हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 132 ☆ लघुकथा – तुम संस्कृति हो ? ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा ‘तुम संस्कृति हो ?’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 132 ☆

☆ लघुकथा – तुम संस्कृति हो ? ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

शादी की भीड़ -भाड़ में अचानक मेरी नजर उस पर पड़ी- ‘अरे! यह तो संस्कृति है शायद? पर वह कैसे हो सकती है?’ मेरा मन मानने को तैयार ही नहीं हो रहा था। चेहरा तो मिल रहा है लेकिन रहन–सहन? भला कोई इतना कैसे बदल सकता है? हाँ, यह सुना था कि वह विदेश में है और वहीं उसने शादी भी कर ली है। हम साथ ही पढ़े थे। स्कूल से निकलने पर कुछ सहेलियां छूट जाती थीं और कॉलेज के बाद तो कौन कहाँ गया, किसकी कहाँ शादी हुई, कुछ अता-पता ही नहीं रहता था। उस समय ‘फेसबुक’ तो थी नहीं। फिर से ध्यान उसकी ओर ही चला गया। तब तक उसने ही मुझे देख लिया, बड़ी नफासत से मुझसे गले मिली – ‘हाय निशा, बहुत अच्छा लगा यार तुम मिल गईं, कहाँ रहती हो तुम ? कितने सालों बाद हम मिल रहे हैं ना!‘ ना जाने कितनी बातें उसने उस पल बोल दीं। उसके पास से परफ्यूम की तेज गंध आ रही थी। चेहरे पर मेकअप की गहरी परत चढ़ी हुई थी जिससे वह अपनी उम्र छुपाने की भरसक कोशिश कर रही थी। स्टाइलिश बालों पर परमानेंट कलर किया हुआ था। अंग्रेजी के लहजे में हिंदी बोलती हुई वह बहुत बनावटी लग रही थी। मैं अब भी मानों सकते में थी, हिचकिचाते हुए मैंने धीरे से पूछ ही लिया – ‘तुम संस्कृति ही हो ना?’ उसे झटका लगा – ‘अरे! पहचाना नहीं क्या मुझे?’ मैंने अपनी झेंप मिटाते हुए कहा – ‘बहुत बदल गई हो तुम, मेरे दिमाग में कॉलेज वाली सीधी – सादी संस्कृति का चेहरा बसा हुआ था।‘

वह खिलखिला कर हँस पड़ी – ‘यार! पर तुम वैसी की वैसी रहीं, ना लुक्स में बदलीं, ना सोच में। मैं बीस साल से कनाडा में रहती हूँ, जैसा देश वैसा भेष। मैंने नाम भी बदल लिया मुझे सब सैंडी बुलाते हैं, अच्छा है ना?’ मैंने ओढ़ी हुई मुस्कान के साथ कहा –‘हाँ, तुम पर सूट कर रहा है। अपने बच्चों को हिंदी सिखाई है?’ – मैंने पूछा। उसे मेरा प्रश्न बेमानी लगा, बोली – ‘क्या करेंगे हिंदी सीखकर? कौन- सा अब उन्हें यहाँ वापस आना है।‘

वह बोलती जा रही थी और मुझे उसके माता -पिता याद आ रहे थे, जो हमेशा अपना देश, बोली-भाषा, खान-पान में देसीपन के इर्द-गिर्द जिया करते थे। बच्चों को अपना देश, अपनी माटी के संस्कार दिए थे उन्होंने। खरे देसीपन के वातावरण में पली–बढ़ी संस्कृति सैंडी क्यों बन गई?

© डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 175 ☆ हिम के कणों से पूर्ण मानो… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना हिम के कणों से पूर्ण मानो…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 175 ☆

हिम के कणों से पूर्ण मानो… ☆

सामान्य रूप से हम अपने जीवन का कोई न कोई उद्देश्य निर्धारित करते हैं। इसे लक्ष्य से जोड़कर सफलता प्राप्ति हेतु सतत प्रयत्नशील रहते हैं। ऐसे में किसी गुरु का वरदहस्त सिर पर हो तो मंजिल सुलभ हो जाती है। फिर लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में भटकन नहीं होती। एक सफल मार्गदर्शक लक्ष्य प्राप्ति हेतु समय-समय पर ढाल बनकर मदद करता है और शीघ्र ही व्यक्ति विजेता के रूप में उभरता है।

त्रेता युग में भगवान श्री कृष्ण पांडवो के मार्गदर्शक थे जिसके कारण उन्हें विजय मिली जबकि कौरवों के पास बड़े- बड़े योद्धा होने के बाद भी हार का सामना करना पड़ा क्योंकि वहाँ उनका मार्गदर्शन शकुनि की बदनियती कर रही थी।

एक और प्रसंग – अर्जुन को गुरु द्रोण का मार्गदर्शन व आशीर्वाद मिला तो वो एक विजेता के रूप में मान्य हुआ जबकि एकलव्य और कर्ण ज्यादा योग्य धनुर्धर होने के बाद भी बिना गुरुकृपा के वो स्थान नहीं पा सके।

हर व्यक्ति यही चाहता कि सबंधो को निभाने की जिम्मेदारी दूसरे की ही हो , कोई भी स्वयं पहल नहीं करता। इसका सबसे बड़ा कारण है कि जो हमारे लिए उपयोगी होता है उसके शब्द हमें मिश्री की भाँति लगते हैं जबकि जिससे कोई काम की उम्मीद न हो उसे मख्खी की तरह निकाल फेकने में एक पल भी नहीं लगाता।

खैर ये तो सदियों से चला आ रहा है इसके लिए बजाय किसी को दोष देने कहीं अधिक बेहतर है कि आप उपयोगी बनें तभी आपकी सार्थकता है आखिर घर में भी पड़ा हुआ अनुपयोगी समान स्टोर रूम की भेंट चढ़ जाता है और कुछ दिनों बाद कबाड़ के रूप में बेच दिया जाता है।

ऐसे न जाने कितने उदाहरण हैं जहाँ लक्ष्य प्राप्ति में मार्गदर्शक ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 186 ☆ बाल कविता – पंख लगाओ पेड़ सखा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 186 ☆

☆ बाल कविता – पंख लगाओ पेड़ सखा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

पेड़ सखा तुम उड़ते वैसे

       जैसे बादल हैं उड़ते ।

डाल तुम्हारी बैठ-बैठ कर

      सैर मजे से हम करते।।

 

बादल राजा सैर कर रहे

         धरती और गगन में नित।

कहीं बरसते, कहीं सरसते

             सबका करते बादल हित।।

 

खुशबू फैलाते दुनिया में

        सुन्दर – सुंदर फूलों की।

सब बच्चों को फल खिलवाते

       पैंग बढ़ाते झूलों की।।

 

बातें करते हर पंछी से

        मिल-जुलकर ही हम सारे।

भोर सदा ही हम जग जाते

             गीत सुनाते नित न्यारे।।

 

खेल-कूद ,योगासन करना

        सबको रोज पढ़ाते हम।

हिंदी, इंग्लिश सब कुछ पढ़कर

        नया ज्ञान बढ़वाते हम ।।

 

कभी न लड़ते आपस में हम

         सदा प्रेम से ही रहते।

हर मुश्किल का समाधान कर

         नदियों जैसा ही बहते।।

 

सुख जैसे तुम सबको देते

       नहीं किसी से लड़ते हो।

धूप, ताप तुम सब सह जाते

       आगे-आगे बढ़ते हो ।।

 

वैसे ही हम बढ़े चलें नित

     कभी न हिम्मत हारेंगे।

सबके ही हितकारी बनकर

      सबको ही पुचकारेंगे।।

 

पंख लगाओ पेड़ सखा तुम

      सैर करें पूरे जग की।

हँसी-खुशी से जीवन जीना

     मूल्यवान पूँजी सबकी।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 247 ☆ व्यंग्य – मीटिंग के लाभ ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय व्यंग्य – मीटिंग के लाभ )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 247 ☆

? व्यंग्य – मीटिंग के लाभ ?

मीटिंग से, कुछ भी गोपनीय नहीं रहता। कौन बली का बकरा बना। किसको फटकार पड़ी। किसकी प्रोग्रेस अच्छी है। किससे बड़े साहब खुश हैं, वगैरह वगैरह, सारी बाते, स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान के रूप में सरेआम होती हैं।

इन दिनों हर छोटे बड़े शहर में एक अदद सिटी चैनल भी टी.वी. मीडिया का अंग बन गया है। इन युवा पत्रकारों को भी टी.वी. कैमरा थामें किसी भी मीटिंग में गाहे बगाहें कवरेज करते देखा जा सकता है। इस प्रक्रिया से मीटिंग में हिस्सेदारी करते लोग, श्रेष्ठता का अनुभव करते हैं। वे अपने बीबी बच्चों को बता और जता सकते हैं, कि आखिर कितनी मशक्कत से वे नौकरी कर रहे हैं। प्रायः मीटिंग अटेंड करते रहने के और भी अनेकों लाभ हैं। आपकी जान पहचान अपने बाजू में बैठे अधिकारी से हो जाती है । आप उसके साथ मिलकर सुर में सुर मिला कर बड़े साहब की बुराई कर सकते हैं और इस तरह आपके संपर्क तथा लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ता रहता है। जब कभी आपको व्यक्तिगत व्यस्तता से कार्यालय से गायब रहना हो, आप आफिस में, या घर पर मीटिंग में जाने का सीधा बहाना बना सकते हैं । कोई आप पर जरा भी शक नहीं करता। जब मिनिट्स आफ मीटिंग सरक्यूलेट हों, और उसमें आपकी सहभागिता प्रदर्षित करता कोई कमेंट आपके नाम के साथ आ जावे तो उसे रेखांकित कर अपने मातहतों को बताना न भूलें, इससे आपके सबर्डिनेट्स का हौसला बढ़ता है, और वे नई ऊर्जा के साथ अगली मीटिंग के लिये लम्बी चौड़ी तालिका में, आंकड़ों की फसल बोने लगते हैं।

इन दिनों लैपटाप का जमाना है। जो युवा अधिकारी मीटिंग में अपने साथ पी पी टी प्रेजेन्टेशन ले जावें, वे बड़ी आसानी से सबके लिए आकर्षण और उत्सुकता का केन्द्र बनते हैं। रंग बिरंगे बार चाटर्स के जरिये, डिजीटल फोटो और नक्शो के माध्यम से आप प्रगति के आंकड़े सजा सकते हैं, और बास की शाबासी पा सकते हैं । काम हो या न हो, साफ-सफाई और प्रस्तुति के अंक पूरे के पूरे, पाने का नायाब नुस्खा मीटिंग ही है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #26 ☆ कविता – “हाल-ए-दिल…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 26 ☆

☆ कविता ☆ “हाल-ए-दिल…☆ श्री आशिष मुळे ☆

ए आसमां, क्या हाल है तेरा

क्या हाल-ए-दिल में

है जैसे खाली पड़ा

 

मेरा हाल तुम जैसा 

दिल में बसे घना अंधेरा

हाय! धड़कन में खिले सवेरा

 

जैसे है रोशन

भीतर जले मगर सूरज

बस हाल वही मेरा

 

या डूबे गहराई में

दिल समंदर का

हाल वहीं दिल-दर्या का

 

तलाश तुम्हे किस आवाज की

रोशनी कौनसी सूरज जला रही

किसकी याद में, दर्या की खामोशी

 

वहीं चांद मेरी वजह

जैसे तुम तीनों की परेशानी

उसकी पर्दा नशीं परछाई

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #181 ☆ संत परिसा भागवत… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 181 ☆ संत परिसा भागवत…!! ☆ श्री सुजित कदम ☆

संत परिसा लाभला

आद्य शिष्याचा रे मान

पंढरीत सांगतसे

कथा भागवत छान…! १

 

संत नामदेवांचा हा

पट्टशिष्य अनुयायी

भक्ती शक्ती गुरुभाव

पदोपदी याचे ठायीं…! २

 

ब्राम्हण्याचा अहंकार

नामदेवे निर्दाळीला

निजबोध करूनिया

संत परीस जाणीला…! ३

 

दिला वर रक्मिणीने

चित्त भजनात दंग

वैचारिक प्रगल्भता

रामकृष्ण सरि संग..! ४

 

वेद उपनिषदांचा

होता अभ्यास सखोल

संत श्रेष्ठ विचारांचा

अभंगात होता बोल…! ५

 

विविधांगी व्यक्तीमत्व

वेद विद्या पारंगत

स्तूती महात्म्य गौरव

सांगतसे भागवत….! ६

 

होता परीस अमोल

दैवी कृपे लाभलेला

नामदेव राजाईने

चंद्रभागे फेकलेला…! ७

 

संत परीसाचा हट्ट

नामदेवे पुरविला

ओंजळीत दगडांचा

रत्न साठा दडविला…! ८

 

लंका दर्शनाची कथा

केला दूर अहंकार

नामदेव परीसाचा

निरूपणी साक्षात्कार….! ९

 

नाना धर्म ग्रंथातून

शिष्योत्तम आकारिला

भक्तीभाव अध्यात्मात

ब्रह्म सुखे साकारीला..! १०

 

संत सकल गाथेत

आहे संवादी अभंग

नामदेव विचारांना

आहे परीसाचा ढंग..! ११

 

नामदेव कृतज्ञता

भावोत्कट चेतोहारी

संत परीसाचे काव्य

प्रासादिक  शब्द वारी..! १२

© श्री सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #209 – कविता – ☆ स्थितियों से समन्वय कर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके स्थितियों से समन्वय कर…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #209 ☆

☆ स्थितियों से समन्वय कर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

बन्द हो गया हूँ

अपने आप में

वैचारिक आवाजाही

निरन्तर चलने के बावजूद

रुक सा गया है

प्रवाह जीवन का,

संकल्प-विकल्प

हो गए प्राण-हीन

भाने लगी उदासीन चुप्पियाँ

एकान्त की

बेचैनियाँ मौन संवाद में व्यस्त,

सूखते जा रहा

उम्मीदों का सरोवर

आशा,विश्वास,उम्मीदें

 ये सब गहरे में कहीं

खो गये हैं

बीज हताशा के

मन में बो गये हैं

 बावजूद इन सब के

अब भी रोज-रोज

हर पल सुनाई देती है

साँसों में एक मधुर गूँज

कहती, धीरे-धीरे

स्थितियों से समन्वय कर

थोड़ा खुश-खुश दिख

परिवर्तित समय के साथ

जिंदगी को जीना सीख।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 35 ☆ बातों से रात नपे… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “बातों से रात नपे…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 35 ☆ बातों से रात नपे… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कच्ची मिट्टी का चूल्हा

गुरसी की आग तपे

डाल अलावों पर डेरा

बातों से रात नपे।

 

धुआँ- धुआँ सा

जग सारा यह

साँस-साँस छाया कुहरा

पात-पात पर

गिरी बूँद जो

लगता है पारा ठहरा

 

उपलों से भरमाती है

मजबूरी हाड़ कँपे।

 

कथरी ओढे़

बैठा जाड़ा

छान रहा है धूप ऩई

बरगद नीचे

बिछा अँधेरा

सूरज डूबा साँझ हुई

 

कुलवधुएँ काढे़ घूँघट

बूढा़ मन राम जपे।

 

मेड़ खड़ी है

लिए फसल का

खेतों में हरियल सोना

बिटिया ब्याही

वाट जोहती

कब होगा उसका गौना

 

ऋतु के सब अखबारों में

मौसम के हाल छपे।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गिरने से पहले कह उठे वो… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “गिरने से पहले कह उठे वो“)

✍ गिरने से पहले कह उठे वो… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

मकबूलियत तुझे जो सियासत में चाहिए।

अय्यारियाँ जमाने की सीरत में चाहिए

मतलब बरारियों का न शुबहात का मकाम

इखलास ओ एतिमाद मुहब्बत में चाहिए

काबू में अपनी ख्वाहिशों को रखना सीख तू

जेहनी सूकू जो तुझको हक़ीक़त में चाहिए

तेरा जमाल तेरा सरापा तरेरा बजूद

इसके सिवा न इश्क़ की सूरत में चाहिए

गिरने से पहले कह उठे वो जा किया मुआफ़

तासीर ऐसी अश्क़ ऐ निदामत में चाहिए

मैदान जंग में जो थे दुश्मन के तरफदार

हिस्सा उन्हें भी माले गनीमत में चाहिए

लड़ने का हौसला जो मुसीबत में दे खुदा

कुछ सब्र भी अरुण को मुसीबत में चाहिए

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-३ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-३ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(मनमोहिनी मॉलीन्नोन्ग, डिव्हाईन, डिजिटल डिटॉक्स (divine, digital detox)

प्रिय पाठकगण,

कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

पिछले भाग में हम मिले थे मौलिनोंग सुंदरी सैली से! मैंने उससे यथासंभव बातचीत की|

सैली से मिली जानकारी कुछ इस तरह थी:

‘गांव के लोग स्वच्छता के नियमों का सख्ती से पालन करते हैं| यूँ सोचिये कि स्वच्छता अभियान में भाग नहीं लिया तो क्या? गांव के नियमों का भंग करने के कारण गांवप्रमुख की ओर से अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है! उसने बताया, “मेरी दादी और माँ ने गांव के नियम पालने का पाठ मुझे बचपन से ही पढ़ाया है”| यहाँ के घर कैसे चलते हैं, इस प्रश्न पर उसने यूँ उत्तर दिया, “होम स्टे” अब आमदनी का अच्छा साधन है! अलावा इसके, शाल और जेन्सेम बनाना या बाहर से लेकर बिकना, बांस की आकर्षक वस्तुएं पर्यटकों को बेचना| यहाँ की प्रमुख फसलें हैं, चावल, सुपारी और अन्नानास, संतरा, लीची तथा केले ये फल! प्रत्येक स्त्री समृद्ध, खुदका घर, जमीन और बागबगीचे! परिवार खुद ही धान और फल निर्माण करता है|’ वहां एक बार (तथा कई बार) फल बेचनेवाली स्त्री ने ताज़ा अन्नानास काटकर हमें झाड़ के तने की परत में सर्व्ह किया, वह अप्रतिम जायका अब तक तक जुबान पर चढ़ा है! इसका कारण है, “जैविक खेती”! फलों को निर्यात करके भी पैसे कमाए जाते हैं, अलावा इसके, पर्यटक “बारो मास” रहते ही हैं! (परन्तु लॉकडाऊन में पर्यटन काफी कम था|)                          

इस गांव  में सबसे खूबसूरत चीज़ क्या है, यह सोचें तो वह है, यहाँ की हरितिमा, यह रंग यहाँ का स्थायी भाव समझिये! प्राकृतिक पेड़-पत्ते और फूलों से सुशोभित स्वच्छ रास्तों पर मन माफिक और जी भर चहल कदमी करें! हर घर के सामने रमणीय उपवन का एहसास हो, ऐसे विविध रंगों के पत्ते और सुमनों से सुसज्जित बागबगीचे, घरों में छोटे बड़े प्यारे बच्चे! उनके लिए पर्यटकों को टाटा करना और फोटो के लिए पोझ देना हमेशा का ही काम है! मित्रों, यह समूचा गांव ही फोटोजेनिक है, अगर कैमरा हो तो ये क्लिक करूँ या वो क्लिक करूँ यह सोचने की चीज़ है ही नहीं! परन्तु मैं यह सलाह अवश्य दूँगी कि पहले आँखों के कैमेरे से इस प्रकृति के रंगों की रंगपंचमी को जी भरकर देखें और बाद में निर्जीव कॅमेरे की ओर प्रस्थान करें! गांव के किनारोंको छूता हुआ एक जल प्रवाह है (नाला नहीं!) उसके किनारों पर टहलने का आनंद कुछ और ही है! पानी में खिलवाड़ करें, परन्तु अनापशनाप खाकर कहीं भी कचरा फेंका तो? मुझे पूरा विश्वास है कि, बस अभी अभी सुस्नात सौंदर्यवतीके समान प्रतीत हो रहे इस रमणीय स्थान का अनुभव लेने के पश्चात् आप तिल के जितना भी कचरा फेकेंगे नहीं!

यहाँ एक balancing rock” यह प्राकृतिक चमत्कार है, तस्वीर तो बनती है, ऐसा पाषाण! ट्री हाउस, अर्थात पेड़ के ऊपर बना घर, स्थानीय लोगों द्वारा उपलब्ध सामग्री से निर्मित, टिकट निकाओ और देखो, बांस से बने घुमावदार घनचक्कर के ऊपर जाते चक्कर ख़त्म होते पेड़ के ऊपर बने घर में जाकर हम कितने ऊपर आ पहुंचे हैं इसका एहसास होता है! नीचे की और घर की तस्वीरें तो बनती ही हैं जनाब! शहरों में भी घरों के लिए जगह न हो तो यह उपाय विचारणीय है, परन्तु, मित्रों क्या शहर में ऐसे पेड़ हैं? यहाँ तीन चर्च हैं, उसमें से एक है “चर्च ऑफ द एपिफॅनी”, सुंदर रचना और निर्माण, वैसे ही पेड़ पौधे और पुष्पों की बहार से रंगीनियां बिखेरता संपूर्ण स्वच्छ वातावरण| अंदर से देखने का अवसर नहीं मिला क्यों कि, चर्च निश्चित दिनों में और निश्चित समय पर खुलता है! 

अब यहाँ की सर्वत्र देखी जानेवाली आदत बताती हूँ, हमेशा पान खाना, वह यहाँ के लोगों के जैसा सादा, पान के टुकड़े, हलकासा चूना और पानी में भिगोकर नरम किये हुए सुपारी के बड़े टुकड़े! फलों और सब्जियों की दुकानों में सहज उपलब्ध! वह खाकर (चबाकर) यहां की सुन्दर नवयुवतियों के होंठ सदैव लाल रहते हैं! किसी भी लिपस्टिक के शेड के परे मनभावन प्राकृतिक लाल रंग! यहाँ तक कि आधुनिक स्कूल कॉलेजों की लड़कियां भी इसकी अपवाद नहीं थीं! पुरुष भी पान खानेवाले, लेकिन इसमें आश्चर्य की क्या बात है? सचमुच का आश्चर्य तो अब आगे है! मित्रों, एक चीज जो मैंने जान- बूझकर, बिलकुल मायक्रोस्कोपिक नजर से देखी, कहीं पान की पिचकारियां नज़र आ रही हैं? ! परन्तु यह गांव ठहरा स्वच्छता का पुजारी! फिर यहाँ पिचकारियां कैसे होंगी? इसका मुझे सचमुच ही अचरज भरा आनंद हुआ! यह सब कुछ आदत के कारण गांव वालों के रगरग में समाया है!

यहाँ कब पर्यटन करना चाहिए? अगर सुरक्षित तरीकेसे घूमना है और ट्रेकिंग करना है तो अक्टूबर महीना उत्तम है, परन्तु पेड़पौधों की हरियाली थोड़ी कम और निर्झरों के जलभंडार कम होंगे| अगर हरीतिमा के रंगों से रंगे रंगीन वनक्षेत्र और जलप्रपातों से लबालब भरा मेघालय देखना हो तो मई से जुलाई ये महीने सर्वोत्तम हैं ! परन्तु… सावधान! घूमते समय और ट्रेकिंग करते समय बहुत सावधानी बरतना आवश्यक है! वैसे ही आकाशीय बिजली की अधिकतम व्याप्ति के कारण जमीं की बिजली का बारम्बार अदृश्य होना, यह अनुभव हमने कई बार लिया!

मित्रों, अगर आप को टीव्ही, इंटरनेट, व्हाट्सअँप और चॅट की आदत है (मुझे है), तो यहाँ आकर वह भूलनी होगी! हम जब इस गांव में थे, तब ९०% समय गांव की बिजली गांव चली गई थी! एकल  सोलर दिये को छोड़ शेष दिये नहीं, गिझर नहीं, नेटवर्क नहीं, सैली के घर में टीव्ही नहीं!  पहले मुझे लगा, अब जियेंगे कैसे? परन्तु यह अनुभूति अनूठी ही थी! प्रकृति की गोद में अनुभव की हुई एक अद्भुत अविस्मरणीय और अनकही अनुभूती! मेरे सौभाग्य से प्राप्त डिव्हाईन, डिजिटल डिटॉक्स!

प्रिय पाठकगण, मॉलीन्नोन्ग का महिमा-गीत अभी शेष है, और मेरी उर्वरित मेघालय यात्रा में भी आप को संग ले चलूँगी, अगले भागों में!!!

तब तक मेघालय के मेहमानों, इंतज़ार और अभी, और अभी, और अभी…….!

तो, बस अभी के लिए खुबलेई! (khublei यानी खासी भाषा में खास धन्यवाद!) 

क्रमशः -3 

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

८ जून २०२२     

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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