हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 178 – गीत – मैं तुमसे नाराज नहीं…. ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका एक अप्रतिम गीत – मैं तुमसे नाराज नहीं।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 178 – गीत  – मैं तुमसे नाराज नहीं…  ✍

सच कहता हूँ बोलूँगा,

मैं तुमसे नाराज नहीं।

खामोशी का शाल ओढ़कर, तुम बैठी हो कोने में

बाँच रही हो सुधि की पाती, कितना पाया खोने में।

बिखरे बिखरे केश तुम्हारे मुख पर ऐसे झूम रहे

जैसे चंदा के दरवाजे, आवारा घन घूम रहे।

और तुम्हारी सौंधी अँगुली कुछ लिखती है धूल में।

शब्द होंठ में ऐसे बन्दी जैसे भँवरा फूल में।

बिछल गया माथे से आँचल किस दुनिया में खोई हो

लगता है तुम आज रातभर चुपके चुपके रोई हो।

रोना तो है सिर्फ शिकायत, इसकी उम्रदराज नहीं

टूट टूट कर जो न बजा हो, ऐसा कोई साज नहीं।

ओ पगली, नाराज कहीं करता है कोई अपनों को

दुनिया कितना चाहा करती सुबह सुबह के सपनों को

 *

जो शब्दों में प्रकट हुआ वह पाप भले हो प्यार नहीं

मेरा प्यार पाप बन जाये, यह मुझको स्वीकार नहीं।

शबनम की शहजादी का भी प्यार नहीं सरनाम हुआ

जिस बादल ने आँसू गाये, सिर्फ वही घनश्याम हुआ।

तुझे चाहता हूँ मैं कितना, पूछ न अब मेरे मन से

कोई कितनी प्रीति करेगा, खुद ही अपने जीवन से।

मेरे मन के शीश महल सा वह यमुना का ताज नहीं

शाहजहाँ से मैं ज्यादा हूँ, तू बढ़कर मुमताज कहीं।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 178 – “सिकुड़ते सब्यसाचियों के…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  सिकुड़ते सब्यसाचियों के...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 178 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “सिकुड़ते सब्यसाचियों के...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

ऐसे कोहरे में ठिठुरन से

सूरज भी हारा

दिन के चढ़ते चढ़ते कैसे

लुढ़क गया पारा

 

जमें दिखे गाण्डीव

सिकुड़ते सब्यसाचियों के

धुंध लपेटे शाल, उलहने

सहें चाचियों के

 

चौराहे जलते अलाव भी

लगते बुझे बुझे

और घरों की खपरैलें

तक लगीं सर्वहारा

 

हाथ सेंकने जुटीं

गाँव की वंकिम प्रतिभायें

जो विमर्श में जुटीं

लिये गम्भीर समस्यायें

 

वृद्धायें लेकर बरोसियाँ

दरवाजे बैठीं

शांति पाठ के बाद पढ़

रहीं ज्यों कि कनकधारा

 

लोग रजाई कम्बल

चेहरे तक लपेट निकले

लगें फूस से ढके फूल के

हों सुन्दर गमले

 

आसमान से नीचे तक

है सुरमई अँधियारा

धुँधला सूरज दिखता

नभ में लगे एक तारा

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

06-02-2024 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆ कहाँ गए वे लोग – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। ई -अभिव्यक्ति में आज से प्रत्येक सोमवार आप आत्मसात कर सकेंगे एक नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है  महाकोशल क्षेत्र के एक लोकप्रिय सौम्य, गरिमामय व्यक्तित्व के धनी, प्रखर कवि, लेखक, पत्रकार, संपादक व  जनेता – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी”)

☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆

पंडित भवानी प्रसाद तिवारी☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(सौम्य, गरिमामय व्यक्तित्व के धनी, प्रखर कवि लेखक व संपादक)

कवि, पत्रकार और राजनेता के रूप में समान लोकप्रियता के धनी पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जनसभाओं में प्रतिष्ठित राजनेताओं और साहित्यकारों के बीच में से श्रोताओं की सहज श्रद्धा और लोकप्रियता के एक मात्र पात्र बनने की सामर्थ्य रखते थे। सात बार जबलपुर नगर निगम के महापौर चुने गए थे, लम्बे समय राज्यसभा सांसद रहे। वे ‘प्रहरी’ पत्रिका के ऐसे सफल सम्पादक थे जिन्होंने देश को समर्थ और लोकप्रिय हरिशंकर परसाई जैसा व्यंग्यकार दिया, परसाई जी की पहली रचना और पहला कालम ‘नर्मदा के तट से’ प्रहरी से ही प्रारंभ हुआ। कवि के रूप में आदरणीय तिवारी जी जन जन के बीच लोकप्रिय थे। राजनीति और साहित्य के पारस्परिक संबंधों के बारे में उनका कहना था…

“जब राजनीति पथभ्रष्ट होती है तब साहित्य विद्रोही हो जाता है”

1942 के जन आंदोलन के समय पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी जबलपुर नगर कांग्रेस के अध्यक्ष थे, और पूरे देश में यह अकेला शहर था जहां सेना के जवान अपनी बैरकों से बाहर आ गए थे,यह तिवारी जी के समर्थ नेतृत्व का ही परिणाम था कि 1942 में जबलपुर का अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन समूचे महाकौशल में जन जाग्रति का वाहक बनकर फैला। सन् 1942 में गिरफ्तार हो उन्हें जेल यात्रा करनी पड़ी,जेल में भी उनका समय व्यर्थ नहीं गया  यहीं उन्होंने रवीन्द्र नाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ का अध्ययन मनन किया और गीतांजलि का अनु -गायन जैसा उनके द्वारा संभव हुआ।आज भी हिन्दी में प्रकाशित कोई भी अनुवाद उसके समक्ष बेसुरा प्रतीत होता है, गीतांजलि अनु गायन के प्रकाशित होते ही उनकी यश-कीर्ति नगर और राज्य की सीमा लांघकर सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में फैली…

‘दिखते हैं प्रभु कहीं,

यहाँ नहीं यहाँ नहीं,

फिर कहाँ? अरे वहाँ,

जहां कि वह किसान दीन,

वसनहीन तन मलीन,

जोतता कड़ी जमीन,

प्रभु वहीं कि जहां पर

वह मजूर करता है

चोटों से पत्थर को चूर’

प्राण पूजा’ और ‘प्राण धारा’ उनके मूल कविता संग्रह प्रकाशित हुए थे,’तुम कहां चले गए’ शोक कविताओं का लघु संग्रह है, ‘जब यादें उभर आतीं हैं’ उनके संस्मरणात्मक वैयक्तिक निबंधों का संग्रह है, ‘गांधी जी की कहानी’ गांधी के महान व्यक्तित्व को सरल भाषा में किशोरोपयोगी बनाने का प्रयास था। कथा वार्ता उनकी कथात्मक एवं समीक्षात्मक रचनाओं का संग्रह है। श्री तिवारी जी की ‘प्रहरी’ पत्रिका में प्रकाशित ‘हाथों के मुख से’ और ‘संजय के पत्र’ , ‘हमारी तुमसे और तुम्हारी हमसे’ जैसे स्तंभों में छपी सेंकड़ों पृष्ठों की सामग्री हिंदी साहित्य के क्षेत्र में रचनात्मक योगदान के रूप में याद रखी जाएगी।

एक पूरी की पूरी साहित्यिक पीढ़ी जिसमें सर्वश्री केशव पाठक, रामानुज लाल श्रीवास्तव, सुभद्रा कुमारी चौहान, नर्मदा प्रसाद खरे, हरिशंकर परसाई, रामेश्वर गुरू, जैसे महान साहित्यकार उनकी प्रहरी पत्रिका में प्रकाशित हुए। राजनेता और पत्रकार से भिन्न उनका साहित्यिक व्यक्तित्व सर्वोपरि था जो उनके इन दोनों रूपों को सहज ही आच्छादित किए रहता था, और मंच से बोलते हुए तिवारी जी के भाषण और भंगिमा में इस व्यक्तित्व का इतना अधिक प्रभाव रहता था कि उनके साहित्यिक श्रोताओं को तिवारी जी की काव्य पंक्तियां याद आने लगतीं थीं। लोग बताते हैं कि होली जैसे जन पर्व के अवसर पर या शरद पूर्णिमा के कवि सम्मेलन में उनकी मधुर संवेदनशील वाणी सहज ही गूंज जाती थी….

‘फूल ने पांवड़े बिछाए हैं,

      कौन ये मेहमान आये हैं ‘

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 166 ☆ # सपने # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# सपने #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 166 ☆

☆ # सपने #

एक मज़दूर

छेनी हथौड़े से

तोड़ता रहता है पत्थर

उसकी पत्नी पास बैठी है

टूटी गिट्टी को

रखती है समेटकर

उसका बच्चा

साड़ी के झूले में

टंगा रहता है

पेड़ की डाल पर

वह स्त्री

दोनों को देखतीं हैं

कभी पति तो

कभी बच्चा

कहीं बैठ ना जाए उठकर

दोनों युगल लगें है

रोज की तरह

अपने काम में दिनभर

इस रोज़ी से, कमाई से

घर में चूल्हा जलता है

उन सबका पेट पलता है

दोपहर में

दोनों पति-पत्नी थककर

जब सुस्ताते है

तब भविष्य के बारे मे

सोचते जातें हैं

यह अपार्टमेंट बनते ही

हमें कहीं दूर जाना है

हमारा कहां स्थाई ठिकाना है

पत्नी बोली – सुनो जी!

हमारा बेटा

कब स्कूल जायेगा?

वह कैसे पढ़ पायेगा?

या सारा जीवन

हमारे जैसा ही

पत्थर तोड़ते ही बितायेगा ?

 

वह मजदूर

कुछ सोचते हुए

गमछे से

पसीना पोंछते हुए

बोला –

नहीं -?

मैं अपने बेटे को पढ़ाऊंगा

उसे इंजीनियर बनाऊंगा

वो भी ऐसी कालोनीज

अपार्टमेंट बनायेगा

अपना नाम कमायेगा

वह उठकर

जोर जोर से

पत्थर तोड़ने लगा

मन ही मन

कुछ जोड़ने लगा

उसकी आंखों में

अनगिनत सपने है

स्पष्ट हो या अस्पष्ट

पर उसके अपने है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सामर्थ्य… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता ‘सामर्थ्य…’।)

☆ कविता – सामर्थ्य… ☆

बादल का एक टुकड़ा, बरसने के बाद,

लौटते हुए, मेरे आंगन के ऊपर रुक गया,

आंगन की मिट्टी को देखने लगा,

जो बारिश की उम्मीद लगाए बैठी थी,,

कि पानी की बूंदों से उसकी

जलन मिटेगी,

तप्त होकर सौंधी सौंधी महक से, वह भी महक जाएगी,

 पर निराश भाव से वह तकती रही, बादल को,

क्या कहती,, बादल भी तो पुरुष था,

क्या जाने वो स्त्री की व्यथा,,

जलती देह की अगन की तपन,

तभी नम हवा ने आकर मिट्टी को सहलाया,

पुचकारा और कहा,और कहा,

निष्ठुर है ये,व्यथा न जानेगा,

मै बूंदों से कहूंगी,वो तुम्हारी तपन को जानेगी,

और तुमसे मिलकर सृजन करेंगी,उस बीज का, जो मै अपने साथ लाऊंगी,,

वो पेड़ बनेगा,

और फिर बाद ल उस पर बरसेगा, क्योंकि,

वह पेड़ भी पुरुष है,, वही समझेगा,,उसी को,,,

मिट्टी अपनी व्यथा,मजबूरी, परिस्थिति को जान गई,,

हवा से कहा, हां तुम बीज लाओ,

मै सृजन करूंगी, अपनी कोख से,

उस पेड़ का, जो सबको फल दे छाया दे,

और जो जवाब दे बादल के टुकड़े को,

कोई भी कार्य,परोपकार भाव से करो,

वृष्टि भी सम भाव से करो,,

हवा के सहारे न उड़ना पड़े,

इतना सामर्थ्य पैदा करो… 

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 162 ☆ हे शब्द अंतरीचे… तू आणि मी… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 162 ? 

☆ हे शब्द अंतरीचे… तू आणि मी… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆/

अनोळखी तू,अनोळखी मी

असेच एकदा कुठे भेटलो

तुला पाहिले सखे अन्

मला मी तिथेच विसरलो

 

का आलीस समोर माझ्या

का नेत्र शर संधान केले

अबोल माझ्या बोलास

तू बोलते केले…

 

मी होतो एकटा जेव्हा

मस्त होते जीवन हे

तुझ्या येण्याने बदल होता

अडखळती पाय माझे…

 

मोगरा फुलला जैसा

तुझी कांती तैसी

चाफ्याच्या सुवास यावा

तुझी अंगकांती बहरली…

 

डोळ्यांत चमक तुझ्या

जादूगार जशी तू

ओठ जसे प्रिये

डाळिंब फुटले…

 

केस मोकळे रेशमी

गालावर बट रुळते

पाहून हे दृश्य सजने

माझी बोबडी वळते

 

पुन्हा तुला पाहावे वाटते

वेड लावले मला तू

अजूनही उभा तिथेच मी

जिथे भेटली होतीस तू…

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – बोलकी मुखपृष्ठे ☆ “सांजधून” ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल ☆

सुश्री वर्षा बालगोपाल

? बोलकी मुखपृष्ठे ?

☆ “सांजधून” ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल 

सूर्य अस्ताला चालला आहे. सर्वत्र केशरी संधीप्रकाश पसरला आहे. तेच प्रतिबिंब जलात असून जलकाठावर असलेल्या एका झाडावरून एक पक्षी ओरडत आहे. असे एक साधारण संध्याकाळचे चित्र.

त्यावरील शिर्षक सांजधून हे तो पक्षी ओरडत नसून एक धून गात आहे असे सुचवते.

मन सांजेप्रमाणे विभोर होते आणि मनात संध्या समयीची हुरहूर जाणवते.

साधारण संध्याकाळ झाली की देवघरात दिवा लावतात. तसाच सृष्टीच्या घरातील क्षितिजावरील देवघरात हा संध्यादीप कोणी लावला आहे असा विचार मनात येतो.

संध्याकाळ जाऊन आता अंधार पडणार आहे ती कातरता नकळत मनाला जाणवते. तशीच ती ढगांच्या कडेवरही जाणवते.

मग उगचच तो पक्षी चकोर पक्षी आहे आणि आता आकाशात चंद्र उगवेल म्हणून ते चांदणे प्यायला सज्ज होऊन चोच उघडून बसला आहे असे वाटते.

सूर्यबिंब हे अस्ताला गेले तरी चराचर जागृत राहणार आहे हे झाडाच्या आणि पक्षाच्या छबीतून समजते.

एका दिवसाची कहाणी संपत असली तरी मनात उद्याची आशा देणारी छान स्वप्नांची रजनी प्रदान करणारी अशी संध्याकाळ वाटते.

भगवेपणामुळे सन्यस्त योग्या प्रमाणे वाटणारा सूर्य मनाला धीरगंभीरताही प्रदान करतो.

असे संध्याकाळचे अनेक अर्थ सांगणारे हे चित्र आहे.

पण सरळ सरळ असे वाटणारे चित्र जरा वेगळ्या दृष्टीने पाहिले तर हे एक सांकेतिक अर्थ सांगणारे चित्र वाटते. सगळ्यांनाच हे माहित आहे की शिवाजी महाराजांनी सोन्याच्या नांगराने भूमी नांगरली होती. मग त्या सोन्याच्या स्पर्शाने सगळी भूमी सोन्याची झाल्यासारखी वाटून त्या भूमीवर येणाऱ्या झाडांना सोन्याची फळे येतील ही ग्वाही तो पक्षीही सकलांना देत आहे.

म्हणूनच की काय पण शिवाजी महाराजांनी फडकवलेली ही भगवी पताका रोज आपण विसरलो तरी निसर्ग विसरत नाही आणि नेमाने ही पताका फडकवतो असे वाटते.

गुढार्थ बघितला तर कोणी सन्यस्त योगी सूर्य रूपाने येणार तो जाणार असे शिकवून आता जो क्षण लाभला आहे तो आनंदाने जगून घ्या सन्मार्गी लावा असा संदेश देत आहे.

पुस्तकाच्या अंतरंगात डोकावले की कळते हे श्री मोहनलाल वर्मा यांच्या हिंदी भाव कथानचा मराठी अनुवाद आहे. मग असे वाटले हे त्या भाव कथानंमधील वेगवेगळे भावरंग दाखवून सुरेखशी संध्याकाळ स्वतः एक सांजधून गात आहे.

खरच वेगवेगळ्या कथामधील वेगवेगळे भाव पण एकाच मनात दाटणारे असे एकाच चित्रात दाखवणारे हे चित्र वरवर पाहाता अगदी साधे वाटते पण खूप सारे भाव जगवणारे आहे.

इतके छान मुखपृष्ठ चित्र देणाऱ्या श्री अन्वर पट्टेकरी, प्रकाशक पराग लोणकर :-प्रियांजली प्रकाशन आणि लेखिका सौ उज्ज्वला केळकर यांना खूप खूप धन्यवाद

© सुश्री वर्षा बालगोपाल

मो 9923400506

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 230 ☆ व्यंग्य – साहित्य में फौजदारी तत्व ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय व्यंग्य – साहित्य में फौजदारी तत्व। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 230 ☆

☆ व्यंग्य –  साहित्य में फौजदारी तत्व

मुकुन्दीलाल ‘दद्दा’ नगर के सयाने कवि हैं। वैसे ‘दद्दा’ हर विधा में दख़ल रखते हैं। रचना की कूवत यह कि रात भर में सौ डेढ़-सौ पन्ने की किताब लिखकर फेंक देते हैं। अब तक तिरपन किताबें छपवा चुके हैं। नगर के साहित्यकारों में उनका पन्द्रह बीस का गुट है जो उन्हें ‘दद्दा’ कह कर पुकारते हैं। इसीलिए मुकुन्दीलाल जी ने अपना उपनाम ही ‘दद्दा’ रख लिया है।

‘दद्दा’ के गुट के लोग उनके प्रति समर्पित हैं। उनके इशारे पर उनके विरोधियों पर शब्द-बाण चलाते हैं। ज़रूरत पड़ने पर असली लाठी भाँजने को भी तैयार रहते हैं। तीन-चार सेवाभावी चेले सबेरे गुरू जी के घर पहुँच जाते हैं। गुरुपत्नी के आदेश पर बाजार से सौदा-सुलुफ ले आते हैं।

‘दद्दा’ के शिष्यों का उनके प्रति भक्ति-भाव ऐसा है कि उन्होंने आपस में निर्णय कर लिया है कि ‘दद्दा’ के स्वर्गवासी होने पर उनकी मूर्ति नगर के किसी चौराहे पर लगवाएंँगे, जैसी साहित्यकारों की मूर्तियाँ रूस में लगी हैं। साथ ही यह निर्णय हुआ है कि ‘दद्दा’ के घर की गली को ‘दद्दा मार्ग’ का नाम भी दिलाया जाएगा। ‘दद्दा’ के स्वर्गवासी होते ही इस दिशा में युद्ध-स्तर पर काम शुरू हो जाएगा।

फिलहाल खबर यह है कि ‘दद्दा’ जी को लेकर एक सनसनीखेज़ घटना घट गयी। नगर के गांधी भवन में ‘दद्दा’ की चौंवनवी किताब पर कार्यक्रम था। किताब ‘दद्दा’ के निबंधों की थी। शीर्षक था ‘दद्दाजी कहिन’। किताब पर बोलने के लिए ‘दद्दा’ जी के एक शिष्य ने नागपुर के एक विद्वान श्री विपिन बिहारी ‘निर्मम’ का नाम सुझाया था। ‘निर्मम’ जी की स्वीकृति भी प्राप्त हो गयी थी और उन्हें किताब भेज दी गयी थी।

‘दद्दा’ जी के चेलों ने कार्यक्रम की पूरी तैयारी की थी। चालीस पचास लोगों को बार-बार फोन करके खींच लाये। एक भूतपूर्व मंत्री को अध्यक्षता के लिए ले आये। सभी स्थानीय अखबारों में समाचार दे दिया।

कार्यक्रम के संचालक ‘दद्दा’ जी के शिष्य थे। उन्होंने ‘दद्दा’ जी का परिचय देते हुए उन्हें प्रेमचंद और ‘प्रसाद’ की पाँत का लेखक बता दिया। इसके बाद बोलने की बारी ‘निर्मम’ जी की आयी। उन्होंने शुरू में किताब की खूबियाँ बतायीं, फिर खामियों पर आ गये।

‘निर्मम’ जी ने कहा कि ‘दद्दा’ जी की भाषा अच्छी और प्रभावशाली है, लेकिन उनके सोच में आधुनिकता और वैज्ञानिकता का अभाव दिखता है। कई निबंधों में उनकी सोच रूढ़िवादी दिखायी पड़ती है। दुनिया अब बहुत आगे बढ़ गयी है और आदमी के जीवन और व्यवहार में आमूल-चूल परिवर्तन हो गये हैं। ‘दद्दा’ जी इन परिवर्तनों को उस हद तक नहीं पकड़ सके हैं जैसी उनसे उम्मीद थी।

‘निर्मम’ जी अभी बोल ही रहे थे कि श्रोताओं में से ‘दद्दा’ जी के एक शिष्य ने उठकर उनके हाथ से माइक छीन लिया, बोला, ‘आप यह बकवास बन्द करें। आपमें ‘दद्दा’ जी के लेखन को समझने की क्षमता नहीं है। ‘दद्दा’ जी को समझने के लिए बहुत गहरे उतरना पड़ता है। यह काम आपके बस का नहीं है। हमसे गलती हुई जो इस कार्यक्रम में आपको बुला लिया।’

‘निर्मम’ जी सिटपिटाकर बैठ गये। श्रोताओं में से एक चिल्लाकर बोला, ‘आप बाहर आइए। हम आपका आलोचना का सारा भूत उतार देंगे। आपकी इतनी हिम्मत कि हमारे ‘दद्दा’ जी की आलोचना करते हैं? बाहर निकलिए, फिर हम आपको बताते हैं।’

‘निर्मम’ जी भयभीत होकर कुर्सी में धँसे रह गये। जैसे तैसे अध्यक्ष जी का भाषण हुआ। कार्यक्रम समाप्त होने पर ‘दद्दा’ जी के शिष्य बाहर ‘निर्मम’ जी का ‘अभिनन्दन’ करने के लिए उनका इन्तज़ार करने लगे।

‘निर्मम’ जी ने हवा का रुख भाँप लिया। ‘दद्दा’ जी के जिन शिष्य ने उन्हें बुलाया था उनसे 100 नंबर पर फोन कराके पुलिस की मदद माँगी। थोड़ी देर में पुलिस की जीप आ गयी और उनकी कैफियत लेकर उन्हें रेलवे स्टेशन ले गयी जहाँ उन्हें रेलवे पुलिस की अभिरक्षा में सौंप दिया गया। कार्यक्रम स्थल से जीप चली तो पीछे से ‘दद्दा’ जी के शिष्य चिल्लाये, ‘बच्चू, इस बार तो बच गये। अगली बार हमारे शहर में आओगे तो बिना पूजा कराये नहीं जा पाओगे।’

रेलवे पुलिस के थाने में पहुँचकर ‘निर्मम’ जी एक कुर्सी में दुबके राम राम जपते रहे। उनकी गाड़ी रात में थी। गाड़ी का समय हुआ तो उन्होंने थानेदार से इल्तिजा की कि उनके साथ दो सिपाहियों को भेज दें जो उन्हें डिब्बे में बैठा दें और गाड़ी रवाना होने तक वहीं रुके रहें।

अन्ततः गाड़ी रवाना हुई तो चोटी पर चढ़े ‘निर्मम’ जी के प्राण वापस उतरे।

आइए,अब  हम सब मिलकर मनाएँ  कि जैसे ‘निर्मम’ जी अपने घर सुरक्षित वापस लौटे वैसे ही सब आलोचक सुरक्षित अपने घर वापस लौटें।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 230 – चुंबकत्व ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 230 ☆ चुंबकत्व ?

यात्रा पर हूँ और गाड़ी की प्रतीक्षा है। देख रहा हूँ कि कुछ दूर चहलकदमी कर रही चार- पाँच साल की एक बिटिया अपनी माँ से मोबाइल लेकर जाने किससे क्या-क्या बातें कर रही है। चपर-चपर बोल रही है। बीच-बीच में ज़ोर से हँसती है। ध्यान देने पर समझ में आया कि मोबाइल के दोनों छोर पर वही है। जो डायल कर रहा है, वही रिसीव भी कर रहा है। माँ के आवाज़ देने पर बोली, ‘अरे मम्मा, फोन पर बात कर रही हूँ, झूठी-मूठी की बात…’ और खिलखिला पड़ी। अलबत्ता उसके झूठमूठ में दुनिया भर की सच्चाई भरी हुई है। सच्चे मोबाइल पर सच्ची सहेली से बातें। सब कुछ इतना सुथरा, इतना पारदर्शी, इतना सच्चा कि मोबाइल सैटेलाइट की जगह मन के तारों से कनेक्ट हो रहा है।

छोटे बच्चों के चेहरे तपाक से कनेक्ट कर लेते हैं। निष्पाप, सदा हँसते, ऊर्जा से भरपूर। उनकी सच्चाई का कारण स्पष्ट है, जो डायल कर रहा है, वही रिसीव कर रहा है। भीतर-बाहर कोई भेद नहीं। भीतर-बाहर एक। द्वैत भीड़ में अद्वैत।

इस एकात्म ‘डायलर-रिसीवर फॉर्मूले को क्या हम नहीं अपना सकते? याद कीजिए, पिछली बार अपने आप से कब बातचीत की थी? अपने आप से बात करना याने अपने सर्वश्रेष्ठ मित्र से बात करना, ऐसी आत्मा से बात करना जिससे अपना भीतर आ-बाहर कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता। अपने आप से वार्तालाप याने परमात्मा से संवाद।

एकाएक बिना कोई नंबर फिराए अपने आप से बात कर रहा हूँ। अनुभव कर रहा हूँ कि यों चपर- चपर बोलना और खिलखिलाना ज़रा भी कठिन नहीं। भीतर नई ऊर्जा प्रवाहित हो रही है।

संभव है कि मेरी बातों से तुम मेरी ओर खिंचे चले आओ, पर सुनो! सदा लौह बने रहने के बजाय चुंबक बनने का प्रयास करो। खुद को डायल करो, खुद रिसीव करो, चुंबकत्व खुद तुम्हारे भीतर प्रवेश कर जाएगा।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 176 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 176 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 176) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IMM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 176 ?

☆☆☆☆☆

तूफ़ां के से  हालात  है

ना किसी सफर में रहो.

पंछियों से है गुज़ारिश 

रहो सिर्फ अपने शज़र में

☆☆ 

There’re stormy conditions

Don’t set sail for any voyage

Pleading with the avian-world

To keep nestled in their trees

☆☆☆☆☆

ईद का चाँद बन, बस रहो 

अपने ही घरवालों के संग,

ये उनकी खुशकिस्मती है

कि बस हो उनकी नज़र में…

☆☆ 

Even in once in blue moon,

Don’t step out, be with family

It’s a  blissful  fortune only

That you’re before their eyes

☆☆☆☆☆

माना बंजारों की तरह

घूमते ही रहे डगर-डगर…

वक़्त का तक़ाज़ा है अब 

☆☆ 

Agreed like gypsies, you’ve

Been wandering endlessly

It’s  the  need  of  hour that

You stay in your own town…

☆☆☆☆☆

रहो सिर्फ अपने ही शहर में …

तुमने कितनी खाक़ छानी 

हर  गली  हर  चौबारे  की,

थोड़े  दिन की  तो बात है 

बस रहो सिर्फ अपने घर में…

☆☆ 

Much did you wander around

Every nook and every corner,

It’s a matter of few days only

Keep staying in your house…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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