आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवरात्रि पर्व पर विशेष आदि शक्ति दुर्गा वंदना…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 207 ☆
☆ आदि शक्ति दुर्गा वंदना ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश….
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पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार…..
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अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..
परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.
दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..
जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार…..
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नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.
भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..
दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.
प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार…..
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वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..
मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.
ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१८-४-२०१४
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