ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (24 मार्च से 30 मार्च 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (24 मार्च से 30 मार्च 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम

तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान

भीला लूंटी गोपियां, वही अर्जुन वहां वाण।

हम सभी जानते हैं कि समय अद्भुत रूप से बलवान होता है और आपका समय इस सप्ताह कितना बलवान रहेगा यह बताने के लिए मैं पंडित अनिल पांडे आपके सम्मुख उपस्थित हूं। आज हम आपसे 24 मार्च से 30 मार्च 2025 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में चर्चा करेंगे।

इस पूरे सप्ताह सूर्य, वक्री बुध, वक्री शुक्र और वक्री राहु मीन राशि में गोचर करेंगे। मंगल मिथुन राशि में रहेगा। इसी प्रकार गुरु वृष राशि में भ्रमण करेंगे।

आई अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह भाग्य भाव को मंगल मित्र दृष्टि से देख रहा है अतः भाग्य आपका साथ देगा। इसी मंगल के कारण कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। आपके माता-पिता जी का और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। धीरे-धीरे कर पैसा भी आएगा। कचहरी के कार्यों में आपको अत्यंत सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 24, 25 और 26 के दोपहर तक का समय कार्यों को करने हेतु अनुकूल है 29 और 30 मार्च को आपको सावधान रहना चाहिए इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मंदिर पर जाकर गरीब लोगों के बीच में चावल का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका आपके पिताजी का और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। चौथे भाव पर शनि की दृष्टि होने के कारण माता जी को कुछ परेशानी हो सकती है। एकादश भाव में बैठे सूर्य के कारण इस सप्ताह आपके पास धन आने का योग है। कार्यालय में इस सप्ताह आपकी स्थिति ठीक रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 26 के दोपहर से लेकर 27 और 28 तारीख कार्यों को करने हेतु उत्साहवर्धक है। बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके माताजी पिताजी और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। दशम भाव का सूर्य कार्यालय में आपकी इज्जत को बढ़ाएगा। नवम भाव के मजबूत होने के कारण आपको भाग्य से थोड़ी बहुत मदद मिल सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 29 और 30 मार्च किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल हैं। 24, 25 और 26 के दोपहर तक का समय सावधान रहने का है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मसूर की दाल का दान करें तथा मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर में कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। इस सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका, आपके माता जी और पिताजी का तथा आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह पंचम भाव पर गुरु की दृष्टि के कारण आपको अपने संतान से सहयोग मिल सकता है। नवम भाव के सूर्य के कारण आपको अपने भाग्य से भी मदद मिलेगी। शत्रु क्षेत्र में मंगल के होने के कारण कचहरी के कार्यों में आपको सावधान रहना चाहिए। 24, 25 और 26 की दोपहर तक का समय लाभदायक है। 26 के दोपहर के बाद से 27 और 28 तारीख को आपको सचेत रहकर कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक रहेगी। दुर्घटनाओं से आप बच सकते हैं परंतु उनसे आपको सावधान रहना चाहिए। शत्रु क्षेत्री मंगल के कारण आपको धन लाभ में कमी आएगी। परंतु इसी के कारण आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 26 के दोपहर के बाद से 27 और 28 तारीख कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। सप्तम भाव में चार ग्रहों के होने के कारण जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। इस सप्ताह आपके शत्रु शांत रहेंगे परंतु उनसे आपको सावधान भी रहना चाहिए। भाग्य से सामान्य मदद मिलेगी। आपको ब्लड प्रेशर और डायबिटीज के मामले में सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 29 और 30 मार्च शुभ है। 26 के दोपहर के बाद से तथा 27 और 28 मार्च को आपको सावधान रहकर कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रति दिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके पूरे परिवार का स्वास्थ्य पिछले सप्ताह जैसा ही रहेगा। इस सप्ताह आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना पड़ेगा। भाग्य भाव में कमजोर मंगल के कारण भाग्य के सहारे आपको नहीं रहना चाहिए। अपने शत्रुओं से आपको सतर्क रहना चाहिए। संतान से आपके सहयोग प्राप्त हो सकता है। 24, 25 और 26 के दोपहर तक का समय फल दायक है। 29 और 30 मार्च को आपके कार्यों को सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पंचम भाव में बैठे सूर्य के कारण धन आने की उम्मीद है। संतान भाव में बैठे चार ग्रहों के कारण इस सप्ताह आपको अपने संतान का ध्यान रखना चाहिए। छात्रों की पढ़ाई में थोड़ी बहुत बाधाएं आयेंगी परंतु अगर वे सावधान रहेंगे तो पढ़ाई अच्छी चलेगी। भाई बहनों से संबंध ठीक रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 26 के दोपहर के बाद से 27 और 28 तारीख लाभप्रद है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। इस सप्ताह मंगल अपने शत्रु बुध के घर में बैठा हुआ है जिसके कारण कार्यालय में आपको सावधान रहना चाहिए। धन भाव पर मंगल की दृष्टि होने के कारण इस सप्ताह आपके पास धन आने की उम्मीद की जा सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 29 और 30 तारीख कार्यों को करने हेतु लाभकारी हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका, आपके माता जी और पिताजी का तथा आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य पिछले सप्ताह जैसा ही रहेगा। आपके संतान को पेट की थोड़ी समस्या हो सकती है। छात्रों की पढ़ाई ठीक-ठाक चलेगी। लंबी यात्रा का योग बन सकता है। आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि भाग्य भाव पर वक्री ग्रहों की दृष्टि है। सामान्य धन आने की उम्मीद की जा सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 24, 25 और 26 के दोपहर तक का समय कार्यों को करने हेतु उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का योग है। धान भाव में चार ग्रहों की होने के कारण धन के मामले में आपको सावधान भी रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके संतान को कष्ट हो सकता है। कचहरी के कार्यों में आपको सावधान रहना चाहिए। दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। आपके जीवनसाथी के कमर और गर्दन में दर्द हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 26 के दोपहर के बाद से 27 और 28 तारीख कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। 24, 25 और 26 के दोपहर तक आपको सावधान होकर कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र की तीन माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपको अपने भाग्य से मदद मिल सकती है। अगर आप परिश्रम करेंगे तो आपको अपने कार्यों को करने में आसानी रहेगी। आपके लग्न में तीन बक्री ग्रह बैठे हुए हैं, जिसके कारण आपको स्वास्थ्य की परेशानी हो सकती है। परंतु मेरे विचार से केवल मानसिक परेशानी ही होगी। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। आपकी प्रतिष्ठा में थोड़ी कमी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 29 और 30 मार्च प्रतिष्ठा दायक हैं। 26 के दोपहर के बाद से 27 और 28 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें तथा साथ में रुद्राष्टक का पाठ भी करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ इतिहास के पन्ने पलटते तीन दिन! ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ यात्रा संस्मरण – इतिहास के पन्ने पलटते तीन दिन! ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

जब भी कभी यात्रा का या कहीं घूमने का संयोग बनता है तब तब निर्मल वर्मा मेरे कान में कह रहे होते हैं – यात्रायें न केवल हमें बाहर ले जाती हैं बल्कि अपने मन के कोनों में झांकने का अवसर भी प्रदान करती हैं ! इस बार संयोग बना हिसार प्रेस क्लब के उन्नीस साथियों के साथ आगरा, फतेहपुर सीकरी, वृंदावन व सोहना (हरियाणा) में तीन दिन की यात्रा का ! पहले बैठक हुई, मित्रों की इच्छा जानी गयी और फिर तैयारियां शुरू हो गयीं -वीडियो कोच, आगरा व वृंदावन में कहां  रात्रि के समय ठहराव होगा और  दो महिलायें बिंदू और नव प्रीत भी साथ चलेंगीं तो उनके मान-सम्मान का पूरा ख्याल रखना होगा, आदि आदि । इधर बहुत बरसों से कभी अकेले कहीं यात्रा पर नहीं गया तो नीलम कुछ अनमनी सी थी और कह रही थी कि इस उम्र में तबीयत बिगड़ गयी तो कौन संभालेगा ? और यह उम्र राम राम करने की है तो मैंने भी मज़ाक में कहा कि वृंदावन में राधे राधे ही तो करने जा रहा हूं  ! ऊपर से बेटी रश्मि ने मां को समझाया कि पापा का शौक है यात्राओं का, जा लेने दीजिये ! इस तरह घर से हरी झंडी मिलते ही कुछ तैयारी की मैंने भी और  एक रात पहले ही अटैची तैयार कर लिया । एक कंधे पर लटकाने वाले थैले में रवींद्र कालिया की ‘गालिब छुटी शराब’ की प्रति और अपनी ‘यादों की धरोहर’ की दो प्रतियां भी रख लीं क्योंकि आगरा में सविता शर्मा का पुलिस पर आधारित ‘खाकीवर्दी’ संकलन आया है, जिसमें मेरी रचना भी शामिल है तो फोन पर बात हुई कि होटल में बेटा यह संकलन मुझे देने आ जायेगा तो मैं उसे खाली हाथ नहीं लौटाऊंगा बल्कि अपनी ‘यादों की धरोहर’ संस्मरणात्मक पुस्तक उपहार में दूंगा ! इस तरह मेरी तैयारी चलती रही ।

आखिर हम दूसरी सुबह 20 नवम्बर को  हिसार प्रेस क्लब के कार्यालय में सभी एक एक कर एकत्रित होते गये, सबका सामान पीछे डिक्की में एहतियात से ड्राइवर रखता गया । फिर एक एक कप चाय और बिस्किट लेने के बाद लगभग छस बजे यात्रा शुरू हुई ।  क्लब के अध्यक्ष राज पाराशर भाई ऐसे एक थैला गले में लटकाये हुए थे जैसे बारात चलने पर दूल्हे का पिता पैसों से भरा थैला लटकाये चलता है ! इंतज़ाम में इनका साथ दे रहे थे आकाशवाणी वाले सतबीर और इकबाल सिंह ! अभी कुछ लोगों को रास्ते में पिकअप करना था जैसे हिसार कैंट के पास, हांसी शहर के अंदर और फिर पलवल के पास, इस तरह बढ़ते बढ़ते काफिला बनता गया तब पता चला कि एक सीट कम पड़ रही है तो पलवल से पहले हरियाणवी मूढ़ा खरीद कर अतिरिक्त सीट की व्यवस्था की गयी ! हांसी व नारनौंद से शामिल होने वाले साथी लाल वीर लाली बहुत बढ़िया मिठाई के  तीन डिब्बे लेकर आये‌ और सबका मुंह मीठा करवाया ! सुबह से चले और केएमपी हाईवे पर पहुंचे और पलवल के निकट नाश्ता किया ! फोटोज का दौर भी चल पड़ा । एक वाट्सएप ग्रुप बना दिया आगरा टूर के नाम से कि सब फोटो इसमें पोस्ट करते जाइये ! वैसे मोबाइल ने सचमुच क्रांति ला दी है फोटोग्राफी की दुनिया में ! इधर खींचो, उधर देख लो ! जो पसंद आये वह रख लो, जो पसंद न आये वह डिलीट कर दो ! केएमपी हाइवे काफी व्यस्त हाइवे है जो कुंडली, मानेसर व पलवल कहलाता है और उत्तर प्रदेश के साथ झट मिला देता है ! हम भी इसी हाइवे की कृपा से दो बजे आगरा के लाल किले की पार्किंग में वीडियो कोच लगा चुके थे और हमारी यात्रा का पहला पड़ाव यहीं निर्धारित था । सबसे खुशी की बात जब टिकटें लेने लगे तब पढ़ा एक बोर्ड कि कल यानी 19 नवम्बर से विश्व धरोहर सप्ताह मनाया जा रहा है ! इस तरह हम विश्व की धरोहर देखने का सुअवसर पा गये थे ! लम्बी लम्बी लम्बी कतारें, देसी कम विदेशी ज्यादा ! जैसे जैसे हम लम्बी कतार को पार कर अंदर पहुंच ही गये !

वैसे इससे पहले मैं दो बार विदेश में बसीं नीलम की बहनों कांता व सरोज के साथ आगरा घूम चुका हूं पर वे सन् 1984 व 1986 की बातें हैं और इसी किले की जानकारी देने वाले रतन गाइड की बर्णन की भाषा के लहजे में एक कहानी ‘देश दर्शन’ भी लिखी थी, जो मेरे ‘महक से ऊपर’ कथा संग्रह में शामिल है। निश्चय ही वे विदेशी संबंधी भी याद आये एक बार तो ! लाल पत्थर से बने किले में बादशाह शाहजहां को बेटे औरंगजेब ने कैद कर रखा था और यहीं शाहजहां ने अंतिम सांस लेने से पहले बेटी जेबुनिस्सा को बता दी थी आखिरी इच्छा कि मुझे मुमताज के पास ही सुपुर्दे खाक किया जाये ! शाहजहां अंतिम दिनों वे एक झिल्ली में से ताजमहल को बड़ी हसरत से देखा करते थे, यह रतन गाइड की भाषा थी, जो आज तक याद है और यह अंदाज भी कि बादशाह यहां शतरंज खेला करते थे जबकि खूबसूरत बांदियां हर चाल पर नाचतीं आगे बढ़ती थीं ! हर बार बेगम जीतती थी क्योंकि बादशाह तो उसके मस्त नैनों में खोये रहते थे ! है न गाइड की कमाल की कल्पना ? तब मात्र पांच रुपये में गाइड हो गया था ! अब न तो कोई गाइड दिखा, न ही कोई फोटोग्राफर और न ही कोई छोटी छोटी पुस्तिकायें बेचने वाले दिखे कि किले के बारे में इतिहास जान सकें ! इस तरह मोबाइल ने इनकी रोज़ी छीन ली ।

बस, अपनी ही मस्ती में किले में घूमते रहे, फोटोज खींचते रहे, ग्रुप में शेयर करते रहे, जब थक गये तब पहले से निर्धारित तारा होटल पहुच गये्, जो ताज परिसर के पास ही है, यहां से ताजमहल का पैदल रास्ता है ! विदेशियों की लम्बी लम्बी कतारें दिख रही थीं !

खैर, हम दो दो लोगों ने एक एक कमरे में डेरा जमाया जबकि मेरे साथी बने इकबाल, हम दोनो पंजाब के मूल‌ निवासी, जिनका अब हिसार में बरसों से डेरा है ! कुछ देर थकावट उतारने के बाद तीन चार ऑटो कर मीना बाज़ार देखने गये और वहीं शाम की चाय की चुस्कियां लीं ! लैदर मार्केट देखी । रंग बिरंगे पर्स और खूबसूरत जूते देखे और पंजाबी गाने की पंक्तियां याद आईं-आओ लोको हस्स के, मीना बाज़ार देक्खो नस्स के ! मीना बाज़ार से फिर होटल और रात का खाना ! इसी बीच होटल में सविता मिश्र का बेटा अमित ‘खाकीवर्दी’ लघुकथा संकलन देने आ पहुंचा और मैंने भी ‘यादों की धरोहर’ की प्रति उपहार में दी और बेटे को भी रात्रिभोज में प्यार भरे आग्रह से शामिल कर लिया । फिर उसे समय पर लौटने को कहा क्योंकि रात के साढ़े नौ बज गये थे और उसे अठारह किलोमीटर दूर जाना था । फिर सब थोड़ा थोड़ा टहलने निकले ! ताजमहल परिसर के चलते सड़क बहुत खूबसूरत बनी हुई है, खासतौर खूबसूरत गुलाबी टाइल्स लगी हैं ! सड़क के दोनों ओर खूबसूरत लाइट्स हैं । दिन जैसा लगता है ! बस, वहीं राह में एक प्याली चाय के बाद अपने अपने कमरों में लौटे और दिन भर की थकावट के चलते नींद ने अपनी बाहों में ले लिया ! इस तरह पहले दिन की यात्रा संपन्न हुई ।

दूसरे दिन सुबह नहा धोकर सभी नाश्ते पर इकट्ठे हुए और पूरी सब्ज़ी का लुत्फ उठाया, वैसे हल्का फुल्का पोहा भी था। सबने सामान वीडियो कोच में रखा और पैदल ही  ताजमहल की ओर बढ़ चले। विश्व धरोहर के तीसरे दिन हम सबसे बड़े प्रेम उपहार ताजमहल के अंदर थे ! बड़े बड़े हरे भरे बाग और खिली धूप ने हमारा स्वागत् किया ! सामने ताजमहल के दीदार हो रहे थे, लगातार फोटोज और   हंसी मज़ाक के बीच डेढ़ घंटा कब निकल गया पता ही नहीं चला !

फिर यात्रा शुरू हुई फतेहपुर सीकरी की ओर लेकिन रास्ते भर में कल से पढ़ रहे थे-पेठा और दालमोठ ! बस, एक दुकान पर कोच रोक कर सबने अपने अपने सामर्थ्य भर ये सौगातें खरीदीं परिवारजनों के लिए! यह भी पता चल गया कि दालमोठ, अंगूरी पेठा और लैदर का सामान यहां प्रमुख तोर पर बिकता है । पूरे देश में आगरा का पेठा ऐसे ही मशहूर‌ नहीं है ! कुछ बात तो है इसमें !

फिर पहुंचे फतेहपुर सीकरी, वहां सबने एक गाइड कर लेने पर सहमति जताई और गाइड मिला सौरभ ! एमबीए और टूरिज्म तक पढ़ा लिखा लेकिन गाइड बनना पसंद किया क्योंकि नित नये लोगो़ं से मिलना बहुत अच्छा लगता है सौरभ को ! उसने बताया कि जब अकबर के संतान नहीं हो रही थी तो वे अजमेर शरीफ गये चादर चढ़ाने तो किसी ने बताया कि फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती के पास जाओ और अकबर आगरा से पैदल श्रद्धापूर्वक फतेहपुर सीकरी पहुंचा और शेख सलीम ने अकबर को संतान सुख का आशीर्वाद दिया तो बेटे का नाम भी अकबर ने ‘सलीम’ ही रखा, जो बाद में  बादशाह जहांगीर बना ! अकबर ने फतेहपुर सीकरी को ही राजधानी बना लिया और यहीं शेख सलीम की दरगाह भी बनवाई और जामा मस्जिद भी ! गुजरात की जीत के बाद गुजरात की ओर एक बुलंद दरवाजा बनवाया जिसकी साल के सप्ताह की तरह बावन सीढ़ियां हैं और ऊपर तेरह झरोखे क्योंकि अकबर ने तेरह साल की उम्र में राजकाज बैरम खा़ं की देखरेख में संभाला था और बेगम जोधाबाई का महल भी खूबसूरत है। कितनी फिल्मों की शूटिंग यहां होने की जानकारी दी सौरभ ने, जिनमें जोधा अकबर, परदेस व कुछ धारावाहिक भी शामिल हैं ! जोधाबाई राजपूत संतान थी । बाद में शेख सलीम के कहने पर अकबर ने फिर आगरा को राजधानी बनाया ! मैं कभी इतिहास का छात्र नहीं रहा, मैंने सिर्फ चार भाषाओं में ही ग्रेजुएशन की तो मेरा इतिहास का ज्ञान कम है, फिर भी पत्रकारिता के चलते रूचि बहुत है इतिहास में ।

फतेहपुर सीकरी असल में सिकरवार राजपूतों के कारण सीकरी कहलाता है और यहां पत्थर का काम ज्यादा होता है। हमारा गाइड सौरभ भी राजस्थान से है और राजपूत है पर सीकरी में परिवार बसा हुआ है ।  बुलंद दरवाजे की ऊंचाई पर खड़े होकर दूर सीकरी कस्बा भी दिखता है ! हमने पत्थर की बनी मालायें खरीदीं और फतेहपुर सीकरी की दरगाह में नंगे पांव ही जा सकते हैं क्योंकि यह एक पूजास्थल है और अंदर अनेक कब्रें बनी हुई हैं । यहां से दो घंटे बाद अगली यात्रा पर निकले -वृंदावन की ओर ! रास्ते में लंच का समय नहीं बच रहा था तो केले, अमरूद व आगरा का पेठा खिलाया गया !

 वृंदावन प्रसिद्ध रचनाकार श्रीमती ममता कालिया का मायका है और मैंने फोन कर यह बात उन्हें बताई कि आज आपके मायके जा रहा हू़ं, वे बहुत खिलखिलाते बोलीं कि क्या बात है !

हमारा वृंदावन में रहने का ठिकाना भी पहले से तय था-श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आश्रम, जिसके ट्रस्टियों में से एक हैं हिसार के ही सुभाष डालमिया, जो सन् 2017 तक हिसार की राजगुरु मार्केट में ही बिजनेस करते थे फिर दिल्ली शिफ्ट हुए और वहां से वृंदावन आ गये ! बेटा साहिल जरूर दिल्ली में ही बिजनेस चला रहा है। इनसे सम्पर्क साधा तो उन्होंने सहर्ष व्यवस्था कर देने का विश्वास दिलाया और हम उनके आश्रम में पहुंच गये ! वे हिसार की मिट्टी के प्रेम के चलते हमें तुरंत मिलने आ पहुचे और बढ़िया खाना खिलाने के आदेश भी दिये मैस वालों को, फिर हमें अपनी कार में बांके बिहारी मंदिर के दर्शन करवाने चल‌ दिये, बाकी साथी ऑटो में पहुंच गये और सबको वीआईपी दर्शन करवाने के बाद प्रसाद के साथ साथ गर्मागर्म समोसे भी खिलाये ! बांके बिहारी मंदिर कुंज गलियों की याद दिलाता है और अंदर बहुत भीड़ उमड़ रही है, कोई कतार नहीं, कोई व्यवस्था नहीं । बस, एक दूसरे को धकेलते आगे या पीछे बढ़ते रहो । इसी धक्कमपेल में दर्शन किये बांके बिहारी के ! वैसे मैं चार साल पहले परिवार के साथ वृंदावन आया था, तब तीन दिन रहा था और सब मंदिर देख रखे थे । गोवर्धन परिक्रमा पहले लोग पैदल करते थे लेकिन अब ऑटो पर करते हैं। हमने भी की थी । वह तुलसी वन भी देखा, जहां कृष्ण रास रचाया करते थे और इसे रात में‌‌ कोई नहीं देख सकता, ऐसी मान्यता है। रात को यह बंद रहता है । इस्काॅन मंदिर की खिचड़ी के प्रसाद का दो दिन आनंद‌‌ लेते रहे !

बांके बिहारी मंदिर से फिर वापसी कुछ मित्रों की वही ऑटो पर हुई तो डालमिया हमें अपने साथ कार में घर ले गये !  वहां उनकी धर्मपत्नी ने स्वागत् किया और उन्होंने गौशाला से आये दूध के गिलास भर भर कर पिलाये, मेवे के साथ ! डालमिया ने पड़ोस में प्रसिद्ध भजन गायक स्वर्गीय विनोद अग्रवाल का अंतिम बसेरा भी दिखाया, जो अब उनको ही समर्पित है और अंदर हाल में उनका कटआउट भी लगा है। वहां उनके रिकार्डिड भजन सुनाये जाते हैं, वैसे यहां बाइस कमरे हैं लेकिन मैस की व्यवस्था नहीं है ! इसलिए हमारी रहने की व्यवस्था यहां नहीं की। यह डालमिया ने बताया  ।

इस तरह दूसरे दिन की यात्रा बांके बिहारी मंदिर के दर्शनों के साथ संपन्न हुई । अपने अपने कमरों में कुछ देर विश्राम के बाद मैस में खाना खाया, कुछ टहले और फिर वही सोने चल‌ दिये !

तीसरा दिन लौटने का दिन होने के साथ साथ अरावली की पहाड़ियों का दिन था । जैसे ट्रस्टी सुभाष शाम को मिलने आये थे, वैसे भी विदा करने भी आने वाले थे, उन्होंने वृंदावन के पेड़े बढ़िया जगह से मंगवा दिये पहले ही और हमने पैसे दे दिये । सब आश्रम के मुख्य द्वार पर उनका इंतजार कर रहे थे और वे आ पहुंचे ! हमारे बीच तीन तीन प्रोफैशनल फोटोग्राफर थे-प्रवीण सोनी, प्रेम और बलवान ! तीनों‌‌ ने अलग अलग एंगल से विदाई के फोटोज खींचे, जिसमें श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आश्रम भी आ जाये ! जिस तरह सुभाष डालमिया का मिट्टी से नाता नहीं टूटा, उसी तरह उनका यह प्यार का नाता भी नहीं टूटेगा ! जब जब वतन से चिट्ठी आयेगी, वे ऐसे ही दौड़े चले आयेंगे ! यह आश्रम न्यू वृंदावन में मुख्य हाइवे पर ही स्थित है।

अब वीडियो कोच चली सोहना(मेवात) की ओर, जहां एक शिव मंदिर बताया गया, जिसमें गर्म पानी के दो कु़ड हैं, जो चर्मरोग के लिए बहुत गुणकारी बताये जाते हैं । मंदिर से पहले खूब भीड़भाड़ वाला बाज़ार है, जिसके चलते कोच वहां नहीं जा सकता था। इसलिए कहीं दूर इसको वटवृक्षों की छांव में खड़ी कर हम मंदिर की ओर बढ़ते गये । मंदिर बिल्कुल बाज़ार के अंत में स्थित है । सबने जूता घर में जूते चप्पलें जमा करवाईं और अंदर पहुंचे ! दो कुंड तो थे लेकिन पानी नहीं था । लोग टूटी के पानी से नहा जरूर रहे थे, जो गर्म पानी ही था ! इस तरह हमारे फोटोग्राफर मित्र अपनी कुशलता दिखाते रहे । इसके बाद बाहर ब्रेड पकोड़े की दुकान देखकर सबके मुंह में पानी आ गया तो अध्यक्ष राज पाराशर ने तुरंत गर्मागर्म पकोड़ों का ऑर्डर दे दिया । सबने मज़े से, स्वाद‌ व चटखारे लेकर ब्रेड पकौड़े खाये और फिर पहुंचे कोच में । वहां से रास्ते में दिखीं अरावली की पहाड़ियां पर अब चूंकि निकट आ पहुचे थे तो सब ओर से ‘चलो चलो’ की आवाजें आने लगीं तब कहीं रास्ते में एक सुखदेव नाम का ढाबा दिखा और चाय के लिए रुक गते, यह हमारी यात्रा का अंतिम पड़ाव रहा ।  फिर हांसी में बरवाला और हांसी वाले मित्रों को विदा कर हम सब सायं छह बजे हिसार प्रेस क्लब ऑफिस सुरक्षित और आनंद‌‌‌ में पहुंच गये ! सबके चेहरे दमक रहे थे और जल्द फिर मिलने का वादा कर विदा ली एक दूसरे से ! मैं सबका आभारी हूं कि उम्र और वरिष्ठता के नाते सबने मेरा सम्मान लगातार बनाये रखा! फिर कभी और यात्रा पर मिलेंगे दोस्तो! पर विदा पर हिसार प्रेस क्लब ने एक एक खूबसूरत अटैची गिफ्ट में भेंट किया, यादें समेटते हुए घर लौटे !

दिल ढूंढता है फिर वही

फुरसत के रात दिन !

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क : 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१८ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१८ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

अगली तीन आदतें परस्पर निर्भरता यानी, दूसरों के साथ काम करने के साथ उनसे अंतरसंबंधों से संबंधित हैं।

आदत 4: “परस्पर लाभप्रद समाधान के बारे में सोचें” (Think win-win)

अपने रिश्तों में पारस्परिक रूप से लाभप्रद समाधान या समझौते की तलाश करें। सभी के लिए “लाभ” की तलाश करके लोगों को महत्व देना और उनका सम्मान करना अंततः एक बेहतर दीर्घकालिक समाधान है। पारस्परिक लाभप्रदता, मानवीय संपर्क और सहयोग के लिए एक भावनात्मक मज़बूती देती है। इससे टीम का निर्माण होता है। हनुमान इसी विधि से सेना को तैयार करते हैं।

आदत 5: “पहले समझने की कोशिश करो, फिर समझाने की” (First seek to understand then to be understood)

अधिकांश लोग अपनी बातें दूसरों कों समझाते रहते हैं। जबकि टीम बनाने के लिए दूसरों को भी समझने की ज़रूरत होती है। जिसके बग़ैर समूह की सक्रियता नहीं बन सकती। किसी व्यक्ति को वास्तव में समझने के लिए सहानुभूतिपूर्वक सुनने का उपयोग करें। यह उन्हें प्रतिक्रिया देने और प्रभावित होने के लिए खुले दिमाग से काम करने के लिए मजबूर करता है। लंका उड़ान पूर्व हनुमान प्रतिक्रिया दिए बग़ैर साथियों को सुनते हैं।  इससे परस्पर सौहार्द, देखभाल और सकारात्मक समस्या-समाधान का वातावरण बनता है।

आदत 6: तालमेल बिठाना (Synergy)

समूह में तालमेल बिठाने के तीन आयाम हैं। भावनात्मक बैंक खाता की देखभाल, अन्य व्यक्तियों के साथ भावनात्मक रिश्तों का भरोसा और तार्किक आधार देना। बैंक खाते की तरह रिश्तों में भी भावनात्मक जमा-नामे प्रविष्टियाँ होती हैं। किसी की सराहना जमा और आलोचना नामे प्रिविष्टि होती है। आपसी बातचीत में इनका ध्यान रखा जाना चाहिए ताकि भावनात्मक खातों में अधिविकर्ष ना होने पाये। लेखक का आह्वान है कि सकारात्मक टीम वर्क के माध्यम से लोगों की शक्तियों को संयोजित करें, ताकि उन लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके जिन्हें कोई भी अकेले प्राप्त नहीं कर सकता। हनुमान इसी टेक्नीक का प्रयोग करके वानर सेना को एक टीम के रूप में तैयार करते हैं।

आदत 7: “निरंतर साधना का व्रत” (Sharpen the saw)

एक स्थायी, दीर्घकालिक, प्रभावी जीवनशैली बनाने के लिए किसी को अपने संसाधनों, ऊर्जा और स्वास्थ्य को संतुलित और नवीनीकृत करते रहना चाहिए। वह मुख्य रूप से शारीरिक नवीनीकरण के लिए व्यायाम, प्रार्थना और मानसिक नवीनीकरण के लिए नियमित अध्ययन से प्राप्त किया जाता रह सकता है। आध्यात्मिक नवीनीकरण के लिए समाज की सेवा का भी उल्लेख किया है।

जीवन संग्राम में हमारा स्वास्थ्य एक अस्त्र की तरह प्रयोग में आता है। स्वास्थ्य के चार आयाम हैं- शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक। नियमित व्यायाम से शरीर, अध्ययन से बुद्धि, भावनात्मक बैंक खाता रखरखाव और आध्यात्मिक भक्ति से स्वास्थ्य अस्त्र को हमेशा पैना रखा जा सकता है। तभी आप जीवन संग्राम में खरे उतर सकते हैं। हनुमान जी के संपूर्ण जीवन से यही शिक्षा मिलती है कि उन्होंने कभी भी स्वास्थ्य के नियमों में ढिलाई नहीं बरती।

*

हनुमान जी एक बेहतरीन प्रबंधक भी रहे हैं। वे ना सिर्फ अपने लक्ष्यों को हासिल करना जानते हैं बल्कि मानव संसाधनों का किस तरह प्रयोग करना है, ये बात भी उन्हें अच्छी तरह मालूम है।

हनुमान जी हर काम को योजनाबद्ध (Planning) तरीके और बड़ी आसानी से कर सकते थे। हनुमान जी स्वामी श्री राम के प्रति समर्पण, अनुशासन, दृढ़ संकल्प और वफादारी के लिए जाने जाते थे। मन, कर्म और वाणी पर संतुलन यह हनुमान जी से सीखने वाले गुण हैं। ज्ञान, बुद्धि, विद्या और बल के साथ ही उनमें विनम्रता भी अपार थी। इसके साथ जिस काम को लिया उसका समय पर करना उनकी खासियत थी।

हनुमान जी ज्ञान लेने के लिए सूर्य के पास गए। वो सूर्य को अपना गुरु बनाना चाहते थे। तब सूर्य ने कहा शिक्षा के लिए मुझे रुकना पढ़ेगा जो संभव नहीं है, इससे संसार का चलन बिगड़ जायेगा तुम किसी और को गुरु बना लो। हनुमान जी ने सूर्य को कहा कि आप चलते-चलते ज्ञान दीजिये मैं आपके साथ साथ चलता जाऊंगा और ज्ञान प्राप्त करूँगा। सूर्य इस बात के लिए मान गए इस तरह हनुमान जी ने सूर्य से ज्ञान प्राप्त किया। इस घटना से आप ये बात सीख़ सकते हैं कि जब हमें किसी से कुछ भी सीखना हो या ज्ञान लेना हो तो उसके हिसाब से अपने आप में बदलाव लाएँ।

जब हनुमान जी को लंका जा रहे थे, तब रास्ते में मेनाक पर्वत जो समुद्र के कहने पर ऊपर आया और उसने हनुमान जी से कहा की आप थोड़ा विश्राम कर के चले जाइएगा, हनुमान जी ने मेनाक पर्वत को छुआ और कहा कि मैंने आपकी बात रख ली है परन्तु मुझे जो काम सौंपा गया है वो मेरे विश्राम से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है, मैं विश्राम नहीं कर सकता। इस घटना से हमें ये शिक्षा मिलती है कि  जब भी हमें काम दिया जाये तो काम की समाप्ति तक विश्राम न किया जाए। हमें काम की सामयिक महत्ता को समझना चाहिए। यही सतत सक्रियता (Proactive ness) है।

जब हनुमान जी मेनाक पर्वत से आगे गए तब उनको सुरसा नाम की राक्षसी ने रोक लिया और हनुमान जी को निगलने के लिए आगे आई। हनुमान जी ने उसे समझाया पर वो न मानी। हनुमान जी ने अपना विशाल रूप धारण कर लिया, सुरसा ने भी अपना मुँह बड़ा कर लिया। जैसे ही उसका मुँह बड़ा किया हनुमान जी ने बिना समय गवायें अपना रूप बहुत छोटा कर लिया और उसके मुँह में जाकर वापिस आ गए। हनुमान जी ने सुरसा से कहा “माँ मैंने आपकी बात को रख लिया है अब मुझे जाने दो” इस बुद्धिमानी से सुरसा प्रसन्न हुईं और हनुमान जी को जाने दिया। यहाँ हनुमान का चातुर्य और विनम्रता गुण काम आता है।

इस घटना में हमने ये सीखा कि कई बार हमें समय खराब और लक्ष्य से भटकाने वाले लोग मिलते हैं जिनको हम प्यार से या बुद्धिमानी से अपने रास्ते से हटा सकते हैं और अपना लक्ष्य पा सकते हैं। कई बार हमें लक्ष्य हासिल करने के लिए कभी-कभी झुकना भी पड़ता है

 हनुमान जी लंका में प्रवेश हुए लेकिन लंका बहुत बड़ी थी, हनुमान जी माँ जानकी को ढूंढ़ते थोड़ा निराश हुए और बैठ गए और विचार किया की इतनी दूर मैं निराश और असफल होने के लिए नहीं आया हूँ। उन्होंने प्रभु राम का स्मरण किया और फिर से प्रयास किया और उन जगहों पर गए जहाँ उन्होंने नहीं ढूंढा था। आखिर वो अशोक वाटिका पहुंचे, जहाँ उन्हें माँ सीता मिल गईं।

 कई बार हम नई जगह जाते हैं तो वहां हमें कुछ समझ नहीं आ रहा होता है और बार बार प्रयास करने के बावजूद असफल हो रहे होते हैं, लेकिन अगर अपने आप पर पूर्ण विश्वास करके निरंतर प्रयास करते हैं तो आपको सफलता ज़रुर मिलेगी।

 जैसे-जैसे ताक़त आती है, सफलता मिलती जाती है तो घमंड अपने आप प्रवेश कर लेता है। हनुमान जी के पास अविश्वसनीय और अनंत शक्तियां थीं। हर काम को वो अपनी ताकत के ज़ोर से बड़ी आसानी से कर सकते थे, लेकिन इसके साथ साथ उनमे बुद्धिमानी और विनम्रता भी थी। जिससे वे साथियों/ अनुयायियों के ईर्षा भाजन न होकर उनके प्रिय होते थे।

आभार प्रदर्शन उपरांत महोत्सव का समापन हुआ। रात्रिभोज करके दूसरे दिन सुबह नौ बजे आंजनेय पर्वत भ्रमण हेतु बस में सवार होने के निर्देश सहित

निंद्रामग्न ही गए। खूब थके थे, खूब अच्छी गाढ़ी नींद ने खूब जल्दी दबोच लिया।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 152 ☆ मुक्तक – ॥ बस दुआओं के चिराग दिल में जलाए रखिए॥ ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 152 ☆

☆ मुक्तक – ।। बस दुआओं के चिराग दिल में जलाए रखिए।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

बस दुआयों   के  चिराग जलाए  रखिए।

सब की  राह   में  फूल बिछाए  रखिए।।

एक ही  मिली  है  यह अनमोल जिंदगी।

बस दिलों से   दिलों को मिलाए  रखिए।।

=2=

कभी-कभी किसीकी गलती छुपाए   रखिए।

बिगड़ी बात हो फिर  भी  बनाए   रखिए।।

दिल रखो  अपना आप  एक दरिया जैसा।

जितना हो खुशियों के मोती लुटाए   राखिए।।

=3=

मुश्किलों में भी पाँव  अपने जमाए राखिए।

दुःखों मे भी हौंसला अपना बनाए   रखिए।।

सुख दुख तो जीवन केअंग होते हैं हमेशा ही।

बस हिम्मत से कदम हमेशा बढ़ाए   रखिए।।

=4=

हमेशा प्यार की  लगन को लगाए  रखिए।

रूठों को भी  हमेशा अपना बनाए  रखिए।।

मोहब्बत का लेन- देन  कारोबार हो आपका।

स्नेह प्रेम मूरत हमेशा  दिल में बसाए रखिए।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #217 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – हमारा देश… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – हमारा देश। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 217

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – हमारा देश…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

सागर में पथ दिखलाने को ज्यों ध्रुव तारा है ।

जो भटके राही का केवल एक सहारा है ॥

*

 इस दुनिया के बीच चमकता देश हमारा है।

 हम इसमें जन्मे इससे यह हमको प्यारा है ॥

*

हम सब भारतवासी हैं इसकी प्यारी सन्तान

सबमें स्नेह भावना है हम सब हैं एक समान

*

दुनिया भर में इसकी सबसे शोभा न्यारी है।

पर्वत, नदी, समुद्र, खेत सुन्दर हर क्यारी है ॥

*

 यह ही है वह देश जहाँ जन्मे थे राघव राम ।

प्रेम, त्याग औ’ न्याय, धर्म हित थे जिनके सब काम ॥

*

 यह ही है वह देश जहाँ पर है वृन्दावन धाम ।

 जहाँ बजी थी मुरली औ’ थे रमे जहाँ घनश्याम ॥

*

यह ही है वह देश जहाँ जन्मे थे बुद्ध महान् ।

सारी दुनिया को प्रकाश दे सका कि जिनका ज्ञान ॥

*

 यहीं हुये गाँधी जिनने पाई हिंसा पर जीत ।

जो उनका दुश्मन था वह भी था उनको तो मीत ॥

*

 अनुपम है यह देश प्रकृति ने जिसे दिया सब दान ।

महात्माओं ने ज्ञान और ईश्वर ने भी सन्मान ॥

*

हम इसके सुयोग्य बेटे बन रखे इसकी शान ।

हमें शक्ति वरदान आज इतना दीजे भगवान ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #269 ☆ मन अच्छा हो सकता है… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख मन अच्छा हो सकता है। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 269 ☆

☆ मन अच्छा हो सकता है… ☆

“मन खराब हो, तो शब्द खराब ना बोलें, क्योंकि बाद में मन अच्छा हो सकता है, लेकिन शब्द नहीं।” गुलज़ार के यह शब्द मानव को सोच-समझकर व लफ़्ज़ों के ज़ायके को चख कर बोलने का संदेश देते हैं, क्योंकि ज़ुबान से उच्चरित शब्द कमान से निकले तीर की भांति होते हैं, जो कभी लौट नहीं सकते। शब्दों के बाण उससे भी अधिक घातक होते हैं, जो नासूर बन आजीवन रिसते रहते हैं।

मानव को परीक्षा संसार की, प्रतीक्षा परमात्मा की तथा समीक्षा व्यक्ति की करनी चाहिए। परंतु हम इसके विपरीत परीक्षा परमात्मा की, प्रतीक्षा सुख-सुविधाओं की और समीक्षा दूसरों की करते हैं, जो घातक है। ऐसे लोग अक्सर परनिंदा में रस लेते हैं अर्थात् अकारण दूसरों की आलोचना करते हैं। हम अनजाने में कदम-कदम पर प्रभु की परीक्षा लेते हैं, सुख-ऐश्वर्य की प्रतीक्षा करते हैं, जो कारग़र नहीं है। ऐसा व्यक्ति ना तो आत्मावलोकन कर सकता है, ना ही चिंतन-मनन, क्योंकि वह तो ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ व सर्वोत्तम स्वीकारता है और दूसरे लोग उसे अवगुणों की खान भासते हैं।

आदमी साधनों से नहीं, साधना से महान् बनता है; भवनों से नहीं, भावना से महान बनता है; उच्चारण से नहीं, उच्च आचरण से महान् बनता है।  मानव धन, सुख-सुविधाओं, ऊंची-ऊंची इमारतों व बड़ी-बड़ी बातों के बखान से महान् नहीं बनता, बल्कि साधना, सद्भावना व अच्छे आचार- विचार, व्यवहार, आचरण व सत्कर्मों से महान् बनता है तथा विश्व में उसका यशोगान होता है। उसके जीवन में सदैव उजाला रहता है, कभी अंधेरा नहीं होता है।

जिनका ज़मीर ज़िंदा होता है, जीवन में सिद्धांत व जीवन-मूल्य होते हैं, देश-विदेश में श्रद्धेय व पूजनीय होते हैं। वे समन्वय व सामंजस्यता के पक्षधर होते हैं , जो समरसता के कारक हैं। वे सुख-दु:ख में सम रहते हैं और राग-द्वेष व ईर्ष्या-द्वेष से उनका संबंध-सरोकार नहीं होता। वे संस्कार व संस्कृति में विश्वास रखते हैं, क्योंकि संसार में नज़र का इलाज तो है, नजरिए का नहीं और नज़र से नज़रिये का,  स्पर्श से नीयत का, भाषा से भाव का, बहस से ज्ञान का और व्यवहार से संस्कार का पता चल जाता है।

‘ब्रह्म सत्यम्, जगत् मिथ्या’ ब्रह्म अर्थात् सृष्टि-नियंता के सिवाय यह संसार मिथ्या है, मायाजाल है। इसलिए मानव को अपना समय उसके नाम-स्मरण व ध्यान में व्यतीत करना चाहिए। “ख़ुद से कभी-कभी मुलाकात भी ज़रूरी है/ ज़िंदगी उधार की है, जीना मजबूरी है” स्वरचित उक्त पंक्तियाँ आत्मावलोकन व आत्म-संवाद की ओर इंगित करती हैं। इसके साथ मानव को कुछ नेकियाँ व अच्छाइयाँ ऐसी भी करनी चाहिएं, जिनका ईश्वर के सिवा कोई ग़वाह ना हो अर्थात् ख़ुद में ख़ुद को तलाशना बहुत कारग़र है। प्रशंसा में छुपा झूठ, आलोचना में छुपा सच जो जान जाता है, उसे अच्छे-बुरे की पहचान हो जाती है। वह व्यर्थ की बातों से ऊपर उठ जाता है, क्योंकि हर इंसान को अपने हिस्से का दीपक ख़ुद जलाना पड़ता है, तभी उसका जीवन रोशन हो सकता है। दूसरों को वृथा कोसने कोई लाभ नहीं होता।

अहंकार व गलतफ़हमी मनुष्य को अपनों से अलग कर देती है। गलतफ़हमी सच सुनने नहीं देती और अहंकार सच देखने नहीं देता। इसलिए वह संकीर्ण मानसिकता से ऊपर नहीं उठ सकता और ऊलज़लूल बातों में फँसा रहता है। अभिमान की ताकत फ़रिश्तों को भी शैतान बना देती है और नम्रता साधारण व्यक्ति को भी फरिश्ता। इसलिए हमें जीवन में सदैव विवाद से बचना चाहिए और संवाद की महत्ता को स्वीकारना चाहिए। पारस्परिक संवाद व गुफ़्तगू हमारे व्यक्तित्व की पहचान हैं। जीवन में क्या करना है, हमें रामायण सिखाती है, क्या नहीं करना है महाभारत और जीवन कैसे जीना है– यह संदेश गीता देती है। सो! हमें रामायण व गीता का अनुसरण करना चाहिए और महाभारत से सीख लेनी चाहिए कि जीवन में क्या अपनाना श्रेयस्कर नहीं है अर्थात् हानिकारक है।

शब्द, विचार व भाव धनी होते हैं और  इनका प्रभाव चिरस्थाई होता है, लंबे समय तक चलता रहता है। इसके लिए आवश्यकता है सकारात्मक सोच की, क्योंकि हमारी सोच से हमारा तन-मन प्रभावित होता है। ‘जैसा अन्न, वैसा मन” से तात्पर्य हमारे खानपान से नहीं है, चिंतन-मनन व सोच से है। यदि हमारा हृदय शांत होगा, तो उसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार ये पांच विकार नहीं होंगे और हमारी वाणी मधुर होगी। इसलिए मानव को वाणी के महत्व को स्वीकारना चाहिए तथा शब्दों के लहज़े / ज़ायके को समझ कर इसका प्रयोग करना चाहिए। मधुर वाणी दूसरों के दु:ख, पीड़ा व चिंताओं को दूर करने में समर्थ होती है और उससे बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान हो जाता है।

क्रोध माचिस की भांति होता है, जो पहले हमें हानि पहुँचाता है, फिर दूसरे की शांति को भंग करता है। लोभ आकांक्षाओं व तमन्नाओं का द्योतक है, जो सुरसा के मुख की भांति निरंतर बढ़ती जाती है। मोह सभी व्याधियों का मूल है, जनक है, जो विनाश का कारण सिद्ध होता है। काम-वासना मानव को अंधा बना देती है और उसकी सोचने-समझने की शक्ति नष्ट कर देती है। अहंकार अपने अस्तित्व के सम्मुख सबको हेय समझता है, उनका तिरस्कार करता है। सो! हमें इन पाँच विकारों से दूर रहना चाहिए। हमारा मन, हमारी सोच किसी के प्रति बदल सकती है, परंतु उच्चरित कभी शब्द लौट नहीं सकते। सकारात्मक सोच के शब्द बिहारी के सतसैया के दोहों की भांति प्रभावोत्पादक होते हैं तथा जीवन में अप्रत्याशित परिवर्तन लाने का सामर्थ्य रखते हैं। इसलिए मानव को जीवन में सुई बनकर रहने की सीख दी गई है; कैंची बनने की नहीं, क्योंकि सुई जोड़ने का काम करती है और कैंची तोड़ने व अलग-थलग करने का काम करती है। मौन सर्वश्रेष्ठ है, नवनिधियों व गुणों की खान है। जो व्यक्ति मौन रहता है, उसका मान-सम्मान होता है। लोग उसके भावों व अमूल्य विचारों को सुनने को लालायित रहते हैं, क्योंकि वह सदैव सार्थक व प्रभावोत्पादक शब्दों का प्रयोग करता है, जो जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सक्षम होते हैं। ऐसे लोगों की संगति से मानव का सर्वांगीण विकास होता है। सो! गुलज़ार की यह सोच अत्यंत प्रेरक व अनुकरणीय है कि मानव को क्रोध व आवेश में भी सोच-समझ कर व शब्दों को तोल कर प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि मन:स्थिति कभी एक-सी नहीं रहती; परिवर्तित होती रहती है और शब्दों के ज़ख्म नासूर बन आजीवन रिसते रहती हैं।

●●●●

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #42 – गीत – अमराइयों के गाँव… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतअमराइयों के गाँव

? रचना संसार # 42 – गीत – अमराइयों के गाँव…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

 गीत

 प्राण से प्यारे हमें सच्चाइयों के गाँव।

गंग से पावन सुनो अच्छाइयों के गाँव।।

 

प्रेम अरु करुणा भरी सदभाव की है तान,

मील के पत्थर बने हैं देख इसकी शान।

खोट वादों में नहीं छल छंद से हैं दूर,

नित नयी सौगात मिलती प्रेम से भरपूर।।

भोर की उतरी किरण अँगनाइयों के गाँव,

 *

मीत चहके कोकिला मधुकर करे गुंजार।

खिल रहा कचनार है फागुन करे मनुहार।।

फूलती सरसों यहाँ धरती करे शृंगार।

झूमता महुआ बड़ा मादक हुआ संसार।।

अब महकते देखिए अमराइयों के गाँव।

 *

प्रीति की गागर लिए वह रूपसी गुलनार।

लाज – बंधन में बँधी भूले नहीं संस्कार।।

सभ्यता जीवित अभी होता सदा आभास।

हैं शिवाला भी यहाँ पर और है विश्वास।।

आस की गठरी लदी पुरवाइयों के गाँव।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #269 ☆ गीत – यही जज्बात दिल में हैं… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपका एक भावप्रवण गीत यही जज्बात दिल में हैं…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 269 – साहित्य निकुंज ☆

☆ गीत – यही जज्बात दिल में हैं… ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

मुझे मजबूर करते हो

मगर तुम सुन नहीं सकते।

मेरे नैनों की भाषा को ,

कभी तुम पढ़ नहीं सकते।

*

यही जज्बात दिल में हैं,

जिसे समझा नहीं तुमने।

तुम्हारी राह तकती हूँ,

मगर तुम आ नहीं सकते।

*

मुझे अब दर्द सहना है,

जिसे तुम छू नहीं सकते।

मेरी गलियों से गुजरे हो,

मगर तुम रुक नहीं सकते।।

*

मुझे मिलना है तुमसे अब,

कभी क्या मिल नहीं सकते।

ख्वाबों में ही मिलते हो,

जिन्हे हम पा नहीं सकते।।

*

मिलन के रंग लाया हूँ ।

मगर तुम छू नहीं सकते।

तेरी बातों में जादू है

मुझे बहला नहीं सकते।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #251 ☆ एक बाल गीत – हमें गधा कहते हैं सारे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपका – एक बाल गीत – हमें गधा कहते हैं सारे आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 251 ☆

☆ एक बाल गीत – हमें गधा कहते हैं सारे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

हमें  गधा  कहते   हैं   सारे

हम  हैं  लम्बी   मूंछों   बारे

सहज सरल स्वभाव हमारा

हम  पर  बोझा  डालें  सारे

*

गधा हमें  धोबी का  समझें

कान  हमारे  जबरन  उमठें

ढेंचू  ढेंचू कह कर  फिर भी

लाद  पीठ  पर  चलते प्यारे

हमें   गधा   कहते   हैं  सारे

*

रखता  सबसे  वो   है  यारी

पर अफसोस गधा को भारी

एक अरज करता  है  सबसे

कहिए गधा मुझे  मत  प्यारे

हमें   गधा   कहते   हैं  सारे

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य # 244 – गझल – आकाश भावनांचे…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 244 – विजय साहित्य ?

☆ गझल – आकाश भावनांचे…! ☆

आकाश भावनांचे गझले तुझ्याचसाठी,

हे विश्व आठवांचे मतले तुझ्याचसाठी…! 

  *         

आकाश बोलणारे जमले तुझ्याचसाठी,

हे पंख, ही भरारी, इमले तुझ्याचसाठी…!

 *   

माणूस वाचताना, टाळून पान गेलो.

काळीज आसवांचे, तरले तुझ्याचसाठी..!

*

सारे ऋतू शराबी, देऊन झींग गेले

प्याले पुन्हा नव्याने, भरले तुझ्याचसाठी..! 

*

हा नाद वंचनांचा , झाला मनी प्रवाही

वाहतो कुठे कसा मी?, रमलो तुझ्याच साठी..!       

*

जखमा नी वेदनांची,आभूषणे मिळाली

लेऊन  साज सारा, नटलो तुझ्याचसाठी..!

*

काव्यात प्राण माझा, शब्दांत अर्थ काही

प्रेमात प्रेम गात्री, वसले तुझ्याचसाठी..!

*

आयुष्य सांधताना,जाग्या  अनेक घटना

हे देह भान माझे हरले तुझ्याचसाठी…!

*

कविराज रंगवीतो, रंगातल्या क्षणांना

चित्रात भाव माझे, उरले तुझ्याचसाठी..!

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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