(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक कुल 148 मौलिक कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत।
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जीका हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “गंदगी”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 159 ☆
☆ लघुकथा- गंदगी ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
” गंदगी तेरे घर के सामने हैं इसलिए तू उठाएगी।”
” नहीं! मैं क्यों उठाऊं? आज घर के सामने की सड़क पर झाड़ू लगाने का नंबर तेरा है, इसलिए तू उठाएगी।”
” मैं क्यों उठाऊं! झाड़ू लगाने का नंबर मेरा है। गंदगी उठाने का नहीं। वह तेरे घर के नजदीक है इसलिए तू उठाएगी।”
अभी दोनों आपस में तू तू – मैं मैं करके लड़ रही थी। तभी एक लड़के ने नजदीक आकर कहा,” मम्मी! वह देखो दाल-बाटी बनाने के लिए उपले बेचने वाला लड़का गंदगी लेकर जा रहा है। क्या उसी गंदगी से दाल-बाटी बनती है?”
यह सुनते ही दोनों की निगाहें साफ सड़क से होते हुए गंदगी ले जा रहे लड़के की ओर चली गई। मगर, सवाल करने वाले लड़के को कोई जवाब नहीं मिला।
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय रचना “आज के संदर्भ में – षड्यंत्रों का दौर…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #215 ☆
☆ आज के संदर्भ में – षड्यंत्रों का दौर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “मौन…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 39 ☆ मौन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
(वरिष्ठ साहित्यकारश्री अरुण कुमार दुबे जी,उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “अभी चुनाव का माहौल है जरा रुकिए…“)
अभी चुनाव का माहौल है जरा रुकिए… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-८ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆
(डेव्हिड स्कॉट ट्रेल (David Scott Trail))
प्रिय पाठकगण,
आपको हर बार की तरह आज भी विनम्र होकर कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)
फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)
एक शक (पिछले भाग का और इस भाग का भी)
यह सब तो ठीक ही है, यह मावफ्लांग का घना जंगल, यहाँ मेरी ही कोई शिकार करे तो? (यहाँ के जानवरों ने ये नियम थोड़े न पढ़े होंगे!) मित्रों, इसीलिये अपना साथ निभाने वाला, यहाँ के एक-एक पदचिन्ह को पहचानने वाला स्थानीय गाइड जरुरी है, उसका अनुसरण करते जाइये, सीधी ( हो या ना हो) पगडण्डी मत छोड़िये, घनघोर जंगल में घुस कर संकट को आमंत्रित करने वाली जरुरत से ज्यादा हिम्मत मत कीजिये! आप बाघ की तलाश मत कीजिये, वह भी जानबूजकर आपको तलाशते हुए नहीं आएगा!!! ईमानदारी से बताती हूँ, ईश्वर की इस अनाहत निर्मिति ने हमें इतना अभिभूत कर दिया था कि, इस रमणीय जंगल में हमारे मन में एक बार भी ऐसे वैसे विचारों ने झाँकने की हिम्मत तक नहीं दिखाई| मित्रों, यह जंगल अवश्य देखिए, चार एक घंटों की मोहलत रहने दीजिये! गाईड के भरोसे पर निश्चिन्त हो जाइये, उसके पास बंदूक वग़ैरा नहीं होती, मात्र होती है असीम श्रद्धा! आप अगर सच्चे प्रकृतिप्रेमी हैं, तो यह वनवैभव नहीं बल्कि, साक्षात् वनदेवता अपने विशाल हरित बाहुपाश में आपको बद्ध करने के लिए सिद्ध है!
डेव्हिड स्कॉट ट्रेल (David Scott Trail):
मेघालय का यह सबसे पुराना पादचारी रास्ता है| डेविड स्कॉट नामक ब्रिटिश प्रशासक ने भारत के उत्तर पूर्व भाग में करीबन ३० वर्ष (१८०२-१८३२) कार्य किया| उसने संपूर्ण खासी पर्वतश्रृंखला की पैदल यात्रा की| उस समय आसाम से सिल्हट(अभी का बांग्लादेश) का अंतर करीबन १०० किलोमीटर था! इस मार्ग पर घोडा-गाड़ियां ले जाने योग्य रास्तों की खोज की गई! इसे माल ढुलाई के लिए इस्तेमाल किया जाना था!यहीं है वह पूर्व खासी पर्वतश्रृंखलाओं में से जाने वाला ट्रेल, इसे डेविड स्कॉट का ही नाम दिया गया है! मूलतः १०० किलोमीटर का अति दुर्गम और कठिनतम मार्ग, परन्तु अब पर्यटकों की सुविधा के लिए छोटे छोटे हिस्सों में विभाजित किया गया है| समुद्र तल से ४८९२ फीट की ऊंचाई पर इस प्राकृतिक सौंदर्य से सजी पगडण्डी पर मार्गक्रमण करते हुए आपको नजर आएंगे छोटे-छोटे शांत गांव, प्राचीन पवित्र वनसम्पदा, विविध औषधी वनस्पतियां, ऑर्किड, मॅग्नोलिया जैसे फूलों की बहार, रबर के पेड़, ब्लॅकबेरी तथा गूसबेरी जैसे ताज़े फल, विस्तीर्ण हरे-भरे चरागाह के मैदान, छोटी-बड़ी जलधाराएँ, जलप्रपात, छोटी-बड़ी झीलें, एकाश्म, पथरीले पुल इत्यादी इत्यादी| कृत्रिमता का जरासा भी स्पर्श नहीं, यहीं है इस मार्ग का बिलकुल सच्चा प्राकृतिक लावण्य! इसका मुख्य कारण है यहाँ मानव का आवागमन बहुत ही कम है!
साहसी ट्रेकर्स यह संपूर्ण मार्ग (१०० किलोमीटर)४-५ दिनों में (गांव में रैनबसेरा करते हुए) चलते हुए पूरा करते हैं | परन्तु इससे अधिक व्यावहारिक और लोकप्रिय ऐसा एक दिन का (करीबन ४ से ६ घंटों में पूरा कर सकते हैं) १६ किलोमीटर का मार्ग उपलब्ध है| मावफ्लांग (Mawphlang) से लाड मावफ्लांग (Lad Mawphlang) ऐसा यह मार्ग है|
इस ट्रेल की शुरवात करने के लिए पहले शिलाँग से २५ किलोमीटर दूर मावफ्लांग गांव में पहुंचना जरुरी है, फिर इस गांव से यात्रा शुरू करते हुए मार्गक्रमण करते रहना है, जब तक लाड मावफ्लांग तक आप पहुँच न जाएँ! इस दीर्घ मार्गिका में क्या नहीं है यह पूछिए! प्रकृति का मुक्त संचार, हरीतिमा से परिपूर्ण पर्वत, खाइयां तो हैं ही, साथ ही जिसका हमें दर्शन अत्यंत दुर्लभ हो वह संपूर्ण तल एकदम स्वच्छ और अच्छे से नज़र आए ऐसा निर्मल जल, सब कुछ सिनेमास्कोपिक चलचित्र के समान! एक छोटी सरिता तरंगिणी अपने रुपहले जल की मचलती लहरों का नादस्वर लेकर लगातार हमारा साथ देते रहती है| इस राह में बीच बीच में उमियम नदी हमें दर्शन देती है| मित्रों, उमियम यानि “अश्रुपात की बाढ़”| इस नाम के उत्त्पत्ति की दिल को छू लेने वाली कहानी बताती हूँ! दो बहनें स्वर्ग से पृथ्वी पर आ रही थी, उस दौरान, बीच राह में एक बहन खो गई, और उसे खोजने वाली दूसरी बहन के अश्रुपात से इस उमियम नदी का निर्माण हुआ!
मेरी बेटी आरती, जमाई उज्ज्वल और पोती अनुभूती ने यह ट्रेक पूरा किया| आरती का अनुभव उसीके शब्दों में नीचे दे रही हूँ!
“मेघालय ट्रिप के अंतिम दिन हमने किया हुआ यह ट्रेक बहुत ही इंटरेस्टिंग था| हमारे गाईड (दालम) के साथ हमने सुबह ९ बजे इस १६ किलोमीटर लम्बे प्रवास की शुरवात की| प्राकृतिक वातावरण के निकट समय बिताने का अनूठा अनुभव लेने के लिए हम बहुत ही उत्सुक थे| हमारा गाइड बीच बीच में ताजी रसदार बेरी तोड़ कर दे रहा था| वहां के पानी के प्रवाह और सुंदर निर्झरों का जल अत्यंत स्वच्छ और शीतल था| सीधे प्रवाह और निर्झरों से यह जल पीना यह तो हम शहरवासियों के लिए एक अनोखा ही अनुभव था| चलने के तनाव और परिश्रम से मुक्ति पाने के लिए हम हर निर्झर में मुँह और हाथ पाँव धो रहे थे, उससे श्रमपरिहार तो हो ही रहा था, परन्तु हमारा मन भी प्रसन्न हो उठा था| ट्रेक के आरम्भ में ही एक कुत्ता हमारे साथ हो लिया और पहले ८ किलोमीटर तक लगातार वह हमारे साथ ही था! उसे हमसे अधिक हमारे पास मौजूद चिप्स और अन्य जंक फूड में ज्यादा रस है, ऐसा लग रहा था! चिप्स का पॅकेट खोलने की महज आवाज से वह चौकन्ना हो जाता था और जब तक कि हम उसे थोडासा हिस्सा नहीं देते थे, तबतक, हमें उससे छुटकारा नहीं मिलता था! (हमारे एक फोटो में वह भी दिखाई दे रहा है) दालम ने हमें एक मनोरंजक कथा बतलाई| प्राचीनकाल में मानव बहुत मजबूत शरीर का धनी होता था| एक ही आदमी एक बड़ा (पाषाण) एकाश्म आराम से उठा लेता था, परन्तु उसे उठाने के पहले वह इस एकाश्मश से सुन्दर संवाद साधता था और उसकी अनुमति भी लेता था| यद्यपि पाषाण उससे बात नहीं कर सकता था, फिर भी यह कहा जाता है कि, उस आदमी को उस पाषाण के स्पंदन सुनाई देते थे!मानव से ऐसी प्यार भरी गुहार सुनने के पश्चात् वह पाषाण नरम हो उठता था! मित्रों, कहानी में ही क्यों न हो, प्रकृति से संवाद साधने वाले ये वन्य जीव! हमें उनकी भावनाओं का आदर करना ही चाहिए, सच कहूं तो, प्रकृति का रक्षण करने के लिए अब प्रकृति से अभिन्न रूप से जुड़े मानव की ही नितांत आवश्यकता है!
हमने एक गांव में दोपहर का खाना मॅगी और नीम्बू पर निपटाया| कुछ स्कूली बच्चों से मिलने के बाद यह ज्ञात हुआ कि वे स्कूल पहुँचने के लिए इसी कठिन मार्ग पर रोज आना जाना करते हैं, चाहे मौसम कितना ही ख़राब क्यों न हो! कुछ स्थानीय स्त्रियां उनके शिशुओं को पीठ पर बांध कर जाते हुए इसी रास्ते पर मिलीं!(इन बहादुर बच्चों को और स्त्रियों को हमारा अर्थात साष्टांग कुमनो!)यहाँ कोई भी वाहन नहीं हैं, कोई भी नेटवर्क चलता नहीं है | एक बार आपने ट्रेक का आरम्भ किया तो फिर उसे समाप्त करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता! हमारा यह प्रकृति के संग किया सुन्दर प्रवास सायंकाल ४ बजे समाप्त हुआ| यह ट्रेक हमें जिंदगी भर याद रहेगा!हमारे गाईड दालम ने (DalamLynti Dympep, आयु केवल २२ वर्ष, मु.पो. मावफलांग, फोन क्र ८८३७०४०९५८) हमें अत्यंत उत्तम मार्गदर्शन किया और संपूर्ण प्रवास में हमारी सर्वतोपरी मदद की| हम दिल से उसके बहुत बहुत आभारी हैं! हमारी सलाह है कि, इस प्रवास में साथ निभाने के लिए गाईड लेना बिलकुल जरुरी है! दालम जैसा गाइड हो तो कितने ही संकट क्यों न आएं, उन पर विजय पाना आसान होगा, इसमें कोई शक नहीं! नीचे के फोटो में तीन एकाश्म (मोनोलिथ्स) और उनके साथ नजर आ रहा है दालम!”
प्रिय पाठकगण, यह प्रवास अब शिलाँग तक आ चुका है! अगले मेघालय दर्शन के भाग में आपको मैं ले चलूंगी, शिलाँग, अर्थात मेघालय की राजधानी में और उसके आसपास के अद्भुत प्रवास के लिए!
तो अभी के लिए खुबलेई! (khublei)यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)
टिप्पणी
*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें व्यक्तिगत हैं!
डेविड स्कॉट ट्रेल के कुछ व्हिडिओ यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं|
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – मूक ज्ञान।)
पार्टी में अचानक मंजू और माधुरी को देखकर उसकी सास कमला जी जोर से हंसते हुए बहू के गले लगती हैं और प्यार से उसके सिर पर हाथ हाथ फेरते हुए कहा- तैयार हो कर आ गई, ननद भौजाई दोनों कितनी प्यारी और सुंदर लग रही है और अपनी आंखों के काजल से दोनों को काला टीका लगाती हैं भगवान यह जोड़ी हमेशा सलामत रखें।
माधुरी को बहुत गुस्सा आता है और मन ही मन कहती है कि मैं इतना सुंदर तैयार हूं लेकिन आज मैं सिर पर पल्लू नहीं रखूंगी मैं एक पढ़ी-लिखी लड़की हूं इस घर में आकर इन लोगों ने मुझे नौकर बना दिया है चाहे कोई भी आए?
दूर से अचानक उसके पति देव उसके पास आते हैं ।
साथ में खड़े होकर कहते हैं कि चलो उधर मेरे दोस्त और यहां पर अपने रिश्तेदार भी बहुत आए हुए हैं उन सभी से मिलवाता हूँ।
अरे !यह क्या सामने से बड़े काका भी चले आ रहे हैं, गांव वाले घर के बगल में जो बड़ी अम्मा रहती हैं, वह भी दिख रही हैं?
पति अभिषेक ने दोनों को प्रणाम किया।
तभी धीरे से माधुरी ने पल्लू अपने सिर पर रखा और उनके पैर छुए। दोनों लोगों ने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा बिटिया सदा खुश रहो ।
अभिषेक तुम्हें बहुत ही अच्छी सुंदर दुल्हन मिली है और कितनी संस्कारी है।
उनकी बातें सुनकर माधुरी मन ही मन शर्मिंदा हुई और अपने पति की आंखों में उसे उसके लिए गर्व दिखा। पतिदेव ने उसे बड़ी ही प्रशंसा भरी नजरों से देखा और धीरे से उसके हाथ को अपने हाथ में लिया और गुलाब जामुन वाले काउंटर में गए दोनों ने साथ में मीठे का आनंद लिया।
अचानक उसे याद आया कि प्रशंसा ऐसे मिलती है। मेरी और मेरी ननद की सब लोग तारीफ कर रहे हैं । तभी वह पति से कहती है आप अपने दोस्तों से मिलिए मैं मंजू के साथ रहती हूँ।
मंजू को साथ लेकर वह अपनी दूर के रिश्ते की मौसी के पास जाती है।
अरे! मौसी देखो मंजू मौसी जी मेरी मंजू कितनी प्यारी है पढ़ी लिखी है योग्य है। तुम मेरे भाई से शादी क्यों नहीं कर रही हो कोई लड़की तुम्हें मिली या नहीं। मेरे परिवार को तो अच्छे से जानती हो क्यों ना इसे हम रिश्तेदारी में बदलें। भाई अनुज कहां है उसे तो मिलवाया ही नहीं ।
अनुज ने पैर छूकर प्रणाम किया अनुज यह मंजू है मंजू जो अनुज को प्लेट लगाकर खाना तो खिलाओ तब तक मैं मौसी को मम्मी पापा से मिलवाती हूं।
हां बेटा तुम ठीक कह रही हो आज तो मेरा भी मन कर रहा है कि मैं भी सास बनी जाती हूं कहां है तुम्हारी सास।
अचानक वह गहरी चिंता में खो जाती है मैं भरपूर दहेज दूंगी मेरे मन को क्या हुआ?
मैं अपनी भाभी की तरह इसे अपना सारा सामान दूंगी और आज ही इसका विवाह पक्का करवा देता हूं।
मेरी भाभी ने जैसे मुझे अपनी छोटी बहन बना कर रखा इस तरह में अपनी ननद को भी बहन बनाकर रखूंगी। शादी में आए सभी रिश्तेदारों में से एक लड़के के साथ तो मैं अवश्य रिश्ता तय करके रहूंगी। उसका घर बस जाएगा। मेरे मायके के संस्कार और ससुराल की इज्जत को आगे बढ़ा कर रहूंगी। मैं सब के प्रति कितना गलत सोच रही थी पर आज मैंने यह बात जान ली कि मान सम्मान और प्रशंसा कैसे प्राप्त होती है।
संस्कार का क्या महत्व है। बड़े बुजुर्गों की इज्जत करके उनकी आंखों ने बिना कहे ही मूक ज्ञान मुझे दे दिया।