हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 212 – जीवन सार हीन दिखता“…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत जीवन सार हीन दिखता ...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 212 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “जीवन सार हीन दिखता ...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

माँ, आँगनसे घिसट-घिसट

ओसारे थी आयी ।

तभी अन्तरा से अब बन

पायी है स्थायी ॥

 

नहीं सुना करती थीं बहुयें

याचन भोजन का ।

माँ को देहरी से चौका

तो था सौ योजन का ।

 

पार नहीं कर पाती थी

दुख भरी लखन-रेखा-

यह दूरी माँ को बन

उभरी थी गहरी खाई ॥

 

गठिया का प्रकोप घुटनों

में ऐसे था बढ़ता ।

ज्यों बरसाती नाला थोड़े

जल में  है चढ़ता ।

 

दर्द दबाती फिर भी

काँटा चुभता ही रहता-

भोजन के मिलने में

था जो अविश्वास भाई ॥

 

रोटी का न मिलना

जीवन सार हीन दिखता ।

माँ का, सुत, विश्वास खो

चुका जबसे मरे पिता ।

 

बेचारी माँ, वैसे मन ही

मन में थी  चिन्तित –

आखिर मेरे लिये कौन

घर में उत्तरदायी ?

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

30-07-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३४ –  “जिनके बिना कोर्ट रूम भी सूना है : महाधिवक्ता स्व. श्री राजेंद्र तिवारी” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆

डॉ.वंदना पाण्डेय

परिचय 

शिक्षा – एम.एस.सी. होम साइंस, पी- एच.डी.

पद : प्राचार्य,सी.पी.गर्ल्स (चंचलबाई महिला) कॉलेज, जबलपुर, म. प्र. 

विशेष – 

  • 39 वर्ष का शैक्षणिक अनुभव। *अनेक महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के अध्ययन मंडल में सदस्य ।
  • लगभग 62 राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोध-पत्रों का प्रस्तुतीकरण।
  • इंडियन साइंस कांग्रेस मैसूर सन 2016 में प्रस्तुत शोध-पत्र को सम्मानित किया गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान शोध केंद्र इटली में 1999 में शोध से संबंधित मार्गदर्शन प्राप्त किया। 
  • अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘एनकरेज’ ‘अलास्का’ अमेरिका 2010 में प्रस्तुत शोध पत्र अत्यंत सराहा गया।
  • एन.एस.एस.में लगभग 12 वर्षों तक प्रमुख के रूप में कार्य किया।
  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में अनेक वर्षों तक काउंसलर ।
  • आकाशवाणी से चिंतन एवं वार्ताओं का प्रसारण।
  • लगभग 110 से अधिक आलेख, संस्मरण एवं कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।

 प्रकाशित पुस्तकें- 1.दृष्टिकोण (सम्पादन) 2 माँ फिट तो बच्चे हिट 3.संचार ज्ञान (पाठ्य पुस्तक-स्नातक स्तर)

(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “जिनके बिना कोर्ट रूम भी सूना है : महाधिवक्ता स्व. श्री राजेंद्र तिवारी के संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)

आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆ कहाँ गए वे लोग – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ७ ☆ “स्व गणेश प्रसाद नायक” – लेखक – श्री मनोहर नायक ☆ प्रस्तुति  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “बुंदेली की पाठशाला- डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ९ ☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ११ – “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १२ ☆ डॉ. रामदयाल कोष्टा “श्रीकांत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆   

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १३ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकप्रिय नेता – नाट्य शिल्पी सेठ गोविन्द दास ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १४ ☆ “गुंजन” के संस्थापक ओंकार श्रीवास्तव “संत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १५ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆ 

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १७ – “डॉ. श्री राम ठाकुर दादा- समाज सुधारक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १८ – “राजकुमार सुमित्र : मित्रता का सगुण स्वरुप” – लेखक : श्री राजेंद्र चन्द्रकान्त राय ☆ साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १९ – “गेंड़ी नृत्य से दुनिया भर में पहचान – बनाने वाले पद्मश्री शेख गुलाब” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २० – “सच्चे मानव थे हरिशंकर परसाई जी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २१ – “ज्ञान और साधना की आभा से चमकता चेहरा – स्व. डॉ कृष्णकांत चतुर्वेदी” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २२ – “साहित्य, कला, संस्कृति के विनम्र पुजारी  स्व. राजेन्द्र “रतन”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २३ – “मेरी यादों में, मेरी मुंह बोली नानी – सुभद्रा कुमारी चौहान” – डॉ. गीता पुष्प शॉ ☆ प्रस्तुती – श्री जय प्रकाश पांडे ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २४ – “संस्कारधानी के सिद्धहस्त साहित्यकार -पं. हरिकृष्ण त्रिपाठी” – लेखक : श्री अजय कुमार मिश्रा ☆ संकलन – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २५ – “कलम के सिपाही – मुंशी प्रेमचंद” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २६ – “यादों में रहते हैं सुपरिचित कवि स्व चंद्रकांत देवताले” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २७– “स्व. फ़िराक़ गोरखपुरी” ☆ श्री अनूप कुमार शुक्ल ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २८ – “पद्मश्री शरद जोशी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २९ – “सहकारिता के पक्षधर विद्वान, चिंतक – डॉ. नंद किशोर पाण्डेय” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३० – “रंगकर्मी स्व. वसंत काशीकर” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३१ – “हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, फारसी के विद्वान — कवि- शायर पन्नालाल श्रीवास्तव “नूर”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३२ – “साइकिल पर चलने वाले महापौर – शिक्षाविद्, कवि पं. रामेश्वर प्रसाद गुरु” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३३ – “भारतीय स्वातंत्र्य समर में क्रांति की देवी : वीरांगना दुर्गा भाभी” ☆ डॉ. आनंद सिंह राणा ☆

☆ कहाँ गए वे लोग # ३४ ☆

☆ “जिनके बिना कोर्ट रूम भी सूना है : महाधिवक्ता स्व. श्री राजेंद्र तिवारी” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय

आकर्षक सादगीपूर्ण किंतु प्रभावशाली गरिमामय व्यक्तित्व, स्पष्ट वक्ता, बुलंद दमदार, आत्मविश्वास से भरी ओजस्व वाणी के धनी विधिवेत्ता स्व. राजेन्द्र तिवारी, पूर्व महाधिवक्ता मध्यप्रदेश को कौन नहीं जानता ? इसे सुसंयोग ही कहा जा सकता है कि संस्कारधानी के सुसंस्कारित ,सुविख्यात विधि पुत्र का जन्म भी संविधान के प्रणेता डॉ. भीमराव अंबेडकर के जन्म दिवस के दिन ही हुआ। 14 अप्रैल 1936 जन्म श्री राजेंद्र तिवारी जी की जन्म एवं कर्मभूमि जबलपुर ही रही।

कुशाग्र बुद्धि के तिवारी जी विद्यालयीन, महाविद्यालयीन एवं विश्वविद्यालयीन शिक्षा में सदैव अग्रणी रहे। उन्होंने संस्कृत साहित्य में एम.ए. किया और फिर विधि की पढ़ाई पूर्ण की।

उनकी सक्रियता का ही परिणाम था कि वे 1956-57 में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय,जबलपुर छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए।

आदरणीय तिवारी जी ने क्राईस्ट चर्च स्कूल में संस्कृत विषय का अध्यापन भी किया। वे एक आदर्श कुशल शिक्षक रहे किंतु कुछ समय बाद ही उन्होंने विधि-जगत को अपना कार्य क्षेत्र  बना लिया। सन 1964 से वकालत करने लगे। 1985 से 88 तक वे राज्य सरकार के उपमहाधिवक्ता रहे। 1993 में हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए। 1995 में मध्यप्रदेश शासन ने उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया। ज्ञान और कानून की बारीक समझ और प्रभावशाली विवेचना के कारण उन्हें हाईकोर्ट की रूलिंग कमेटी में रखा गया।

कठिन से कठिन मसलों पर उनके नीर-क्षीर परीक्षण – विश्लेषण और तर्कों से उन्होंने न्यायाधीशों और महाधिवक्ताओं  को भी प्रभावित किया नगर-निगम अधिनियम की धारा 17एवं 19 की  व्याख्या को लेकर जब दुविधा उत्पन्न हुई तब तत्कालीन महाधिवक्ता के तर्क  सुनने के बावजूद भी माननीय श्री तिवारी जी के विचार जानने उन्हें कोर्ट मित्र के रूप में आमंत्रित किया गया। इस अत्यंत जटिल मामले में तिवारी जी की अद्भुत तर्कपूर्ण दलीलों ने सबको प्रभावित किया। उनकी यही दलीलें  निर्णय का आधार भी बनी, जो बाद में मील का पत्थर साबित हुई। श्री तिवारी जी का ज्ञान, चिंतन, मनन, कल्पना , तर्कशक्ति धारदार शब्द और  ओजस्वी वाणी की गूँज आज भी कोर्ट में उनकी याद दिलाती है । किसी कवि की ये पंक्तियां मानो उन्हीं के लिए लिखी गईं हैं..

मनु नहीं यह मनु पुत्र है सामने

 जिसकी कल्पना की जीभ में

 भी धार होती है बाण ही होते

 नहीं विचारों के केवल ….

स्वप्न के हाथ में भी तलवार होती है।

हिंदी,अंग्रेजी,संस्कृत और उर्दू साहित्य में उनका पूर्ण अधिकार था। निरंतर अध्ययन, चिंतन- मनन उनका स्वभाव था। सुंदर शब्दों का चयन, वाक्य – विन्यास, स्पष्ट और शानदार अभिव्यक्ति जैसे सभी आदर्श वक्ता के गुण उनमें थे। उनके उद्बोधनों में कविता,श्लोक, शेरो-शायरी, कोटेशन, उद्धरण श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर देते थे। श्रोता उनके प्रभावशाली व्याख्यान को मानो सांस रोक कर सुनते थे। साहित्य से तो उन्हें लगाव था ही सांस्कृतिक एवं खेलकूद गतिविधियों तथा कार्यक्रमों में भी उनका अच्छा दखल था । संस्कारधानी की अनेक संस्थाओं को उनका मार्गदर्शन और संरक्षण प्राप्त होता रहा। रंगमंच, शास्त्रीय संगीत की जितनी ज्यादा उनमें समझ थी उतनी ही गजलों की भी। शायद ही कोई विधा ऐसी होगी जिसमें उनका हस्तक्षेप न हो।

महाकौशल शिक्षा प्रसार  समिति जिसके द्वारा शासकीय अनुदान प्राप्त चंचलबाई महिलामहाविद्यालय तथा अन्य शैक्षणिक संस्थाएं संचालित हैं उसके वे अध्यक्ष भी रहे महाविद्यालय में कार्यरत होने एवं पारिवारिक संबंध होने के नाते उनका भरपूर सानिध्य मुझे मिला। उनके स्नेहिल प्रेमपूर्ण, मिलनसार, हंसमुख विनोद-प्रिय स्वभाव ने उन्हें कभी भी किसी को भी अपने उनके विराट व्यक्तित्व से दूर नहीं किया। यही कारण था कि छोटे बड़े सभी वय के लोगों के वे अज़ीज़ रहे। कभी भी, किसी से भी, किसी भी विषय पर घंटों – घंटों चर्चा कर लोगों को अपने ज्ञान और अनुभव से लाभान्वित कर देना उनकी विशेषता थी। अत्यधिक व्यस्त होने के बावजूद भी समय के अभाव की बात उन्होंने कभी नहीं की। समय की पाबंदी उनकी बड़ी विशेषता थी। मिनट और सेकंड का हिसाब रखने वाले श्री तिवारी जी सदैव अपने कार्य क्षेत्र में निर्धारित समय पर उपस्थित हो जाते थे। प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठना, स्नान- ध्यान, पूजा-पाठ आदि कार्यों से निवृत होकर समाचार-पत्र, पत्रिकाओं का अध्ययन उनकी नियमित दिनचर्या में शामिल थे। रात्रि विश्राम पर जाने का कोई निर्धारित समय नहीं था। शॉर्टकट उन्हें पसंद नहीं था।काम के प्रति लगन निष्ठा और अनुशासन को वे सफलता का सूत्र मानते थे और यही संदेश उन्होंने अगली पीढ़ी को भी दिया। वे कहा करते थे कि –

“If you waste your time the time will waste you.”

समाज को समर्पित सिद्धांतवादी परिवार में जन्मे श्री राजेन्द्र तिवारी जी की पत्नी श्रीमती गीता तिवारी नगर के प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं पूर्व महापौर पं. रामेश्वर प्रसाद गुरुजी की पुत्री थीं।

बहुआयामी, जादुई व्यक्तित्व वाले श्री राजेंद्र तिवारी जी ने आने वाली पीढ़ियों के लिए अनेक आदर्श स्थापित किए। उनकी शख्सियत की गूँज केवल कोर्ट में ही नहीं सवरन हर दिल में, हर तरफ सुनाई देती है। ऐसे ही व्यक्तित्व वाले विरले लोगों के लिए शायर इकबाल ने लिखा है ..

हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पर रोती है

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।’

 सादर नमन …

डॉ. वंदना पाण्डेय 

प्राचार्य, सी. पी. महिला महाविद्यालय

संपर्क : 1132 /3 पचपेड़ी साउथ सिविल लाइंस, जबलपुर, म. प्र. मोबाइल नंबर :  883 964 2006 ई -मेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 196 ☆ # “छोटा सा दीपक…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता छोटा सा दीपक…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 196 ☆

☆ # “छोटा सा दीपक…” # ☆

इस कुटिया का

छोटा सा दीपक

अखंड जल रहा है

स्याह तम को खल रहा है

उसके मध्यम रोशनी में

एक ख्वाब पल रहा है

जो निरंतर अंदर ही अंदर

धीरे धीरे चल रहा है

 

सुबह-शाम

दिन और रात

आंधी तूफान हो

या बरसात

कपकपाती ठंड हो

गर्मी प्रचंड हो

हवा में चुभती नमी हो

या बर्फ जमी हो

वह निर्बाध जल रहा है

अपनी गति से चल रहा है

 

वो तब तक जलेगा

जब तक

मशाल ना बन जायें

अंधकार का

काल ना बन जायें

 

उसका लक्ष्य है –

मशाल बनकर

वह जला देगा

अंधविश्वास

कुरितियां

जो है आसपास

अशिक्षा, भेदभाव

पाखंड, अभाव

जात-पात

शह और मात

अन्याय, अत्याचार

आडंबर, तिरस्कार

गरीबी अमीरी

दिलों के बीच की दूरी

 

मशाल बनकर

वह रोशन कर देगा

संसार को

पराजित कर देगा अंधकार को

 

और 

सर उठाकर

सीना तानकर

खड़ा होगा

सूरज के सामने

लगेगा प्रकाश के

वेग को नापने

वो काल के माथे पर

एक दस्तक होगा

तब सुर्य भी

उसके आगे नतमस्तक होगा /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – आकांक्षा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता ‘ऐसे पुरुष महान बनो…‘।)

☆ लघुकथा – आकांक्षा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆ 

(देश की रक्षा कर रहे, बेटे ने सीमा से, अपनी बूढ़ी मां को खत लिखा,  जो दिवाली के दिन उन्हें मिला…)

मां,

     चरण स्पर्श,

मैं ठीक हूं, आप कैसी हैं, इस बार दिवाली पर घर आने को लिखा था,  पर छुट्टियां रद्द हो गईं, इसलिए नहीं आ पाया, आप ने फसल का बताया था, आदमी न मिलने के कारण नहीं कट पाई है, आप दौड़ धूप नहीं कर पा रही हैं, इसलिए मजदूर नहीं मिल पाए, कोई बात नहीं मां, परेशान मत होना, अपनी सेहत का ख्याल रखना, अभी मेरी ड्यूटी बॉर्डर पर बनी चौकी में है, आप सब देश के दिवाली मना रहे हो,  मां,  हम तो,  दिया भी नहीं जला सकते, यहां, , क्योंकि रोशनी में दुश्मन हमारी लोकेशन का पता लगा लेगा, इसलिए हम अंधेरे में रहकर ही प्रकाश पर्व की कल्पना कर रहे हैं, मां, पता नहीं ये क्यों लड़ते हैं, सब इंसान ही तो हैं, पर एक दूसरे के लहू के प्यासे, बिना किसी दुश्मनी के कारण भी दुश्मन हैं, यहां की तो हवाओं में भी बारूद की गंध आती है, और गोला बारूद के धमाकों की आवाज दिवाली के पटाखों का भ्रम पैदा करते हैं,  

मां, दुश्मन की भी तो मां होगी न, वो भी तेरे जैसा ही सोचती होगी न, अपने बेटे की लंबी उम्र की कामना करती होगी, पर पता नहीं किसकी कामना ईश्वर मंजूर करें, तुम्हारी या दुश्मन के मां की,

अच्छा मां, गोलियां चल सकती हैं,  रखता हूं,

अगर तुम्हारी कामना मंजूर हुई तो जल्दी ही आऊंगा..

                                             तुम्हारा बेटा..

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 263 ☆ कथा-कहानी – संकट ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक मनोवैज्ञानिक कथा  – ‘संकट । इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 263 ☆

☆ कथा-कहानी ☆ संकट

वह पचास का नोट चंपालाल की जेब में किसी गोजर जैसा सरसराता था। किसी भी वक्त वह उसकी उपस्थिति को भूल नहीं पाता था। उसे अपने बचपन की एक घटना याद आती थी। उसके गांव के ज़मीदार साहब गांव के किसी भी व्यक्ति की जेब में बिच्छू छुड़वा दिया करते थे और फिर उसकी बदहवासी देखकर हंसते-हंसते बेहाल हो जाते थे। उनके मज़ाक का शिकार न हंस सकता था, न रो सकता था। वह पचास का नोट भी चंपालाल की जेब में बिच्छू जैसा रेंगता था।

वह नोट उसे पिछले दिन एक शराबी ने पकड़ा दिया था। जब वह सवारी के इंतज़ार में मालवीय चौक पर अपने रिक्शे की सीट पर बैठा था, तभी वह शराबी जाने कहां से आकर धप से रिक्शे पर बैठ गया था। बैठते ही वह सीट पर फैल गया था। उसके बैठने का ढंग उसकी हालत को ज़ाहिर करता था। बैठकर अधखुली आंखों से शून्य  में ताकते हुए वह अस्फुट स्वर में बोला, ‘चल’।

चंपालाल ने पूछा, ‘कहां?’

लेकिन शराबी को उसकी बात से कोई गरज़ नहीं थी। वह आंखें बन्द किये थोड़ी देर चुप बैठा रहा, फिर आधी आंखें खोलकर दुबारा कुछ गुस्से से बोला ‘चल’।

परेशानी में चंपालाल ने सामने की तरफ रिक्शा बढ़ा दिया। वह धीरे-धीरे रिक्शा चलाता रहा। थोड़ी दूर चलकर वह रुकता और पूछता, ‘अब किधर चलूं ?’ और शराबी थोड़ी आंखें खोलकर जवाब देता, ‘आगे चल’।

इसी तरह वह करीब आधे घंटे तक सड़कों पर भटकता रहा। एक जगह रिक्शा रोकने पर शराबी ने आंखें खोलकर आसपास गौर से देखा और बोला, ‘यह कहां ले आया? मिलौनीगंज चल।’

संकेत पाकर चंपालाल ने रिक्शा मिलौनीगंज की तरफ बढ़ा दिया। एक जगह शराबी बोला, ‘रोक!’ और वह लड़खड़ाता हुआ उतर गया। उतरकर वह दो मिनट तक अपनी जेबों में हाथ ठूंसता रहा, इसके बाद उसने वह पचास रुपये का मुड़ा-तुड़ा नोट उसके हाथ में पकड़ा दिया।

बिजली के खंभे की रोशनी में चंपालाल ने वह नोट खोलकर देखा। देखकर उसका खून सूख गया। नोट गन्दा तो था ही, बीच में आधी दूर तक फटा था ।साक्षात मुसीबत। उसने शराबी की तरफ देखा। वह आंखें बन्द किये, टांगें पसारे, सामने वाले खंभे के नीचे बैठा था। वह उसके पास तक गया, उसे कंधे से हिलाया। शराबी ने आधी आंखें खोलीं। चंपालाल बोला, ‘यह नोट फटा है।’ शराबी ने ‘हूं’ कह कर फिर आंखें बन्द कर लीं।

तभी एक घर का दरवाज़ा खोलकर एक नौजवान निकला। चंपालाल ने उसे नोट दिखाया, कहा, ‘देखो, इन्होंने यह फटा नोट दिया है। अब कुछ बोल नहीं रहे हैं।’

नौजवान हंसा, बोला, ‘जो मिल गया उसे गनीमत समझो। भीतर गली में इनका घर है। वहां शिकायत करने जाओगे तो यह नोट भी छिन जाएगा। भला चाहते हो तो फौरन बढ़ जाओ।’

चंपालाल रिक्शा लेकर बढ़ गया, लेकिन वह नोट उसकी जेब में कांटे जैसा चुभने लगा। दिन भर में तीन चार सौ रुपये की आमदनी होती थी। उसमें से अगर पचास का नोट बट्टे-खाते में चला जाए तो कमाई का बड़ा हिस्सा बराबर हो गया। वह नोट उसके दिमाग पर बैठ गया। उसका सारा चैन खत्म हो गया।

उसे रास्ता चलना दूभर हो गया। पहले तो उसने कोशिश की कि नोट को किसी सवारी पर ही थोप दे। वह इसी चक्कर में था कि कोई सवारी उसे सौ या दो सौ का नोट दे और वह उसे बाकी के रूप में वह  पचास का नोट थमा दे। लेकिन उसकी मंशा पूरी नहीं हुई। दो सवारियां मिलीं, लेकिन दोनों ने उसे फुटकर रुपये ही थमाये। वह नोट जैसे उसके पास रहने की कसम खाये था।

एक जगह उसने बीड़ी का बंडल खरीदा और उस नोट को मोड़कर दुकानदार की तरफ बढ़ा दिया। वह ऊपर से लापरवाही का भाव दिखा रहा था, लेकिन उसका दिल धड़क रहा था। दुकानदार ने नोट को गुल्लक में फेंकने के बजाय उसे खोलकर गौर से देखा, फिर उसे चंपालाल की तरफ बढ़ा दिया। बोला, ‘इसेअपने पास रखो।’ चंपालाल ने थोड़ा आश्चर्यचकित होने का अभिनय किया, फिर उसे झख मार कर दूसरा नोट देना पड़ा। मन-ही-मन उसने दुकानदार को एक अंतरंग गाली दी।

वह घर की तरफ चल दिया, लेकिन उस नोट ने उसके सोच को एक ही दिशा में ला पटका था। वह सारे वक्त इसी उधेड़बुन में लगा था कि कैसे उससे छुटकारा पाये। आसपास की चीज़ें  और दृश्य उसके मन पर कोई छाप नहीं छोड़ रहे थे।

घर पहुंच कर वह रिक्शा खड़ा करके अनमने भाव से खटिया पर बैठ गया। उसके पहुंचने पर घर में उल्लास का वातावरण छा जाता था क्योंकि उसकी रोज़ की कमाई पर ही गृहस्थी की गाड़ी लुढ़कती थी। पांच साल की उसकी बच्ची उसकी गोद में चढ़ गयी और कुछ पाने की आशा में उसकी जेबें टटोलने लगी। लेकिन चंपालाल को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। उसने खीझकर बच्ची को गोद से उतार दिया और बच्ची उसकी मन:स्थिति को समझ कर उदास होकर मां की गोद में मुंह छिपाकर लेट गयी।

घर पहुंच कर चंपालाल ने सबसे पहले पत्नी से दूसरे दिन के लिए खरीदी जाने वाली चीज़ों के बारे में पूछा। कारण वही था— उस नोट से पिंड छुड़ाना।

वह नुक्कड़ वाले सिंधी की दुकान पर पहुंचा। वहां तीन ग्राहक उपस्थित थे। चंपालाल चुपचाप उनके पीछे खड़ा हो गया। ग्राहक  सौदा लेते रहे। सभी उसी मोहल्ले के थे। उसने देखा कि शर्मा जी ने कुछ सामान लेकर सिंधी को सौ का नोट दिया। नोट एकदम खस्ताहाल था। सिंधी ने उसे बल्ब की रोशनी में देखा, फिर हंस कर बोला, ‘इसकी हालत तो खराब है, साहब।’

शर्मा चतुराई से हंसा, बोला, ‘रखो,रखो। निकल जाएगा। न चले तो कल हमको देना।’

सिंधी ने एक क्षण सोचकर नोट गुल्लक में फेंक दिया और बाकी पैसे निकाल कर शर्मा को दे दिये। इस दृश्य से चंपालाल को कुछ ढाढ़स हुआ।

 

 

जब उसका नंबर आया तो उसने रोज़ की अपनी मांग बता दी। सिंधी तटस्थ भाव से सामान तौलने लगा और चंपालाल का दिल धड़कने  लगा। सिंधी ने सामान काउंटर पर रख दिया। चंपालाल  ने वह नोट दूसरे नोटों से अलग  करके पहले से ही हाथ में ले रखा था ताकि सिंधी को दूसरे नोट न दिखें। उसने लापरवाही से नोट सिंधी की तरफ बढ़ाया। सिंधी ने नोट का कोना पड़कर उसे मरे चूहे की तरह ऊपर उठाया और उसी तरह उसे चंपालाल की तरफ बढ़ा दिया। व्यंग्य से बोला, ‘इतना बढ़िया नोट कहां से ढूंढ़ कर लाये? इसे संभाल कर रखो।’

चंपालाल को शर्मा का वाक्य याद था। बोला, ‘रख लो साईं, न चले तो हमको दे देना।’

सिंधी ने हाथ को और लंबा करके नोट  बिलकुल उसकी छाती तक पहुंचा दिया। बोला, ‘हां हां,जानता हूं, तू बड़ा धन्नासेठ है। तेरे पास तो नोटों का ढेर लगा है। दूसरा नोट दे, नहीं तो अपना रास्ता पकड़।’

चंपालाल ने मरे मन से दूसरा नोट निकाला और सामान उठाकर घर लौट आया। उस रात उसे रोटी  बेस्वाद लगी। वह नोट उसके हर क्षण को कुतर रहा था।

बिस्तर पर बड़ी देर तक वह इसी उधेड़बुन में लगा रहा कि उस नोट से कैसे मुक्ति पायी जाए। फिर उसे नींद लग गयी। नींद में उसने देखा कि सिंधी ने उसका नोट बड़ी खुशी से ले लिया है और वह सामान लेकर खुश-खुश घर लौट रहा है। उसका मन प्रसन्न हो गया। जब उसकी नींद खुली तो थोड़ी देर तक वही भ्रम बना रहा। लेकिन बहुत जल्दी वह समझ गया कि वह केवल सपना था, और हकीकत अपनी जगह कायम  थी।

सवेरे उसकी चिंता कुछ कम हो गयी। उसने स्थिति से समझौता कर लिया और सोच लिया कि परेशान होने से कोई लाभ नहीं है, नोट देर-सवेर निकल ही जाएगा। लेकिन वह उस तरफ से निश्चिंत नहीं हुआ था। वह अब भी नोट से मुक्त होने के लिए सजग था।

दूसरे दिन उसने दो बार उस नोट से मुक्ति पाने की कोशिश की, लेकिन दोनों बार असफल रहा। वह समझ गया कि नोट के साथ-साथ कुछ दोष उसकी स्थिति का भी था। उसने कई सफेदपोशों को उसी तरह के नोटों का आराम से विनिमय करते देखा था। उसे दिक्कत इसलिए हो रही थी कि उसकी कोई साख नहीं थी, न ही वह किसी दुकान का बड़ा और बंधा ग्राहक था।

वह नोट उसी तरह उसके पुराने पर्स में बैठा रहा। चंपालाल जब पैसे रखने या निकालने के लिए पर्स खोलता तो उसे देखकर बुदबुदाता, ‘बैठे रहो बेटा। मेरा पीछा मत छोड़ना। हओ?’

 

 

शाम को जब वह अपने मोहल्ले के चौराहे पर सवारी के इंतज़ार में खड़ा था तभी उसे दूर से दीपक आता दिखा। सफेद  झक कुर्ता और अलीगढ़ी पायजामा। दीपक मोहल्ले के ठेकेदार प्रीतम सिंह का इकलौता बेटा था। वह ऊंचा पूरा,गौरवर्ण, सुन्दर युवक था। कामकाज के प्रति उसकी अरुचि थी और इसलिए बाप कुछ परेशान रहता था। लेकिन दीपक निश्चिंत था। उसके  हाथ में हमेशा सिगरेट होती थी और ओठों के कोनों में पान की लाली। उसका ज़्यादातर वक्त कॉफी हाउस, होटलों और पान की दुकानों में गुज़रता था।

शाम को मोहल्ले के किसी परिचित रिक्शे पर बैठकर किसी तरफ निकल पड़ना दीपक के शौकों में से एक था। रिक्शे पर बैठकर वह अपनी प्रिय दुकानों का चक्कर लगा आता था। बीच में दोस्तों-परिचितों के मिलने पर रिक्शा  रुकवा लेता और आराम से बातें करता रहता। रिक्शेवाले को शिकायत नहीं होती थी क्योंकि वह मज़दूरी आशा से ज़्यादा देता था। इसके अलावा वह रिक्शेवाले को चाय, पान और सिगरेट में अपना साथी बना लेता। इसलिए मोहल्ले के रिक्शेवाले उससे खुश रहते थे।

रिक्शे पर चलते हुए दीपक रिक्शेवाले से बेतकल्लुफी से बातें करता रहता। अक्सर उसकी बात स्वगत भाषण जैसी होती। एक बात वह अक्सर कहता, ‘बाप को बड़ी शिकायत है कि मैं कुछ करता धरता नहीं। लेकिन मैं क्यों करूं, भई? बाप ने इतना कमा लिया है कि दो-तीन पीढ़ियों का काम बिना कमाये चल सकता है। घर में कोई खर्च करने वाला भी तो चाहिए। बोलो भई, ठीक कहा न?’

रिक्शेवाला उसकी मज़ेदार बातें सुनकर प्रसन्न होकर सहमति में सिर हिलाता।

उस शाम सौभाग्य से दीपक चंपालाल के रिक्शे पर आकर जम गया। चंपालाल खुश हो गया। दीपक के अड्डे सब रिक्शेवालों को मालूम थे। चंपालाल उसे लेकर करीब डेढ़ घंटे तक घूमता रहा और उसकी बातों और व्यवहार का मज़ा लेता रहा।

लौटने पर उतरते वक्त दीपक ने चंपालाल को दो सौ का नोट देकर दाहिना हाथ उठा दिया। मतलब— सारा रख लो, कुछ लौटाने की ज़रूरत नहीं है। चंपालाल के ओठों पर हल्की मुस्कान आ गयी।

दीपक रिक्शे से उतर कर चला और चंपालाल ने दो सौ का नोट रखने के लिए जेब से निकाल कर पर्स खोला। पर्स खोलते ही उसे उस संकटकारक पचास के नोट का कोना दिखा। उसके दिमाग़ में एक विचार आया।

दीपक को आवाज़ देकर वह बोला, ‘भैया, थोड़ा काम था।’

दीपक घूम कर खड़ा हो गया। इत्मीनान से बोला, ‘बोलो यार।’

चंपालाल ने वह नोट उसे दिखाया, फिर बोला, ‘यह नोट एक दारूखोर ने दे दिया। अब इसे कोई लेता नहीं। यह  आफत गले पड़ गयी है। आप तो बैंक वैंक जाते रहते हो। इसे बदलवा दो।’

दीपक ने नोट की तरफ देख कर बिना कुछ बोले अपनी जेब से पर्स निकाल कर एक पचास का नोट चंपालाल की तरफ बढ़ा दिया। इसके बाद उसने वह फटा नोट अपने हाथ में लेकर उसे उलटा पलटा। दूसरे क्षण उसने उस नोट के चार टुकड़े किये और उन्हें ज़मीन पर फेंक दिया। इसके बाद वह मुड़कर आराम से चल दिया।

चंपालाल सकते की हालत में खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 263 – उड़ जाएगा हंस अकेला… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 263 उड़ जाएगा हंस अकेला… ?

मॉल में हूँ। खरीदारी हो चुकी। खड़े रहते और भटकते-भटकते थक भी चुके। परिवार फूडकोर्ट में जाने की घोषणा कर चुका है। फूडकोर्ट जाने के लिए एस्केलेटर के मुकाबले एलेवेटर पास है। अत: एलेवेटर से फूडकोर्ट के लिए चले। लिफ्ट से बाहर निकलते हुए देखता हूँ कि दाहिने हाथ पर पीने के पानी की मशीन लगी है और ऊपर बोर्ड लिखा है, ‘फ्री ड्रिंकिंग वॉटर।’

अपने युग का कितना बड़ा बोध करा रहे हैं ये शब्द! पीने का पानी नि:शुल्क..!

एक समय था जब मनुष्य सीधे नदी का पानी पिया करता था। तब नदियाँ स्वच्छ थीं। अब नदी के पानी के शुद्धीकरण की प्रक्रिया होती है।  घर पर आर.ओ. के जरिए उसे फिर शुद्ध करते हैं। एक-एक कर उसके सारे प्राकृतिक तत्व निकाल फेंकते हैं। कामधेनु को छेरी करने का अद्भुत मानक स्थापित किया है हमने।

पानी की निर्मलता को लेकर एक घटना याद हो आई। वर्ष 2000 में राजस्थान के  मारवाड़ जंक्शन के निकट एक गाँव में एक डॉक्युमेंट्री फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। पशुओं की किसी औषधि से सम्बंधित डॉक्युमेट्री थी। शूटिंग स्थल के निकट ही एक स्वच्छ तालाब था। गाँव उस तालाब के पानी का पीने के लिए उपयोग करता था। हम सब भी उस तालाब का पानी पी रहे थे। फिल्म में किसी भूमिका के लिए समीपवर्ती नगर से एक अभिनेत्री को  बुलाया गया था। उन्होंने मिनरल वॉटर की मांग की। आज से लगभग ढाई दशक पहले ग्रामीण भाग में बोतलबंद मिनरल वॉटर अपवाद ही था।  हमारी जीप का ड्राइवर अभिनेत्री से बोला, “मैडम जी, हमारे तालाब का पानी अमरित है। पी लो। यूँ भी जल में मल नहीं होता।”

मानवीय सभ्यता के विकास का इतिहास साक्षी है कि मनुष्य ने जल की उपलब्धता देखकर ही बस्तियाँ बसाईं। नदी से जल और परोक्ष में जीवन पाने वाला मनुष्य आगे चलकर नदियों का गला घोंटने लगा। नदियाँ निरंतर प्रदूषित की जाने लगीं। नदियाँ नाले में परिवर्तित कर दी गईं। अब नदी के नाम पर ठहरा हुआ पानी है, दुर्गंध है, कारखानों से गिरता अपशिष्ट है, सीवेज लाइन के खुलते दरवाज़े हैं। अपने उद्गम पर नदी आज भी अमृत है पर मनुष्य की बस्तियों तक पहुँचते- पहुँचते हम उसे मृत कर देने पर उतारू हैं।

बहुत समय नहीं बीता जब राह चलते को पानी पिलाने का चलन था। उस समय बारह मास पानी का संकट भोगनेवाले राजस्थान जैसे मरुस्थली भूभागों पर भी प्याऊ लगाई जाती। गाँव के बुज़ुर्ग विशेषकर महिलाएँ इसके लिए बारी-बारी से सेवा देतीं। इसे जलमंदिर भी कहा जाता था। तब किसी जलमंदिर पर ‘फ्री ड्रिंकिंग वॉटर’ का कोई बोर्ड नहीं लगा होता था। यह मनुष्य के साथ मनुष्य का मनुष्यता का व्यवहार था।

मनुष्य की देह पंच महाभूतों से बनी है। महाभूत नि:शुल्क हैं। जो नि:शुल्क है, वह अमूल्य है। नि:शुल्क के उपसर्ग का अब प्रतिस्थापन हो चुका। अब सब सशुल्क है। सशुल्क धीरे-धीरे बहुमूल्य हो जाता है।

जल अब धड़ल्ले से बेचा-ख़रीदा जाता है। ऑक्सीजन कैफे हैं, जिनमें प्राणवायु बिक रही है। तब पुरखों की भूमि को प्रतिष्ठा माना जाता था, मंदिर पाठशाला, धर्मशाला के लिए भू-दान किया जाता था। अब प्रति स्क्वेयर फीट से प्रतिष्ठा का सौदा हो रहा है। आकाश में अंतरिक्ष स्टेशन और सेटेलाइटों की भीड़ है। मनुष्य ने न धरती छोड़ी, न आकाश। न हवा स्वच्छ रखी, न पानी। सब बेचा जा रहा है, सब बिक रहा है।

कहा गया है,

अद्भिः सर्वाणि भूतानि जीवन्ति प्रभवन्ति च।

तस्मात् सर्वेषु दानेषु तयोदानं विशिष्यते॥

(महाभारत, शान्तिपर्व)

अर्थात जल से संसार के सभी प्राणी उत्पन्न होते हैं एवंं जीवित रहते हैं। अतः सभी दानों में जल का दान सर्वोत्तम है।

हम दान से विक्रय तक आ पहुँचे हैं। जल के प्राकृतिक स्रोतों की सुरक्षा और स्वच्छता अब भी दिशा परिवर्तन कर सकते हैं।

अमूल्य को बहुमूल्य करने की उलटी यात्रा को रोकना होगा। लौटना होगा बहुमूल्य से अमूल्य की ओर। अपने-अपने स्तर पर और सामूहिक रूप से जो किया जा सके, अवश्य करें। माध्यम कोई भी हो, जैसे आकाश से गिरा हुआ पानी  समुद्र में जाता है, वैसे ही हर प्रयास बहुमूल्य को अमूल्य करने में सहायक सिद्ध होगा।

आकाशात् पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम् |

सर्वदेवनमस्कार: केशवं प्रति गच्छति ||

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 2:05 बजे, 1.11.2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 दीपावली निमित्त श्री लक्ष्मी-नारायण साधना,आश्विन पूर्णिमा (गुरुवार 17 अक्टूबर) को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी (मंगलवार 29 अक्टूबर) तक चलेगी 💥

🕉️ इस साधना का मंत्र होगा- ॐ लक्ष्मी नारायण नम: 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 210 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 210 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 209) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 210 ?

☆☆☆☆☆

तेरी एक झलक ही काफ़ी 

है जीने के लिए पर दिल का 

मोह ही है सारी उम्र मिल 

जाये तो भी कम है

☆☆

Your one glimpse alone is

Just enough to live for but it’s the 

Fascination of heart that finds

It less even if it get entire lifetime

☆☆☆☆☆

कर्ज़ होता तो

उतार  भी देते

कमबख्त इश्क़ था

बस चढ़ा ही रहा…!

☆☆

If it was a loan

Would’ve paid it off

But this wretched love

Just kept piling up…!

☆☆☆☆☆

चुपचाप चल रहे थे

ज़िन्दगी के सफ़र में

तुम पर नज़र क्या पड़ी

बस गुमराह हो गये…

☆☆

Was walking quietly

In the journey of life

Just a glance at you 

Misguided me forever…

☆☆☆☆☆

हुस्न के कसीदे तो 

पढ़ती रहेंगी महफिलें

अगर झुर्रियाँ भी लगें 

हसीं तो समझो इश्क़ है…

☆☆
Citations for the beauty 

Congregations will keep writing…

If wrinkles still find you smitten

Then it’s undying love for sure…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

रामायण केंद्र भोपाल के अध्यक्ष डॉ राजेश श्रीवास्तव जी  ने जून 2023 में हम्पी-किष्किन्धा भ्रमण की योजना का विचार जब हमसे साझा किया तो समझ लीजिए मन की अभिलाषा पूरा होने की आशा जाग गई। हम्पी विश्व विरासत है। वह जगह है, जहाँ मुस्लिम आक्रांताओं ने सोलहवीं सदी में सनातन सभ्यता पर सबसे घृणित अत्याचार किए थे। जिसके जीवंत प्रमाण हम्पी के विध्वंस अवशेषों में बिखरे पड़े हैं। जबसे नीलकंठ शास्त्री की ‘दक्षिण भारत का इतिहास’ शौक़िया तौर पर पढ़ा था। तभी से हम्पी देखने की इच्छा बलवती थी। दूसरा आकर्षण किष्किन्धा क्षेत्र में आंजनेय पहाड़ी पर हनुमान जी की जन्म स्थली के दर्शन करना था। ये दोनों ही इच्छाएँ एक साथ पूरी होने का अवसर सामने था। हमने उनके प्रस्ताव पर तुरंत हामी भर दी।

रामायण केंद्र भोपाल के सानिध्य में 28 सितंबर 2023 से 02 अक्टूबर 2023 की कालावधि में सोलह सदस्यीय दल के साथ हमने भोपाल से हम्पी-किष्किन्धा-बादामी यात्रा संपन्न की थी। यात्रा के तीन उद्देश्य थे। पहला हॉस्पेट में रामायण सम्मेलन में भागीदारी, दूसरा हनुमान जन्म स्थली आंजनेय पर्वत की तीर्थ यात्रा और तीसरा विश्व विरासत हम्पी और बादामी पर्यटन। यह क्रम इसी तरह पूरा नहीं हुआ। हम्पी पर्यटन और रामायण सम्मेलन पहले दिन, आंजनेय पर्वत यात्रा दूसरे दिन और बादामी भ्रमण तीसरे दिन सम्पन्न हुआ। यह यात्रा वृतांत उसी क्रम में वर्णित है।

28.09.2023 को सुबह नौ बजे भोपाल से मुंबई की उड़ान है। यह उड़ान दोपहर ग्यारह बजे मुंबई पहुँचेगी। मुंबई से हुबली उड़ान तीन बजे के लगभग है। मुंबई उड़ान के लिए सात बजे भोपाल स्थित राजा भोज हवाई अड्डा पहुँचना है। इसका मतलब घर से सुबह साढ़े छै बजे निकलना। सुबह साढ़े चार का अलार्म भरा था, लेकिन दिमाग़ का अलार्म चार बजे ही बजने लगा। पहलवानी दिनों में यह सोच बचपन से घुट्टी में पिलाई गई है कि नींद खुलने के बाद बिस्तर पर पड़े रहने वाला कुंभकरण होता है। वह हनुमान भक्त नहीं हो सकता। लिहाज़ा बिस्तर छोड़ दिया। सबसे पहले यात्रा के साथी घनश्याम जी और जवाहर जी से मोबाइल पर बात हुई। तय कार्यक्रम अनुसार साढ़े छै बजे डॉक्टर जवाहर कर्णावत और घनश्याम मैथिल के साथ ओला टैक्सी से हवाई अड्डा निकलना था, लेकिन घनश्याम जी के पुत्र विकल्प घनश्याम ने विकल्प सुझाया कि वे हम तीनों को ख़ुद के वाहन से हवाई अड्डा छोड़ देंगे। जवाहर जी से बात हुई तो उन्होंने बताया कि आज अयोध्या बाईपास पर बागेश्वर धाम के स्वयंभू संत के प्रवचन होने के कारण इस रास्ते पर कई अवरोध और विचलन मार्ग होंगे, इसलिए वीआईपी रोड़ से ही हवाई अड्डा चला जाए। ठीक सवा छै बजे जवाहर जी लगेज सहित हमारे घर पहुँचे। वे लगेज रखकर खड़े ही हुए थे। तभी विकल्प ने गाड़ी घर के सामने लगा दी। हम सात बजे के कुछ पहले हवाई अड्डा पहुँच गए। जवाहर जी की टिकट अलग से बनी थी। वे अंदर चले गए। हमारी टिकट राजेश जी के समूह के साथ थी। हमको राजेश जी का इंतज़ार करना पड़ा। वे पूरी टीम सहित सवा सात बजे हवाई अड्डा गेट पर पहुँचे तब हमने अंदर प्रवेश किया।

हवाई अड्डे पर औपचारिकता पूरी करके कुर्सियों पर बैठ बोर्डिंग का इंतज़ार करने लगे। अवसर का लाभ उठाते हुए, डॉ राजेश श्रीवास्तव ने सभी को अवगत कराया कि यात्रा का मुख्य उद्देश्य हम्पी में स्थित आंजनेय पर्वत, किष्किंधा में हनुमान जी की जन्मस्थली तथा आसपास के धार्मिक स्थलों का भ्रमण कर साहित्यिक शोध पत्र प्रस्तुत करना है।  हनुमान महोत्सव का मुख्य आयोजन 29 सितंबर को कन्नड़ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बी. डी. परमशिवमूर्ति के मुख्य आतिथ्य में संपन्न होना है। इस अवसर पर रामायण केन्द्र की पत्रिका उर्वशी के हनुमान विशेषांक सहित अन्य पुस्तकों का लोकार्पण भी किया जाएगा। हम्पी विश्वविद्यालय के अनेक प्रोफेसर इस आयोजन में हनुमान प्रसंग पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए।

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 210 ☆ लघुकथा – धनतेरस ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  एक विचारणीय लघु कथा धनतेरस…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 210 ☆

☆ लघुकथा – धनतेरस ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

वह कचरे के ढेर में रोज की तरह कुछ बीन रहा था, बुलाया तो चला आया। त्यौहार के दिन भी इस गंदगी में? घर कहाँ है? वहाँ साफ़-सफाई क्यों नहीं करते?त्यौहार नहीं मनाओगे? मैंने पूछा।

‘क्यों नहीं मनाऊँगा?, प्लास्टिक बटोरकर सेठ को दूँगा जो पैसे मिलेंगे उससे लाई और दिया लूँगा।’ उसने कहा।

‘मैं लाई और दिया दूँ तो मेरा काम करोगे?’ कुछ पल सोचकर उसने हामी भर दी और मेरे कहे अनुसार सड़क पर नलके से नहाकर घर आ गया। मैंने बच्चे के एक जोड़ी कपड़े उसे पहनने को दिए, दो रोटी खाने को दी और सामान लेने बाजार चल दी। रास्ते में उसने बताया नाले किनारे झोपड़ी में रहता है, माँ बुखार के कारण काम नहीं कर पा रही, पिता नहीं है।

ख़रीदे सामान की थैली उठाये हुए वह मेरे साथ घर लौटा, कुछ रूपए, दिए, लाई, मिठाई और साबुन की एक बट्टी दी तो वह प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखते हुए पूछा: ‘ये मेरे लिए?’ मैंने हाँ कहा तो उसके चहरे पर ख़ुशी की हल्की सी रेखा दिखी। ‘मैं जाऊँ?’ शीघ्रता से पूछ उसने कि कहीं मैं सामान वापिस न ले लूँ। ‘जाकर अपनी झोपड़ी, कपड़े और माँ के कपड़े साफ़ करना, माँ से पूछकर दिए जलाना और कल से यहाँ काम करने आना, बाक़ी बात मैं तुम्हारी माँ से कर लूँगी।

‘क्या कर रही हो, ये गंदे बच्चे चोर होते हैं, भगा दो’ पड़ोसन ने मुझे चेताया। गंदे तो ये हमारे फेंके कचरे को बीनने से होते हैं। ये कचरा न उठायें तो हमारे चारों तरफ कचरा ही कचरा हो जाए। हमारे बच्चों की तरह उसका भी मन करता होगा त्यौहार मनाने का।

‘हाँ, तुम ठीक कह रही हो। हम तो मनायेंगे ही, इस बरस उसकी भी मन सकेगी धनतेरस’ कहते हुए ये घर में आ रहे थे और बच्चे के चहरे पर चमक रहा था थोड़ा सा चन्द्रमा।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१.१०.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (4 नवंबर से 10 नवंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (4 नवंबर से 10 नवंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

समय की गति बहुत तीव्र होती है इसलिए गुजरे समय को कोई पकड़ नहीं सकता है। गुजरा हुआ समय और नींद में  देखा गया स्वप्न एक समान होते हैं जो की आपको सिर्फ याद रहते हैं। आने वाला समय जो बाद में गुजरा  समय हो जाएगा उसको अच्छा रखने के लिए मैं पंडित अनिल पाण्डेय आपको 4 नवंबर से 10 नवंबर 2024 अर्थात विक्रम संवत 2081 शक संवत 1946 के कार्तिक शुक्ल पक्ष की तृतीया से कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तक के  सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल को आपको बताने जा रहा हूं। परंतु साप्ताहिक राशिफल से पहले मैं आपको इस सप्ताह जन्म लेने वाले बच्चों के भविष्य के बारे में बताना चाहता हूं।

सोमवार 4 नवंबर से 5 नवंबर के 8:08 दिन तक पैदा होने वाले बच्चे की राशि वृश्चिक होगी। इन बच्चों का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। 5 नवंबर की 8:08 दिन से लेकर 7 नवंबर को 3:07 दिन तक पैदा होने वाले बच्चों की राशि धनु रहेगी। बच्चों के पास भविष्य में बहुत अच्छा धन लाभ होगा। 7 नवंबर को 3:07 दिन से 9 नवंबर के 7:53 रात तक जन्म लिए बच्चों की राशि मकर होगी यह बच्चे उच्च पदस्थ अधिकारी बनेंगे। 7:53 रात से 10 तारीख के किसी भी समय पैदा होने वाले बच्चों की राशि कुंभ होगी।

आइये अब हम आपको इस सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में बताते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपको अपने कार्यालय में अच्छा सम्मान प्राप्त हो सकता है। भाग्य से कोई विशेष मदद नहीं मिलेगी। आपका क्रोध में वृद्धि हो सकती है। धन आने की उम्मीद कर सकते हैं। माता जी का और जीवनसाथी का स्वास्थ्य खराब हो सकता है। इस   सप्ताह आपके लिए 8 और 9 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान सूर्य को प्रतिदिन जल अर्पण करें सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

अगर आप पेट के रोगी हैं तो इस सप्ताह आपके स्वास्थ्य में सुधार होगा। मानसिक परेशानियों  में कमी आएगी। आपके जीवनसाथी को 4 नवंबर को कष्ट हो सकता है। कार्यालय में आपको परेशानी हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध तनावपूर्ण हो सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए रविवार का दिन लाभदायक है। आपको चाहिए कि आप 5 , 6 और 7 को नवंबर को कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

अविवाहित जातकों के पास इस सप्ताह विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त हो सकता है। छात्रों की पढ़ाई उत्तम  चलेगी। शत्रुओं से आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। 4 नवंबर को आप अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। 5, 6 और 7 नवंबर आपके लिए लाभदायक है। 8 और 9 नवंबर को आप कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मंदिर में जाकर गरीब लोगों के बीच में चावल का दान दें तथा शुक्रवार को पुजारी जी को सफेद वस्त्रो का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके जीवन साथी का स्वास्थ ठीक रहेगा। आपके सुख में वृद्धि होगी। माता और पिता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। धन आने की मात्रा में वृद्धि होगी। भाग्य से कोई मदद नहीं मिल पाएगी। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 नवंबर मंगलदायक होंगे। सप्ताह के बाकी दिन आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। कोई भी कार्य सावधानी के साथ करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन  उड़द का दान करें। शनिवार के दिन शनि मंदिर में जाकर पूजन करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आप अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। भाइयों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए चार और 10 नवंबर शुभ फलदायक है। 4 नवंबर को आपके सुख में वृद्धि हो सकती है। 8 और 9 नवंबर को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन  गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आप अपने शत्रुओं को परास्त कर सकते हैं। आपका स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है। धन प्राप्त होने की उम्मीद है। भाग्य से कोई विशेष मदद नहीं मिलेगी। भाई बहनों के साथ तनाव हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 5,  6 और 7 नवंबर फलदायक हैं। 10 नवंबर को आपको सावधान रहकर  कार्य करना चाहिए। 4 नवंबर को आपको अपने भाई बहनों के साथ  तनाव बचाने का प्रयास करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 4 नवंबर को आपको धन की प्राप्ति हो सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपको भाग्य से मदद मिल सकती है। आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। माता जी का स्वास्थ्य खराब हो सकता है। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। संतान से आपको कोई सहायता नहीं मिल पाएगी। इस सप्ताह आपके लिए 10 नवंबर हितवर्धक है। 4 नवंबर को आपको स्वास्थ्य की परेशानी हो सकती है। आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं इस सप्ताह आपके पास धन आने की उम्मीद है कचहरी के कार्यों में रिस्क ना लें पेट की परेशानी कम होगी दुर्घटनाओं से आप बचेंगे 5 6 और 7 तारीख को आपके कार्य सफल रहेंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जब करें सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

मकर राशि

आपके पास इस सप्ताह थोड़ी मात्रा में धन आने का योग है। संभवत यह धन आपको 4 नवंबर को मिल सकता है। आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा परंतु आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में समस्या आ सकती है। कार्यालय में आपको लाभ प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 नवंबर मंगल दायक हैं। 5, 6 और 7 नवंबर को आपको सावधानीपूर्वक कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि होगी। व्यय में कमी होगी। धन सामान्य रूप से ही आएगा। उसमें कोई विशेष वृद्धि नहीं होगी। इस सप्ताह आपको भाग्य से बहुत कम मदद प्राप्त होगी। इस सप्ताह आपके लिए 10 नवंबर लाभदायक है। 8 और 9 नवंबर को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। 4 नवंबर को आपको कार्यालय के कार्यों में  सावधानी रखना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपको धन प्राप्त हो सकता है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेगा। माता और पिता जी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक-ठाक रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 5, 6 और 7 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल हैं। 10 नवंबर को आपको कोई भी कार्य बहुत सोच समझ कर करना चाहिए। 4 नवंबर को भाग्य आपकी मदद कर सकता है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको किसी अच्छे ज्योतिषी से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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