डॉ कुंवर प्रेमिल
☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#7 – [1] सफेद दाग [2] मेडीकली अनफिट ☆
[1]
सफेद दाग
शादी—शादी—शादी— नहीं करना है मुझे शादी। बिना नौकरी चाकरी के कहीं शादी होती है?
लड़का बुरी तरह माँ बाप से लड़ झगड़ रहा था।
माँ बोलीं- मूर्ख मत बन, अकेली लड़की है और भगवान का दिया सब कुछ उनके पास है। फोर व्हीलर तो वे लगुन में ही दे रहे हैं।
‘जरूर कुछ नुक्स होगा माँ, मुझे नहीं करनी ऐसी शादी जिसमें पूरी जिंदगी ससुराल वालों पर लदे रहो।’
पिता ने आगे बात संभाली- बेवकूफी मत कर बेटा, थोड़े से सफेद दाग हैं तो मिट जाएंगे दवा दारू से, एक से बढ़कर एक डाक्टर हैं आजकल। रोग का क्या किसी को भी हो सकता है। बस तू मना मत कर, मुझे कल ही ज़बाब देना है।
माँ बाप का जबरिया हाँ कराने का प्रयास पीढ़ियों से जारी है।
[2]
मेडीकली अनफिट
बेटी ब्याह के बाद पहली बार मायके आई तो भाभियों ने श्री नवेली को घेर लिया। चुहलबाज़ी तो होनी ही थी।
‘क्या मिला सुहागरात में’ – बडी भाभी ने बड़ी बड़ी आँखें मटकाकर पूछा।’
‘और सुहागरात कैसी रही’ – छोटी ज्यादा रसीली थी।
बेचारी ननद क्या बोलती? उसे मिला तो सब कुछ था, सिवाय एक पति के, बगल के कमरे में रात भर सोया पड़ा रहा। पति में वह गर्मी तलाशती रही – पर हो तब न।
© डॉ कुँवर प्रेमिल
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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈