☆ सोशल मीडिया पासून सावधान… भाग – ३ ☆ सुश्री विभावरी कुलकर्णी ☆
मागच्या आठवड्यात मला एक फोन आला.लाईट बिल भरले नाही.एम.एस. ई.बी.मधून बोलतो आहे असे सांगणारा.त्यांना बिल भरल्याचे सांगितले.त्यावर पलीकडून पत्ता,बिलाची रक्कम,कसे भरले आहे याचे डिटेल्स सांगण्यात आले.पण त्या ॲप मधून भरल्यामुळे बिल मिळाले नाही असे सांगितले.बिल आज भरले नाही तर वीज कट होईल सांगितले.मी ऑफीसमध्ये जाऊन बघते असे सांगितले.तर म्हणे आम्ही बिल अपडेट करून देतो.फक्त एक ॲप डाऊनलोड करा.आणि त्या वर येणारा ओ टी पी सांगा.बाकीचे आम्ही बघतो असे सांगितले. ओ टी पी पाठवा म्हंटल्यावर मी सावध झाले.डोक्यात धोक्याची घंटा वाजली.मी सांगितले माझे सगळे कॉल आपोआप रेकॉर्ड होतात.हा कॉल पोलिसांना ऐकवते आणि मग ठरवते.हे ऐकल्या बरोबर पलीकडून कॉल कट झाला.आणि मी बँक रिकामी होण्यापासून वाचले.नंतर असे बरेच किस्से समजले.म्हणून हे लिहावे वाटले.
सध्या नेट वरून फसवणुकीचे असे प्रकार खूप वाढले आहेत.आपल्याला घाबरवून अशी माहिती मागवतात आणि त्या आधारे पैसे लुबाडतात.
हे एक प्रकारचे सायबर फिशिंग असते.जसे मासेमारी साठी गळ टाकतात तसेच होते.यात एखादे ॲप किंवा लिंक गळ म्हणून वापरले जाते.ते ॲप डाऊनलोड केले.किंवा लिंक क्लिक केली की आपण त्यात अडकतो.आणि आपली सगळी माहिती गुन्हेगारांना मिळते.
कोणतीही सुविधा आली की त्याचे फायदे तोटे दोन्ही असते.कोणत्याही सुविधा किंवा आधुनिक तंत्रज्ञान वाईट नसते.गरज असते ती आपण पूर्ण माहिती घेऊन ते काळजी पूर्वक वापरण्याची.जसे सिगारेट पाकिटावर वैधानिक इशारा असतो.तसेच इशारे याच सोशल मीडिया वर वारंवार दिले जातात.पण आपण सोयीस्कर दुर्लक्ष करतो.आणि अशा सापळ्यात अडकतो.तरी सावध राहून व्यवहार करावेत.ते आपल्या सोयी साठीच असतात.
अजून एक सांगावेसे वाटते.आपण ज्या देवदेवतांच्या इमेज किंवा संदेश असलेल्या इमेज पाठवतो त्या मुद्दाम फोन मध्ये व्हायरस सोडण्यासाठी बनवलेल्या असतात.अगदी सगळ्याच तशा नसतात.पण आपण काळजी घ्यावी.आपल्याला सुद्धा चांगले विचार सुचतात की,ते टाईप करून पाठवावेत.आणि आलेल्या इमेज डाऊनलोड न करता डिलीट कराव्यात.
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “चौकन्ने रहो…”।)
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “मुठ्ठी को बाँधो कसकर…”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 14 ☆ मुठ्ठी को बाँधो कसकर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
(वरिष्ठ साहित्यकारश्री अरुण कुमार दुबे जी,उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “चाहतें हमने न पाली…“)
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपके एक विचारणीय आलेख “पानीपत…“ श्रृंखला की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 73 – पानीपत… भाग – 3 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
Nostalgia का हिंदी में अर्थ है अतीत की सुनहरी यादों में खोना और वर्तमान की उपेक्षा कर उदासीनता में डूब जाना. पर अभी तो बात उस दौर की है जब मुख्य प्रबंधक अपनी पुरानी शाखा से रिलीव नहीं हुये थे.
पदोन्नति आत्मविश्वास देती है और अगर पहले से हो तो उसमें वृद्घि करती है. ये समय होता है अपेक्षाओं को, निंदकों को शब्दहीन उत्तर देने का. वो जो आपको हल्के में लेते रहे, मजाक उड़ाते रहे उनको यह समझाने कि बंदे को “एवंई” में लेने की भूल का वो प्रायश्चित कर लें, निंदकों को यह बोलने का कि, “सॉरी” जल्दी बोल दो क्योंकि रिलीव कभी भी हो सकते हैं”. जो कट्टर निंदक होते हैं वो बैंक की प्रमोशन पॉलिसी में ही लूपहोल्स ढूंढते हैं और उनका बड़ी निर्दयता से ये मानना होता है कि “क्या जमाना आ गया है, कैसे कैसे लोग प्रमोट हो रहे हैं या “ऐसे वैसे, कैसे भी”लोग प्रमोट हो रहे हैं. तो ऐसे लोग तो न तो सॉरी बोलते हैं न ही नज़रें चुराते हैं. उनकी उद्दंडता और धृष्टता जारी रहती है, कई तो “तुसी वडे मजाकिया हो”वाले होते हैं जिनके कमेंट्स के एक दो नमूने पेश हैं;
कैसा लगा आपको सर!!!जब रात को सोये तो स्केल थ्री थे और सुबह नींद खुली तो स्केल फोर. क्या भाभी साहिबा ने भी कुछ फर्क महसूस किया.
सर जी!!!आप स्केल फोर प्रमोट तो बैकडेट से हुये हैं, एरियर्स भी उसी डेट से लेंगे पर काम तो स्केल थ्री का करते रहे. तो क्या रिकवरी भी होगी. इस पर उनका सहायक निंदक कटाक्ष करता कि काम तो न पहले किया न अब करने वाले हैं.
पदोन्नत पात्र शाखास्तरीय लिहाज पालने के कारण सिर्फ मुस्कुराता है और आने वाले समय से अनजान होकर भी मन ही मन सोचता है कि अब कम से कम इन ‘धतूरों’से छुटकारा मिलेगा.
शाखा में सिर्फ निंदक ही नहीं होते बल्कि आउटडोर पार्टियों का मौका तलाशने वाले लोग भी होते हैं जो परनिंदा जैसी क्षुद्र दुर्बलता से ऊपर उठकर पदोन्नत पात्र से आउटडोर पार्टियों की खर्च के अलावा सारी व्यवस्था का उत्तरदायित्व स्वंय लेकर पार्टी सेट करने में लग जाते हैं. पार्टी का मेन्यू डिसाइड करने में यहाँ चलती तो इन्हीं लोगों की है और पदोन्नत पात्र का काम सिर्फ पेमेंट करने का होता है.
पदोन्नति का आनंद क्षणिक होता है और ये अक्सर उसी शाखा तक ही सीमित रहता है जहाँ से प्रमोशन की घोषणा प्राप्त की जाती है. क्योंकि प्रमोशन के कारण नये उत्तरदायित्व, नई ब्रांच, नये परिवेश, नये लोगों से सामना नहीं होता. वैसे शिफ्टिंग तो परिवार की भी होती है जो फिलहाल इस प्रकरण में नहीं थी वरना नई जगह नया सर्वसुविधायुक्त आवास, अच्छे स्कूलों में एडमीशन पाना, सहृदय और हेल्पिंग पड़ोसी का मिलना भी किस्मत की बात होती है.
फिलहाल हमारे नवपदोन्नत मुख्य प्रबंधक शाखा से औपचारिक फेयरवेल लेकर और कुछ स्टाफ को उनकी डिमांडेड पार्टियां देकर प्रस्थान करने की तैयारी करते हैं. औपचारिक फेयरवेल में उनकी परंपरागत प्रशंसा और उनके असीम योगदान की महत्ता प्रतिपादित की गई जिसे सुनकर उन सहित कई लोग उनकी खूबियों से पहली बार परिचित हुये. चूंकि वो साइलेंट वर्कर थे तो किसी ने यह तो नहीं कहा कि उनके जाने से शाखा में सूनापन आ जायेगा पर उनके “Obediently yours and always available on need or even without any need ” इस गुण या दोष की उनके निंदकों ने भी तहेदिल से तारीफ की.
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆.आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – भुतैली काली रातें हैं…।)
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार,साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…हमारी इटली यात्रा – भाग 3)
मेरी डायरी के पन्ने से… – हमारी इटली यात्रा – भाग 3
(अक्टोबर 2017)
हमारा तीसरा पड़ाव था पॉम्पे।
पॉम्पे संसार का एकमात्र ऐसा शहर है जो ज्वालामुखीय लावा के कारण उध्वस्त हो चुका था और फिर कभी न बसा। यह शहर बहुत पुराना शहर था। पॉम्पे मैगनस नामक रोमन जेनरल ने इस शहर की स्थापना की थी। बाद में यह शहर लोगों की छुट्टी मनाने की जगह बन गई थी। यहाँ के मकान अत्यंत सुंदर और रंग बीरंगी टाइल्स से बने थे। यहाँ फलों -सब्ज़ियों का बाजार था, रेस्तराँ थे। तकरीबन 12000 लोग यहाँ स्थायी रूप में रहते थे। उत्सवों के समय आसपास के रहवासी भी उत्सव मनाने यहाँ ऊपर आया करते थे।
नेपल्स की खाड़ी के पास एक ज्वालामुखीय पर्वत है जिसका नाम है विसूवियस।
सन 79 में इस पर्वत से निकला लावा या भूराल ने देखते ही देखते पूरे शहर को उध्वस्त कर दिया, निगल लिया। लोगों को एक क्षण में पत्थर जैसा बना दिया।
आज मनुष्य की कोई ऐसी मूर्ति यहाँ नहीं हैं पर उस समय के बर्तन, कुछ पत्थर बने पशु और उध्वस्त घर अवश्य देखने को मिलते हैं। सारा शहर सुचारु रूप से बना हुआ था। आधुनिक ढंग से सड़कें, गलियों में वितरित तथा स्टेटस के हिसाब से मकान बने हुए थे। एक भव्य मंदिर भी था क्योंकि अभी लोग ईसाई नहीं थे। वहाँ पहुँचकर सच में मन में टीस- सी उठती है कि किस तरह बसा बसाया शहर और एक अत्यंत उन्नतशील सभ्यता क्षण में उध्वस्त हो गई। तकरीबन 10, 000 लोगों की मौत हुई थी। 1748 तक किसी को इस शहर के अस्तित्व के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। आज यह स्थान UNESCO की देखरेख में है। आज भी यहाँ आरक्योलॉजिकल सर्वे हो रहे हैं।
पॉम्पे के उध्वस्त शहर में घूमते हुए हमें आठ – नौ घंटे लगे। हम पॉम्पे के इतिहास की जानकारी पढ़कर ही यह स्थान देखने गए थे। हर स्थान के दर्शन के समय हम ऐतिहासिक तथ्यों से रिलेटे कर सके।
स्मरण रहे हमने हर स्थान का चुनाव अपनी जिज्ञासा के अनुरूप किया था और हम किसी ग्रुप के साथ कभी नहीं घूमें। उसका मुख्य कारण यह है कि ऐसी ट्रिप वाली बसें आपको जगहें बाहर से ही दिखाती हैं या दो घंटे में सैर करके लौट आने को कहती है। हम इस तरह से घूमना नहीं चाहते थे तो हर स्थान पर पर्याप्त समय दे सके।
यहाँ हमें बड़े -बड़े घरों के सामने ईंट से बँधी चौड़ी सड़कें दिखीं। सारा शहर छोटी छोटी गलियों में वितरित थी। बड़े अमीरों के घर के भीतर सुंदर मूर्तियाँ लगी दिखाई दी, कुछ घरों में फव्वारे और बगीचे भी दिखाई दिए। सभी आठ दस घर एक दूसरे के साथ स्टे हुए थे। फिर उसके बाद एक गली हुआ करती थी। हर घर के बाहर बरामदा सा है। उनमें खंभे बने हुए हैं।
हमने ज्वालामुखी की राख से लिप्त बर्तन, कुत्ते और घर में उपयोग में लाए जानेवाले बर्तन देखे। हमारा मन सिहर उठा। सभी कुछ मानो ठोस पदार्थ से बने हुए दिखाई देते हैं। उस रात क्या हुआ होगा इसका अंदाज़ा लगाना भी कठिन ही है।
बाहर निकलने के गेट से पूर्व एक रेस्तराँ है जहाँ साधारण इटालियन भोजन और कॉफी की व्यवस्था है। हम भी सारा दिन चलकर थक चुके थे तो थोड़ी देर आराम करने के लिए कॉफी का स्वाद लेकर वहाँ बैठ गए।
उस दिन हम बारह पर्यटक रिसोर्ट से चले थे तो हमारे लिए एक मिनी बस की व्यवस्था रिसोर्ट ने कर दी थी। अवश्य ही थोड़ी ऊँची कीमत देकर यह व्यवस्था की गई थी उसका कारण यह था कि पॉम्पे तक जाने के लिए कोई ट्रेन की व्यवस्था नहीं थी। वहाँ प्राइवेट टैक्सी या इस तरह के मिनी बस द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। लौटते समय हमें वह पहाड़ भी दिखाया गया जहाँ से ज्वालामुखी का प्रकोप हुआ था। हम नैपल्स की खाड़ी तक पहुँचे। यह ऐतिहासिक शहर है। यहाँ बहुत पुराने चर्च भी हैं। यहाँ की इमारतें अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं। हम सभी बहुत थक चुके थे इसलिए हम किसी भी चर्च की सुंदरता को देखने के लिए नहीं गए जिसका आज हमें पश्चाताप भी है।
चौथे दिन हम रिज़ोर्ट में रहे। यहाँ भोजन पकाने की सुविधा थी। यहाँ हमने एक बेडरूम हॉल किचन वाला फ्लैट बुक किया था। उस दिन हमने कैरोलीन और डेनिस को दोपहर के समय भारतीय भोजन के लिए आमंत्रित किया था। उन्हें भी हमारा यह आतिथ्य बहुत मन भाया।
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है रेकी ग्रेंड मास्टर संजीव शर्मा और रेकी ग्रेंड मास्टर मंजू वशिष्ठ जी द्वारा रचित पुस्तक “रेकी हीलिंग ” पर पुस्तक चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 143 ☆
☆ “रेकी हीलिंग…” – रेकी ग्रेंड मास्टर संजीव शर्मा और रेकी ग्रेंड मास्टर मंजू वशिष्ठ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
पुस्तक चर्चा
पुस्तक – रेकी हीलिंग
लेखक – रेकी ग्रेंड मास्टर संजीव शर्मा और रेकी ग्रेंड मास्टर मंजू वशिष्ठ
प्रकाशक – नोशन प्रेस
संस्करण – २०२१
पृष्ठ – २५४, मूल्य – ५९९ रु
पुस्तक चर्चा… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल
जान है तो जहान है. अर्थात शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से मनीषियों के चिंतन का चलता रहा है. आयुर्वेद, यूनानी दवा पद्धती, ऐलोपैथी, सर्जरी, होमियोपैथी,योग चिकित्सा, कल्प, अनेकानेक उपाय सतत अन्वेषण के केंद्र रहे हैं. रेकी भी इन्हीं में से एक विकसित होता विज्ञान है जिसे अब तक प्रामाणिक वैज्ञानिक मान्यता नहीं मिल सकी है. मानवता के व्यापक हित में होना तो यह चाहिये कि एक ही छत के नीचे सारी चिकित्सा पद्धतियों की सुविधा सुलभ हों और समग्र चिकित्सा से मरीज का इलाज हो सके. किन्तु वर्तमान समय भटकाव का ही बना हुआ है.
साहित्यिक पुस्तको पर तो मेरे पाठक हर सप्ताह किसी किताब की मेरी चर्चा पढ़ते ही हैं. किताब के कंटेंट पर बातें करता हूं, पाठको की प्रतिक्रियायें मिलती हैं, जिन्हें पुस्तक चर्चा में कुछ उनके काम का लगता है वे किताब खरीदते हैं.
इस सप्ताह मेरे सिराहने रेकी हीलिंग पर रेकी ग्रेंड मास्टर संजीव शर्मा और रेकी ग्रेंड मास्टर मंजू वशिष्ठ की नोशन प्रेस से प्रकाशित किताब थी. नोशन प्रेस ने सेल्फ पब्लिशिंग के आप्शन के साथ हिन्दी किताबों को भी बड़ा प्लेटफार्म दिया है. मेरी अमेरिका यात्रा के संस्मरणो की किताब “जहां से काशी काबा दोनो ही पूरब में हैं” मैंने नोशन प्रेस से ही प्रकाशित की है.
इस पुस्तक रेकी हीलिंग के कवर पेज पर ही सेकेंड हेडिंग है अवचेतन का दिव्य स्पर्श. दरअसल रेकी जापान में फूला फला एक आध्यात्मिक विज्ञान है.हमारे कुण्डलिनी जागरण, स्पर्श चिकित्सा, टैलीपेथी का मिला जुला स्वरुप कहा जा सकता है. नकारात्मक विचार, क्रोध, असंतोष, असहिष्णुता जैसे अप्राकृतिक विचार हमारे मन और शरीर में तरह तरह की व्याधियां उत्पन्न करते हैं. रेकी आत्म उन्नयन कर मानसिक ऊर्जा के संचयन से स्वयं का तथा किसी दूसरे की भी बीमारी ठीक करने की क्षमता का विकास करती है. फिल्म मुन्ना भाई एम बी बी एस में जादू की झप्पी का जादू हम सब ने देखा है. मां के स्पर्श से या पिता के आश्वासन और हौसले से रोता चोटिल बच्चा हंस पड़ता है, अर्थात स्पर्श और भावों के संप्रेषण का हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती है यह तथ्य प्रमाणित होता है. वैज्ञानिक सत्य है कि ऊर्जा अविनाशी है, हर पिण्ड में ऊर्जा होती ही है, तथा ” यत्पिण्डे तत ब्रम्हाण्डे ” हम सब में वह ऊर्जा विद्यमान है, उसे ईश्वर कहें या कोई अविनाशी वैज्ञानिक शक्ति. हर दो पिण्ड परस्पर एक ऊर्जा से एक दूसरे को खींच रहे हैं यह वैज्ञानिक प्रमाणित सत्य है. इस ऊर्जा के इंटीग्रेशन और डिफरेंशियेशन को ही केंद्रीय विचार बनाकर रेकी में रेकी मास्टर स्वयं की धनात्मक ऊर्जा को बढ़ाकर, ॠणात्मक ऊर्जा के चलते बीमार व्यक्ति का इलाज करता है यही रेकी हीलिंग है.
इस किताब में रेकी के इतिहास का वर्णन है. रेकी के सात चक्र मूलाधार, स्वाधिष्टान, मणिपुर चक्र, अनाहत या हृदय चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्त्रधार चक्र परिकल्पित हैं ये लगभग उसी तरह हैं जिस तरह हमारे यहां कुण्डलनी जागरण के चक्र हैं. किताब में स्वयं पर रेकी, तथा दूसरों पर रेकी का वर्ण किया गया है. रेकी ध्यान अर्थात मेडीटेशन, प्रभा मण्डल अर्थात औरा के विषय में भी बताया गया है. ओम के चिन्ह को ऊर्जा का प्रतिक बताया गया है.इसके साथ ही अन्य प्रतीक चिन्हों का भी विशद वर्णन है. शक्तिपात अर्थात एट्यूनमेंट को ग्रैंडमास्टर स्तर की दीक्षा बताया गया है. टेलीकाईनेसिस के जरिये दूरस्थ व्यक्ति तक शांत चित्त होकर एकाग्र ध्यान से ऊर्जा पहुंचा कर रेकी हीलिंग की जा सकती है.
रेकी विज्ञान के क्षेत्र में प्रारंभिक रुचि रखने वालों को यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी लगेगी.