनकी सफलता घटना का सार्वजनीकरण इस तरह करने में  है कि व्यक्ति कटाक्ष को पढ़कर, कसमसा कर रह जाने पर मजबूर हो जाता है.

व्यंग्य लेखन व्यंग्यकारों का उद्घोष है कि वह समाज की गलतियो के विरोध में अपनी कलम के साथ प्रहरी के रूप में खड़ा है. विडंबना यह है समाज इतनी मोटी चमड़ी का होता जा रहा है कि आज जिस पर व्यंग्य किया जाता है वह उसे हास्य में उड़ा देता है और लगातार अंतिम संभावना तक कुतर्को से स्वयं को सही सिद्ध करने का यत्न करता रहता है. यही कारण है कि त्वरित प्रतिक्रिया का लेखन व्यंग्य, जो प्रायः अखबारो के संपादकीय पन्नो पर छपता है, अब पुस्तको का स्थाई स्वरूप लेने को मजबूर है. विडम्बनाओ, विसंगतियो को जब तक समाज स्थाईभाव देता रहेगा व्यंग्य की पुस्तके प्रासंगिक बनी रहेंगी. व्यंग्यकार की अभिव्यक्ति उसकी विवशता है. सुखद है कि व्यंग्य के पाठक हैं, मतलब सच के समर्थक मौजूद हैं, और जब तक नैसर्गिक न्याय के साथ लोग खड़े रहेंगे  तब तक समाज जिंदा बना रहेगा. आदर्श की आशा है.

पुस्तक के शीर्षक व्यंग्य विचारों का टैंकर में वे लिखते हैं ” अब उनके विचारों का प्रेशर समाप्त होने वाला था,… वे अगले दौर में फिर अपनी नई नई सलाहों के साथ हाजिर होंगें… मैंने भी सहमति में सिर हिलाया जिससे उनकी सलाह मेरे सिर से इधर उधर बिखर जावे… बिन मांगे सलाह देने वाले फुरसतियों पर यह अच्छा व्यंग्य है. कई नामचीन व्यंग्यकारो ने इस विषय पर लिखा है, क्योकि ऐसे बिना मांगे सलाह देने वाले चाय पान के ठेलो से लेकर कार्यालय तक कही न कही मिल ही जाते हैं. अशोक जी ने अपने लेखनी कौशल व स्वयं के अनुभव के आधार पर अच्छा लिखा है. शब्दो की मितव्ययता से और प्रभावी संप्रेषण संभव था.

जित देखूं उत मेरा लाल, कट आउट होने का दुख, युवा नेता से साक्षात्कार, टाइम नही है, ठेकेदार का साहित्त्य,दास्तान ए साड़ी, राग मालखेंच, घर का मुर्गा, भ्रष्टाचार की जड़, आम आदमी की तलाश, रिमोट कंट्रोल, चुप बहस चालू है, संसार का पहला एंटी हीरो, सरकार का चिंतन, सरकारी और गैर सरकारी मकान, मांगना एक श्वेत पत्र का, ज्ञापन से विज्ञापन तक, बारात की संस्कृति, जेलसे छूटने की पटकथा, राजनीति के श्वेत बादल, सम्मानित होने का भय, कुत्तो के रंगीन पट्टे, साहित्य माफिया, कटौती प्रस्ताव, इक जंगला बने न्यारा, क्रिकेट का असली रोमांच, आई डोंट केयर, वी आई पी कल आज और कल भी, नई सदी का नयापन, मरना उर्फ महान होना, एक घोटाले का सवाल है बाबा, ऐसा क्यो होता है, नागिन डांस वाले मुन्ना भाई, चर्चा चुनाव की, लेखन का संकट जैसे रोचक टाइटिल्स के सांथ कुल ३६ व्यंग्य आलेख किताब में हैं.

व्यंग्य के मापदण्डो पर इन लेखो में कथ्य है, कटाक्ष है, भाषाई करिश्मा पैदा करने के यत्न जहां तहां देखने मिलते हैं, सामयिक विषय वस्तु है, वक्रोक्ति हैं, घटना को कथा बनाने की निपुणता भी देखने मिलती है, किंचित  संपादन की दृ्ष्टि से स्वयं पुनर्पाठ या मित्र मण्डली में चर्चा से कुछ लेख और भी कसावट के साथ प्रस्तुत किये जाने की संभावना पढ़ने पर मिलती है. हमें अशोक जी की अगली किताबों में यह मूर्त होती मिलेगी. विचारो के टैंकर के लिये वे बधाई के सुपात्र हैं, वे शरद जोशी, रवींद्रनाथ त्यागी और परसाई परम्परा के ध्वज वाहक बने हैं, उन्हें कबीर के दिझखाये मार्ग पर बहुत आगे तक का सफर पूरा करना है. स्वागत और शुभकामना क्योकि इस राह में सम्मान मिलेगा तो कभी अपनो के पत्थर और गालियां भी पड़ेंगी, पर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना होगा.लेखकीय शोषण एवं हिन्दी पुस्तकों की बिक्री की जो वर्तमान स्थितियां है, वे  छिपी नहीं है, ऐसे समय में  सारस्वत यज्ञ का मूल्यांकन भविष्य जरूर करेगा, इसी आशा के साथ.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’, भोपाल

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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