श्री कमलेश भारतीय
(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ कथा-कहानी ☆ लघुकथाएं – गुनाहगार, तिलस्म और सेलिब्रिटी ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
(हंस प्रकाशन, दिल्ली से शीघ्र प्रकाश्य “मैं नहीं जानता” लघुकथा संग्रह में से । ये तेरे प्रतिरूप ,,,)
गुनाहगार
रात देर से आए थे , इसलिए सुबह नींद भी देर से खुली । तभी ध्यान आया कि कामवाली नहीं आई । शुक्र है उसने अपना फोन नम्बर दे रखा है । फोन लगाया ।
उसका पति बोला कि रीटा बीमार है । काम पर आ नहीं सकती ।
पता नहीं कैसे पारा चढ़ गया- क्यों नहीं आ सकती ? सारा घर बिखरा पड़ा है । कपड़े धुलवाने हैं । हम क्या करें ?
कामवाली का पति बोला – कहा न साहब कि बीमार है । आ नहीं सकती । दवा लेकर लेटी हुई है । बात भी नहीं कर सकती ।
– हम तीन दिन बाद आए । पहले ही छुट्टियां दे दीं । अब काम वाले दिनों में भी छुट्टी करेगी तो कैसे चलेगा ?
– क्या उसे बीमार होने का हक भी नहीं , साहब ? बीमारी क्या छुट्टियों का हिसाब लगा करके आयेगी ?
– हम कुछ नहीं जानते । कोई इंतजाम करो ।
– ठीक है, साहब । मेरे बच्चे काम करने आ जाते हैं ।
कुछ समय बाद स्कूल यूनिफाॅर्म में दो छोटे बच्चे आ गये । फटाफट क्रिकेट की तरह काम करने लगे । छोटी बच्ची ने बर्तन मांजे । बड़े भाई ने झाड़ू लगाया । काम खत्म कर पूछा- अब जायें , साहब ?
मैंने पूछा – पहले भी कहीं काम करने गये हो ?
बच्चों ने सहम कर कहा- नहीं , साहब । मां ने दर्द से कराहते कहा था- जाओ , काम कर आओ । नहीं तो ये घर छूट जायेगा ।
मैं शर्मिंदा हो गया । कितनी बार बाल श्रमिकों पर रिपोर्ट्स लिखीं । आज कितना बड़ा गुनाह कर डाला । मैंने ही अपनी आंखों के सामने बाल श्रमिकों को जन्म दिया ? इससे बड़ा गुनाह क्या हो सकता है ? अपनी आत्मा पर इसका बोझ कब तक उठाऊंगा ? गुनाह तो बहुत बड़ा है ।
तिलस्म
रात के गहरे सन्नाटे में किसी वीरान फैक्ट्री से युवती के चीरहरण की आवाज सुनी नहीं गयी पर दूसरी सुबह सभी अखबार इस आवाज़ को हर घर का दरवाजा पीट पीट कर बता रहे थे । दोपहर तक युवती मीडिया के कैमरों की फ्लैश में पुलिस स्टेशन में थी ।
किसी बड़े नेता के निकट संबंधी का नाम भी उछल कर सामने आ रहा था । युवती विदेश से आई थी और शाम किसी बड़े रेस्तरां में कॉफी की चुस्कियां ले रही थी । इतने में नेता जी के ये करीबी रेस्तरां में पहुंच गये । अचानक पुराने रजवाड़ों की तरह युवती की खूबसूरती भा गयी और फिर वहीं से उसे बातों में फंसा कर ले उड़े । बाद की कहानी वही सुनसान रात और वीरान फैक्ट्री ।
देश की छवि धूमिल होने की दुहाई और अतिथि देवो भवः की भावना का शोर । ऊपर से विदेशी दूतावास । दबाब में नेता जी को मोह छोड़ कर अपने संबंधियों को समर्पण करवाना ही पड़ा । फिर भी लोग यह मान कर चल रहे थे कि नेता जी के संबंधियों को कुछ नहीं होगा । कभी कुछ बिगड़ा है इन शहजादों का ? केस तो चलते रहते हैं । अरे ये ऐसा नहीं करेंगे और इस उम्र में नहीं करेंगे तो कौन करेगा ? इनका कुछ नहीं होता और लोग भी जल्दी भूल जाते हैं । क्या यही तिलस्म था या है ? ये लोग तो बाद में मज़े में राजनीति में भी प्रवेश कर जाते हैं ।
थू थू सहनी पड़ी पर युवती विदेशी थी और उसका समय और वीजा ख़त्म हो रहा था । बेशक वह एक दो बार केस लड़ने , पैरवी करने आई लेकिन कब तक ?
बस । यही तिलस्म था कि नेता जी के संबंधी बाइज्जत बरी हो गये ।
सेलिब्रिटी
संवाददाता का काम है- सेलिब्रिटी को ढूंढ निकालना । सेलिब्रिटी क्या करता है? कैसे रहता है? कहां जा रहा है ? सब कुछ मायने रखता है ।संवाददाता की दौड़ इनके जीवन व दिनचर्या के आसपास लगी रहती है । पिछले कई वर्षों से इस क्षेत्र में हूं । सुबह उठते ही सेलिब्रिटीज का ध्यान करता घर के गेट के आगे खड़ा था । पड़ोस में बर्तन मांझते व सफाई करने वाली प्रेमा आई तो साथ में उसकी बेटी को देखकर थोड़ा हैरान होकर पूछा – कयों , आज इसके स्कूल में छुट्टी है क्या ?
– नहीं तो । यह तो घरों में काम करने जा रही है ।
– कयों ? पढ़ाने का इरादा नहीं ?
– मेरा तो इसे पढ़ाने का विचार है लेकिन इसने अपनी नानी के लिए पढ़ाई छोड दी । बर्तन मांझने का फैसला किया है ।
– क्यों बेटी, ऐसा किसलिए ?
– नानी बीमार रहती है । मां के काम के पैसे से घर का गुजारा ही मुश्किल से होता है । नानी की दवाई के लिए पैसे कहां से आएं ? मैं काम करूंगी तो नानी की दवाई आ जायेगी ।
इतना कहते बेटी मां के साथ काम पर चली गई । मैंने मन ही मन इस सेलिब्रिटी के आगे सिर झुका दिया ।
संस्कृति
-बेटा , आजकल तेरे लिए बहुत फोन आते हैं ।
– येस मम्मा ।
-सबके सब छोरियों के होते हैं । कोई संकोच भी नहीं करतीं । साफ कहती हैं कि हम उसकी फ्रेंड्स बोल रही हैं ।
– येस मम्मा । यही तो कमाल है तेरे बेटे का ।
-क्या कमाल ? कैसा कमाल ?
– छोरियां फोन करती हैं । काॅलेज में धूम हैं धूम तेरे बेटे की ।
– किस बात की ?
– इसी बात की । तुम्हें अपने बेटे पर गर्व नहीं होता।
– बेटे । मैं तो यह सोचकर परेशान हूं कि कल कहीं तेरी बहन के नाम भी उसके फ्रेंड्स के फोन आने लगे गये तो ,,,?
– हमारी बहन ऐसी वैसी नहीं हैं । उसे कोई फोन करके तो देखे ?
– तो फिर तुम किस तरह कानों पर फोन लगाए देर तक बातें करते रहते हो छोरियों से ?
-ओ मम्मा । अब बस भी करो ,,,,
© श्री कमलेश भारतीय
पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
संपर्क : 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈