हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #19 ☆ कविता – “राह…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 19 ☆

☆ कविता ☆ “राह…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

ना मैं इनका हूँ 

ना मैं उनका हूँ 

जिनमें जितनी अच्छाई

उतना मैं उनका हूँ 

 

किसी की चाहत

किसी का करार है

किसी का दर्द भी

अच्छाई की निशानी है

 

सदियों से बना रहें

कहीं सूंखी कहीं गीली

जिसकी सड़क जहां पक्की

राह मेरी वहीं है

 

शिकायतों के मुकाम हैं

मगर समय बहुत कम है

राहें बदलना समझदारी है

जब मंज़िल अपनी तय है

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 179 ☆ बाल कविता – माँ का चंदा राजदुलारा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 179 ☆

बाल कविता – माँ का चंदा राजदुलारा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

 खिल- खिल हँसता बालक प्यारा

       कहाँ गरीबी से वह हारा।।

 

माँ का चंदा राजदुलारा।

       जीवन का बस यही सहारा।।

 

ये निश्छल आँखों का तारा।

      नजर बचाए टीका कारा।।

 

माँ बेटा दोनों ही हैं खुश ।

       माता के आँचल का है कुश।।

 

कोरोना से जंग न हारे।

       जीवन जीते श्रमिक बिचारे।।

 

हर मुश्किल में खुश जो रहते।

      वे ही नदियों – से हैं बहते ।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #176 ☆ संत सेना महाराज… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 176 ☆ संत सेना महाराज…☆ श्री सुजित कदम ☆

 उच्च विचारसरणी

संत सेना महाराज

वैशाखात द्वितीयेला

जन्मा आले संतराज…! १

 

न्हावी समाजाचे संत

भक्ती रस अभंगात

व्यवसाय करताना

दंग सदा पुजनात…! २

 

बुद्धी चौकस चंचल

समतेचा पुरस्कार

हिंदी मराठी भाषेत

केल्या रचना साकार….! ३

 

महाराष्ट्र पंजाबात

दोहे अभंग रचले

विठ्ठलाच्या चिंतनात

सारे आयुष्य वेचले…! ४

 

हजामत करताना

मुखी विठ्ठलाचे नाम

वारकरी चळवळ

भक्तीभाव निजधाम…! ५

 

हिंदी मराठी काव्याचा

केला मुक्त अंगीकार

संकीर्तन प्रवचनी

केला अध्यात्म प्रसार…! ६

 

नाम पर उपदेश

पाखंड्यांचे निर्दालन

गुरू ग्रंथ साहेबात

दोहा अभंग लेखन…! ७

 

सुख वाटतसे जीवा

जाता पंढरीसी कोणी

साध्या सोप्या रचनेत

शब्द धन वाही गोणी…! ८

 

दाढी करताना दिसेल

राजालाही भगवंत

संत सेना महाराज

प्रादेशिक कलावंत…! ९

 

दीर्घ काळ पंढरीत

सेना न्हावी करी सेवा

हरिभक्ती पारायण

दिला अभंगांचा ठेवा…! १०

 

श्रावणाची द्वादशी ही

पुण्यतिथी महोत्सव

संत सेना महाराज

करी  अभंग उत्सव…! ११

© श्री सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ बकुळ ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक  

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? बकुळ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

रंग पांढरा पिवळसर

तारकाकृती पाकळी, 

जन्मजात हृदयी छिद्र 

सडा पडे सांजवेळी !

वृक्ष माझा घुमटाकार

घनदाट त्याची छाया,

कारागीर वापरती खोड

वर नक्षीकाम कराया !

रस माझा येई कामा 

सुगंध देण्या अत्तरास, 

जखम बरी करण्या 

साल येते उपयोगास !  

ओवून केळीच्या सोपात 

गजरा माळती ललना,

कोणी रसिक ठेवीतसे,

मज पुस्तकांच्या पाना !

आयुष्य थोड्या दिसांचे

सुकले तरी देते सुवास, 

थोडावेळ ठेवता जलात 

परत ताजी होते खास !

परत ताजी होते खास !

ब कु ळ !

© प्रमोद वामन वर्तक

सिंगापूर,  मो +६५८१७७५६१९ 

दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #202 – कविता – ☆ प्रत्यासी मीमांसा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता “प्रत्यासी मीमांसा…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #202 ☆

☆ प्रत्यासी मीमांसा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

वोट डालना धर्म हमारा

और कुकर्म तुम्हारे हैं

तुम राजा बन गए

वोट देकर तो हम ही हारे हैं

 

एक चोर एक डाकू है

ठग एक,एक है व्यभिचारी

एक लुटेरा हिंसक है एक

एक यहाँ अत्याचारी

ये हैं उम्मीदवार तंत्र के

इनके वारे न्यारे हैं

और कुकर्म तुम्हारे हैं ….

 

चापलूस है कोई तो

कोई धन का सौदागर है

है कोई आतंकी इनमें

तो कोई बाजीगर है

इनके कोरे आश्वासन

औ’ केवल झूठे नारे हैं

और कुकर्म तुम्हारे हैं

 

इनमें है मसखरे कई

कोई नौटंकी वाले हैं

कुछ ने पहन रखी ऊपर

नकली शेरों की खाले हैं

संत फकीर माफियाओं के

हिस्से न्यारे-न्यारे हैं

और कुकर्म तुम्हारे हैं

 

इनमें राष्ट्र विरोधी कुछ-

कुछ काले धंधे वाले हैं

कुछ एजेंट विदेशों के

कुछ के अपने मदिरालै हैं

काले पैसों के जंगल में

सब केअलग नजारे हैं

और कुकर्म तुम्हारे हैं ….

 

नाते-पोते नेताओं के

कुछ के बेटे बेटी हैं

भरे पेट वालों के ही तो

कब्जे में मत पेटी है

झूठ फरेबी, मक्कारी से

बनी हुई सरकारें है

 

जालसाज ये धूर्त खिलाड़ी

नाटक बाज मदारी है

कुर्सी कुर्सी खेल खेलते

लफ्फाजी अय्यारी हैं

ठगबंधन कर शोर मचाते

नकली भाई-चारा है

 

चेहरे है जिनके उजले

उनमें कुछ गूँगे बहरे हैं

साफ़ छबि वालों के मुँह पर

आदर्शो के पहरे हैं

जब्त जमानत उनकी 

जो सीधे-साधे बेचारे है

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 27 ☆ कवि कुछ ऐसा लिख… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “कवि कुछ ऐसा लिख…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 27 ☆ कवि कुछ ऐसा लिख… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कवि कुछ ऐसा लिख

कि जनता जागे

वरना गूँगे रह जायेंगे

गीत अभागे

 

कौन कहाँ पर

देता है आवाज़ किसी को

बैठे ठाले

कोसा करते नई सदी को

 

कर ऐसा उद्घोष कि

जड़ता भागे।

 

प्रत्युत्तर में

नहीं दबे आलोचक दृष्टि

अनहद गूँजे

विप्लव पाले सारी सृष्टि

 

तोड़ वर्जनाओं को

बढ़ तू आगे।

 

समय कठिन है

घोर अराजकता है फैली

शब्द निरंतर

भाव नदी की चादर मैली

 

छोड़ दुखों को बुन ले

सुख के धागे।

    ……

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ झिलमिला लो जरा देर तुम जुगनुओं… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना ” झिलमिला लो जरा देर तुम जुगनुओं“)

✍  झिलमिला लो जरा देर तुम जुगनुओं… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

सामने जब वफ़ा का हिसाब आएगा

होश सारा ठिकाने जनाब आएगा

दौलतों की मुरीद आज दुनिया भले

दंग होगी जो मेरा निसाब आएगा

ज़हलियत का अँधेरा सिमटने लगे

इल्म का जब खिला आफ़ताब आएगा

जिसका आगाज़ होगा नहीं ठीक से

उंसका अंजाम समझो खराब आएगा

झिलमिला लो जरा देर तुम जुगनुओं

बज़्म में अब मेरा माहताब आएगा

झूठ के हामी बनके अगर तुम जिये

सच सवालों का कैसे जबाब आएगा

हम मुहाजिर कहेंगे मसीहा उसे

लेके जो भी वतन की तुराब आएगा

ज़ुल्म जब हद से ज्यादा बढेगें अरुण

मान लेना जहां में अजाब आएगा

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 86 – प्रमोशन… भाग –4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आलेखों की एक नवीन शृंखला “प्रमोशन…“ की अगली कड़ी।

☆ आलेख # 86 – प्रमोशन… भाग –4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

जब शाखा को पता चला कि प्रमोशन टेस्ट होने वाले हैं तो पहली जिज्ञासा कट ऑफ डेट जानने की हुई. जो इसके पात्र बने वो तनावग्रस्त हुये और जो कट ऑफ डेट से कटते कटते बचे वो प्रफुल्लित हुये क्योंकि उन्हें मौका मिला प्रमोशन के पात्रों को जज करने का, तानेबाजी का और ये कहने का, ‘कि हमको क्या, हमें तो वैसे भी नहीं लेना था’. हम तो प्रमोशन लेकर भी छोड़ने वालों में से हैं, हालांकि बैंकों में ऐसा प्रावधान होता नहीं है. जो कट ऑफ डेट से वाघा /अटारी बार्डर जैसे चूक गये उन्होंने इसे प्रबंधन की साजिश समझा और गुस्से में दो चार दिन अपने रोजाना के कोटे और गति से कम काम किया. उनका नजरिया यह था कि अब तो जो अफसर बनने वाले हैं, उनको ही ज्यादा काम करने और घर लेट जाने की आदत डाल लेना चाहिए. घर वाले भी जल्दी समझ जायेंगे.

उस जमाने में न तो रेडीमेड हेंडनोट्स होते थे न ही हर ब्रांच में अपना एक्सट्रा टाइम देकर कोचिंग देने वाले लोकोपकारी युवा अधिकारी. प्रमोशन पाने का सारा दारोमदार “प्रेक्टिस एंड लॉ ऑफ बैंकिंग” और नेवर लेटेस्ट बैंकिंग (एवर लेटेस्ट बैंकिंग :असली नाम) पर ही आता. प्रत्याशी बैंक आने के पहले पढ़ते, बैंक में समय पाकर पढ़ते और फिर बैंक से यथासंभव जल्दी घर पहुंच कर पढ़ते. जब पड़ोसी : विशेष रूप से पड़ोसने तहकीकात करतीं और अपने पतियों पर देर से घर आने पर शक की सुइयां चुभाती तो इन्हीं प्रत्याशियों की भार्याएँ प्रतिस्पर्धात्मक गर्व से सूचित करतीं कि हमारे “इनका” प्रमोशन होने वाला है. पड़ोसने जलभुन कर बोलतीं “बहुत देर से हो रहा है” हमारे जेठ तो तीन साल में ही प्रमोशन पा लिये थे. फिर जवाब भी टक्कर का मिलता कि “क्यों, क्या तीनों पार्ट वाले हैं क्या. बैंक में भी वो जो इस प्रमोशन टेस्ट के पात्र नहीं थे, सिक्योरिटी गार्ड्स और संदेशवाहकों के बीच बैठकर हांकते “दिन रात पढ़ने की जरूरत नहीं है, ये तो हम अपने नॉलेज के आधार पर बिना पढ़े ही निकाल सकते हैं. जिन्हें टेस्ट देना होता वो इन सबको इग्नोर कर अपने जैसे ही साथियों से और नवपदोन्नत अधिकारियों से प्रेरणा और मार्गदर्शन लेते. जो आज पढ़ा उस पर डिस्कशन होता बैंक में, रिक्रिएशन हॉल में, चाय और पान की टपरे नुमा शॉप्स में जहाँ मौका मिलता वहाँ डिस्कशन होता. कभी कभी डिस्कशन का ओवरडोज इतना हो जाता कि चाय के टपरे वाला भी “निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट “समझने और समझाने लगता और नॉन बैंकिंग कस्टमर्स पर इस एक्ट की टर्मिनालाजी का उपयोग कर धौंस जमाने लगता था.

प्रमोशन की तैयारियों में परिवार का एक्सट्रा सहयोग मिलता, बच्चे फरमाइशों से तंग नहीं करते, पढ़ते वक्त चाय /काफी बिना मांगे मिलती, डेली शॉपिंग से भी मुक्ति मिल जाती और पढ़ने वाला इस दहशत में सीरियसली पढ़ता कि पास नहीं हुआ तो ये नाकामी, कॉलोनी में पत्नी की बनी बनाई रेप्यूटेशन मिट्टी में मिला देगी. फिर तो ये सारी इंपार्टेंस और सुविधाओं का मिलना बंद हो जायेगा और काबलियत पर “शक करते ताने” जीना मुश्किल कर देंगे.

जिन्हें किसी भी तरह से प्रमोशनटेस्ट पास करना है वे शाखाप्रबंधक की खुशियों का बहुत ख्याल रखते और अकेले में पूछते भी कि सर हमारा तो हो जायेगा ना. जो समझदार प्रबंधक होते वो शरारत से यही कहते “अरे तुम्हारा नहीं होगा तो फिर किसका होगा. सारी ब्रांच की उम्मीद तुम पर टिकी हैं. पूछने वाला “इस उम्मीद टिके होने” के नाम पर और भी ज्यादा तनावग्रस्त हो जाता और सीधे होटल पहुंचकर सिगरेट के कश के साथ स्पेशल ऑर्डर पर बनी कॉफी पीता. होटल के मालिक की पारखी नजरें सब समझ जातीं और फिर पेमेंट के समय वो भी आश्वस्त करता “अरे साहब वैसे तो हमारे होटल में कई आते हैं पर आपकी और आपकी काबलियत पर तो हमारी 100% गारंटी है. राहत महसूस कर और छुट्टे जानबूझकर वापस लेना भूलकर मिस्टर 100% बैंक आकर बूस्ट की गई गति से काम करता हालांकि उसका मन तो किताबों के किसी पेज पर ही अटका रहता. उसे यह तो मालूम था ही कि रिटनटेस्ट तो पढ़कर ही पास होना है और मेरिट के अनुसार न्यूनतम मार्क्स यहाँ भी पाने पड़ते हैं.

इस श्रंखला में कपिलदेव, मोहिंदर अमरनाथ और गावस्कर के अलावा किसी भी वास्तविक या काल्पनिक व्यक्ति/स्थान के नाम का प्रयोग नहीं किया गया है. कोशिश आगे भी जारी रहने का प्रयास रहेगा.

प्रमोशनटेस्ट की कथा चलती रहेगी.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 202 ☆ दुधावरची साय ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 202 ?

☆ दुधावरची साय ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

भाद्रपदातली एक प्रसन्न सकाळ…

गर्भार सुनेला

इस्पितळात घेऊन जाताना

मनाची उलघाल…..

मनोमन ईश्वराची आराधना,

ईशस्तवन!

प्रसुतीगृहाच्या दारातला प्राजक्त,

मन मोहविणारा!

येणा-या सुगंधी क्षणांचा

साक्षीदारच जणू!

प्रतिक्षा….वेणा….वेदना….

सारं शब्दातीत….

पदरात पडलेलं निसर्गाचं दान अमूल्य  !

टॅ हॅ ऽऽऽटॅ हॅ ऽऽऽ चा प्रथम स्वर

जिवाचा कान करून ऐकलेला !

आजीपणाची कृतार्थ जाणीव…..

सा-या भूमिका पार पाडून,

येऊन पोहचलोच आपण,

या ठिकाणी!

कसं अन काय…

दुधावरची साय…

इवलासा जीव कवेतलं आकाश…

हृदयातला अथांग अर्णव…

आयुष्याची सार्थकता….जगण्याचा अर्थ नवा !

© प्रभा सोनवणे

१४ सप्टेंबर २००८

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 23 – फटी सड़क की छाती… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – फटी सड़क की छाती।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 23 – फटी सड़क की छाती… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

मंजरियों से लद जाती थी 

जब रसाल की डाली 

झूम-झूमकर झर जाती थी

गंधवती शेफाली 

 

दृश्य आज वे गायब हैं 

जो देते थे शीतलता 

नहीं कुलाचें भरने वाली 

हिरणों की चंचलता 

नयन तरसते हैं निहारने

धरती की हरियाली 

 

बुलडोजर दौड़ें दहाड़ते 

फटी सड़क की छाती 

क्रुद्ध हुईं सूरज की किरणें 

दावानल धधकातीं 

आहत, रुष्ट प्रकृति के तेवर

दिखते हैं भूचाली 

 

संध्या का अभिषेक न होता 

अब गोधूलि कणों से 

वृक्ष लगाकर, कर्ज मुक्त 

हो सकते प्रकृति-ऋणों से 

चलो बिछा देवें धरती पर

फिर चादर हरियाली

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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