हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 178 ☆ # “उम्मीद” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “उम्मीद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 178 ☆

☆ # “उम्मीद” #

हमारा जगतू

हाथ ठेले पर

लेटे लेटे

सपने देख रहा है

अभावों की जंजीरों को

एक एक कर

उतारकर फेंक रहा है

उसकी आंखों में

उम्मीद भरे सपने है

क्या पूरे होंगे

जो देखे उसने हैं ?

वो देख रहा है –

ये भीड़ जुटाकर

होती हुई रैलियां

तिलस्मी वादों मे

उलझी हुई पहेलियां

नये नये लुभावने नारे

आकाश से जमीन पर

उतारेंगे तारे

मीडिया में खूब हलचल है

खबर दिखाता पल पल है

हर पक्ष विकास की

उन्नति की, नौकरी की

ग्यारंटी दे रहा है

थोड़ा सा अनाज देकर

खरीद ले रहा है

आरोप-प्रत्यारोप

मर्यादा खो रहे है

सदभाव की जगह

जहर बो रहे है

इसे काटेगा कौन ?

हम या आप ?

फिर क्यों चुप चाप

सो रहे है  ?

सजी हुई है मंडियाँ

चरम पर कारोबार है

हर चीज बिक रही है

बड़े बड़े खरीददार है

 

हर पांच साल में

उसके बस्ती में

आता यह मौका है

वादें बस वादें

रह जाते हैं

मिलता हरदम धोका है

 

यह सब देखकर

जगतू पेशोपेश में है

वह कहाँ होश में हैं

वो असमंजस में है

क्या वाकई उसके बुरे दिन

जाने वाले है ?

इस बार

उसकी गरीब बस्तियों में

वादों में,

ग्यारंटिओं में

लिपटे हुए

क्या

अच्छे दिन आने वाले है ?

*

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – हमारी तरह… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता हमारी तरह।)

☆ कविता – हमारी तरह… ☆

पुष्प भी सहम गए हैं, हमारी तरह,

डर गए हैं, बिल्कुल हमारी तरह,

आखिर हमारे साथ ही तो रहते हैं,

वो भी सोचने लगे हैं, हमारी तरह,

*

अब  खिलखिलाकर हंसते नही,

अब हवा के साथ झूमते भी नहीं,

ना जाने कहां से गर्म हवा आ गई,

वो भी झुलस गए हैं, हमारी तरह,

*

अब पुष्पों में वो महक नहीं रही,

तितली भी तो पास में आती नहीं,

रंगऔर खुशबू भी तो बदल गई है,

पुष्प भी बदल गए हैं, हमारी तरह,

*

काली घटाएं पहलेभी, बरसती थीं,

बिजलियां पहले भी चमकती थीं,

पर पहले वो गैर नहीं लगती थीं,

अब वो गैर हो गई हैं, हमारी तरह,

*

पुष्प भी सहम गए हैं, हमारी तरह,

डर गए हैं,  बिलकुल हमारी तरह.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 174 ☆ अभंग… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 174 ? 

अभंग☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

माणूस पणाचा, प्रचार करावा

सत्संग साधावा, माणसाने.!!

*

मदिरा प्राशन, अभक्ष भक्षण

वाईट व्यसन, त्याज्य करा.!!

*

परम प्रीतीचा, धागा धरूनिया

प्रेम करुनिया, जिंका सर्वा.!!

*

कृष्ण प्रीत भक्ती, जडवा अंतरी

प्रवेश भितरी, करा तिच्या.!!

*

कवी राज म्हणे, संतांचे विचार

आणिक आचार, लक्ष करा.!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 242 ☆ व्यंग्य – ‘नैतिकता का तक़ाज़ा’ ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य  – नैतिकता का तक़ाज़ा। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 242 ☆

☆ व्यंग्य – नैतिकता का तक़ाज़ा

पार्टी दफ्तर में गहमागहमी है। पार्टी के द्वारा चुनाव के लिए उम्मीदवार की घोषणा होनी है। पिछली बार के उम्मीदवार नाहर सिंह को लेकर असमंजस है क्योंकि, अदालत के निर्णय के अनुसार, उनकी शूरवीरता के कारण उनके दो विरोधी स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गये थे। परिणाम स्वरूप उन्हें दो साल कारागार में काटने पड़े,यद्यपि उनकी पार्टी और उनके भक्त उन्हें पूरी तरह दूध का धुला मानते हैं। फिलहाल वे ज़मानत पर हैं। नाहर सिंह अपने इलाके के बाहुबली के रूप में विख्यात रहे हैं और इलाके में उनकी छवि रॉबिन हुड की रही है।

अब नाहर सिंह का टिकट खटाई में है, लेकिन किसी अज्ञात कारण से वे मायूस नहीं हैं। पूछने वालों से हाथ जोड़कर कहते हैं, ‘हम पार्टी के अनुशासित सिपाही हैं। पार्टी का निर्णय हमारे सिर माथे। हम तो जनता के सेवक हैं, टिकट नहीं मिलेगा तब भी सेवा में लगे रहेंगे।’

पार्टी के प्रवक्ता कई बार कह चुके हैं कि उन्हें पार्टी की छवि की फिकर है। उम्मीदवार एकदम उज्ज्वल छवि वाला होना चाहिए,एकदम बेदाग। गड़बड़ छवि वाला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

अब दफ्तर में नये उम्मीदवार की घोषणा की तैयारी है। कार्यकर्ताओं और मीडिया के द्वारा तरह-तरह के अनुमान लगाये जा रहे हैं। सस्पेंस चरम पर है। सब तरफ खुसुर-फुसुर है। पार्टी के नेता और प्रवक्ता रहस्य धारण किये हैं।

आखिरकार घोषणा होने का क्षण आ गया। नेता और प्रवक्ता स्टेज पर आ गये। कार्यकर्ताओं की टकटकी लगी है, कान खड़े हैं। प्रवक्ता कहते हैं, ‘भाइयो, आपको पता है कि हमारे पिछले उम्मीदवार नाहर सिंह को एक झूठे केस में फँसा कर उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास किया गया है। हमारी पार्टी नैतिकता के ऊँचे सिद्धान्त पर चलती है, हम नैतिकता के मामले में कोई समझौता नहीं करते, चाहे कितना नुकसान हो जाए। हमें भरोसा है कि भाई नाहर सिंह इस केस से बाइज्ज़त बरी होंगे। लेकिन अभी हम विरोधियों को आलोचना का मौका नहीं देना चाहते। इसलिए हम नाहर सिंह जी के स्थान पर पार्टी के नये उम्मीदवार की घोषणा करते हैं।’

फिर उन्होंने हाथ के इशारे से पीछे खड़े एक युवक को आगे बुलाया। युवक बिलकुल नाहर सिंह का युवा संस्करण लगता था। आगे आकर हाथ जोड़े खड़ा हो गया। प्रवक्ता जी उसके कंधे पर हाथ रख कर बोले, ‘ये भाई नाहर सिंह के सुपुत्र केहर सिंह हैं। अब यही पार्टी के उम्मीदवार होंगे। इनकी छवि एकदम उज्ज्वल है। दो चार मारपीट की घटनाओं में इनका नाम आया था, लेकिन वह सब ऊपर ऊपर निपट गया। रिकॉर्ड एकदम साफ-सुथरा है।’

केहर सिंह पब्लिक की तरफ हाथ जोड़कर माइक पर बोले, ‘हम पार्टी के बहुत आभारी हैं कि वह हमें जनता की सेवा का मौका दे रही है। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम आपकी सेवा उतनी ही लगन से करेंगे जैसे हमारे पिताजी करते रहे। हम उन्हीं के बताये रास्ते पर चलेंगे। आप हमें अपना आसिरबाद दें ताकि हम कभी आपकी सेवा से पीछे न हटें।’

सामने खड़ी जनता ने ‘नाहर भैया जिन्दाबाद’, ‘केहर भैया जिन्दाबाद’ के गगनभेदी नारे लगाये। स्टेज पर पीछे खड़े भैया नाहर सिंह ने प्रसन्न मुख से हाथ उठाकर जनता को धन्यवाद दिया।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 241 – अपरिग्रह- ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 241 – अपरिग्रह- ?

नववर्ष के आरंभिक दिनों में एक चित्र प्राय: देखने को मिलता है। कोई परिचित  डायरी दे जाता है। प्राप्त करनेवाले को याद आता है कि बीते वर्षों की कुछ डायरियाँ कोरी की कोरी पड़ी हैं। लपेटे रखे कुछ कैलेंडर भी हैं। डायरी, कैलेंडर जिनका कभी उपयोग ही नहीं हुआ।

मनुष्य से अपेक्षित है अपरिग्रह। मनुष्य ने ‘बाई डिफॉल्ट’ स्वीकार कर लिया अनावश्यक  संचय। जो अपने लिये भार बन जाए वह कैसा संचय? 

इसी संदर्भ में विपरीत ध्रुव की दो घटनाएँ स्मरण हो आईं। हाऊसिंग सोसायटी के सामने की सड़क पर रात दो बजे के लगभग दूध की थैलियाँ ले जा रहा ट्रक पेड़ से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। भय से ड्राइवर भाग खड़ा हुआ। आवाज़ इतनी प्रचंड थी कि आसपास के 500 मीटर के दायरे में रहनेवाले लोग जाग गए। आवाज़ से उपजे भय के वश कुत्ते भौंकने लगे। देखते-देखते इतनी रात गए भी भीड़ लग गई।  सड़क दूध की फटी थैलियों से पट गई थी। दूध बह रहा था। कुछ समय पूर्व भौंकने वाले चौपाये अब दूध का आस्वाद लेने में व्यस्त थे और दोपाये साबुत बची दूध की थैलियाँ हासिल करने की होड़ में लगे थे। जिन घरों में रोज़ाना आधा लीटर दूध ख़रीदा जाता था, वे भी चार, छह, आठ जितना लीटर हाथ लग जाए, बटोर लेना चाहते थे। जानते थे कि दूध नाशवान है, टिकेगा नहीं पर भीतर टिक कर बैठा लोभ, अनावश्यक संचय से मुक्त होने दे, तब तो हाथ रुकें! 

खिन्न मन दूसरे ध्रुव पर चला आता है। सर्दी के दिन हैं। देर रात फुटपाथ पर घूम-घूमकर ज़रूरतमंदों को यथाशक्ति कंबल बाँटने का काम अपनी संस्था के माध्यम से हम करते आ रहे हैं। उस रात भी मित्र की गाड़ी में कंबल भरकर निकले थे। लगभग आधी रात का समय था।  अस्पताल की सामने की गली में दाहिने ओर के फुटपाथ पर एक माई बैठी दिखीं। एक स्वयंसेवक से उन्हें एक कंबल देकर आने के लिए कहा। आश्चर्य ! माई ने कंबल लेने से इंकार कर दिया। आश्चर्य के निराकरण की इच्छा ने मुझे सड़क का डिवाइडर पार कर उनके सामने खड़ा कर दिया। ध्यान से देखा। लगभग सत्तर वर्ष की अवस्था। संभवत: किसी मध्यमवर्गीय परिवार से संबंधित जिन्होंने जाने किस विवशता में फुटपाथ की शरण ले रखी है।… ‘माई ! आपने कंबल नहीं लिया?’ उनके चेहरे पर स्मित उभर आया। अपने सामान की ओर इशारा करते हुए साफ़ भाषा में स्नेह से बोलीं, “बेटा! मेरे पास दो कंबल हैं। मेरा जीवन इनसे कट जाएगा। ज़्यादा किसलिये रखूँ? इसी सामान का बोझ मुझसे नहीं उठता, एक कंबल का बोझ और क्यों बढ़ाऊँ? किसी ज़रूरतमंद को दे देना। उसके काम आएगा!”

ग्रंथों के माध्यम से जिसे समझने-बूझने की चेष्टा करता रहा, वही अपरिग्रह साक्षात सामने खड़ा था। नतमस्तक हो गया मैं! 

कबीर ने लिखा है,

कबीर औंधि खोपड़ी, कबहुँ धापै नाहि।

तीन लोक की सम्पदा, कब आवै घर माहि।

पेट भरा होने पर भी धापा हुआ अथवा तृप्त अनुभव न करो तो यकीन मानना कि अभी सच्ची यात्रा का पहला कदम भी नहीं बढ़ाया है। यात्रा में कंबल ठुकराना है या दूध की थैलियाँ बटोरनी हैं, यह स्वयं तय करो।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 188 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 188 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 188) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 188 ?

☆☆☆☆☆

मुझको तो दर्द-ए-दिल का

मज़ा याद आ गया-

तुम क्यों हुए उदास

तुम्हें क्या याद आ गया…

☆☆

Remembered the bliss filled

Anguish of my lovelorn heart

Why did you become sad

Did you also miss something

☆☆☆☆☆

कहने को जिंदगी थी

बहुत मुख़्तसर मगर

कुछ यूँ बसर हुई कि

खुदा याद आ गया…

☆☆

Had a life so to say

Though much ephemeral

Passed in such away that

Made me remember the God..!

☆☆☆☆☆

रंजोगम तो तमाम मिट गए मगर

तेरा एहसास रह ही गया,

मगर खुश हूँ कि चलो तेरा कुछ

तो अपने पास रह गया…!

☆☆

Your Feelings 

 Though the suffering has gone

yet the feeling still remains,

Happy that atleast something of

yours is still left inside me…!

☆☆☆☆☆

Unchanged Stories ☆

वक्त ने कई ज़ख्म भर दिए,

यादें भी अब कम खलती हैं,

पर किताबों पर धूल जमने से

भला कहानियाँ कहाँ बदलती हैं..!

☆☆

Time has healed many a wound,

Memories are also scarce now…

But when do stories ever change by

settling of dust on the books…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 187 ☆ नवगीत – बाँस रोपने – बढ़ा कदम ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवगीत – बाँस रोपने – बढ़ा कदम…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 187 ☆

☆ नवगीत – बाँस रोपने – बढ़ा कदम ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

 

बाँस रोपने

बढ़ा कदम

.

अब तक किसने-कितने काटे

ढो ले गये,

नहीं कुछ बाँटें.

चोर-चोर मौसेरे भाई

करें दिखावा

मुस्का डांटें.

बँसवारी में फैला स्यापा

कौन नहीं

जिसका मन काँपा?

कब आएगी

किसकी बारी?

आहुति बने,

लगे अग्यारी.

उषा-सूर्य की

आँखें लाल.

रो-रो

क्षितिज-दिशा बेहाल.

समय न बदले

बेढब चाल.

ठोंक रहा है

स्वारथ ताल.

ताल-तलैये

सूखे हाय

भूखी-प्यासी

मरती गाय.

आँख न होती

फिर भी नम

बाँस रोपने

बढ़ा कदम

.

करे महकमा नित नीलामी

बँसवट

लावारिस-बेनामी.

अंधा पीसे कुत्ते खायें

मोहन भोग

नहीं गह पायें.

वनवासी के रहे नहीं वन

श्रम कर भी

किसान क्यों निर्धन?

किसकी कब

जमीन छिन जाए?

विधना भी यह

बता न पाए.

बाँस फूलता

बिना अकाल.

लूटें अफसर-सेठ कमाल.

राज प्रजा का

लुटते लोग.

कोंपल-कली

मानती सोग.

मौन न रह

अब तो सच बोल

उठा नगाड़ा

पीटो ढोल.

जब तक दम

मत हो बेदम

बाँस रोपने

बढ़ा कदम

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९.४.२०१५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संस्मरण – मेरी यादों में जालंधर – भाग-18 – डायरी में कितने नाम कट गये! ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ संस्मरण – मेरी यादों में जालंधर – भाग-18 – डायरी में कितने नाम कट गये! ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

(प्रत्येक शनिवार प्रस्तुत है – साप्ताहिक स्तम्भ – “मेरी यादों में जालंधर”)

ये यादें भी क्या चीज़ हैं कि किधर से किधर ले जाती हैं, उंगली पकड़कर ! आज याद आ रहे हैं वे युवा महोत्सवों के दिन ! जिनके दो लोग बहुत याद आ रहे हैं ! पहले हैं अशोक प्लेटो  जो बहुत ही प्रभावशाली वक्ता ही नहीं, कवि भी थे ! उनकी एक कविता की कुछ पंक्तियां आज तक नहीं भूलीं, वे सामने वाले का नाम लेकर कहते :

कमलेश ! तुम भेड़ तो नहीं हो

फिर भीड़ में शामिल क्यों हो ?

यानी वे सामने वाले को अलग हटकर अपनी हैसियत व जगह बनाने का आह्वान करते ! वे भाषण प्रतियोगिता में मेरे ध्यान में कभी प्रथम पुरस्कार से कम नहीं आते ! वे हिमाचल के कुछ महाविद्यालयों में प्राचार्य नियुक्त हुए लेकिन जालंधर उन्हें खींच कर  फिर ले आता और वे मोहन राकेश की तरह जैसे जेब में ही त्यागपत्र रखते थे ! आखिरकार वे पंजाब केसरी में उपसंपादक हो गये !  वे संस्कृत की विदुषी और डाॅ कैलाश भारद्वाज की पत्नी डाॅ सरला भारद्वाज के भाई थे। डाॅ सरला भारद्वाज को एक साल हिसार के ब्रहम विद्यालय की ओर से सम्मानित भी किया गया और वे सीधे हमारे ही घर आईं और इस तरह दोआबा की खुशबू जैसे मेरे घर आई, वही दोआबा, जिसकी मिट्टी से मैं बना हूँ ! आह! फिर अशोक प्लेटो न रहे। वे आपातकाल में दोस्तों से मज़ाक में कहते कि आपके घर चुपके से मार्क्स की किताब रख दूंगा और पुलिस को खबर कर दूंगा, फिर पकड़े जाओगे ! असल में वे अभिव्यक्ति के खतरों के प्रति अपनी आवाज को इस तरह पेश करते थे।

दूसरी याद हैं रीटा शर्मा, जो बाद में रीटा शौकीन बनीं ! वे भी हमारे काॅलेज के दिनों में काव्य पाठ प्रतियोगिताओं में एक ही कविता पढ़तीं :

मैं, तुम, हम सब कोढ़ी हैं!

और काव्य पाठ में प्रथम पुरस्कार ले उड़तीं, हम दूसरे प्रतिभागी देखते ही रह जाते ! फिर‌ वे चंडीगढ़ आ गयीं और थियेटर में आईं और एक नाटक तैयार किया-गुडमैन दी लालटेन‌, जिसे भव्य स्तर पर पंजाब के अनेक शहरों में मंचित किया, इनमें हमारा नवांशहर भी एक रहा और यही हमारी अब तक की आखिरी मुलाकात रही! यह नाटक सतलुज सिनेमा में म़चित किया गया !

जीवन के लम्बे सफर में बहुत लोग छूट जाते हैं, जैसे गाड़ी के मुसाफिर अलग अलग स्टेशन पर उतर जाते हैं, वैसे ही कितने परिचित चेहरे हमारी नज़रों से ओझल हो जाते हैं। इस स्थिति को मैंने अपनी एक कविता- डायरी के पन्ने में व्यक्त करने की कोशिश की है। यह कविता ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ के संपादक और प्रसिद्ध कवि हरभजन हल्वारवी के निधन की खबर पढ़ते ही लिखी गयी थी ! वे मुझे बहुत मानते थे और कई बार संपादक विजय सहगल के सामने कहते, सहगल जी, जी करता है कि कमलेश को मैं आपसे उधार मांगकर, ट्रांसफर करवा कर पंजाबी ट्रिब्यून में ले लूं‌! उन्होंने मुझसे पंजाबी में भी लिखवाया भी ! जब उनका निधन हुआ तब मैं हिसार में था और उन्हें याद कर एक कविता लिखी,  जो भास्कर की मधुरिमा में प्रकाशित हुई, जब मैंने दैनिक ट्रिब्यून छोड़ दिया था! कुछ अंशों के साथ आज समाप्त करता हूँ अपनी बात :

:कभी ऐसा भी होता है /कि पता चलता है कि /लिखे नाम और पते वाला आदमी /इस दुनिया से विदा हो गया। /तब डायरी पर देर तक /देखता रह जाता हूं,,,/सब याद आने लगता है /कब, कहां मिले थे /कितने हंसे और कितने रोये थे। /आंखें नम होने लगती हैं,,,/बेशक नहीं जा पाता /उसकी अंतिम विदा बेला में /पर लगता है /जीवन का कुछ छूट गया /भीतर ही

भीतर कुछ टूट गया। /कोई अपना चला गया। /डायरी से नाम काटते वक्त

बहुत अजीब लगता है।

आज बस इतना ही! कल फिर कोशिश‌ रहेगी, कुछ नये  अलग लोगों को याद करने की!

क्रमशः…. 

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #237 – 122 – “हमने इश्क़ जी लिया जी भर कर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “हमने इश्क़ जी लिया जी भर कर…” ।)

? ग़ज़ल # 122 – “हमने इश्क़ जी लिया जी भर कर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ग़म बिलकुल अजीब शय होता है,

ख़ाली दिमाग़ में ये मय होता है। 

*

हमने इश्क़ जी लिया जी भर कर,

बाद उसके सिर्फ़ अभिनय होता है।

*

मीरा के  हाथों में दिया गया जो,

प्याला ज़हर का सुधामय होता है।

*

तुम्हें  मुबारक  ख़ुश्बू  ग़ुलाब की,

जो  खार  मिला प्रेममय होता है।

*

रोता  हुआ आता  है तू  जहाँ में,

जाता  हुआ भी  दुखमय होता है।

*

पहचान ले  मुहब्बत  की तासीर,

वक्त  इश्क़ का मधुमय होता है।

*

धूप छाँव ज़रूरी पहलू आतिश के,

इनसे सबका ही परिचय होता है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 115 ☆ मुक्तक – ।।दिल जीते जाते हैं दिल में उतर जाने से ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 115 ☆

☆ मुक्तक – ।।दिल जीते जाते हैं दिल में उतर जाने से।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

हर पल नया साज  नई   आवाज है जिंदगी।

कभी खुशी कभी  गम बेहिसाब है जिंदगी।।

अपने हाथों अपनी किस्मत का देती है मौका।

हर रंग समेटे नया करने का जवाब है जिंदगी।।

[2]

जीतने हारने की  ये हर   हिसाब रखती है।

यह जिंदगी हर अरमान हर ख्वाब रखती है।।

हार के बाजी पलटने की ताकत जिंदगी में।

जिंदगी बड़ीअनमोल हर ढंग नायाब रखती है।।

[3]

समस्या गर जीवन में तो समाधान भी बना है।

हर कठनाई से पार पाने का निदान भी बना है।।

देकर संघर्ष भी हमें यह है संवारती निखारती।

जीतने को ऊपर ऊंचा  आसमान भी बना है।।

[4]

तेरे मीठे बोल जीत सकते हैं दुनिया जहान को।

अपने कर्म विचार से पहुंच सकते हैं आसमान को।।

अपने स्वाभिमान की  सदा ही रक्षा तुम करना।

मत करो और  नहीं  गले लगायो अपमान को।।

[5]

युद्ध तो जीते जाते हैं ताकत  बम हथियारों से।

पर दिल नहीं जीते जाते कभी भी तलवारों से।।

उतरना पड़ता दिल के अंदर अहसास बन कर।

यही बात  समा जाए    सबके ही किरदारों में।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares