मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 13 ☆ दिवाने ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है ।आज प्रस्तुत है उनकी एक  भावप्रवण कविता “दिवाने“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 13 ☆

☆ दिवाने

मी उलगडीत गेलो,कोड्यातले उखाणे

रीतेच राहिले परी,जीवनातले रकाने !!

 

लावूनी वर्ख लिलया,मी चमकविली पाने

किताब जिंदगीचे ,तरी राहिले पुराने !!

 

जिंकीत सर्व गेलो,अगदी क्रमाक्रमाने

सर्वस्व हारलो मी, एकाच नकाराने!!

 

वाटीत सुखे गेलो, तुडवीत किती राने

नामाभिदान दिधले,त्यांनी मला दिलाने !!

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ स्वप्नात   आलं   झाड ☆ सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। कई पुरस्कारों/अलंकारों से पुरस्कृत/अलंकृत सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी का जीवन परिचय उनके ही शब्दों में – “नियतकालिके, मासिके यामध्ये कथा, ललित, कविता, बालसाहित्य  प्रकाशित. आकाशवाणीमध्ये कथाकथन, नभोनाट्ये , बालनाट्ये सादर. मराठी प्रकाशित साहित्य – कथा संग्रह — ५, ललित — ७, कादंबरी – २. बालसाहित्य – कथा संग्रह – १६,  नाटिका – २, कादंबरी – ३, कविता संग्रह – २, अनुवाद- हिंदी चार पुस्तकांचे मराठी अनुवाद. पुरस्कार/सन्मान – राज्यपुरस्कारासह एकूण अकरा पुरस्कार.)

आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता स्वप्नात   आलं   झाड। हम भविष्य में भी आपकी सुन्दर रचनाओं की अपेक्षा करते हैं।

 

☆ स्वप्नात   आलं   झाड ☆

 

एकदा   स्वप्नात  आलं   झाड

बोलू    लागलं    फाडफाड.

फांद्यांचे    हिरवे     हात

हलवत     होतं     जोरजोरात..

 

“आम्ही   सुध्दा     तुमच्या सारखी

ह्या    धरतीची    मुलं    आहोत.

तुमचा    छळ    आणि   जुलूम

मुकेपणाने    सोसतो    आहोत

आमचं    जीवन   आणि   मरण

तुमच्या    हातात   घेतलत   तुम्ही

तुमच्यासाठी    करतो    त्याग

तो     तुम्हाला   कळत   नाही.

रस्ते    रुंद    हवेत   म्हणून

तिथून    आम्हाला    उखडता

घरात    अंधार      येतो   सांगून

सरळ    फांद्या    छाटून    टाकता.

करू    नका    आमची    पूजा ,

उगिचच     करता    गाजावाजा

तुमचे    सण,     तुमचे   उत्सव

आम्ही    भोगत    असतो    सजा

आमचा    बहर,   आमचं    वैभव

तुम्ही    करता    बेचिराख

न  हलण्याचा,   न  बोलण्याचा

आम्हाला    आहे   ना   शाप.

जंगलात   आहे    आमचं   राज्य

तिथे   तरी    येऊ    नका

प्राणी,  पक्षी   आमचे    मित्र

त्यांना    बेघर   करू    नका.”

 

© मीनाक्षी सरदेसाई

‘अनुबंध’, कृष्णा हास्पिटलजवळ, पत्रकार नगर, सांगली.४१६४१६.

मोबाईल  नंबर   9561582372

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विजय साहित्य – हळवे कुटुंब. . . ! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  “हळवे कुटुंब. . . ! ,

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विजय साहित्य ☆

☆ हळवे कुटुंब. . . ! ☆  

 

वासे घराचे सांगती

धर संस्काराची कास.

सुख, दुःख , राग लोभ

चार भिंती, चातुर्मास.. . !   1

 

चार कोपरे घराचे

माया ममतेची आस

जन्म दाते मायबाप

कुटुंबाचा दैवी श्वास.. . !  2

 

गेलो माणूस वाचत

आला घराला  आकार

मित्र आणि गुरूजन

झाले कुटुंब साकार .. . !  3

 

बंधू भगिनी प्रेमात

कुटुंबाचे बालपण

जसा जाई काळ तसे

घरा येई घरपण. . . !  4

 

आज्जी आजोबांची साथ

जणू कुटुंब  आरोग्य

नात्या नात्यातून होते

त्याची देखभाल योग्य .. . ! 5

 

आप्त स्वकियांची ये जा

होई कुटुंब संवादी

दिली  वास्तू पुरूषाने

त्यांची  गुणदोष यादी. . . . ! 6

 

अन्नपूर्णा गृहिणीचा

आहे  कुटुंब आरसा

आई,  पत्नी,  आणि मुले

माझा जीवन वारसा.. . ! 7

 

कुटंबाने दिले बळ

पावसाला झेलायला

संकटांनी शिकविले

जीवनास तोलायला.. . ! 8

 

कुटुंबाने वेळोवेळी

दिला मदतीचा हात

उजेडाच्या गावी नेले

केली सौख्य बरसात. . . . ! 9

 

किती किती  आठवणी

चारभिंती पोपड्यात

सुख दुःख समारंभ

कुटुंबाच्या काळजात.. . ! 10

 

कुलदैवताची कृपा

शब्द सुता करी वास

अशा सृजन  विश्वात

नको दुःखाचा  आभास. . . . ! 11

 

असे हळवे कुटुंब

यशश्रीने सालंकृत

यशवंत भाग्यश्रीची

कृपा छाया  आलंकृत.. . .! 12

 

(श्री विजय यशवंत सातपुते जी के फेसबुक से साभार)

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ सुन  सुनबाई  ☆ सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। कई पुरस्कारों/अलंकारों से पुरस्कृत/अलंकृत सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी का जीवन परिचय उनके ही शब्दों में – “नियतकालिके, मासिके यामध्ये कथा, ललित, कविता, बालसाहित्य  प्रकाशित. आकाशवाणीमध्ये कथाकथन, नभोनाट्ये , बालनाट्ये सादर. मराठी प्रकाशित साहित्य – कथा संग्रह — ५, ललित — ७, कादंबरी – २. बालसाहित्य – कथा संग्रह – १६,  नाटिका – २, कादंबरी – ३, कविता संग्रह – २, अनुवाद- हिंदी चार पुस्तकांचे मराठी अनुवाद. पुरस्कार/सन्मान – राज्यपुरस्कारासह एकूण अकरा पुरस्कार.)

आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता सुन  सुनबाई । हम भविष्य में भी आपकी सुन्दर रचनाओं की अपेक्षा करते हैं।

☆ सुन  सुनबाई ☆

 

नको,  नको    सुनबाई,

दावू   असला    हा   तोरा.

असे    माझाच  अंकुर

आज    आला   ग  बहरा   ।।

 

राजबिंडा   राजा    माझा

चालण्याची   त्याची    ऐट

ह्याच    हातानी    रेखिली

होती    गालावर    तीट।।

 

करतेस   लगबग

बूट   दारात वाजता

माझ्या   आधारे   चालला

बाळ    रांगता   रांगता ।।

 

त्याचे    परब्रम्ह   होते

माझ्या मध्ये   साठलेले

म्रुदू   मायेचे    ग   धागे

एक मेका   गुंतलेले ।।

 

सूनबाई     नको    म्हणू

मला    परकी    वेगळी

सुखी   तुम्हा    पहाण्याची

माझी    माझी   माया   वेडी खुळी ।।

 

© मीनाक्षी सरदेसाई

‘अनुबंध’, कृष्णा हास्पिटलजवळ, पत्रकार नगर, सांगली.४१६४१६.

मोबाईल  नंबर   9561582372

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 47 –ओल. . . . ! ☆ सुजित शिवाजी कदम

सुजित शिवाजी कदम

(सुजित शिवाजी कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण कविता  “ओल. . . . !”। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #47 ☆ 

☆ पत्रलेखन  – ओल. . . . !☆ 

 

प्रेम गुलाबाचे फूल

तुझ्या गाली फुललेले

एका  एका पाकळीत

आठवांनी नाहलेले. . . !

 

प्रेम कवितेचे घर

सुख दुःखाचे माहेर

कधी आसू,  कधी हासू

देई ओठांनी  आहेर. . . . !

 

प्रेम सागराची गाज

त्याला किनारी  आसरा

नको नदी  आसवांची

हवा चेहरा हासरा . . . . !

 

प्रेम गुलाबाचा काटा

काढी काट्यानेच काटा

तुझ्या डोळ्यात फुलल्या

जीवनाच्या ओल्या वाटा. . . . !

 

दव बिंदू पुरे एक

घेतो टिपूनीया प्रेम

ओल काळजाची माझ्या

माझ्या शब्दात सप्रेम. . . . . !

 

© सुजित शिवाजी कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

7/2/2019.

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 52 – आमचं कुटुंब ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  एक  अत्यंत भावप्रवण  एवं समसामयिक कविता  “आमचं कुटुंब। आज कमोबेश सामान्य मध्यम एवं उच्च वर्ग के परिवारों की यही स्थिति है और सभी अनिश्चय के दौर से गुजर रहे हैं ।  इस वैश्विक महामारी काल में भविष्य के प्रति सभी चिंतित हैं और यह स्वाभाविक भी है। सुश्री प्रभा जी ने कुटुंब पर रचित कविता के माध्यम से प्रत्येक परिवार की पीड़ा साझा कर दी है।  कभी कभी मुझे लगता है संयुक्त परिवारों की परिभाषा बदल गयी है। आज संयुक्त परिवार वास्तव में वर्च्युअल संयुक्त परिवार हो गए हैं । वे संयुक्त भी हैं और स्वतंत्र भी। सुश्री प्रभा जी की एक माँ  के रूप में रचित संवेदनशील रचना के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 52 ☆

☆ आमचं कुटुंब ☆ 

 

आले दिवस असे की

जाता जाईना आळस

त्यात कोरोना विषाणू

त्याने केलाय कळस

 

पुत्र आहे दूरदेशी

त्याचे विस्तारे क्षितीज

स्नुषा, नातू आले घरा

केली सारी तजवीज

 

आहे  कुटुंबात माझ्या

प्रत्येकालाच स्वातंत्र्य

स्पेस दिली ज्याला त्याला

नको कोणा पारतंत्र्य

 

आम्ही  पेठांमधे आणि

“आयटी” च्या ते गावात

आणिबाणीच्या या क्षणी

आलो एकाच घरात

 

सून सुगरण माझी,

नातू अमृताची  खाण

रोज सोनियाचा दिनु

नसे कशाचीच वाण !

 

नित्य  प्रार्थिते देवाला

देई अभयाचे दान

जागतिक संकटाचे

आहे आम्हालाही भान !

 

माझ्या कुटुंबात नांदो

सदा सौख्य, शांती, प्रेम

सर्व जगातील जन

असो जिथे तिथे क्षेम !

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 50 ☆ बेघर होती मुले ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक अत्यंत मार्मिक, ह्रदयस्पर्शी एवं भावप्रवण कविता  “बेघर होती मुले।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 50 ☆

☆ बेघर होती मुले☆

 

आकाशाची चादर त्यावर नक्षत्रांची फुले

पांघरलेली ज्यांनी ती तर बेघर होती मुले

 

सूर्याच्या या किरणांचे तर पडले होते सडे

अनवाणी हे पाय करपले गेले त्यांना तडे

 

कचऱ्यामधल्या अन्नासाठी तेही आले पुढे

त्यांच्या आधी त्या अन्नाला झोंबत होते किडे

 

बिकट जरी ही दैना माझी विकतो आहे फुगे

रस्त्यावरती भाऊबंद नि फुटपाथांवर सगे

 

वस्त्रांच्या या चिंध्यालाही भाग्य लाभले नवे

फॕशन म्हणूनच असले कपडे घालुन  फिरती थवे

 

अनाथ बेघर मरून पडता पाहुन जाती पुढे

महापालिका गाडीतुन मग नेते अमुचे  मढे

 

परके करती राज्य तुम्हावर तुम्ही ठोकळे बघे

निर्भर भारत होण्यासाठी बहु लागतील युगे

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 5 – राजवर्खी पाखरा ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं एवं 6 उपन्यास, 6 लघुकथा संग्रह 14 कथा संग्रह एवं 6 तत्वज्ञान पर प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  ‘राजवर्खी पाखरा।आप प्रत्येक मंगलवार को श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।)

साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 5 ☆ 

☆ राजवर्खी पाखरा 

झाडाझाडांचा झडला

सारा पानोरा पानोरा

फांदी फांदी प्रतिक्षेत

कधी फुलेला फुलोरा

 

पाने परदेशी झाली

झाड भकास उदास

कसे सांतवावे त्याला

धुके निराश निराश

 

पाने परदेशी झाली

परी पाखरू उडेना

निळ्या नभी निरखते

निळ्या स्वप्नांचा खजिना

 

पाखराच्या डोळाभर

स्वप्नं निळे साकारले

दूर कुणा पारध्याचे

डोळे कसे लकाकले.

 

राजवर्खी पाखरा तू

जाई जाई बा उडून

तुझे तूच जप आता

लाख मोलाचे रे प्राण

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 48 – हरीरुपे – दशअवतार ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है  आपका  एक अत्यंत भावप्रवण कविता  ” हरीरुपे – दशअवतार”।  आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। )

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 48 ☆

☆ हरीरुपे – दशअवतार ☆

 

दश अवतारी। हरीरुपे स्मरू। जीवनाचा वारू। स्थिरावेल।

मत्स्य कूर्म आणि। वराह  वामन। सृष्टी नियमन। करीतसे।

हिराण्य मातला। वधुनी तयासी।तारी प्रल्हादासी। नरसिंहा।

ब्राह्मण्य रक्षणा।  परशुराम सिद्ध। असे कटिबद्ध। धर्मयोद्धा।

मर्यादा पुरुष ।  राम आवतारी । कर्तव्य निर्धारी। सर्वकाळ।

सोळा कलायुक्त । पूर्ण अवतार। निर्गुणाचे सार। पार्था सांगे।

क्षमा शील शांती। बोध जगतास । बुद्ध महात्म्यास । दंडवत।

कल्की अवतार। कलीयुगी घेई। अधःपात नेई। लयालागी

दांवा परिसर। मानव चतुर ।  साधण्या अतुर। स्वार्थ हिता।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 1 ☆ वेदनेच्या कविता… ☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है उनकी भावप्रवण कविता “वेदनेच्या कविता…”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 1 ☆ 

☆ वेदनेच्या कविता… ☆

वेदनेच्या ह्या कविता सांगू कशा

मूक झाली भावना ही महादशा..धृ

 

अश्रू डोळ्यांतील संपून गेले पहा

स्पंदने हृदयाची थांबून गेली पहा

आक्रोश मी कसा करावा, कळेना हा.. १

 

नाते-गोते आप्त सारे विखुरले

रक्ताचे ते पाणी झाले आटले

मंद मंद मृत शांत भावना.. २

 

ऐसे कैसे दिस आले, सांगा इथे

कीव ना इतुकी कुणाला काहो इथे

आंधळे हे विश्व अवघे भासे इथे.. ३

 

सांगणे इतुकेच माझे आता गडे

अंध ह्या चालीरीतीला पाडा तडे

राज कवीचे शब्द आता तोकडे.. ४

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन,

वर्धा रोड नागपूर,(440005)

~9405403117

~8390345500

Please share your Post !

Shares
image_print