मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 141 ☆ अभंग… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 141 ? 

☆ अभंग…

आपुले जपावे, यशस्वी होवावे

यश संपादावे, अनेकांना.!!

कुणी नं कुणाचे, एकटे शेवटी

आवरा शेपटी, योग्य-वेळी.!!

पाहणी करावी, आखणी करावी

घाई ती नसावी, अवकाळी.!!

कवी राज म्हणे, चार ते जोडावे

बाकीचे तोडावे, बिनकामी.!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #207 ☆ कहानी – वीरगाथा ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम कहानी ‘वीरगाथा’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 207 ☆
☆ कहानी – वीरगाथा 

नरेश पत्नी के इन्तज़ार में बीड़ी फूँकता घर की चौखट पर बैठा है। भीतर आशा ज़ोर ज़ोर से अपना पाठ याद करने में लगी है। छोटा अशोक दीवार से टिका ऊँघ रहा है। सब मीना के इन्तज़ार में हैं कि काम से लौटे तो घर में भोजन की खटर-पटर शुरू हो।

मीना के आते ही अशोक उससे चिपक जाएगा। उसका आँचल पकड़े पूरे घर में ठुनकता रहेगा, तब तक जब तक उसके पेट में कुछ पड़ न जाए। उसके बाद फिर उसे नींद आने लगेगी।

अभी आशा अपना पाठ याद करती है, ‘वीरांगना, वीरांगना माने बहादुर स्त्री।’ अन्य शब्दों के साथ बार-बार लौटकर ‘वीरांगना’ पर आती है। याद कर के स्कूल में सुनाना है।

दरवाज़े पर बैठा नरेश अचानक हँसता है— ‘लो आ गयीं वीरांगना। बड़ी देर से वीरांगना को पुकार रही थी।’

मीना पति के बगल से गुज़र कर घर में प्रवेश करती है। चेहरे पर थकान और थकान से उत्पन्न तनाव। उसे पता है दूसरों के घर का काम खत्म होने पर अपने घर का काम शुरू होना है। पति बस बीड़ी फूँकता उसके इन्तज़ार में बैठा रहेगा कि कब वह आये और भोजन का जुगाड़ हो। बिना दस बार कहे वह किसी काम के लिए हिलता डुलता नहीं।

मीना तीन-चार घरों में झाड़ू- पोंछा करती है। एक घर में खाना भी बनाती है। लौटते-लौटते शाम के सात आठ बजते हैं। लौटने पर थोड़ा आराम करने की इच्छा होती है, लेकिन कहाँ हो पाता है? घर में घुसते ही पति और बच्चों की नज़रें उस पर टिक जाती हैं। थोड़ी देर हुई कि पति का भुनभुनाना और अशोक की चीख-पुकार शुरू हो जाती है। घर का काम निपटाये बिना पीठ टिकाना संभव नहीं।

नरेश के काम का कोई ठिकाना नहीं। दूकानों में काम करता है, लेकिन चार छः महीने में उसकी मालिक से खटपट हो जाती है। घर में बड़े गर्व से कहता है, ‘अपन इज्जत की नौकरी करते हैं। इज्जत नहीं मिलती तो एक मिनट में नौकरी को लात मार देते हैं।’ मीना जवाब देती है, ‘हाँ, मैं दिन भर छाती मार कर कमाती हूँ इसीलिए तुम्हें इज्जत की बड़ी फिकर रहती है। जिस दिन रोटियों के लाले पड़ जाएँगे उस दिन इज्जत को लेकर चाटते रहना।’

नरेश की बच्चों को पढ़ाने लिखाने में रुचि नहीं है। कहता है, ‘पढ़ने लिखने से क्या होता है? आजकल छोटे-छोटे बच्चे भी बढ़िया कमाई करते हैं और माँ-बाप की मदद करते हैं। रौनक लाल को देखो, उसके पाँच बच्चे हैं और सभी कमाने में लगे हैं। सबेरे से सब्जी की टोकरी लेकर निकल जाते हैं। पढ़ने लिखने से क्या मिलने वाला है? वक्त की बरबादी है।’

सुनकर मीना का पारा चढ़ जाता है। कहती है, ‘पढ़ लिखकर आदमी बन जाएँगे, नहीं तो लड़की सारी जिन्दगी मार खाएगी और लड़का कहीं बोझा ढोएगा। तुम्हारे दिमाग में यह बात नहीं घुसेगी।’

लेकिन नरेश के लिए इन बातों का कोई मतलब नहीं था। एक दिन वह बिना मीना को बताये अशोक को स्कूल से बीच में ही ले आया और उसे चाट-पकौड़ी खिलाने ले गया। अशोक मस्ती में बाप के साथ घूमता रहा। लेकिन गड़बड़ यह हुई कि बाप की सारी हिदायत के बावजूद वह इतनी बढ़िया खबर को माँ से छिपा नहीं सका। सुनने की देर थी कि घर में भूचाल आ गया। मीना ने हाथ के बर्तन दीवार पर मारे और चूल्हे में पानी डालकर पलंग पर सिर तक ओढ़ कर जा लेटी। सारे घर की सिट्टी पिट्टी गुम। अन्ततः नरेश को बेटे के सिर पर हाथ रखकर कसम खानी पड़ी कि दुबारा ऐसा नहीं होगा। तब जाकर मीना के सिर से भूत उतरे। लेकिन दूसरे दिन वह स्कूल जाकर प्राचार्य को हिदायत दे आयी कि उसके अलावा किसी अन्य के साथ बच्चे को बीच में न भेजा जाए।

नरेश एक दूसरा तीर चलाता है। कहता है, ‘चलो लड़के की पढ़ाई की बात तो समझ में आयी, लेकिन लड़की को पढ़ाने का क्या मतलब है? लड़की को दूसरे घर जाना है, उसकी पढ़ाई पर पैसे खर्च करने का क्या मतलब? कहीं काम करने लगे तो चार पैसे घर में आएँगे।’

मीना जवाब देती है, ‘नहीं पढ़ाओगे तो ससुराल में मार खाकर गूँगी गाय की तरह वापस आ जाएगी। पढ़ लिख जाएगी तो जिन्दगी में कहीं न कहीं अपना ठौर बना लेगी। मेरी तरह दूसरों के घर में बर्तन नहीं घिसेगी।’

नरेश प्रशंसा से उसकी तरफ देखता है, कहता है, ‘तू बड़ी सयानी है, भाई। तेरे पास हर बात का जवाब है।’

वैसे नरेश को पत्नी से यह शिकायत भी है कि वह अपने परिवार के आकार को बढ़ने नहीं देती। नरेश के विचार से जब तक घर में तीन चार बच्चे न हों तब तक घर घर नहीं लगता। घर को जीवन्त बनाने के लिए थोड़ी किलिर-बिलिर, थोड़ा हल्लागुल्ला ज़रूरी है। अभी घर सूना सूना लगता है।

मीना की सोच साफ है। कहती है, ‘तुम्हारे छः भाई-बहन थे, सो कोई पाँचवीं से आगे नहीं पढ़ा। अब सब की फजीहत हो रही है। बच्चों की लाइन लगाओगे तो इनकी भी वही हालत होगी। कीड़ों की तरह बिलबिलाते एक दिन दुनिया से चले जाएँगे।’

सुनकर नरेश दाँत निकाल कर मौन हो जाता है।

नरेश के मुहल्ले की हालत ठीक नहीं है। मुख्य सड़क की एक पतली गली में उसका मुहल्ला बसा है। खासी गन्दगी रहती है। स्ट्रीट- लाइट बहुत कम है। शाम देर से मीना लौटती है तो कई लोग शराब के नशे में गली के किनारे लेटे या बैठे दिख जाते हैं। हर दूसरे तीसरे घर से झगड़े और मारपीट की आवाज़ें उठती हैं। ऐसे में बच्चों को कैसे अच्छी शिक्षा मिले और कहाँ से अच्छे संस्कार मिलें? इतनी हैसियत नहीं कि कोई बेहतर जगह तलाश की जा सके।

नेताओं को इस मुहल्ले की याद हर पाँच साल बाद आती है, लेकिन उनकी रूचि कुछ सुधार करने में नहीं होती। रात को शराब और पैसे बँट जाते हैं और नेताओं का कर्तव्य पूरा हो जाता है। मुहल्ले के लोग भी पीकर अपना और सत्यानाश कर लेते हैं।

इस सब के बीच मीना अपने संसार को सँवारने सुधारने में लगी रहती है। उसने अपने बल पर घर में फ्रिज, टीवी, सोफा जैसी चीज़ें जुटा ली हैं। नई चीज़ें लेने की गुंजाइश नहीं है इसलिए जहाँ काम करती है वहाँ से पुरानी चीज़ें खरीद लेती है। चीज़ें आधी से भी कम कीमत में मिल जाती हैं। पत्नी के इसी पुरुषार्थ के कारण नरेश पौरुष का ज़्यादा प्रदर्शन नहीं करता। अपनी गृहस्थी को देखकर मीना की छाती जुड़ाती है। बच्चों को स्कूल ले जाने के लिए उसने रिक्शा लगा रखा है।

मीना को इस बात की बहुत फिक्र रहती है कि बच्चों में कुटेव न पड़ें। एक बार बच्चों के मामा सूरज ने मज़ाक में अशोक को सिगरेट का कश लगवा दिया था। बच्चा खाँसते-खाँसते बेहाल हो गया। आँख और नाक से पानी बहने लगा। फिर मीना ने ऐसा रौद्र रूप दिखाया कि मामा जी को बिना भोजन-पानी के बहन के घर से भागना पड़ा। दो महीने तक उसे बहन को मुँह दिखाने की हिम्मत नहीं हुई।

‘वीरांगना’ शब्द का अर्थ जानने के बाद से ही नरेश मीना को व्यंग्य से ‘वीरांगना’ कह कर पुकारने लगा था। घर आता तो आशा से पूछता, ‘क्यों, वीरांगना अभी नहीं आयी?’

मीना ने मुहल्ले को ठीक-ठाक रखने के लिए  स्त्रियों का एक समूह बना लिया है। जहाँ गड़बड़ होती है वहाँ यह समूह पहुँच जाता है। जब से यह समूह तैयार हुआ, गली के किनारे पड़े रहने वाले नशेबाज़ गायब हो गए हैं क्योंकि यह समूह उनके अखंड आनन्द में व्यवधान पैदा कर देता है। अभी तक निर्द्वंद्व पड़े रहने वालों की लानत- मलामत होने लगी है।

इस समूह का पहला शिकार वे शोहदे बने जो गली के नुक्कड़ की पान की दूकान पर जमा होकर लड़कियों और युवतियों पर फिकरे कसते थे। शोहदों पर समूह का आक्रमण ऐतिहासिक और बिलकुल अप्रत्याशित था। शोहदे जान और इज्ज़त बचाकर भागे और फिर वह स्थान निरापद हो गया।

मुहल्ले में तेजराम के घर रोज़ ही जुए की बैठक जमती थी। मुहल्ले के कई मर्द अपनी जमा- पूँजी  लुटाने वहाँ पहुँच जाते थे। तेजराम के पास कोई काम धंधा नहीं था। जुए में नाल काटने में कुछ आमदनी हो जाती थी। कुछ चाय-पकौड़े का इन्तज़ाम करने में मिल जाता था। इसीलिए घर के लोग आपत्ति नहीं करते थे।

नरेश को भी जुए की लत थी। वह कई बार बिजली के बिल और बच्चों की फीस के पैसे वहाँ चढ़ा चुका था। एक दिन मीना की बड़ी मुश्किल से खरीदी नयी साइकिल भी जुए की भेंट चढ़ गयी। ऐसे मौकों पर नरेश लौटकर गुमसुम लेट जाता था। मीना की बकझक का कोई जवाब नहीं मिलता था।

फिर एक दिन तेजराम के घर पर पुलिस का छापा पड़ा। जुआरी बाहर अँधेरे का फायदा उठाकर तितर-बितर हो गये। तीन पुलिस के हत्थे चढ़ गये। सौभाग्य से उस दिन नरेश वहाँ नहीं था। उस दिन से तेजराम का जुए का अड्डा अनिश्चितकाल के लिए बन्द हो गया।

बाद में बात खुली कि यह करतूत मुहल्ले के महिला मंडल की थी। जुआड़ियों ने मंडल की स्त्रियों को खूब कोसा, कुछ घरों में विवाद भी हुआ, लेकिन पुलिस के डर से मुहल्ले के वीर पुरुष खून का घूँट पीकर रह गये।

घर में नरेश ने मीना पर गुस्सा दिखाया। बोला, ‘मुहल्ले में थोड़ा सा टाइमपास हो जाता था, वह भी तुम लोगों से नहीं देखा गया। मैडम, गिरस्ती की गाड़ी दो पहियों से चलती है। मर्द औरत का साथ न दे तो गिरस्ती चल चुकी।’

मीना ने जवाब दिया, ‘मर्द-औरत का साथ घर को बनाने के लिए होना चाहिए, उसे मिटाने के लिए नहीं। मर्द मिटाने वाला रास्ता पकड़ेंगे तो औरतें भी सुधारने वाला रास्ता पकड़ेंगीं।’

नरेश बड़ी देर तक उसे गुस्से से घूरता रहा, फिर परास्त होकर बाहर चौखट पर जा बैठा।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 206 – शून्योत्सव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 206 शून्योत्सव ?

शून्य उत्सव है। वस्तुतः महोत्सव है। शून्य में आशंका देखते हो, सो आतंकित होते हो। शून्य में संभावना देखोगे तो  प्रफुल्लित होगे। शून्य एक पड़ाव है आत्मनिरीक्षण के लिए। शून्य अंतिम नहीं है। वैसे प्रकृति में कुछ भी अंतिम नहीं होता। जीवन, पृथ्वी सब चक्राकार हैं। प्रकृति भी वृत्ताकार है। हर बिंदु, परिधि की इकाई है और हर बिंदु में नई परिधि के प्रसव की क्षमता है। प्रसव की यह क्षमता हर बिंदु के केंद्र बन सकने की संभावना है।

यों गणित में भी शून्य अंतिम नहीं होता। वह संख्याशास्त्र का संतुलन है। शून्य से पहले माइनस है। शून्य के बाद प्लस है। माइनस में भी उतना ही अनंत विद्यमान है, जितना प्लस में। शून्य पर जल हिम हो जाता है। हिम होने का अर्थ है, अपनी सारी ऊर्जा को संचित करके  सुरक्षित रखना ताकि काल, पात्र, परिस्थिति के अनुरूप दिशा की आवश्यकतानुसार प्रवहमान हुआ था सके। शून्य से दाईं ओर चलने पर हिम का विगलन होकर जल हो जाता है। पारा बढ़ता जाता है। सौ डिग्री पार होते- होते पानी खौलने लगता है। बाईं ओर की यात्रा में पारा जमने लगता है। एक हद तक के बाद हिमखंड या ग्लेशियर बनने लगते हैं। हमें दोनों चाहिएँ-खौलता पानी और ग्लेशियर। इसके लिए शून्य होना अनिवार्य है।

शून्य में गहन तृष्णा है, साथ ही गहरी तृप्ति है। शून्य में विलाप सुननेवाले नादान हैं। शून्य परमानंद का आलाप है। इसे सुनने के लिए कानों को ट्यून करना होगा। अपने विराट शून्य को निहारने और उसकी विराटता में अंकुरित होती सृष्टि देख सकने की दृष्टि विकसित करनी होगी।

स्मृति में अपनी एक रचना कौंध रही है-

शून्य अवगाहित / करती सृष्टि,

शून्य उकेरने की / टिटिहरी कृति,

शून्य के सम्मुख / हाँफती सीमाएँ,

अगाध शून्य की / अशेष गाथाएँ,

साधो…!

अथाह की / कुछ थाह मिली

या फिर शून्य ही / हाथ लगा?

शून्य के परमानंद को अनुभव करने के लिए शून्य में जाएँ। अपने अपने शून्य का रसपान करें। शून्य में शून्य उँड़ेलें, शून्य से शून्य उलीचें।…इति।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 154 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 154 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 154) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 154 ?

☆☆☆☆☆

बडी मुश्किल से खुद

को सुलाया है  मैंने,

अपनी आंखों को तेरे

ख़्वाबों का लालच देकर…!

☆☆ 

I’ve put myself to sleep

with great difficulty,

By giving my eyes the

greed of your dreams…

☆☆☆☆☆

ये जाँबाज़ फ़ौजी भी कमाल

के  ज़िगर  वाले  होते  हैं…

बटुए में परिवार और दिल में

सारा हिंदुस्तान छुपा लेते हैं!

☆☆

These brave soldiers also

have amazing   heart  too

They hide their family in the

wallet and India in the heart!

☆☆☆☆☆

वक्त  तो  वक्त  आने

पर  ही  बदलता  है,

मगर इंसान का क्या

कभी भी बदल जाता है…

☆☆

Time changes only when

the  time  comes,

But what to say of mankind

which changes randomly…

☆☆☆☆☆

ये  जिंदगी जो  मुझे

कर्जदार बनाती  रही,

कभी अकेले  में मिले

तो उससे हिसाब करूं…

☆☆

The life that has  kept

me always  indebted

If  ever I meet it alone,

I’ll settle accounts with it…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 152 ☆ नवगीत – “भारत / तकनीक…” ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक नवगीत – भारत / तकनीक…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 152 ☆

☆ नवगीत – भारत / तकनीक… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

भारत

यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है 

कर दें सभी मिल देश का, निर्माण नव अभियान है 

गुणयुक्त हो अभियांत्रिकी, शर्म-कोशिशों का गान है 

परियोजना त्रुटिमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है

तकनीक

नवरीत भी, नवगीत भी, संगीत भी तकनीक है 

कुछ प्यार है, कुछ हार है, कुछ जीत भी तकनीक है 

गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी तकनीक है 

श्रम-मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२-१२-२०१५, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ कॅप्टन  सचिन गोगटे – कॅडेट नंबर ३४५० ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

? इंद्रधनुष्य ?

☆ कॅप्टन  सचिन गोगटे – कॅडेट नंबर ३४५० ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

कॅप्टन सचिन गोगटे यांनी मर्चंट नेव्हीमध्ये अनेक वर्षं काम केलं. साध्या शिकाऊ कॅडेटपासून प्रचंड मोठ्या ऑइलटँकरचे कॅप्टन म्हणून अनेक वर्षं ते कार्यरत होते.  या कार्यकाळातील स्वानुभवांवर आधारीत लेखनातून त्यांनी आपल्याला या वेगळ्या क्षेत्राचा थरारक आणि सखोल परिचय करून दिला आहे.

मेकॅनिकल इंजिनिअर झाल्यावर सचिन यांनी ‘टीएस राजेंद्र’ या भारत सरकारच्या जहाजावर मर्चंट नेव्हीचे प्रशिक्षण घेतले. नंतर काही वर्षं व्यापारी जहाजांवर काम केले.डेक कॅडेटपासून सुरू झालेला त्यांचा जीवनप्रवास चाळीस वर्षं अव्याहत या क्षेत्रात सजगतेने काम करून  ऑइल टँकरचे तज्ज्ञ कॅप्टन या पदापर्यंत पोहोचला. अनेक परदेशी व्यापारी  जहाजांवर त्यांनी कॅप्टन म्हणून उत्कृष्ट काम केले.तसेच ऑइल टँकर व ऑइल फील्ड्स यातील तज्ज्ञ व्यक्ती म्हणून  जगभर नाव कमावले. कंपनीच्या विविध जहाजावर जाऊन तिथल्या उमेदवारांना प्रशिक्षण देण्यासाठी त्यांना आवर्जून बोलाविले जाई. त्यासाठी त्यांना  सततचा विमान प्रवास करावा लागला. त्यांनी जगातल्या १२० देशांना भेटी दिल्या. सहावेळा पृथ्वी प्रदक्षिणा घडली.

एखाद्या परदेशी बंदरात पोचल्यावर पाच सहा तासात तिथले व्यापार-व्यवहार समजून घेणे आणि त्याबद्दल बोटीवरील सहकाऱ्यांना व्यावहारिक प्रशिक्षण देणं त्यांनी महत्त्वाचं मानलं. जहाजाच्या आणि सहकाऱ्यांच्या सुरक्षेला प्राधान्य दिलं.

इराण- इराक लढाई, अंगोला, सिरीया अशा युद्धक्षेत्रात  काम करताना जीवावरच्या प्रसंगांना तोंड द्यावं लागलं. समुद्री चाचेगिरीच्या प्रदेशात सुरक्षित राहणं ही फार महत्त्वाची गोष्ट असते. ही सुरक्षितता कशी मिळवावी याचं प्रशिक्षण देण्यासाठी त्यांनी अनेकदा सोमालीया, पश्चिम आफ्रिका, इंडोनेशियाच्या प्रदेशात जाऊन काम केलं. ऑइल टँकर्सवर काम करताना तिथल्या सुविधा वापरून जहाजांवरच्या मोठ्या आगींना तोंड देण्याचे प्रशिक्षण त्यांनी बारा वर्षे दिलं.

कॅप्टन सचिन यांनी आधुनिक विज्ञान आणि इलेक्ट्रॉनिक्स तंत्रज्ञानाचे अत्याधुनिक  शिक्षण घेऊन स्वतःला सतत काळाबरोबर ठेवलं. त्यामुळे ते अनेक जहाजांचे दूर संपर्काने (रिमोटली) जहाजाच्या ब्लॅक बॉक्सचं विश्लेषण करणे,नेव्हिगेशन ऑडिट करणे अशी कामे करू शकले.

या धाडसी क्षेत्रातला पैसा आपल्याला दिसतो पण त्यासाठी भरपूर शारीरिक, बौद्धिक आणि मानसिक कष्ट  करावे लागतात. सलग ३६ तास ड्युटी बऱ्याच वेळा करावी लागते. जमिनीचं दर्शनाही न होता अथांग सागरात अनेक दिवस काढावे लागतात. भर समुद्रात भयानक वादळांना तोंड द्यावे लागते.कुटुंबापासून महिनो महिने दूर राहावं लागतं. अनेकदा सचिन यांनी सागरी चाचेगिरीच्या संकटातून शक्तीने आणि युक्तीने जहाजाला सहीसलामत बाहेर काढले. कुठल्याही व्यापारी जहाजाचा किंवा ऑईलटँकरचा त्या त्या बंदरातील व्यवहार आपल्याला वाटतो तितका सरळ, साधा, सोपा कधीच नसतो. त्याला राजकीय, सामाजिक, आर्थिक आणि दहशतवादाचे अनेक पैलू असतात.

सचिन  कॅप्टन असलेल्या सर्व जहाजांवर खूप कडक शिस्त स्वतःसह सर्वांनी पाळावी यासाठी ते  आग्रही असंत. तसेच सहकाऱ्यांच्या आरोग्याची, कुटुंबीयांची योग्य प्रकारे काळजी घेतली जाईल यावरही त्यांचे लक्ष असे .स्वतःच्या निर्व्यसनी, निर्भिड,धाडसी वागणुकीमुळे तसेच स्वच्छ चारित्र्यामुळे त्यांचा दरारा होता. बंदराला बोट लागल्यानंतर अनेक गैरव्यवहार  (बाई, बाटली, स्मगलिंग , अमली पदार्थ) होत असतात. सचिन यांनी कुणाकडूनही कसलीही भेट स्वीकारली नाही आणि स्वतःच्या जहाजावर कुठलाही गैरव्यवहार होऊ दिला नाही. यामुळे कंपनीचे वरिष्ठ अधिकारी त्यांच्यावर नेहमी खुश असत.

या त्यांच्या साऱ्या प्रवासात त्यांच्या पत्नी मीना यांनी मोलाची साथ दिली. लहानग्या ईशानसाठी आई आणि वडील दोघांची भूमिका समर्थपणे निभावली. निगुतीने संसार केला. सचिन यांना कसल्याही कौटुंबिक अडचणी न कळवता हसतमुखाने पाठिंबा दिला.ईशानचे शिक्षण आणि सर्व आर्थिक व्यवहार, नातेसंबंध उत्तम रीतीने सांभाळले. त्यावेळी आजच्यासारख्या मोबाइल ,इंटरनेट अशा कुठल्याही सोयीसुविधा नव्हत्या. जेव्हा कधी मीना यांना सचिन यांच्या जहाजावर जाण्याची संधी मिळाली तेव्हा लहानग्या ईशानसह सगळे आंतरराष्ट्रीय प्रवास एकटीने  करून ज्या बंदरात सचिन यांचे जहाज असेल ते बंदर गाठावे  लागे. जहाजावरही कॅप्टनची बायको म्हणून वेगळेपणाने न वागता मीना यांनी जेवणघरातील कूकपासून सर्वांशी सलोख्याचे संबंध ठेवले.

मीना यांना एकदा अशा प्रवासात एका भयानक प्रसंगाला तोंड द्यावे लागले. मीना यांना इजिप्तच्या कैरो या विमानतळावर पोहोचून तिथून प्रवासी गाडीने २२० किलोमीटर प्रवास करून अलेक्झांड्रिया या बंदरात सचिन यांची बोट गाठण्यासाठी जायचे होते. त्यांच्याबरोबर सचिन यांचे एक सहकारी होते. हा प्रवास थोडा आडवळणाचा आणि वाळवंटातील होता. वाटेत रानटी टोळ्यांची भीती असे. म्हणून काळोख व्हायच्या आत अलेक्झांड्रिया इथे पोहोचणे आवश्यक होते. परंतु विमानतळावरील एजंटच्या हलगर्जीपणामुळे प्रवास सुरू व्हायलाच संध्याकाळचे चार वाजले. थोडा प्रवास झाल्यावर ड्रायव्हरने त्यांना वाळवंटातील एका छोट्या हॉटेलमध्ये नेले व रात्र इथेच काढा असे सांगून तो पसार झाला. हॉटेलमधील त्या आडदांड परपुरुषांच्या वखवखलेल्या नजरा त्यांच्यावरून फिरत होत्या. धोका ओळखून त्यांनी  रूममधील सर्व फर्निचर ढकलत नेऊन दाराला टेकवून ठेवले. रात्रभर त्यांच्या दरवाजावर मोठ मोठ्या थापा मारल्या जात होत्या. पण मीना मुलाला कवटाळून गप्पपणे कॉटवर बसून होत्या. सकाळी उजाडल्यावर तो ड्रायव्हर आला आणि त्या कशाबशा अलेक्झांड्रियाला पोहोचल्या. संपर्काचे कुठलेही साधन नसल्यामुळे सचिन खूप काळजीत होते पण मीनाने विलक्षण धैर्याने साऱ्या प्रसंगाला तोंड दिले.

दैवगती खूप अनाकलनीय असते. सचिन एकदा कामासाठी तुर्कस्तानमध्ये इस्तंबूल इथे गेले होते. त्यांना रात्रीचं विमान पकडून सिंगापूर इथे जायचं होतं. संध्याकाळी काहीतरी खायला म्हणून ते रेल्वेस्टेशनकडे निघाले होते तेवढ्यात कानठळ्या बसवणारा स्फोटाचा आवाज आला आणि सचिन उलटे लांबवर फेकले गेले. त्यांच्या नाकातून कानातून रक्त वाहत होते अतिरेक अतिरेक्यांनी केलेल्या बॉम्बस्फोटचा त्यांना असा फटका बसला. कसबसे उठून त्यांनी विमानतळ गाठला. सिंगापूरला पोहोचले. पण तिथे गेल्यावर त्यांना चालायला खूप त्रास होऊ लागला. हालचालीवर बंधनं आली. त्या रोगाचे निदान एम एन डी (मोटर न्यूरॉन डिसीज) असे झाले. शरीरातील सर्व नर्व्हस सिस्टीम क्षीण होत गेली. कुटुंबीयांसोबत या आजाराबरोबर चार-पाच वर्षे झगडून सचिन यांनी या जगाचा निरोप घेतला. त्यांच्या कर्तृत्वाला मनःपूर्वक नमस्कार 🙏

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – सोनेरी तारा… – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– सोनेरी तारा… – ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

गच्च  काळोखाची रात

तारा सोनेरी प्रकाशला

माणकांचा इवला तुरा

त्यास कोणी जडविला …. 

 तारा  चमचम करी

 काळ्या पार्श्वभूमीवरी

 मोतियाची ही आरास

 शोभतसे  तयावरी …. 

 तारा आकाशात  उगवला 

सुवर्ण  झळाळी अंधाराला 

दुधाळ चांदणे नित्य पसरते

आजची रजनी गुरूपुष्याला …. 

 गुरूपुष्य नक्षत्र  आभाळाला

 दान मिळाले कुठून आजला

 निशाराणीच्या  तमशालीवर

 सोनेरी तारा जडला गेला …. 

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

मो 8149144177

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #204 – 90 – “ना किया अब तक वो तू कर देख …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “ना किया अब तक वो तू कर देख…”)

? ग़ज़ल # 90 – “ना किया अब तक वो तू कर देख…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

अंगारे की तासीर जरा छू कर देख,

ना किया अब तक वो तू कर देख।

ग़रीब हो गया ठंडा आकाश के नीचे,

बँगले में हीटर से गर्माया कूकर देख।

वो जो सुंदर जिस्म पर इतराता था,

ऊँची लपट में जला वह धू कर देख।

लिया गया हाथोंहाथ सत्ता वाला नेता,

चुना जिन्होंने उनसे दगा तू कर देख। 

करते किसे याद तुम भरकर तिजौरी,

‘आतिश’ बन्दों से मुहब्बत तू कर देख।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 81 ☆ मुक्तक ☆ ।। धरती से चांद तक भारत ने बना दिया इतिहास है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

☆ मुक्तक ☆ ।। धरती से चांद तक भारत ने बना दिया इतिहास है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

[1]

चांद पर   भारत   ने   परचम    लहराया है।

छूकर दक्षिण  ध्रुव   नया नाम   कमाया है।।

पहला देश बना  इस  छोर   पर जाने वाला।

दूर के चंदा  मामा का  गजब टूर लगाया है।।

[2]

चंद्रयान 3 ने भारत की नई पहचान बनवा दी है।

दुनिया जहान को विश्व  गुरु कहानी सुना दी है।।

विक्रम प्रज्ञान अब  लग गए हैं खोजी काम पर।

आन बान हिंदुस्तान की   आसमान बना दी है।।

[3]

विज्ञान की जीत भारत की कामयाबी बन गई है।

दूर चंदा मामा की सफ़लता  नयाबी बन गई है।।

शानदार जानदार अभूतपूर्व अद्भुत रहा अंजाम।

सारी दुनिया के सवालों की लिए जवाबी बन गई।।

[4]

सोमनाथ ओ उनकी टीम ने रच दिया इतिहास है।

चौथा देश बना भारत ये अवसर  बहुत खास है।।

तिरंगा फहराया  दिया  है चंद्रमा की मिट्टी   पर।

हम मंगल शुक्र भी जीत लेंगे  ऐसा विश्वास है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 145 ☆ महाकवि तुलसी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित कविता – “महाकवि तुलसी…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 

 ☆ महाकवि तुलसी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हे राम कथा अनुगायक तुलसी, जन मन के अनुपम ज्ञाता

तुमने जो गौरव ग्रंथ लिखा, भटकों को वह पथ दिखलाता।

 

‘मानस’ हिन्दी का चूड़ामणि, मानवताहित तव अमर दान

संचित जिसमें सब धर्म नीति, व्यवहार, प्रीति, आदर्श ज्ञान।

 

हे व्रती उपासक रामभक्त, अनुरक्त सतत साधक ज्ञानी

तुमने जीवन को समझ सही, भावों को दी मार्मिक वाणी ।

 

जनभाषा में करके व्याख्या लिख दी जीवन की परिभाषा

अनुशीलन जिसका देता है दुख में डूबे मन को आशा ।

 

भौतिक संतापों से झुलसी, जीवन लतिका जो मुरझाई

मानस जल कण से सिंचित हो, फिर पा सकती नई हरियाई ।

 

तुम भारत के ही नहीं, सकल मानवता के गौरव महान

गुरू श्रेष्ठ महाकवि हे तुलसी, तुम अतुल विमल नभ के समान।

 

हे भारत-संस्कृति समन्वयक, नित राम तत्व के गुणगायक

तुम धर्मशील, गुण संस्थापक, सात्विक मर्यादा उन्नायक ।

 

शिव-शक्ति-विष्णु की त्रिधा मिला, शुभ रामभक्ति के उद्‌गाता

हितकर सामाजिक मूल्यों के तुम सर्जक, नव जीवन दाता ।

 

सब अपना लेते यदि उसको, जो पथ है तुमने दिखलाया

तो होता सुख-संसार सुलभ, मन जिसे चाह पा न पाया।

 

पर कमी हमारी ही, हममें हैं कई स्वार्थी संसारी

लेकिन जिन मन तव राम बसे, वे सतत तुम्हारे आभारी।

 

साहित्य जगत के प्रखर सूर्य से आसमान हे ख्यात नाम –

अभिवादन है तव चरणों में शत शत वन्दन, शत शत प्रणाम ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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