(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कहानी – “स्वर्ग के लिए जुगाड़”।)
☆ कथा कहानी # 158 ☆ “स्वर्ग के लिए जुगाड़” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
बुआ चार घंटे पूजा करतीं हैं, 70 पार हो गई हैं। भगवान से अच्छी दोस्ती है तो पूजा के दौरान दो-तीन घंटे लड़के बहू की निंदा भगवान से कर लेतीं हैं, जीवन भर ससुराल वालों से चिढ़ती रहीं, मास्टरनी रहीं थीं तो पैसे का घमंड ब्याज के साथ मिला था।
चार दिन से नहाया धोया नहीं था तो भगवान को भोग भी नहीं लगा था, चार दिन भगवान भूखे थे, बुआ के चार दिन के बुखार ने तोड़ दिया था, जब ठीक हुईं तो नहा धोकर भगवान से बोलीं – मेरे सिवाय तुमको खाना देने वाला कौन है, तुम चार दिन से निर्जला बैठे हो, मुझे दुख है, पर इस बात की खुशी भी है कि इस बार तुमने मेरे कारण चार दिन का उपवास कर लिया है तो तुम्हारा स्वर्ग में जाना तय है और मुझे भी साथ ले चलोगे तो अगली बार से भूखा नहीं रहना पड़ेगा।
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है।
अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)
☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #110 हुनर और परिश्रम की कीमत ☆ श्री आशीष कुमार☆
पिता ने बेटे से कहा, “तुमने बहुत अच्छे नंबरों से ग्रेजुएशन पूरी की है। अब क्यूंकि तुम नौकरी पाने के लिए प्रयास कर रहे हो, मैं तुमको यह कार उपहार स्वरुप भेंट करना चाहता हूँ, यह कार मैंने कई साल पहले हासिल की थी, यह बहुत पुरानी है। इसे कार डीलर के पास ले जाओ और उन्हें बताओ कि तुम इसे बेचना चाहते हो। देखो वे तुम्हें कितना पैसा देने का प्रस्ताव रखते हैं।”
बेटा कार को डीलर के पास ले गया, पिता के पास लौटा और बोला, “उन्होंने 60,000 रूपए की पेशकश की है क्योंकि कार बहुत पुरानी है।” पिता ने कहा, “ठीक है, अब इसे कबाड़ी की दुकान पर ले जाओ।”
बेटा कबाड़ी की दुकान पर गया, पिता के पास लौटा और बोला, “कबाड़ी की दुकान वाले ने सिर्फ 6000 रूपए की पेशकश की, क्योंकि कार बहुत पुरानी है।”
पिता ने बेटे से कहा कि कार को एक क्लब ले जाए जहां विशिष्ट कारें रखी जाती हैं।
बेटा कार को एक क्लब ले गया, वापस लौटा और उत्साह के साथ बोला, “क्लब के कुछ लोगों ने इसके लिए 60 लाख रूपए तक की पेशकश की है! क्योंकि यह निसान स्काईलाइन आर34 है, एक प्रतिष्ठित कार, और कई लोग इसकी मांग करते हैं।”
पिता ने बेटे से कहा, “कुछ समझे? मैं चाहता था कि तुम यह समझो कि सही जगह पर ही तुम्हें सही महत्व मिलेगा। अगर किसी प्रतिष्ठान में तुम्हें कद्र नहीं मिल रही, तो गुस्सा न होना, क्योंकि इसका मतलब एक है कि तुम गलत जगह पर हो।
सफलता केवल अपने हुनर और परिश्रम से नहीं मिल जाती, लोगों के साथ मिलती है, और तुम किन लोगों के बीच में हो, कुछ समय में तुमको स्वतः ही ज्ञात हो जाएगा। तुम्हें सही जगह पर जाना होगा, जहाँ लोग तुम्हारी कीमत जानें और सराहना करें।
(श्री सदानंद आंबेकर जी की हिन्दी एवं मराठी साहित्य लेखन में विशेष अभिरुचि है। भारतीय स्टेट बैंक से स्व-सेवानिवृत्ति के पश्चात गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार के निर्मल गंगा जन अभियान के अंतर्गत गंगा स्वच्छता जन-जागरण हेतु गंगा तट पर 2013 से निरंतर योगदान के लिए आपका समर्पण स्तुत्य है। आज प्रस्तुत है श्री सदानंद जी की पितृ दिवस की समाप्ति एवं नवरात्र के प्रारम्भ में समसामयिक विषय पर आधारित एक विशेष कथा “रावण दहन”। इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्री सदानंद जी की लेखनी को नमन।)
☆ कथा कहानी ☆ लघुकथा – रावण दहन ☆ श्री सदानंद आंबेकर ☆
दशहरे के दूसरे दिन सुबह, चाय की चुस्कियों के साथ रामनाथ जी ने अखबार खोल कर पढना आरंभ किया। दूसरे ही पृष्ठ पर एक महानगर में कुछ व्यक्तियों के द्वारा एक अवयस्क लडकी के सामूहिक शीलहरण का समाचार बडे़ से शीर्षक के साथ दिखाई दिया। पूरा पढ़ने के बाद उनका मन जाने कैसा हो आया। दृष्टि हटाकर आगे के पृष्ठ पलटे तो एक पृष्ठ पर समाचार छपा दिखा – नन्हीं नातिन के साथ नाना ने अपने धर्म की शिक्षा देने के बहाने शारीरिक हमला किया, गुस्से के मारे वह पृष्ठ बदला ही था कि चौथे पन्ने पर बाॅक्स में समाचार छपा था – एक बडे नेता को लडकियों की तस्करी के आरोप में पुलिस ने दबोचा। वाह रे भारतवर्ष !! कहते हुये वे अगले पृष्ठ को पढ रहे थे कि रंगीन फोटो सहित समाचार सामने पड़ गया – मुंबई पुलिस ने छापा मार कर फिल्म जगत की बडी हस्तियों को गहरे नशे की हालत में अशालीन अवस्था में गिरफ्तार किया- हे राम, हे राम कहकर आगे नजर दौडाई कि स्थानीय जिले का समाचार दिखाई दिया, नगर में एक बूढे दंपति को पैसों के लिये नौकर ने मार दिया और नगदी लेकर भाग गया। यह पढकर वे कुछ देर डरे रहे फिर लंबी सांस भर कर अखबार में नजर गड़ा दी। सातवें पृष्ठ का समाचार पढ़ कर उन्हें अपने युवा पोते का स्मरण हो आया, लिखा था- राजधानी में चंद पैसों और मौज-मस्ती के लिये युवा छात्र चेन झपटने, और मोटरसायकिल चोरी के आरोप में पुलिस द्वारा पकड़े गये। इन युवाओं के आतंक की गतिविधियों में जुडे़ होने का संदेह भी व्यक्त किया गया था।
अंतिम पृष्ठ पर दशहरे पर अनेक स्थानों पर रावण दहन की बड़ी बड़ी तस्वीरें छपी थीं जिन्हें देखकर रामनाथ जी सोचने लगे कि- कल हमने किसे जलाया था ????
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जीका हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है एक ज्ञानवर्धक बाल कथा –“जबान की आत्मकथा”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 121 ☆
☆ बाल कथा – जबान की आत्मकथा ☆
“आप मुझे जानते हो?” जबान ने कहा तो बेक्टो ने ‘नहीं’ में सिर हिला दिया. तब जबान ने कहा कि मैं एक मांसपेशी हूं.
बेक्टो चकित हुआ. बोला, ” तुम एक मांसपेशी हो. मैं तो तुम्हें जबान समझ बैठा था.”
इस पर जबान ने कहा, ” यह नाम तो आप लोगों का दिया हुआ है. मैं तो आप के शरीर की 600 मांसपेशियों में से एक मांसपेशी हूं. यह बात और है कि मैं सब से मजबूत मांसपेशी हूं. जैसा आप जानते हो कि मैं एक सिरे पर जुड़ी होती हूं. बाकी सिरे स्वतंत्र रहते हैं.”
जबान में बताना जारी रखो- मैं कई काम करती हूं. बोलना मेरा मुख्य काम है. मेरे बिना आप बोल नहीं सकते हो. अच्छा बोलती हूं. सब को मीठा लगता है. बुरा बोलती हूं. सब को बुरा लगता है. इस वजह से लोग प्रसन्न होते हैं. कुछ लोग बुरा सुन कर नाराज हो जाते हैं.
मैं खाना खाने का मुख्य काम करती हूं. खाना दांत चबाते हैं. मगर उन्हें इधरउधर हिलानेडूलाने का काम मैं ही करती हूं. यदि मैं नहीं रहूं तो तुम ठीक से खाना चबा नहीं पाओ. मैं इधरउधर खाना हिला कर उसे पीसने में मदद करती हूं.
मेरी वजह से खाना स्वादिष्ट लगता है. मेरे अंदर कई स्वाद ग्रथियां होती है. ये खाने से स्वाद ग्रहण करती है. उन्हें मस्तिष्क तक पहुंचाती है. इस से ही आप को पता चलता है की खाने का स्वाद कैसा होता है?
जब शरीर में पानी की कमी होती है तो मेरे द्वारा आप को पता चलता है. आप को प्यास लग रही है. कई डॉक्टर मुझे देख कर कई बीमारियों का पता लगाते हैं. इसलिए जब आप बीमार होते हो तो डॉक्टर मुंह खोलने को कहते हैं. ताकि मुझे देख सकें.
मैं दांतों की साफसफाई भी करती हूं. दांत में कुछ खाना फंस जाता है तब मुझे सब से पहले मालूम पड़ता है. मैं अपने खुरदुरेपन से दांत को रगड़ती रहती हूं. इस से दांत की गंदगी साफ होती रहती है. मुंह में दांतों के बीच फंसा खाना मेरी वजह से बाहर आता है.
मेरे नीचे एक लार ग्रंथि होती है. इस से लार निकलती रहती है. यह लार खाने को लसलसा यानी पानीदार बनाने का काम करती है. इसी की वजह से दांत को खाना पीसने में मदद मिलती है. मुंह में पानी आना- यह मुहावरा इसी वजह से बना है. जब अच्छी चीज देखते हो मेरे मुंह में पानी आ जाता है.
कहते हैं जबान लपलपा रही है. या जबान चटोरी हो गई. जब अच्छी चीजें देखते हैं तो जबान होंठ पर फिरने लगती है. इसे ही जबान चटोरी होना कहते हैं. इसी से पता चलता है कि आप कुछ खाने की इच्छा रखते हैं.
यदि जबान न हो तो इनसान के स्वाभाव का पता नहीं चलता है. वह किस स्वभाव का है? इसलिए कहते हैं कि बोलने से ही इनसान की पहचान होती है. यदि वह मीठा बोलता है तो अच्छा व्यक्ति है. यदि कड़वा या बेकार बोलता है तो खराब व्यक्ति है.
यह सब कार्य मस्तिष्क करवाता है. मगर, बदनाम मैं होती हूं. मन कुछ सोचता है. उसी के अनुसार मैं बोल देती हूं. इस कारण मैं बदनाम होती हूं. मेरा इस में कोई दोष नहीं होता है.
जबान इतना बोल रही थी कि तभी बेक्टो जाग गया. जबान का बोलना बंद हो गया.
‘ओह! यह सपना था.’ बेक्टो ने सोचा और आंख मल कर उठ बैठा. उसे पढ़ कर स्कूल जाना था. मगर उस ने आज बहुत अच्छा सपना देखा था. वह जबान से अपनी आत्मकथा सुन रहा था. इसलिए वह बहुत प्रसन्न था.
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
🕉️ नवरात्र साधना कल सम्पन्न हुई 🌻
देह में विराजता है परमात्मा का पावन अंश। देहधारी पर निर्भर करता है कि वह परमात्मा के इस अंश का सद्कर्मों से विस्तार करे या दुष्कृत्यों से मलीन करे।
परमात्मा से परमात्मा की यात्रा का प्रतीक हैं श्रीराम। परमात्मा से पापात्मा की यात्रा का प्रतीक है रावण।
आज के दिन श्रीराम ने रावण पर विजय पाई थी। माँ दुर्गा ने महिषासुर का मर्दन किया था।भीतर की दुष्प्रवृत्तियों के मर्दन और सद्प्रवृत्तियों के विजयी गर्जन के लिए मनाएँ विजयादशमी।
त्योहारों में पारंपरिकता, सादगी और पर्यावरणस्नेही भाव का आविर्भाव रहे। अगली पीढ़ी को त्योहार का महत्व बताएँ, त्योहार सपरिवार मनाएँ।
🙏 विजयादशमी की हृदय से बधाई🍁
आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
संजय दृष्टि – लघुकथा – ईडेन
….उस रास्ते मत जाना, आदम को निर्देश मिला। आदम उस रास्ते गया। एक नया रास्ता खुला।
….पानी में खुद को कभी मत निहारना। हव्वा ने निहारा खुद को। खुद के होने का अहसास जगा।
….खूंखार जानवरों का इलाका है। वहाँ कभी मत जाना।….आदम इलाके में घुसा, जानवरों से उलझा। उसे अपना बाहुबल समझ में आया।
….आग से हमेशा दूर रहना, हव्वा को बताया गया। हव्वा ने आग को छूकर देखा। तपिश का अहसास हाथ और मन पर उभर आया।
….उस पेड़ का फल मत खाना। आदम और हव्वा ने फल खाया। सृष्टि का जन्म हुआ, ईडेन धरती पर उतर आया।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जीका हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है एक ज्ञानवर्धक बाल कथा –“सूरज की कहानी ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 120 ☆
☆ बाल कथा – सूरज की कहानी ☆
सूरज उस के पास आ रहा था. राहुल ने सपना देखा.
“मैं बहुत थक चुका हूं. क्या तुम्हारे पास बैठ कर बतिया सकता हूं?” उस ने पूछा.
“हां क्यों नहीं सूरजदादा,” कह कर राहुल ने पूछा, “मगर आप आए कितनी दूर से हैं ?”
सूरज ने राहुल के पास बैठते हुए बताया, “मैं इस धरती 9 करोड़ 30 लाख मील दूर से आया हूं,” यह कह कर उस ने पूछा, “क्या तुम्हें मेरा आना अच्छा नहीं लगा?”
“नहीं नहीं, ऐसी बात नहीं है. सरदी में आप अच्छे लगते हो, मगर गरमी में बुरे. ऐसा क्यों?”
“क्योंकि मैं सरदी में कर्क रेखा से हो कर गुजरता हूं. इसलिए मैं कम समय तक चमकता हूं. तिरछा होने से मेरा प्रकाश धरती पर कम समय तक के लिए पड़ता है. इस कारण ठंड में तुम्हें मेरी गरमी चुभती नहीं है.”
“मतलब, आप गरमी में धरती के पास आ जाते हैं?”
“नहीं, मैं सदा एक ही दूरी पर रहता हूं. मगर गरमी में मेरे मकर रेखा पर आने से मेरा प्रकाश सीधा पड़ता है. मैं ज्यादा समय तक धरती के जिस भाग पर चमकता हूं, वहां का मौसम बदल जाता है, यानी गरमी आ जाती है?”
“यानी कि आप आकाश के अकेले ही राजा हैं?”
तब सूरज बोला, “नहीं राहुल, आकाश में मेरे जैसे अरबों खरबों सूरज हैं. इन के अतिरिक्त 1,000 करोड़ से अधिक सूरज लुकेछिपे भी हैं.”
“लेकिन सूरजदादा, वे हमें दिखाई क्यों नहीं देते?”
“क्योंकि वे धरती से करोड़ों अरबों किलोमीटर दूर होते हैं, ” सूरज ने आकाश की ओर इशारा करते हुए बताया, “वे जो तारे देख रहे हो न, वे सब बड़ेबड़े सूरज ही हैं.”
“अच्छा.”
“हां, मगर जानते हो, हम में प्रकाश कहां से आता है?” सूरज ने प्रश्न किया.
“नहीं तो?” राहुल ने गरदन हिला कर कहा तो सूरज बोला, “हम में 85 प्रतिशत हाइड्रोजन गैस होती है. यह गैस अत्यंत ज्वलनशील होती है. यह निरंतर जलती रहती है. इस कारण हम प्रकाशमान प्रतीत होते हैं.”
“मतलब यह है कि जब यह हाइड्रोजन गैस समाप्त हो जाएगी, तब आप खत्म हो जाएंगे?”
“हां” मगर यह गैस 50 करोड़ वर्ष तक जलती रहेगी, क्योंकि हमारी आयु 50 करोड़ वर्ष मानी गई है.”
“अच्छा, पर यह बताइए कि आप कितनी हाइड्रोजन जलाते हो?” राहुल ने पूछा.
“मैं प्रति सेकंड 60 करोड़ टन हाइड्रोजन गैस जलाता हूं.” सूरज ने यह कहते हुए पूछा. “क्या तुम्हें मालूम है, मेरा आकार कितना बड़ा है.”
“नहीं, आप ही बताइए न.”
“मुझ में 10 लाख पृथ्वियां समा सकती हैं. मैं इतना बड़ा हूं.”
“मगर, आप काम क्या करते हैं?”
“अरे राहुल, तुम्हें इतना भी नहीं मालूम. मेरी उपस्थिति में ही पेड़पौधे भोजन बनाते हैं. जिस की क्रिया के फलस्वरूप आक्सीजन बनती है, जिस से आप लोग सांस के जरिए ग्रहण कर जिंदा रहते हैं. यदि मैं ठंडा हो जाऊं तो धरती बर्फ में बदल जाए. पेड़पौधे, जीवजंतु सब नष्ट हो जाएं. “यानी आप बहुत उपयोगी हो?”
“हां,” सूरज ने कहा. फिर उठ कर चलते हुए बोला, “अच्छा बेटा, मैं चलता हूं. सुबह के 6 बजने वाले हैं.”
तब तक राहुल की नींद खुल चुकी थी. वह बहुत खुश था, क्योंकि उस ने सपने में बहुत अच्छी जानकारी प्राप्त की थी.
उस ने अपने सपने के बारे में अपने मातापिता को बताया तो वे बोले, “चलो, तुम्हें कुछ नई जानकारी तो मिली.”
(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत है। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम लघुकथा “नदी के तट”।)
~ मॉरिशस से ~
☆ कथा कहानी ☆ लघुकथा – नदी के तट – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆
लड़का नदी के इस पार और लड़की उस पार रहती थी। लड़का यहीं पल कर बड़ा हुआ था। लड़की अभी हाल में यहाँ आयी थी। नदी सदाबहार थी। उस में पानी कभी कम न होता था। पानी की महिमा ऐसी कि वह पारदर्शी और शांत स्वभाव का परिचायक था। धारा न ज्यादा चंचल न ज्यादा गंभीर। लड़के को इस नदी से बहुत प्यार था। लड़की जब से आयी लड़के में एक अजीब सी स्फूर्ति आने लगी थी। उसे लगता था लड़की तो उसी के लिए यहाँ रहने आयी है। लड़की बस अपने पाँव धोने नदी आती थी। लड़के ने भी अपने पाँव धोने की आदत बना ली। लड़की इसके बाद स्कूल चली जाती थी। लड़के को भी स्कूल जाना होता था तो वह चला जाता था।
हवा में विचरने वाले कवि की नजर उन पर पड़ी तो उसने अपना निर्णय अटल मान लिया उसे दोनों पर प्रेम कविता तो लिखनी ही है। कवि वहीं ठहर गया। वह मौके की तलाश में था। कभी तो दोनों प्रकृति प्रदत्त नदी के तट पर प्रेम करते।
अजीब ही था बरसों एक इस पार से और एक उस पार से नदी में पाँव धोने आते रहे, लेकिन उनके बीच कभी बातें होती नहीं थीं। नदी ज्यादा चौड़ी भी तो नहीं थी कि बात करें तो एक दूसरे को सुनाई न दे।
बाद में लड़की की कहीं और शादी हो गयी। लड़के ने शादी नहीं की। प्रेम की दुनिया में इस तरह विछोह आ जाने से कवि को प्रेम कविता के लिए आधार तो मिला ही नहीं। अब कवि को इसकी उम्मीद रहती भी नहीं। हवा का अंग होने से हवा में सवार हो कर कवि कहीं और के लिए चल दिया।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
आज की साधना (नवरात्र साधना)
इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे।
अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे।
मंगल भव। 💥
आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
संजय दृष्टि – लघुकथा – या क्रियावान
बंजर भूमि में उत्पादकता विकसित करने पर सेमिनार हुए, चर्चायें हुईं। जिस भूमि पर खेती की जानी थी, तंबू लगाकर वहाँ कैम्प फायर और ‘अ नाइट इन द टैंट’ का लुत्फ लिया गया। बड़ी राशि खर्च कर विशेषज्ञों से रिपोर्ट बनवायी गई। उसकी समीक्षा और नये साधन जुटाने के लिए समिति बनी। फिर उपसमितियों का दौर चलता रहा।
उधर केंचुओं का समूह, उसी भूमि के गर्भ में उतरकर एक हिस्से को उपजाऊ करने के प्रयासों में दिन-रात जुटा रहा। उस हिस्से पर आज लहलहाती फसल खड़ी है।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “कुर्सी का सवाल”।)
☆ लघुकथा # 156 ☆ “कुर्सी का सवाल” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
नेता जी हमसे हमेशा भाषण लिखवाते हैं फिर सुबह चार बजे उठकर भाषण को चिल्ला चिल्ला कर रटते हैं। आज के भाषण में हमने तुलसीदास जी की ये चौपाई का जिक्र कर दिया……
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||
नेताजी ने इस चौपाई को सौ बार पढ़ा पर उन्हें याद नहीं हो रही थी और न इसका मतलब समझ आ रहा था तो उन्होंने चुपके से फोन करके हमें अकेले में बुलाया और कहने लगे इस बार के भाषण में ये क्या लिख दिया है हमारे समझ में नहीं आ रहा है, इसका असली मतलब बताइये। हमने कहा कि तुलसीदास जी ने इन चार लाइनों में कहा है कि मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है ।
नेताजी कुछ सोचते रहे फिर बोले – नाश हो जाता है तो कोई बात नहीं, हमारी कुर्सी तो सलामत रहेगी न……..?
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर विचारणीय लघुकथा – लौटना।)
☆ लघुकथा – लौटना ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
“उसे गये साल भर हो गया। कहता था, कुछ बनकर दिखाऊँगा। क्या कभी उसे अपने पिता की याद नहीं आई होगी? मुझे बहुत बार लगा कि वह दरवाज़े के बाहर खड़ा मुझे पुकार रहा है। हर बार वह पुकार मेरा भ्रम साबित हुई। क्या वो कभी नहीं लौटेगा युगल?”
“ईश्वर पर यक़ीन करो। वह अवश्य आएगा। यूँ कोई अपने घर-परिवार को भूल थोड़े ही जाता है। बेटा है वो तुम्हारा, ज़रूर याद करता होगा।”
“नहीं आ पाया तो कोई चिट्ठी ही भेज देता!”
“ये आजकल के बच्चे भी बहुत ज़िद्दी हैं। वह अवश्य ही बड़ा आदमी बनकर आएगा।”
“यह जो कुत्ता है न, साल-डेढ़ साल पहले इतना सा पिलूरा था। मैंने इसे पाला नहीं था, पर यह सारा दिन हमारे दरवाज़े पर बैठा किंकियाता रहता। कभी-कभी मैं इसे रोटी का टुकड़ा डाल देता था, बस। इसको भगाने की मैंने बहुत कोशिश की, पर यह नहीं गया। इसके शोर और गंदगी से परेशान होकर मैं इसे बोरे में भरकर तीस किलोमीटर दूर शहर में छोड़ आया, यह दो दिन बाद ही लौट आया। यह तो कुत्ता है और वो इन्सान होकर भी …”
“कुत्ते, कबूतर तो लौट आते हैं दोस्त ! ये तो इन्सान ही है जो…!”