हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#7 – [1] सफ़ेद दाग [2] मेडीकली अनफिट ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह  पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। 
आपने लघु कथा को लेकर एक प्रयोग किया है।  एक विषय पर अनेक लघुकथाएं  लिखकर। इस श्रृंखला में  शादी-ब्याह विषय पर हम  प्रतिदिन  आपकी दो लघुकथाएं धारावाहिक स्वरुप में प्रस्तुत कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है आपकी दो लघुकथाएं  “सफेद दाग“एवं “मेडीकली अनफिट”।  हमें पूर्ण आशा है कि आपको यह प्रयोग अवश्य पसंद आएगा।)

☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#7 – [1] सफेद दाग  [2] मेडीकली अनफिट 

[1]

सफेद दाग

शादी—शादी—शादी— नहीं करना है मुझे शादी। बिना नौकरी चाकरी के कहीं शादी होती है?

लड़का बुरी तरह माँ बाप से लड़ झगड़ रहा  था।

माँ बोलीं-  मूर्ख मत बन, अकेली लड़की है और भगवान का दिया सब कुछ उनके पास है। फोर व्हीलर तो वे लगुन में ही दे रहे हैं।

‘जरूर कुछ नुक्स होगा माँ,  मुझे नहीं करनी ऐसी शादी जिसमें पूरी जिंदगी ससुराल वालों पर लदे रहो।’

पिता ने आगे बात संभाली- बेवकूफी मत कर बेटा, थोड़े से सफेद दाग हैं तो मिट जाएंगे दवा दारू से, एक से बढ़कर एक  डाक्टर हैं आजकल। रोग का क्या किसी को भी हो सकता है। बस तू मना मत कर, मुझे कल ही ज़बाब देना है।

माँ बाप का जबरिया हाँ कराने का प्रयास पीढ़ियों से जारी है।

[2]

मेडीकली अनफिट

बेटी ब्याह के बाद पहली बार मायके आई तो भाभियों ने श्री नवेली को घेर लिया। चुहलबाज़ी तो होनी ही थी।

‘क्या मिला सुहागरात में’ – बडी भाभी ने बड़ी बड़ी आँखें मटकाकर पूछा।’

‘और सुहागरात कैसी रही’ – छोटी ज्यादा रसीली थी।

बेचारी ननद क्या बोलती? उसे मिला तो सब कुछ था, सिवाय एक पति के, बगल के कमरे में रात भर सोया पड़ा रहा। पति में वह गर्मी तलाशती रही – पर हो तब न।

 

© डॉ कुँवर प्रेमिल

एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 64 ☆ अजीजन बाई ☆ डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  स्वतंत्रता संग्राम की एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित प्रेरक लघुकथा अजीजन बाई। यह लघुकथा हमें हमारे इतिहास के एक भूले बिसरे  स्त्री चरित्र की याद दिलाती है।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस प्रेरणास्पद लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 64 ☆

☆ अजीजन बाई ☆

वह प्रसिद्ध नर्तकी थी, उसे घुंघरू पहना दिए गए थे। महफिल में उसका नृत्य देखने दूर – दूर से लोग आया करते थे। बात सन् 1857 की है जब स्वतंत्रता सेनानी मातृभूमि की रक्षा के लिए जान की बाजी लगा रहे थे। अजीजन बाई उदास थी, तबले की थाप और  घुंघरुओं की आवाज अब उसे अच्छी नहीं लग रही थी।  उसने घुंघरू उतार दिए। जहाँ कभी महफिलें गुलजार हुआ करती थीं, वहाँ  अजीजन क्रांतिकारियों के साथ मिलकर स्वाधीन भारत के सपने संजोने लगी। उसका प्रेम अब देशभक्तों पर लुट रहा था। उसने अपने बेशकीमती गहने, धन-दौलत सब भारत माता के आँचल में खुशी -खुशी न्यौछावर कर दिए।

अजीजन की मस्तानी टोली अंग्रेजों की छावनी में जाकर उनका मनोरंजन करने के बहाने वहां की गुप्त सूचनाएं स्वतंत्रता सेनानियों तक पहुंचाया करती थी। वे घायल क्रांतिकारियों की देखभाल करतीं, उन्हें भोजन और जरूरी सामान पहुँचातीं। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बिठूर के युद्ध में हार जाने  पर नाना साहब और तात्या टोपे तो बच निकले, अजीजन पकड़ी गई। अंग्रेज अधिकारी ने शर्त रखी कि यदि वह स्वतंत्रता सेनानियों की योजनाओं के बारे में बता दे तो उसे माफ कर दिया जाएगा। अजीजन मुस्कुराते हुए बोली – जानकारी देने का तो सवाल ही नहीं है और माफी तो अंग्रेजों को हमारे देशवासियों से मांगनी चाहिए जिन पर उन्होंने अत्याचार किए हैं। हम तो अपनी मातृभूमि का कर्ज उतार रहे हैं बस। इतना सुनते ही अपमान से तिलमिलाए अंग्रेज अधिकारी ने अजीजन के शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया।

अजीजन पूरे भारत देश की अज़ीज़ हो गईं।

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#6 – [1] सोने की मुर्गी [2] वैभव ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह  पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। 
आपने लघु कथा को लेकर एक प्रयोग किया है।  एक विषय पर अनेक लघुकथाएं  लिखकर। इस श्रृंखला में  शादी-ब्याह विषय पर हम  प्रतिदिन  आपकी दो लघुकथाएं धारावाहिक स्वरुप में प्रस्तुत कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है आपकी दो लघुकथाएं  “सोने की मुर्गी“एवं “वैभव”।  हमें पूर्ण आशा है कि आपको यह प्रयोग अवश्य पसंद आएगा।)

☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#6 – [1] सोने की मुर्गी  [2] वैभव 

[1]

सोने की मुर्गी

‘अरे सुनिए जी, लड़की वालों का फोन है—बात करिए—लीजिए ।’

‘आता हूँ भाग्यवान, तब तक तमीज से बातें करती रहो। लड़के वालों वाला रोब मत दिखाना। नौकरी पेशा सोने की मुर्गी  है लड़की। मुश्किल से ऐसी लड़की हाथ लगती है।’

‘समझ गयी बाबा, समझ गयी, तब से जी–जी —कहकर ही तो उलझाए हुए हूँ।अब आप आकर अपनी ड्यूटी संभालें तो मुझे फुरसत मिले, इतनी जी तो अपनी पूरी उम्र भर में नहीं लगाई हाँ नहीं तो।’

 

[2]

वैभव

‘हाथी, घोड़े, ऊँट, क्या कहने थे बारात के, शाही शादी थी यार। सपने में भी ऐसी शादी नहीं देखी होगी यार।’

‘अरे भाई लड़की वाले कहीं लक्ष्मीजी के रिश्तेदार तो नहीं, इतना दिया, इतना दिया कि लड़के की सात पीढ़ियों ने भी नहीं देखा होगा। सोने चाँदी रूपयों की बरसात हो रही थी’।

‘कहीं लड़की का कोई अफेयर तो नही है। बात दबाने के लिए इतना दिया जा रहा हो, चमक-दमक में उलझकर रह गयै लड़केवाले।’

‘अजी अफेयर सफेयर सब दब जाएंगे सोने चांदी के वजन से, फिर लग्ज़री कार भी तो है। बारातियों ने ऐसा वैभव आज तक नहीं देखा होगा।हम बारातियों से अच्छे तो उनके नौकर चाकर दिखाई दे रहे थे। हम लोग तो बैंड बाजा वालों से भी गए गुजरे दिखाई दे रहे थे।

© डॉ कुँवर प्रेमिल

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संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 81 – हाइबन- ओस्प्रे ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “हाइबन- ओस्प्रे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 81 ☆

☆ हाइबन-ओस्प्रे ☆

ओस्प्रे को समुद्री बाज भी कहते हैं। इसे समुद्री हॉक, रिवर हॉक, फ़िश हॉक के नाम से भी जाना जाता है। 7 सेंटीमीटर लंबा और 180 सेंटीमीटर पंखों की फैलाव वाला यह पक्षी मछलियों का शिकार करके खाता है।

यूरोपियन महाद्वीप में बहुतायत से पाया जाने वाला यह पक्षी भारत में भ्रमण के लिए आता रहता है। 1 से 2 किलोग्राम के वजन का यह पक्षी तैरती हुई मछली को झपट कर पंजे में दबा लेता है। इस के पंजों के नाखून गोलाई लिए होते हैं। एक बार मछली पंजे में फंस जाए तो निकल नहीं पाती है।

इसके करिश्माई पंजे के गोलाकार नाखून ही कभी-कभी इसकी मौत के कारण बन जाते हैं। वैसे तो यह अपने वजन से दुगुने वजन की मछली का शिकार कर लेता है। फिर उड़ कर अपने प्रवासी वृक्ष पर आकर उसे खा जाता है। मगर कभी-कभी अनुमान से अधिक वजनी मछली पंजे में फंस जाती है। इस कारण इसकी पानी में डूबने से मृत्यु हो जाती है।

इस पक्षी का सिर और पंखों के निचले हिस्से भूरे और शेष भाग हल्के काले रंग के होते हैं। इसे हम सब बाज के नाम से भी जानते हैं।

शांत समुद्र~

ओस्प्रे डूबने लगा

मछली संग।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

17-01-21

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र
ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#4 – [1] अजीब श्राप [2] स्वर्गलोक ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह  पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। 
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☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#5 – [1] अजीब श्राप  [2] स्वर्गलोक

[1]

अजीब श्राप

वृद्धा का सामान आँगन में बिखरा पड़ा था। उसे वृद्धाश्रम भेजने की पूरी पूरी तैयारी थी । पुत्र के साथ पुत्र वधु भी सहयोग कर रही थी।

तब तक उसकी बेटी वहां आ पहूंची। बोली- ‘मैं तेरी सेवा करुँगी माँ। देख तो तेरे दामाद बाबू भी तो आए हैं।’

वृद्धा का सब्र का बाँध टूट गया। वह हिचकियाँ लेकर रोने लगी। रोते – रोते वह श्राप दे रही थी – मेरी तो एक लड़की थी जो मुझे लेने आ गयी। मैं तुम्हें श्राप देती हूँ कि तुझे लड़के ही लड़के हों ताकि वृद्धाश्रम भेजते  समय तेरी कोई लड़की ही न हो।

बेटा बहू ऐसे अजीब श्राप को सुनते ही सकते में आ गए।

 

[2]

स्वर्गलोक

एक पढ़ी लिखी नौकरी करती लड़की ने अपने पिताश्री को फोन किया, एक अमेरिकी लड़का भारत आ रहा है। मेरी कंपनी का ही जूनियर है। मुझसे शादी करना चाहता है।

पिता ने कहा-‘ बेटी तुम समझदार हो, तुम्हारे फैसला हमें हर हाल में मंजूर होगा।’

बेटी बोली- ‘पापा अब इंडिया भी कोई रहने लायक है। अमेरिका स्वर्गलोक है। दरअसल मैं अब वहीँ सेट होना चाहती हूँ । आप उसे पास कर देना प्लीज़।’

पिता बोले- ‘हमें कोई पागल कुत्ते ने काटा है, जो हम मना कर देंगे। इस धूल धक्कड़ से जितने जल्दी पीछा छूटे उतना अच्छा।’

मैं तो अभी से अमेरिका के सपने देखने लगा हूँ जो है सो।

 

© डॉ कुँवर प्रेमिल

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#4 – [1] अमीरी  [2] पैकेज ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

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☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#4 – [1] अमीरी  [2] पैकेज ☆

[1]

अमीरी 

एक लग्ज़री कार—नकदी— जेवर- अच्छा फर्नीचर, अमीर घराने में लड़की ब्याहने में करोड़ सवा करोड़ तो लगेंगे —इतना तो कर सकेंगे न?

दलाल हो क्या जो लड़का पार्टी का गुणगान कर रहे हो ?

मुझे वर नहीं खरीदना है, कितना कमीशन तय हुआ था?

लड़की के पिता ने अमीरी ठुकरा दी।

 

[2]

पैकेज  

‘सुनती हो, लड़का विदेश में है। अठारह लाख का पैकेज है,कहो तो बात चलाऊं’?

‘हमारी लड़की का चौबीस का है, पच्चीस का हो तभी बताना, अभी तो न न न है।’

 

© डॉ कुँवर प्रेमिल

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 84 – लघुकथा- मैरीज होली विशेज़ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है  होली पर्व पर  एक विशेष लघुकथा  “मैरीज होली विशेज।  इस  धर्मनिरपेक्ष एवं सर्वधर्म सद्भाव पर आधारित भावप्रवण एवं सार्थक रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 84 ☆

?? लघुकथा- मैरीज होली विशेज ??

नंदिनी अपनी शादी के बाद पहली होली खेलने अपने पतिदेव के साथ मायके आई हुई थी। अभी- अभी पड़ोस में एंग्लो- इंडियन क्रिस्चियन परिवार रहने आया था। ज्यादा जान पहचान नहीं हुई थी हाव भाव हैलो हाय हो रहा था।

चूंकि हमारी भारतीय परंपरा रही है कि होली पर सभी के माथे पर तिलक लगा, मिलकर होली की शुभकामना कह कर बड़ों से आशीर्वाद और छोटों को प्यार दिया जाता है। नंदिनी भी सुबह से चाहक रही थी क्योंकि अपने पतिदेव के साथ मायके की पहली होली बहुत ही यादगार और प्रभाव पूर्ण बनाना चाहती थी।

गुलाल के कई रंगों की पुड़िया लिए निकल पड़ी अपने अपार्टमेंट में होली खेलने। रंगों से लिपि पुती बस उन्हीं के यहाँ नहीं गई क्योंकि उसको लगा शायद यह थोड़े बुजुर्ग आंटी अंकल है। और क्रिस्चियन है, तो पता नहीं अभी आए हैं और होली का तिलक लगाएंगे भी या नहीं।

यह सोच कर वह घर आ गई। नहा-धोकर तैयार हो गई। उसी समय उनके घर का काम करने वाला नंदिनी से आकर बोला – “मैडम और सर ने आपको बुलाया है।” नंदिनी ने आवाक होकर देखती रही। पतिदेव के साथ थोड़ी ही देर में उसके घर पहुंच गई।

आपस में बातचीत हुई। बहुत ही सुंदर वातावरण। आंटी ने एक थाली में थोड़ा सा चाँवल,गुलाल, लिफाफा और एक सुंदर सी साड़ी लेकर बाहर निकली। अंग्रेजी में बात करने लगी, बोली -” हम जानते हैं कि तुम्हारी यह पहली होली है। हमको तुम्हारे यहां का रिवाज पूरी तरह मालूम नहीं है। अभी सर्वेंट से पूछा तो उसने बताया। यह हमारी तरफ से आप का पहला होली का गिफ्ट है और “Wish you a very Happy Holi” कह कर गुलाल लगाई और चाँवल को आँचल में डाल, गिफ्ट दे गले लगा ली।

नंदिनी ने आंटी को कसकर गले लगा लिया। ‘मैरी आंटी’ आंटी का नाम मैरी था। “आपका गिफ्ट मुझे हमेशा याद रहेगा। आपने मेरी और मेरे पतिदेव की होली की खुशी को यादगार बना कई गुना अधिक कर दिया है।” (I will always remember your gift. You have made my and my husband’s happiness of Holi memorable many times more.)

खुशी के मारे मैरी आंटी-अंकल गदगद हो गये और वे बोली – “अब जब भी घर आओगी, घर आना हमारे पास। हम तुम्हारा इंतजार करेंगे। “गुलाल से सरोबार करते पतिदेव ने भी मैरी आंटी – अंकल को खूब हँसाया। मैरी विश पाकर नंदिनी खिल उठी।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#3 – [1] नहीं  [2] मिनिस्टर ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

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आपने लघु कथा को लेकर एक प्रयोग किया है।  एक विषय पर अनेक लघुकथाएं  लिखकर। इस श्रृंखला में आज से शादी-ब्याह विषय पर हम  प्रतिदिन  आपकी दो लघुकथाएं धारावाहिक स्वरुप में प्रस्तुत कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है आपकी दो लघुकथाएं  “नहीं “एवं “मिनिस्टर ”।  हमें पूर्ण आशा है कि आपको यह प्रयोग अवश्य पसंद आएगा। )

☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#3 – [1] नहीं  [2] मिनिस्टर ☆

[1]

नहीं

लड़की सयानी हुई तो रिश्तेदारनीउसका रिश्ता लेकर आई। बोलो- पांच भाइयों में से एक बड़े की तरफ लड़की का रिश्ता चलाएँ?

अपनी रिश्तेदारनी की बात सुनकर लड़की बोली- न जी न बुआजी । चार देवरानियां ब्याहते –  ब्याहते बूढ़ी हो जाऊंगी। छोटे से ब्याह रचाएंगी तो भारी भरकम गिफ्ट देने से बचूँगी। सबका प्यार भी पाती रहूंगी, अभी तो किसी तरह भी नहीं।

[2]

मिनिस्टर

लड़की को देखने वाले आए। बोले- आपकी लड़की का होनै वाला ससुर मिनिस्टर है। लड़की दिल्ली रहेगी। नौकरों की फौज रहेगी। अपने हाथ से गिलास भरकर पानी भी नहीं पिएगी ।?

‘मिनिस्टर है कोई युधिष्ठिर नहीं’.. वहाँ तो सच सुनने को तरस जाऊँगी। मुझे तो ऐसा घर चाहिए जहां  मेरी पूछ परख हो। मेरी पाक कला की पूछ हो, घर की नींव खून पसीने की हो। अपनत्व हो…. दिखावटीपन मुझे पसंद नहीं।

लड़के वाले दांत पीसकर रह गये।

 

© डॉ कुँवर प्रेमिल

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#2 – [1] लक्ष्मी जी [2] भुतहा घर ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह  पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। 
आपने लघु कथा को लेकर एक प्रयोग किया है।  एक विषय पर अनेक लघुकथाएं  लिखकर। इस श्रृंखला में आज से शादी-ब्याह विषय पर हम  प्रतिदिन  आपकी दो लघुकथाएं धारावाहिक स्वरुप में प्रस्तुत कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है आपकी दो लघुकथाएं  “लक्ष्मी जी “एवं “भुतहा घर”।  हमें पूर्ण आशा है कि आपको यह प्रयोग अवश्य पसंद आएगा। )

☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#2 – [1] लक्ष्मी जी [2] भुतहा घर ☆

[1]

लक्ष्मी जी

सदियों से नारी को जेवर एवं गृहलक्ष्मी का ओहदा देकर औरत को बना रहा था आदमी।

अब वह सब खत्म। लक्ष्मी जी तो वह अब बनी है। बड़े बड़े ओहदे पर है। बड़ी बड़ी तनख्वाहें पा रही है।अब उसके पास बंगला है, कार हैं, बैंक बैलेंस है।अब आदमी औरत के सामने बौना हो गया है।

दो औरतें बिंदास चर्चा कर रही थीं। अपने सोने के मोटे मोटे कंगन एक दूसरे को दिखा रही थीं।

[2]

भुतहा घर

‘सास नहीं ससुर नही। देवर ननद, भाई भौजाई कुछ नहीं। लड़की राज करेगी’ माँ बोलीं।

‘तो मैं क्या भूतों के संग रहूँगी?  पति क्या चौबीस घंटे घर में रहा आएगा?’

‘नेवर – नो -‘

‘घर अकेले से नहीं रिश्तेदारों से भरता है। मायके वाले ही रिश्तों की गलत नींव रखते हैं।’

माँ चुप्पी लगा गयी।

 

© डॉ कुँवर प्रेमिल

एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार#48 – कौन सा रास्ता सही? ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं।  आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।” )

 ☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार#48 – कौन सा रास्ता सही? ☆ श्री आशीष कुमार☆

एक गरीब युवक, अपनी गरीबी से परेशान होकर, अपना जीवन समाप्त करने नदी पर गया, वहां एक साधू ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। साधू ने, युवक की परेशानी को सुन कर कहा, कि मेरे पास एक विद्या है, जिससे ऐसा जादुई घड़ा बन जायेगा जो भी इस घड़े से मांगोगे, ये जादुई घड़ा पूरी कर देगा, पर जिस दिन ये घड़ा फूट गया, उसी समय, जो कुछ भी इस घड़े ने दिया है, वह सब गायब हो जायेगा।

अगर तुम मेरी 2 साल तक सेवा करो, तो ये घड़ा, मैं तुम्हे दे सकता हूँ और, अगर 5 साल तक तुम मेरी सेवा करो, तो मैं, ये घड़ा बनाने की विद्या तुम्हे सिखा दूंगा। बोलो तुम क्या चाहते हो, युवक ने कहा, महाराज मैं तो 2 साल ही आप  की सेवा करना चाहूँगा , मुझे तो जल्द से जल्द, बस ये घड़ा ही चाहिए, मैं इसे बहुत संभाल कर रखूँगा, कभी फूटने ही नहीं दूंगा।

इस तरह 2 साल सेवा करने के बाद, युवक ने वो जादुई घड़ा प्राप्त कर लिया, और अपने घर पहुँच गया।

उसने घड़े से अपनी हर इच्छा पूरी करवानी शुरू कर दी, महल बनवाया, नौकर चाकर मांगे, सभी को अपनी शान शौकत दिखाने लगा, सभी को बुला-बुला कर दावतें देने  लगा और बहुत ही विलासिता का जीवन जीने लगा, उसने शराब भी पीनी शुरू कर दी और एक दिन नशें में, घड़ा सर पर रख नाचने लगा और ठोकर लगने से घड़ा गिर गया और फूट गया.

घड़ा फूटते ही सभी कुछ गायब हो गया, अब युवक सोचने लगा कि काश मैंने जल्दबाजी न की होती और घड़ा बनाने की विद्या सीख ली होती, तो आज मैं, फिर से कंगाल न होता।

“ईश्वर हमें हमेशा 2 रास्ते पर रखता है एक आसान -जल्दी वाला और दूसरा थोडा लम्बे समय वाला, पर गहरे ज्ञान वाला, ये हमें चुनना होता है की हम किस रास्ते पर चलें?”

“कोई भी काम जल्दी में करना अच्छा नहीं होता, बल्कि उसके विषय में गहरा ज्ञान आपको अनुभवी बनाता है।”

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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