हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 232 – बुन्देली कविता – बढ़त जात उजयारो… भाग-२ ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – बढ़त जात उजयारो।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 232 – बढ़त जात उजयारो… भाग-२  ✍

(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से) 

मुरझाओ मन हरया बैठी

लागत लगो बसकारो।

बढ़त जात उजयारो ।

 

जैसे घाम धान के जोरें

भिजा देत है छैंया

वैसइ कछू लगत है हमस्खों

देख देख के मुइयां ।

 

बरस बरस में फली मनौती

अँखियन में जल ढारो ।

बढ़त जात उजयारो।

 

जुड़ा गई हैं अँखियां मन की

चंदा सो उग आओ

जौ मुईयाँ चंदा से बड़ के

लख चंदा सकुच्याओ।

 

सरद जुन्हैया देखन काजै

घूँघट तनक उधारो ।

बढ़त जात उजयारो ।

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 232 – “गौना नहीं करा पाये…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत गौना नहीं करा पाये...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 232 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “गौना नहीं करा पाये...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

जेबो को था ढका

अनगिनत इन सालो ने

बदल दिये थे मुँह तक

पीले सभी रुमालो ने

 

घर में फसल उमीदों की

ऐसी आ पसरी थी

बिकने से बच गई

भाग बश काली बकरी थी

 

राम भरोसे का ईश्वर

पर यही भरोसा था

यों तो कसर न छोड़ी

कम कुछ सभी दलालों ने

 

एक अँगोछे के दो

पंचे पुत्र पिता को थे

धन्यवाद देते दिलसे

वे परमपिता को थे

 

कसर रह गई बस पनहीं

न ले पाये अबतक

कठिन परीक्षायें दी

थी पावों के छालों ने

 

गौना नहीं करा पाये

हलकू की दुलहिन का

गड़ता रहा आँख में ज्यों

सूखा कोई तिनका

 

परमू कक्का इंतजार में

थे मेहमानी के

नशा चढ़ाया था समधिन

के गोरे गालों ने

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

31-03-2025

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५० – “मंडला, जबलपुर के गौरव रत्न – श्रद्धेय स्व. श्री रामकृष्ण पांडेय” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

श्री यशोवर्धन पाठक

(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व मंडला, जबलपुर के गौरव रत्न – श्रद्धेय स्व. श्री रामकृष्ण पांडेयके संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)

स्व. श्री रामकृष्ण पांडेय

☆ कहाँ गए वे लोग # ५० ☆

☆ “मंडला, जबलपुर के गौरव रत्न – श्रद्धेय स्व. श्री रामकृष्ण पांडेय” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक

तिथियां गिनने न बैठो

 उत्थान और पतन की

सच मानो ये घड़ी है

 संकल्प और प्रण की

 ——–

सुप्रसिद्ध कवि स्व. पं. श्रीबाल पांडेय जी की इन काव्य पंक्तियों की सार्थकता सिद्ध करने वाले मंडला के गौरव रत्न स्व. श्री रामकृष्ण जी पांडेय के व्यक्तित्व और कृतित्व के विषय में आज जब मैं कुछ लिखने बैठा हूं तो मैं सोचता हूं कि श्री पांडेय जी ने भी पं. श्रीबाल पांडेय जी की काव्य पंक्तियों के अनुसार उत्थान और पतन के दिन नहीं गिने बल्कि अपनी कर्म निष्ठा के माध्यम से विकास की दिशा तय करने में जीवन पर्यन्त संकल्पबद्ध रहे। सादा जीवन, उच्च विचार के धनी श्री रामकृष्ण पांडेय का जन्म मंडला जिले के ग्रामीण अंचल निवास के भीखमपुर में हुआ था संघर्ष की धूप में तपते हुए उन्होंने कठिनाइयों के बीच मैट्रिक की परीक्षा शानदार अंकों से उत्तीर्ण करते हुए मेरिट में स्थान प्राप्त किया और अपने गांव ही नहीं बल्कि अपने जिले को गौरवान्वित किया था।

 इस कामयाबी के बाद तो पांडेय जी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और शिक्षा के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ते रहे। उन्होंने जबलपुर विश्व विद्यालय से एम. ए. की परीक्षा में स्वर्ण पदक प्राप्त करने के बाद महात्मा गांधी के निजी सचिव रहे पूर्व सांसद डा. महेश दत्त मिश्रा के मार्गदर्शन में भारतीय संसदीय प्रणाली पर पी. एच. डी. की उपाधि अर्जित की। यह गौरवशाली सिलसिला यहीं नहीं रुका। पांडेय जी ने इसके बाद इंडियन प्राइम मिनिस्टर थ्योरी एंड प्रेक्टिस पर डी. लिट की उपाधि भी प्राप्त की बाद में उन्होंने प्रधानमंत्री सचिवालय में विशेष राजनैतिक सलाहकार के दायित्व का भी निर्वाह किया। कम्युनिकेशन आफ इंडिया के डायरेक्टर के पद को सुशोभित करने के बाद पांडेय जी आकाशवाणी से श्रोता अनुसंधान अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए। उल्लेखनीय बात तो यह है कि सेवानिवृत्त होने के बाद पांडेय जी ने एल. एल. बी. की परीक्षा पास की और वह भी गोल्ड मेडल लेकर। फिर एल. एल. एम. में भी गोल्ड मेडल लिया और फिर छत्तीसगढ़ के रायपुर में सीनियर प्रोड्यूसर का काम करते हुए सफलता पूर्वक वकालत भी की।

पांडेय जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। शिक्षा क्षेत्र में विभिन्न उपाधियां अर्जित करने के साथ ही उन्हें ज्योतिष शास्त्र का भी विशेष ज्ञान था। प्रारंभिक जीवन में उन्होंने जबलपुर के कामता प्रसाद गुरु भाषा भारती संस्थान में असिस्टेंट डायरेक्टर का भी सफलता पूर्वक कार्य किया। पांडेय जी को पत्रकारिता का भी अच्छा अनुभव था। उन्होंने जबलपुर के दैनिक देशबंधु सहित अनेक अखबारों में भी पत्रकारिता कार्य किया और निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में ख्याति अर्जित की।

 स्व. श्री पांडेय यूं रिश्ते में तो हमारे फूफाजी हुआ करते थे परंतु उन्होंने इस रिश्ते को तरजीह नहीं दी बल्कि मेरे पिताजी को हमेशा पितृ तुल्य माना और पिताजी के प्रति उनके मन में हमेशा श्रद्धा का भाव रहा। वे कभी कभी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए भी पिताजी के पास आते थे और हमेशा चेहरे पर एक सुकून का भाव लेकर लौटते। अपने कार्यक्षेत्र के बारे में पिताजी के साथ जब उनकी गंभीर चर्चा प्रारंभ होती तो समय का पता ही नहीं चलता। हम चारों भाइयों को उन्होंने अपने छोटे भाई जैसा स्नेह दिया। उनके सहज सरल स्वभाव में इतनी बेतकल्लुफी शामिल थी कि हमें उनके मित्र होने की अनुभूति होने लगती। स्व. श्री पांडेय सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्र में कल्याणकारी दृष्टिकोण और परस्पर सहयोग के लिए चर्चित रहे। वे सभी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे चाहे वह उनका परिचित हो या अपरिचित । उन्होंने हम लोगों को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। मेरे एम. ए. करने के बाद एक बार उन्होंने पूछा कि मैं आजकल क्या कर रहा हूं। मैंने कहा, अभी तो कुछ नहीं। उस समय पांडेय जी जबलपुर में आकाशवाणी में श्रोता अनुसंधान अधिकारी थे। उन्होंने मुझसे रेडियो स्टेशन में मिलने को कहा। जब मैं उनसे जाकर मिला तो उन्होंने मुझसे मानदेय पर एशियाड ८२ के अंतर्गत सर्वे का काम सौंप दिया और यही नहीं उस समय पांडेय जी के अधीनस्थ लगभग ४० बेरोजगार युवक काम रहे थे। सर्वे कार्य के बाद जब हम सभी को मानदेय की इकठ्ठी राशि मिली तो हमारी खुशी ‌देखते ही बनती थी।

श्रद्धेय पांडेय जी के साथ बिताया गया समय हमारे स्मृति कोष की अमूल्य धरोहर है। साहित्यिक गतिविधियों में भी श्री पांडेय जी हमें हमेशा प्रोत्साहित करते थे। उनका प्रोत्साहन और मार्गदर्शन मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हुआ करता। एक बार एक काव्य गोष्ठी में काव्य पाठ के पूर्व ही उन्होंने मुझे एक विशेष कविता पढ़ने का संकेत। दिया। शायद यह कविता उनके नजरिए से सामयिक और महत्वपूर्ण रही हो। आदरणीय डा. राजकुमार सुमित्र जी और आदरणीय डा. रामकृष्ण जी पांडेय के आतिथ्य में आयोजित उस काव्य गोष्ठी में मैंने वह कविता मैं अंधा ही अच्छा हूं, सुनाई और वह कविता सराही भी गयी।

 पांडेय जी आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी यादें हमारे दिल और दिमाग में सदा उनके हमारे आस पास होने का अहसास दिलाती है –

आदमी के, प्यार के,

संघर्ष के जो गीत गाये

जियेंगी सदियां उन्हें

दिन रात छाती से लगाये।

© श्री यशोवर्धन पाठक

संकलन – श्री प्रतुल श्रीवास्तव

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

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आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆ कहाँ गए वे लोग – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ७ ☆ “स्व गणेश प्रसाद नायक” – लेखक – श्री मनोहर नायक ☆ प्रस्तुति  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “बुंदेली की पाठशाला- डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ९ ☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ११ – “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १२ ☆ डॉ. रामदयाल कोष्टा “श्रीकांत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆   

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १३ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकप्रिय नेता – नाट्य शिल्पी सेठ गोविन्द दास ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १४ ☆ “गुंजन” के संस्थापक ओंकार श्रीवास्तव “संत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १५ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆ 

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १७ – “डॉ. श्री राम ठाकुर दादा- समाज सुधारक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १८ – “राजकुमार सुमित्र : मित्रता का सगुण स्वरुप” – लेखक : श्री राजेंद्र चन्द्रकान्त राय ☆ साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १९ – “गेंड़ी नृत्य से दुनिया भर में पहचान – बनाने वाले पद्मश्री शेख गुलाब” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २० – “सच्चे मानव थे हरिशंकर परसाई जी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २१ – “ज्ञान और साधना की आभा से चमकता चेहरा – स्व. डॉ कृष्णकांत चतुर्वेदी” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २२ – “साहित्य, कला, संस्कृति के विनम्र पुजारी  स्व. राजेन्द्र “रतन”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २३ – “मेरी यादों में, मेरी मुंह बोली नानी – सुभद्रा कुमारी चौहान” – डॉ. गीता पुष्प शॉ ☆ प्रस्तुती – श्री जय प्रकाश पांडे ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २४ – “संस्कारधानी के सिद्धहस्त साहित्यकार -पं. हरिकृष्ण त्रिपाठी” – लेखक : श्री अजय कुमार मिश्रा ☆ संकलन – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २५ – “कलम के सिपाही – मुंशी प्रेमचंद” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २६ – “यादों में रहते हैं सुपरिचित कवि स्व चंद्रकांत देवताले” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २७– “स्व. फ़िराक़ गोरखपुरी” ☆ श्री अनूप कुमार शुक्ल ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २८ – “पद्मश्री शरद जोशी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २९ – “सहकारिता के पक्षधर विद्वान, चिंतक – डॉ. नंद किशोर पाण्डेय” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३० – “रंगकर्मी स्व. वसंत काशीकर” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३१ – “हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, फारसी के विद्वान — कवि- शायर पन्नालाल श्रीवास्तव “नूर”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३२ – “साइकिल पर चलने वाले महापौर – शिक्षाविद्, कवि पं. रामेश्वर प्रसाद गुरु” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३३ – “भारतीय स्वातंत्र्य समर में क्रांति की देवी : वीरांगना दुर्गा भाभी” ☆ डॉ. आनंद सिंह राणा ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३४ –  “जिनके बिना कोर्ट रूम भी सूना है : महाधिवक्ता स्व. श्री राजेंद्र तिवारी” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३५ – “सच्चे मानव – महेश भाई” – डॉ महेश दत्त मिश्रा” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३६ – “महिलाओं और बच्चों के लिए समर्पित रहीं – विदुषी समाज सेविका श्रीमती चंद्रप्रभा पटेरिया” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३७ – “प्यारी स्नेहमयी झाँसी वाली मामी – स्व. कुमुद रामकृष्ण देसाई” ☆ श्री सुधीरओखदे   ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३८ – “जिम्मेदार शिक्षक – स्व. कवि पं. दीनानाथ शुक्ल” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३९ – “सहृदय भावुक कवि स्व. अंशलाल पंद्रे” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४० – “मानवीय मूल्यों को समर्पित- पूर्व महाधिवक्ता स्व.यशवंत शंकर धर्माधिकारी” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४१ – “प्रखर पत्रकार, प्रसिद्ध कवि स्व. हीरालाल गुप्ता” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४२ – “जिनकी रगों में देशभक्ति का लहू दौड़ता था – स्व. सवाईमल जैन” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४३ – “संवेदनशील कवि – स्व. राजेंद्र तिवारी “ऋषि”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४४ – “कर्णदेव की दान परम्परा वाले, कटनी के पान विक्रेता स्व. खुइया मामा” ☆ श्री राजेंद्र सिंह ठाकुर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४५ –  “सिद्धांतवादी पत्रकार – स्व. महेश महदेल” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४६ – “मधुर गीतकार-  स्व. कृष्णकुमार श्रीवास्तव ‘श्याम’” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४७ – “साहित्य के प्रति समर्पित : आदरणीय राजकुमार सुमित्र जी” ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४८ – “गीतों के राजकुमार मणि “मुकुल”- स्व. मणिराम सिंह ठाकुर “मणि मुकुल”  ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४९ – “शिक्षाविद और सहकारिता मनीषी – स्व. डा. सोहनलाल गुप्ता” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ प्रतुल साहित्य # 2 – हास्य-व्यंग्य – “अब वर – वधू भी ढूंढेगी सरकार !” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।

प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन

आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य  ब वर – वधू भी ढूंढेगी सरकार !)

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ प्रतुल साहित्य # 2 ☆

☆ हास्य-व्यंग्य ☆ “अब वर – वधू भी ढूंढेगी सरकार !” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव

मैं सुबह अपने कम्पाउन्ड में बैठा शेविंग कर रहा था तभी पड़ोसी वर्मा जी ने प्रवेश करते हुए कहा – भाई साहब कुछ सुना आपने। मैंने कहा हां भाई जी सुना है – “बटोगे तो कटोगे”।

वर्माजी हंसते हुए बोले – भाई साहब आप भी मजाक करते हैं, मैं उसकी बात नहीं कर रहा। मैंने कहा फिर तो आप ही सुना डालें। वर्मा जी जैसे ही अपना मुंह मेरे कान के पास लाए, मैंने कहा, बहुत गोपनीय बात है क्या ? उन्होंने दांत निपोरते हुए कहा – नहीं ऐसा तो नहीं। फिर कान में नहीं सामने बैठकर सुनाओ।

उन्होंने कुर्सी सम्हालते हुए कहा – भाई साहब गजब हो गया। मैंने कहा भाई आप हर बात गजब हो गया से शुरू क्यों करते हैं ? हो सकता है कि जो आपके लिए गजब हो वो मेरे लिए गजब न हो। जब तक आपकी बात न सुन लूं, कैसे मान लूं कि गजब हुआ है।

वे फिर हंसे और बोले – उत्तर प्रदेश के महोबा के बीजेपी विधायक ब्रजभूषण राजपूत एक पेट्रोल पंप पर तेल भरवाने पहुंचे। जैसे ही एक कर्मचारी ने विधायक जी को देखा तो तुरंत दौड़ कर उनके पास पहुंचा। उसने कहा कि मैंने आपको वोट दिया है। अब आप लड़की ढूंढ कर मेरी शादी करवा दो। विधायक जी ने हंसते हुए जल्द ही उसकी शादी करवाने का आश्वासन दिया। इसका वीडीयो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।

बात सुनकर मैंने कहा भाई जी इतनी मामूली बात को आप गजब हो गया कह कर प्रस्तुत कर रहे थे ! मेरा जवाब सुनकर वे मायूस हो गए। मैंने कहा भाई जी क्या आपको पता नहीं कि नेता भाजपा का हो या किसी और पार्टी का वो अपने मतदाता की प्रत्येक मांग को पूरा करने का आश्वासन विश्वास के साथ देता है। नेताओं का वश चले तो वे सरकारी खर्चे से अपने मतदाताओं को चंद्रमा और मंगल ग्रह की यात्रा करवा दें। वर्मा जी के मुंह पर बेचैनी झलक रही थी। मेरे चुप होते ही वे बोले – लेकिन भाई साहब क्या अब विधायक अपने क्षेत्र के अविवाहितों का विवाह करवाने लड़के/लड़कियां भी ढूंढेंगे ?

मैंने कहा भाई जी – राजनीति में लोग समाज सेवा की भावना से आते हैं। क्या आप अविवाहितों का विवाह करवाना समाज सेवा नहीं मानते ?

वर्मा जी ने कहा – लेकिन….। मैंने कहा काहे का लेकिन, संख्या बल के कारण मतदाता का जो वर्ग सरकार बनाने में सक्षम नहीं है उसे ठेंगा और जो सक्षम है उसे मुफ्त राशन, सस्ते आवास, लाडलियों, बेरोजगारों को मासिक धनराशि, मुफ्त शिक्षा, मुफ्त किताबें, साइकिल, स्कूटी, कन्या विवाह, गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक खुराक, अस्पतालों में मुफ्त जजकी, मुफ्त तीर्थ यात्रा, फ्री बिजली – पानी, वृद्धावस्था पेंशन, पांच लाख तक का मुफ्त इलाज आदि आदि, , , अब क्या क्या गिनाऊं ! वर्मा जी जब सरकार गरीबों के हाथ – पैर जाम करने उनकी इतनी सारी सेवाएं मुफ्त कर रही है तो चुनाव जिताने में सक्षम मतदाताओं की मांग पर वह अविवाहितों के लिए योग्य लड़के लड़कियां भी खोजने लगेगी। जो वर्ग वोट बैंक कहलाते हैं उनकी मांग पर, उन्हें लुभाने, उनका हमदर्द बनने क्या नहीं किया जा रहा ? भविष्य में “विवाह मंत्रालय” बना कर किसी को मंत्री पद भी सौंपा जा सकता है। अब यह न पूछना कि विवाह के इच्छुकों से रिश्वत में क्या क्या मांगा जा सकता है?

अब आप गजब कर रहे हैं भाई साहब कहते हुए वर्मा जी उठ कर चल दिये।

© श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 214 ☆ # “एक नई दास्तां…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “एक नई दास्तां…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 214 ☆

☆ # “एक नई दास्तां…” # ☆

यह कैसी हवा आजकल बह रही है

एक नई दास्तान हम सब से कह रही है

 

मुरझाई हुई हर कली हर चमन है

कशमकश में उलझा हुआ पवन है

खामोश खड़ा चुप सा गगन है

आंसुओं में डूबे सबके नयन हैं

आहत भावनाएं सब कुछ सह रही है

एक नई दास्तान हम सब से कह रही है

 

जकड़ी हुई हैं उमंगों की बांहें

कांटो भरी हैं सपनों की राहें

कैसे कोई अब वादों को निभाए

तरसती खड़ी है अपनों की निगाहें

मन मंदिर की दीवारें हर पल ढह रही हैं

एक नई दास्तान हम सब से कह रही हैं

 

कुछ दिलों में यह कैसी लहक है

कुछ चेहरों पर यह कैसी चहक है

कुछ युवाओं में यह कैसी बहक है

कुछ बुझती आंखों में कैसी दहक है

छुपी हुई आग इनके अंदर रह रही है

एक नई दास्तान हम सब से कह रही है

 

काली घटाएं धरती पर छा रही है

तूफान आने की एक आहट आ रही है

बिजलियां चमककर संदेश ला रही है

दिशाएं खुशी में गीत गा रही है

समंदर की लहरें निर्भय बह रही है

एक नई दास्तान हम सब से कह रही है

 

यह कैसी हवा आजकल बह रही है

एक नई दास्तान हम सब से कह रही है

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ कविता – वादा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय लघुकथा ‘वादा।)

☆ लघुकथा – वादा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

बीते वक्त की तरह, याद आते हो, आते नहीं हो,

कभी तो बहारों की तरह, लौटने का वादा कर लो.

*

बहारों की तरह, लौटने का वादा कर लो,

हाथों में लेकर हाथ, चलने का वादा कर लो.

*

इस बेजान दिल को धड़कने का बहाना दे दो,

नज़ारे लौट आएंगे, साथ आने का वादा कर लो.

*

इस बेनूर से चमन में, खिल उठेंगी कलियां,

गर तुम साथ बहारें लाने का वादा कर लो. 

*

न रुठो और न रूठने दो, कभी किसी को,

दोबारा नेमत ए इश्क देने का वादा कर लो.

*

कभी, कोई न कोई रंज होगा, दिल में तेरे,

अब हमेशा मुस्कराने का वादा कर लो.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 283 ☆ व्यंग्य – गुस्ताख़ हंसी ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य – ‘गुस्ताख़ हंसी‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 283 ☆

☆ व्यंग्य ☆ गुस्ताख़ हंसी

भरोसेमन्द सूत्रों से जानकारी मिली है कि देश के बड़े कारोबारियों ने सरकार को एक पत्र भेजा है जिसमें अपनी कुछ तकलीफों का ज़िक्र किया गया है। पत्र में सरकार से दरख्वास्त की गयी है कि उनकी तकलीफों का मुनासिब इलाज जल्दी खोजा जाए।

पत्र भेजने वालों ने लिखा है वे इस बात से बहुत दुखी हैं कि उन्हें ज़िन्दगी में मुश्किल से हंसने का मौका मिलता है, जबकि मामूली हैसियत वाले खुलकर हंसते हैं, हंस हंस कर दुहरे होते रहते हैं।उन्होंने लिखा है कि वे खु़द कमाने-गंवाने, अपनी संपत्ति संभालने,अपनी पांच-छः पीढ़ियों का इन्तज़ाम करने, हिसाब-किताब रखने, झूठे आंकड़े बनाने, मुकदमेबाज़ी, पारिवारिक कलह वगैर: में इतना मसरूफ़ और परेशान रहते हैं कि हंसने की फुर्सत ही नहीं मिलती। कभी-कभी दूसरों को दिखाने के लिए झूठ-मूठ ओंठ फैला लेते हैं, लेकिन भीतर कुछ नहीं होता।

उन्होंने लिखा कि  उनमें से कई लोग मजबूरी में लाफ्टर-क्लब जैसे समूह में शामिल हो जाते हैं, लेकिन वह राहत थोड़ी देर की होती है। लिखा कि उनके एक साथी हिम्मतलाल चूनावाला लाफ्टर-क्लब में हंसते-हंसते हार्ट-अटैक का शिकार हो गये और पल भर में अपनी सारी ज़र- ज़मीन छोड़कर जन्नत की तरफ रवाना हो गये। तबसे ज़्यादातर रसूखदार लाफ्टर-क्लब में जाने से कतराने लगे हैं।

पत्र में यह भी लिखा गया कि दरख़्वास्त करने वाले सभी हैसियतदारों के घरों में काम करने वालों के लिए ज़ोर से हंसने की मुमानियत है। वजह यह कि ऊंची हंसी सुनकर घर के लोग डिप्रेशन में आ जाते हैं। वैसे भी ऊंची हैसियत वालों को ज़ोर से हंसना घटिया और स्तरहीन लगता है।  इसीलिए बंगलों में काम करने वालों के लिए हंसी का डेसिबेल तय कर दिया गया है। उससे ऊपर जाने पर तनख्वाह में कटौती की सज़ा दी जाती है।

पत्र में लिखा गया कि बड़े कारोबारियों पर धन और संपत्ति के वितरण में ग़ैरबराबरी की तोहमत लगायी जाती है। कहा जाता है कि उन्होंने देश का ज़्यादातर धन बटोर लिया है। इसके लिए उन्हें गालियां सुननी पड़ती हैं, लेकिन यह नहीं देखा जाता कि उनके हिस्से बहुत कम खुशियां आती हैं। ज़्यादातर खुशियां दो कौड़ी के लोग समेट ले जाते हैं। जब संपत्ति के बराबर वितरण की मांग की जाती है तो खुशियों के बराबर वितरण पर भी तवज्जो दी जानी चाहिए।

सरकार के पास इस दरख़्वास्त के पहुंचते ही धड़ाधड़ कार्यवाही शुरू हो गयी और आदेश निकल गया कि सामान्य लोग अपनी हंसी पर काबू रखें और हैसियतदारों के बंगलों के पास से गुज़रते हुए ज़ोर से हंसने की गुस्ताख़ी न करें। मतलब यह कि रसूखदारों के भवनों से गुज़रते हुए वैसा ही आचरण करें जैसा पीसा की झुकती हुई मीनार के आसपास निर्धारित है।आदेश में यह भी कहा गया कि इसके लिए जल्दी ही हंसी का डेसिबेल तय किया जाएगा और उल्लंघन करने वालों के लिए सज़ा मुकर्रर की जाएगी।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ ≈ मॉरिशस से ≈ – लघुकथा – संस्मरण… – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे।

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “– संस्मरण… –” ।

~ मॉरिशस से ~

☆ कथा कहानी  ☆ — संस्मरण…  — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

विश्व लेखक थामस के अद्भुत संस्मरणों की चार खंडीय नवीनतम कृति को विश्व पुरस्कार प्राप्त हो रहा था। पर कृति में उसका अपना एक भी संस्मरण नहीं था। उसने तमाम अनगढ़ लोगों से उनके संस्मरण पूछ कर अपने नाम से लिखे थे। उसने कहा उसके अपने संस्मरण न हो से वह पुरस्कार छोड़ रहा है। अपने इस सच के लिए थामस को एक विशेष पुरस्कार मिला। पुरस्कार में पैसा होने से उसने उन लोगों में बाँट दिया जिनके संस्मरण थे।

 © श्री रामदेव धुरंधर

17 – 03 – 2025

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : rdhoorundhur@gmail.com

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 283 – राम, राम-सा..! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 283 ☆ राम, राम-सा..! ?

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे,

सहस्त्रनामतत्तुल्यं राम नाम वरानने।

राम मर्यादापुरुषोत्तम हैं, लोकहितकारी हैं। राम एकमेवाद्वितीय हैं। राम राम-सा ही हैं, अन्य कोई उपमा उन्हें परिभाषित नहीं कर सकती।

विशेष बात यह कि अनन्य होकर भी राम सहज हैं, अतुल्य होकर भी राम सरल हैं, अद्वितीय होकर भी राम हरेक को उपलब्ध हैं। डाकू रत्नाकर ने मरा-मरा जपना शुरू किया और राम-राम तक आ पहुँचा। व्यक्ति जब सत्य भाव और करुण स्वर से मरा-मरा जपने लगे तो उसके भीतर करुणासागर राम आलोकित होने लगते हैं।

राम का शाब्दिक अर्थ  हृदय में रमण करने वाला है। रत्नाकर का अपने हृदय के राम से साक्षात्कार हुआ और जगत के पटल पर महर्षि वाल्मीकि का अवतरण हुआ। राम का विस्तार शब्दातीत है। यह विस्तार लोक के कण-कण तक पहुँचता है और राम अलौकिक हो उठते हैं। कहा गया है, ‘रमते कणे कणे, इति राम:’.. जो कण-कण में रमता है, वह राम है।

राम ने मनुष्य की देह धारण की। मनुष्य जीवन के सारे किंतु, परंतु, यद्यपि, तथापि, अरे, पर,  अथवा उन पर भी लागू थे।  फिर भी वे परम पुरुष सिद्ध हुए।

वस्तुतः इस सिद्ध यात्रा को समझने के लिए उस सर्वसमावेशकता को समझना होगा जो राम के व्यक्तित्व में थी। राम अपने पिता के जेष्ठ पुत्र थे।सिंहासन के लिए अपने भाइयों और पिता की हत्या की घटनाओं से संसार का इतिहास रक्तरंजित है। इस इतिहास में राम ऐसे अमृतपुत्र के रूप में उभरते हैं जो पिता द्वारा दिए वचन का पालन करने के लिए राज्याभिषेक से ठीक पहले राजपाट छोड़कर चौदह वर्ष के लिए वनवास स्वीकार कर लेता है। यह अनन्य है, अतुल्य है, यही राम हैं।

भाई के रूप में भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के लिए राघव अद्वितीय सिद्ध हुए। उनके भ्रातृप्रेम का अनूठा प्रसंग हनुमन्नाष्टक में वर्णित है। मेघनाद की शक्ति से मूर्च्छित हुए लक्ष्मण की चेतना लौटने पर हनुमान जी ने पूछा, ‘हे  लक्ष्मण, शक्ति के प्रहार से बहुत वेदना हुई होगी..!’  लक्ष्मण बोले, “नहीं महावीर,  मुझे तो केवल घाव हुआ,  वेदना तो भाई राम को हुई होगी..!’

यह वह समय था जब समाज में बहु पत्नी का चलन था। विशेषकर राज परिवारों में तो राजाओं की अनेक पत्नियाँ होना सामान्य बात थी। ऐसे समय में अवध का राजकुमार, भावी सम्राट ‘एक पत्नी’ व्रत का आजीवन पालन करे, यह विलक्षण है।

शूर्पनखा का प्रकरण हो या पार्वती जी द्वारा सीता मैया का वेश धारण कर उनकी परीक्षा लेने का प्रसंग, श्रीराम की महनीय शुद्धता 24 टंच सोने से भी आगे रही। सीता जी के रूप में पार्वती जी को देखते ही श्रीराम ने हाथ जोड़े और पूछा, “माता आप अकेली वन में विचरण क्यों कर रही हैं और भोलेनाथ कहाँ हैं? “

इसी तरह हनुमान जी के साथ स्वामी भाव न रखते हुए भ्रातृ भाव रखना, राम के चरित्र को उत्तुंग करता है- ‘तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।’

समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलना राम के व्यक्तित्व से सीखा जा सकता है। उनकी सेना में वानर, रीछ, सभी सम्मिलित हैं। गिद्धराज जटायु हों, वनवासी माता शबरी हों, नाविक केवट हो, निषादराज गुह अथवा अपने शरीर से रेत झाड़कर सेतु बनाने में सहायता करनेवाली गिलहरी,  सबको सम्यक दृष्टि से देखने वाला यह रामत्व केवल राम के पास ही हो सकता था। संदेश स्पष्ट है, जो तुम्हारे भीतर बसता है, वही सामने वाले के भीतर भी रमता है।…रमते कणे कणे…!  कण कण में राम को राम ने देखा, राम ने जिया।

भारत के अनेक प्रदेशों में अभिवादन के लिए ‘राम-राम’ कहा जाता है। राजस्थान में  ‘राम राम-सा’ का प्रयोग होता है। लोक के इस संबोधन में एक संदेश छिपा है। राम-सा केवल राम ही हो सकते हैं। सात्विकता से सुवासित जब कोई  ऐसा सर्वगुणसम्पन्न हो कि उसकी तुलना किसी से न की जा सके, अपने जैसा एकमेव आप हो तो राम से श्रीराम होने की यात्रा पूरी हो जाती है। यही राम नाम का महत्व है, राम नाम की गाथा है और रामनाम का अविराम भी है।

राम राम रघुनंदन राम राम,

राम-राम भरताग्रज राम राम।

राम-राम रणकर्कश राम राम,

राम राम शरणम् भव राम राम।।

सभी पाठकों को श्रीरामनवमी की हार्दिक स्वस्तिकामनाएँ।💐🙏

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है 💥  

🕉️ प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 230 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 230 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 230) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 230 ?

☆☆☆☆☆

मुझे भी यकीन है,

और मौत पर भी एतबार है,

देखते हैं पहले कौन मिलता है,

हमे दोनो का इंतजार है…!

☆☆

I have faith in you and trust even death;

Let’s see who meets me first – I await both.

☆☆☆☆☆

किस्मत के खेल भी कितने निराले हैं,

जिसको चाहा वो मिला नही,

जो मिला उससे मोहब्बत ना हुई…!

☆☆

Fate’s games are indeed so strange;

I didn’t get the one who I desired,

And I didn’t fall in love with the one I got…

☆☆☆☆☆

ये वक़्त का सफर भी बड़ा अजीब सा चल रहा है

दौड़ तो रहा है, मगर खामोशी से…

☆☆

This journey of time is too strange,

It keeps unfolding but silently…

☆☆☆☆☆

हमें रुलाने वाले भी वही हैं जो कहते कि

हँसते हुए तुम बहुत अच्छे लगते हो…

☆☆

The who bring tears to my eyes is the same one 

who would say I resplendently shine when I smile.

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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