(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक कुल 148 मौलिक कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत।
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता “प्रत्यासी मीमांसा…”।)
☆ तन्मय साहित्य #202 ☆
☆ प्रत्यासी मीमांसा…☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “कवि कुछ ऐसा लिख…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 27 ☆ कवि कुछ ऐसा लिख… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
(वरिष्ठ साहित्यकारश्री अरुण कुमार दुबे जी,उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना ” झिलमिला लो जरा देर तुम जुगनुओं…“)
झिलमिला लो जरा देर तुम जुगनुओं… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आलेखों की एक नवीन शृंखला “प्रमोशन…“ की अगली कड़ी। )
☆ आलेख # 86 – प्रमोशन… भाग –4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
जब शाखा को पता चला कि प्रमोशन टेस्ट होने वाले हैं तो पहली जिज्ञासा कट ऑफ डेट जानने की हुई. जो इसके पात्र बने वो तनावग्रस्त हुये और जो कट ऑफ डेट से कटते कटते बचे वो प्रफुल्लित हुये क्योंकि उन्हें मौका मिला प्रमोशन के पात्रों को जज करने का, तानेबाजी का और ये कहने का, ‘कि हमको क्या, हमें तो वैसे भी नहीं लेना था’. हम तो प्रमोशन लेकर भी छोड़ने वालों में से हैं, हालांकि बैंकों में ऐसा प्रावधान होता नहीं है. जो कट ऑफ डेट से वाघा /अटारी बार्डर जैसे चूक गये उन्होंने इसे प्रबंधन की साजिश समझा और गुस्से में दो चार दिन अपने रोजाना के कोटे और गति से कम काम किया. उनका नजरिया यह था कि अब तो जो अफसर बनने वाले हैं, उनको ही ज्यादा काम करने और घर लेट जाने की आदत डाल लेना चाहिए. घर वाले भी जल्दी समझ जायेंगे.
उस जमाने में न तो रेडीमेड हेंडनोट्स होते थे न ही हर ब्रांच में अपना एक्सट्रा टाइम देकर कोचिंग देने वाले लोकोपकारी युवा अधिकारी. प्रमोशन पाने का सारा दारोमदार “प्रेक्टिस एंड लॉ ऑफ बैंकिंग” और नेवर लेटेस्ट बैंकिंग (एवर लेटेस्ट बैंकिंग :असली नाम) पर ही आता. प्रत्याशी बैंक आने के पहले पढ़ते, बैंक में समय पाकर पढ़ते और फिर बैंक से यथासंभव जल्दी घर पहुंच कर पढ़ते. जब पड़ोसी : विशेष रूप से पड़ोसने तहकीकात करतीं और अपने पतियों पर देर से घर आने पर शक की सुइयां चुभाती तो इन्हीं प्रत्याशियों की भार्याएँ प्रतिस्पर्धात्मक गर्व से सूचित करतीं कि हमारे “इनका” प्रमोशन होने वाला है. पड़ोसने जलभुन कर बोलतीं “बहुत देर से हो रहा है” हमारे जेठ तो तीन साल में ही प्रमोशन पा लिये थे. फिर जवाब भी टक्कर का मिलता कि “क्यों, क्या तीनों पार्ट वाले हैं क्या. बैंक में भी वो जो इस प्रमोशन टेस्ट के पात्र नहीं थे, सिक्योरिटी गार्ड्स और संदेशवाहकों के बीच बैठकर हांकते “दिन रात पढ़ने की जरूरत नहीं है, ये तो हम अपने नॉलेज के आधार पर बिना पढ़े ही निकाल सकते हैं. जिन्हें टेस्ट देना होता वो इन सबको इग्नोर कर अपने जैसे ही साथियों से और नवपदोन्नत अधिकारियों से प्रेरणा और मार्गदर्शन लेते. जो आज पढ़ा उस पर डिस्कशन होता बैंक में, रिक्रिएशन हॉल में, चाय और पान की टपरे नुमा शॉप्स में जहाँ मौका मिलता वहाँ डिस्कशन होता. कभी कभी डिस्कशन का ओवरडोज इतना हो जाता कि चाय के टपरे वाला भी “निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट “समझने और समझाने लगता और नॉन बैंकिंग कस्टमर्स पर इस एक्ट की टर्मिनालाजी का उपयोग कर धौंस जमाने लगता था.
प्रमोशन की तैयारियों में परिवार का एक्सट्रा सहयोग मिलता, बच्चे फरमाइशों से तंग नहीं करते, पढ़ते वक्त चाय /काफी बिना मांगे मिलती, डेली शॉपिंग से भी मुक्ति मिल जाती और पढ़ने वाला इस दहशत में सीरियसली पढ़ता कि पास नहीं हुआ तो ये नाकामी, कॉलोनी में पत्नी की बनी बनाई रेप्यूटेशन मिट्टी में मिला देगी. फिर तो ये सारी इंपार्टेंस और सुविधाओं का मिलना बंद हो जायेगा और काबलियत पर “शक करते ताने” जीना मुश्किल कर देंगे.
जिन्हें किसी भी तरह से प्रमोशनटेस्ट पास करना है वे शाखाप्रबंधक की खुशियों का बहुत ख्याल रखते और अकेले में पूछते भी कि सर हमारा तो हो जायेगा ना. जो समझदार प्रबंधक होते वो शरारत से यही कहते “अरे तुम्हारा नहीं होगा तो फिर किसका होगा. सारी ब्रांच की उम्मीद तुम पर टिकी हैं. पूछने वाला “इस उम्मीद टिके होने” के नाम पर और भी ज्यादा तनावग्रस्त हो जाता और सीधे होटल पहुंचकर सिगरेट के कश के साथ स्पेशल ऑर्डर पर बनी कॉफी पीता. होटल के मालिक की पारखी नजरें सब समझ जातीं और फिर पेमेंट के समय वो भी आश्वस्त करता “अरे साहब वैसे तो हमारे होटल में कई आते हैं पर आपकी और आपकी काबलियत पर तो हमारी 100% गारंटी है. राहत महसूस कर और छुट्टे जानबूझकर वापस लेना भूलकर मिस्टर 100% बैंक आकर बूस्ट की गई गति से काम करता हालांकि उसका मन तो किताबों के किसी पेज पर ही अटका रहता. उसे यह तो मालूम था ही कि रिटनटेस्ट तो पढ़कर ही पास होना है और मेरिट के अनुसार न्यूनतम मार्क्स यहाँ भी पाने पड़ते हैं.
इस श्रंखला में कपिलदेव, मोहिंदर अमरनाथ और गावस्कर के अलावा किसी भी वास्तविक या काल्पनिक व्यक्ति/स्थान के नाम का प्रयोग नहीं किया गया है. कोशिश आगे भी जारी रहने का प्रयास रहेगा.
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆.आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – फटी सड़क की छाती…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 23 – फटी सड़क की छाती… ☆ आचार्य भगवत दुबे