हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 108 ☆ ग़ज़ल – “वह याद चली आती…”☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “वह याद चली आती…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #108 ☆  ग़ज़ल  – “वह याद चली आती…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

दुनियाँ से जुदा, दिल में रहती है जो शरमाई 

वह याद चली आती, जब देखती तनहाई।

 

मिलकर के मेरे दिल को दे जाती है कुछ राहत

जो रखती मुझे हरदम उलझनों में भरमाई।

 

लगती उदास मुझको ये कायनात सारी

तस्वीर तुम्हारी ही आँखों में है समाई।

 

सदा सोते जागते भी सपने मुझे दिखते है

पर फिर से कभी मिलने तुमसे न घड़ी आई।

 

अनुमान के परदे पर कई रूप उभरते है

कभी बातें करते, हँसते पड़ती हो तुम दिखाई।

 

सब जानते समझते धीरज नहीं मन धरता

पलकों में हैं भर जाते कभी आँसू भी बरियाई।

 

मन बार-बार व्याकुल हो साँसें भरा करता

कर पाई कहॉ यादें इन्सान की भरपाई।।

 

दिन आते हैं जाते हैं पर लौट नहीं पाते

देती ’विदग्ध’ दुख यह संसार की सच्चाई।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (7 नवंबर से 13 नवंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (7 नवंबर से 13 नवंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

किसी ने कहा है कि “जो आपके भाग्य में है वह भाग कर आएगा और जो आपके भाग्य में नहीं है वह आकर भी भाग जाएगा “।

14 नवंबर से 20 नवंबर 2022 अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के अगहन मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी से  एकादशी तक के सप्ताह में आपके भाग्य में क्या-क्या है यही बताने के लिए मैं आपके सामने प्रस्तुत हूं । आप सभी को पंडित अनिल पाण्डेय का नमस्कार ।

इस सप्ताह चंद्रमा प्रारंभ में कर्क राशि में रहेगा ।   दिनांक 16 नवंबर को 4:32 सायं से सिंह राशि में और 18 नवंबर को 2:45 रात से कन्या राशि में प्रवेश करेगा । सूर्य प्रारंभ में तुला राशि में रहेगा तथा 17 तारीख को 7:13 प्रातः से वृश्चिक राशि में गोचर करेगा । मंगल पूरे सप्ताह वृष राशि में वक्री रहेगा  ।  बुध और शुक्र वृश्चिक राशि में रहेंगे । गुरु मीन राशि में  वक्री  रहेगा । इसी प्रकार शनि पूरे सप्ताह मकर राशि में रहेगा । आइए अब हम राशिवार राशिफल की बात करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके पास अच्छा धन आ सकता है । कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । छोटी मोटी दुर्घटना हो सकती है । इस सप्ताह आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना चाहिए । भाग्य कोई बहुत अच्छा साथ नहीं देगा । संतान का सहयोग भी आपको कम मिलेगा । इस सप्ताह आपके लिए 14 ,15 और 16 नवंबर अच्छे हैं। । 14 ,15 और 16 नवंबर को आप जो भी कार्य करेंगे उनमें आपको सफलता मिलेगी । 19 और 20 नवंबर को आपको कार्यों में असफलता प्राप्त होगी  । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का अभिषेक करें तथा रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

आपके जीवन साथी को कई क्षेत्रों में सफलताएं प्राप्त होगी । व्यापार ठीक ठाक चलेगा । अगर आप अविवाहित हैं तो आपके विवाह के प्रस्ताव आएंगे । प्रेम संबंध बनाने में भी सफलता मिल सकती है । आपका स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है । आपके सुख में कमी आएगी । छोटी मोटी दुर्घटना हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 नवंबर उपयुक्त है ।  सप्ताह घंघके बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य पिछले सप्ताह जैसा ही रहेगा । शत्रु परास्त होंगे । कचहरी के मामलों में आप को हार मिल सकती है । भाइयों और बहनों से क्लेश बढ़ेगा । कार्यालय में आप थोड़ा बहुत परेशान हो सकते हैं । आपको अपनी संतान का सहयोग प्राप्त नहीं होगा । गलत रास्ते से धन आ सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 नवंबर श्रेष्ठ है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गुरुवार के दिन व्रत रखें और भगवान राम या कृष्ण जी के मंदिर में जा कर पूजा पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । आपके संतान की पदोन्नति हो सकती है । छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी । थोड़ा बहुत धन आने का योग है । व्यापार में उन्नति होगी । इस सप्ताह आपके लिए 14 15 और 16 नवंबर अच्छे हैं । इन तारीखों में आप जो भी कार्य करेंगे उनमें आपको सफलता प्राप्त होगी । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह राम रक्षा स्त्रोत का प्रतिदिन जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आप कोई बड़ी चीज खरीद सकते हैं । जनता में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । भाग्य आपका साथ नहीं देगा । शत्रु बढ़ेंगे।  आपका स्वास्थ्य नरम गरम रहेगा।  । आपको अपने संतान से कोई विशेष मदद नहीं मिल पाएगी ।   छात्रों की पढ़ाई में व्यवधान आ सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 नवंबर लाभदायक है । 14, 15 और 16 नवंबर को आपको सावधान रहना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शुक्रवार को मंदिर में जाकर भिखारियों के बीच में चावल का दान दें।  सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

अविवाहित जातकों के विवाह के प्रस्ताव आएंगे ।  आपके जीवनसाथी के पेट में पीड़ा हो सकती है । आपकी संतान सुखी रहेगी । भाइयों और बहनों से संबंध ठीक-ठाक रहेगा । भाग्य से आपको थोड़ी बहुत मदद मिल पाएगी ।    19  और 20 नवंबर  सप्ताह में आप के सबसे अच्छे दिन हैं । 17 और 18 नवंबर को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का उत्तम योग है । आपके साथ छोटी मोटी दुर्घटना हो सकती है। भाइयों के साथ आपका वैर बढ़ेगा । विवाहित जातकों के विवाह में बाधा आएगी ।  14 , 15 और 16 नवंबर को आप जो भी कार्य करेंगे वे  सभी कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण होंगे । 19 और 20 नवंबर को आपको सतर्क रहना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा । जीवन साथी के स्वास्थ्य में थोड़ी तकलीफ आ सकती है । व्यापार अच्छा चलेगा । विवाह के प्रस्ताव आएंगे । बहनों से बहुत अच्छे संबंध रहेंगे । संतान के साथ संबंधों में बाधा आ सकती है । पढ़ाई में व्यवधान आएंगे । इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 नवंबर उत्तम है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है ।

धनु राशि

कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है । आपके संतान को कष्ट हो सकता है । आप के सुख में कमी आ सकती है । भाग्य कम साथ देगा । इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 तारीख को उत्तम है । 19 और 20 को आप जो भी काम करेंगे उसमें आपको सफलता मिल सकती है। 14 15 और 16 नवंबर को आपको सतर्क होकर कोई भी कार्य करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह मंगलवार का व्रत करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जा कर पूजा पाठ करें  ।  सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । आपके पास धन आने का अच्छा योग है । आपको अपनी पुत्री से सुख प्राप्त होगा । पुत्री से आपको बहुत सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों को पढ़ाई में परेशानी आ सकती है । कचहरी में स्थिति आपकी खराब हो सकती है ।  इस सप्ताह आपके लिए 14 15 और 16  नवंबर शुभ एवं लाभप्रद है। ।   14 ,15 और 16 नवंबर को आप जो भी कार्य करेंगे उसमें आपको सफलता प्राप्त होगी ।  17 और 18 नवंबर को आपको कई कार्यों में हानि उठानी पड़ सकती है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं ।  सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

आपके पास गलत रास्ते से धन आने का योग है । भाग्य साथ देगा । दूर की यात्रा पर आप जा सकते हैं । कार्यालय में आपको अपने अधिकारियों से सहयोग प्राप्त होगा । आपके  अधीनस्थ आपको परेशान कर सकते हैं । समाज में आपकी प्रतिष्ठा गिर सकती है । नए शत्रु बन सकते हैं । इस सप्ताह आपके लिए 17 और अट्ठारह नवंबर उपयुक्त एवं लाभप्रद है । इस सप्ताह में नए कार्य  करने का कम प्रयास करें । आप को चाहिए कि आप इस सप्ताह  शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे दिया जलाएं और पीपल की सात बार परिक्रमा करें । इसके अलावा आपको शनिवार को शनि देव का पूजन करना चाहिए। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

मीन राशि के अविवाहित जातकों के पास विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं । भाग्य आपका इस सप्ताह अच्छा साथ देगा । आपके कई बिगड़ते हुए काम बन सकते हैं । धन आने का अच्छा योग है । भाइयों से तनाव रहेगा । एक बहन से अच्छे संबंध रहेंगे । आपको और आपके जीवन साथी को पेट में तकलीफ हो सकती है। आपके लिए 19 और 20 नवंबर उत्तम और कार्य सिद्धि योग्य है। 17 और 18 नवंबर को आपको सतर्क होकर कार्य करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने गुरुदेव को प्रसन्न करने का प्रयास करें । इसके अलावा प्रतिदिन अपने माता और पिता का प्रातः काल चरण स्पर्श करें। । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इसके प्रभाव के बारे में बताएं ।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 128 – नको साजणी तू ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 128 – नको साजणी तू ☆

नको साजणी तू ।अशी दूर आता।

मनी आसवांचा । नको पूर आता।

 

तुझा छंद माझ्या। जिवाला जडे हा।

तुझ्या दर्शनाने । टळे धूर आता।

 

अशा शांत वेळी । नको हा दुरावा।

तुझा हात हाती ।असे नूर आता।

 

किती भाव नेत्री। तुझ्या दाटलेले।

इशारा कशाला । जुळे सूर आता।

 

तुझा स्पर्श भासे जणू चांदण्याचा।

उगी लाजण्याने। अशी चूर आता।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ संस्कृत साहित्यातील स्त्रिया…3 ☆ डॉ मेधा फणसळकर ☆

डॉ मेधा फणसळकर

? विविधा ?

☆ संस्कृत साहित्यातील स्त्रिया…3 ☆ डॉ मेधा फणसळकर ☆ 

द्रौपदी

महाभारतातील एक महत्वपूर्ण पात्र म्हणजे द्रौपदी! वास्तविक संपूर्ण महाभारताचा विचार करता कथेची नायिका द्रौपदी व नायक श्रीकृष्ण आहे असे म्हणावे लागेल.

द्रौपदीच्या चरित्राचा अभ्यास करताना असे लक्षात येते की तिच्या स्वभावाचे अनेक चांगले- वाईट कंगोरे होते. स्वयंवराचा ‛पण’ अर्जुनाने जिंकला असला तरी कुंतीच्या सांगण्यावरून ती पाचही पांडवांचा पती म्हणून स्वीकार करते. यातून तिच्यातील आज्ञाधारक सून जाणवते. पण ज्यावेळी पांडवांवर संकट येते आणि कोणताही निर्णय घेण्यास ते असमर्थ ठरत त्यावेळी योग्य सल्ला द्यायचे काम तीच खंबीरपणे करत असे. प्रसंगी त्यांच्या चुका दाखवण्यातही ती मागेपुढे पाहत नसे. द्युतात हरल्यावर पांडवांना जेव्हा वनवासात जावे लागले तेव्हाही तिने त्यांच्या मनात प्रतिशोधाची ज्योत सतत जागी ठेवण्याचा प्रयत्न केला. एका प्रसंगात ती युधिष्ठिराला म्हणते,“ पूर्वी सकाळी ज्या सुंदर भूपाळी आणि वाद्यवादनाने तुम्हाला जाग येत असे तेच तुम्ही सर्व राजे आता सकाळच्या कोल्हेकुईने जागे होता. जिथे तुम्ही पंचपक्वान्नांचा आस्वाद घेत होता तेच तुम्ही आता कंदमुळांवर गुजराण करत आहात. ज्या भीमाच्या गदेच्या प्रहाराची सर्वाना भीती वाटते तो भीम जंगलातील झाडांवर कुऱ्हाडीचा प्रहार करून लाकडे गोळा करत आहे….” अशाप्रकारे आपल्या कर्तव्याची आपल्या पतींना जाणीव करून देणारी ती कर्तव्यदक्ष आणि महत्वाकांक्षी स्त्री वाटते.

आजच्या काळातही अजूनही स्त्री- पुरुष यांच्या मैत्रीच्या निखळ नात्यावर फारसा विश्वास ठेवला जात नाही. पण त्या काळात द्रौपदी आणि श्रीकृष्ण यांची मैत्री अनोखी होती. त्यांच्यात खऱ्या अर्थाने सखा, भाऊ आणि सवंगड्याचे नाते होते. म्हणूनच तिला ‛कृष्णा’ या नावानेही ओळखले जात असे. ज्यावेळी भर दरबारात तिला डावावर लावण्यात आले आणि तिला निर्वस्त्र करण्याचा प्रयत्न केला गेला तेव्हा तिला केवळ कृष्णाचीच आठवण झाली. तिने स्वतःच्या रक्षणासाठी कृष्णाचा धावा करताना म्हटले,“ माझा कोणी पती नाही, माझा कोणी पुत्र नाही, माझा कोणी पिता नाही. हे मधुसूदन, तुझे माझे तर कोणतेच नाते नाही. पण तू माझा सच्चा मित्र- सखा आहेस. म्हणून तू माझे रक्षण करावेस.” असे म्हणून तिने केवळ त्यांच्यातील मैत्रभावनेलाच हात घातला नाही तर त्याला आपल्या कर्तव्याचीही जाणीव करून दिली. इतकेच नव्हे तर त्याचवेळी कुरुवंशातील ज्येष्ठ आणि श्रेष्ठ व्यक्तींना दूषण देण्यासही ती कचरली नाही. वास्तविक द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, धृतराष्ट्र यांनी ही सर्व विपरीत घटना घडत असताना ते थांबवणे गरजेचे होते. त्यामुळे अन्यायाविरुद्ध लढण्याची आणि आपला अधिकार हक्काने मागणारी द्रौपदी निश्चितच सर्व स्त्रियांसाठी आदर्श ठरावी.

जोपर्यंत तिच्या या अपमानाचा बदला घेतला जात नाही तोपर्यंत तिने आपले केस मोकळे सोडले होते. दुर्योधनाच्या रक्तानेच वेणी बांधण्याची तिने प्रतिज्ञा केली होती. आणि जोपर्यंत तिचे ते मोकळे केस दिसत होते तोपर्यंत तिच्या पतींना तिच्या अपमानाचा आणि त्याचा बदला घेण्याचा विसर पडू नये हीच तिची त्यामागची भावना असावी. यातून तिच्यामधील निश्चयी आणि तितकीच आपल्या मताशी ठाम असणारी स्त्री दिसून येते.

जितकी ती प्रसंगी कठोर होत असे तितकीच ती मनाने कोमल होती. जयद्रथ म्हणजे खरे तर तिच्या नणंदेचा पती! पण तो तिचे अपहरण करतो आणि नंतर त्याच्या या अपराधासाठी त्याला ठार मारण्याची युधिष्ठिराकडे मागणी होत असताना ती आपल्या नणंदेला वैधव्य प्राप्त होऊ नये म्हणून सर्वाना त्यापासून परावृत्त करते. मात्र जयद्रथाला आपल्या या दुष्कृत्याची सतत जाणीव राहावी म्हणून त्याचा चेहरा विद्रुप करण्याची आज्ञा देते.

ती पाच पतींची पत्नी असली तरी वारंवार असे जाणवत राहते की ती भीमावर मनापासून प्रेम करत होती. कारण ज्या ज्या वेळी तिच्यावर संकट आले त्या त्या वेळी तो पती म्हणून तिच्या पाठीशी उभा राहिला. वस्त्रहरणाच्या वेळी पण त्याने एकट्यानेच त्याविरुद्ध आवाज उठवला होता. त्यामुळे जेव्हा द्रौपदीचा अंतिम काळ आला त्यावेळी ती भीमाला म्हणाली,“ जर पुन्हा जन्म मिळालाच तर तुझीच पत्नी व्हायला मला आवडेल.” द्रौपदीमधील ही प्रेमिका मनाला मोहवून जाते.

अशी ही महाभारताची नायिका असणारी द्रौपदी अनेक आयामातून संस्कृत साहित्यात भेटत जाते. काहीजणांच्या मते केवळ द्रौपदीच्या अहंकारी स्वभावाने आणि रागामुळे संपूर्ण महाभारत घडले. पण माझ्या मते या संपूर्ण कथेत द्रौपदीवर जितका अन्याय झालेला दिसतो तितका इतर कोणत्याही स्त्रीवर झालेला दिसत नाही. राजघराण्यातील असूनही संपूर्ण जीवन संघर्ष आणि दुःखात गेले. मुले असूनही मातृत्व नीट उपभोगता आले नाही. सौंदर्यवती असूनही नेहमीच पाच पतींमध्ये विभागली गेली. ज्याच्यावर तिचे खऱ्या अर्थाने प्रेम होते त्याला पूर्णपणे समर्पित होऊ शकत नव्हती. आणि या सर्व प्रतिकूल परिस्थितीतही ती तितकीच खंबीर होती. पण तरीही शेवटी ती एक सामान्य स्त्री होती. म्हणूनच काही वेळा प्रेम, ईर्षा, राग या सहज भावना तिच्यात उफाळून येत असाव्यात. त्यामुळे हे सामान्यत्वच उराशी बाळगून तिने आपले असामान्यत्व सिद्ध केले होते असेच म्हणावे लागेल.

© डॉ. मेधा फणसळकर

सिंधुदुर्ग.

मो 9423019961

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #158 ☆ उपलब्धि व आलोचना ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  वैश्विक महामारी और मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख उपलब्धि व आलोचना । यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 158 ☆

☆ उपलब्धि व आलोचना ☆

उपलब्धि व आलोचना एक दूसरे के अभिन्न मित्र हैं। उपलब्धियाँ बढ़ेंगी, तो आलोचनाएं भी बढ़ेंगी। वास्तव मेंं ये दोनों पर्यायवाची हैं और इनका चोली-दामन का साथ है। इन्हें एक-दूसरे से अलग करने की कल्पना भी बेमानी है। उपलब्धियां प्राप्त करने के लिए मानव को अप्रत्याशित आपदाओं व कठिनाइयों से जूझना पड़ता है। जीवन में कठिनाइयाँ हमें बर्बाद करने के लिए नहीं आतीं, बल्कि ये हमारी छिपी हुई सामर्थ्य व शक्तियों को बाहर निकालने में हमारी मदद करती हैं। ‘सो! कठिनाइयों को जान लेने दो कि आप उनसे भी अधिक मज़बूत व बलवान हैं।’ इसलिए मानव को विषम परिस्थितियों में धैर्य नहीं खोना चाहिए तथा आपदाओं को सदैव अवसर में बदलने का प्रयास करना चाहिए। कठिनाइयाँ हमें अंतर्मन में संचित आंतरिक शक्तियों व सामर्थ्य का एहसास दिलाती हैं और उनका डट कर सामना करने को प्रेरित करती हैं। उस स्थिति में मानव स्वर्ण की भांति अग्नि में तप कर कुंदन बनकर निकलता है और अपने भाग्य को सराहने लगता है। उसके हृदय में ‘शक्तिशाली विजयी भव’ का भाव घर कर जाता है, जिसके लिए वह भगवान का शुक्र अदा करता है कि उसने आपदाओं के रूप में उस पर करुणा-कृपा बरसायी है जिसके परिणाम-स्वरूप वह जीवन में उस मुक़ाम पर पहुंच सका है। दूसरे शब्दों में वह अप्रत्याशित उपलब्धियाँ प्राप्त कर सका है, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

‘उम्र ज़ाया कर दी लोगों ने/ औरों के वजूद में नुक्स निकालते-निकालते/ इतना ख़ुद को तराशा होता/ तो फ़रिश्ता बन जाते’ गुलज़ार की यह सीख अत्यंत कारग़र है। परंतु मानव तो दूसरों की दूसरों की निंदा व  आलोचना कर आजीवन सुक़ून पाता है। इसके विपरीत यदि वह दूसरों में कमियाँ तलाशने की अपेक्षा आत्मावलोकन करना प्रारंभ कर दे, तो जीवन से राग-द्वेष, वैमनस्य व कटुता भाव का सदा के लिए अंत हो जाए। परंतु आदतें कभी नहीं बदलतीं; जिसे एक बार यह लत पड़ जाती है, उसे निंदा करने में अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है। वैसे आलोचना भी उसी व्यक्ति की होती है, जो उच्च शिखर पर पहुंच जाता है। उसकी पद-प्रतिष्ठा को देख लोगों के हृदय में ईर्ष्या भाव जाग्रत होता है और वह सबकी आंखों में खटकने लग जाता है। शायद! इसलिए कहा जाता है कि जो सामान्य-जन का प्रिय होता है– आलोचना का केंद्र नहीं बनता, क्योंकि उसने जीवन में सबसे अधिक समझौते किए होते हैं। सो! उपलब्धि व आलोचना एक सिक्के के दो पहलू हैं, जिन्हें एक-दूसरे से अलग करना नामुमक़िन है।

समस्याएं हमारे जीवन में बेवजह नहीं आतीं।  उनका आना एक इशारा है कि हमें अपने जीवन में कुछ बदलाव लाना आवश्यक है। वास्तव में यह मानव के लिए शुभ संकेत होती हैं कि अब जीवन में बदलाव लाने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं है। यदि जीवन सामान्य गति से चलता रहता है, तो निष्क्रियता इस क़दर अपना जाल फैला लेती है कि मानव मकड़ी के जाले की मानिंद उस भ्रम में फंसकर रह जाता है कि अब उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। ऐसी स्थिति में उसमें अहम् का पदार्पण हो जाता है कि अब उसका जीवन सुचारू रूप से  चल रहा है और उसे डरने की आवश्यकता नहीं है। परंतु कठिनाइयां व समस्याएं मानव को शुभ संकेत देती हैं कि उसे ठहरना नहीं है, क्योंकि संघर्ष व निरंतर कर्मशीलता ही जीवन है। इसलिए उसे चलते जाना है और आपदाओं से नहीं घबराना है, बल्कि उनका सामना करना है। परिवर्तनशीलता ही जीवन है और सृष्टि में भी नियमितता परिलक्षित है। जिस प्रकार रात्रि के पश्चात् दिन, अमावस के पश्चात् पूनम व यथासमय ऋतु परिवर्तन होता है तथा प्रकृति के समस्त उपादान अहर्निश क्रियाशील रहते हैं। सो! मानव को उनसे सीख लेकर निरंतर कर्मरत रहना है। ‘जीवन में सुख-दु:ख तो मेहमान हैं’ आते-जाते रहते हैं। परंतु एक के जाने के पश्चात् ही दूसरा दस्तक देता है। मुझे स्मरण हो रही हैं यह पंक्तियां ‘नर हो ना निराश करो मन को/  कुछ काम करो, कुछ काम करो’, क्योंकि गतिशीलता ही जीवन है और निष्क्रियता मृत्यु है।

सम्मान हमेशा समय व स्थिति का होता है। परंतु भ्रमित मानव उसे अपना समझ लेता है। खुशियाँ धन-संपदा पर नहीं, परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं। एक बच्चा गुब्बारा खरीद कर खुश होता है, तो दूसरा बच्चा उसे बेचकर फूला नहीं समाता। व्यक्ति को सम्मान, पद-प्रतिष्ठा अथवा उपलब्धि संघर्ष के बाद प्राप्त होती है, परंतु वह सम्मान उसकी स्थिति का होता है। परंतु बावरा मन उसे अपनी उपलब्धि समझ हर्षित होता है। प्रतिष्ठा व सम्मान तो रिवाल्विंग चेयर की भांति होते है; जब तक आप पदासीन हैं और सबकी नज़रों के समक्ष हैं; सब आप को सलाम करते हैं। परंतु आपकी नज़रें घूमते ही लोगों के व्यवहार में अप्रत्याशित परिवर्तन हो जाता है। सो! खुशियाँ परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं, जो आपकी अपेक्षा व इच्छा का प्रतिरूप होती हैं। यदि उनकी पूर्ति हो जाए, तो आपके कदम धरती पर नहीं पड़ते। यदि आपको मनचाहा प्राप्त नहीं होता, तो आप हैरान- परेशान हो जाते हैं और कई बार वह निराशा अवसाद का रूप धारण कर लेती है, जिससे मानव आजीवन मुक्ति नहीं प्राप्त कर सकता।

मानव जीवन क्षण-भंगुर है, नश्वर है, क्योंकि इस संसार में स्थायी कुछ भी नहीं। मानव इस संसार में खाली हाथ आता है और उसे खाली हाथ लौट जाना है। हमें अगली सांस लेने के लिए पहली सांस को छोड़ना पड़ता है। इसलिए जो आज हमें मिला है, सदा कहने वाला नहीं; फिर उससे मोह क्यों? हमें जो मिला है यहीं से प्राप्त हुआ है, फिर उसके न रहने पर दु:ख क्यों? संसार में सब रिश्ते-नाते, संबंध- सरोकार सदा रहने वाले नहीं हैं। इसलिए उन में लिप्त नहीं होना चाहिए, क्योंकि जो आज हमारा है, कल छूटने वाला है; फिर चिन्ता व परेशानी क्यों? ‘दुनिया का उसूल है/ जब तक काम है/  तेरा नाम है/ वरना दूर से ही सलाम है।’ हर व्यक्ति किसी को सलाम तभी करता है, जब तक वह उसके स्वार्थ साधने में समर्थ है तथा मतलब निकल जाने के पश्चात् मानव किसी को पहचानता भी नहीं। यह दुनिया का दस्तूर है और उसका बुरा नहीं मानना चाहिए।

समस्याएं भय और डर से उत्पन्न होती हैं। यदि भय, डर,आशंका की जगह विश्वास ले ले, तो समस्याएं अवसर बन जाती हैं। नेपोलियन विश्वास के साथ समस्याओं का सामना करते थे और उसे अवसर में बदल डालते थे। यदि कोई समस्या का ज़िक्र करता था, तो वे उसे बधाई देते हुए कहते थे कि ‘यदि आपके पास समस्या है, तो नि:संदेह एक बड़ा अवसर आपके पास आ पहुंचा है। अब उस अवसर को हाथों-हाथ लो और समस्या की कालिमा में सुनहरी लकीर खींच दो।’ नेपोलियन का यह कथन अत्यंत सार्थक है। ‘यदि तुम ख़ुद को कमज़ोर सोचते हो, तो कमज़ोर हो जाओगे। अगर ख़ुद को ताकतवर सोचते हो, तो ताकतवर’ स्वामी विवेकानंद जी का यह कथन मानव की सोच को सर्वोपरि दर्शाता है कि हम जो सोचते हैं, वैसे बन जाते हैं। इसलिए सदैव अच्छा सोचो; स्वयं को ऊर्जस्वितत अनुभव करो, तुम सब समस्याओं से ऊपर उठ जाओगे और उनसे उबर जाओगे। सो! आपदाओं को अवसर बना लो और उससे मुक्ति पाने का हर संभव प्रयास करो। आलोचनाओं से भयभीत मत हो, क्योंकि आलोचना उनकी होती है, जो काम करते हैं। इसलिए निष्काम भाव से कर्म करो। सत्य शिव व सुंदर है, भले ही वह देर से उजागर होता है। इसलिए घबराओ मत। बच्चन जी की यह पंक्तियां ‘है अंधेरी रात/ पर दीपक जलाना कब मना है’ मानव में आशा का भाव संचरित करती हैं। रात्रि के पश्चात् सूर्योदय होना निश्चित है। इसलिए धैर्य बनाए रखो और सुबह की प्रतीक्षा करो। थक कर बीच राह मत बैठो और लौटो भी मत। निरंतर चलते रहो, क्योंकि चलना ही जीवन है, सार्थक है, मंज़िल पाने का मात्र विकल्प है। आलोचनाओं को सफलता प्राति का सोपान स्वीकार अपने पथ पर निरंतर अग्रसर हो।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

29.8.22

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #158 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से \प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 158 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

शुभ अवसर का लाभ तो, उठा रहे हो मीत।

तुम भी इसको जान लो, कर लो  मुझसे प्रीत।।

करना होगा अब प्रिये, अनुग्रह को स्वीकार।

चाहे कुछ भी सोच लो, तुम हो मेरा प्यार।।

हर पल आती आपदा, इसका यहीं निदान।

डटकर करो मुकाबला, जीवन हो आसान।।

मुझे प्रशंसा प्रशस्ति की, नहीं कभी भी चाह।

जीवन में मिलती रही, हमें सुहानी राह।।

उनकी अब तो बढ़ गई, प्रतिष्ठा है आज।

मिलजुल कर अब हो रहे, बनते बिगड़े काज।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #144 ☆ सन्तोष के नीति दोहे – 2 ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “सन्तोष के नीति दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 144 ☆

 ☆ सन्तोष के नीति दोहे – 2 ☆ श्री संतोष नेमा ☆

 असली धन वन-संपदा, इसे न जाना भूल

बचा रहे पर्यावरण, यह जीवन का मूल

 

महँगाई के नाम पर, रोता आज समाज

पर सबसे महँगा हुआ, भाई-चारा आज

 

सदा हमारे लिए ही, सैनिक हों कुर्बान

किंतु धर्म के नाम पर, लड़ते हम नादान

 

हृदय रखें गर शुद्ध हम, कर्म करें गर नेक

बाधाएँ भी हार कर, घुटने देतीं टेक

 

जिह्वा पर काबू रखें, यही बिगाड़े पेट

बढ़ते दौर विवाद के, देती है अलसेट

 

तन-मन करती खोखला, ताड़ी और शराब

बिखर रहे परिवार भी, होती साख खराब

 

धन-मन काला मत रखें, कभी न जिसका मोल

सच्चाई होती सदा, जीवन में अनमोल

 

मन वृंदावन-सा रखें, तन काशी का घाट

रखिये मंदिर सा हृदय, मन के खोल कपाट

 

बड़े बड़प्पन ना रखें, रखे न सागर नीर

उससे लघुता ही भली, रखे हृदय में पीर

 

करते रहिए कोशिशें, गर चाहें परिणाम

स्वप्न देखने से महज, कभी न बनते काम

 

जिस घर में होता नहीं, वृद्धों का सम्मान

उस घर में होता सदा, खुशियों का अवसान

 

कच्चा धागा प्रेम का, इस पर दें मत जोर

रिश्ते सभी संभालिये, रखें खींच कर डोर

 

आगे बढ़ता देख कर, होते दुखी अपार

होता कलियुग में यही, पर सुख में दुख यार

 

कामी, क्रोधी, लालची, देते हैं उपदेश

करें साधु बन कर ठगी, रोज बदलकर भेष

 

बँधी रहे मुट्ठी अगर, ताकत देती खूब

राख बने मुट्ठी खुली, साख जाय सब डूब

 

दया, क्षमा अरु शीलता, यही धर्म का सार

सर्वश्रेष्ठ “संतोष” धन, इस पर करें विचार

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य #150 ☆ संवाद… ! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 150 – विजय साहित्य ?

☆ संवाद… ! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

आज पाहिल

टेबलावरचा बहिणीचा फोटो

जरा जास्तच हसत होता.

तेरा वर्षापासून भाऊबीजेला

याच फोटोशी संवाद व्हायचा.

भावा बहिणीचं नातं

जणू दिवस रात्रीच चक्र

एकमेकांना भेटतात

उदयाला किंवा अस्ताला

एरवी प्रवास चालूच असतो.

भाऊ बहिणीची वाट पहात असतो

माहेरच्या मनमंदिरात

भावाचाच मान असतो.

आई नंतर ताई ,बाबांनतर दादा

नात्याच्या शब्दावलीत नाजुकसा धागा.

छायाचित्र बोलके पुन्हा पुन्हा सांगते.

सुखाच्या आठवात परलोकी नांदते.

कसा आहेस दादा..? फूल हळूच टपकते

नात्यातली ऊब तेव्हा नकळत दरवळते.

हीच खरी दिवाळी अंतरात पाझरते ..!

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ संस्कृत साहित्यातील स्त्रिया…2 ☆ डॉ मेधा फणसळकर ☆

डॉ मेधा फणसळकर

? विविधा ?

☆ संस्कृत साहित्यातील   स्त्रिया…2 ☆ डॉ मेधा फणसळकर ☆ 

सीता

रामायण हा आपल्या संस्कृतीतील एक आदर्श ग्रंथ मानला जातो. आदर्श माता- पती- पत्नी- पिता अशी अनेक नाती येथे आदर्श म्हणून बघितली जातात. आपल्यासमोर सीता म्हणजे केवळ एक आदर्श पत्नी, सून अशाच रुपात उभी केली गेली आहे. पण रामायण आणि संस्कृत साहित्याचा बारकाईने अभ्यास केला तर असे लक्षात येते की सीता तेवढीच कणखर आणि निश्चयी स्त्री होती.

रावणाचा पराभव करून जेव्हा राम सीतेला सोडवतो आणि तिच्यापुढे अग्निदिव्य करण्याचा प्रस्ताव मांडतो त्यावेळी सीता तो प्रस्ताव स्वीकारते पण रामाला सुनावते,“ प्रभू, माझ्यात जे स्त्रीत्व म्हणजे निर्बलत्व आहे त्यावर तुम्ही एखाद्या सामान्य माणसाप्रमाणे संशय घेत आहात. पण माझ्यातील सशक्त अशा पत्नीत्वावर तुमचा विश्वास नाही. माझा स्वभाव आणि हृदय नेहमीच  स्थिर आहे आणि तिथे फक्त तुम्हालाच स्थान आहे. भलेही रावणाने मला स्पर्श करण्याचा प्रयत्न जरी केला असता तरी माझी तुमच्यावरची भक्ती आणि प्रेम यत्किंचितही कमी झाले नसते. त्यामुळे मनाने मी नेहमीच पवित्र आहे.”

आज समाजामध्ये विनयभंगाची अनेक उदाहरणे दिसत असताना केवळ शारीरिक पवित्र्यावर स्त्रीचे चारित्र्य ठरवले जाते. अशावेळी हजारो वर्षांपूर्वी जन्माला आलेली ही स्त्री सहजपणे एक शाश्वत सत्य सांगून जाते.

अयोध्येत परत आल्यावर काही काळ सुखात घालवल्यावर केवळ एका सामान्य नागरिकाच्या बोलण्यामुळे राम सीतेचा त्याग करतो. आणि तेही अशावेळी जेव्हा तिच्या पोटात त्याचा अंश वाढत असतो. अरण्यात पोहोचेपर्यंत सीतेला याची कल्पनाही नसते. जेव्हा तिला ते समजते त्यावेळी अपमानाने क्रोधीत झालेली सीता तत्क्षणी लक्ष्मणाला विचारते,“ माझ्या अशा अवस्थेत माझा त्याग करणे योग्य आहे? हीच का तुमच्या इक्ष्वाकु वंशाची परंपरा?” त्यानंतर शांत झाल्यावर “हेच आपले प्राक्तन आहे. कदाचित गेल्या जन्मीचे पाप मी या जन्मी फेडत असेन ” असे स्वतःच्या मनाला समजावत ती आलेल्या परिस्थितीला खंबीर मनाने सामोरी जाते.

यातली अन्यायाला विरोध करणारी सीता पदोपदी प्रत्ययास येतेच. पण त्याचबरोबरच समोर आलेल्या संकटाला तितक्याच सक्षमतेने तोंड देणारी सीता तितकीच सामर्थ्यवान वाटते.

सर्वात शेवटी जेव्हा रामाची आणि लव-कुश- सीतेची गाठ पडते आणि राम तिला पुन्हा अयोध्येस नेण्यास उत्सुक असतो तेव्हा ती येण्यास नकार देते.  ज्या ठिकाणी ती राणी म्हणून मानाने वावरलेली असते. ज्या प्रजेवर तिने मनापासून प्रेम केलेले असते. तिच प्रजा तिच्यावर अन्याय होत असताना तिच्या बाजूने उभी रहात नाही. ज्या पतीसाठी, त्याच्यावरील प्रेमासाठी तिनेही चौदा वर्षे वनवासात घालवली त्यानेही तिची उपेक्षाच केली ही खंत कुठेतरी तिच्या मनात असतेच. जिथे  तिच्या आत्मसन्मानाला डावलले गेले तिथे ती पुन्हा पाऊल ठेवत नाही. त्यातून तिचा स्वाभिमान दिसून येतो.

अशाप्रकारे आदर्श सून, आदर्श पत्नी, आदर्श माता असणारी सीता तितकीच निग्रही, स्वाभिमानी आणि अन्यायाविरुद्ध लढणारी सशक्त स्त्री होती.

© डॉ. मेधा फणसळकर

सिंधुदुर्ग.

मो 9423019961

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ गीत ऋग्वेद– (ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त ५ (इंद्र सूक्त)) — मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ गीत ऋग्वेद– (ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त ५  (इंद्र सूक्त)) — मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

ऋषी – मधुछंदस् वैश्वामित्र : देवता – इंद्र : छंद – गायत्री

मराठी भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री

आ त्वेता॒ नि षी॑द॒तेन्द्र॑म॒भि प्र गा॑यत । सखा॑य॒ स्तोम॑वाहसः ॥ १ ॥

या मित्रांनो या सखयांनो यज्ञवेदीला या

सारे मिळूनी गायन करु या सुस्वर लावू या

गायन अपुले सुरेन्द्रास या प्रसन्न करण्याला  

कृपा तयाची व्हावी म्हणुनी आर्त व्हावयाला ||१||

पु॒रू॒तमं॑ पुरू॒णामीशा॑नं॒ वार्या॑णाम् । इन्द्रं॒ सोमे॒ सचा॑ सु॒ते ॥ २ ॥

सुरेंद्र शीरोमणी श्रेष्ठतम त्यासी वंदन करा

अलोट संपत्तीचा स्वामी त्याचे चरण धरा 

होत्साता तो सिद्ध सोमरस सुरेंद्रस्तोत्र करा

आवर्जुनिया आर्त स्वराने त्या पाचारण करा ||२||

स घा॑ नो॒ योग॒ आ भु॑व॒त्स रा॒ये स पुरं॑ध्याम् । गम॒द्वाजे॑भि॒रा स नः॑ ॥ ३ ॥

या देवेंद्रा सामर्थ्यासह आम्हास दर्शन द्याया

आम्हा देखील तुम्हासारिख्या वैभवास द्याया

लाभ आमुचे सद्भावनिही तुमचा वास असो 

तुमच्या चरणी चित्त आमुचे सदैव लीन असो ||३||

यस्य॑ सं॒स्थे न वृ॒ण्वते॒ हरी॑ स॒मत्सु॒ शत्र॑वः । तस्मा॒ इन्द्रा॑य गायत ॥ ४ ॥

चंडप्रतापी देवेन्द्राशी रणी कोण भिडतो

सज्ज तयाच्या अश्वा पाहुन रिपुही भेदरतो

प्रसन्न करण्या सुरेन्द्रास या आर्त होऊनीया

सारे मिळूनी स्तवन करूया महिमा गाऊया ||४|| 

सु॒त॒पान्वे॑ सु॒ता इ॒मे शुच॑यो यन्ति वी॒तये॑ । सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः ॥ ५ ॥

ताज्या सोमरसात मधुर दह्यास मिसळूनी

पवित्र पावन सोमरसाचा हविर्भाग आणुनी

रुची द्यावया  देवेंद्राला त्यास सवे घेउनी

प्रसन्न करूया या इंद्राला सोमरसा अर्पुनी ||५||

त्वं सु॒तस्य॑ पी॒तये॑ स॒द्यो वृ॒द्धो अ॑जायथाः । इन्द्र॒ ज्यैष्ठ्या॑य सुक्रतो ॥ ६ ॥

राज्य कराया जगतावरती  चंडप्रतापी इंद्रा

सोमाच्या पानास्तव होशी प्रकट सिद्ध देवेंद्रा 

करून सोमाचा स्वीकार आम्हा उपकृत करी

सामर्थ्याने तुझिया देवा वसुंधरे सावरी ||६||

आ त्वा॑ विशन्त्वा॒शवः॒ सोमा॑स इन्द्र गिर्वणः । शं ते॑ सन्तु॒ प्रचे॑तसे ॥ ७ ॥

ज्ञानमंडिता हे शचिनाथा सोमरसा स्वीकारी

पान करुनिया या सोमाचे गात्रा मोद करी

वर्धन करिण्या उत्साहाचे तुझे स्तवन देवेंद्रा 

तव चित्ताला तव देहाला नंद देत हे इंद्रा ||७||

त्वां स्तोमा॑ अवीवृध॒न्त्वामु॒क्था श॑तक्रतो । त्वां व॑र्धन्तु नो॒ गिरः॑ ॥ ८ ॥

स्तवनांनी या तुझीच महती दाहिदिशा पसरली

तुझ्या स्तुतीने तुझीच कीर्ति वृद्धिंगत ती झाली

या स्तोत्रांनी तव महिमा बहु दिगंत तो व्हावा

प्रज्ञाशाली रे देवेन्द्रा सकला प्रसन्न व्हावा ||८||

अक्षि॑तोतिः सनेदि॒मं वाज॒मिन्द्रः॑ सह॒स्रिण॑म् । यस्मि॒न्विश्वा॑नि॒ पौंस्या॑ ॥ ९ ॥

अमोघ वज्रा हाती घेउन इंद्र ज्यास तारी

कोण असे या जगी पूत जो तयासिया मारी

सहस्र ऐरावताच्या बला आम्हासिया देई

सामर्थ्ये ज्या पराक्रमांचे कृत्य हातूनी होई ||९||

मा नो॒ मर्ता॑ अ॒भि द्रु॑हन्त॒नूना॑मिन्द्र गिर्वणः । ईशा॑नो यवया व॒धम् ॥ १० ॥

रक्ष रक्ष इंद्रा स्तवितो तुज तुझ्या चरणी येउनी

देहाला या अमुच्या पीडा देऊ शके ना कोणी

तव सामर्थ्ये राज्य पसरले तुझे त्रिभूवनी

वधू शके ना आम्हा कोणी ठेव अम्हा राखुनी ||१०||

YouTube Link:  https://youtu.be/aeFjHiFyKis

Attachments एरिया 

Preview YouTube video Rugved Mandal 1 Sukta 5 Marathi

Rugved Mandal 1 Sukta 5 Marathi

भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री 

९८९०११७७५४

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

 

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