संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सड़कों पर उड़ती है धूल…” । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर रचित एक गीत “आन विराजे राम लला”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 178 ☆
☆ 🌹 आन विराजे राम लला 🌹☆
[1]
हे रघुकुल नायक, हो सुखदायक, पावन सुंदर, राम कथा।
जो ध्यान धरें नित, काज करें हित, राम सिया प्रभु, हरे व्यथा ।।
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “पालतू पालक” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 67 ☆ देश-परदेश – पालतू पालक ☆ श्री राकेश कुमार ☆
उपरोक्त फोटो घर के निकट की एक दुकान का है। दुकानदार से बातचीत हुई की आपने पालतू और बच्चों से संबंधित दोनों के लिए कैसे जुगल बंदी कर दी। उसने बताया कि जिन परिवारों में बच्चे नहीं है, वे श्वान या बिल्ली पाल लेते हैं। पालतू पालक और बच्चे वाले दोनों ही हमारे ग्राहक हैं। पूर्व में सिर्फ श्वान का चलन था, लेकिन उसका क्रय मूल्य अधिक होने से बिल्ली पालन के चलन में तेज़ी आ गई हैं।
कुछ दशक पूर्व तक बिल्लियां दीवार फांद कर लोगों के घर में रखे हुए दूध में मुंह मार लिया करती थी। जब से ये फ्रिज चल पड़े है, उनको पेट भरना कठिन हो गया और था। इसलिए बिल्लियां कम हो गई हैं। अब कुछ वर्षों से इनको पालतू बना कर घर में पाला जाता हैं। श्वान तो सदियों से स्वामी भक्त के टाइटल से भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं।
जोधपुर शहर में कल ही दो बच्चों का ट्रेन के नीचे आ जाने से दुखद निधन हो गया, क्योंकि चार पालतू जर्मन शेफर्ड नामक प्रजाति के श्वान बच्चों को काटने लगे तो बच्चे रेल लाइन की तरफ बच कर भाग गए जिससे ये दुर्घटना हो गई। श्वान मालिक का कहना है, इसमें श्वानो की कोई गलती नहीं हैं। बच्चों को रेल पटरी पार करते समय ट्रेन को देखना चाहिए था। दिल्ली शहर में भी खूंखार प्रजाति पिट बुल के श्वान ने एक बुजर्ग से उसके छोटे से पोते को छीन कर गंभीर रूप से जख्मी कर दिया है।
ऐसा व्यवहार श्वान क्यों कर रहे है, कुछ विशेषज्ञों का मत है, उनकी मूलभूत सुविधाओं जैसे की बिजली के खंभों में कमी होना भी हो सकता है। आजकल बिजली की लाइन भूमिगत हो रही हैं।
कुछ पालक अपने पालतू के लालन पालन और तीमारदारी के लिए तन मन और धन से लग जाते हैं। प्राणी सेवा एक अच्छा कार्य हैं। परंतु कभी-कभी तो ये पालक अपने परिजनों का उतना ख्याल नहीं रखते हैं, जितना वे अपने पालतू का रखते हैं। ये भी हो सकता है, वे पालतू के पूर्व जन्म के कर्म होंगे, जिनकी वजह से पालतू योनि में जन्म लेकर भी इतनी सुख सुविधा प्राप्त हुई।
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम वंदना – हे राम…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 173 – गीत – हे राम…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “सुरमई तम का कलश छलका है...”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 171 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ “सुरमई तम का कलश छलका है...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी के स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल में आज प्रस्तुत है उनका एक विचारणीय व्यंग्य “नेपो किड्स के दौर में…”।)
☆ शेष कुशल # 37 ☆
☆ व्यंग्य – “नेपो किड्स के दौर में…”– शांतिलाल जैन ☆
‘आप राहा को जानते हैं शांतिबाबू ?’ दादू के पूछने पर मैंने ‘नहीं’ में उत्तर दिया. दादू सिरे से उखड़ गया. बोला – कमाल करते हैं आप!!. या तो आप पढ़े-लिखे नहीं हैं और हैं भी तो आपका जीके वेरी पुअर है. आलिया और रणबीर की डॉटर को नहीं जानते! पता नहीं किस दुनिया में रहते हैं आप, अलिया के पेट में थी मिडिया तब से कवर कर रहा है. सच में कमाल है!!’
‘नहीं नहीं दादू, ध्यान आ गया. आप राहा कपूर की बात कर रहे हो. नॅशनल न्यूज पेपर में छपी थी उसकी फोटो, आधे पेज पर. पास में नीचे दस प्रतिशत खाद्य महंगाई की छोटी सी खबर पढ़ने के बाद इस खबर पर मेरा ध्यान वैसा नहीं गया.’
‘शांतिबाबू हर समय महँगाई को मत रोया कीजिए’ – दादू ने कहा – ‘क्या पोज़ मारा एक साल की क्यूट बेबी ने! खबरों में हॉट. कहाँ स्पॉट हुई ? हुडी पहनी थी कि डंग्रीज़ ? रणबीर ने शोल्डर पर बैठा रखा था कि बगल में ? सेलेब्रिटी मदर कहाँ स्पॉट हुई ? रात में डायपर आलिया बदलती है कि रणबीर ? एक बार बदला था रणबीर ने मगर साबुन से हाथ नहीं धोए तब से आलिया ही करती है यह सब. आलिया ने इंटरव्यू में बताया. पूरे तीस जोड़ स्नीकर्स खरीदे हैं रणबीर ने उसके लिए, बताईए मिडिया आपको इतनी महत्वपूर्ण जानकारी दे रहा है और आप हैं कि बार बार इन्फ्लेशन का स्यापा लेकर बैठ जाते हो.’
‘दादू, इस समय देश की एक और बड़ी समस्या बेरोज़गारी है’ – मैंने कहा.
वे बोले – ‘माय डियर फ्रेंड, अनएम्पलॉयमेंट बड़ी समस्या होती तो देश में राहा की गोल गोल बड़ी बड़ी आँखें ट्रेंड नहीं कर रही होती. जेन-झेड से लेकर मार्निंग वॉकर अंकिलों तक में डिस्कशन चल रहा है. कैसी दिखती है राहा ? न तो रणबीर जैसी दिखती हैं और न आलिया जैसी. उसमें कपूर खानदान के जीन्स हैं मगर राज कपूर जैसी दिखती नहीं है. अलबत्ता करीना कपूर खान जैसी दिखती है.’
‘दादू, बिलकिस बानो की उस तीन साल की लड़की की बात करें, जिसे उसकी माँ के सामने ही पटक पटक के मार डाला था ?’ – मैंने पूछा.
‘भोत सिड़ी आदमी हो यार आप, छांट के मूड खराब करनेवाली खबर लाते हो. हॉलीडेज के बाद एयरपोर्ट पे पिंक हुडीज में स्पॉट हुई है क्यूटी और तुम बिलकिस रोना लेकर बैठ गए हो. बात राहा की चल रही है. सो क्यूट बेबी!! उसकी खूबसूरत नीली आँखें अगर मिलती हैं तो बस करिश्मा कपूर से. नाक, कान, होंठ और गोल-मटोल गाल आलिया की बचपन की तस्वीरों से मिलते-जुलते हैं. फैन्स खुश हैं, पूरे एक साल बाद जो स्पॉट हुई है.’
जब मैंने दादू से मणिपुर का जिक्र करना चाहा तो वो मुझे पेज-थ्री पर लगी तैमूर, वियान और वमिका की तस्वीरें दिखाने लगा जो अब नेपो किड्स बनने की राह पर अग्रसर हैं. कन्फ्यूज हो जाते हैं आप ज्यादा पॉपुलर विराट है कि वमिका. डैड से अधिक वायरल डॉटर की फोटूएँ. वो क्रिकेटर बनेगी या हिरोईन इस पर जितनी प्लानिंग अनुष्का ने नहीं की होगी उससे ज्यादा चैट तो इंस्टाग्राम पर हो ली है.
बहरहाल, दादू मेरे हर जिक्र से खिन्न था, बोला – ‘वे लोग एक नंबर के झक्की होते हैं जो इस दौर में ज्वलंत मुद्दों पर बात करने के नाम पर निगेटिविटी फ़ैलाने की कोशिश करते हैं. मिडियावाले बेचारे जमीन और जनता से जुड़ी कितनी खबरें छोटी से छोटी करके भी स्टार किड्स के बड़े से बड़े फोटू, उनके पेरेंट्स के इंटरव्यू छापते हैं. आप जैसे लोग हैं कि ठीक से पढ़ते भी नहीं. ये सेलेब्रिटी किड्स से नेपो किड्स की ओर चलने का का दौर है शांतिबाबू, जिंदगी को एन्जॉय करना सीखिए.’
जब गाँव में पानी की समस्या से लेकर यमन में हो रहे प्रदर्शनों तक हर आक्रोश को शांत करने का नायाब नुस्खा सेलेब किड्स के कवरेज़ में छुपा हो तब अपन की तो हिम्मत ही नहीं होती है कि हसदेव के जंगलों में दो लाख पेड़ काटे जाने का जिक्र भी किया जाए. बहरहाल, आप स्टार किड्स को देखते रहिए, रील्स बनाईये, इन्स्टाग्राम पर अपलोड करते रहिए और जिंदगी की दुश्वारियों को भूल जाईए, हमारे दादू की तरह.
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक रोचक एवं प्रेरक कहानी – “एक रिकवरी ऐसी भी”।)
☆ कहानी – “एक रिकवरी ऐसी भी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
बैंकों में बढ़ते एनपीए जैसे समाचार पढ़ते हुए उस ईमानदार मृतात्मा की याद आ गई, जिसने अपने बेटे को सपना देकर अपने पुराने लोन को पटाने हेतु प्रेरणा दी।
किसी ने ठीक ही कहा है कि कर्ज, फर्ज और मर्ज को कभी नहीं भूलना चाहिए, लेकिन इस आदर्श वाक्य को लोग पढकर टाल देते है। कर्ज लेते समय तो उनका व्यवहार अत्यंत मृदु होता है, लेकिन मतलब निकलने के बाद वे नजरें चुराने लगते है, कई ऐसे लोग है जो बैंक से काफी लोन लेकर उसे पचा जाते है, लेकिन ऐसे भी लोगों की कमी नहीं जो कर्ज, फर्ज और मर्ज का बराबर ख्याल रखते है।
एक बैंक की शाखा के एक कर्जदार ने अपनी मृत्यु के बाद भी बैंक से लिए कर्ज को चुकाने सपने में अपने परिजन को प्रेरित किया जिससे उसके द्वारा २० साल पहले लिया कर्ज पट गया।जब लोगों को इस बात का पता चला तो लोगों ने दातों तले उगलियाँ दबा कर हतप्रद रह गए।
बात सोलह साल पुरानी है जब हम स्टेट बैंक की एक शाखा में शाखा प्रबन्धक के रूप में पदस्थ थे। इस मामले का खुलासा करने में हमें भी तनिक हिचक और आश्चर्य के साथ सहज रूप से विश्वास नहीं हो रहा था, इसीलिए हमने कुछ अपनों को यह बात बताई,साथ ही अपनों को यह भी सलाह दी कि ”किसी से बताना नहीं ….. पर कुछ दिन पहले एक रिकवरी ऐसी भी आई।……..यह बात फैलते – फैलते खबरनबीसों तक पहुच गई, फिर इस बात को खबर बनाकर स्थानीय संवाददाता ने खबर को प्रमुखता से अपने पत्र में प्रकाशित करवा दिया। खबर यह थी कि २० साल पहले एक ग्राहक ने बैंक से कर्ज लिया था, लेकिन कर्ज चुकाने के पहले ही वह परलोक सिधार गया …………। उसके बेटे ने एक दिन बैंक में आकर अपने पिता द्वारा लिए गए कर्ज की जानकारी ली, बेटे ने बताया कि उसके पिता बार-बार सपने में आते है और बार-बार यही कहते है कि बेटा बैंक का कर्ज चुका दो,पहले तो शाखा के स्टाफ को आश्चर्य हुआ और बात पर भरोसा नहीं हुआ, लेकिन उसके बेटे के चेहरे पर उभर आई चिंता और उसके संवेदनशील मन पर गौर करते हुए अपलेखित खातों की सूची में उसके पिता का नाम मिल ही गया,उसकी बात पर कुछ यकीन भी हुआ, फिर उसने बताया कि पिता जी की बहुत पहले मृत्यु हो गई थी,पर कुछ दिनों से हर रात को पिता जी सपने में आकर पूछते है की कर्ज का क्या हुआ ? और मेरी नींद खुल जाती है फिर सो नहीं पता, लगातार २० दिनों से नहीं सो पाया हूँ,आज किसी भी हालत में पिता जी का कर्ज चुका कर ही घर जाना हो पायेगा। अधिक नहीं मात्र १६५००/ का हिसाब ब्याज सहित बना, उसने हँसते -हँसते चुकाया और बोला – आज तो सच में गंगा नहए जैसा लग रहा है।
अगले दो-तीन दिनों तक उसकी खोज -खबर ली गई उसने बताया की कर्ज चुकने के बाद पिता जी बिलकुल भी नहीं दिखे, उस दिन से उसे खूब नीदं आ रही है। जिन लोगों ने इस बात को सुना उन्हें भले इस खबर पर अंधविश्वास की बू आयी है,पर उस पवित्र आत्मा की प्रेरणा से जहाँ बैंक की वसूली हो गई वहीँ एक पुत्र पितृ-लोन से मुक्त हो गया,इस खबर को तमाम जगहों पढ़ा गया और हो सकता है कि कई दूर-दराज शाखाओं की पुरानी अपलेखित खातों में इस खबर से वसूली हुई हो। पर ये सच है कि पहले के जमाने में स्टेट बैंक का ग्राहक होना गर्व और इज्जत का विषय होता था। तभी तो लोग कहते थे कि स्टेट बैंक में ऐसे ईमानदार कर्जदार भी होते थे जो मरकर भी अपने कर्ज को चुकवाते हुए बैंक की वसूली का माहौल भी बनाते थे…
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.“साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज भगवान श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर प्रस्तुत है आ गए आ गए आज मेरे प्रभु…। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 198 ☆
☆ आ गए आ गए आज मेरे प्रभु…☆ श्री संतोष नेमा ☆
(22 जनवरी को अयोध्या में भगवान श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर)
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आ गए आ गए आज मेरे प्रभु, आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम
आ गए आ गए आज मेरे प्रभु, आज मेरे जमीं पर नहीं है कदम
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# ठंड और कोहरा#”)