(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा… #”)
☆ विचार–पुष्प – भाग 62 – स्वामी विवेकानंदांचं राष्ट्र-ध्यान – लेखांक तीन ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर ☆
‘स्वामी विवेकानंद’ यांच्या जीवनातील घटना-घडामोडींचा आणि प्रसंगांचा आढावा घेणारी मालिका ‘विचार–पुष्प’.
आपल्या समाजातील अज्ञान आणि दारिद्र्य दूर कसे होईल आणि भारताचे पुनरुत्थान कसे होईल?त्याच्या आत्म्याला जाग कशी येणार? याच प्रश्नावर जास्त वेळ चिंतन करत होते.
प्राचीन ऋषीमुनींनी दिलेले उदात्त आध्यात्मिक विचार आणि जीवनाची श्रेष्ठ मूल्ये खालच्या थरातील माणसांपर्यंत पोहोचवण्याची गरज आहे असे त्यांना तीव्रतेने वाटत होते. सामान्य माणसाच्या सेवेसाठी आणी उन्नतीसाठी आपण प्रयत्न करायचा असा स्वामीजींचा निर्णय झाला. हे करण्यासाठी पाच दहा माणसं आणि पैसा हवाच. पण या दरिद्री देशात पैसे कुठून मिळणार? त्यांना आलेल्या अनुभवा नुसार धनवान मंडळी उदार नव्हती.
आता अमेरिकेत सर्वधर्म परिषद भरते आहे. तिथे जाऊन त्यांना भारताच्या आध्यात्मिक संस्कृतीचा परिचय करून द्यावा आणि तिकडून पैसा गोळा करून आणून इथे आपल्या कामाची ऊभारणी करावी. आता उरलेले आयुष्य भारतातल्या दीन दलितांच्या सेवेसाठी घालवायचे असा संकल्प स्वामीजींनी केला आणि शिलाखंडावरून ते परतले. समाजाला जाग आणण्याचा आणि आपल्या देशातील बांधवांचे पुनरुत्थान घडवून आणण्याचा संकल्प त्यांनी केला. त्याच बरोबर स्वतविषयी अहंकार असणार्या पाश्चिमात्यांना आपल्या पौर्वात्त्यांच्या अनुभवापुढे नम्र होण्यास स्वामीजी प्रवृत्त करणार होते. आणि त्यासाठी भारताचा अध्यात्मिक संदेश जगभर पोहोचविणार होते. कारण सर्व मानव जातीने स्वीकारावीत अशी शाश्वत मूल्ये आपल्याला आपल्या पूर्वजांनी दिली आहेत. हे त्यांनी अनुभावातून आणि वाचनातून जाणून घेतलं होतं.
स्वामीजींनी ध्यान केलं होतं जगन्मातेचं आणि चिंतन केलं होतं भारतमातेचं. तीन दिवस तीन रात्रीच्या चिंतनातून प्रश्नाचं उत्तर स्वामीजींना मिळालं होतं. २५ ,२६, २७ डिसेंबर १८९२ ला स्वामीजींच्या वैचारिक आंदोलनाने सिद्ध झालेल्या याच शिलाखंडावर भव्य असे विवेकानंद शिलास्मारक उभे आहे.
कन्याकुमारीचे विवेकानंद शिला स्मारक हा धर्म कार्याच्या विकासाचा पहिला टप्पा होता. त्यानंतर विवेकानंद केंद्र राष्ट्रीय पातळीवर सुरू झाले हा दूसरा टप्पा तर विवेकानंद केंद्र इंटरनॅशनल ही पुढची संकल्पना . या पातळीवर स्वामीजींच्या स्वप्नातले विश्वव्यापी काम सुरू आहे.
स्वामीजींचे जीवन पाहता त्यांचे चरित्र आणि त्यांनी दिलेला संदेश खूप सुसंगत आहेत. ते हिंदुत्वाचे सर्वोत्कृष्ट प्रतींनिधी तर होतेच पण, ते सर्वाधिक थोर आणि जाज्वल्य असे आंतरराष्ट्रीयवादी ,आधुनिक भारतीय सत्पुरुष होते .
स्वामीजी कन्याकुमारीला पोहोचले तेंव्हा ते एक संन्यासी होते. पण या तीन दिवसांनंतर परिवर्तन होऊन तो, राष्ट्र उभे करणारा श्रेष्ठ नेता,जगाला त्याग आणि सेवेचा नवा संदेश देणारा श्रेष्ठ गुरु, एक खरा देशभक्त म्हणून जगन्मान्य झाला. स्वामीजींच्या स्वप्नातल्या कार्ययोजनेला प्रत्यक्ष स्वरूप देणारं हे वैचारिक आंदोलन केंद्रच आहे. आज ही श्रीपाद शिला विवेकानंद शिला म्हणून सर्वदूर परिचित आहे. या स्मारकाचे प्रेरणास्थान एकनाथजी रानडे आहेत. १९६३ मध्ये स्वामी विवेकानंद यांच्या जन्मशताब्दी निमित्त त्यांची आठवण म्हणून हे शिला स्मारक करण्याचा निर्णय घेतला. अनेक अडचणी आल्या.पण हे स्मारक आज या इतिहासाची साक्ष तर देतच आहे आणि कामासाठी प्रेरणा व विचार पण देतंय.
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कहानी ‘धंधा ’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार # 185 ☆
☆ कहानी ☆ धंधा ☆
(लेखक के कथा-संग्रह ‘जादू-टोना’ से)
पम्मी की व्यस्तता का अंत नहीं है। पंद्रह बीस दिन दूकान का फर्नीचर और काउंटर बनने में लगे, अब वस्त्रों को ढंग से सजाना है ताकि वे दूर से ही लोगों का ध्यान खींचें। एक सीधा-सादा दर्जी मिल गया है जो दिन भर बुटीक में बैठेगा। अच्छे ‘प्रॉफिट’ के लिए कर्मचारी का सीधा-सादा और निष्ठावान होना ज़रूरी है। कर्मचारी रोज़ कोई न कोई फरमाइश लेकर खड़े रहें तो फिर मालिक को मुनाफा कहाँ से होगा?
बुटीक के दरवाज़े के ऊपर एक शानदार बोर्ड लग गया है जिसे देखकर हर बार पम्मी मगन हो जाती है। उसे पक्का भरोसा है कि साल दो साल में बुटीक बढ़िया आमदनी देने लगेगा। जो भी परिचित महिला मिलती है उससे पूछती है— ‘जब हम मेनत करेंगे तो मुनाफा क्यूँ नईं होगा?’ और हर बार जवाब मिलता है, ‘क्यूँ नईं होगा? जरूर होगा।’ लेकिन पूछते पूछते मम्मी का मन नहीं भरता।
पाँच दिन बाद बुटीक का उद्घाटन है। एक स्थानीय मंत्री से फीता काटने के लिए स्वीकृति मिल गयी है। पहले राज़ी नहीं हो रहे थे, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं से दबाव डलवाया तो मान गये। अब पम्मी फूली नहीं समा रही है कि उसके बुटीक का उद्घाटन मंत्री जी के कर-कमलों से होगा। पम्मी की सास सवेरे से कपड़ों में कीमत का ‘टैग’ लगाने में लगी थीं और पम्मी सामने लिस्ट रखकर कार्डों पर आमंत्रितों के नाम लिखने की माथापच्ची कर रही थी। निमंत्रण-पत्रों में उन घरों को तवज्जो दी जा रही थी जिनमें फ़ेमिली थोड़ा फैशनेबल थी और युवतियों की संख्या ज़्यादा थी। जेब में पैसा होना चाहिए और सर पर फैशन का भूत सवार होना चाहिए। ‘ओल्ड-फैशंड’ को बुलाने से क्या फायदा? बिना कुछ खरीदे घंटों बिटर-बिटर ताकेंगीं और फिर वापस लौट कर मीन-मेख निकालेंगीं।
नाम लिखते लिखते पम्मी ने अचानक माथे पर हाथ मारा और ‘हाय रब्बा, मेरे से बड़ी गलती हो गयी’ कह कर लंबी साँस छोड़ी। सास ने परेशान होकर उसकी तरफ देखा,पूछा, ‘क्या हुआ,पुत्तर? कौन सी गलती हो गयी?’
पम्मी हाथ का काम रोक कर बोली, ‘गलती ये हो गयी, माँजी, कि मैंने मिसेज़ सिंह से झगड़ा कर लिया।’
माँजी ने पूछा, ‘कब कर लिया?’
पम्मी बोली, ‘अभी पिछले महीने।’
माँजी ने पूछा, ‘क्यूँ कर लिया झगड़ा?’
पम्मी बोली, ‘उसके कुत्ते की वजह से हुआ। वो सवेरे कुत्ते को घुमाने ले जाती है। मैं उस दिन सैर को निकली थी। उसके बगल से गुज़री तो कुत्ता एकदम मेरे ऊपर भूँक पड़ा। मैं घबरा गयी। मैंने गुस्से में कह दिया कि कुत्ता रखने का शौक है तो उस को कंट्रोल करना सीखो। वो कहने लगी कि मैं फालतू गुस्सा दिखा रही हूँ, कुत्ते ने काटा तो नहीं है। मैंने कहा तुझे मैनर्स नहीं हैं, उसने भी कहा मुझे मैनर्स नहीं हैं। फिर शटप शटप कर हम लोग अपने अपने घर आ गये।’
सास जी बोलीं, ‘तो इसमें क्या गलत हो गया? ठीक ही तो कहा तूने। आगे कुत्ते को कंट्रोल में रखेगी।’
पम्मी फिर माथा ठोक कर बोली, ‘अरे माँजी, सिंह लोगों के तीन रिश्तेदार तो इसी कॉलोनी में हैं। दो घर बगल में विजय नगर में हैं। एक रिश्तेदार स्नेह नगर में है। वो नाराज़ रही तो उसका कोई रिश्तेदार मेरे बुटीक में नहीं आएगा। कॉलोनी के दूसरे लोगों को भड़काएगी वो अलग।’
माँजी पैर फैला कर बोलीं, ‘मरने दे। नहीं आते हैं तो न आयें। तू क्यों दुबली होती है?’
पम्मी गाल पर हाथ रख कर बोली, ‘आप तो कुछ समझतीं नहीं, माँजी। उनके छः घरों में कम से कम बीस पचीस लेडीज़ होंगीं। अगर सब मुझसे रूठ कर बैठ गयीं तो मेरा तो कितना नुकसान हो जाएगा। सब आ जाएँ तो मेरे तो सॉलिड कस्टमर हो जाएँगे।’
माँजी ने सहमति में सिर हिलाया, कहा, ‘बात तो ठीक है, पुत्तर। तूने गलती कर दी। कुत्ते के पीछे क्या लड़ना!’
पम्मी थोड़ी देर चिबुक पर हथेली रखकर चिंतामग्न रही, फिर बोली, ‘अब इस मामले को आप ही ठीक कर सकती हैं, माँजी।’
माँजी ने पूछा, ‘मैं क्या कर सकती हूँ भला?’
पम्मी बोली, ‘आप कल सवेरे कार्ड लेकर उनके घर चली जाओ। आप स्यानी हो, आपके जाने का असर पड़ेगा। आप बोलना कि जरूर आएँ। कोई गलती हो गयी हो तो मन में न रखें।’
माँजी बोलीं, ‘तू कहती है तो चली जाऊँगी।’
पम्मी बोली, ‘आप उनको कार्ड दे आओ। उनके रिश्तेदारों को मैं दे आऊँगी।’
दूसरे दिन माँजी मिसेज़ सिंह का कार्ड लेकर गयीं। उनके घुटनों में दर्द होता था, इसलिए दोनों तरफ झूलती हुई, धीरे-धीरे चलती हुई गयीं।
मिसेज़ सिंह ने उन्हें बैठाया, हाल-चाल पूछे। माँजी कार्ड देकर बोलीं, ‘पम्मी के बुटीक का पंद्रह को उद्घाटन है पुत्तर। जरूर आना।’
मिसेज़ सिंह ने कहा, ‘ज़रूर आऊँगी, माँजी।’
माँजी बोलीं, ‘नईं पुत्तर! पम्मी बता रही थी कि उसने आपसे कुछ बातचीत कर ली थी। नादान है। बहुत पछता रही थी। कहने लगी मैं क्या मुँह लेकर जाऊँ, माँजी। आप चली जाओ, कहना मेरी बात को दिल से निकाल दें और उद्घाटन में जरूर आएँ। वैसे आपकी बहुत तारीफ करती है। कहती है मिसेज़ सिंह बहुत नेकदिल हैं।’
मिसेज़ सिंह ने आश्वस्त किया, ‘कोई झगड़ा नहीं है, माँजी। मैं ज़रूर आऊँगी।’
माँजी चलने के लिए उठीं, दरवाजे़ पर पलट कर बोलीं, ‘पुत्तर, मेरे से वादा किया है तो तोड़ना मत, नईं तो मुझे बहुत दुख होगा।’
मिसेज़ सिंह हँस कर बोलीं, ‘आप भरोसा रखिए माँजी। मैं पक्का आऊँगी।’
माँजी खुश खुश घर लौट गयीं। पम्मी को बताया तो उसने राहत की साँस ली।
उद्घाटन वाले दिन बुटीक के सामने शामियाना लगाकर सौ कुर्सियाँ लगा दी गयीं। मंत्री जी ने फीता काटकर पम्मी जी को ढेर सारी बधाइयाँ दीं और अपने भाषण में कहा कि शहर की सब स्त्रियाँ पम्मी जी की तरह आगे आने लगें तो शहर की तरक्की में देर नहीं लगेगी। फिर सब की फरमाइश पर खूब सारे फोटो खिंचवा कर वे दूसरे कार्यक्रमों में हिस्सा लेने चले गये।
फिर अतिथियों ने बुटीक को देखना और औपचारिक खरीदारी करना शुरू किया। पम्मी को सबसे बधाइयाँ मिल रही थीं। लेकिन पम्मी की नज़र बार-बार मिसेज़ सिंह को ढूँढ़ती थी जो अभी तक दिखायी नहीं पड़ी थीं। अचानक उसे मिसेज़ सिंह महिलाओं के जत्थे के साथ आती दिखायी पड़ीं और उसकी बाँछें खिल गयीं। आगे बढ़कर उसने उन्हें गले से लगा लिया, बोली, ‘आप आयीं तो कित्ती खुशी हुई। मुझे तो डर लग रहा था कि शायद आप नहीं आएंँगीं।’
मिसेज़ सिंह बोली, ‘क्यों नहीं आती? मैंने माँजी से कहा था कि ज़रूर आऊँगी।’
पम्मी बोली, ‘वो उस दिन मैं आपको उल्टा-सीधा बोल गयी थी, इसलिए मुझे डर लग रहा था। मैंने छोटी सी बात को इतना बड़ा बना दिया। आपका कुत्ता तो बहुत प्यारा है। दरअसल मैं बहुत शॉर्ट टेंपर्ड हो गयी हूँ। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाती हूँ, फिर बाद में पछताती हूँँ कि कैसी बेवकूफी कर दी। आपने उस दिन की बात को भुला दिया न ?’
मिसेज़ सिंह उसकी बाँह पकड़ कर हँस कर बोलीं, ‘ओहो! मैंने तो उस बात को कब का भुला दिया। आप खामखाँ परेशान हो रही हैं। चलिये, आपका बुटीक देखते हैं।। बड़ा शानदार बनाया है। मुझे बेटी के लिए दो-तीन सूट खरीदना है।’
पम्मी उनकी बाँह थामकर उन्हें अन्दर ले गयी। बाकी मेहमान मिसेज़ सिंह को मिल रहे इस ‘वीआईपी ट्रीटमेंट’ को देखकर हैरान थे, लेकिन पम्मी यह सोच सोच कर खुश थी कि उसने धंधे के कुछ जरूरी गुर सीख लिये हैं।
Anonymous Litterateur of Social Media# 132 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 132)
Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.
Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.
In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.
Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.
हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 181☆ शिवोऽहम्… (6)
आत्मषटकम् के छठे और अंतिम श्लोक में आदिगुरु शंकराचार्य महाराज आत्मपरिचय को पराकाष्ठा पर ले जाते हैं।
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥
मैं किसी भिन्नता के बिना, किसी रूप अथवा आकार के बिना, हर वस्तु के अंतर्निहित आधार के रूप में हर स्थान पर उपस्थित हूँ। सभी इंद्रियों की पृष्ठभूमि में मैं ही हूँ। न मैं किसी वस्तु से जुड़ा हूँ, न किसी से मुक्त हूँ। मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ।
विचार करें, विवेचन करें तो इन चार पंक्तियों में अनेक विलक्षण आयाम दृष्टिगोचर होते हैं। आत्मरूप स्वयं को समस्त संदेहों से परे घोषित करता है। आत्मरूप एक जैसा और एक समान है। वह निश्चल है, हर स्थिति में अविचल है।
आत्मरूप निराकार है अर्थात जिसका कोई आकार नहीं है। सिक्के का दूसरा पहलू है कि आत्मरूप किसी भी आकार में ढल सकता है। आत्मरूप सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित है, सर्वव्यापी है। आत्मरूप में न मुक्ति है, न ही बंधन। वह सदा समता में स्थित है। आत्मरूप किसी वस्तु से जुड़ा नहीं है, साथ ही किसी वस्तु से परे भी नहीं है। वह कहीं नहीं है पर वह है तभी सबकुछ यहीं है।
वस्तुतः मनुष्य स्वयं के आत्मरूप को नहीं जानता और परमात्म को ढूँढ़ने का प्रयास करता है। जगत की इकाई है आत्म। इकाई के बिना दहाई का अस्तित्व नहीं हो सकता। अतः जगत के नियंता से परिचय करने से पूर्व स्वयं से परिचय करना आवश्यक और अनिवार्य है।
मार्ग पर जाते एक साधु ने अपनी परछाई से खेलता बालक देखा। बालक हिलता तो उसकी परछाई हिलती। बालक दौड़ता तो परछाई दौड़ती। बालक उठता-बैठता, जैसा करता स्वाभाविक था कि परछाई की प्रतिक्रिया भी वैसी होती। बालक को आनंद तो आया पर अब वह परछाई को प्राप्त करना का प्रयास करने लगा। वह बार-बार परछाई को पकड़ने का प्रयास करता पर परछाई पकड़ में नहीं आती। हताश बालक रोने लगा। फिर एकाएक जाने क्या हुआ कि बालक ने अपना हाथ अपने सिर पर रख दिया। परछाई का सिर पकड़ में आ गया। बालक तो हँसने लगा पर साधु महाराज रोने लगे।
जाकर बालक के चरणों में अपना माथा टेक दिया। कहा, “गुरुवर, आज तक मैं परमात्म को बाहर खोजता रहा पर आज आत्मरूप का दर्शन करा अपने मुझे मार्ग दिखा दिया।”
आत्मषटकम् मनुष्य को संभ्रम के पार ले जाता है, भीतर के अपरंपार से मिलाता है। अपने प्रकाश का, अपनी ज्योति की साक्षी में दर्शन कराता है।
इसी दर्शन द्वारा आत्मषटकम् से निर्वाणषटकम् की यात्रा पूरी होती है। निर्वाण का अर्थ है, शून्य, निश्चल, शांत, समापन। हरेक स्थान पर स्वयं को पाना पर स्वयं कहीं न होना। मृत्यु तो हरेक की होती है, निर्वाण बिरले ही पाते हैं।
षटकम् के शब्दों को पढ़ना सरल है। इसके शाब्दिक अर्थ को जानना तुलनात्मक रूप से कठिन। भावार्थ को जानना इससे आगे की यात्रा है, मीमांसा कर पाने का साहस उससे आगे की कठिन सीढ़ी है पर इन सब से बहुत आगे है आत्मषट्कम् को निर्वाणषटकम् के रूप में अपना लेना। अपना निर्वाण प्राप्त कर लेना। यदि निर्वाण तक पहुँच गए तो शेष जीवन में अशेष क्या रह जाएगा? ब्रह्मांड के अशेष तक पहुँचने का एक ही माध्यम है, दृष्टि में शिव को उतारना, सृष्टि में शिव को निहारना और कह उठना, शिवोऽहम्…!
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।
💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित गीत“~ ओ! मेरी रचना संतानों आओ… ~”।)
(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है। देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल / पुस्तक मेले / साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)
☆ विश्व कविता दिवस की धूम ☆
सन् 1999 से विश्व कविता दिवस मनाया जा रहा है । इसका मुख्य उद्देश्य कविता व कवियों को सम्मान देना है । कवियों को सुना जाये और अच्छे से उनकी कृतियों को पढ़ा जाये, यही उद्देश्य है । हिसार के गुरु जम्भेश्वर विश्विद्यालय के हिंदी विभाग ने इस दिवस पर एक काव्य गोष्ठी आयोजित की । पहले तो विज्ञान व तकनीकी विश्विद्यालय में हिंदी विभाग का होना ही बहुत खुशी की बात है । इसके नवनियुक्त विभागाध्यक्ष प्रो एन के बिश्नोई ने कविता दिवस मनाने का संकेत विभाग को दिया । हिंदी विभाग को अस्तित्व में आये चार साल हो चुके हैं और इसके पहले अध्यक्ष प्रो किशना राम बिश्नोई अब सेवानिवृत होने जा रहे हैं लेकिन हिदी विभाग की स्थापना के लिये उन्हे याद किया जायेगा । वे भी इस अवसर पर मौजूद रहे । छात्र शिवा ने अच्छे से संचालन किया और कम से कम एक दर्जन छात्र छात्राओं ने काव्य पाठ किया । विभाग की ओर से डाॅ गीतू धवन, अनीता, कल्पना, कोमल व अन्य ने इसे सफल बनाने में खूब सहयोग दिया । एक अन्य कार्यक्रम भी हिसार मे विश्व कविता दिवस की पूर्व संध्या पर हुआ जिसमें प्रसिद्ध नवगीतकार सतीश कौशिक, विनोद मेहता, तिलक सेठी, ऋतु कौशिक, कमलेश भारतीय, सुरेंद्र छिंदा, सौरभ ठकराल, रश्मि, सरोज श्योराण आदि ने काव्य पाठ किया ।
चित्रा मुद्गल को सम्मान दर सम्मान: वरिष्ठ व चर्चित लेखिका चित्रा मुद्गल को सम्मान दर सम्मान मिल रहे हैं । उनकी सबसे नवीनतम कृति है – नकटौरा । उपन्यास जो सामयिक प्रकाशन से आया है । चित्रा मुद्गल को महाराष्ट्र साहित्य अकादमी और इंडियानेटबुक्स की ओर से सर्वोच्च सम्मान देना बहुत ही श्रेय की बात है । चित्रा मुद्गल को इनसे पहले भी व्यास सम्मान सहित अनेक सम्मान मिल चुके हैं । नये लेखकों को वे प्रोत्साहित करने में आगे रहती हैं ।
जालंधर से हिंदी पुस्तकें : पंजाब के सांस्कृतिक केंद्र जालंधर की चर्चा पहले की गयी तो बहुत से सुझाव आये और बहुत से नाम स्मरण करने की बात कही गयी । इनमें सुदर्शन फाकिर, जगदीश चंद्र वैद , गजल गायक जगजीत सिंह , विजय निर्बाध, भूमिका , आलोचक डाॅ विनोद शाही , डाॅ सेवा सिंह और भी अन्य अनेक । वैसे कोई चाहे तो पूरी किताब जालंधर पर लिख सकता है । अब भी पंजाब के जालंधर के लेखक हिंदी लेखन में सक्रिय योगदान दे रहे हैं । इन दिनों डाॅ तरसेम गुजराल , डाॅ अजय शर्मा व डाॅ विनोद कालरा की नयी पुस्तकें प्राप्त हुई हैं जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक मिठास लिये हुए हैं । सिमर सदोष पंकस अकादमी की स्मारिका के प्रकाशन में डूबे हैं । इन दिनों गीता डोगरा भी पंजाब के हिंदी लेखन के सितारे पुस्तक के संपादन में जुटी है । निधि शर्मा भी पत्रकारिता पर पुस्तक प्रकाशन की ओर अग्रसर है ।
साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈