हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 288 ☆ व्यंग्य – चुन्नीलाल की मुअत्तली ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक बेहतरीन व्यंग्य – ‘चुन्नीलाल की मुअत्तली‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 288 ☆

☆ व्यंग्य ☆ चुन्नीलाल की मुअत्तली

सुबह के साढ़े  दस बज रहे हैं और चुन्नीलाल बनियाइन और लुंगी पहने  बरामदे में गमलों में लगे फूलों को पानी दे रहा है। ज़रूर छुट्टी लिए होगा।

मैंने चिल्ला कर पूछा, ‘आज कैजुअल ले ली है क्या?’

उसने हाथ के इशारे से मुझे पास बुलाया, पास पहुंचने पर बोला, ‘क्या पूछ रहे थे?’

मैंने कहा, ‘पूछ रहा था कि आज दफ्तर नहीं जाना है क्या?’

उसके माथे पर बल पड़ गये, बोला, ‘तुम्हें नहीं मालूम?’

मैंने पूछा, ‘क्या?’

वह उसी अप्रसन्नता की मुद्रा में बोला, ‘चिराग तले अंधेरा। पूरे मुहल्ले को मालूम हो गया और तुम मुंह बाये खड़े हो। मैं सस्पेंड हो गया हूं।’

मेरा मुंह आश्चर्य से और ज़्यादा खुल गया। मैंने पूछा, ‘सस्पेंड हो गये? क्यों?’

वह भौंहें टेढ़ी करके बोला, ‘कल का अखबार पढ़ा था?’

मैंने कहा,’पढ़ा तो था।’

वह तिरस्कार के भाव से बोला, ‘खाक पढ़ा था। मेरी समझ में नहीं आता तुम लोग अखबार खरीदते ही क्यों हो। कल के अखबार में सारी घटना छपी है। मेरा नाम भी छपा है। पहली बार अखबार में मेरा नाम छपा है।’

मैंने पूछा, ‘कौन सी घटना? क्या छपा है?’

वह लापरवाही से बोला, ‘मेरे ऊपर बीस लाख की गड़बड़ी का आरोप लगा है। मेरे साथ चन्दू भी सस्पेंड हुआ है।’

घबराहट के मारे मेरी सांस जहां की तरह रह गयी। मैंने कहा, ‘बीस लाख? यह कैसे हुआ?’

वह बोला, ‘अरे भई, हम लोग बैंक से दफ्तर का पैसा लेकर लौट रहे थे। रास्ते में स्कूटर खड़ी करके लघुशंका करने लगे। रुपयों का बैग पीछे स्कूटर में लगा था। लघुशंका के बाद मुड़कर देखा तो बैग गायब था।बहुत से लोग आ जा रहे थे। किसे दोष देते ?’

मैंने कहा, ‘दोनों लोग एक साथ लघुशंका कर रहे थे?’

वह बोला, ‘हां भई।’

मैंने कहा, ‘दोनों को एक साथ लघुशंका करने की क्या ज़रूरत थी? एक थोड़ा रुक जाता।’

उसने जवाब दिया, ‘अब दोनों को एक साथ लगी तो उसमें हमारा क्या कसूर? ये जो लघुशंका वगैरह हैं इन्हें अपने चिकित्सा शास्त्र में वेग कहा जाता है। वेगों को रोकना शरीर के लिए नुकसानदेह होता है। प्राणघातक भी हो सकता है। इन्हें तुरन्त निपटा देना चाहिए।’

मैंने कहा, ‘तो एक हाथ में रुपये का बैग पकड़े रहते। जिम्मेदारी का काम था।’

वह बोला, ‘तुम भी अजीब आदमी हो। अरे भई, लक्ष्मी पवित्र होती है। लक्ष्मी हाथ में लेकर लघुशंका करता? भारी पाप लगता।’

मैंने दुखी भाव से कहा, ‘मुझे अफसोस है।’

वह कुछ नाराज़ी दिखा कर बोला, ‘अफसोस की क्या बात है? तुम्हारे साथ यही गड़बड़ है। मुझे थोड़ा आराम मिला तो तुम्हें अफसोस होने लगा। और फिर मैं तो यह मानता हूं कि जो काम करेगा उसी से गलती होगी। जो काम ही नहीं करेगा उससे क्या गलती होगी?’

मैंने कहा, ‘लेकिन अब तुम क्या करोगे?’

वह इत्मीनान से बोला, ‘करना क्या है। रोज दफ्तर जाकर दस्तखत करूंगा, वहां दोस्तों से गप लड़ाऊंगा और हर महीने आधी तनख्वाह लूंगा।’

मैंने कहा, ‘लेकिन इस केस में कुछ तो होगा।’

वह बोला, ‘हां, विभागीय जांच चलेगी। पुलिस केस भी बनेगा। कुछ परेशानी तो होगी। लेकिन आखिर में सब ठीक हो जाएगा। नौकरी में यह सब तो चलता ही है।’

मैंने कहा, ‘जब तक मामले का फैसला नहीं होगा पैसे वैसे की परेशानी तो होगी।’

वह बोला, ‘अरे तो तुम क्या यह समझते हो कि मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूंगा? साले के नाम से दो टैक्सियां डाल रहा हूं। बिजली के सामान की एक दुकान भी खोल रहा हूं। बाल- बच्चों के भविष्य का भी तो सोचना है। नौकरी में आजकल कुछ नहीं धरा है।’

मैंने ताज्जुब से पूछा, ‘लेकिन इस सबके लिए पैसा कहां से आएगा?’

वह मुस्कराया, बोला, ‘तुम घामड़ ही रहे यार। ये सब बातें तुम्हारी समझ में नहीं आएंगीं। तुम तो बस नौकरी करते रहो और हाय हाय करके जिन्दगी काटते रहो।’

मैंने कहा, ‘लेकिन तुम तो कह रहे थे कि सरकारी पैसे तुमने नहीं लिये।’

उसकी मुस्कान और चौड़ी हो गयी। बोला, ‘अब भी कह रहा हूं और आखिर तक कहता रहूंगा। चोरी कबूल करके मैं अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारूंगा क्या? कानून भी कहता है कि जब तक जुर्म साबित न हो जाए, आदमी को अपराधी न माना जाए। इसलिए मैं बिलकुल सौ प्रतिशत पाक साफ हूं ।’

मैंने कहा, ‘लेकिन यह तो देश के पैसे का दुरुपयोग है।’

वह ज्ञानियों की नाईं बोला, ‘यह तुम्हारी नासमझी है,बंधु। इस देश की आबादी एक  सौ चालीस करोड़ है। बीस लाख रुपये को एक  सौ चालीस करोड़ में बांटो तो एक आदमी पर चवन्नी का भार भी नहीं आता। लेकिन वही पैसा जब बीस लाख  रुपये के रूप में एक आदमी के हाथ में आ जाता है तो वह उससे अपना, अपने परिवार का, समाज का और देश का कल्याण कर सकता है। आया कुछ समझ में?’

मैंने कहा, ‘आया महाप्रभु।’

वह संतुष्ट होकर बोला, ‘फिलहाल तो मेरा एक ही उद्देश्य है।’

मैंने कहा, ‘वह क्या?’

वह बोला, ‘कोशिश यही करना है कि विभागीय जांच लंबी से लंबी चले। बहाल तो होना ही है, लेकिन कहीं जल्दी बहाल हो गया तो सब गड़बड़ हो जाएगा।’

मैं फिर मूढ़ की तरह पूछा, ‘बहाल होने से क्या दिक्कत हो जाएगी भैया? तुम्हारी बातें आज मेरी समझ से परे हैं। लगता है कि मेरा दिमाग कुछ कुन्द हो गया है।’

वह बोला, ‘अरे श्रीमान, मुअत्तली जितनी लंबी खिंचेगी, धंधा जमाने के लिए उतना ही ज्यादा टाइम मिलेगा। वैसे भी रिटायरमेंट के बाद कोई धंधा करना ही है। वह अभी जम जाएगा तो नौकरी तो फिर साइड बिज़नेस जैसी हो जाएगी। इसीलिए मैं वकील से सलाह ले रहा हूं कि केस कैसे लंबा लंबा खिंच सकता है। जल्दी खत्म हो जाएगा तो भारी परेशानी हो जाएगी। दूसरी बात यह है कि मुअत्तली का पीरियड जितना लंबा होगा, बहाल  होने पर उतना ही ज्यादा इकठ्ठा पैसा दफ्तर से मिलेगा। धंधे में काम आएगा।’

मैंने कहा, ‘समझ गया, भैया जी। आज मुझे बड़ा ज्ञान दिया तुमने। नौकरी में कितनी संभावनाएं हैं यह आज ही जाना।’

वह खुश होकर बोला, ‘तारीफ के लिए शुक्रिया। दो-चार दिन मेरे पास बैठो तो तुम्हें नौकरी के गुर समझा दूंगा। नौकरी तो सब करते हैं लेकिन नौकरी की खान में छिपे रत्नों को सब नहीं ढूंढ़ पाते। बिना गुरू के ज्ञान नहीं मिलता।’

मैंने हाथ जोड़कर चुन्नीलाल से कहा, ‘ज़रूर बैठूंगा, भैया। आजकल इस तरह बुला बुलाकर मुफ्त में ज्ञान देने वाले गुरू मिलते कहां हैं? फिलहाल तो मैं यह कामना करता हूं कि तुम्हारी इच्छा पूरी हो और तुम्हारी मुअत्तली लंबी से लंबी खिंचे।’

चुन्नीलाल भी हाथ जोड़कर बोला, ‘बहुत बहुत धन्यवाद। तुम सब की दुआएं रहेंगीं तो मेरे रास्ते की सब बाधाएं दूर होंगीं। वैसे मैं निर्भय हूं। जब कुछ किया ही नहीं तो चिन्ता किस बात की?’

मैं चलने लगा तो वह पीछे से बोला, ‘दो-चार दिन आ जाना तो कुछ ज्ञान दे दूंगा तुम्हें। अभी दो-चार दिन फुरसत है। बाद में बिज़ी हो जाऊंगा। मित्रों का कुछ फायदा कर सकूं तो मुझे खुशी होगी।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ ≈ मॉरिशस से ≈ – गद्य क्षणिका – मृत्यु – दंश… – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे।

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय गद्य क्षणिका “– मृत्यु – दंश …” ।

~ मॉरिशस से ~

☆ कथा कहानी  ☆ — मृत्यु – दंश — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

मृत्यु उस से टकरायी। मृत्यु न ऊष्मा थी और न वह शीतलता थी। न शाम थी, न वह सुबह थी। न रोग, न चिंता थी। बिना किसी रंग के, बिना किसी चांद के, बिना किसी सूरज के, बिना किसी धरती के, बिना किसी आकाश के, बिना किसी भूख – प्यास के। तब मृत्यु क्या थी, उसे पता चल ही न पाता। वह तो हवा के बिना एक तूफान था, जिससे टकराने पर उसने जाना था यही तो मृत्यु है।

 © श्री रामदेव धुरंधर

07 – 05 – 2025

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 288 – अपना समुद्र, अपना मंथन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 288 ☆ अपना समुद्र, अपना मंथन… ?

महासागर अपने आप में अथाह जगत है। जाने कबसे  अनुसंधान हो रहे हैं, तब भी महासागर की पूरी थाह नहीं मिलती।

भीतर भी एक महासागर है। इसकी लहरें निरंतर किनारे से टकराती हैं। लहरों के थपेड़े अविराम उथल-पुथल मचाए रखते हैं। भीतर ही भीतर जाने कितने ही तूफान हैं, कितनी ही सुनामियाँ हैं।

भीतर का यह महासागर, इसकी लहरें, लहरों के थपेड़े सोने नहीं देते। अक्षय व्यग्रता, बार-बार आँख खुलना, हर बार-हर क्षण भीतर से स्वर सुनाई देना-क्या शेष जीवन भी केवल साँसे लेने भर में बिताना है?

योगेश्वर ने अर्जुन से कहा था, ‘प्रयत्नाणि सिद्धंति परमेश्वर:’ प्रयत्नों से, कठोर परिश्रम से लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है, ईश्वर को भी सिद्ध किया जा सकता है। तो क्या हम कभी मथ सकेंगे भीतर का महासागर? 

मंथन इतना सरल भी तो नहीं है। देवताओं और असुरों को महाकाय पर्वत मंदराचल की नेति एवं नागराज वासुकि की मथानी करनी पड़ी थी।

समुद्र मंथन में कुल चौदह रत्न प्राप्त हुए थे। संहारक कालकूट के बाद पयस्विनी कामधेनु, मन की गति से दौड़ सकनेवाला उच्चैश्रवा अश्व, विवेक का स्वामी ऐरावत हाथी, विकारहर्ता कौस्तुभ मणि, सर्व फलदायी कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी, मदिरा की जननी वारुणी, शीतल प्रभा का स्वामी चंद्रमा, श्रांत को विश्रांति देनेवाला पारिजात, अनहद नाद का पांचजन्य शंख, आधि-व्याधि के चिकित्सक भगवान धन्वंतरि और उनके हाथों में अमृत कलश।

क्या हम कभी पा सकेंगे उन चौदह रत्नों को जो छिपे हैं हमारे ही भीतर?

स्वेदकणों से कमल खिला सकें तो इस पर विराजमान माता लक्ष्मी की अनुकम्पा प्राप्त होगी। धन्वंतरि का प्रादुर्भाव, हममें ही अंतर्निहित है, अर्थात  हमारा स्वास्थ्य हमारे हाथ में है। इस मंथन में कालकूट भी है और अमृत भी। जीवन में दोनों आएँगे। कालकूट को पचाने की क्षमता रखनी होगी। निजी और सार्वजनिक जीवन में अस्तित्व को समाप्त करने के प्रयास होंगे पर हमें नीलकंठ बनना होगा।

न गले से उतरा, न गले में ठहरा,

विष न जाने कहाँ जा छिपा,

जीवन के साथ मृत्यु का आभास,

मैं न नीलकंठ बन सका, न सुकरात..!

अमृतपान कल्पना नहीं है। सत्कर्मों से मनुष्य की कीर्ति अमर हो सकती है। अनेक पीढ़ियाँ उसके ज्ञान, उसके योगदान से लाभान्वित होकर उसे याद रखती हैं, मरने नहीं देतीं, यही अमृत-पान है। नेह का निर्झर किसी के होने को सतत प्रवहमान  रखता है, सूखने नहीं देता। सदा हरित रहना ही अमृत-पान है।

भूख, प्यास, रोग, भोग,

ईर्ष्या, मत्सर, पाखंड, षड्यंत्र,

मैं…मेरा, तू… तेरा के

सारे सूखे के बीच,

नेह का कोई निर्झर होता है,

जीवन को हरा किए होता है,

नेह जीवन का सोना खरा है,

वरना, मर जाने के लिए

पैदा होने में  क्या धरा है..!

अमृत-पान करना है तो महासागर की शरण में जाना ही होगा। यह महासागर हरेक के भीतर है। हरेक के भीतर चौदह रत्न हैं।… और विशेष बात यह कि हरेक को अपना समुद्र स्वयं ही मथना होता है।

मंथन आरंभ करो, संभावनाओं का पूरा महासागर प्रतीक्षा में है।

© संजय भारद्वाज 

अक्षय तृतीया, प्रातः 6:35 बजे, 30 अप्रैल 2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ || समय || ☆ डॉ जसवीर त्यागी ☆

डॉ जसवीर त्यागी

(ई-अभिव्यक्ति में  प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ जसवीर त्यागी जी का स्वागत। प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ,आजकल, कादम्बिनी,जनसत्ता,हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा,कृति ओर,वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।  अभी भी दुनिया में- काव्य-संग्रह। कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी,नेपाली भाषाओं में अनुवाद। सचेतक और डॉ. रामविलास शर्मा (तीन खण्ड)का संकलन-संपादन। रामविलास शर्मा के पत्र- का डॉ विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन। सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।)

☆ कविता ☆ || समय || डॉ जसवीर त्यागी 

पातहीन पेड़

हरा हो उठता है एक दिन

 

सूखी नदी में

चमकने लगता है जल

 

भटके हुए राहगीर को

मिल जाती है मंजिल

 

सुनसान रास्तों पर

बसने लगती है आबादी धीरे-धीरे

 

समय आने पर

बंजर पड़े खेतों में

मुस्कुराने लगते हैं अंकुर

 

अंधेरे घर में

जगमगाता है दीया किसी रोज

 

असंभव और निराशा शब्दों में

छुपे होते हैं संभव और आशा

 

समय एक जैसा रहता नहीं सदा

करवट बदलता है

नींद से जागता है वह भी एक दिन।

©  डॉ जसवीर त्यागी  

सम्प्रति: प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015

संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018, मोबाइल:9818389571, ईमेल: [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 234 – नौ दोहा दीप ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – हे नारी!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 234 ☆

☆ नौ दोहा दीप  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

दिन की देहरी पर खड़ी, संध्या ले शशि-दीप

गगन सिंधु मोती अगिन, तारे रजनी सीप

*

दीप जला त्राटक करें, पाएँ आत्म-प्रकाश

तारक अनगिन धरा को, उतर करें आकाश

*

दीप जलाकर कीजिए, हाथ जोड़ नत माथ

दसों दिशा की आरती, भाग्य देव हों साथ

*

जीवन ज्योतिर्मय करे, दीपक बाती ज्योत

आशंका तूफ़ान पर, जीते आशा पोत

*

नौ-नौ की नव माल से, कोरोना को मार

नौ का दीपक करेगा, तम-सागर को पार

*

नौ नौ नौ की ज्योति से, अन्धकार को भेद

हँसे ठठा भारत करे, चीनी झालर खेद

*

आत्म दीप सब बालिये, नहीं रहें मतभेद

अतिरेकी हों अल्पमत, बहुमत में श्रम – स्वेद

*

तन माटी माटी दिया, लौ – आत्मा दो ज्योत

द्वैत मिटा अद्वैत वर, रवि सम हो खद्योत

*

जन-मन वरण प्रकाश का, करे तिमिर को जीत

वंदन भारत-भारती कहे, बढ़े तब प्रीत

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (12 मई से 18 मई 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (12 मई से 18 मई 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम। मेरा यह भरपूर प्रयास रहता है की आपका साप्ताहिक राशिफल बिल्कुल सही हो। आप उसके अनुसार कार्य करें तो आपको लाभ हो। मै यह दावा भी करता हूं की आपको यह राशिफल कम से कम 80% सही ही मिलेगा। आपसे अनुरोध है कि अगर यह राशिफल आपको सही नहीं मिलता है तो आप मेरे मोबाइल नंबर 8959 59 4400 पर व्हाट्सएप मैसेज भेज कर बताने का कष्ट करें।

12 मई से 18 मई 2025 के सप्ताह को आपके लिए सफल बनाने हेतु मैं पंडित अनिल पांडे फिर एक बार साप्ताहिक राशिफल लेकर प्रस्तुत हूं।

इस सप्ताह सूर्य प्रारंभ में मेष राशि में रहेगा। 14 तारीख के 3:51 रात से वह वृष राशि में गोचर करेगा। गुरु प्रारंभ में वृष राशि में रहेगा तथा 15 तारीख के 7:04 प्रातः से मिथुन राशि में गमन करेगा। इसके अलावा बुध मेष राशि में, मंगल कर्क राशि में, शुक्र, शनि और बक्री राहु मीन राशि में भ्रमण करेंगे।

आईये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके पिताजी का और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माताजी और आपके स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। आपको मानसिक परेशानी होना संभव है। अगर आप प्रयास करेंगे तो कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। नए-नए शत्रु पैदा होंगे। भाई बहनों के साथ संबंधों में तनाव हो सकता है। धन आने की थोड़ी बहुत उम्मीद की जा सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 12 और 18 तारीख है कार्यों को संपन्न करने के लिए उचित है। 13, 14 और 15 तारीख को आप दुर्घटनाओं से बच सकते हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन चावल का दान दें और शुक्रवार को मंदिर पर जाकर सफेद वस्त्र का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके माताजी और पिताजी का तथा जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपकी मानसिक परेशानी थोड़ा बढ़ेगी। धन आने का योग है परंतु धन आने में कई बाधाएं हैं। संभवत इन्हीं बाधाओं की वजह से आपका मानसिक क्लेश बढ़ सकता है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक नहीं रह पाएंगे। शत्रुओं की संख्या में वृद्धि होगी। व्यापार में लाभ में कमी आएगी। इस सप्ताह आपको पूरे सप्ताह सतर्क होकर कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें तथा गायत्री मंत्र की एक माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। अपने से बड़े अधिकारियों से कुछ तनाव हो सकता है। आपको सलाह दी जाती है कि आप कृपया अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें। कचहरी के कार्यों में रिस्क ना लें अन्यथा घाटा होगा। आपके धन भाव में नीच का मंगल बैठा हुआ है। जिसके कारण इस सप्ताह आपको धन लाभ हो सकता है। इसी प्रकार चंद्रमा 13, 14 और 15 तारीख की दोपहर तक छठे भाव में बैठा है जिसके कारण अगर आपकी तबीयत खराब है तो आप इस अवधि में स्वस्थ होने लगेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 15 तारीख की दोपहर से लेकर 16 और 17 तारीख कार्यों को करने के लिए उत्तम है। बाकी पूरे सप्ताह आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका भाग्य साथ देगा। भाग्य के कारण आपके कई कार्य हो सकते हैं। कार्यालय में आपकी स्थिति थोड़ा कम ठीक रहेगी। धन आने का योग है परंतु यह धन कम मात्रा में आएगा। खर्चों में वृद्धि होगी। आपको रक्त संबंधी कोई विकार हो सकता है। पिताजी के स्वास्थ्य में भी समस्या आ सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 12 और 18 मई लाभदायक है। 15, 16 और 17 तारीख को आपको सतर्क रहना चाहिए। 13, 14 या 15 तारीख को आपके संतान को कुछ लाभ हो सकता है। इसी अवधि में संतान आपका सहयोग भी कर सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवारहै।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का और आपके माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी को थोड़ी सी मानसिक समस्या हो सकती है। भाग्य के स्थान पर इस सप्ताह आप अपने परिश्रम पर विश्वास करें। दुर्घटनाओं से आप बच सकते हैं। धन आने का मामूली योग है। कचहरी के कार्यों में परिश्रम एवं सजगता बरतने पर सफलता मिल सकती है। इस सप्ताह आपको सावधान रहकर के अपने कार्य निपटाना चाहिए। कोई रिस्क का कार्य इस सप्ताह न करें। दुर्घटनाओं से आप बच सकते हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षर स्त्रोत का कम से कम तीन बार पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आप थोड़े से प्रयास से अपने शत्रुओं को समाप्त कर सकते हैं। इस समय का आपको फायदा उठाना चाहिए। इस सप्ताह आपके पास धन आने का योग है। उसके लिए भी प्रयास करने पड़ेंगे। भाग्य से इस सप्ताह आपको कोई मदद नहीं मिलेगी। आपको अपने पुरुषार्थ पर विश्वास करना पड़ेगा। अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के अच्छे प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। परंतु प्रेम संबंधों के संबंध में सावधान रहें। इस सप्ताह आपके लिए 15 की दोपहर से लेकर 16 और 17 तारीख फलदायक है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। 13 और 14 तारीख को आपके अपने भाइयों से संबंध ठीक होगा। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहने की उम्मीद है। आपके जीवन साथी और पिताजी को कष्ट हो सकता है। व्यापार में बाधा आएगी। भाग्य से कोई विशेष मदद प्राप्त नहीं होगी। कार्यालय में आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। दुर्घटनाओं से इस सप्ताह आप सावधान रहें। शत्रुओं पर आप प्रयास करने के उपरांत विजय प्राप्त कर सकते हैं। नए-नए शत्रु पैदा होंगे। इस सप्ताह आपके लिए 12 और 18 तारीख कार्यों को करने के लिए लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। 13, 14 या 15 तारीख को आपको धनलक्ष्मी प्रताप प्राप्ति की संभावना हो सकती है। इस सप्ताह आप को चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका, आपके माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके जीवन साथी को मानसिक या शारीरिक क्लेश हो सकता है। भाग्य से इस सप्ताह आपको कोई खास मदद नहीं मिल पाएगी। इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त हो सकता है। धन लाभ के लिए आपको अति परिश्रम करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपके लिए 15 तारीख के दोपहर के बाद से 16, 17 और 18 तारीख थोड़ी ठीक है। 12, 13, 14 और 15 तारीख के दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए उचित नहीं है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान प्रातः काल स्नान की उपरांत एक तांबे के पात्र में जल अक्षत और लाल पुष्प डालकर भगवान सूर्य को जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका आपके पिताजी और माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके जीवन साथी को थोड़ा सा कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके माताजी को चिंताएं बहुत रहेंगी। दुर्घटनाओं से आप बच जाएंगे। शत्रुओं से आप परेशान हो सकते हैं। आपको अपने संतान से भी सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 15 की दोपहर के बाद से 16 और 17 तारीख कार्यों को करने के लिए उचित है। 13, 14 और 15 की दोपहर तक का समय आपको सावधान रहने का है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका और आपके पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके जीवनसाथी को रक्त संबंधी कोई समस्या हो सकती है। माता जी का आपको विशेष रूप से ख्याल रखना है। इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। भाई बहनों के साथ खट्टे मीठे संबंध चलते रहेंगे। आपके पेट में कुछ तकलीफ इस साल भर रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 12 और 18 तारीख, विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए अच्छी हैं। 13, 14 और 15 की दोपहर तक के समय में आपको धन के बारे में सतर्क रहना चाहिए। 15 की दोपहर के बाद से 16 और 17 तारीख को आपको कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें और शनिवार के दिन दक्षिण मुखी हनुमान जी के यहां जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा को का पाठ हनुमान जी के समक्ष करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका, आपके पिताजी का और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माता जी के स्वास्थ्य में मानसिक या शारीरिक परेशानी हो सकती है। भाइयों से आपके संबंधों में तनाव आ सकता है। धन प्राप्ति की संभावना है। आपको अपने संतान से कोई विशेष सहयोग प्राप्त नहीं होगा। इस सप्ताह अगर आप प्रयास करेंगे तो अपने दुश्मनों को पराजित कर सकते हैं। रक्त संबंधी विकार के लिए सावधान रहें। आपके गर्दन या कमर में भी दर्द हो सकता है। इस सप्ताह आपको 13, 14 तथा 15 के दोपहर तक का समय तथा 18 तारीख को सावधान रहना चाहिए। सप्ताह के बाकी दिन एक जैसे हैं। इस पूरे सप्ताह आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपके कई कार्य हो सकते हैं। अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह उत्तम है। विवाह के नए-नए और अच्छे प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। भाइयों के साथ तनाव संभव है। संतान भाव में नीच के मंगल बैठे हुए हैं जिनके कारण सप्ताह आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त हो सकता है। भाग्य भी इस सप्ताह आपका साथ दे सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 15 तारीख के दोपहर से लेकर 16 और 17 तारीख विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए उचित है। 12 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्यों को करना चाहिए। 13, 14 और 15 की दोपहर तक आपको धन प्राप्ति हो सकती है। आपको भाग्य से विशेष लाभ हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षर स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासीनी ☆ सुखद सफर अंदमानची…नैसर्गिक पूल – भाग – ७ ☆ सौ. दीपा नारायण पुजारी ☆

सौ. दीपा नारायण पुजारी

? मी प्रवासीनी ?

☆ सुखद सफर अंदमानची… नैसर्गिक पूल –  भाग – ७ ☆ सौ. दीपा नारायण पुजारी ☆

मानवनिर्मित अनेक पूल आपण पाहतो. ते स्थापत्य शास्र बघून अचंबित होतो. कोकणात किंवा काही खेड्यात ओढ्यावर, लहान नद्यांवर गावकऱ्यांनी बांधलेले साकव आपल्याला चकीत करतात. असाच एक अनोखा पूल आपल्या पावलांना खिळवून ठेवतो.

हा नैसर्गिकरीत्या तयार झालेला पूल आहे, नील बेटावर. अर्थात शहीद द्वीप येथे. भरतपूर किनाऱ्यावर प्रवाळ खडकांचा बनला आहे. किनाऱ्यावर केवड्याच्या झाडांसारख्या वनस्पतींची दाट बने आहेत. काही पायऱ्या चढून जावं लागतं. नंतर पुन्हा काही पायऱ्या आणि काही वेडीवाकडी, खडकाळ पायवाट उतरून जावं लागतं. पण एवढे श्रम सार्थकी लागतात असं दृश्य समोर असतं. निळा, शांत समुद्र. खडकाळ किनारा. किनाऱ्यावर दाट हिरवी बेटं. आणखी थोडंसं खडकाळ किनाऱ्यावरुन, तोल सावरत, उड्या मारत गेलं की हा नैसर्गिक पूल आपलं स्वागत करतो. पाणी जाऊन जाऊन खडकाची झीज होऊन खडकात पोकळी तयार झाली आहे. या कमानीतले काही महाकाय खडकांचे अवशेष हा पूर्वी एक मोठा विशाल खडक असल्याचा पुरावा देतात. या कमानीच्या खालून मात्र आपण सहज जाऊ शकत नाही. या उरलेल्या खडकांवर चढून वर जायचं, आणि पुन्हा उतरायचं. मगच या पुलापलिकडील दुनिया नजरेत भरते. पाण्यामुळं शेवाळ झालंय. निसरडं आहे. पण हे धाडस केले तर समाधान आहे. तुम्हाला शक्य नसल्यास पुलाच्या पलिकडून जो खडकाळ किनारा आहे त्यावरून ही तुम्ही पलिकडे जाऊ शकता. या कमानीत फोटोप्रेमींची गर्दी होते.

एकूणच या खडकाळ किनाऱ्यावर चालणं हे एक आव्हान आहे. आमच्या सोबत काही पंचाहत्तरीचे तरुण तरुणी होते. ते देखील या किनाऱ्यावर आले. त्यांच्याकडं बघून मी मध्येच कधीतरी माझ्या नवरोजीचा आधार घेत होते याची लाज वाटत होती.

या दगडांत अध्ये मध्ये पाणी साठलं आहे. या पाण्यात अनेक सागरी प्राणी दर्शन देतात. नेहमीप्रमाणे शंख शिंपले तर आहेतच. अनेक प्रकारचे मासे, शेवाळ, खेकडे यांची रेलचेल आहे इथं. हिरव्या पाठीची समुद्र कासवं इथं बघायला मिळतात. या खडकाळ किनाऱ्यावर असणाऱ्या डबक्यांपाशी थांबून कितीतरी मजेशीर गोष्टींचं निरीक्षण करता येतं. फोटोग्राफी करणाऱ्यांना वेगळे फोटो मिळतात. आमच्या टूर गाईडनं सांगितलं की या खडकांभोवती विळखे घालून मोठमोठाले साप सुद्धा असतात. हे विषारी असतात. आम्हाला दिसले तरी नाहीत. विश्वास ठेवायलाच हवा होता कारण, त्याच्याच मोबाईलवर त्यानं स्वतः घेतलेला फोटो दाखवला. असेलही. त्या शांत, खडकांमध्ये समुद्रसाप वस्तीला येतही असतील. खडकांची झीज होऊन तयार झालेला हा पूल पूर्वी हावडा पूल म्हणून ओळखला जाई. येथे बंगाली लोकांची वस्ती आहे. म्हणून असेल. याला रविंद्रनाथ सेतू असेही नाव कुणी दिलंय असं कळलं.

अंदमान मध्ये शेती फारशी केली जात नाही. बहुतेक सगळं अन्न धान्य, फळं भाज्या कलकत्त्याहून येतात. पण हिंदी महासागरातल्या या शहीद द्वीपवर पालक, टोमॅटो सारख्या काही भाज्या घेतल्या जातात. शहाळी मात्र भरपूर मिळतात. नैसर्गिक पूल बघण्यासाठी केलेले श्रम नारळाच्या थंडगार, मधुर पाण्यानं विसरले जातात.

शहीद बेटावरील लक्ष्मणपूर किनारा सुर्यास्त बघण्यासाठी प्रसिद्ध आहे. हा किनारा मऊ, पांढरी शाल ओढून बसला आहे. शांत किनारा, तितकाच शांत शीतल निळा समुद्र. आणि निळ्या आकाशात लांबवर चाललेली रंगपंचमी. केशरी, पिवळी लाल, गुलाबी, जांभळे रंग धारण करणारा ते नीळाकाश. त्याच्या बदलत्या छटा बघत शांत बसून रहावं. स्वतः बरोबर निळ्या खोलीचाही रंग बदलवणाऱ्या जादुई संध्येला अभिवादन करावं. आणि मग नि:शब्द पायांनी परतावं. हो, पण, पाण्यात बुडणारा सूर्य बघायला मिळेल असं नाही. कारण इथलं अनिश्चित हवामान. दुपारपासून तापलेलं आकाश अचानक कुठुनतरी आलेल्या काळ्या ढगांनी झाकोळतं. मग संध्येला भेटायला केशरी पाण्यात शिरणारं ते बिंब शामल ढगा़आड दडताना बघावं लागतं.

– समाप्त –

© सौ. दीपा नारायण पुजारी

इचलकरंजी

9665669148

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – “मोमबत्तियां” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ लघुकथा – “मोमबत्तियां” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

-मां ये मोमबत्तियां जलाकर क्यों चल रहे हैं अंकल लोग?

-बेटा, ये कुछ अक्ल के अंधों को रोशनी दिखाने निकले हैं !

-मम्मी, मोमबत्तियां पिघलने लगेंगीं तो गर्म मोम उंगलियों‌ पर गिरेगा, ये तो किसी का क्या बिगड़ा? अपना ही हाथ जलेगा !

-बात तो ठीक है तेरी। फिर तेरी नज़र में क्या करना चाहिए?

– मैं तो कहती हूँ कि ये मोमबत्तियां लेकर उस पापी को जलाओ, जिसने यह गंदा काम किया है !

मां अपनी नन्ही सी बेटी का मुंह देखती रह गयी !!

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रेयस साहित्य # ७ – लघुकथा – आँखों की ज्योति ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆

श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रेयस साहित्य # ७ ☆

☆ लघुकथा ☆ ~ आँखों की ज्योंति ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

आंखों की दृष्टि जाने पर भी वह नित्य प्रति उठता, शौचादि से निवृत हो, योगेश्वर श्रीकृष्ण के पावन विग्रह के पास ध्यान लगाकर बैठ जाता। अपनी मनःस्थिति पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिये, उसका ईश्वर का आश्रय पाना आवश्यक है, ऐसा उसका मानना था।

कुशा से निर्मित आसन पर बैठकर वह, श्रीमद्भगवतगीता के ध्यान योग के विषय में अन्तर्मन से विमर्श करता। भगवान पतंजलि के अष्टांग योग के निर्देशों के अनुरूप योग क्रियाओं का संपादन करता। उसका यह कार्य नित्य प्रति ब्रह्म मुहूर्त में होता।

योग अभ्यास पूर्ण करने के बाद वह योगीराज कृष्ण की आंखों में अपनी आंखें डालकर कहता कि हे योगी श्रेष्ठ! मै आपको भी योग करते हुए प्रतिदिन देखता हूँ। उस नेत्रहीन व्यक्ति के अंत नेत्र प्रतिदिन उसे भगवान कृष्ण के दिव्य स्वरुप में दर्शन कराते।

प्रतिदिन की भांति वह एक दिन योग क्रिया के उपरांत योग मुद्रा से उठा, और अपने चीर बंद नेत्रों को श्री कृष्ण चंद्र की नेत्रों में डालकर प्रणाम की मुद्रा में खड़ा हुआ। अचानक एक दिव्य ज्योंति उसकी नेत्रों में समाई, और अब उसके सामने योगीराज कृष्ण के पावन विग्रह के साथ -साथ, उसके अतीत का सारा दृश्य आलोकित हो रहा था।

इसे उसने योगीराज श्रीकृष्ण की कृपा का परिणाम माना, लेकिन श्री कृष्णचंद की प्रेरणा, उससे यह कह रही थी कि हे भक्त! इन योग क्रियायों के शुभ प्रतिफल को तुम स्वयं अपनी नजरों से देख रहे हो।

बरसों पूर्व एक दुर्घटना में, उसके नेत्रों की ज्योति चली गई थी, मष्तिष्क से नेत्रों तक जाने वाली संवेदनशील तांत्रिकाएं क्षतिग्रस्त हो गई थी, लेकिन ये तांत्रिकायें आज पुनर्जीवित हो गई थीं। अब उसका मस्तक भगवान के श्रीचरणों में था, और योगेंद्र कृष्ण यह कहते हुए, उसके माथे पर अपना पावन हाथ फेर रहे थे कि हे भक्तराज! तुम स्वयं देखो योग की महिमा कितनी बड़ी है।

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

दिनांक 22-02-2025

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२५ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२५ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

01 अक्टूबर 2023 को हमारे दल की वापिसी यात्रा शुरू हुई। हमको एहोल और बादामी गुफाओं के दर्शन करके बादामी स्थित आनंदनगर की एक होटल में एक रात गुज़ारना थी। ताकि अगले दिन हुबली एयरपोर्ट से सुबह की दिल्ली फ्लाइट पकड़ी जा सके। दिल्ली एयरपोर्ट पर रात्रि विश्राम करके शाम को भोपाल फ्लाइट पकड़नी थी। हम लोग हुबली आते समय सीधे कोप्पल के रास्ते से से हॉस्पेट पहुँचे थे। वापिसी में हंगुण्ड हुए एहोल पहुंचना था। होटल से नाश्ता करके चले।

साथियों को बताया कि कार्बन डेटिंग पद्धति से यह पता चला है कि दक्षिण भारत में ईसा पूर्व 8000 से मानव बस्तियाँ रही हैं। लगभग 1000 ईसा पूर्व से लौह युग का सूत्रपात हुआ। मालाबार और तमिल लोग प्राचीन काल में यूनान और रोम से व्यापार किया करते थे। वे रोम, यूनान, चीन, अरब, यहूदी आदि लोगों के सम्पर्क में थे। प्राचीन दक्षिण भारत में विभिन्न समयों तथा क्षेत्रों में विभिन्न शासकों तथा राजवंशों ने राज किया। सातवाहन, चेर, चोल, पांड्य, चालुक्य, पल्लव, होयसल, राष्ट्रकूट आदि ऐसे ही कुछ राजवंश थे। इनमें से चालुक्य राजाओं के शासन के दौरान भूतनाथ गुफाओं में प्रश्तर मूर्तियों का निर्माण हुआ।

अब यात्रा उत्तर दिशा में कोल्हापुर जाने वाली सड़क पर शुरू होनी है। हॉस्पेट से दस किलोमीटर चले थे और तुंगभद्रा नदी पर बना बांध दिखने लगा। दूर से ही दर्शन करके आगे बढ़ गए। करीब 100 किलोमीटर चलकर हंगुण्ड पहुँचे। तब तक लंच का समय हो  चुका था।

हंगुण्ड के होटल मयूर यात्री निवास रेस्टोरेंट में दोपहर का भोजन निपटा कर प्रसिद्ध ऐहोल शिलालेख देखा।

यह रविकीर्ति का ऐहोल शिलालेख है, जिसे कभी-कभी पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल शिलालेख भी कहा जाता है। यह शिलालेख ऐहोल शहर के दुर्गा मंदिर और पुरातात्विक संग्रहालय से लगभग 600 मीटर दूर एहोल शिलालेख मेगुटी जैन मंदिर की पूर्वी दीवार पर पाया गया है। एहोल – जिसे ऐतिहासिक ग्रंथों में अय्यावोल या आर्यपुरा के रूप में भी जाना जाता है – 540 ईस्वी में स्थापित पश्चिमी चालुक्य वंश की मूल राजधानी थी, उनके बाद 7वीं शताब्दी में वातापी की राजधानी रहा।

शिलालेख में पुरानी चालुक्य लिपि में संस्कृत की 19 पंक्तियाँ हैं। यह मेगुटी मंदिर की पूर्वी बाहरी दीवार पर स्थापित एक पत्थर पर अंकित है, जिसमें लगभग 4.75 फीट x 2 फीट की सतह पर पाठ लिखा हुआ है। अक्षरों की ऊंचाई 0.5 से 0.62 इंच के बीच है। शैलीगत अंतर से पता चलता है कि 18वीं और 19वीं पंक्तियाँ बाद में जोड़े गए अपभ्रंश हैं, और रविकीर्ति की नहीं हैं।

शिलालेख एक प्रशस्ति है। यह पौराणिक कथाएँ बुनता है और अतिशयोक्ति पूर्ण है। लेखक ने अपने संरक्षक पुलकेशिन द्वितीय की तुलना किंवदंतियों से की है, और खुद की तुलना कालिदास और भारवि जैसे कुछ महानतम संस्कृत कवियों से की है – जो हिंदू परंपरा में पूजनीय हैं। फिर भी, यह शिलालेख कालिदास के प्रभावशाली कार्यों से वाक्यांशों को उधार लेता प्रतीत होता है।

ऐहोल के बाद अगला पड़ाव बादामी था। बादामी बागलकोट जिला में पहले वातापी के नाम से जाना जाता था, वर्तमान में एक तालुक मुख्यालय है। यह 540 से 757 तक बादामी चालुक्यों की शाही राजधानी रहा। बादामी गुफा मंदिर चट्टानों को काटकर बनाए गए स्मारकों के साथ-साथ भूतनाथ मंदिर, बादामी शिवालय और जम्बुलिंगेश्वर मंदिर जैसे संरचनात्मक मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यह अगस्त्य झील के चारों ओर ऊबड़-खाबड़, लाल बलुआ पत्थर की चट्टान के नीचे एक खड्ड में स्थित है।

बादामी शहर महाकाव्यों की अगस्त्य कथा से जुड़ा हुआ है। महाभारत में, असुर वातापी एक बकरी बन जाता था, जिसे उसका भाई इल्वला पकाता था और मेहमान को खिलाता था। इसके बाद, इल्वला उसे पुकारता था, वातापी पीड़ित के अंदर से पेट फाड़ कर बाहर निकलता था। जिससे पीड़ित की मौत हो जाती थी। जब ऋषि अगस्त्य आए, तो इल्वला उन्हें बकरी भोज प्रदान करता है। अगस्त्य भोजन को पचाकर वातापी को मार देते हैं। इस प्रकार अगस्त्य ने  वातापि और इल्वला को मार डाला। ऐसा माना जाता है कि यह किंवदंती बादामी के पास घटित हुई थी, इसलिए इसका नाम वातापी और अगस्त्य झील पड़ा।

चालुक्यों के प्रारंभिक शासक पुलकेशिन प्रथम को आम तौर पर 540 में बादामी चालुक्य राजवंश की स्थापना करने वाला माना जाता है। बादामी में एक शिलाखंड पर उत्कीर्ण इस राजा के एक शिलालेख में 544 में ‘वातापी’ के ऊपर पहाड़ी की किलेबंदी का रिकॉर्ड दर्ज है। क्योंकि बादामी तीन तरफ से ऊबड़-खाबड़ बलुआ पत्थर की चट्टानों से सुरक्षित है। इसीलिए उनकी राजधानी के लिए यह स्थान संभवतः रणनीतिक कारण से पुलकेशिन की पसंद था। उनके पुत्रों कीर्तिवर्मन प्रथम और उनके भाई मंगलेश ने वहां स्थित गुफा मंदिरों का निर्माण कराया।

कीर्तिवर्मन प्रथम ने वातापी को मजबूत किया और उसके तीन बेटे थे, पुलकेशिन द्वितीय, विष्णुवर्धन और बुद्धवारास, जो उसकी मृत्यु के समय नाबालिग थे। कीर्तिवर्मन प्रथम के भाई मंगलेश ने राज्य पर शासन किया, जैसा कि महाकूट स्तंभलेख में उल्लेख किया गया है। 610 में, प्रसिद्ध पुलकेशिन द्वितीय सत्ता में आया और 642 तक शासन किया। वातापी प्रारंभिक चालुक्यों की राजधानी थी, जिन्होंने 6वीं और 8वीं शताब्दी के बीच कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु के कुछ हिस्सों और आंध्र प्रदेश पर शासन किया था।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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