हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लघुकथा – अभयारण्य ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

श्रीगणेश साधना, गणेश चतुर्थी तदनुसार आज बुधवार 31अगस्त को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार शुक्रवार 9 सितम्बर तक चलेगी।

इस साधना का मंत्र होगा- ॐ गं गणपतये नमः

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें। उसी अनुसार अथर्वशीर्ष पाठ/ श्रवण का अपडेट करें।

अथर्वशीर्ष का पाठ टेक्स्ट एवं ऑडियो दोनों स्वरूपों में इंटरनेट पर उपलब्ध है।

🕉️ प्रथम पूज्य, गजानन, श्रीगणेश को नमन।

….एक अनुरोध, वाचन संस्कृति का निरंतर क्षय हो रहा है। श्रीगणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक किसी एक पुस्तक / ग्रंथ का अध्ययन करने का संकल्प करें। प्रतिदिन कुछ पृष्ठ पढ़ें और मनन करें। महर्षि वेदव्यास के शब्दों को ‘महाभारत’ के रूप में लिपिबद्ध करने वाले, कुशाग्रता के देवता के प्रति यह समुचित आदरभाव होगा।

श्रीगणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई। …..एक अनुरोध और, त्योहार पारम्परिक रूप से एवं सादगी से मनाएँ। साज-सज्जा भारतीय संस्कृति के अनुरूप तथा पर्यावरण स्नेही रखें।

संजय भारद्वाज

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

 ? संजय दृष्टि – लघुकथा – अभयारण्य ??

सरीसृप सर्पों का अभयारण्य था वहाँ। यहाँ के निवासी प्रकृति धर्म का पालन करते थे। फलतः इस भूभाग में साँप मारे नहीं जाते थे। पकड़े जाने पर दूर-दराज वन-प्रांतर में छोड़े जाने की परंपरा थी। विवशता में अपवादस्वरूप कोई साँप मारा भी गया तो प्रायश्चित के सारे साधन अपनाये जाते। साँप निश्चिंत थे वहाँ। चूहों की संख्या नियंत्रित थी, अतः किसान निश्चिंत थे। सब आनंद से चल रहा था।

समय ने अंगड़ाई ली। खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के कारण दिवालिया शासन व्यवस्था को विदेशियों को ख़ास सहूलियतें देने पर मजबूर होना पड़ा। सत्ता का रिमोट अब विदेशियों के हाथ में था।

ये विदेशी साँप का माँस चाव से खाते थे। पहले तो विरोध हुआ। फिर अपवाद ने परंपरा के भूभाग में पैर जमाना शुरू किया। शनैः-शनैः अपवाद, परंपरा हो गया।

अब साँप कई डॉलर में बिकने लगे। जैसे-जैसे साँप कम हुए, उनका दाम भी बढ़ता गया।

दोपाये सर्पों का अभयारण्य है वहाँ।

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – सही मूल्यांकन ☆ श्री विजय कुमार, सह सम्पादक (शुभ तारिका) ☆

श्री विजय कुमार

(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार जी  की एक विचारणीय लघुकथा  “सही मूल्यांकन)

☆ लघुकथा – सही मूल्यांकन ☆ श्री विजय कुमार, सह सम्पादक (शुभ तारिका) ☆

फेसबुक खोलकर राजेश एक साहित्य ग्रुप में डाली गई पोस्टों को देखने-पढ़ने लगा। आज भी एक लेखिका द्वारा अपनी एक रचना के किसी अन्य द्वारा अपने नाम से पोस्ट किए जाने पर आपत्ति दर्ज करते हुए उस पर चर्चा-परिचर्चा की जा रही थी। ग्रुप से जुड़े लगभग सभी रचनाकार या पाठक वर्ग इस कृत्य की निंदा कर रहे थे, जो सही भी था। किसी भी रचनाकार के साथ यह अन्याय ही था।

…परंतु राजेश सोच रहा था, ‘क्या जरूरत है अपनी नवीनतम रचना को इस तरह फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर डालने की? पता नहीं क्यों, सभी को वाहवाही लूटने की इतनी जल्दी रहती है कि इधर कोई कविता, लघुकथा या अन्य रचना लिखी नहीं, उधर तुरंत पोस्ट कर दी। कई तो लगता है कि सीधे लिखते ही फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर ही हैं। कई बार तो कितनी अशुद्धियाँ होती हैं, और रचना भी अधपकी-सी होती है। फिर सिलसिला शुरू हो जाता है वाहवाही का। अगर कोई गलती से रचना के खिलाफ कोई टिप्पणी कर दे, तो सभी उस बेचारे टिप्पणी करने वाले की हालत खराब करके रख देते हैं। यदि कोई रचना अच्छी हो, तो तुरंत चोरी हो जाती है। बस फिर कोसते रहो। क्या फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर किसी रचना का सही मूल्यांकन हो पाता है?’

सोचते-सोचते उसने अपना ईमेल अकाउंट खोला और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं को अपनी रचनाएं पोस्ट करने में व्यस्त हो गया…।

***

©  श्री विजय कुमार

सह-संपादक ‘शुभ तारिका’ (मासिक पत्रिका)

संपर्क – # 103-सी, अशोक नगर, नज़दीक शिव मंदिर, अम्बाला छावनी- 133001 (हरियाणा)
ई मेल- [email protected] मोबाइल : 9813130512

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 136 – लघुकथा ☆ श्री गणेश उन्नयन… ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी  बाल मनोविज्ञान और जिज्ञासा पर आधारित लघुकथा “श्री गणेश उन्नयन…”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 136 ☆

☆ लघुकथा  🌿 श्री गणेश उन्नयन… 🙏

नदी किनारे रबर की ट्यूब लिए बैठी माधवी अपने 4 साल के बेटे को समझा रही थी… बेटा अभी जितने भी गणपति आएंगे उन सभी को विसर्जित करना है। तुम यहीं तट पर बैठना कुछ प्रसाद और रुपये मिल जायेगा।

बेटा शिबू मन ही मन सोच रहा था क्या इनमें से एक गणपति को हम अपने घर नहीं ले जा सकते क्या?  

झोपड़ी में रहने वाले क्या गणेश जी नहीं बिठा सकते? आखिर ये विसर्जन के लिए ही तो आए हैं, क्या हमारे यहां बप्पा बाकी दिनों में नहीं रह सकते?

मन में उठे सवालों को लेकर दौड़ कर अपने आई (माँ)  के पास गया और बहुत ही भोलेपन से कहा… “आई, इसमें से जो सबसे सुंदर गणपति बप्पा होंगे उसे आप नदी में नहीं भेजना। हम अपने साथ घर ले जाएंगे और पूजा करेंगे। जैसे बप्पा सब को बहुत सारा पैसा देते हैं, हमें कुछ दिनों बाद देंगे परंतु, तुम मुझे एक बप्पा इनमें से लेने देना।“

अचानक तेज बारिश होने लगी गणपति विसर्जन के लिए जितने भी भक्त आए थे। सब किनारे में रखकर घर भागने लगे। किसी ने कहा… “ए बाई! यह पैसे रखो और गहरे में जाकर विसर्जित कर देना।“

हाँ साहब हम ट्यूब में बिठा कर ले जाएंगी और आपके बप्पा को नदी में विसर्जित कर देंगे। उसके मन में उठे सवाल और बेटे की बात! क्या गणपति को हम नहीं ले सकते?

भीड़ कम होने पर रखे गणपति मूर्तियों को देख मां ने कहा… “बेटा, तुम्हें जो गणपति बप्पा चाहिए बताओ।”

बेटे की खुशी का ठिकाना ना रहा बारिश बंद होने पर आगे-आगे शिबू फूटे पीपे को जोर – जोर से बजाते हुए चिल्लाते जा रहा था… “गणपति बप्पा मोरिया, गणपति बप्पा मोरिया”

और माधवी सर पर गणपति जी को उठाए अपने घर की ओर सरपट चल रही थीं। वह नहीं जानती थी कि यह  सही है या नहीं किन्तु, शायद बप्पा को भी उनके साथ जाना अच्छा लग रहा था।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार # 104 – शरण ☆ श्री आशीष कुमार ☆

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)

☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #104 🌻 शरण 🌻 ☆ श्री आशीष कुमार

एक गरीब आदमी की झोपड़ी पर…रात को जोरों की वर्षा हो रही थी. सज्जन था, छोटी सी झोपड़ी थी. स्वयं और उसकी पत्नी, दोनों सोए थे. आधीरात किसी ने द्वार पर दस्तक दी।

उन सज्जन ने अपनी पत्नी से कहा – उठ! द्वार खोल दे. पत्नी द्वार के करीब सो रही थी. पत्नी ने कहा – इस आधी रात में जगह कहाँ है? कोई अगर शरण माँगेगा तो तुम मना न कर सकोगे?

वर्षा जोर की हो रही है. कोई शरण माँगने के लिए ही द्वार आया होगा न! जगह कहाँ है? उस सज्जन ने कहा – जगह? दो के सोने के लायक तो काफी है, तीन के बैठने के लायक काफी हो जाएगी. तू दरवाजा खोल!

लेकिन द्वार आए आदमी को वापिस तो नहीं लौटाना है. दरवाजा खोला. कोई शरण ही माँग रहा था. भटक गया था और वर्षा मूसलाधार थी. वह अंदर आ गया. तीनों बैठकर गपशप करने लगे. सोने लायक तो जगह न थी.

थोड़ी देर बाद किसी और आदमी ने दस्तक दी. फिर गरीब आदमी ने अपनी पत्नी से कहा – खोल ! पत्नी ने कहा – अब करोगे क्या? जगह कहाँ है? अगर किसी ने शरण माँगी तो?

उस सज्जन ने कहा – अभी बैठने लायक जगह है फिर खड़े रहेंगे. मगर दरवाजा खोल! जरूर कोई मजबूर है. फिर दरवाजा खोला. वह अजनबी भी आ गया. अब वे खड़े होकर बातचीत करने लगे. इतना छोटा झोपड़ा! और खड़े हुए चार लोग!

और तब अंततः एक कुत्ते ने आकर जोर से आवाज की. दरवाजे को हिलाया. गरीब आदमी ने कहा – दरवाजा खोलो. पत्नी ने दरवाजा खोलकर झाँका और कहा – अब तुम पागल हुए हो!

यह कुत्ता है. आदमी भी नहीं! सज्जन बोले – हमने पहले भी आदमियों के कारण दरवाजा नहीं खोला था, अपने हृदय के कारण खोला था!! हमारे लिए कुत्ते और आदमी में क्या फर्क?

हमने मदद के लिए दरवाजा खोला था. उसने भी आवाज दी है. उसने भी द्वार हिलाया है. उसने अपना काम पूरा कर दिया, अब हमें अपना काम करना है. दरवाजा खोलो!

उनकी पत्नी ने कहा – अब तो खड़े होने की भी जगह नहीं है! उसने कहा – अभी हम जरा आराम से खड़े हैं, फिर थोड़े सटकर खड़े होंगे. और एक बात याद रख! यह कोई अमीर का महल नहीं है कि जिसमें जगह की कमी हो!

यह गरीब का झोपड़ा है, इसमें खूब जगह है!! जगह महलों में और झोपड़ों में नहीं होती, जगह दिलों में होती है!

अक्सर आप पाएँगे कि गरीब कभी कंजूस नहीं होता! उसका दिल बहुत बड़ा होता है!!

कंजूस होने योग्य उसके पास कुछ है ही नहीं. पकड़े तो पकड़े क्या? जैसे जैसे आदमी अमीर होता है, वैसे कंजूस होने लगता है, उसमें मोह बढ़ता है, लोभ बढ़ता है .

जरूरतमंद को अपनी क्षमता अनुसार शरण दीजिए. दिल बड़ा रखकर अपने दिल में औरों के लिए जगह जरूर रखिये.

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – प्रश्नोत्तर ☆ सुश्री मीरा जैन

सुश्री मीरा जैन 

(सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सुश्री मीरा जैन जी  की अब तक 9 पुस्तकें प्रकाशित – चार लघुकथा संग्रह , तीन लेख संग्रह एक कविता संग्रह ,एक व्यंग्य संग्रह, १००० से अधिक रचनाएँ देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से व्यंग्य, लघुकथा व अन्य रचनाओं का प्रसारण। वर्ष २०११ में  ‘मीरा जैन की सौ लघुकथाएं’ पुस्तक पर विक्रम विश्वविद्यालय (उज्जैन) द्वारा शोध कार्य करवाया जा चुका है।  अनेक भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद प्रकाशित। कई अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय तथा राज्य स्तरीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत। २०१९ में भारत सरकार के विद्वान लेखकों की सूची में आपका नाम दर्ज । प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद पर पांच वर्ष तक बाल कल्याण समिति के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएं उज्जैन जिले में प्रदत्त। बालिका-महिला सुरक्षा, उनका विकास, कन्या भ्रूण हत्या एवं बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ आदि कई सामाजिक अभियानों में भी सतत संलग्न। पूर्व में आपकी लघुकथाओं का मराठी अनुवाद ई -अभिव्यक्ति (मराठी ) में प्रकाशित। 

हम समय-समय पर आपकी लघुकथाओं को अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करने का प्रयास करेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैआपकी पुस्तक मीरा जैन की सौ लघुकथाएं में से एक लघुकथा – ‘प्रश्नोत्तर’। संयोगवश इस लघुकथा पर आधारित एक लघुफिल्म श्री अनिल पतंग जी के निर्देशन में बनी है जिसे आप निम्न लिंक पर क्लिक कर देख सकते हैं। 

यूट्यूब लिंक 👉 BEST HINDI SHORT FILM लघु फिल्म- प्रश्नोत्तर, लघुकथा – मीरा जैन, पटकथा/निर्देशन- अनिल पतंग।

☆ कथा-कहानी : लघुकथा – प्रश्नोत्तर ☆ सुश्री मीरा जैन ☆

 एक विदेशी लेखक ने अपने भारतीय दोस्त से फोन पर बात करते हुए शुरुवाती औपचारिकताओं के पश्चात भारत की वर्तमान व्यवस्था पर लेख लिखने हेतु जानकारी मांगी-

 विदेशी – ‘अच्छा बताओ आपके यहाँ विद्युत आपूर्ति कैसी है?’

भारतीय – ‘यार/बहुत कम है।’

विदेशी – ‘जलापूर्ति कैसी है ?’

भारतीय – ‘वो भी बहुत कम है।’

विदेशी – ‘वहाँ सड़कें कैसी हैं?’

भारतीय – ‘वो भी बहुत कम है।’

विदेशी – ‘ भारत में रोजगार के अवसर कैसे हैं ?’

भारतीय – ‘वो भी बहुत कम हैं”

विदेशी – ‘क्या तुम सभी क्षेत्र में आई इस कमी का मुख्य कारण बता सकते हो ?’

भारतीय – ‘हाँ! इस कमी का मुखी कारण जनाधिक्य के साथ नेताओं का आवश्यकता से अधिक होना है।’

© मीरा जैन

संपर्क –  516, साँईनाथ कालोनी, सेठी नगर, उज्जैन, मध्यप्रदेश

फोन .09425918116

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 99 ☆ क्लीअरेंस ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा क्लीअरेंस।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस लघुकथा रचने  के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 99 ☆

☆ लघुकथा – क्लीअरेंसडॉ. ऋचा शर्मा ☆

सर ! इस फॉर्म पर आपके साईन चाहिए क्लीअरेंस करवाना है  – विभाग प्रमुख से एक छात्रा ने कहा।

ठीक है। आपने विभाग के ग्रंथालय की सब पुस्तकें वापस कर दीं ?

सर! मैंने  पुस्तकें ली ही नहीं थी। जरूरत ही नहीं पड़ी।

अच्छा, पिछले वर्ष पुस्तकें ली थीं आपने ?

नहीं सर, कोविड था ना, ऑनलाईन परीक्षा हुई तो गूगल से ही काम चल गया। सर पाठ्यपुस्तकें  भी नहीं खरीदनी पड़ी, बी.ए.के तीन साल ऐसे ही निकल गए  – छात्रा  बड़े उत्साह से बोल रही थी। सर, जल्दी साईन कर दीजिए प्लीज, ऑफिस बंद हो जाएगा।

सर मन में धीरे से बुदबुदाए – कैसा क्लीअरेंस है यह ? पुस्तकें पढ़नी चाहिए ना! और साईन कर दिया। पास बैठे एक शिक्षक बोले – सर!  मैं तो कब से कह रहा हूँ किताबें कॉलेज के ग्रंथालय को वापस कर देते हैं, कोई पढ़ता तो है नहीं, झंझट ही खत्म। कुछ बोले बिना विभाग प्रमुख ने उनकी ओर गौर से देखा मानों पूछ रहे हों आप ?

 शिक्षक महोदय भी नजरें चुरा रहे थे।

©डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आत्मकथा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना – माधव साधना (11 दिवसीय यह साधना गुरुवार दि. 18 अगस्त से रविवार 28 अगस्त तक)

इस साधना के लिए मंत्र है – 

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

(आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं )

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

 ? संजय दृष्टि –  आत्मकथा ??

अनंत बार जो हुआ, वही आज फिर घटा। परिस्थितियाँ पोर-पोर को असीम वेदना देती रहीं। देह को निढाल पाकर धूर्तता से फिर आत्मसमर्पण का प्रस्ताव सामने रखा। विवश देह कोई हरकत करती, उससे पूर्व फिर बिजली-सी झपटी जिजीविषा और प्रस्ताव को टुकड़े-टुकड़े कर फेंक दिया। फटे कागज़ का अम्बार और बढ़ गया।

किसीने पूछा, ‘आत्मकथा क्यों नहीं लिखते?’… ‘लिखी तो है। अनंत खंड हैं। खंड-खंड बाँच लो’, लेखक ने फटे कागज़ के अम्बार की ओर इशारा करते हुए कहा।

© संजय भारद्वाज

प्रात: 4:27 बजे,19.8.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 98 ☆ पुत्र का मान ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा ‘पुत्र का मान’।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस लघुकथा रचने  के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 98 ☆

☆ लघुकथा – पुत्र का मान ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

तुमने अपने भाई को फोन किया ? पिता ने बड़ी बेसब्री से बेटी से दिन में तीसरी बार पूछा।

नहीं, हम करेंगे भी नहीं। वह जब आता है गाली-गलौज करता है। आप दोनों को भी कितनी गालियां सुनाता था। दो समय का खाना भी बिना ताना मारे नहीं देता था आपको।हम यह सब सहन नहीं कर पा रहे थे इसलिए आप दोनों को अपने घर ले आए।

वह तो ठीक है बेटी! पर माँ का अंतिम समय है – पिता ने दुखी स्वर में कहा, उसे तो बताना ही पड़ेगा। क्या पता कब प्राण निकल जाए।

तब देखा जाएगा। जब हम अपनी ससुराल में रखकर आप दोनों की देखभाल कर सकते हैं तो आगे भी सब निभा सकते हैं। आप उसकी चिंता मत करिए।

पिता ने सोचा बेटी के घर में माँ चल बसीं तो बेटा समाज को क्या मुँह दिखाएगा। मौका पाकर बेटे को फोन कर बता दिया। बेटा – बहू घड़ियाली आँसू बहाते आए और बोले क्या हाल कर दिया मेरी माँ का। जी – जान से वर्षों माता- पिता की सेवा करनेवाली बहन पर माँ की ठीक से देखभाल ना करने के आरोप लगाए।

‘राम नाम सत्य है’ के उद्घोष के साथ माँ की अंतिम यात्रा बेटे के घर से निकल रही थी। अर्थी को कंधा देकर बेटे ने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया था और पिता ने पुत्र का मान बचाकर।

©डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – बच्च न मारना ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कथा कहानी ☆ लघुकथा – बच्च न मारना ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

(स्वतंत्रता दिवस पर कुछ सवाल करतीं लघुकथा)

ऐसा अक्सर होता ।

मैं खेतों में जैसे ही ताजी सब्जी तोड़ने पहुंचता,  तभी मेरे पीछे बच्च न मारना की गुहार मचाता हुआ दुम्मन मेरे पास आ पहुंचता। थैला लेकर खुद सब्जी तोड़ कर देता । मैं समझता कि वह अपने लाला का एक प्रकार से सम्मान कर रहा है।

एक दिन दुम्मन कहीं दिखाई नहीं दिया । मैं खुद ही सब्जी तोडने लगा । जब तक इस काम से निपटता,  तब वही पुकार मेरे कानों में गूंज उठी- लाला जी, बच्च नहीं मारना । लाला जी,,,,,,

लेकिन पास आते आते वही सब्जी के पौधों और बेलों को रूंड मुंड देखकर उदास हो गया ।

एकाएक उसके मुंह से निकला- आखिर आज वही बात हुई, जिसका डर था,,

-क्या हुआ ?

-लाला जी, आज आपने बच्च मार ही दिया न,,,?

-क्या मतलब ? मैंने क्या किया है ?

-आप लाला लोग तो थैला भरने की सोचेंगे,  कल की नहीं सोचेंगे। बच्च का मतलब बहुत छोटी सब्जी,  जिस पर आज नहीं बल्कि कल की आशाएं लगाई जाती हैं । यदि उसे भी आज ही तोड़ लिया जाए तो  तोड़ने कल आप खेतों में क्या पायेंगे ?

-अरे, गलती हो गई।

मैं चला तोड़ने मेरा थैला किसी अपराधी की गठरी समान भारी हो गया। मैं किसी को कह भी नही सका कि मैंने तो सब्जी ही खराब की हैं,  लेकिन जो नेता अगली पीढी को राजनीति की अंधी दौड में दिशाहीन किए जा रहे हैं, वे देश के कल को बर्बाद नहीं कर रहे?

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लघुकथा – घड़ी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

 ? संजय दृष्टि –  लघुकथा – घड़ी ??

अंततः यमलोक को झुकना पड़ा। मर्त्यलोक और यमलोक में समझौता हो गया। समझौते के अनुसार जन्म के साथ ही बच्चे की कलाई पर यमदूत जीवनकाल दर्शाने वाली घड़ी बांध जाता। थोड़ी समझ आते ही अब हर कोई कलाई पर बंधी घड़ी की सूइयाँ पीछे करने लग गया।

वह अकाल मृत्यु का युग था। उस युग में हर कोई जवानी में ही गुज़र गया।

केवल एक आदमी उस युग में बेहद बुजुर्ग होकर गुज़रा। सुनते हैं, उसने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी बचपन में ही उतार फेंकी थी।

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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