मराठी साहित्य ☆ दीपावली विशेष ☆ नर्क चतुर्दशी ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं । 

(इस  दीपावली  के पवन पर्व पर कविराज विजय जी  ने  अष्टाक्षरी विधा में छह विशेष कविताओं की रचना की है।   उनमें से दो कवितायेँ  (1) वसुबारस  (2) धेनू  पूजा” आप पढ़ चुके हैं । आज प्रस्तुत हैं  अन्य दो सामयिक कवितायेँ  (1)  आली धन त्रयोदशी.. . ! (2)  नर्क चतुर्दशी . शेष कवितायेँ  समय समय  पर प्रकाशित करेंगे। कुछ कविताओं के प्रकाशन में विलम्ब के लिए खेद है। आपसे अनुरोध है कि आप इन कविताओं को इस दीपोत्सव पर आत्मसात कर  ह्रदय से स्वीकार करें। दीपोत्सव पर्व पर हृदय से  हार्दिक शुभकामनाओं सहित )

 

☆ दीपावली विशेष – नर्क चतुर्दशी ☆

*अष्टाक्षरी*

वध नरकासुराचा

आली वद्य चतुर्दशी .

पहाटेचे शाही स्नान

मांगलिक चतुर्दशी. . . . . !

 

अपमृत्यू टाळण्याला

करू यमाला तर्पण.

अभ्यंगाने प्रासादिक

करू क्लेष समर्पण. . . . !

 

नारी मुक्ती आख्यायिका

आनंदाची रोजनिशी

फराळाच्या आस्वादाने

सजे नर्क चतुर्दशी. . . . . !

 

एकत्रित मिलनाची

लाभे पर्वणी अवीट

गळाभेट घेऊनीया

जागवूया स्नेहप्रीत.. . . !

 

रोषणाई, फटाक्याने

होई साजरा  उत्सव.

दारी नाचे दीपावली

मनोमनी दीपोत्सव. . . . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य ☆ दीपावली विशेष ☆ आली धन त्रयोदशी.. . ! ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं । 

(इस  दीपावली  के पवन पर्व पर कविराज विजय जी  ने  अष्टाक्षरी विधा में छह विशेष कविताओं की रचना की है।   उनमें से दो कवितायेँ  (1) वसुबारस  (2) धेनू  पूजा” आप पढ़ चुके हैं । आज प्रस्तुत हैं  अन्य दो सामयिक कवितायेँ  (1)  आली धन त्रयोदशी.. . ! (2)  नर्क चतुर्दशी . शेष कवितायेँ  समय समय  पर प्रकाशित करेंगे। कुछ कविताओं के प्रकाशन में विलम्ब के लिए खेद है। आपसे अनुरोध है कि आप इन कविताओं को इस दीपोत्सव पर आत्मसात कर  ह्रदय से स्वीकार करें। दीपोत्सव पर्व पर हृदय से  हार्दिक शुभकामनाओं सहित )

 

☆ दीपावली विशेष – आली धन त्रयोदशी.. . !

*अष्टाक्षरी*

 

दीपावली सणवार

अश्विनाची  त्रयोदशी

निरामय  आरोग्याची

आली धन त्रयोदशी.. . !

 

आरोग्याची धनवर्षा

वैद्य धन्वंतरी स्मरू

दान मागू आरोग्याचे

प्रकाशाची वाट धरू. . . . !

 

लावू कणकेचा दिवा

करू यम दीपदान

लाभो मनी समाधान

मागू आयुष्याचे दान . .. . . !

 

तन, मन, आणि धन

यांचे वरदान नवे .

धन त्रयोदशी दिनी

स्नान अभ्यंगाचे हवे.. . . !

 

धन, धान्य, आरोग्याने

घरदार सजलेले .

सुखी,  समृद्ध जीवन

अंतरात नटलेले.. . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होत आहे रे # 11 ☆ चिंतामणी चारोळी ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है. श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ”  की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  उनकी कविता चिंतामणी चारोळी जो श्री गणेश जी  का प्रासादिक वर्णन किया गया है।  श्रीमती उर्मिला जी को ऐसी सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई. )

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 11 ☆

☆ चिंतामणी चारोळी ☆

(माझ्या “चिंतामणी चारोळी “संग्रहातील श्रीगणेशाचे प्रासादिक वर्णन करणाऱ्या न ऊ चारोळ्या)

पंच जगदीश्वरांच्या

पहा अनुग्रहास्तव

प्रकटले श्रीगणेश

श्रेष्ठतम मोरगाव !!१!!

 

श्रीगणेश सार्वभौम

असे वर्णिली देवता

स्तुती अखंड करुनी

पावते गणेश भक्ता !!२!!

 

सीता शोध घेण्यासाठी

रामे दण्डकारण्यात

भालचंद्रा प्रार्थियेले

लक्षुमणा समवेत !!३!!

 

सिद्धाश्रम परभणी

गणेश गुरुपीठत्व

नाम असे ते प्रसिद्ध

गोदावरी तीरी सत्व!!४!!

 

ओझरास विघ्नासुरा

गणेशाने संहारिले

असे त्या विघ्नेश्वरास

सार्वभौम गौरविले !!५!!

 

पाच भूमिका चित्ताच्या

करणारा चिंतामणी

ब्रह्मदेवे दिला हार

म्हणूनिया चिंतामणी!!६!!

 

ढुंढिराज काशीक्षेत्र

सोळा कला अधिपती

आद्य दैवत हिंदूंचे

कार्यारंभी पूजीताती !!७!!

 

हेळवीचा श्रीगणेश

तो प्रसिद्ध कोकणात

रुप ॐकार प्रधान

मान विशेष देशात !!८!!

 

स्वायंभूव गणेशाचे

अक्रा गणेश प्रकार

क्षेत्र स्तुती ही वेदांत

चिंता तो हरविणार !!९!!

 

©®उर्मिला इंगळे

दि.२१-१०-१९

!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु!!

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मराठी साहित्य – समाजपारावरून साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ पुष्प विसावा # 20 ☆ दीपावली विशेष – (1) वसुबारस  (2) धेनू  पूजा ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं ।  इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से वे किसी न किसी सामाजिक  अव्यवस्था के बारे में चर्चा करते हैं एवं हमें उसके निदान के लिए भी प्रेरित करते हैं।  आज प्रस्तुत है दीपावली के विशेष पर्व पर  श्री विजय जी  की  दो  सामयिक कवितायेँ   “ (1) वसुबारस  (2) धेनू  पूजा”।  आप प्रत्येक शुक्रवार को उनके मानवीय संवेदना के सकारात्मक साहित्य को पढ़ सकेंगे।  )

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ –समाज पारावरून – पुष्प विसावा# 20 ☆

☆ दीपावली विशेष – (1) वसुबारस  (2) धेनू  पूजा ☆

 

☆ एक –  वसुबारस ☆

*अष्टाक्षरी*

वद्य  अश्विनी बारस

सुरू झाली दिपावली

धेनू माय पूजनाने

नेत्रकडा पाणावली.. . !

 

वसू बारसेचा दिनू

गाय वासराचा थाट

पुजेसाठी सजविले

औक्षणाचे न्यारे ताट. . . !

 

उदारता,  प्रसन्नता

आणि चित्तात शांतता

गाय वासराचे गुण

लाभो सौख्य सफलता . . . !

 

गोमातेची पाद्यपूजा

ईश्वराची घडे सेवा.

दान द्याया शिकविते

देई दुग्धामृत मेवा. . . . . !

 

कामधेनू निजरूप

मनोभावे पूजियेली

अशी आनंद निधान

दीपावली आरंभिली.. . !

☆ दोन धेनू  पूजा ☆

*चाराक्षरी*

अश्विनात

बारसेला

धेनू पूजा

सण केला.. . !

 

वासराचा

थाटमाट

औक्षणाचे

न्यारे ताट

 

कामधेनू

निजरूप

गोमाता ही

ईश रूप. . . . !

 

गोपूजनी

घडे सेवा

दुग्धामृत

देई मेवा. . . . !

 

दान द्याया

शिकविते

धेनू माय

जगविते.. . . !

 

प्रसन्नता

उदारता

धेनू दावी

वात्सल्यता.. . !

 

मनोभावे

पूजियेली

आरंभात

पूजा केली. . !

 

पाद्यपूजा

गोमातेची

ईशकृपा

देवतेची.. !

 

आनंदल्या

लेकी बाळी

फराळाची

मांदियाळी. . . . !

 

दीपावली

जोरदार

धेनू पूजा

सौख्याधार.. . . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 20 – चांदणे ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी पुरानी डायरी से  सत्रह वर्ष पूर्व हृदय में उपजी एक कविता  “चांदणे” मात्र  सितारों के गाँव में चन्द्रमा के जन्म और चाँदनी बिखेरने की ही गाथा नहीं है अपितु, सुश्री प्रभा जी के संस्मरणों की गाथा में  अंधकार में उपजे चन्द्रमा के प्रकाश  का एक अंश  प्रतीत होता है.  निःसंदेह जीवन के कितने भी वर्षों पूर्व लिखी रचना उन वर्षों की स्मृति के साथ जुडी कई गाथाएं अपने आप अंतर्मन में कह जाती हैं .सुश्री प्रभा जी की कवितायें इतनी हृदयस्पर्शी होती हैं कि- कलम उनकी सम्माननीय रचनाओं पर या तो लिखे बिना बढ़ नहीं पाती अथवा निःशब्द हो जाती हैं। सुश्री प्रभा जी की कलम को पुनः नमन।

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि  आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 20 ☆

 

☆ चांदणे ☆

 

मध्यरात्री जन्मताना घेऊन आले चांदणे

गर्द काळ्या त्या तमाला भेदून  आले चांदणे

 

जन्म जेथे जाहला त्या गावात माझा चांदवा

त्याच गावी  आठवांचे ठेवून आले चांदणे

 

ती किशोरी धीट स्वप्ने गंधाळली तेजाळली

मी दुपारी तप्त सूर्या देवून आले चांदणे

 

नेहमी मी मोह फसवे हेटाळले या जीवनी

संशायाचे बीज का हो पेरून आले  चांदणे

 

दूषणे सा-या जगाची सोसून मी तारांगणी

पौर्णिमेने ढाळलेले वेचून  आले चांदणे

 

जीवनाचे गीत गाता आसावरी झंकारली

आर्ततेचे सूर सारे छेडून  आले चांदणे

 

तारकांचा गाव  आता देतो “प्रभा” आमंत्रणे

शुभ्र साध्या भावनांचे  लेवून  आले चांदणे

 

© प्रभा सोनवणे,  

(सतरा वर्षापूर्वी ची रचनाआहे. मध्यरात्री सुचलेली)

 

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #21 – माझा परिचय ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  “माझा परिचय”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 21 ☆

 

☆ माझा परिचय ☆

 

प्रदूषणाने घटे तुझे वय

मी वनवासी नसे मला भय

 

ताड माड हे माझे स्वामी

सांगतील ते माझा परिचय

 

त्यांच्या चरणी सेवा माझी

मिळे सावली नाही संशय

 

वृक्ष वल्लरी सखे सोयरे

त्यांचे माझे नाते अक्षय

 

कसे जगावे वृक्ष सांगती

पानोपानी हिरवा आशय

 

फळा-फुलांची ही वनराई

त्यांची कत्तल तुझा पराजय

 

निसर्ग करतो वृक्षारोपण

नाही फोटो नाही अभिनय

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #-19 – मनकवडा ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  मानवीय रिश्तों पर आधारित  चारोळी विधा में  रचित एक भावप्रवण कविता  – “मनकवडा। )

 

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #- 19☆ 

 

 ☆ मनकवडा  ☆

 

भाव माझा भाबडा, देव तू रे  मनकवडा ।

न मागताच देशी मला हा योग केवाढा।।धृ।।

 

शाशू वायी मी अजाण, स्वछंदी असे मन।

क्रिडेमधे बालपण , भले बुरे नसे ज्ञान।

किशोरवयी गाजवती मित्र पगडा।।१।।

 

तरुणपण लागताच, तरंगलो मी हवेत।

वाटे मज घ्यावे जणू , जग सारे हे कवेत।

स्वप्न रंगी रंगलो मी प्रेम वेडा।।२।।

 

संसाराची धुंदी चडे, बायका मुले चोहिकडे।

होस मौज भागेना , हे मजशी कोडे।

स्वार्थासाठी होई कसा मार्ग वाकडा।।३।।

 

वृद्धपणी दीनवानी, दुःखाचा मी होता धनी।

संसारी हो कुचकामी,  तत्त्वज्ञान जागे मनी।

सांग कुठे शोधू तुला, हा मार्ग  तोकडा।।४।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ मी_माझी – #24 – ☆ अपेक्षा ☆ – सुश्री आरूशी दाते

सुश्री आरूशी दाते

 

(प्रस्तुत है  सुश्री आरूशी दाते जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “मी _माझी “ शृंखला की अगली कड़ी अपेक्षा .  सुश्री आरूशी जी  के आलेख मानवीय रिश्तों  को भावनात्मक रूप से जोड़ते  हैं.  सुश्री आरुशी के आलेख पढ़ते-पढ़ते उनके पात्रों को  हम अनायास ही अपने जीवन से जुड़ी घटनाओं से जोड़ने लगते हैं और उनमें खो जाते हैं।  यह मानव जीवन में संभव ही नहीं है कि कोई किसी से अपेक्षा न रखे. जबकि हम जानते हैं और स्वीकार भी करते हैं की किसी से अपेक्षा मत रखो. यदि हम अपेक्षा नहीं रखेंगे और कुछ पा जायेंगे तो अत्यंत प्रसन्नता होगी और यदि अपेक्षानुरूप कुछ न पा सकेंगे तो कष्ट होगा. फिर भी अपेक्षा रखना मानवीय स्वभाव ही है.  सुश्रीआरुशी जी के संक्षिप्त एवं सार्थकआलेखों  तथा काव्याभिव्यक्ति का कोई सानी नहीं।  उनकी लेखनी को नमन। इस शृंखला की कड़ियाँ आप आगामी प्रत्येक रविवार को पढ़  सकेंगे।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मी_माझी – #24 ☆

 

☆ अपेक्षा ☆

 

ह्या शब्दाचा नक्की काय अर्थ असेल?

बऱ्याच वेळा एखाद्या प्रश्नाने सुरुवात केली की मग उत्तराचा मागोवा घेत असताना खूप गोष्टी विचार करायला लावतात, नाही !

म्हटलं तर अतिशय सोप्पा आणि म्हटलं तर फार खोल अर्थ दडलेला आहे…

प्रत्येक नाते संबंधांमध्ये पुरून उरलेला… नात्यातील एक अनिवार्य घटक असं म्हटलं तर अतिशयोक्ती होऊ नये… हे आयुष्य, देणे आणि घेणे ह्या व्यावहारिक तत्वावर चालत असताना अपेक्षा निर्माण होणं हा मनुष्याचा स्थायी भाव आहे…

निर्व्याज प्रेमाची संकल्पना कितीही भावली तरी कधी ना कधी ह्या अपेक्षा रूपी साधनांमुळे निर्व्याज प्रेमाला तडा जातो… मग त्यातून अपेक्षाभंगाला सामोरे जावे लागणे, ह्या सारखे दुःख फार बोचरे असते… तरीही माणूस त्याच गुंत्यात अडकलेला असतो… कुठे तरी ती सुप्त भावना असतेच ना, की आपल्याला जे हवे ते मिळेल… पण मग कधी कधी नशीब आपली खेळी खेळून अनेक गोष्टी हिरावरून नेते तर कधी आपणच अव्वा च्या सव्वा अपेक्षांनी स्वतःला दुःखाचा दरीत ढकलून देतो…

नशिबाने साथ दिली तर उत्तमच, सगळंच आपल्याला हवं तसं घडेल, पण जर तसं घडलं नाही, आणि आपली अपेक्षा अपूर्ण राहिली तर काय? त्याला सामोरे कसे जाणार, हा विचार बऱ्याचवेळा अपेक्षाभंगानंतर येतो आणि तेव्हा हातातून बऱ्याच गोष्टी निसटून गेलेल्या असतात… खरं तर, एखाद्या व्यक्तीकडून अपेक्षा ठेवण हे योग्य की अयोग्य हे व्यक्तिसापेक्ष असलं तरी अपूर्ण अपेक्षांनाबरोबरही जमवून घेता आलं पाहिजे, ह्याचा खूप उपयोग होईल. पण त्यासाठी बऱ्याच वेळा भावनिक न होता थोडा प्रॅक्टिकल विचार करणं गरजेचं आहे… गुंता सुटला नाही तरी गुंता अजून वाढत जाणार नाही ह्याची खात्री आहे…

-आरुशी दाते

 

© आरुशी दाते, पुणे

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होत आहे रे # 10 ☆ श्रीदासबोधाची  शिकवण ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है. श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ”  की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  उनकी कविता श्रीदासबोधाची  शिकवण जो श्री दासबोध की शिक्षा पर आधारित है. यह शिक्षा सामजिक सरोकार से सम्बन्ध रखती है एवं सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ समाज के सर्वांगीण उत्थान की प्रेरणा देती है. श्रीमती उर्मिला जी को ऐसी सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई. )

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 10 ☆

 

☆ श्रीदासबोधाची  शिकवण ☆

 

श्रीरामाचा मंत्र जपोनि करुया शुद्धी चित्ताची  !

चला मुलांनो शिकवण घेऊ आपण दासबोधाची !!धृ.!!

 

धर्म भ्रष्टण्या काळ ठाकला !

उसळतसे हैवान पहा!

देव धर्म भगिनी मातांचा ,

विध्वंस मांडला कसा पहा !!

दुष्कृत्याच्या प्रतिकारास्तव कास धरुन हनुमंताची !!१!!

चला मुलांनो शिकवण घेऊ आपण दासबोधाची !!१!!

 

बुद्धी बलाच्या संगमताने

कुविचारांचा ऱ्हास करु

सुविचारांची करु पेरणी

सद्भावांना हाती धरु!

वाढवू शक्ती ऐक्याची !

संघटना करु नीतिची!!२!!

चला मुलांनो शिकवण घेऊ आपण दासबोधाची!!२!!

 

शिक्षणाच्या पवित्र क्षेत्री!

लुडबुड लबाड लांडग्यांची !

ज्ञानयज्ञातही सत्ता चाले!

राजकारणी धनदांडग्यांची!

उभे ठाकूया तोंड द्यावया

असल्या पढतमूर्खांची !!३!!

चला मुलांनो शिकवण घेऊ आपण दासबोधाची!!३!!

 

शिकवू मुलगी करु हुषार !

दुबळी मुळी नच ती राहणार !

स्वाभीमानाचा करुनीजागर !

हिंमत तिची वाढवणार!

स्वसंरक्षाणास्तव स्वयंसिद्धा ती होणार !

सुवर्ण पदके जिंकून आणून!

होई देशाची ती शान !

होई देशाची ती शान !!४!!

 

श्रीरामाचा मंत्र जपोनि !

करुया शुद्धी चित्ताची!

चला मुलांनो शिकवण घेऊ आपण दासबोधाची!!

आपण दासबोधाची!!

 

“जय जय रघुवीर समर्थ “!

©®
उर्मिला इंगळे
!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु !!

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य # 19 – अंधार  ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है! अंधकार में प्रकाश की एक किरण ही काफी है हमारे अंतर्मन में आशा की किरण जगाने के लिए.  इस कविता अंधार  के लिए पुनः श्री सुजित कदम जी को बधाई. )

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #19☆ 

 

☆ अंधार  ☆ 

 

अंधार

माझ्या अंतर्मनात रूजलेला

खोल श्वासात भिनलेला

नसानसात वाहणारा

दारा बाहेर थांबलेला

चार भिंतीत कोडलेला

शांत, भयाण

भुकेलेल्या पिशाच्चा सारखा

पायांच्या नखां पासून केसां पर्यंत

सामावून गेला आहे माझ्यात

आणि बनवू पहात आहे मला

त्याच्याच जगण्याचा

एक भाग म्हणून जोपर्यंत

त्याचे अस्तित्व माझ्या नसानसात

भिनले आहे तोपर्यंत

आणि

जोपर्यंत माझ्या डोळ्यांतून एखादा

प्रकाश झोत माझ्या देहात

प्रवेश करून माझ्या अंतर्मनात

पसरलेला हा अंधार झिडकारून

लावत नाही तोपर्यंत

हा अंधार असाच राहील

एका बंद काजळाच्या डबी सारखा

आतल्या आत गड्द काळा मिट्ट अंधार

एका प्रकाश झोताची वाट पहात

अगदी शेवट पर्यंत…!

 

© सुजित कदम, पुणे

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