(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)
यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 9 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
इंसान और पशु पक्षियों का साथ नैसर्गिक है
जो लोग घरों में कोई पशु पक्षी पालते हैं वे अपेक्षाकृत तनाव मुक्त रहते हैं, यद्यपि पालतू प्राणी की चिंता में अवश्य उन्हें व्यस्त रहना पड़ता है । अपने पालतू डागी को लेकर घूमते लोग सहज ही मिल जाते हैं । यहां बिल्लियां बहुत प्यार से पाली जाती हैं । अलग अलग ब्रीड के प्यारे प्यारे कुत्तों पर फिर कभी लिखता हूं । आज महज उन प्राणियों का एक कोलाज देखिए जो यहां घूमते हुए मुझे प्रायः मिले । कबूतर, सड़को पर बेहिसाब बिल्लियां, मोटी तगड़ी गिलहरियां, और झुंड में मिलते ये कैनेडियन गूज।
प्रकृति के मुखर प्रतिनिधि हैं जो यहां इंसानी बसाहट के साथ सामंजस्य बैठाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करते हैं
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)
यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 8 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
गांधी जयंती पर स्टेट लिबर्टी पार्क न्यू जर्सी में
9/11 मेमोरियल पर महात्मा गांधी विश्व में शांति और अहिंसा के आईकान के रूप में जाने जाते हैं। आज उनकी जयंती है । घर के निकट ही हडसन नदी के किनारे स्टेट लिबर्टी पार्क है, मात्र कोई एक किलोमीटर दूर । आज सुबह प्रकृति से मिलने यहीं चला आया ।
किंतु 9/11 मेमोरियल देख, पार्क में लकड़ी की बैंच पर बैठे हुए वैचारिक मुलाकात हो गई, सदी की उस वीभत्स आतंकी घटना से जिसने 93 देशों के लगभग 3000 निरपराध लोगों की जान ले ली थी । वर्ष 2001 की 11 सितंबर को सुबह लगभग 9 बजे, दो विमान 111 मंजिले वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से थोड़े अंतर से टकराए और ट्विन टावर ध्वस्त हो गए। गांधी के सिद्धांत सुबक रहे थे। आतंकी हंस रहे थे । आज भी नव दुर्गा निरंतर संहार कर रही हैं पर नए नए दैत्य क्रूर हंसी हंस रहे हैं।
ठंडी हवाये दुखते जख्म सहलाने की कोशिश कर रही है, सूरज इंसानियत के दुख में शामिल, नजरो से छिपा हुआ है।
मैं मौन श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं गांधी को और 9/11 मेमोरियल, न्यूजर्सी पार्क में बने मेमोरियल वाल पर अंकित हर नाम को जो संभावनाओं से भरा एक असमय मिटा दिया गया उपन्यास था ।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)
यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 7 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
बिना दूधवाले की सुबह
हिंदुस्तान में हमारी सुबह सूरज की धूप की दस्तक के साथ ही पेपर वाले , दूधवाले , सब्जी वाले , कचरे वाले से शुरू होती हैं। पास के मंदिर से आती भजन की आवाजें आती हैं । फिर आती हैं बर्तन वाली , सफाई वाली , कपड़े वाली, खाना बनाने वाली , धोबी , पोस्टमैन , कुरियर, इन दिनों नए चलन में आन लाइन आर्डर के डिलीवरी बाय सहित , कभी रद्दी वाले , या गैस खत्म हो तो सिलेंडर वाला , या अन्य कोई न कोई हाकर को बुलाने की स्वैच्छिक छूट रहती ही है। कभी पिताजी से तो कभी बच्चों से या श्रीमती जी की किटी की फ्रेंड्स, मिलने मिलाने कोई न कोई आते ही रहता है । मतलब डोर बैल बजती ही रहती है।
इसके विपरीत यहां की सुबहे बिना बताए बिना शोर एकदम चुप्पे चाप हो रही हैं । सूरज भी बड़े लिहाज से ही पूरे पाश्चात्य सभ्य अंदाज में हेलो करते लगे ।
दूध के कैन फ्रिज में मौजूद , पेपर पास के स्टोर्स से लाना होगा, गार्बेज कलेक्शन ट्वाईस इन वीक , हाउस हेल्प है नहीं , डाक दरवाजे पर लगे मेल बाक्स में कब आ जाती है पता नहीं लगा । सब कुछ रोबोट सा ,शांत शांत , जिसकी अभी आदत नहीं ।
हां घूमने निकलो तो अपरिचितों से भी स्मित मुस्कान अवश्य मिलती है , जो बड़ी आश्वस्ति देती है, की हम इंसान हैं , रोबोट्स नहीं।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 7 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
ताकतवर ₹ है या $
इकानामिक्स भी पूरा राकेट साइंस है । जाने किन किन कारणों से करेंसी की क़ीमत कम ज्यादा हो जाती हैं, बजट आते ही शेयर का केंचुआ नीचे ऊपर होने लगता है ।
किसी शक्ति शाली देश की सरकार बदले तब तो दुनियां भर में अर्थशास्त्री अनुमान के गणितों की हेडलाइंस बनाते ही हैं। ब्रिटेन में उसी पार्टी की सरकार है, केवल प्रधान मंत्री बदले हैं, वहां की करेंसी पौंड्स £ के अंतर्राष्ट्रीय मूल्य ही बदल गए । कभी लगभग 100 भारतीय रु का पाउंड पिछले दो चार दिनों से 87 रु का हो गया है। मतलब लगभग डालर की कीमत पर ।
बहरहाल मैं आम आदमी की दृष्टि से रुपए और डालर की ताकत समझना चाहता हूं। कल शाम मैं पत्नी के साथ कुछ सामान लाने जर्सी के एक एशियन मार्केट गया था। दो चार दिनों के लिए, तीन व्यक्तियों के उपयोग लायक फल सब्जियां और किचन के कुछ अन्य सामान खरीदे , तीन कैरी बैग में सामान आ गया । बिल बना लगभग 100 डालर । अर्थात कोई आठ हजार रुपए । इतने रुपयों के बिल से भारत में मैं ट्राली भरकर महीने भर का राशन ले आता हूं ।
हंसते हुए मैंने यह बात बेटे से कही , तो उसने कहा की आप करेंसी कनवर्ट करके सोचना बंद कर दीजिए अन्यथा जब दस डालर में एक प्लेट समोसे और कोक लेंगे या तीस चालीस डालर में सामान्य सा भोजन करेंगे तो आप परेशान हो जायेंगे ।
जेएफके एयरपोर्ट से जर्सी सिटी तक का टैक्सी का किराया 150 $ होता है अर्थात कोई बारह हजार रुपए , यात्रा कोई एक डेढ़ घंटे में पूरी होती है , वह भी तब जब यहां पेट्रोल सस्ता है , गैलन में मिलता है , महज लगभग 80 रु लीटर ।
अब आप ही तय करिए की आम आदमी के लिए रुपया ताकतवर हुआ या डालर ?
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 6 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
किताबें जिंदाबाद
आज सुबह ही यह फोटो खींची है ।
गूगल की त्वरित जानकारियों वाली सुविधा से पुस्तकालयों को लेकर हम सभी प्रायः चिंताएं व्यक्त करते हैं । ऐसे समय में अमेरिका जैसे देश में नए पुस्तकालय प्रारंभ होने की ऐसी सूचनाएं हम जैसे पुस्तक प्रेमियों के प्रसन्न होने का पर्याप्त कारण हैं ।
जो मजा किताब पढ़ने में आता है , वह लेपटॉप पर जानकारियों को निकालने से सर्वथा भिन्न होता है । किताबें सच्ची दोस्त होती हैं , वे चिंतन को दिशा देती हैं , संदर्भ बनती हैं और शाश्वत होती हैं ।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)
यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 5 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
पवेलियन आन व्हील
महत्वपूर्ण बातें तो कई लोग करते हैं , किताबें तथा मीडिया पर बड़ी बातों पर खूब सी सामग्री सहजता से मिल जाती है, इसलिए मैं उन छोटी और इग्नोर्ड विषयों पर चर्चा कर रहा हूं जो हम देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। ऐसे अनेक छोटे छोटे मुद्दे हैं जो सुविधाओ तथा दूरियों के चलते भारत से भिन्नता रखते हैं, और उन्हें जानने समझने में आपकी रुचि हो सकती है। ऐसा ही एक विषय है खेलों में आम आदमी की अभिरुचि ।
सुबह घूमते हुए मैने देखा की आवासीय परिसर में ही सड़क किनारे बास्केट बाल का चेन लिंक से घिरा पक्का ग्राउंड भर नहीं है , पर्याप्त दर्शको के लिए एल्यूमिनियम का पवेलियन आन व्हील भी बनाया गया है। फोल्डिंग, फटाफट फिट स्टेडियम, इस प्रकार के चके पर चलते स्टेडियम अपने भारत में मेरे देखने में नहीं आए । इससे पता चलता है की खेलने वाले भी हैं, और उन्हें बकअप कर उत्साह बढ़ाने वाले भी हैं। समाज में व्याप्त यह जज्बा ही अंतराष्ट्रीय स्तर पर मेडल टेली में देश को ऊपर लाता है ।
हमारे देश के वर्तमान हालात के महज चंद खिलाड़ियों के विभिन्न खेलों के कैंप, टीम तो बना सकते हैं पर प्रत्येक खेल में क्रिकेट की तरह का जज्बा तभी पैदा हो सकता है जब सामाजिक प्रवृत्ति खेलने , खेलो में हिस्सेदारी की बने । यह हिस्सेदारी दर्शक की भूमिका से आयोजक प्रायोजक तक गांव शहर मोहल्लों में बने । इसके लिए ऐसे सहज पेवेलियन आन व्हील्स और मैदानो के इंफ्रा स्ट्रक्चर की आवश्यकता से आप भी सहमत होंगे।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)
यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 4 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
जेट लेग…न्यू जर्सी
भारत से अमेरिका की यात्रा , मतलब हमारे बनाए गए समय के अनुसार जिंदगी के साढ़े दस घंटे दोबारा जीने का मौका होता है । टाइम जोन का परिवर्तन । पूर्व से पश्चिम की यात्रा । हिंदू तो सदैव पूर्व के उगते सूरज को नमन करते हैं किंतु चूंकि काबा मक्का मदीना भारत से पश्चिम की ओर है इसलिए हमारे जो मुस्लिम भाई भारत में पश्चिम दिशा को पवित्र मानते हैं , वे भी यहां आकर अपनी इबादत पूर्व की ओर ही नमन करके करते हैं, क्योंकि यहां से मक्का मदीना पूर्व दिशा में ही है।
दरअसल जेटलेग और कुछ नही प्रकृति के साथ शरीर का सामंजस्य बैठना ही है । यह एक मानसिक अवस्था है। खास तौर पर नींद के समय को प्रारंभिक कुछ दिन लोग जेट लेग की समस्या से परेशान रहते हैं । मैंने देखा है की जब अल्प समय के लिए मैंने टाइम जोन पार किया और कोई आवश्यक काम रहा तो दिमाग अलर्ट मोड पर आकर प्राथमिकता के अनुरूप नीद एडजस्ट कर लेता है । पर जब रिलेक्स मूड हो तो यह नींद रात रात रंग दिखाती है। मौसम का परिवर्तन आबोहवा में घुला होता है । नींद न आए तो विचार आ जाते हैं, यादो के पुलिंदे, समस्या और समाधान के बादल मंडराते हैं । अभी भी यहां जर्सी में नर्म बिस्तर पर उलट पलट रहा हूं, तो सोचा लिख ही डालूं जेट लेग पर । अपनी बाडी क्लाक को प्रकृति से मिलाकर रिसेट करने का श्रेष्ठ तरीका है सूरज, धूप, सुबह से दोस्ती । बस घुमने निकल पड़िए भुंसारे ।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)
यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 3 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
पाठको को नवरात्रि पर्व मंगलकारी हो। वसुधैव कुटुंबकम् … इसी सूत्र को बढ़ाते हुए, आज सुबह घूमते हुए नजर पड़ी इस बड़े से फ्रिज पर। भारत में प्रायः बचा हुआ भोजन गाय, स्ट्रीट डाग्स को दे दिया जाता है। यहां चूंकि पैक्ड फूड अधिक प्रयुक्त होता है, लेफ्ट ओवर खाद्य सामग्री, या किंचित लंबे समय के लिए बाहर जाते समय फ्रिज में रखे गए भोज्य पदार्थ इस तरह के कमयूनिटी फ्रिज में छोड़ दिया जाता है। रोज खाओ कमाओ वाली प्रवृति के लोग यहां भी हैं ही, भोजन का सदुपयोग हो जाता है । श्रीमती जी ने पिछले दो तीन दिनों में किचन का प्रभार बेटे से ले लिया है, तो उनके रिव्यू से फ्रिज से बाहर किया गया ढेर सा खाना हमने भी इस फ्रिज में रखकर हल्का अनुभव किया। जब हम मंडला में थे तो क्लब के अंतर्गत पिछली सदी के अंतिम दशक में ऐसे ही दो प्रोजेक्ट्स किए थे ।
पहला था तमाम डाक्टर मित्रों के घरों से उन्हें सेंपल में मिली दवाएं और अन्य अनेक परिवारों से घर पर बची हुई दवाएं एकत्रित करवा कर, झुग्गी बस्ती में मेडिकल कैंप लगाया था और निशुल्क दवा वितरण डाक्टर साहब की समझ के अनुरूप किया गया था।
दूसरा तो संभवतः आज तक चल ही रहा हो, कलेक्ट्रेट परिसर में प्रशासन के सहयोग से एक शेड में घर के पुराने कपड़े लाकर “वाल आफ चैरिटी” पर टांग दिए गए थे , स्लोगन यही था , जिसे जो लगे आकर टांग जाए , जिसे जो लगे ले जाए , इस तरह गरीबों को ठंड में कुछ सहारा मिल गया और लोगो के घरों की अलमारियों का बोझ कम हुआ ।
इसका अध्यातमिक पक्ष यह है की परमात्मा एक महान शक्ति है उसमे अपनी कण शक्ति समर्पण भाव से समाहित कर के देखिए फिर आप उस महान शक्ति के सामर्थ्य के साथ कनेक्ट हो जाते हैं और आपकी कणिक ऊर्जा असाधारण ऊर्जा बन जाती है।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
☆ मी प्रवासिनी क्रमांक २७ – भाग २ ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆
आसामी सिल्कचा, पदर भरजरीचा
ब्रह्मपुत्रेवरील साडेतीन किलोमीटर लांबीचा पूल आपल्या भारतीय अभियंत्यांनी बांधलेला आहे. आता असे आणखी दोन पूल ब्रह्मपुत्रेवर बांधले आहेत. ब्रह्मपुत्रा तिबेटमध्ये मानस सरोवराजवळ उगम पावते. नंतर विशाल पर्वतराजीतून वाहत आसामच्या खोऱ्यात प्रवेश करते. तिला दिनांग,सेसिरी,तिस्ता अशा उपनद्या येऊन मिळतात. प्रवाहाची अनेक वळणे बदलत ती बांगलादेशातून बंगालच्या उपसागराला मिळते .जलवाहतुकीचे हे एक उत्तम साधन आहे. अशी ही आसामची जीवनवाहिनी कधी कधी आसामचे अश्रू सुद्धा होते. प्रवाह एवढा प्रचंड आणि वेगवान की तिला ब्रह्मपुत्रा नद (नदी नव्हे ) असेच संबोधले जाते. तिचा प्रवाह सतत बदलतो. पाणलोट क्षेत्रात मुसळधार पाऊस पडतो. सुपीक जमीन पाण्याखाली जाते. माणसे, जनावरे वाहून जाणे हा वार्षिक शिरस्ता आहे. ब्रह्मपुत्राकाठच्या एका गणपती मंदिरात दर्शन घेऊन नदीकाठी गेलो. संध्याकाळच्या सोनेरी प्रकाशात ब्रह्मपुत्रेच्या विस्तीर्ण, गहन गंभीर पात्रावर भरजरी सोनेरी पदर पसरल्यासारखे वाटत होते.
गुवाहाटीमध्ये नीलांचल डोंगरावरील कामाख्या मंदिर हे देवीचे- आदिशक्तीचे- शक्तिपीठ मानले जाते. देऊळ खूप प्राचीन आहे. देवळात खूप काळोख असल्याने व बॅटरीसुद्धा लावायला परवानगी नसल्याने फार काही बघता आले नाही. अजूनही इथे बकरा, रेडा यांचे बळी दिले जातात.
ईशान्य भारतात दगडी कोळशापासून युरेनियमपर्यंत सर्व खनिजे विपुल प्रमाणात आहेत. दिग्बोई इथे तेल शुद्धीकरण रिफायनरी आहे. चहाच्या उत्पादनात जगात पहिला नंबर आहे. घनदाट जंगले, दुर्मिळ वनस्पती,विविध प्राणी, पक्षी आहेत. एक शिंगी गेंडा ही आसामची खासियत आहे. या शिंगात हाड नसते. गेंड्याचे शिंग औषधी असते या समजुतीने त्याची अवैध शिकार केली जाते. इथले मलबेरी, मुंगा, टसर हे सिल्क प्रसिद्ध आहे.
या संपूर्ण प्रदेशाला हिरव्या रंगाच्या नाना छटा असलेले अक्षय सौंदर्य लाभले आहे. या हिरव्या हिरव्या सिल्कला ब्रह्मपुत्रेचा झळाळता सोनेरी पदर आहे पण— पण इथला अस्वस्थपणा, अशांतपणा मध्ये मध्ये उफाळून येतो. हे गिरीजन अतिशय संवेदनशील आहेत. आपापसातही त्यांचे रक्तरंजित खटके उडत असतात. शिवाय स्वातंत्र्योत्तर या भागाकडे अक्षम्य दुर्लक्ष झाल्याचे शल्य त्यांच्या मनात आहे. या ईशान्य भारताच्या सीमांना भूतान, तिबेट, बांगलादेश, ब्रह्मदेश यांच्या सीमा खेटून आहेत. १९६२ च्या युद्धात चिन्यांनी तेजापूर घेतले होते.
या समाजाला मुख्य प्रवाहात आणण्यासाठी विश्व हिंदू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, रामकृष्ण मिशन यांचे अखंड यज्ञासारखे काम चालू आहे. तिथल्या लहान मुला- मुलींची महाराष्ट्रातल्या शाळातून शिक्षणाची, वसतिगृहाची सोय करण्यात येते. आता तिथे कॉम्प्युटरवर आधारित उद्योगांचे, आयटी इंडस्ट्रीजची उभारणी होत आहे.
परत येताना गुवाहाटी- मुंबई असे विमान संध्याकाळी चारचे होते. आमच्या तेथील रिझर्व बँकेतल्या सहकार्यांनी दिलेल्या सल्ल्याप्रमाणे आम्ही विमानात उजव्या बाजूच्या खिडक्या मागून घेतल्या होत्या. विमानाने आकाशात झेप घेतल्यावर पाचच मिनिटात उजवीकडे एव्हरेस्टच्या बर्फाच्छादित रांगा सूर्यकिरण पडल्याने सोन्यासारख्या चमकताना दिसल्या. नकळत डोळ्यात पाणी आले. हात जोडले गेले. अस्वस्थ ईशान्य भारताबद्दलच्या विचारांना आशेची सोनेरी किनार लाभली.
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)
यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 2 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
New Jersey में सुबह घूमते हुए…
सड़क किनारे, खुले में पेड़ के नीचे ज्यादा शायद शतरंजी बुद्धि, तेजी से चलती है। तभी तो सीमेंट के पक्के टेबल पर स्थाई शतरंज का बोर्ड बनाया दिखता है।
लोकतंत्र में पैदल भी वजीर बन सकता है ।
घोड़े, हॉर्स-ट्रेडिंग का हिस्सा बनकर ढाई घर की चालें चले बिना मानते ही नहीं।
ऊंट तिरछा ही भाग रहे हैं।
मुंशी प्रेमचंद की 1924 में लिखी कहानी शतरंज के खिलाड़ी पर आधारित फिल्म भारतीय सिनेमा की एक यादगार फिल्म रही है।
शतरंज के बोर्ड के मजेदार मैथेमेटिकल किस्से हैं। एक बार एक राजा से इनाम में एक गणितज्ञ ने कहा कि मुझे बस पहले दिन गेहूं के एक दाने से शुरू कर प्रतिदिन दो गुना करते हुए, शतरंज के 64 खानों के अनुसार गेहूं के दाने इनाम में दिए जाए। राजा ने हंसते हुए यह स्वीकार कर लिया, पर जल्दी ही उसे गणितज्ञ की प्रतिभा समझ आ गई, वह सारे राज्य की फसल देकर भी इस गणितीय इनाम को देने में असमर्थ था, आप भी केल्कुलेटर से गुणा भाग लगाते हुए जरा अंदाजा लगाइये।
कल मिलते हैं।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈