मराठी साहित्य – ☆ “शिरीष पै” यांच्या २ सप्टेंबर द्वितीय स्मृतिदिना निमित्त ☆ आदरांजली ☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर

“शिरीष पै” यांच्या २ सप्टेंबर द्वितीय स्मृतिदिना निमित्त

सुश्री स्वपना अमृतकर

 

सुश्री स्वपना अमृतकर जी ने अपनी आदरांजली स्वरूप यह कविता 2 सितंबर को प्रकाशनार्थ प्रेषित किया था किन्तु, कुछ तकनीकी कारणवश हमें समय पर ईमेल प्राप्त न हो सकी जिसका हमें अत्यंत खेद है।

ई-अभिव्यक्ति की ओर से उन्हें सादर श्रद्धांजलि एवं नमन।

प्रख्यात मराठी कवी, लेखिका और नाटककार स्वर्गीय शिरीष व्यंकटेश पै जी आचार्य अत्रे जी की पुत्री थी।  उनका देहांत 2 सितंबर 2017 को मुंबई में हुआ था।

सुश्री स्वपना अमृतकर जी की आदर्श स्व. शिरीष व्यंकटेश पै जी को हायकू विधा में आदरांजली समर्पित है। सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी के शब्दों में –

आज (2 सितंबर 2017) प्रख्यात हायकूकार आदरणीया कै. शिरीष पै जीं का स्मृतिदिन है। मेरी आदर्श हायकूकारा आज के दिन हायकू साहित्य को छोड के चली गयी। इसीलिए मैं मेरी रचना उनको तहे दिले से अर्पण कर रही हूँ।

पुढील हायकू स्वरचित काव्यरचना आदरांजली म्हणून, ज्येष्ठ हायकूकार – “शिरीष पै” यांच्या २ सप्टेंबर द्वितीय स्मृतिदिना निमित्त:

 

☆ “शिरीष पै” यांच्या २ सप्टेंबर द्वितीय स्मृतिदिना निमित्त ☆ आदरांजली ☆

 

काव्याचा वृक्ष

हायकू कवयित्री

ताई शिरीष .. १

 

हायकू काव्य

जपानी ते मराठी

शिखर गाठी .. २

 

लिखाणांतले

सौंर्द्य हायकूतले

त्यांनी शोधले .. ३

 

मराठीतही

हायकूचा प्रयोग

लेखन रोग .. ४

 

न्याय मिळाला

रचना अल्पाक्षरी

साहित्य भारी ..५

 

अर्ध्यांतूनच

वात हायकूतली

संथ विजली .. ६

 

शोकांतिकेत

कालवश ती झाली

देवा भेटली .. ७

 

© स्वप्ना अमृतकर , पुणे

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य # 16 – अक्षरांशी माझ नातं…. ! ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं।  मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ। पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है!  निश्चित ही श्री सुजित  जी इस हृदयस्पर्शी रचना के लिए भी बधाई के पात्र हैं। हमें भविष्य में उनकी ऐसी ही हृदयस्पर्शी कविताओं की अपेक्षा है।  श्री सुजित जी द्वारा  वर्णित कविता  संभवतः प्रत्येक साहित्यकार की कविता है. किसी भी साहित्यकार के लिए शब्दों का सम्बन्ध जन्म जन्मांतर का होता है. फिर अक्षर तो शब्दों की ही इकाई हुई न. अक्षरों से हम सभी का नाता है किन्तु ऐसा सामंजस्य कोई श्री सुजित जी जैसा संवेदनशील कवि ही कर सकता है. प्रस्तुत है श्री सुजित जी की अपनी ही शैली में  हृदयस्पर्शी  कविता   “अक्षरांशी माझ नातं…. !”। )

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #16☆ 

 

☆ अक्षरांशी माझ नातं…. ! ☆ 

 

ब-याच दिवसांनंतर

पुस्तक हातात घेतलं की

मेंदूत धूळ खात पडलेली

अक्षर खडबडून जागी होतात

आणि शोधू लागतात

पुस्तकात दडलेल त्यांचं अस्तित्व

जोपर्यंत.. . .

हातातलं पुस्तक

नजरेआड होत नाही तोपर्यंत.

आणि  . . त्यांनी पुस्तकात

शोधलेल्या त्यांच्या अस्तित्वाने

मी मात्र,

अस्वस्थ होत राहतो,

पुढचे कित्येक दिवस.. . !

शोधत राहतो

अक्षरांशी

असणार माझ नातं. . . . !

सुजित

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 16 – लवंगलता– वृत्त ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी जीवन के अनुभव और सत्य को उजागर करती हुई कविता लवंगलता– वृत्त सुश्री प्रभा जी की प्रत्येक कविता  हमें जीवन के अनुभवों और गूढ़ रहस्यों से रूबरू कराती हैं. उनके सांकेतिक प्रतीक अद्भुत एवं हृदयस्पर्शी हैं.   इस जन्म का लेखा जोखा रखना है और इस जीवन का  सांकेतिक उत्सव  ह्रदय में है.   वास्तव में हम अपने जीवन में  अक्सर  घानी के बैल की भाँति  गृहस्थी -परिवार के एक ही पथ पर चलते रहते हैं .  जीवन में कई क्षण आते हैं जब हमें और कोई पथ सूझता ही नहीं है.  कई क्षण ऐसे भी आते हैं  जब हम वह नहीं पाते हैं जिसकी अपेक्षा करते हैं, हम फूल बोते हैं और कांटे उग आते हैं. जन्म मृत्यु का प्रश्न सदैव अनुत्तरित है और ऐसे कई प्रश्न हैं जिनका कोई उत्तर हमारे पास नहीं है.  फिर कभी वह क्षण भी आता है जब एक चिंगारी  हमें नवजीवन प्रदान करती  है. जैसे -जैसे पढ़ने का अवसर मिल रहा है वैसे-वैसे मैं निःशब्द होता जा रहा हूँ।  यह भी संभव है कि प्रत्येक पाठक कवि के विचारों की विभिन्न व्याख्या करे.   हृदय के उद्गार इतना सहज लिखने के लिए निश्चित ही सुश्री प्रभा जी के साहित्य की गूढ़ता को समझना आवश्यक है। यह  गूढ़ता एक सहज पहेली सी प्रतीत होती है। आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 16 ☆

 

☆ लवंगलता– वृत्त  ☆

 

आयुष्याचा लेखाजोखा मांडायाचा आहे

या जन्माचा सौख्य सोहळा मनात भरुनी राहे

ओंजळ माझी रिक्त राहिली असे आजही वाटे

फुले वाहिली ज्या वाटेवर, तिथे उगवले काटे

 

त्या काट्यांनी बहरुन आल्या इथल्या मळक्या वाटा

रानामधल्या मूक फुलांचा उगाच का बोभाटा

काही केल्या या प्रश्नाचे उत्तर गवसत नाही

पराधीन हे जगणे मरणे, नसे कशाची ग्वाही

 

प्रत्येकाची नवी लढाई, नवा लढाऊ बाणा

माझे जगणे  मात्र  असे की, बैल चालवी घाणा

एकेजागी फिरत राहिले, मार्ग मिळाला नाही

सौख्य जरासे असे लाभले, दिशा मिळाल्या दाही

 

कधी  अचानक ठिणगी मधुनी पेटून उठे ज्वाला

पुन्हा नव्याने एक झळाळी येई आयुष्याला

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #16 – केशराचे गाल ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक सामयिक एवं सार्थक कविता “केशराचे गाल”।)

 

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 16☆

 

?  केशराचे गाल  ?

शुद्ध वाऱ्याच्या सोबती

खेळते हे रानफूल

शहराच्या  धुराड्यात

जाते कोमेजून मूल

 

लता कोवळ्या कानांची

रोज हरवते डूल

सांभाळते परंपरा

गंध देणारे हे कुल

 

अंगा-खांद्यावर पक्षी

करतात किलबिल

झाड रागावत नाही

नाही नाराजीचे बोल

 

गाव छोटसं हे माझं

घरामध्ये जुनी चूल

निखाऱ्यातली भाकर

मला वाटते हो ढाल

 

राजा सर्जाची ही जोडी

त्याची डौलदार चाल

फक्त पोळ्यालाच होते

त्यांच्या कष्टाचे हे मोल

 

किती अंब्याचा झाडाला

सूर्य लगडले गोल

काय सांगू मी महती

त्यांचे केशराचे गाल

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ रंजना जी यांचे साहित्य #-15 – कधी प्रेम माझे समजशील सूर्या ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।  आज  प्रस्तुत है  पृथ्वी , सूर्य एवं प्रकृति के काल्पनिक प्रेम पर आधारित कविता  – “कधी प्रेम माझे समजशील सूर्या। )

 

? साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #- 15? 

 

? कधी प्रेम माझे समजशील सूर्या  ?

(वृत्त- लगावली- लगागा लगागा लगागा लगागा )

युगे लोटली रे फिरावे किती मी।

कधी प्रेम  माझे समजशील सूर्या।

 

कितीदा नव्याने स्मरावे तुला मी

कधी साद हृदयात गुंजेल सूर्या?

 

असे रोज वेळेत येणे नि जाणे।

कधी तू जिवाला रमवशील सूर्या।

 

तुला सावलीचे असे वावडे का?

कधी खेळ खेळात हरशील सूर्या?

 

उगा अट्टहासे किती तापसी रे

तलम प्रेम धागे उसवशील सूर्या ?

 

नको तापवू रे जरा शांत होई।

किती या धरेला ठकवशील सूर्या ?

 

जरी पारदर्शी तुझी कार्य  कीर्ती।

परी डाग दुनियेस  दिसतील सूर्या

 

किती गूज चाले नभी तारकांचे।

खुळे भास त्यांचे पुसशील सूर्या ।

 

©  रंजना मधुकर लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 6 ☆ एक पहाट……… ☆ – सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य  विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं ।  वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की  ऐसी ही एक प्राकृतिक सौंदर्य की विवेचना कराती हुई मराठी कविता  ‘एक पहाट………’।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 6☆

☆ एक पहाट………

 

प्रत्येक अंधार्या रात्रि नंतर,
एक उषाःकाल होत असतो ……

कधी कधी सूर्य ही स्वत: सवे
येताना चन्द्र तारे आणत असतो ….

नक्षत्रानी नटलेले आकाश
आपण फ़क्त पाहत असतो …..

तेजोमय जग होताना आकाश
स्तब्ध होऊंन पाहत असतो ….

 

© सुजाता काळे ✍

पंचगनी, महाराष्ट्र।

9975577684

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 5 ☆ कमलपुष्पौषधी चारोळ्या ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है. श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ”  की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  उनकी  ज्ञानवर्धक कविता  कमलपुष्पौषधी चारोळ्या .  श्रीमती उर्मिला जी के अनुसार  यह पूजनीय बहिणाबाई चौधरीके अष्टाक्षरी छंदमे लिखी हुयी है !’अरे संसार संसार ‘ की तरह इसे गा भी सकते हैं.)

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 5 ☆

 

☆ कमलपुष्पौषधी चारोळ्या ☆

 

अरे गणेशा गणेशा

तुला कमळ आवडे

कमळाच्या भागांमध्ये

खूप औषधी सापडे !!१!!

 

कमळाच्या फुलांमध्ये

शक्ती असे खूप मोठी

रस कमळ फुलांचा

ताप कमी होण्यासाठी !!२!!

 

दले कमलपुष्पांची

अंथरुनी वस्त्रावरी

ताप जाईल निघुनी

रुग्णा निजवावे वरी !!३!!

 

फुले कमलाक्ष भारी

स्त्रीयांच्या रोगावरही

फुले मधात वाटून

पावडर करुनही !!४!!

 

महाराष्ट्र कोकणात

बहु कमळे फुलती

परि लाही कधी नाही

पहावयास मिळे ती!!५!!

 

गुळगुळीत बियांच्या

लाह्या सुंदर बनती

बहु औषधी असती

त्यांना मखाना म्हणती!!६!!

 

रुग्ण तापतात तेव्हा

पीठ लाह्याचे द्या आधी

त्यास पाण्यातून देता

किती स्वस्त हो औषधी !!७!!

 

अहो कमळांचे कंद

त्यांत सत्वे ती पौष्टिक

ज्यांना मिळे त्यांच्या गावी

त्यांनी खावी आवश्यक!!८!!

 

घेता चुकीचा आहार

वाढलेला तणावही

त्याचा उपयोग होई

घेता कमलपाकही !!९!!

 

कमलपाक औषध

आहे कमलपुष्पांचा

वैद्य मार्गदर्शनाने

होई उपयोग त्याचा !!१०!!

 

उष्णतेचा होई त्रास

ढाब्यावरचे आचारी

कमलपाक तयांना

औषधच लयी भारी !!११!!

 

वनस्पती देवादिका

ज्या सर्व आवडताती

औषधांचे गुणधर्म

त्यात ठासून असती !!१२!!

 

वाढ गर्भाची ती होण्या

पीठ लाह्यांचे वापरा

उपयोगी पित्तावर

आधी वैद्यांना विचारा !!१३!!

 

अरविंदासव छान

छोट्या टाॅनिक मुलांचे

‘भैषज्यरत्नावली’ त

असे उल्लेख तयांचे !!१४!!

 

अहो कमळ कांडी ती

योग तयात आहेत

छान वापर तयाचा

तुम्ही करा हो त्वरित !!१५!!

 

सौजन्य:– गुगल तसेच, फेसबुकवरील लेख डॉ. विलास ज. शिंदे.

आयुर्वेदाचार्य, खालापूर रायगड.

©®उर्मिला इंगळे

अनंत चतुर्दशी

दिनांक:-१२-९-१९

!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु‌!!

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ गणेश स्तवन ☆ – डॉ. रवींद्र वेदपाठक

डॉ. रवींद्र वेदपाठक

(प्रस्तुत है डॉ रवीन्द्र वेदपाठक जी की सुधाकरी काव्य रचना गणेश स्तवन . यह कविता मन स्पर्शी साहित्य मंच द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय *सुधाकरी* काव्य रचना स्पर्धा के लिए  भी समर्पित है.)

 

☆  गणेश स्तवन ☆

 

नमो नमः आद्या ! नमो वेद पाद्या !!

चतुर्दश विद्या ! अनंताय !! १ !!

 

नमो शूर्पकर्णा ! नमो एकदंता !!

लंबोदरवंता ! गणेशाय !! २ !!

 

नमो शिवपुत्रा ! पार्वती नंदना !!

मुषक वाहना ! हेरंबाय !! ३ !!

 

शमीपत्र प्रिया ! दुर्वांकूर भाळी !!

शेंद्र गंड स्थळी ! अमेयाय !! ४ !!

 

तप्त हेम वर्णी ! सिंदुरवदनी !!

कृष्ण पिंगाक्षणी ! गजास्याय !! ५ !!

 

नागबंद कटी ! फरश तो करी !!

चंद्रबिंब शिरी ! सुमुखाय !! ६ !!

 

ललित लाघवी ! शतशब्द ब्रम्ही !!

गणाधिश स्वामी ! सर्वज्ञाय !! ७ !!

 

ब्रह्मसुखानंद ! शोभे लंब शुंड !!

करी विघ्न खंड ! करूणाय !! ८ !!

 

चतुर्भुज रूपा ! नमो विघ्नांतका !!

सर्वे सुखात्मका ! आनंदाय !! ९ !!

 

नित्य निराकार ! निर्गुण आकार !!

त्रिगुण साकार ! निरामय !! १० !!

 

प्रथम स्मरण ! साष्टांगी नमन !!

चरण वंदन ! शरण्याय  !! ११ !!

 

© डॉ. रवींद्र वेदपाठक

तळेगाव.

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य # 15 – सहवास……! ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं।  मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ। पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है!  निश्चित ही श्री सुजित  जी इस हृदयस्पर्शी रचना के लिए भी बधाई के पात्र हैं। हमें भविष्य में उनकी ऐसी ही हृदयस्पर्शी कविताओं की अपेक्षा है।  श्री सुजित जी द्वारा डेढ़ दिन के गणपति जी  में स्वर्गीय पिता की डेढ़ दिन तक छवि देखना और उनके साथ रहने की कल्पना ही अद्भुत है. ऐसा सामंजस्य कोई श्री सुजित जी जैसा संवेदनशील कवि ही कर सकता है. प्रस्तुत है श्री सुजित जी की अपनी ही शैली में  हृदयस्पर्शी  कविता   “सहवास …! ”। )

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #15☆ 

 

☆ सहवास…! ☆ 

 

दर वर्षी मी घरी आणणा-या गणपतीच्या

मुर्तीत मला माझा बाप दिसतो

कारण…!

मी लहान असताना माझा बाप जेव्हा

गणपतीची मुर्ती घेऊन घरी यायचा

तेव्हा त्या दिवशी

गणपती सारखाच तो ही अगदी….

आनंदान भारावलेला असायचा

आणि त्या नंतरचा

दिड दिवस माझा बाप जणू काही

गणपती सोबतच बोलत बसायचा…

माझ्या बापानं केलेल्या कष्टाची आरती

आजही…

माझ्या कानातल्या पडद्यावर

रोज वाजत असते

आणि कापरा सारखी त्याची

आठवण मला आतून आतून जाळत असते

आज माझा बाप जरी माझ्या बरोबर नसला

तरी..,त्याच्या नंतर ही गणपतीची मुर्ती

मी दरवर्षी घरी आणतो

कारण.. तेवढाच काय तो

बापाचा..!

आणि

बाप्पाचा..!

दिड दिवसाचा सहवास मिळतो..!

 

© सुजित कदम, पुणे 

मो.7276282626

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ ☆ मानाचा मुजरा ! – मातोश्री बहिणाबाई चौधरी यांची १३९वी जयंती ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है.  आज उनकी प्रस्तुति है आदरणीया बहिणाबाई  के १३९वें जन्मदिवस पर विशेष प्रस्तुति.)

श्रीमती उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी  के ही शब्दों में – 

-बहिणाबाई. या निरक्षर-अशिक्षित माऊलीने दारी आलेल्या ज्योतिषाला सुमारे १०० वर्षांपूर्वी हे खणखणीत सत्य सोप्या पण परखड भाषेत सुनावलं.

डोके(बुध्दी नाही म्हणत)गहाण ठेवून भविष्यादि अंधश्रध्दांपुढे सपशेल शरणागती पत्करणारी आजची तथाकथित थोर  उच्चविद्याविभूषित मनुक्षे बघतांना या माऊलीची थोरवी लख्ख होऊन समोर येते.

ह्या माउलीने शंभर वर्षांपूर्वी व्यक्त केलेली खंत आजही कायम आहे.

दंडवत माय !

स्मृतींना विनम्र अभिवादन ! !

 – श्रीमती उर्मिला उद्धवराव इंगळे

☆ मानाचा मुजरा !☆

(खानदेशकन्या मातोश्री बहिणाबाई चौधरी यांची आज १३९ वी जयंती.)

नको नको रे ज्योतिषा

माह्या दारी नको येऊ,

माह्य दैव मले कळे

माह्या हात नको पाहू.

 

धनरेषांच्या च-यांनी

तळहात रे फाटला,

देवा तुह्याबी घरचा

झरा धनाचा

आटला.

 

नशिबाचे नऊ ग्रह

तळहाताच्या रेघोट्या,

बापा नको मारू थापा

अशा उगा ख-या खोट्या.

-बहिणाबाई

 

प्रस्तुति – 

©®उर्मिला इंगळे, सातारा

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