मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #25 – उध्वस्त जगणे ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक  भावप्रवण कविता  “उध्वस्त जगणे ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 25 ☆

 

☆ उध्वस्त जगणे ☆

 

कुर्बान जिस्म जाँ ये मेरी यहाँ वतन पर

 

जे लिहावे वाटले ते, मी लिहू शकलो कुठे ?

आशयाच्या दर्पणातुन, मी खरा दिसलो कुठे

 

कायद्याच्या चौकटीचे, दार मी ठोठावले

आंधळ्या न्यायापुढे या, सांग मी टिकलो कुठे ?

 

मी सुनामी वादळांना, भीक नाही घातली

जाहले उध्वस्त जगणे, मी तरी खचलो कुठे

 

गजल का नाराज आहे, शेवटी कळले मला

जीवनाच्या अनुभवाला, मी खरा भिडलो कुठे

 

एवढ्यासाठीच माझी, जिंदगी रागावली

मी व्यथेसाठी जगाच्या, या इथे झटलो कुठे

 

टाकले वाळीत का हे, सत्य माझे लोक हो

सांग ना दुनिये मला तू, मी इथे चुकलो कुठे

 

सरण माझे पेटताना, शेवटी कळले मला

जगुनही मेलो खरा मी, मरुनही जगलो कुठे

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #- 24 – स्त्री अभिव्यक्ती ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  शिक्षिका के कलम से एक भावप्रवण कविता / गीत  – “स्त्री अभिव्यक्ती। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 24 ☆ 

 

 ☆ स्त्री अभिव्यक्ती ☆

 

अभिव्याक्तीच्या  नावावरती, उगाच वायफळ बोंबा  हो।

चढणारीचा पाय ओढता, उगा कशाला थांबा हो।

जी sssजी र जी

माझ्या राजा तू रं माझ्या  सर्जा तू रं  ssss.।।धृ।।

 

गर्भामधी कळी वाढते, प्राण जणू तो आईची।

वंशाला हवाच दीपक , एक चालेना बाईची।

काळजास सूरी लावूनी, स्री मुक्तीचा टेंभा हो।।

जी जी रं जी…,।।१।।

 

आरक्षण दावून गाजर, निवडून येता बाई हो।

सहीचाच तो हक्क तिला,अन् स्वार्थ साधती बापे हो।

संविधानाची पायमल्ली की, स्री हाक्काची शोभा हो।

जी जी रं जी….।।३।।

 

स्री अभिव्यक्ती बाण विषारी,घायाळ झाले बापे ग।

सांग साजणी कशी रुचावी ,स्त्रीमुक्तीची नांदी ग।

कणखर बाणा सदा वसू द्या , नको भुलू या ढोंगा हो।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य # 23 – पान हिरवे… ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है!  आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर कविता पान हिरवे…  )

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #23☆ 

 

☆  पान हिरवे… ☆ 

 

पान हिरवे झाडाचे

वा-यासंगे गाते गाणे

शिवाराच्या त्या मातीला

भेटायाचे पान म्हणे. . . . !

 

जाते बोलून मनीचे

झाड  बिचारे  ऐकते

ऊन वा-याचे तडाखे

बळ झुंजायाचे देते. .. . !

 

स्वप्न पाहण्यात दंग

पान हिरवे झाडाचे

वयानूरुप सरले

गूढ गुपित पानाचे. . . . . !

 

हळदीच्या रंगामध्ये

पान हिरवे नाहते

सोन पिवळ्या रंगात

रूप त्याचे पालटते. . . . !

 

झाडालाही हुरहुर

पान पिवळे होताना

रंग हिरवा देठात

मातीमध्ये पडताना. . . . !

 

© सुजित कदम, पुणे

7276282626

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 24 – उत्तरायण ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी एक कविता  “उत्तरायण.  जीवन के उत्तरार्ध  में रुक कर भी भला कोई कैसे अपने जीवन पर उपन्यास लिख सकता है।  सुश्री प्रभा जी की कविता जीवन के उत्तरायण में  सहज ही पाप-पुण्य, काल के सर्प  के दंश और भी जीवन के कई भयावह पन्नों से रूबरू कराती है।  सुश्री प्रभा जी की कवितायें इतनी हृदयस्पर्शी होती हैं कि- कलम उनकी सम्माननीय रचनाओं पर या तो लिखे बिना बढ़ नहीं पाती अथवा निःशब्द हो जाती हैं। सुश्री प्रभा जी की कलम को पुनः नमन।

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 24 ☆

☆ उत्तरायण ☆ 

 

माहीत नाही यापुढचं

आयुष्य कसं असेल?

वय उतरणीला लागल्यावर

आठवतात

तारुण्यातले अवघड घाट

वळण-वळसे…

स्वप्नवत्‌ फुलपंखी

अभिमंत्रित वाटा…

 

ठरवून थोडीच लिहिता येते

आयुष्याची कादंबरी?

काय चूक आणि काय बरोबर

हेही कळेनासं होतं

काळाच्या निबिड अरण्यातले सर्प

भिववतात मनाला

कुठल्या पाप-पुण्याचा

हिशेब मागेल काळ

मनात फुलू पाहताहेत

आजही कमळकळ्या

त्या उमलू द्यायच्या की

करायचं पुन्हा परत

भ्रूणहत्येचं पाप?

की निरीच्छ होऊन

उतरायचं नर्मदामैय्येत

मगरमत्स्यांचं भक्ष्य होण्यासाठी ?

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #- 23 – कॉपी ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  शिक्षिका के कलम से एक भावप्रवण कविता  – “कॉपी। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 23☆ 

 

 ☆ कॉपी ☆

 

कॉपी मुक्त शिक्षणाची

आज मांडली से थट्टा ।

पेपर फुटीला ऊधान

लावी गुणवत्तेला बट्टा।

 

गरिबाचं पोरं  वेडं

दिनरात अभ्यासानं।

ऐनवेळी रोवी झेंडा

गठ्ठेवाला धनवान ।

 

सार्‍या शिक्षणाचा सार

गुण   सांगती शंभर।

चाकरीत  बिरबल

सत्ताधारी अकबर।

 

कॉपी पुरता अभ्यास

चार दिवसाचे सत्र।

ठरविते गुणवत्ता

गुणहीन  गुणपत्र।

 

उन्नतीस खीळ घाली

कॉपी नामक वळंबा।

नाणे पारखावे जसे

राजे शिवाजी नि संभा।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ मी_माझी – #28 – ☆ शिक्षण ☆ – सुश्री आरूशी दाते

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मराठी साहित्य – ☆ “शिरीष पै” यांच्या 15 नोव्हेम्बर वाढदिवस निमित्त ☆ काव्यांजलि ☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर

शिरीष पै” यांच्या 15 नोव्हेम्बर वाढदिवस निमित्त

सुश्री स्वपना अमृतकर

ई-अभिव्यक्ति की ओर से स्वर्गीय शिरीष व्यंकटेश पै जी को सादर नमन।

प्रख्यात मराठी कवी, लेखिका और नाटककार स्वर्गीय शिरीष व्यंकटेश पै जी आचार्य अत्रे जी की पुत्री थी।  उनका  जन्म 15 नवम्बर 1924 को हुआ और देहांत 2 सितंबर 2017 को मुंबई में हुआ था।

सुश्री स्वपना अमृतकर जी ने अपनी आदर्श स्व. शिरीष व्यंकटेश पै जी को हायकू विधा में जन्मदिवस पर काव्यांजलि समर्पित की है। सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी के ही  शब्दों में –

ज्येष्ठ हायकूकार स्व. शिरीष पै जी का  का जन्म 15 नवम्बर 1929 को हुआ था।  आदरणीय गुरू माँ हम सबके लिए बहूत सारा महत्वपूर्ण हायकू साहित्य की रचना कर के अनंत यात्रा पर चली गई । उनकी यह हायकू साहित्य की तपस्या, हर एक के लिए प्रेरणादायी बन गई हैं। आज भी उनकी लिखीं हुई पुस्तकें  नये-पुराने हायकू समावेशकों  के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। इनमें प्रमुख हैं :-

१. हे ही हायकू,

२. हे का हायकू,

३. फक्त हायकू

और बहूत सारी हायकू पुस्तके हमे पढ़ने को आज भी मिलती हैं । मुझे काव्य की इस विधा में अभिरुचि का एकमात्र कारण है आदरणीया  “शिरीष पै”  जी का प्रकाशित हायकू साहित्य। उनसे मिलने की इच्छा तो अधूरी रह गई पर उन्होंने हायकू की जो राह दिखाई है, उसमे प्रयास करके चलते रहने की ख्वाहिश जरूर पूरा करने का साहस जुटा रहीं हूँ।  इस अद्भुत काव्य विधा की पहचान बनी आदरणीया “शिरीष पै” जी के लिए उनके जन्मदिन पर मैने अपने शब्दों मे हायकू काव्य विधा में  बधाई देने का एक छोटा सा प्रयास किया है ।

पुढील हायकू स्वरचित काव्यरचना ज्येष्ठ हायकूकार – “शिरीष पै” यांच्या 15 नोव्हेम्बर वाढदिवस निमित्त :

 

☆ “शिरीष पै” यांच्या 15 नोव्हेम्बर वाढदिवस निमित्त ☆

 

काव्यांजलि – शिरीष पै

हायकू :

 

कवी जीवाला
हायकू पायवाट
छंद मनाला ,    १

हायकू ऋतू
निसर्गात जन्मतो
शीळ घालतो ,   २

हायकू काव्य
अल्प शब्द सोहळे
जगावेगळे ,      ३

साथ गुरूंची
लिखाणांतून भासे
वाढ ज्ञानाची ,    ४

पुन्हा नव्याने
हायकूंचे दिवस
ताजेतवाने,       ५

जन्मदिवस
शिरीष पैंचा आज
हर्ष मनांस ,      ६

शुभेच्छांचीच
हायकूची हो खोळ
सदा निर्मळ ,     ७

© स्वप्ना अमृतकर , पुणे

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 15 ☆ आज बाजारात….. ☆ – सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

((सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य  विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं ।  वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की पर्यावरण और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित एक भावप्रवण मराठी कविता  “आज बाजारात…..”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 15 ☆

 

☆ आज बाजारात…..

आज पाहिलं
विजेच्या कडाक्यात
जोरदार पावसात
वादळी वा-यात
जख्खड वृक्ष उन्मळून
कोसळला आज बाजारात
आणि एक गरीब शेतकरी
तत्क्षणी जागीच मेला.

फक्त काही जण गलबलले
काही क्षण रेगांळले
पुन्हा काही क्षणात यथावत
आज बाजारात.
काही लोक सरसावले
त्याच झाडाच्या फांद्या,
ढपल्या तोडण्यात
आज बाजारात.

वर्मी लागलेला
तोच बुंधा उचलून नेला
काही पोटं भरण्यासाठी
काही जीव जगवण्यासाठी
आज बाजारात.
मृत्युच्या कारणाला
घरी नेलं गोळा करून
आज पाहिलं…..
मरण सुध्दा जीव जगवतं
कुणाची अश्रु तर कुणा
जीव देऊन जातं……!!

© सुजाता काळे,

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोब – 9975577684

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 23 – कोजागरी ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी एक कविता  “कोजागरी.  सुश्री प्रभा जी की  इस कविता में  कोजागरी का तात्पर्य शरद पूर्णिमा की कोजागरी  से नहीं अपितु इसे एक उपमा के रूप में लिया गया है। आप इसे संयोग एवं सामयिक कह सकते हैं क्यूंकि आज भी पूर्णिमा है। कार्तिक पूर्णिमा अथवा त्रिपुरारी पूर्णिमा जिस दिन भगवान् शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था जिसके कारण इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है।  सुश्री प्रभा जी ने अपनी सखी  की प्रत्येक क्रिया कलापों को विभिन्न उपमाओं से अलंकृत किया है और उनमे पूर्णिमा के चन्द्रमा का विशेष स्थान है। विभिन्न उपमाएं एवं शब्दों का चयन अद्भुत है। सुश्री प्रभा जी की कवितायें इतनी हृदयस्पर्शी होती हैं कि- कलम उनकी सम्माननीय रचनाओं पर या तो लिखे बिना बढ़ नहीं पाती अथवा निःशब्द हो जाती हैं। सुश्री प्रभा जी की कलम को पुनः नमन।

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 23 ☆

 

☆ कोजागरी ☆ 

 

माझ्या सखीचे बोलणे

कोजागरी चे चांदणे

तिच्या अलवार मनी

सदा प्रीती चे नांदणे

 

तिच्या मनात मनात

एक अथांग सागर

कटू क्षणांवर घाली

सखी मायेची पाखर

 

तिच्या अवघेपणात

एक खानदानी डौल

सोनसळी स्वभावाला

हि-या माणकाचे मोल

 

अशा प्रांजळ नात्याचे

कसे फेडायचे पांग

शुभ्र चांदणरात ती

तिचा मोतियाचा भांग

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #23 – उध्वस्त जगणे ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक  भावप्रवण कविता  “उध्वस्त जगणे”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 23 ☆

 

☆ उध्वस्त जगणे ☆

 

जे लिहावे वाटले ते, मी लिहू शकलो कुठे ?

आशयाच्या दर्पणातुन, मी खरा दिसलो कुठे

 

कायद्याच्या चौकटीचे, दार मी ठोठावले

आंधळ्या न्यायापुढे या, सांग मी टिकलो कुठे ?

 

मी सुनामी वादळांना, भीक नाही घातली

जाहले उध्वस्त जगणे, मी तरी खचलो कुठे

 

गजल का नाराज आहे, शेवटी कळले मला

जीवनाच्या अनुभवाला, मी खरा भिडलो कुठे

 

एवढ्यासाठीच माझी, जिंदगी रागावली

मी व्यथेसाठी जगाच्या, या इथे झटलो कुठे

 

टाकले वाळीत का हे, सत्य माझे लोक हो

सांग ना दुनिये मला तू, मी इथे चुकलो कुठे

 

सरण माझे पेटताना, शेवटी कळले मला

जगुनही मेलो खरा मी, मरुनही जगलो कुठे

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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