हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #166 – 52 – “आंखों में जन्नत के ख़्वाब जवाँ रहते हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “आंखों में जन्नत के ख़्वाब जवाँ रहते हैं…”)

? ग़ज़ल # 52 – “आंखों में जन्नत के ख़्वाब जवाँ रहते हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

कुछ लोग तो सत्तर में भी जवां रहते हैं,

अपनी मस्ती में हर वक़्त रवां रहते हैं।

जिनको दो वक़्त की रोटी नसीब नहीं है,

आंखों में जन्नत के ख़्वाब जवाँ रहते हैं।

देखना धोखे में उनके कहीं आ न जाना तुम,

वो जो मासूम से लोग आस्तीनों में रहते हैं।

किसी पे कोई भरोसा ज़रा  नहीं करता यहाँ,

यह कैसा समय है जिसमें हम लोग रहते हैं।

किसी से पूछना ज़रूरी तो नहीं है कुछ भी,

दिल के हालात  ‘आतिश’ में अयाँ रहते हैं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 43 ☆ मुक्तक ।। नारी तुझको अबला नहीं, सबला बन कर जीना है ।।☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। नारी तुझको अबला नहीं, सबला बन कर जीना है ।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 43 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।। नारी तुझको अबला नहीं, सबला बन कर जीना है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

मोमबत्ती नहीं हर हाथ, में मशाल चाहिए।

नम नहीं आंखें अब, यह   लाल चाहिए।।

नारी के प्रति श्रद्धा, जब होने लगे कम।

कबतक यूं हीअब, हल यह सवाल चाहिए।।

[2]

नर पिशाच नहीं ये, नर नारायण का देश है।

बदल रहा क्यों  यह, जहरीला परिवेश है।।

नारी प्रति भेदभाव विद्वेष, कब तक चलेगा।

नारी शक्ति देवी पूज्य, यही पुरातन संदेश है।।

[3]

नारी सृष्टि रचनाकार, विधि विधान उसी से है।

मातृ भूमि धरा का भी,  सम्मान उसी से है।।

विधाता का रूप  स्वरूप, समाया हर स्त्री में।

मानवता की सेवा  और, गुणगान उसी से है।।

[4]

बच्चों को प्रारंभ से, साहस संस्कार देना चाहिए।

उनको उचित ज्ञान और, सरोकार देना चाहिए।।

बेटियों को बेटों सा,  ही  हमें सशक्त बनाना है।

जबअस्मिता पेआंच, हाथ में तलवार देना चाहिए।।

5

नारी तुमकोअबला नहीं, सबला बनके  जीना है।

तुझसे ही घर परिवार, सुंदर  रूप नगीना है।।

स्त्री सम्मान ही धुरी, अपने समाज कल्याण की।

बन जा रणचंडी नहीं घूंट, अपमान का पीना है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 109 ☆ ग़ज़ल – “जमाने की हवा से अब…”☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “जमाने की हवा से अब…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #109 ☆  ग़ज़ल  – “जमाने की हवा से अब…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

नये युग की धमक है अब धुंधलके से उजाले तक

नया सा दिखता है अब सब बाजारों से शिवाले तक।

 

पुराने घर, पुराने सब लोग, उनकी पुरानी बातें

बदल गई सारी दुनियां ज्यों सुराही से प्याले तक।

 

जमाने की हवा से अब अछूता कुछ नहीं दिखता

झलक दिखती नये रिश्तों की पति-पत्नी से साले तक।

 

चली हैं जो नयी फैशन दिखावों औ’ मुखोटों की,

लगे दिखने हैं अब चेहरे तो गोरे रंग से काले तक।

 

ली व्यवहारों ने जो करवट बाजारू सारी दुनिया में

किसी को डर नहीं लगता कहीं करते घोटाले तक।

 

निडर हो स्वार्थ अपने साधना, अब आम प्रचलन है

दिये जाने लगे हैं झूठे मनमाने हवाले तक।

 

मिलावट हो रही हर माल में भारी धड़ाके से

बाजारों में नही मिलते कहीं असली मसाले तक।

 

फरक आया है ऐसा सबकी तासीरों में बढ़चढ़कर

नहीं देते है गरमाहट कि अब ऊनी दुशाले तक।

 

बताने, बोलते, रहने, पहिनने के सलीकों में

नयापन है बहुत खानों में, स्वदों में निवाले तक।

 

खनक पैसों की इतनी बढ़ गई अब बिक रहा पानी

नहीं तरजीह देते फर्ज को कोई कामवाले तक।

 

गिरावट आचरण की, हुई तरक्की हुई दिखावट की

’विदग्ध’ मुश्किल से मिलते है, कोई सिद्धान्त वाले अब।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (21 नवंबर से 27 नवंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (21 नवंबर से 27 नवंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम – कहा गया है – “मिलता है जो भाग्य में लिखा होता है – मिलता है वही ना किसी को कम ना किसी को ज्यादा – सबको अपने भाग्य से अपना हिस्सा मिलता है।” 

 नमस्कार मैं हूं पंडित अनिल पांडे । 21 नवंबर से 27 नवंबर 2022 तक अर्थात विक्रम संवत  2079 शक संवत 1944 के अगहन मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी से शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तक के सप्ताह में आपको क्या मिलेगा क्या नहीं मिलेगा । यही बताने के लिए आज मैं चर्चा कर रहा हूं।

 इस सप्ताह चंद्रमा प्रारंभ में कन्या राशि में रहेगा । 21 तारीख को ही  10:38 दिन से तुला राशि में प्रवेश करेगा । उसके उपरांत वृश्चिक और धनु राशि में  गमन करते हुए 27 तारीख को 10:17 रात से मकर राशि में प्रवेश करेगा।  इस सप्ताह चंद्रमा 23 तारीख के सांयं काल 4:08 से 25 तारीख के 7:45 रात तक वृश्चिक राशि में रहेगा। वृश्चिक राशि चंद्रमा की नीच राशि होती है परंतु इन दिनों में चंद्रमा नीच भंग राज योग बनाएगा अतः जिस भी स्थान पर होगा उस स्थान को लाभ पहुंचाएगा।

 इस सप्ताह सूर्य बुध और शुक्र वृश्चिक राशि में रहेंगे । मंगल वृष राशि में वक्री रहेगा । इसी प्रकार शनि पूरे सप्ताह मकर राशि में रहेगा । गुरु प्रारंभ में मीन राशि में वक्री रहेगा तथा 24 तारीख को 4:29 सायंकाल से मार्गी हो जाएगा । राहु पूरे सप्ताह मेष राशि में वक्री रहेगा।

 आइए अब हम राशि वार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपको अपने कार्यालय में सम्मान प्राप्त होगा । भाग्य आपका साथ देगा । आपके खर्चे में वृद्धि होगी । यह व्यय किसी शुभ कार्य के लिए होगा । । धन  आने का योग कम है । छोटी मोटी दुर्घटना हो सकती है। विवाह कार्यों में बाधाएं आएंगी । इस सप्ताह आपके लिए 21 , 22 और 23 तारीख  उत्तम है । 24 और 25 तारीख को आप दुर्घटना से बाल-बाल बचेंगे । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो आपके यहां पर इस सप्ताह विवाह प्रस्ताव आएंगे । व्यापार सामान्य चलेगा । भाग्य आपका साथ देगा ।  आपके पास धन आएगा । आपका स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है । आपके सुख में वृद्धि होगी । दुर्घटना से बचने का प्रयास करें । इस सप्ताह आपके लिए 24 और 25 तारीख  उत्तम है । 24 और 25 तारीख को आपको अपने व्यापार में लाभ होगा । दूर देश की यात्रा भी हो सकती है ।आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गाय को हरा चारा खिलाएं  ।सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा । आपके जीवन साथी का भी स्वास्थ्य सामान्य रहेगा । आपके शत्रु पराजित होंगे । आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त नहीं होगा । व्यापार में बाधा आ सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 26 और 27 तारीख किसी भी कार्य हेतु उत्तम है । अगर आप रोगी हैं तो 24 और 25 तारीख को आपको रोग से मुक्ति हो सकती है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार को शनि देव का  पूजन करें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

आपके जीवन साथी का उत्तम समय चल रहा है ।  आपका स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है । पिताजी से आपके संबंध खराब हो सकते हैं । पिताजी को कष्ट भी संभव है । भाग्य आपका भरपूर साथ देगा । धन आने का उत्तम योग है ।  आपके संतान से आपको सहयोग प्राप्त होगा  । व्यापार सामान्य है । शत्रु परास्त होंगे । शत्रु को परास्त करने के लिए आपको कार्य भी करना पड़ेगा । इस सप्ताह आपके लिए 21 , 22 और 23 नवंबर उत्तम और लाभप्रद है । अगर आप विद्यार्थी हैं तो आपके लिए 24 और 25 नवंबर को सफलताएं मिल सकती हैं । 26 और 27 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार का व्रत करें और उसी दिन हनुमान जी के मंदिर में जाकर हनुमान जी का दर्शन करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपकी सुख में वृद्धि होगी । माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । भाग्य आपके विपरीत है अतः आपको परिश्रम ज्यादा करना पड़ेगा । शत्रु शांत रहेंगे । आपको उनसे सावधान रहना चाहिए । कार्यालय में आपको असहयोग का सामना करना पड़ेगा । इस सप्ताह  24 और 25 तारीख को आप सुख संबंधी कोई सामग्री खरीद सकते हैं । यह भी संभव है कि उस दिन आपको लोगों के बीच प्रतिष्ठा प्राप्त हो । इस सप्ताह आपको चाहिए कि  आप गुरुवार का व्रत करें और राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपके पुत्र को उन्नति प्राप्त हो सकती है । आपके क्रोध के मात्रा में वृद्धि होगी । भाग्य आपका साथ दे सकता है । आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा । इस सप्ताह आपके लिए 26 और 27 तारीख उत्तम फलदायक हैं । 24 और 25 तारीख को आपके अपने भाइयों से आपके संबंध ठीक हो सकते हैं । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शुक्रवार को किसी भी मंदिर में जाकर किसी विद्वान ब्राह्मणों को सफेद वस्त्र का दान दें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपको उत्तम धन प्राप्ति का योग है । यह धन प्राप्ति संभवत 24 या 25 तारीख को हो सकती है । आपके माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा । पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है । आपको दुर्घटनाओं से  बचने का प्रयास करना चाहिए । इस सप्ताह आपकी पुरानी कोई बीमारी भी ठीक हो सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 21, 22 और 23 तारीख उत्तम फलदायक है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गाय को हरा चारा खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

यह सप्ताह आपके लिए मिश्रित फलदायक है। आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा । इस बात की पूरी संभावना है कि फेफड़े या मस्तिष्क संबंधी कोई रोग हो  जाय ।  आपके जीवनसाथी को शारीरिक कष्ट हो सकता है । कार्यालय में आपको सम्मान प्राप्त होगा । क्रोध की मात्रा में थोड़ी बहुत  वृद्धि संभव है । इस सप्ताह आपके लिए 24 व 25 तारीख उत्तम है । इन दोनों तारीख को मैं आपको कुछ लाभ प्राप्त हो सकता है । 21 , 22 और 23 नवंबर को आपको सावधान रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

आपकी कुंडली के गोचर में इस सप्ताह शत्रु  हन्ता योग बन रहा है । आपके सभी शत्रु इस सप्ताह पराजित हो सकते हैं परंतु इसके लिए आपको प्रयास करने होंगे । पिछले सप्ताह से इस सप्ताह के खर्चे में कमी आएगी । कचहरी के मामलों में  आपको सफलता मिल सकती है । भाग्य साथ दे सकता है । संतान से आपको कष्ट हो सकता है । छात्रों के पढ़ाई में बाधा आ सकती है । इस सप्ताह आपके लिए  26 और 27 नवंबर उत्तम है। इस दिन आप जो भी कार्य करना चाहेंगे वह संपन्न हो सकता है । कचहरी के कार्यों या ऋण मुक्ति आदि में 24 और 25 नवंबर को सफलता का विशेष योग है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने सन्तान के कष्टों को दूर करने के लिए राहु और केतु की शांति का उपाय करवाएं ।   सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का विशेष योग है इस बात की भी संभावना है कि  24 और 25 तारीख को प्रचूर मात्रा में आपके पास धन आये । व्यापार ठीक चल सकता है । व्यापार में प्रगति होगी । इस सप्ताह आपके कार्यों को पूर्ण करने में भाग्य का  योगदान कम रहेगा । आपको अपने कार्य के परिश्रम से ही पूर्ण करने होंगे यह सप्ताह आपके लिए 21, 22 और 23 नवंबर  उत्तम और सफलता दायक हैं । 26 और 27 तारीख को आपको संभल कर कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए क्या आप इस सप्ताह गणेश अथर्वशीर्ष का स्वयं पाठ करें या किसी विद्वान ब्राह्मण से पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

अगर आप कर्मचारी या अधिकारी हैं तो इस सप्ताह  कार्यालय में प्रतिष्ठा प्राप्त होगी ।  आप के अधिकारियों की आप पर विशेष कृपा रहेगी । नए शत्रु बन सकते हैं । धन आने का  योग है । इस सप्ताह आप कोई बड़ा कार्य प्रारंभ करने का सोच सकते हैं परंतु उसको इस सप्ताह कर नहीं पाएंगे । इस सप्ताह आपके लिए 24 और 25 तारीख  उत्तम है । 24 और 25 को आप को अपने कार्यालय में कुछ विशेष सफलता मिल सकती है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन भगवान शिव का अभिषेक करें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है ।

मीन राशि

आपका स्वास्थ्य पूर्ववत  रहेगा । भाग्य आपका पुरजोर साथ देगा । आपको चाहिए कि आप  वे सभी कार्य जो भाग्य के कारण हो नहीं पा रहे हैं  , उनको करने का इस सप्ताह प्रयास करें। धन आने का योग है । कार्यालय में भी आपकी प्रतिष्ठा ठीक रहेगी । शत्रु पराजित हो सकते हैं । इस सप्ताह आपके लिए 26 और 27 नवंबर  लाभदायक है । 21 , 22 और 23 नवंबर को आपको कई कार्यों में असफलता मिल सकती है । 21 ,22 और 23 को आपको सतर्क रहना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह रूद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इसके प्रभाव के बारे में बताएं ।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 129 – तुझे रूप दाता ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 129 – तुझे रूप दाता ☆

तुझे रूप दाता स्मरावे किती रे ।

नव्यानेच आता भजावे किती रे।

 

अहंकार माझा मला साद घाली ।

सदाचार त्याला जपावे किती रे।

 

नवी रोज स्पर्धा इथे जन्म घेते।

कशाला उगा मी पळावेकिती रे ।

 

नवी रोज दःखे नव्या रोज व्याधी।

मनालाच माझ्या छळावे किती रे।

 

कधी हात देई कुणी सावराया।

बहाणेच सारे कळावे किती रे ।

 

पहा सापळे हे जनी पेरलेले ।

कुणाला कसे पारखावे किती रे ।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #159 ☆ परखिए नहीं – समझिए ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  वैश्विक महामारी और मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख परखिए नहीं–समझिए । यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 159 ☆

☆ परखिए नहीं–समझिए ☆

जीवन में हमेशा एक-दूसरे को समझने का प्रयत्न करें; परखने का नहीं। संबंध चाहे पति-पत्नी का हो; भाई-भाई का हो; मां-बेटे का हो या दोस्ती का… सब विश्वास पर आधारित हैं, जो आजकल नदारद है। परंंतु हर व्यक्ति को उसी की तलाश है। इसलिए ‘ऐसे संबंध जिनमें शब्द कम और समझ ज्यादा हो; तक़रार कम, प्यार ज़्यादा हो; आशा कम, विश्वास ज़्यादा हो–की दरक़ार हर इंसान को है। वास्तव में जहां प्यार और विश्वास है, वही संबंध सार्थक है, शाश्वत है। समस्त प्राणी जगत् का आधार प्रेम है, जो करुणा का जनक है और एक-दूसरे के प्रति स्नेह, सौहार्द, सहानुभूति व त्याग का भाव ‘सर्वे भवंतु सुखीनाम्’ का प्रेरक है। वास्तव में जहां भावनाओं का सम्मान है, वहां मौन भी शक्तिशाली होता है। इसलिए कहा जाता है कि ‘खामोशियां भी बोलती हैं और अधिक प्रभावशाली होती हैं।’

यदि भरोसा हो, तो चुप्पी भी समझ में आती है, वरना एक-एक शब्द के अनेक अर्थ निकलने लगते हैं। इस स्थिति में मानव अपना आपा खो बैठता है। वह सब सीमाओं को लाँघ जाता है और मर्यादा के अतिक्रमण करने से अक्सर अर्थ का अनर्थ हो जाता है, जो हमारी नकारात्मक सोच को परिलक्षित करता है, क्योंकि ‘जैसी सोच, वैसा कार्य व्यवहार।’ शायद! इसलिए कहा जाता है कि कई बार हाथी निकल जाता है, पूँछ रह जाती है।

संवाद जीवन-रेखा है और विवाद रिश्तों में अवरोध उत्पन्न करता है, जो वर्षों पुराने संबंधों को पल-भर में मगर की भांति लील जाता है। इतना ही नहीं, वह दीमक की भांति संबंधों की मज़बूत चूलों को हिला कर रख देता है और वे लोग, जिनकी दोस्ती के चर्चे जहान में होते हैं; वे भी एक-दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं। उनके अंतर्मन में वह विष-बेल पनप जाती है, जो सुरसा के मुख की मानिंद बढ़ती चली जाती है। इसलिए छोटी-छोटी बातों को बड़ा न किया करें, उससे ज़िंदगी छोटी हो जाती है…बहुत सार्थक संदेश है। परंंतु यह तभी संभव है, जब मानव क्रोध के वक्त रुक जाए और ग़लती के वक्त झुक जाए। ऐसा करने पर ही मानव जीवन में सरलता व असीम आनंद को प्राप्त कर सकता है। सो! मानव को ‘पहले तोलो, फिर बोलो’  अर्थात् सोच-समझ कर बोलने का संदेश दिया गया है। दूसरे शब्दों में तुरंत प्रतिक्रिया देने से मानव मन में दूरियां इस क़दर बढ़ जाती हैं, जिन्हें पाटना असंभव हो जाता है और जीवन-साथी– जो दो जिस्म, एक जान होते हैं; नदी के दो किनारों की भांति हो जाते हैं, जिनका मिलन जीवन-भर संभव नहीं होता। इसलिए बेहतर है कि आप परखिए नहीं, समझिए अर्थात् एक-दूसरे की परीक्षा मत लीजिए और न ही संदेह की दृष्टि से देखिए, क्योंकि संशय, संदेह व शक़ मानव के अजात-शत्रु हैं। वे विश्वास को अपने आसपास भी मंडराने नहीं देते। सो! जहां विश्वास नहीं; सुख, शांति व आनंद कैसे रह सकते हैं? परमात्मा भाग्य नहीं लिखता; जीवन के हर कदम पर हमारी सोच, विचार व कर्म हमारा भाग्य लिखते हैं। इसलिए अपनी सोच सदैव सकारात्मक रखिए। संसार में जो भी अच्छा लगे, उसे ग्रहण कर लीजिए और शेष को नकार दीजिए। परंतु किसी की आलोचना मत कीजिए, आपका जीवन सार्थक हो जाएगा। वे सब आपको मित्र सामान लगेंगे और चहुंओर ‘सबका मंगल होय’ की ध्वनि सुनाई पड़ेगी। जब मानव में यह भावना घर कर लेती है, तो उसके हृदय में व्याप्त स्व-पर व राग-द्वेष की भावनाएं मुंह छुपा लेती हैं अर्थात् सदैव के लिए लुप्त हो जाती हैं और दसों दिशाओं में दिव्य आनंद का साम्राज्य हो जाता है।

अहं मानव का सबसे बड़ा शत्रु है। वह हमें किसी के सम्मुख झुकने अर्थात् घुटने नहीं टेकने देता, क्योंकि वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझता है और दूसरों को नीचा दिखा कर ही सुक़ून पाता है। सुख व्यक्ति के अहं की परीक्षा लेता है और दु:ख धैर्य की। इसलिए दोनों परीक्षाओं में उत्तीर्ण व्यक्ति का जीवन ही सार्थक व सफल होता है। इसलिए मानव को सुख में अहं को निकट नहीं आने देना चाहिए और दु:ख में धैर्य नहीं खोना चाहिए। दोनों परिस्थितियों में सम रहने वाला मानव ही जीवन में अलौकिक आनंद प्राप्त कर सकता है। सो! जीवन में सामंजस्य तभी पदार्पण कर सकेगा; जब कर्म करने से पहले हमें उसका ज्ञान होगा; तभी हमारी इच्छाएं पूर्ण हो सकेंगी। परंतु जब तक ज्ञान व कर्म का समन्वय नहीं होगा, हमारे जीवन की भटकन समाप्त नहीं होगी और हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होगी। इच्छाएं अनंत है और साधन सीमित। इसलिए हमारे लिए यह निर्णय लेना आवश्यक है कि पहले किस इच्छा की पूर्ति, किस ढंग से की जानी कारग़र है? जब हम सोच-समझकर कार्य करते हैं, तो हमें निराशा का सामना नहीं करना पड़ता; जीवन में संतुलन व समन्वय बना रहता है।

संतोष सर्वश्रेष्ठ व सर्वोत्तम धन है। इसलिए हमें जो भी मिला है, उसमें संतोष करना आवश्यक है। दूसरों की थाली में तो सदा घी अधिक दिखाई देता है। उसे देखकर हमें अपने भाग्य को कोसना नहीं चाहिए, क्योंकि मानव को समय से पहले और भाग्य से अधिक कभी, कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। संतोष अनमोल पूंजी है और मानव की धरोहर है। ‘जे आवहिं संतोष धन, सब धन धूरि समान,’ रहीम जी की यह पंक्ति इस तथ्य की ओर इंगित करती है कि संतोष के जीवन में पदार्पण करते ही सभी इच्छाओं का शमन स्वतः हो जाता है। उसे सब धन धूलि के समान लगते हैं और मानव आत्मकेंद्रित हो जाता है। उस स्थिति में वह आत्मावलोकन करता है तथा दैवीय व अलौकिक आनंद में डूबा रहता है; उसके हृदय की भटकन व उद्वेलन शांत हो जाता है। वह माया-मोह के बंधनों में लिप्त नहीं होता तथा निंदा-स्तुति से बहुत ऊपर उठ जाता है। यह आत्मा-परमात्मा के तादात्म्य की स्थिति है, जिसमें मानव को सम्पूर्ण विश्व तथा प्रकृति के कण-कण में परमात्म-सत्ता का आभास होता है। वैसे आत्मा-परमात्मा का संबंध शाश्वत है। संसार में सब कुछ मिथ्या है, परंतु वह माया के कारण सत्य भासता है। इसलिए हमें तुच्छ स्वार्थों का त्याग कर सुक़ून व अलौकिक आनन्द प्राप्त करने का अनवरत प्रयास करना चाहिए। इसके लिए आवश्यकता है उदार व विशाल दृष्टिकोण की, क्योंकि संकीर्णता हमारे अंतर्मन में व्याप्त दुष्प्रवृत्तियों को पोषित करती है। संसार में जो अच्छा है, उसे सहेजना बेहतर है और जो बुरा है, उसका त्याग करना बेहतर है। इस प्रकार आप बुराइयों से ऊपर उठ सकते हैं। उस स्थिति में संसार आपको सुखों का सागर प्रतीत होगा; प्रकृति आपको ऊर्जस्वित करेगी और चहुंओर अनहद नाद का स्वर सुनाई पड़ेगा।

अंत में मैं कहना चाहूंगी कि जीवन में दूसरों की परीक्षा मत लीजिए, क्योंकि परखने से आपको दोष अधिक दिखाई पड़ेंगे। इसलिए केवल अच्छाई को देखिए ;आपके चारों ओर आनंद की वर्षा होने लगेगी। सो! दूसरों की भावनाओं को समझने और उनकी बेरुखी का कारण जानने का प्रयास कीजिए। जितना आप उन्हें समझेंगे, आपकी दोष-दर्शन की प्रवृत्ति का अंत हो जाएगा। इंसान ग़लतियों का पुतला है और कोई भी इंसान पूर्ण नहीं है। फूल व कांटे सदैव साथ-साथ रहते हैं, उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। सृष्टि में जो भी घटित होता है–मात्र किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं; सबके मंगल के लिए कारग़र व उपयोगी सिद्ध होता है।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

29.8.22

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #159 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से \प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 159 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

गघरी ली है हाथ में,थककर बैठी छाँव।

गहरी सोच में डूबती,पिया नहीं है गाँव।।

🌴

राह प्रिय की देख रही,गुमसुम बैठी सोच।

कब आओगे सजन तुम,दिल में आई मोच।।

🤔

मिलने प्रिय को आ गई,घर में नहीं है ठाँव।

कब आओगे प्रिये तुम,थमते नहीं है पाँव।।

🌹

पानी भरकर बैठती,चेहरा है उदास।

दिल में उसके हो रही,बस प्रिय की है आस।।

💐

चिंता मन में हो रही,आ जाओ प्रिय पास।

दिल से दिल की दूरियां,जगती मन में खास।।

🌹

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #145 ☆ गरीबी पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “गरीबी पर दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 145 ☆

☆ गरीबी पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

होती धन की हीनता, बनते तभी गरीब

समझ सकें क्या दीनता, जब सुख होत करीब

 

धन-दौलत से आँकते, यहाँ गरीबी लोग

दोष सभी दें ईश को, कहें भाग्य का योग

 

कोसें अक्सर समय को, करें न कोई कर्म

भाग्य भरोसे न रहें, निभा कर्म का धर्म

 

अटल इरादे गर रखो, बनो नहीं मजबूर

कर्मों की कर साधना, करो गरीबी दूर

 

धन-दौलत से खुशी का, नहीं कोई संबंध

निर्धन रहता चैन से, उस पर क्या प्रतिबंध

 

जाने कितनी योजना, चला रहीं सरकार

पर गरीबी मिटी नहीं, सब बेबस लाचार

 

महनत कर कर थक गए, संवरा नहीं नसीब

जाने क्या है भाग्य में, सोचे यही गरीब

 

रोज चुनौती मिल रहीं, हो कैसे निर्वाह

मंहगाई के दौर में, निर्धन रहा कराह

 

दीनबन्धु सुध लीजिए, है गरीब लाचार

उनको भी संतोष हो, ऐसा कर उपचार

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य #151 ☆ धुंद झाले मन माझे…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 151 – विजय साहित्य ?

☆ धुंद झाले मन माझे…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

धुंद झाले मन माझे

शब्द रंगी रंगताना

आठवांचा मोतीहार

काळजात गुंफताना…….॥१॥

 

धुंद झाले मन माझे

तुझें मन ‌वाचताना

प्रेमप्रिती राग लोभ

अंतरंगी नाचताना……..॥२॥

 

धुंद झाले मन माझे

हात हातात घेताना

भेट हळव्या क्षणांची

प्रेम पाखरू होताना……..॥३॥

 

धुंद झाले मन माझे

तुझ्या मनी नांदताना

सुख दुःख समाधान

अंतरात रांगताना……….॥४॥

 

धुंद झाले मन माझे

तुला माझी म्हणताना

भावरंग अंगकांती

काव्यरंगी माळताना……॥५॥

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ गीत ऋग्वेद– (ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त ६  (इंद्र सूक्त)) — मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ गीत ऋग्वेद– (ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त ६ (इंद्र सूक्त)) — मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

ऋषी – मधुछंदस् वैश्वामित्र : देवता – इंद्र : छंद – गायत्री

मराठी भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री

ऋषी – मधुछंदस् वैश्वामित्र : देवता – १ ते ३ इंद्र; ४ ते ६, ८, ९ मरुत्; ५ ते ७ इंद्रमरुत्; १० – इंद्र 

—मधुछन्दस वैश्वामित्र ऋषींनी पहिल्या मंडळातील सहाव्या सूक्तात इंद्र आणि मरुत् या देवतांना आवाहन केलेले आहे. तरीही हे सूक्त इंद्रसूक्त म्हणूनच ज्ञात आहे. याच्या गीतरूप भावानुवादाच्या नंतर दिलेल्या लिंकवर क्लिक केले म्हणजे हे गीत ऐकायलाही मिळेल आणि त्याचा व्हिडीओ देखील पाहता येईल. 

मराठी भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री. 

यु॒ञ्जन्ति॑ ब्र॒ध्नम॑रु॒षं चर॑न्तं॒ परि॑ त॒स्थुषः॑ । रोच॑न्ते रोच॒ना दि॒वि ॥ १ ॥

व्योमामध्ये चमचमताती असंख्य नक्षत्रे

सज्ज जाहली या देवाच्या प्रस्थानास्तव खरे

इंद्राचे हे तेज किती हो उज्ज्वल प्रकाशते

सामर्थ्याने साऱ्या विश्वे संचारा करिते ||१||

यु॒ञ्जन्त्य॑स्य॒ काम्या॒ हरी॒ विप॑क्षसा॒ रथे॑ । शोणा॑ धृ॒ष्णू नृ॒वाह॑सा ॥ २ ॥

अती देखणे तांबटवर्णी अश्व सज्ज झाले

रथासी जुंपून सेवक त्यांना घेउनिया आले

पाहुनिया वारूंना लोभस अभिलाषा जागली

आरुढ होता इंद्र रथावरी तेजा येत झळाळी ||२||

के॒तुं कृ॒ण्वन्न॑के॒तवे॒ पेशो॑ मर्या अपे॒शसे॑ । समु॒षद्‍भि॑रजायथाः ॥ ३ ॥

जयासि ना आकार तयाला साकारा आणिले

जाड्य अचेतन तयामध्ये तू चैतन्या भरले 

साक्ष होऊनी उषेसवे तू  प्राणा साकारले

जन्म घेउनिया अवनीवर अवतारुनी आले ||३||  

आदह॑ स्व॒धामनु॒ पुन॑र्गर्भ॒त्वमे॑रि॒रे । दधा॑ना॒ नाम॑ य॒ज्ञिय॑म् ॥ ४ ॥

यज्ञाकरिता सर्वा परिचित असे नाम धारिले

पुनःपुन्हा जन्माला येण्या गर्भवास पावले

जननानंतर मरण अशा या सृष्टिक्रमा राखिले

कितीकदा या अवनीवरती जन्म घेउनी आले ||४|| 

वी॒ळु चि॑दारुज॒त्‍नुभि॒र्गुहा॑ चिदिन्द्र॒ वह्नि॑भिः । अवि॑न्द उ॒स्रिया॒ अनु॑ ॥ ५ ॥

बलशाली तू सुराधीपती योगसिद्ध राजा

सहज भेदिशी अशनी योगे अभेद्य ऐशा नगा

योगाच्या सामर्थ्याने तू  गुंफा फोडुनीया 

प्रभारूपी धेनूंना आणिसी शोधूनी तू लीलया ||५||

    

दे॒व॒यन्तो॒ यथा॑ म॒तिमच्छा॑ वि॒दद्व॑सुं॒ गिरः॑ । म॒हाम॑नूषत श्रु॒तम् ॥ ६ ॥

वैभवदायी देवेंद्राला कितिक स्तोत्र अर्पिली

समाधान देवाला अपुल्या देण्यास्तव गायिली

किती महत्तम सुरेंद्र तैसा यशोवंत फार

जगता साऱ्या विश्रुत आहे शचीपती तो थोर ||६||   

इन्द्रे॑ण॒ सं हि दृक्ष॑से सञ्जग्मा॒नो अबि॑भ्युषा । म॒न्दू स॑मा॒नव॑र्चसा ॥ ७ ॥

देवेंद्राला भय ना ठावे शूर वीर तेजस्वी

तयासवे तव संचाराची शोभा ही आगळी

उभय देवतांचे हे तेज प्रदीप्त हो होते

मुदित पाहूनी दोघांना ही समाधान दाटते ||७||

अ॒न॒व॒द्यैर॒भिद्यु॑भिर्म॒खः सह॑स्वदर्चति । ग॒णैरिन्द्र॑स्य॒ काम्यैः॑ ॥ ८ ॥

इंद्राचे अनुचर ही असती सकलांना प्रीय

दहीदिशांना  तेज फाकते त्यांचे  तेजोमय

अवगुण त्यांच्या ठायी नाही सर्वगुणांनी युक्त

त्यांच्या पूजेसाठी घोष  करीत त्याचे भक्त ||८||

अतः॑ परिज्म॒न्ना ग॑हि दि॒वो वा॑ रोच॒नादधि॑ । सम॑स्मिन्नृञ्जते॒ गिरः॑ ॥ ९ ॥

भक्त तुझा मी दास तुझा मी स्तोत्र तुझी अळवितो

तुझ्या स्तुतीने अपुली वैखरी अलंकृत करितो

सर्वव्यापी हे देवा करता विलंब का आता 

द्युलोकीहून सत्वर यावे दर्शन द्यावे आता ||९||

इ॒तो वा॑ सा॒तिमीम॑हे दि॒वो वा॒ पार्थि॑वा॒दधि॑ । इन्द्रं॑ म॒हो वा॒ रज॑सः ॥ १० ॥

व्योमातुन वा पार्थिवातुन सत्वर ही यावे 

दिव्यलोकही वा त्यजुनी आता साक्ष इथे व्हावे  

इंद्राचा सहवास अर्पितो अभिष्ट आनंद

अभिलाषा ना अन्य ठेविली दर्शन हा मोद ||१०||

भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री 

९८९०११७७५४

[email protected]

https://youtu.be/_J2mwG5SfHg

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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