श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – आत्मनिर्भरता।)
☆ लघुकथा # 67 – आत्मनिर्भरता ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
पंद्रह दिन हो गये दुबे जी का निधन हुए. सारे रिश्तेदार अपने घर लौट गए. बेटा बहू परसों ही बैंगलोर जाने वाले हैं।
वे माँ से बोले – आप भी चलो। आप अकेले यहां रहकर क्या करोगी?पड़ोस के वर्मा अंकल और भी कई लोग मकान हमारा खरीदना चाहते हैं, अच्छे पैसे भी दे रहे हैं। यह मकान बेच देंगे।
– मकान बेचने के विचार से पहले कम से कम एक बार मुझसे चर्चा तो करना था । इस मकान की मालकिन तुम्हारे पापा ने मुझे बनाया है। उन्होंने यह मेरे नाम से ही खरीदा था। हम दोनों ने इसे बड़े प्यार से सजाया है।
कमल जी गुमसुम छत पर बैठकर आगे के जीवन की उधेडबुन मे लगी थी।
कैसै कटेगा यह शेष जीवन? दुबे जी मुझे कभी कुछ करने नहीं दिया। हर काम में हमेशा मेरा साथ दिया। अब अकेले क्यों छोड़ कर चले गए?
पडोसन सखी रागिनी आई और बोली- क्या हुआ बहन जी आप यहां छत पर अकेले क्यों बैठी हो? कुछ खाना खाया या नहीं। चलो साथ में थोड़ा पार्क में घूमते हैं।
कुछ सोचते हुए कमल ने पडोसन से कहा – रागिनी तुम कह रही थी कि पास में इंजीनियरिंग कॉलेज के बच्चे घर मकान ढूंढ रहे हैं। वह पेइंग गेस्ट की तरह रहना चाहते हैं। क्या उन्हें तुम मेरे घर बुला लाओगी। मैं उन्हें अपने घर में रखूंगी। ध्यान देना लड़कियां होनी चाहिए। देखो रागिनी तुम मेरी मदद करना।
चलो मैं अभी उनसे मिला देती हूं वह तीन लड़कियां पास में बंटी की मम्मी के यहां रहती हैं वह उन्हें बड़ा परेशान करती है।
– बेटी निशा तुम लोग घर ढूंढ रही हो ना यह आंटी का घर पार्क के पास है देखा है ना। क्या वहां पर तुम लोग रहोगे? जितना पैसा यहां देते हो उतना ही वहां पर देना पड़ेगा और तुम्हें आराम रहेगा।
– ठीक है आंटी हम थोड़ी देर बाद अपना सामान लेकर आप बोलो तो घर आ जाते हैं क्योंकि यह आंटी तो हमसे घर खाली करा रही हैं।
– चलो बेटा साथ में घर देख लो।
घर देख कर वे बोलीं – आपका घर तो बहुत अच्छा है हम तीनों लड़कियां 5000 आपको देगी।
तभी बेटे अविनाश ने कहा – माँ, यह क्या नाटक लगा के रखा है?
– देखो अविनाश मैं तुम्हारे घर जाकर नहीं रहूंगी। तुम लोगों का जितना दिन मन करता है इस घर में रहो बाकी मैं अपना खर्चा चला लूंगी। तुम लोगों से एक पैसा नहीं मांगूंगी। तुम्हारे दरवाजे पर नहीं जाऊंगी और अपना घर भी नहीं बेचूंगी ।
जिंदगी भर कभी काम नहीं किया पर मैं अब आत्मनिर्भर बनूंगी।
© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈