(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆.आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – गये चाटने पत्तल जूठी…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 29 – राजनीति का अधोपतन… ☆ आचार्य भगवत दुबे
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है आपके प्रिय अनुज स्व विनोद शुक्ल जी की स्मृति में आपकी एक भावप्रवण रचना “आँखें अश्रु बहा रहीं…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है स्टार्ट-अप प्रारम्भ करने के लिए कुछ विशेष पुस्तकों पर चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 152 ☆
☆ स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं तो… ☆ विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं तो ये पुस्तकें प्रारंभिक जानकारी देंगी
1. स्टार्टअप प्लेबुक – इस किताब में सबसे तेज़ी के साथ बढ़ने वाले स्टार्टअप्स के फ़ाउंडर्स ने अपने राज़ साझा किए हैं, जिसे पुस्तक में संजोया है डेविड किडर ने।
2. द फ़ोर आवर वर्कवीक, तिमोती फ़ेरिस की यह किताब बताती है कि किस तरह से आप आय के स्रोत तैयार कर सकते हैं और उन्हें ऑटोमेट कर सकते हैं ताकि आप पूरी तरह से अपने पैशन को अंजाम देने पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
इस किताब के लेखक तिमोती मानते हैं कि ऑन्त्रप्रन्योरशिप के ज़रिए आप अपने जीवन पर नियंत्रण हासिल कर सकते हैं और एक हफ़्ते में 40 घंटे से भी कम समय तक काम करके आप अपने जीवन का पूरा आनंद उठा सकते हैं। यह किताब आपको बताती है कि किस तरह से आप परंपरागत 9 से 5 बजे तक की नौकरी से मुक्ति पाकर, अन्य रोचक काम कर सकते हैं ।
3. जेसन फ़्रायड और डेविड हेनीमियर हैनसन की पुस्तक ‘रीवर्क’ आपको अपने बिज़नेस में सफलता पाने का बेहतर, तेज़ और आसान रास्ता सुझाती है।
स्टार्ट अप फाउंडर्स को इस किताब को पढ़कर जानना चाहिए कि किस तरह की योजनाएं, उनके लिए नुकसानदायक हो सकती हैं; क्यों हमें बाहरी निवेशकों की ज़रूरत नहीं; और क्यों आपको किसी भी क्षेत्र में काम करने से पहले उसमें मौजूद प्रतियोगियों के बारे में बहुत ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए।
4.एरिक राइज़ की द लीन स्टार्टअप किताब में एरिक राइज़ ने इनोवेशन ईको सिस्टम से जुड़े एक महत्वपूर्ण तथ्य का ज़िक्र किया है कि ज़्यादातर स्टार्टअप्स असफल क्यों हो जाते हैं। किताब के लेखक का मानना है कि असफल होने वाले इन स्टार्टअप्स में से ज़्यादातर सफल हो सकते थे और किताब में उन्होंने इसके तरीक़े बताए हैं।
5. जिम कॉनिल्स की “गुड टू ग्रेटः वाय सम कंपनीज़ मेक द लीप ऐंड अदर्स डोन्ट” 2001 में इस किताब को लॉन्च किया गया था। इस किताब में अर्श से फ़र्श तक पहुंचने वाली कंपनियों की ख़ासियतों के बारे में चर्चा की गई है। किताब में बताया गया है कि आप किस तरह से, सफलता के एक स्तर पर मिलने वाली तारीफ़ों के दौरान अपने आप को शांत रखें और अपने बड़े लक्ष्य से ध्यान को भटकने न दें और अपना काम जारी रखें।
6. नाथन फ़र और पॉल ऐहल्सट्रॉम की “नेल इन देन स्केल इटः द ऑन्त्रप्रन्योर्स गाइड टू क्रिएटिंग ऐंड मैनेजिंग ब्रेक आईओएथ्रू इनोवेशन”
यह किताब संघर्ष के दौर से गुज़र रहे स्टार्टअप्स को सफलता से जुड़े कई अहम राज़ बताती है। इस किताब में लेखक ‘नेल इट देन स्केल इट’ की ख़ास विधि के बारे में बताता है, जिसमें आपको बतौर ऑन्त्रप्रन्योर सफल व्यवसाइयों के काम करने के तरीक़े और सिद्धान्त पहचानने और समझने होते हैं।
7. क्रिस गुलीबियू की “द 100 डॉलर स्टार्टअपः रीइनवेन्ट द वे यू मेक अ लिविंग, डू वॉट यू लव ऐंड क्रिएट अ न्यू फ़्यूचर “
इस किताब में क्रिस गुलीबियू ने 1500 से ज़्यादा उन लोगों के साथ अपनी बातचीत को प्रस्तुत किया है, जिन्होंने 100 डॉलर या इससे भी कम पैसों के साथ अपने बिज़नेस की शुरुआत की थी और फिर सफलता हासिल की और जिनका मानना है कि सफल होने के लिए आपके पास करोड़ों रुपए की फ़ंडिंग हो ऐसा ज़रूरी नहीं है।
8. बिज़ स्टोन की “थिंग्स अ लिटिल बर्ड टोल्ड मीः कन्फ़ेशन्स ऑफ़ द क्रिएटिव माइन्ड”
ट्विटर के को-फ़ाउंडर बिज़ स्टोन ने इस किताब में बताया कि क्रिएटिविटी की क्या ताक़त होती है और इसे कैसे भुनाया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने अपनी ज़िंदगी और करियर से जुड़ीं कई रोचक समझने वाली बातों का ज़िक्र किया है।
9. ऐलिस स्रोडर की “द स्नोबॉलः वॉरेन बफ़े ऐंड द बिज़नेस ऑफ़ लाइफ़ “
यह किताब दुनिया के बहुचर्चित अरबपति उद्योपतियों में से एक वॉरेन बफ़े के काम करने और सोचने के तरीक़ों के बारे में जानकारी देती है। वॉरेन बफ़े ने लिखित रूप से या मीडिया के सामने मौखिक रूप से कभी अपने अनुभवों को बहुत अधिक साझा नहीं किया, इसलिए आप इस किताब से उनके बारे में जान सकते हैं।
10. जेसिका लिविंग्स्टन की “फ़ाउंडर्स ऐट वर्कः स्टोरीज़ ऑफ़ स्टार्टअप्स अर्ली डेज़”
यह किताब टेक कंपनियों के फ़ाउंडर्स जैसे कि स्टीव वोज़नियक (ऐपल), कैटरीना फ़ेक (फ़्लिकर), मिच कैपर (लोटस), मैक्स लेवचिन (पे पाल) और सबीर भाटिया (हॉटमेल) आदि के प्रोफ़ाइल्स का संकलन है।
इस किताब की लेखिका जेसिका लिविंग्स्टन वाय कॉम्बिनेटर में फ़ाउंडिंग पार्टनर हैं। यह किताब आपको बताएगी किस तरह से इन बुद्धिजीवियों ने अपने विनिंग आइडिया पर काम किया और इसे सफल बनाने के लिए किस तरह की रणनीति अपनाई।
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है टेलीपेथी पर आधारित सात्विक स्नेह से परिपूर्ण एक लघुकथा “कोरा कागज ”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 172 ☆
☆ लघुकथा – 📋कोरा कागज 📋☆
आजकल मोबाइल के इस आधुनिक युग में लाईक, डिलीट, स्टार, ब्लॉक, शेयर,ओहह यह सब करते-करते मनुष्य भावपूर्ण मन की बातें पत्र लेखन चिट्ठियों को भूल ही गया है।
पत्र सहेज कर रखना, उसे फिर से दोबारा निकाल कर पढ़ना और फिर मन लगाकर कई बार पढ़ना। चाहे वह किसी प्रकार की बातें क्यों ना हो। जाने अनजाने मन को छू जाती थीं। कोरे कागज की बातें।
माया अपने पति सुधीर के साथ रहती थी। यूं तो दोनों का प्रेम विवाह हुआ था। शादी के पहले की सारी चिट्ठियाँ माया और सुधीर ने बहुत ही संभाल, सहेज कर रखा था।
विवाह के बाद सब कुछ अच्छा चल रहा था। अचानक सुधीर का तबादला किसी बड़े शहर में हो गया।
कहते हैं नारी मन बड़ा कांचा होता है। माया को उसके जाने और अकेले रहने में कई प्रकार की बातें सता रही थी। जो भी है सुधीर को जाना तो था ही। अपना सामान समेट वह शहर की ओर बढ़ चला।
माया अपने कामों में लग गई। एक सप्ताह तक कोई खबर नहीं आई। धीरे-धीरे समय बीत गया। अब तो मोबाइल था। फिर भी सुधीर बस हाँ हूं कह… कर काम की व्यस्तता बता बात ही नहीं करता था। माया इन सब बातों से आहत होने लगी।
उसे लगा सुधीर कहीं किसी ऑफिस में सुंदर महिला के साथ – – – – – “छी छी, ये मैं क्या सोचने लगी।” उसने झट कॉपी पेन निकाला और पत्र लिखने बैठ गई।
लिखने को तो वह बहुत सारी बातें लिखना चाह रही थी। परंतु केवल यही लिख सकी – – – ‘सुधीर तुम्हारे विश्वास और तुम्हारे भरोसे में जी रही हूं। पत्र लिखकर पोस्ट करके जैसे ही घर के दरवाजे पर ताला खोलने लगी। सामने पोस्टमेन खड़ा दिखाई दिया — “मेम साहब आपकी चिट्ठी।” आश्चर्यचकित माया जल्दी-जल्दी पत्र खोल पढ़ने लगी… सुधीर ने लिखा था.. ‘माया तुमसे दूर आने पर तुम्हारी अहमियत और भी ज्यादा सताने लगी है। मुझ पर विश्वास करना।
दुनिया की नजरों से नहीं मन की भावनाओं से देखना मैं सदैव तुम्हारे साथ खड़ा हूं। जल्दी आता हूं।’ कोरे कागज पर लिखी यह बातें..। माया पास पड़ी कुर्सी पर बैठ, अश्रुधार बहने लगी ।तभी मोबाइल की घंटी बजी उठी..
“हेलो” माया ने देखा पतिदेव सुधीर ने ही कॉल था। सुधीर ने कहा… “ज्यादा रोना नहीं जैसा तुम्हारा मन है वैसा ही यह कोरा कागज है। ठीक वैसे ही मैं भी उस पर लिखे अक्षरों का भाव हूँ। हम कभी अलग नहीं हो सकते। मन के कोरे कागज पर हम दोनों का नाम लिखा है। बस बहुत जल्दी आ रहा हूं। तुम्हें लिवा ले जाऊंगा।”
माया सुनते जा रही थी तुम मेरी कोरी कल्पना हो। रंग भरना और सहेजना, उसमें हंसना- मुस्कराना तुम्ही से सीखा है। बस विश्वास और भरोसा करना इस कोरे कागज की तरह। माया सामने लगे आईने पर अपनी सूरत देख मुस्करा उठी।
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “SHARK TANK” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 60 ☆ देश-परदेश – SHARK TANK ☆ श्री राकेश कुमार ☆
एक वर्ष पूर्व जब इस कार्यक्रम के आने की चर्चा हुई, तो आरंभ में हमें ऐसा प्रतीत हुआ, इसमें शायद शार्क (मछली) को घर में रखे जाने वाले फिश एक्वेरियम (कांच का बड़ा डिब्बा नुमा) में रखने से संबंधित जानकारी इत्यादि पर चर्चा होगी। जब कार्यक्रम का प्रथम एपिसोड प्रसारित हुआ तब पता चला ये तो हिंदी पुस्तक “व्यापार से धन कमाने के 100 से अधिक आसान तरीके” पर आधारित कार्यक्रम है।
बचपन में हमने इस प्रकार की अनेक पुस्तकें VPP से मंगवाई थी। वो तो बाद में बच्चों ने बताया ये तो अमेरिका में प्रसारित होने वाले कार्यक्रम का हिंदी अनुवाद है। वैसे कौन बनेगा करोड़पति भी तो विदेशी कार्यक्रम की तर्ज पर बना हुआ है।
कार्यक्रम के संचालकगण देश के युवा पीढ़ी से हैं, जो आज सफलतम व्यापारी/उद्योगपति बन कर अपने झंडे गाड़ चुके हैं। इनमें से अधिकतर उस जाति से आते हैं, जो कि सदियों से व्यापार करने में अग्रणी रहते हैं। ऐसा कहना अतिश्योक्ति होगी की सिर्फ एक विशेष जाति के लोग ही सफल व्यापारी बन सकते हैं, इस बाबत, हमारे देश में बहुत सारे अपवाद भी हैं।
सयाने लोग कहा करते थे, परिवार या पिता के व्यापार को ही पुत्र सफलता पूर्वक कर सकता है। समय के चक्र ने इस मिथ्या को काफी हद तक परिवर्तित भी कर दिया है।
जब पंद्रह वर्ष पूर्व हमारे बैंक ने बीमा से संबंधित कार्य करना आरंभ किया तो मुझे क्षेत्रीय कार्यालय में कार्यरत रहते हुए शाखा स्तर पर “बीमा विक्रय” के लिए कर्मचारियों का प्रोत्साहित करने का कार्य दिया गया था। एक वरिष्ठ अधिकारी ने ज्ञान देते हुए एक विशेष जाति के लोगों पर फोकस करने की बात कही थी। जो बाद में सही साबित हुई थी।
कहा जाता है, कुछ गुण वंशानुगत भी प्राप्त होते हैं। हमारे देश के बड़े और सफलतम उद्योगपति बहुतायत में गुजराती, पारसी और राजस्थानी समुदाय से आते हैं। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि देश के अन्य भागों से भी कुछ सफल उद्योगपति आए हैं।
हमारे जैसे वरिष्ठ जन भी इस कार्यक्रम को देखकर ये कह सकते हैं, अन्य सास बहू पर आधारित कार्यक्रम से तो कहीं बेहतर श्रेणी का है।
कार्यक्रम भले ही विदेश की नकल है, पर अक्ल तो देसी ही काम आयेगी।
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत –और अब क्या चाहिये…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 165 – गीत – और अब क्या चाहिये…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “शायद आज पूर्ण हो पाये...”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 164 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ “शायद आज पूर्ण हो पाये...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक व्यंग्य – “चुनावी अखाड़े का एक दिन…”।)
☆ व्यंग्य – “चुनावी अखाड़े का एक दिन…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
पेट में भूख कुलबुला रही है और चुनाव परिणाम की चिंता में प्यास से गला सूख रहा है, मोटरसाइकिल रोकी , सड़क किनारे एक ढाबे में रुके, साधारण सा ढाबा था, पर भीड़ थी, क्योंकि टीवी में चुनाव परिणाम आने वाले थे।
इस ढाबे का मालिक मामा उसूलों वाला है, हर बात में पटर पटर करता है , चुनाव के छै महीने पहले थाली की कटोरी में पूरी सब्जी भर देता है, उपदेश देने में होशियार है,पर खुद अंदर से लोभी है।
भोजन मंगाया तो पाया थाली में पूरी भरी दो कटोरियों में आलू मिली सब्जियां और दो कटोरी में पानी वाली दाल…… हर कटोरी में सब्जी के साथ आलू। हो सकता है कुछ सब्जी कल की बासी भी मिला दी हो। हर राजनैतिक दल के पास अलग अलग जायके और मसाले वाली सब्जी होती है।
सामने टी वी लगा है और चुनाव परिणाम इसी में आने वाले हैं।टी वी चैनल वाला ऐंकर बार बार थोड़ी देर में बम्फर….. बम्फर… और कांटे की टक्कर… जरूर कह रहा है पर कोई बढ़त – अढ़त नहीं दिखा रहा है,बार बार कहता है ‘अभी कहीं जाइएगा नहीं …. बस हम तुरंत खास खबर लेकर आ रहे हैं’…
ऐसा कहकर लाखों के विज्ञापन दिखा रहा है। ये टी वी चैनल वाले ‘आज तक’ कहके खबरें दिखाते हैं और विकास और विश्वास के झटके को ‘दस तक’ ले जाते हैं फिर तीन तेरह का चक्कर चलाकर टाइम पास करते हैं और रोज धमकी देते हैं कि
‘आप अपना बहुत ख्याल रखिएगा’
टीवी से धमकी भी मिल रही है और हम थाली का खाना खाए जा रहे हैं। टी वी चैनल में चुनाव परिणाम आने के कारण विज्ञापन के रेट आसमान छू रहे हैं फिर भी ये बाबा चैन नहीं ले रहा है खाना चालू करने के बाद अभी तक सौ बार टी वी में दौड़ दौड़ के ऊधम मचा चुका है।
टी वी चैनल वाले भी अजीब हैं, रात को खाना खाने बैठो तो बार बार ‘दस्त तक – दस्त तक’ करने लगते हैं। ब्रेकिंग न्यूज की पट्टी चल रही है,
“बस थोड़ा देर में चुनावी रुझान सिर्फ इसी चैनल पर” आगे लिखा आ रहा है “सबका साथ सबका विकास का रास्ता जीत से चालू होता है ” बाजू वाला कह रहा है कि इस बार आदिवासियों ने जिनसे पैसा लिया है उनको वोट नहीं दिया।
थाली की कटोरी में सब्जी खतम हो गई है, कटोरी चिल्ला रही है, कोई ध्यान नहीं दे रहा है, लटके झटके के साथ नेपथ्य में ठहाके लग रहे है। ढाबे के ग्राहक चुनावी रुझान देखने तड़फ रहे हैं। गर्म रोटी देते हुए बैरा बड़बड़ा रहा है, लाड़ली बहना का डंका बजा रहे हैं और लाड़ले भैया को अंगूठा दिखा रहे हैं।
थाली की कटोरी में अब पानी वाली दाल भर बची है……. टी वी विज्ञापनों में फटी जीन्स से झांकते अंग दिख रहे हैं। अचानक टी वी वाले का चेहरा प्रगट होता है कह रहा है – चुनावी परिणाम थोड़ी देर में……… जब तक रुझान के पहले कुछ खास लोगों की चर्चा देखिये…….
टी वी में एक बिका हुआ चर्चित पत्रकार चुनाव के बारे में बता रहा है – इस बार के क्रांतिकारी चुनाव में 100 प्रतिशत से ज्यादा पारदर्शिता रही है, जो सांसद, मंत्री अपने को तीसमारखां समझते थे उनको भी विधायकी की लाइन में लगवा दिया गया।
चुनाव की पारदर्शिता के बारे में जनता को जानने का अधिकार है हालांकि ये पब्लिक है ये सब जानती है।
ये देखो इनकी बदमाशियां पहले खूब विज्ञापन चलाया अब टाइमपास करने के लिए एंकर एक महिला को पकड़ लाए।
महिला मुस्कुराते हुए बोली – यह देश हमेशा से उसूलों का देश नहीं रहा… असल में यह तो था भले मानुषों का देश, लेकिन फंस गया नेताओं के चक्कर में। नेता होशियार तो होते ही हैं मौके – बे – मौके होशियारी दिखाते भी हैं और चुनाव के समय होशियारी दिखाने का अच्छा मौका मिल जाता है। एंकर बीच में टोकने लगा तो महिला बोली – देखिए मुझे पूरा बोलने नहीं दिया जा रहा है……
सब चिल्ल पों कर रहे हैं कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा है……
झड़पें बढ़ रहीं हैं अरे…. अरे ये टोपीधारी……. चलिए अच्छा टोपी वालों की बात सुन लीजिए…. हां… हां.. बोलिए…… देखिए रामचन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलियुग आयेगा जब चुनाव जिताने का ठेका राम जी के पास हो जाएगा।
घोर कलि-काल है, मूल्यों का पतन हो रहा है झटकेबाजी चरम सीमा पर है,
थाली का खाना खतम हो गया है,भूख मिटी नहीं है, रुझान आने चालू हो गए हैं, ढाबे में भीड़ बढ़ गई है ,उधर गाय भूखी खड़ी है और सबको चुनाव परिणाम देखने की पड़ी है।
गजब हैं ये चैनल वाले एक जगह का रुझान दिखाते हैं फिर मंदिर दिखाने लगते हैं, सब टकटकी निगाहों से टीवी देख रहे हैं और भूखी गाय की तरफ किसी का ध्यान नहीं है।
टी वी देखने वाले परेशान हो गए हैं ज्यादा चिल्ल – पों देखते हुए फिर से विज्ञापन चला दिया गया है। इधर भूखी गैया ढाबे में घुसकर ऊधम मचाने लगी है सब लोग इधर-उधर भाग रहे हैं। ढाबे वाले ने टी वी पर सुना कि ……. अभी कहीं जाईयेगा नहीं….. थोड़ी देर में चुनावी परिणाम आने वाले हैं फिर नया ऐंकर प्रगट हुआ और ढाबे की लाईट गोल हो गई…