हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 181 ☆ बालगीत – जल ही है जीवन आधार ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 181 ☆

☆ बालगीत – जल ही है जीवन आधार ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बूंद – बूंद को सभी बचाएँ

     जल ही है जीवन आधार।

सृष्टि की अनमोल धरोहर

      नहीं करें यूँ ही बेकार।।

 

पौधे रोपें आसपास हम

     स्वच्छ वायु और आज – कल को।

पेड़ बुलाएँ बादल जी को

     जड़ भी संचित करती जल को।।

 

अधिक देर अब होगी घातक

     पेड़ लगा लें बच्चो चार।

बूंद – बूंद को सभी बचाएँ

     जल ही है जीवन आधार।।

 

बर्षा का जल सभी बचाएँ

      बिना काम के नहीं बहाएँ।

कपड़े धोयें सोच समझकर

    थोड़े – थोड़े जल से नहाएँ।।

 

आरओ के अपशिष्ट नीर से

        करें धुलाई हम सब यार।

बूंद – बूंद को सभी बचाएँ

     जल ही है जीवन आधार।।

 

पेड़ धरोहर हैं माटी के

 आज बचाएँ हम सब जंगल।

जल के सारे स्रोत सुखाकर

    नहीं कभी हो सकता मंगल।।

 

सिमटीं नदियाँ हुईं प्रदूषित

     सभी बचाएँ उनकी धार।

बूंद – बूंद को सभी बचाएँ

     जल ही है जीवन आधार।।

 

समरसेविल लगा घरों में

      पानी का दुरुपयोग मत करो।

जल का स्तर घटा नित्य ही

    इस प्रवृत्ति से स्वयं डरो ।।

 

बाल, युवा, वृद्ध सब जागें

      करो स्वयं पर तुम उपकार।

बूंद – बूंद को सभी बचाएँ

     जल ही है जीवन आधार।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #21 ☆ कविता – “घाव…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 21 ☆

☆ कविता ☆ “घाव…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

कैसी जंग कैसी जीत?

जब नहीं पास मनमीत ।

कैसा ताज कैसा अभिमान?

बिना आग कौन धनवान।

कैसा सिर कौन  सा ताज?

दिल यह पत्थर समान ।

कैसी शान कैसा कांचनाहार?

हार यह सर्प समान ।

कैसी नींद कैसी शैय्या ?

शैय्या यह चिता समान ।

कैसा बसंत कौन सी बौछार?

बसंत यह कांटो समान ।

कैसे फ़ूल कैसा घाव?

फ़ूल यह समशेर समान ।

 

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #177 ☆ संत रामदास… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 177 ☆ संत रामदास…☆ श्री सुजित कदम ☆

नारायण ठोसर हे

समर्थांचे मुळ नाव

राम आणि हनुमान

अंतरीचा घेती ठाव…! १

 

बालपणी ध्यानमग्न

अष्टमित्र सहवास

ज्ञान संपादन कार्य

विश्व कल्याणाचा ध्यास..! २

 

गाव टाकळी नासिक

जपतप अंगीकार

तपश्चर्या रामनाम

दासभक्ती आविष्कार…! ३

 

केली दीर्घ तपश्चर्या

पंचवटी तीर्थ क्षेत्री

रामदास नावं नवे

प्रबोधक तीर्थ यात्री….! ४

 

एकाग्रता वाढवीत

केली मंत्र उपासना

तेरा अक्षरांचा मंत्र

राम नामाची साधना…! ५

 

रघुवीर जयघोष

रामदासी दरबार

दासबोध आत्माराम

मनोबोध ग्रंथकार…! ६

 

दैनंदिन तपश्चर्या

नाम जप तेरा कोटी

रामदासी कार्य वसा

ध्यान धारणा ती मोठी…! ७

 

श्लोक मनाचे लिहिले

आंतरीक प्रेरणेने

दिले सौख्य समाधान

गणेशाच्या आरतीने…! ८

 

श्लोक अभंग भुपाळ्या

केला संगीत अभ्यास

रागदारी ताल लय

सुरमयी शब्द श्वास….! ९

 

रामदासी रामायण

ओव्या समासांची गाथा

ग्रंथ कर्तृत्व अफाट

रामनामी लीन माथा…! १०

 

प्रासंगिक निराशा नी

उद्वेगाचे प्रतिबिंब

वेदशास्त्र वेदांताचे

रामदास रविटिंब….! ११

 

दिली करुणाष्टकाने

आर्त भक्ती आराधना

सामाजिक सलोख्याची

रामभक्ती संकल्पना…! १२

 

शिवराय समर्थांची

वैचारिक देवघेव

साधुसंत उपदेश

आशीर्वादी दिव्य ठेव…! १३

 

पुन्हा बांधली मंदिरे

यवनांनी फोडलेली

देवी देवता स्थापना

सांप्रदायी जोडलेली…! १४

 

वैराग्याचा उपासक

दासबोध नाही भक्ती

दिली अखिल विश्वाला

व्यवहार्य ग्रंथ शक्ती….! १५

 

आत्य साक्षात्कारी‌ संत

केले भारत भ्रमण

रामदास पादुकांचे

गावोगावी संक्रमण…! १६

 

दासबोध ग्रंथामध्ये

गुरू शिष्यांचा संवाद

हिमालयी एकांतात

राम रूप घाली साद…! १७

 

राम मंदिर स्थापना

गावोगावी भारतात

भक्ती शक्ती संघटन

मठ स्थापना जनात….! १८

 

दिले चैतन्य विश्वाला

हनुमान मंदिराने

सिद्ध अकरा मारुती

युवा शक्ती सामर्थ्याने…! १९

 

नाना ग्रंथ संकीर्तन

केले आरत्या लेखन

देवी देवतांचे स्तोत्र

पुजार्चना संकलन…! २०

 

स्फुट अभंग लेखन

श्लोक मनाचे प्रसिद्ध

वृत्त भुंजंग प्रयात

प्रबोधन कटिबद्ध….! २१

 

केले विपुल लेखन

ओवी छंद अभंगांत

कीर्तनाचा अधिकार

दिला महिला  वर्गात….! २२

 

धर्म संस्थापन कार्य

कृष्णातीरी चाफळात

पद्मासनी ब्रम्हालीन

समाधिस्थ रामदास…! २३

 

गड सज्जन गातसे

रामदासी जयघोष

जय जय रघुवीर

दुर पळे राग रोष…! २४

 

माघ कृष्ण नवमीला

दास नवमी  उत्सव

रामदास पुण्यतिथी

भक्ती शक्ती महोत्सव…! २५

 © श्री सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #204 – कविता – ☆ स्वयं कभी कविता बन जाएँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके “स्वयं कभी कविता बन जाएँ…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #204 ☆

☆ स्वयं कभी कविता बन जाएँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

होने, बनने में अन्तर है

जैसे नदिया और नहर है।।

 

कवि होने के भ्रम में हैं हम

प्रथम पंक्ति के क्रम में हैं हम

मैं प्रबुद्ध हूँ आत्ममुग्ध मैं

गहन अमावस तम में हैं हम।

तारों से उम्मीद लगाए

सूरज जैसे स्वप्न प्रखर है……

 

जब, कवि हूँ का दर्प जगे है

हम अपने से दूर भगे हैं

उलझे शब्दों के जंगल में

और स्वयं से स्वयं ठगे हैं।

भटकें बंजारों जैसे यूँ

खुद को खुद की नहीं खबर है।……

 

कविता के सँग में जो रहते

कितनी व्यथा वेदना सहते

दुःखदर्दों को आत्मसात कर

शब्दों की सरिता बन बहते,

नीर-क्षीर कर साँच-झूठ की

अभिव्यक्ति में सदा निडर है।……

 

यह भी मन में इक संशय है

कवि होना क्या सरल विषय है

फिर भी जोड़-तोड़ में उलझे

चाह, वाह-वाही, जय-जय है

मंचीय हाव-भाव, कुछ नुस्खे

याद कर लिए कुछ मन्तर है।……

 

मौलिकता हो कवि होने में

बीज नए सुखकर बोने में

खोटे सिक्के टिक न सकेंगे

ज्यों जल, छिद्रयुक्त दोने में

स्वयं कभी कविता बन जाएँ

शब्दब्रह्म ये अजर-अमर है।…..

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 29 ☆ परिंदे संवेदना के… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “परिंदे संवेदना के…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 29 ☆ परिंदे संवेदना के… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

अब नहीं आती ख़बर

अमराइयों से

मर चुके हैं

परिंदे संवेदना के।

 

फूल-पत्ते सिसकते हैं

पेड़-डाली हैं उदास

उग नहीं पाते ज़रा भी

बंजरों में अमलतास

 

कटे पर लेकर उजाले

जीते पल आलोचना के।

 

प्रकृति के पालने में

ध्वंस के सजते हैं मंच

झाँकते वातायनों से

अँधेरों के छल-प्रपंच

 

सुनाई देते नहीं हैं

स्वर कोई आराधना के।

(परिंदे संवेदना के से साभार)

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ एक आज़ाद परिंदे सी थी उड़ान कभी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “एक आज़ाद परिंदे सी थी उड़ान कभी“)

✍ एक आज़ाद परिंदे सी थी उड़ान कभी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

बाँकपन छोड़ दिया है सगीर लगने लगे

एक थे लाख में अब बे-नज़ीर लगने  लगे

एक आज़ाद परिंदे सी थी उड़ान कभी

इश्क़ जब उनसे हुआ है असीर लगने लगे

साथ का उनके असर मुफ़लिसी में ऐसा हुआ

हम अपने दिल से यकायक अमीर लगने लगे

वक़्त का ये नहीं बदलाव है तो फिर क्या है

आज के दौर के बच्चे मुशीर लगने लगे

ज़िंदगी से वो गया दूर तीरगी करके

पास असबाव सभी हम फ़क़ीर लगने लगे

☆ 

दूसरा था जो कभी हो गया है अब अपना

प्यार का जबसे मुझे वो सफीर लगने लगे

पढ़ लिए हो जो अरुण चार पोथियाँ केवल

ये गलत फहमी है जो खुद को मीर लगने लगे

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 88 – प्रमोशन… भाग –6 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आलेखों की एक नवीन शृंखला “प्रमोशन…“ की अगली कड़ी।

☆ आलेख # 88 – प्रमोशन… भाग –6 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

आखिर कुछ महीनों और कुछ दिनों के इंतजार के बाद बहुप्रतीक्षित रिजल्ट आ ही गया और सारे कि सारे ही पास हो गये. अब इंटरव्यू फेस करना था तो उसकी तैयारियां शुरु हो गईं. तैयारी का पहला चरण इंटरव्यू के लिये पहनी जानी वाली ड्रेस का चयन करना था. इंटरव्यू की अनुमानित तिथि तक ग्रीष्म ऋतु के पूरे शबाब में होने के कारण फुल शर्ट और पैंट ही मुफीद माना गया. कंठलंगोट पहनने का प्रशिक्षण शुरु हो गया जो कि साक्षात्कार से दस मिनट पहले भी पहनी जा सकती है. शुक्र है कि उस वक्त सीसीटीवी का अविष्कार नहीं हो पाया था वरना बाहर की रिकार्डिंग देखकर ही अंदरवाले कुछ लोगों को सिलेक्ट लिस्ट से बाहर कर देते. जो रोजमर्रा के जीवन में पहने जाते हैं उन्हें जूते कहा जाता है पर इंटरव्यू में चरणों की शोभा “शूज़” से बढ़ती है इसका पूरा खयाल रखा जाता है कि ये साउंड प्रुफ हों और इन शूज़ को कुत्तों के समान काटने का शौक न हो. शहर इतना बड़ा तो था कि वहाँ बैंक में पहले प्रमोशन के हिसाब से सब कुछ मिल जाता था तो बाहरी डेकोरेशन की तैयारी पूरी थी.

अब इंटरनल डेकोरेशन के लिये तैयारी करनी थी. उस समय मॉक इंटरव्यू नामक सुविधा उपलब्ध नहीं थी. जिन लोगों ने फिर से वही किताबें उठा लीं, उनको सलाह दी गई कि इन किताबों पर आधारित ज्ञान की परीक्षा तो हो गई. अब इंटरव्यू का मतलब पर्सनैलिटी परीक्षण से होता है. बात करने का तरीका, समस्याओं पर प्रत्याशी का नजरिया, जो भी आसपास घट रहा है याने करेंट अफेयर्स, उसकी अपडेट्स, और सबसे कठिन प्रश्न कि “Why you should be promoted” वैसे इसके बहुत सारे सरल जवाब हैं पर ये इंटरव्यू में दिये नहीं जा सकते, उद्दंडता प्रकट होने का खतरा होता है. जो इसका जवाब बड़ी चतुराई से दे पाते हैं वो बोर्ड के सामने सिक्का जमा लेते हैं. ये बोर्ड कैरमबोर्ड नहीं बल्कि शतरंज का बोर्ड होता है जिसमें सारे शक्तिशाली मोहरे, दूसरी तरफ बैठे प्यादे की वजीर बनने की क्षमता भांपते हैं या अपने मानदंडों पर नापते हैं. इंटरव्यू कक्ष में नॉक करने और कक्ष में प्रवेश करते समय की बॉडी लेंग्वेज से लेकर वापस जाने तक की बॉडीलैंग्वेज का बड़ी बारीकी से परीक्षण किया जाता है. लिपिकीय स्टाफ क्या आसानी से अपनी कंफर्ट ज़ोन से बाहर आ पायेगा या फिर शाखाप्रबंधक बनकर भी बाबू बनकर ही बचा हुआ या छोड़ा हुआ काम करता रहेगा. प्रबंधन भले ही कनिष्ठ हो पर चयन, उपलब्ध में से ही सबसे बेहतर लोगों को चुनने की प्रक्रिया ही इंटरव्यू कहलाती है जिसकी गुणवत्ता और श्रेष्ठता प्रबंधन के बढ़ते लेवल के साथ बढ़ती जाती है. इंटरव्यू के दौरान कॉन्फिडेंस तो कम होता है पर हाथों, और चेहरे पर पसीना आना, गला सूखने पर भी सामने रखे पानी के गिलास का अनुमति लेकर प्रयोग नहीं करना, आवाज़ कांपना, बहुत धीरे बोलना, जानते हुये भी खुद को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त नहीं कर पाना ये सब व्यक्तित्व की कमजोरियों में शुमार होते हैं. हर अर्जुन, कर्ण और एकलव्य के समान कुशल धनुर्धर नहीं होता पर काबलियत से जो इंटरव्यू बोर्ड को आश्वस्त करदे वही सिलेक्ट लिस्ट में जगह पाता है. मि. 100% जब इंटरव्यू कक्ष में गये और फिर जब वापस निकले तो उनकी nervousness में अप्रत्याशित वृद्धि नजर आ रही थी जबकि बाकी चार तो “हुआ तो हुआ वरना कौन सी नौकरी जाने वाली है” वाले मूड में प्रफुल्लित नजर आ रहे थे.

रिजल्ट का इंतजार कीजिये, ये मेरी नहीं हमारी कहानी है.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 204 ☆ कविता ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 204 ?

कविता ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

बरेच दिवस सुचलीच नव्हती कविता,

घरातले पुस्तकांचे पसारे

आवरता आवरेनात,

खेळ तर मांडलेला असतो,

पण पटावरच्या सोंगट्या

दगा देतात?

की खेळताच येत नाही खेळी?

 

किती निरागस,

त्या शाळेतल्या सख्या…

कुबेर नगरीत रहात असूनदेखील,

निगर्वी, व्यक्तिमत्त्वात विलोभनीय

सहजपणा!

माझ्यावर कौतुक वर्षाव करणा-या..

थोर प्रशंसक!

 

आयुष्य किती रंगीबेरंगी—-

काहीच नको असतं ,

एकमेकांकडून…

फक्त अडीच अक्षरे प्रेमाची!

 

 तू ही बोलतोस,

खूप भरभरून…

आयुष्याच्या सांजवेळी..

भरून जाते ओंजळ तुझ्या शब्दांनी,

आणि घमघमतेच एक कविता,

मोग-याच्या दरवळा सारखी !!

 

आणि सा-या फापटपसा-यातून,

अलगद स्वतःला सोडवून घेत,

मी ही होते…

अशरीरी… मुक्तछंद!

© प्रभा सोनवणे

(१७ ऑक्टोबर २०२३)

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 25 – निर्जला हैं नदियां बेचारी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – निर्जला हैं नदियां बेचारी…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 25 – निर्जला हैं नदियां बेचारी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

निर्जला हैं नदियां बेचारी

सुबह-सुबह ही झरने लगती

अम्बर से चिन्गारी 

आग बबूला हो जाती है 

तपकर क्रुद्ध दुपहरी 

चीख-चीखकर ताने 

मारा करती रोज टिटहरी 

किरणों के कोड़े बरसाता

सूरज गगन-बिहारी 

पाँव कुल्हाड़ी मारी 

हमने उल्टे पढ़े पहाड़े 

मातु-पिता जैसे हितकारी 

जंगल सभी उजाड़े 

रहती है ज्वर ग्रस्त हमेशा

यह धरती महतारी 

अपशकुनी हो रही हवाएँ 

करतीं जादू-टोना 

चिथड़ा-चिथड़ा हुआ 

धरा का वो मखमली बिछौना 

सूख गये तालाब

निर्जला हैं नदियां बेचारी

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 102 – नयन हँसे तो दिल हँसे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना  “नयन हँसे तो दिल हँसे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 102 – नयन हँसे तो दिल हँसे… ☆

नयन हंँसें तो दिल हँसे, हँसें चाँदनी – धूप।

नयन जलें क्रोधाग्नि से, देख डरें सब भूप।।

नयन विनोदी जब रहें, करें हास परिहास।

व्यंग्य धार की मार से, कर जाते उपहास।।

नयन रो पड़ें जब कभी,आ जाता तूफान।

पत्थर दिल पिघलें सभी, बन आँसू वरदान।।

नयनों की अठखेलियाँ, जब-जब होतीं तेज।

नेह प्रीत के सुमन से, सजती तब-तब सेज।।

इनके मन जो भा गया, खुलें दिलों के द्वार।

नैनों की मत पूछिये, दिल के पहरेदार ।।

नयनों की भाषा अजब, इसके अद्भुत ग्रंथ।

बिन बोले सब बोलते, अलग धर्म हैं पंथ।।

बंकिम नैना हो गये, बरछी और कटार।

पागल दिल है चाहता, नयन करें नित वार।।

प्रकृति मनोहर देखकर, नैना हुए निहाल।

सुंदरता की हर छटा, मन में रखे सँभाल।।

नैंना चुगली भी करें, नैना करें बचाव।

नैना से नैना लड़ें, नैंना करें चुनाव।।

नैना बिन जग सून है, अँधियारा संसार।

सुंदरता सब व्यर्थ है, जीवन लगता भार।।

सम्मोहित नैना करें, चहरों की है जान ।

मुखड़े में जब दमकतीं, बढ़ जाती है शान।।

प्रभु की यह कारीगिरी, नयन हुए वरदान।

रूप सजे साहित्य में, उपमाओं की खान।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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