मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 40 – माझी मायभूमि ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  मातृभूमि पर आधारित आपकी एक अतिसुन्दर मौलिक कविता   “माझी मायभूमि ”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 40 ☆ 

 ☆ माझी मायभूमि  

 

माझी मायभूमी। विश्वाचे भूषण। संस्कृती रक्षण। सर्वकाळ।।१।।

 

उंच हिमालय। मस्तकी मुकूट।तैसा चित्रकूट। शोभिवंत ।।२।।

 

सप्त सरितांचे। जल आचमन। पावन जीवन।सकलांचे।।३।।

 

तव चरणासी।जलधी तरंग। उधळीती रंग। अविरत ।।४।।

 

नाना धर्म पंथ । अगणित  जाती। नांदती सांगाती। आनंदाने ।।५।।

 

संत महंत हे। ख्यातनाम धामी। नर रत्न नामी। पुत्र तुझे।।६।

 

वीर धुरंधर ।रत्न ते अपार। करिती संहार । अधमांचा।।७।।

 

असे माय तुझी।  परंपरा थोर । जपू निरंतर । प्रेमभावे।।८।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ विश्व कविता दिवस – श्वास मोकळा ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज  प्रस्तुत है  विश्व कविता दिवस पर आपकी एक  विशेष कविता   “श्वास मोकळा ।)

☆ श्वास मोकळा ☆

(जागतिक कविता दिनाच्या सर्व कवी, कवयित्री व कवितांचा आस्वाद घेणाऱ्या रसिकांना मनापासून शुभेच्छा!)

 

रस्त्याने या जरी घेतला श्वास मोकळा

मला वाटले रस्ता झाला आज पांगळा

 

सुन्याच बागा मैदानावर नाही गर्दी

हुशार काळा आळसावून बसलाय फळा

 

शस्त्राविन हे युद्ध लादले या जगतावर

रक्तपात ना मरतो आहे देह सापळा

 

मित्र जमेना संचारावर आली बंदी

आवरला मग साऱ्यांनी हा मोह आंधळा

 

सार्क देश हे मिळून करतील इथे सामना

नका करू रे तुम्ही पराचा उगा कावळा

 

बर्गर पिझ्झा खाणे आता बंदच केले

आंबट-चिंबट चाखत आहे संत्र आवळा

 

तुझ्या सारखे कितीतरी रे आले गेले

युद्ध जिंकुनी पुन्हा एकदा करू सोहळा

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 3 ☆ जाऊ नकाचं तुम्ही ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण  कविता “जाऊ नकाचं तुम्ही“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 3 ☆

☆ कविता – जाऊ नकाचं तुम्ही☆ 

ओठात थांबलेल्या शब्दात गुंतलो मी

ती नजर मजशी सांगे जाऊ नकाचं तुम्ही

 

झाकोळल्या दिशा अन् मेघगर्जनांनी

संध्या ती मजशी सांगे जाऊ नकाचं तुम्ही

 

रात्रीत काजव्याचे स्वर कर्णकटू कानी

ती रजनी मजशी सांगे जाऊ नकाचं तुम्ही

 

सरता गं मध्यरात्र बोझील पापण्यांनी

ती निशा मजशी सांगे जाऊ नकाचं तुम्ही

 

सुटला पहाटवारा प्रीत बांधली ही कोणी

ती उषा मजशी सांगे जाऊ नकाचं तुम्ही.

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ बंधने ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है एक अप्रतिम रचना  “बंधने )

 

 ☆  बंधने ☆

 

वृत्त –स्त्रग्विणी

लगावली – गालगा गालगा गालगा गालगा

 

माणसे का अशी ? , तोडती बंधने

वागणे स्वैर ते…. खोलती बंधने.

 

पाकळ्या जाहल्या,  गंध वेडी मने

बोलकी वेदना. . .  सोलती बंधने .

 

वाजते बासरी, आठवे राधिका .

प्रेम शब्दासही. . . तोलती बंधने.

 

मोह मायेपरी, जीव जाई फुका

पोर ही आपली  बोलती बंधने .

 

वेचले दुःख मी, वाचली माणसे

वाट का वाटते ,  टोकती बंधने ?

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 38 – कर्जमाफी…… ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है  उनकी एक भावप्रवण  एवं संवेदनशील  कविता “कर्जमाफी…”।   यह अकेली चिड़िया जीवन के  कटु सत्य को  अकेली अनुभव करती है , साथ ही अपने बच्चों को स्वतंत्र आकाश में उड़ते देखकर उतनी ही प्रसन्न भी होती है। यह कविता हमें और हमारे अंतर्मन को झकझोर कर रख देती है। कल्पना करिये जब कृषक आत्महत्या कर लेता है और कृषक के पुत्र को देवघर में लिखी चिट्ठी मिलती है तो पुत्र पर क्या गुजरती होगी। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #38☆ 

☆ कर्जमाफी… ☆ 

बाबा तू जाण्याआधी

एका चिठ्ठीत लिहून

ठेवलं होतंस

मी देवाघरी जातोय म्हणून.. .

पण..

आम्हाला असं ..

वा-यावर सोडून

तो देव तरी तुला

त्याच्या घरात घेईल का…?

पण बाबा तू. . .

काळजी करू नकोस

त्या देवाने जरी तुला त्याच्या

घरात नाही घेतलं ना तरी

तू तुझ्या कष्टाने उभ्या केलेल्या

ह्या घरात तू

कधीही येऊ शकतोस

कारण .. . बाबा

आम्हाला कर्ज माफी नको होती

आम्हाला तू हवा होतास …!

आम्हाला तू हवा होतास …!

 

© सुजित कदम, पुणे

7276282626

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 41 – या अज्ञात प्रदेशात….  ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  आपकी एक अत्यंत भावपूर्ण कविता “या अज्ञात प्रदेशात…. ।  मैं विस्मित हूँ और निःशब्द भी । एक अतिसंवेदनशील  एवं परिपक्व कवि की अंतरात्मा की  बेबाक प्रतिध्वनि है यह कविता। वह जब अपने रचनाशील संसार में आत्ममुग्ध हो कर  सृजन कार्य में  लिप्त रहता है, तो वास्तव में एक अज्ञात प्रदेश में ही रहता है।  वह वरिष्ठतम रचनाकारों की तुलना में  अपने अस्तित्व और सीमाओं को समझते हुए  अपने अस्तित्व के किसी  एक कोने को  थामने का प्रयास करता है जो पकड़ से छूटता जाता है। अप्रतिम रचना। इस अतिसुन्दर  एवं भावप्रवण  कविता के लिए  वे बधाई की पात्र हैं। उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 41 ☆

☆ या अज्ञात प्रदेशात…. ☆ 

 

एका  अज्ञात प्रदेशात वावरते  आहे..

वर्षानुवर्षे….. इथली भाषा मला  आवगत नाही….

मी साधू शकत नाही संवाद….

इथल्या कुणाशी च …..

मी माणूस  आहे म्हणून….

मन.. शरीर..भावना….

आणि कवी असल्यामुळे..

जरा जास्तच संवेदनशीलता….

षड्रिपू ही वास करताहेत…

माझ्या शरीरात….

शरीराला बहुधा म्हातारपणाचा शाप…

 

धसकायलाच होतं हल्ली…

दीर्घायुषी माणसं पाहून…

 

मी कुणी  कुडमुडी कवयित्री नाही,

निश्चितच….

पण बालकवी,साने गुरुजीं सारखी महान ही नाही….

मी लिहू ही शकत नाही त्यांच्या सारखं  आणि घेऊही शकत नाही निर्णय इतके धाडसी…..

 

खसखशी एवढे अस्तित्व संपूनही जात नाही चुटकी सरशी!

 

उगाचच लांबत रहातं आयुष्य…..

एक प्रचंड मोठं ओझं वागवीत….

चालत रहाते……

या अज्ञात प्रदेशात…

माझ्या अस्तित्वाच्या कुठल्या च खुणा सापडत नाहीत..

मी खणत रहाते….खणत रहाते खणतच रहाते…

 

एखाद्या शापित  आत्म्यासारखी…..

भू तलावरच्या या अज्ञात प्रदेशात…..

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ कोरोना ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज  प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक कविता  “कोरोना।)

☆ कोरोना ☆

चार हात दूर होता

माझ्या पासून कोरोना

घाबरलो होतो मीही

मला म्हणाला डरो ना

 

धाडसाने विचारले

आला कशाला इकडं

काय करणार आहे

तू रे आमचं वाकडं

 

खाद्य खेळणी चीनची

असतात जीवघेणी

मरताय थोडे थोडे

लक्ष देता का रे कोणी

 

मीही तिथली उपज

टाकायला आलो फासे

मला पाहून कशाला

घाबरता तुम्ही असे

 

आलो आहे शिकवाया

स्वच्छतेचा परिपाठ

नका घाबरून जाऊ

फक्त रहा धष्टपुष्ट

 

अपघात जुलाबाने

रोज मरतात लोक

माझ्या एकट्याचा नाही

येथे तुम्हाला रे धाक

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 42 ☆ पुन्हा नव्याने ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता “पुन्हा नव्याने ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 42 ☆

☆ पुन्हा नव्याने  ☆

 

जगतो आहे मरण रोजचे

दुःख पाहुणे कुण्या गावचे

 

सरणालाही पैसा नाही

टाळूया का मरण आजचे ?

 

शीतल सरिता सोबत असता

वाळवंट हे तप्त काठचे

 

मुरू लागल्या कच्च्या कैऱ्या

जीवनानुभव हेच लोणचे

 

निसर्ग लाभो देहाला या

तक्के, गाद्या नको फोमचे

 

पुन्हा नव्याने दुःख भेटता

जीवन वाटे बरे कालचे

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 39 – निसर्ग माझा मित्र ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  प्रकृति / पर्यावरण पर आधारित आपकी एक अतिसुन्दर कविता   “निसर्ग माझा मित्र”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 39 ☆ 

 ☆ निसर्ग माझा मित्र 

शेतकरी राजा असे

काळ्या आईचा सुपुत्र ।

मदतीचा हात हाती

हा निसर्ग माझा मित्र।

 

नदी डोंगर, सागर,

शेती रुपं त्याची न्यारी।

जीव भरण पोषणा,

नित्य सजलेली सारी।

 

चंद्र, सूर्य, तारांगण

सज्ज हिच्या स्वागताला।

सोनसळी किरणांनी

उभा देह  सजलेला।

 

बरसती जलधारा

जादूगिरी निसर्गाची।

उजवते कूस त्याने

माझ्या माय माऊलीची।

 

सुवर्णाचे दान देई

जगा वसुंधरा माता।

सोडू हव्यासाची साथ

तिची जपून अस्मिता।

 

गती जीवन चक्राची

आम्ही सुरळीत करू।

विश्वात्मक दृष्टी नवी

मनी अविरत स्मरू।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 2 – चांदण्यांची पाखरं ☆ ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण  कविता “चांदण्यांची पाखरं“.) 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 2 ☆

☆ कविता – चांदण्यांची पाखरं ☆ 

 

चांदण्यांचे  पाय आभाळात ढगांनी बांधले

अवसेच्या चांदोबाचे डोळे झाले आंधळे

 

रात्रीच्या अंधारात गांधारी वसे

झाकलेल्या पापण्यांना सारं काही दिसे

 

रिमझिम पावसाची चादर पांघरली

मातीच्या सुगंधात धरती नहाली

 

स्वप्नांची आरास मुग्ध हसे गाली

धुक्यामध्ये लुप्त झाली प-यांच्या महाली

 

पहाटेच्या वा-याला जाग जशी आली

चांदण्यांची पाखरं भुर्र उडून गेली.

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

Please share your Post !

Shares
image_print