मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ ठराव / आखाडा – चित्र एक काव्ये दोन ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के आणि श्री आशिष बिवलकर ☆

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? ठराव / आखाडा – चित्र एक काव्ये दोन ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के आणि श्री आशिष बिवलकर 

सुश्री नीलांबरी शिर्के

(१) ठराव 

कधी भुंकायचं  !

किती भुंकायचं  !

आताच ठरवून

 लक्षात ठेवायचं  

 नंतर आपापला

 एरिया सांभाळायचं 

 भुंकून भागलं नाही

तर चावे घेत सुटायचं 

 किती सज्जन असो    

समोर लक्ष ठेवायचं

विरोधी आपला नसतो

आपण फक्त भुंकायचं 

 पोटाला तर मिळतंच

 काळजी का करायची

 संधी मिळाली की मात्र

 तुंबडी आपली भरायची

 आपल्या अस्तित्वाची

  भुंकणं ही खूण आहे

  पांगलो तरी जागे राहू

  चौकस नजर हवी आहे

   खाऊ त्याची चाकरी करू

    म्हण जुनी झाली आहे

   रंगानं, अंगानं वेगवेगळे

   तरी काम आपलं एकच आहे

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

मो 8149144177

श्री आशिष बिवलकर

(२) आखाडा

गल्लीबोळातले जमलेत श्वान,

म्हणे एकत्र येऊन सर्व भुंकू |

आज नाही उद्या,

सिंहाशी आपण नक्कीच जिंकू |

*

सिंह फोडेल डरकाळी,

जराही विचलित नाही व्हायचे |

भुंकण्यापलीकडे आपण,

काहीच नाही करायचे |

*

आपले भुंकणे ऐकून,

इतर प्राणीही देतील साथ |

जंगलाच्या राजाला,

मारतील जोरात लाथ |

*

आपण एकत्र भुंकतो आहोत ,

येईल सहानुभूतीची लाट |

शेपटीवाले करतील मतदान,

लावतील सिंहाची वाट |

*

संख्याबळाच्या जीवावर,

आपल्यास मिळेल राजाचे पद |

सहा सहा महिने एकेकाने,

वापरून घ्यायचा सत्तेचा कद |

*

श्वानसभेचे जाणावे तात्पर्य एक,

अंगी कर्तृत्व जरी असले गल्लीचे |

एकत्र येऊन आज सगळे,

मनी बांधत आहेत आखाडे दिल्लीचे |

© श्री आशिष बिवलकर

बदलापूर 

मो 9518942105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 194 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 194 – कथा क्रम (स्वगत)✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

‘मेरा जन्म सफल हुआ

मैं धन्य हुआ

कृतार्थ हुआ कि आपने

मुझे

इस योग्य समझा।

किन्तु

ग्लानि में डूबा

मैं हतमागा

क्या कहूँ

कैसे कहूँ

कि अब

मेरा वैभव क्षीण हो गया है।

अब नहीं रहा मैं

वैसा सम्पत्तिवान्

जैसा पहले था।

श्यामकर्ण अश्व भी नहीं है

मेरी अश्व शाला में

और

उन्हें क्रय करने योग्य

धन भी नहीं है

राजकोष में।

किन्तु

‘याचक को निराश कर

कलंकित नहीं होने दूंगा

अपना कुल गौरव ।

निष्फल नहीं रहेगी

आपकी याचना ।

फलवती होगी इच्छा।

ऐसी वस्तु दूंगा

जिससे होगा।

 क्रमशः आगे —

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 194 – “रूपवती जैसे अखनूर की…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत रूपवती जैसे अखनूर की...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 194 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “रूपवती जैसे अखनूर की...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

कहने को हिलगी है

एक अदद टहनी खजूर की ।

डोरी पर क्लिप लगी सूख रही

कुर्ती ज्यों डायना कुजूर की ॥

 

तपी रेत नीचे, धूप चढ़ी –

आसमान में ।

बदल गई गढ़ी जैसे

चौड़े मकान मे ।

 

मुर्गी की कलगी है

रक्तवर्ण अग्निरेख दूर की ।

या जैसे आरक्ता आँखों से

झाँक रही भावना हुजूर की ॥

 

लम्बग्रीव तना, पीठ –

जैसे घडियाल की ।

छायातक नहीं मिली

जिसकी पड़ताल की ।

 

शापग्रस्त मुलगी है

रूपवती जैसे अखनूर की ।

नजरों से बची रही  कब से वह

भाग्यवश  बेटी मजूर की ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

26 – 11 – 2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।

ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है एक नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है हिंदी – उर्दू के नामचीन वरिष्ठ साहित्यकार  – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक”)

आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆ कहाँ गए वे लोग – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ७ ☆ “स्व गणेश प्रसाद नायक” – लेखक – श्री मनोहर नायक ☆ प्रस्तुति  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “बुंदेली की पाठशाला- डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ९ ☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ११ – “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १२ ☆ डॉ. रामदयाल कोष्टा “श्रीकांत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १३ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकप्रिय नेता – नाट्य शिल्पी सेठ गोविन्द दास ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १४ ☆ “गुंजन” के संस्थापक ओंकार श्रीवास्तव “संत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १५ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

☆ कहाँ गए वे लोग # १६ ☆

औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(09.06.2024 को 53वीं पुण्यतिथि पर विशेष)

इतना जप-तप सभी निरर्थक,

तन्मय एक प्रणाम बहुत है।

तुम तैंतीस कोटि देवों को मानो,

मुझको  मेरा  राम बहुत है।

भगवान राम के प्रति अटूट आस्था और विश्वास की परिचायक इन पंक्तियों के रचयिता  स्वर्गीय श्री भगवती प्रसाद पाठक की 09.06.2024 को 53वीं पुण्यतिथि है। संस्कारधानी के ख्यातिलब्ध साहित्यकार, पत्रकार और शिक्षाविद श्री पाठक को विधाता ने यद्यपि मात्र 51 वर्षों की अल्पायु प्रदान की थी परन्तु इतने संक्षिप्त जीवन काल में ही उन्होंने साहित्य, पत्रकारिता और शिक्षा के क्षेत्र में जो महत्वपूर्ण योगदान किया वह स्तुत्य और वंदनीय है। श्री पाठक को संस्कारधानी के मूर्धन्य कवि स्व श्री केशव प्रसाद पाठक के सानिध्य में साहित्य साधना का सौभाग्य मिला था इसलिए उनकी रचनाओं में भी श्री केशव प्रसाद पाठक की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। श्री केशव प्रसाद पाठक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित अपने एक बहुचर्चित व्याख्यान में  श्री पाठक ने कवि श्रेष्ठ श्री केशव पाठक के लिए ‘मीटर का मास्टर’ विशेषण का प्रयोग करते हुए कहा था कि श्री केशव पाठक की अनेक कविताएं  पूर्ण गीत  (परफेक्ट राइम)  की श्रेणी में रखे जा सकते हैं जिसमें किसी पंक्ति में प्रयुक्त शब्दों का स्थानांतरण कर देने के पश्चात् भी उसकी गति भंग नहीं होती है। स्व. श्री भगवती प्रसाद पाठक का वह  व्याख्यान इतना चर्चित हुआ कि कालान्तर में पड़ाव प्रकाशन, भोपाल ने उसे “केशव पाठक की काव्य कला” शीर्षक से एक पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित किया था।

आज जब मैं अपने इस आलेख में स्व.श्री भगवती प्रसाद पाठक  के अनुपम और आदर्श व्यक्तित्व एवं कृतित्व की अनूठी विशेषताओं की विवेचना कर रहा हूं तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि इस आलेख में सन् साठ के दशक में श्री पाठक द्वारा प्रकाशित और संपादित ‘साप्ताहिक सही बात ‘ का उल्लेख किए बिना मेरा यह आलेख अधूरा ही रहेगा। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि यह समाचार पत्र थोड़े से ही समय में प्रदेश में हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में मील का पत्थर के रूप में विशिष्ट पहचान बनाने में सफल हुआ। अपने आप में संपूर्ण इस समाचारपत्र के हर अंक में श्री पाठक ने पत्र के शीर्षक की मर्यादा का सदैव ध्यान रखा। ‘यथा नाम तथा गुण’ की पहचान ने सही बात समाचारपत्र को अल्प काल में ही प्रदेश भर में चर्चित अखबार बना देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। श्री पाठक ने कालांतर में संस्कारधानी के कुछ और समाचार-पत्रों में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी के रूप में सेवाएं प्रदान कीं।

स्व.श्री पाठक हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी और उर्दू साहित्य के उद्भट विद्वान थे। मराठी और बंगला भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ थी। अपने धाराप्रवाह व्याख्यानों से प्रबुद्ध श्रोतावर्ग को मंत्रमुग्ध कर लेने की अद्भुत क्षमता श्री पाठक के अंदर मौजूद थी। नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की जिन प्रसिद्ध कविताओं का श्री पाठक ने  हिंदी में अनुवाद किया उसे साहित्य जगत में अत्यधिक सराहा गया। गहन अध्येता, चिंतक और विचारक श्री पाठक  संस्कारधानी के प्रतिष्ठित शिक्षाविद थे। उन्होंने  एक अनुशासनप्रिय अध्यापक और प्राचार्य के रूप में छात्रों के चरित्र निर्माण पर विशेष जोर दिया। उनके पढ़ाए हुए छात्र आज भी श्रद्धा पूर्वक उनका स्मरण करते हैं। श्री पाठक द्वारा लिखित संस्कृत भाषा की जिन पाठ्य पुस्तकों ने शिक्षा जगत में विशेष लोकप्रियता हासिल की जिनमें’ देववाणी दीपक’ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। विचारक श्री पाठक ने अनेक साहित्यिक प्रतियोगिताओं में निर्णायक की भूमिका का निर्वाह भी किया। नवोदित रचनाकारों को  अपने लेखन में अधिकाधिक निखार लाने के लिए  उन्होंने हमेशा प्रोत्साहित किया और मार्गदर्शन प्रदान किया। पाठक जी का जीवन संघर्षपूर्ण रहा और हमेशा ही चुनौतियों से जूझने में बीता। लेकिन उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और अपने इन्हीं मूल्यों को पोषित करते रहने की दृढ़ता के कारण उन्हें बड़ी कीमतें भी चुकाना पड़ीं। वे ऐसे निर्मल-व्यक्ति के रूप में जिए, जिनमें किसी से दुश्मनी, कड़वाहट, या बदला लेने की भावना नहीं थी। वे देश-प्रदेश के बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाविदों और राजनेताओं के निरंतर संपर्क में रहे। सभी क्षेत्रों में उन्हें उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त रही।

त्याग, सेवा और समर्पण की त्रिवेणी श्री पाठक के लिए जीवन भर रामचरितमानस की पंक्तियां “परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा नहिं सम अधमाई” आदर्श बनीं रहीं और वे सहृदयता और संवेदनशीलता के पर्याय बने रहे। आधी रात को भी किसी भी जरूरत मंद व्यक्ति की सहायता के लिए रहने वाले श्री पाठक के  द्वार से कभी कोई खाली हाथ नहीं गया। अहंकार और आडंबर से कोसों दूर, सहज सरल व्यक्तित्व के धनी श्री पाठक का अनुकरणीय  जीवन  ‘ नेकी कर दरिया में डाल ‘  कहावत का उत्कृष्ट उदाहरण है। जबलपुर के श्रीजानकी रमण महाविद्यालय के संस्थापक प्राचार्य पं. हरिकृष्ण त्रिपाठी के इस कथन से मैं पूर्णतः सहमत हूं कि ” जो लोग स्वर्गीय पाठक जी के संपर्क में रहे हैं वे इसकी पुष्टि कर सकते हैं कि उनका व्यक्तित्व और जीवन दर्शन जितना बहिरंग में दिखता है उससे अधिक व्यापक कैनवास में चित्रित किए जाने योग्य था।”

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – बारिश की बूंदें…☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘बारिश की बूंदें….’।)

☆ कविता – बारिश की बूंदें…. ☆

आसमां से गिरकर,कहां जाएंगी,

जमीं पर गिरेंगी,भटक जाएंगी,

 रेत के गर्म टीले पर गिरकर,

 भाप बनकर, उड़ जाएंगी,

 फिर बादलों में मिल जाएंगी,

आसमां से गिरकर कहां जाएंगी,

कोई आसमां पर देखता तो होगा,

आशा से उसको तकता तो होगा,

खेतों की सूखी मिट्टी को देखकर,

आशा थमेगी,वहीं पर गिरेंगी,

खेतों की फसलों में लहलहाएंगी,

आसमां से गिरकर कहां जाएंगी,

रातों को कोई बेचैन होकर

चांद के तन्हा सफर में,साथ होकर,

आसमां पर अपनी सूनी आंखें लिए,

जब निहारता होगा टकटकी लगाकर,

आंखों में आंसू बनकर गिर जाएंगी,

आसमां से गिरकर कहां जाएंगी.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 181 ☆ # “स्कैम” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता स्कैम

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 181 ☆

☆ # “स्कैम ” #

आजकल नये नये खेल

नये नये गेम हैं  

नयी नयी तरकीबें हैं

नये नये स्कैम हैं

पैसे कमाने के

नये नये ऐप हैं

जुड़ी हुई है कई हस्तियां

बदल रहे हैं

रोज नये नये शेप हैं

धड्डले से चल रहा है धंदा

दे रहे है मोटा मोटा चंदा

बड़े लोगों का खेल है सारा

परेशान है गरीब बंदा

 

अब तो परिक्षा में भी

फिक्सिंग की जा रही है

मुंहमांगी कीमत लेकर

सीट दी जा रही है

सामान्य व्यक्ति का बच्चा

कैसे इनका सामना करें

कहां से लाये सिफारिश

बड़ी रकम कहां से भरे

सालभर मेहनत करके भी

वो रैंकिंग में पिछड़ गया

सीट नही मिली तो

उसका कॅरियर बिगड़ गया

पैसे और पहुंच का यह खेल

कब-तक चलता रहेगा

गरीब

गरीब व्यक्ति का बंदा

कब तक अमीरों से छलता रहेगा

यह कोचिंग, अकॅडमी  का व्यवसाय

दिन दूना रात चौगुना

फलफूल रहा है

असहाय, निर्धन उमीदवार

काबलियत के बावजूद

अंधकार में झूल रहा है

इस पर कड़ी बंदिशें जरूरी हैं

कानून की गिरफ्त अधूरी हैं

ये स्कैम कब बंद होंगे

कोई बताए ‍

जिम्मेदारों की क्या मजबूरी है ?

*

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 177 ☆ अभंग… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 177 ? 

☆ अभंग… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

स्नेहबंध भाव, अंतरी असावा

बोचरा नसावा, भाव कधी.!!

*

माणूस पणाचा, दाखला देयावा

निर्भेळ करावा, कारभार.!!

*

गर्व सोडूनिया, धर्म आचरावा

अधर्म टाळावा, कटाक्षाणे.!!

*

दुसऱ्यांचे दोष, नचं वर्णवावे

नचं दाखवावे, बोट कधी.!!

*

स्वतःला तयार, करावे तत्पर

अनेक आभार, जोडोनिया.!!

*

उगवता सूर्य, बुडतो विझतो

क्षितिज गिळतो, तप्त गोळा.!!

*

कलीचे वर्तन, समजून घ्यावे

आहे तेच द्यावे, नम्रभावे.!!

*

कवी राज म्हणे, शब्दांचे मनोरे

अभंगाच्या द्वारे, रचियतो.!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 245 ☆ व्यंग्य – ‘खुसखबरी’ की मार ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम व्यंग्य रचना – ”खुसखबरी’ की मार’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 245 ☆

☆ व्यंग्य – ‘खुसखबरी’ की मार

 ‘हलो!’

‘हलो!’

‘जी, गप्पू दादा से बात कराइए।’

‘हम उनकी वाइफ बोल रहे हैं। वे आराम कर रहे हैं। हमें बताइए, क्या काम है? उनें बता देंगे।’

‘जी, उन्हें एक खुशखबरी देनी थी।’

‘कैसी खुसखबरी?’

‘उन्हें बताइएगा कि जुगाड़ूलाल का फोन आया था। कल शाम पाँच बजे हमें मानस भवन में मंत्री जी के हाथों से पच्चीस हजार का पुरस्कार दिया जाएगा। कार्यक्रम में गप्पू दादा पधारें तो हमें बड़ी खुशी होगी।’

‘आपने इनाम के लिए किसी से सिफारिस करायी होगी।’

‘राम राम! कैसी बातें करती हैं, भाभी!  ये हमारी समाज सेवा का इनाम है।’

‘ठीक है। बधाई आपको। लेकिन उन्नें अभी कोई भी खुसखबरी देने से मना किया है।’

‘क्यों भला?’

‘पिछले दो तीन दिन में उनें तीन चार खुसखबरी मिली थीं। उनें सुनके उनकी तबियत खराब हो गयी थी। बोला है कि अभी दो तीन दिन तक उनें कोई खुसखबरी न बतायी जाए।’

‘अरे, यह तो बड़ी गड़बड़ बात है। दोस्तों को खुशखबरी नहीं देंगे तो किसे देंगे?’

‘वो ठीक है, लेकिन ज्यादा खुसखबरी सुनने से उनकी तबियत बिगड़ जाती है। उन्नें कहा है कि उनें हफ्ते में दो तीन खुसखबरी से ज्यादा न बतायी जाएं। इस्से ज्यादा खुसखबरी झेलना उनके बस में नहीं है।’

‘ठीक है, भाभी। आप जब ठीक समझें, उन्हें बताइएगा। उनकी तबियत का ध्यान रखना हमारा फर्ज है। नमस्ते।’

‘नमस्ते।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 244 – दर्शन-प्रदर्शन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 244 दर्शन-प्रदर्शन ?

आज यूँ ही विचार उठा कि समय ने मूल्यों को कितनी गति से और आमूल बदल दिया है। अपवाद तो हर समय होते हैं पर समय के विश्लेषण का मानक तो परम्परा ही होती है। दो घटनाओं के माध्यम से इसे समझने का प्रयास करेंगे।

पहली घटना लगभग चालीस वर्ष पुरानी है।  बड़े भाई महाविद्यालय में पढ़ते थे। उनके एक मित्र उनसे मिलने घर आए। यह साइकिल का जमाना था। गर्मी की छुट्टियों का समय रहा होगा। वे काफी दूर से आए थे, पसीने से लथपथ थे। पानी पीने के बाद माँ से बोले, “चाची शिकंजी बनाना।”  फिर पैंट की जेब में हाथ डाल कर दो नीबू निकाले और कहा, “सोचा, पता नहीं घर में नीबू होगा या नहीं। रास्ते में एक जगह नीबू दिखे तो खरीद लाया।” माँ ने उन्हीं नीबुओं से शिकंजी बनाई।

ये वे दिन थे जब जीवन को सहजता से जिया  जाता था। ‘सादा जीवन उच्च विचार’ का दर्शन  हमारे सामाजिक-जीवन का केंद्र था। समय के साथ केंद्र सरका और दर्शन को प्रदर्शन ने विस्थापित कर दिया। इस विस्थापन का एक अनुभव हुआ लगभग दस वर्ष पहले।

एक व्याख्यान के लिए दिल्ली जाना था। सम्बंधित संस्था ने आने-जाने के लिए हवाई जहाज की यात्रा का किराया देने का प्रावधान किया था। मैंने इकोनॉमी क्लास के टिकट खरीदे। एक  परिचित भी उसी आयोजन में जाने वाले थे। सोचा एक से भले दो। यात्रा में साथ हो जाएगा। उनसे बात की। उन्होंने बताया कि वे एक अन्य प्रीमियम एयरलाइंस की बिजनेस क्लास से यात्रा करेंगे। बात समाप्त हो गई।… मैं दिल्ली पहुँचा। व्याख्यान हुआ। होटल में मैं और मेरे परिचित अड़ोस-पड़ोस के कमरे में ही ठहरे थे। बातचीत के दौरान किसी संदर्भ में उन्होंने आने-जाने के टिकट दिखाए। उनके टिकट भी इकोनॉमी क्लास के ही थे। उन्हें तो अपना असत्य याद नहीं रहा पर सत्य सारी परतें भेदकर बाहर आ गया।

गाड़ी के शीशे पर लिखा होता है, ‘ऑब्जेक्ट्स  इन मिरर आर क्लोजर देन दे एपियर।’ सत्य भी मनुष्य के निकट ही होता है, उसे दिखता भी है पर गाड़ी के शीशे में दिखती वस्तु की भाँति वह उसे दूर मानकर उससे भागने की फिराक में रहता है। नश्वरता को शाश्वत से बड़ा मान लेने की मनुष्य की प्रवृत्ति विचित्र है। ‘लार्जर देन लाइफ’ सामान्यत: अद्वितीय सकारात्मक क्षमता के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके मूल को नष्ट करते हुए हमने प्रदर्शन के लिए इसका प्रयोग करना आरंभ कर दिया है।

वस्तुत: जीवन जितना सादा होगा, जितना सरल होगा, जितना सहज होगा, उतना ही ईमानदार होगा। जीवन को काँच-सा पारदर्शी रखें, भीतर-बाहर एक-सा। भीतर कुछ और, बाहर कुछ और.. इस ओर-छोर का संतुलन बनाये रखने की कोशिश में बीच की नदी सूख जाती है। जीवन प्रवाह के लिए है। अपने आप को सूखने से बचाइए।

प्रकृति का एक घटक है मनुष्य। प्रकृति हरी है, जीवन हरा रहने के लिए है। पर्यावरण दिवस पर इस हरेपन का सबसे बड़ा प्रतिदान मनुष्य, प्रकृति को दे सकता है।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 191 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 191 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 191) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 191 ?

Contentment

सब्र  की  एक  बात

बहुत ही अच्छी होती है…

जब आ जाता है तो किसी चीज़      

की तलब नहीं रह जाती है..!

☆☆

One  Godsend  felicity  of

the  contentment  is  that 

when it comes then there remains

no desire for anything else!

☆ Puzzling Doubt 

जाते जाते ही सही …

ये मलाल रह गया,

क्या उसे भी इश्क था…

ये सवाल रह ही गया ..!

☆☆

One melancholy kept on niggling me

even  while  being  separated,

This puzzling doubt kept tormenting me

if he was also in love with me..!

☆☆☆☆☆

इंतजार की हद भी

अजीब होती हैं,

ना दरवाजा बंद होने देती है

और ना आँखें…!

☆☆

The limit of waiting is

too strange, neither it

Permits shutting of door

nor allows closing of eyes

☆☆☆☆☆

डर लगता है इजहार करने से

इतने क़रीब हो तुम…

कि ज़िंदगी बदल देगा मेरी

तुम्हारा इंकार भी, इकरार भी…

☆☆

I’m too scared to disclose my love

B’coz you’re so intimately close that

It’ll  change  my  life  forever,  whether 

it’s  your  refusal  or  acceptance..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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