हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 41 ☆ मुक्तक ।। हम मशीन बन कर नहीं, इंसान बन कर रहें ।।☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।हम मशीन बन कर नहीं, इंसान बन कर रहें।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 41 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।हम मशीन बन कर नहीं, इंसान  बन कर रहें।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

नए दौर में भी तुम,  दया साथ  रखो।

जमाना नया है पर,  हया साथ  रखो।।

हमें चमक ही  नहीं,  रोशनी  चाहिए।

बिना खोए पुराना तुम,नया साथ रखो।।

 [2]

पुरातन संस्कृति का, कभी हरण ना हो।

गलत प्रथा आदर्शों ,  का चलन ना हो।।

बहुमूल्य हैं पुरातन , संस्कार आज भी।

कदापि नारी सम्मान,  का क्षरण ना हो।।

[3]

संवेदना अवमूल्यन, पशुता की निशानी है।

हमें भावनाओं की पूंजी, नहीं मिटानी है।।

विश्वगुरु भारत महान, का अतीत रखें हम।

आधुनिकता दौड़ में, दौलत नहीं लुटानी है।।

[4]

हमाराआदरआशीर्वाद ही, हमाराअर्थ तंत्र है।

हमारा स्नेह प्रेम सरोकार, ही हमारा यंत्र है।।

हम मशीन नहीं बस ,  मानव बन कर रहें।

वसुधैव कुटुंबकम् भाव, ही हमारा गुरुमंत्र है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 107 ☆ गीत – “गुजरा जमाना…”☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक गीत – “गुजरा जमाना…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #107 ☆  गीत – “गुजरा जमाना…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

अचानक जब कभी गुजरा जमाना याद आता है

तो नजरों में कई बरसों का नक्शा घूम जाता है।

 

वे बचपन की शरारत से भरी ना समझी की बातें

नदी के तीर पै जा-गा बिताई चादनी राते

सड़क, स्कूल, साथी, बाग औ’ मैदान खेलों के

वतन के वास्ते मर-मिटने का मंजर दिखाता है।।1।।

 

हरेक को अपनी पिछली जिंदगी से प्यार होता है

बदल जाता है सब लेकिन वही संसार होता है

दबी रह जाती है यादें झमेलों और मेलो की

नया सूरज निकल नई रोशनी नित बाँट जाता है।।2।।

 

बदलता रहता है जीवन नही कोई एक सा रहता

नदी का पानी भी हर दिन नया होकर के ही बहता

मगर बदलाव जो भी होते हैं अच्छे नही लगते

बनावट का नये युग से वै बढ़ता जाता नाता है।।3।।

 

भले भी हो मगर बदलाव लोगों को नहीं भाते

पुराने दिनों के सपने भला किसको नहीं आते

नये युग से कोई भी जल्दी समरस हो नहीं पाता

पुरानी यादों में मन ये हमेशा डूब जाता है।।4।।         

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (7 नवंबर से 13 नवंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (7 नवंबर से 13 नवंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

कहते हैं कि हर स्थान पर ईश्वर का वास है ।  यह सत्य भी है। कहा गया है –

हम में तुम में खड़ग खंड में, घट घट  व्यापे राम ।

परंतु मेरे विचार से स्थान का भी महत्व है । विज्ञान कहता है कि पृथ्वी के कुछ स्थानों पर मैग्नेटिक फील्ड ज्यादा होती है और कुछ स्थानों पर कम । ऐसे ही दैवीय ऊर्जा से भरपूर  मां शारदा शक्तिपीठ मैहर को ध्यान कर मैं  पंडित अनिल पाण्डेय आपको 7 नवंबर से 13 नवंबर 2022 अर्थात विक्रम संवत 2079, शक संवत 1944 के कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से अगहन मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तक के सप्ताह का साप्ताहिक राशिफल बताने जा रहा हूं।

इस सप्ताह चंद्रमा प्रारंभ में मेष राशि में रहेगा । फिर  वृष और मिथुन से होता हुआ 13 तारीख को 4:50 रात अंत से कर्क राशि में प्रवेश करेगा । इस पूरे सप्ताह सूर्य तुला राशि में , मंगल मिथुन राशि में वक्री , गुरु मीन राशि में वक्री , शनि मकर राशि में और राहु मेष राशि में रहेंगे । बुध प्रारंभ में तुला राशि में रहेंगे तथा 13 नवंबर को 8:58 रात से वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे । शुक्र प्रारंभ में तुला राशि में रहकर 11 नवंबर को 7:25 रात से वृश्चिक राशि में गोचर करेंगे ।

आइए अब हम राशि वार राशिफल की चर्चा करते हैं

मेष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य पिछले सप्ताह से अच्छा रहेगा । आपके जीवन साथी का भी स्वास्थ्य अच्छा रहेगा । अगर आप अविवाहित हैं तो आपके विवाह के अच्छे संबंध आएंगे । प्रेम संबंधों में आपको सफलता मिलेगी । भाग्य से कोई फल प्राप्त करने के स्थान पर अपने परिश्रम पर विश्वास करें ।  शत्रु पराजित होंगे । इस सप्ताह आपके लिए 7 और 8 नवंबर उत्तम फलदाई हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह मंगलवार का व्रत रखें और मंगलवार को ही हनुमान जी के मंदिर में जा कर पूजा अर्चना करें । सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके शत्रु पराजित होंगे । कचहरी के कार्य में सफलता मिल सकती है । भाग्य सामान्य है । संतान का सहयोग कम प्राप्त होगा । छात्रों को परीक्षा में सफलता का योग उनके मेहनत पर निर्भर करेगा अर्थात भाग्य का इसमें कोई योगदान नहीं होगा । आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा परंतु जीवन साथी का स्वास्थ्य खराब हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 9, 10 और 11 नवंबर उत्तम और कार्य योग्य है ।  7 और 8 नवंबर को आप द्वारा किए गए कई कार्य असफल हो सकते हैं । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह आदित्य हृदय स्त्रोत का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर में धन आने का उत्तम योग है। आपकी संतान इस सप्ताह आपके साथ सहयोग करेगी  । छात्रों को परीक्षा में सफलता मिलेगी । उनकी पढ़ाई उत्तम चलेगी ।  आपके और आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में दिक्कत आ सकती है ।  छोटी मोटी दुर्घटना भी हो सकती है ।  इस सप्ताह आपके लिए 12 और 13 नवंबर हितवर्धक हैं । 9 ,10 और 11 नवंबर को आपको कोई भी कार्य बहुत सचेत होकर करना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि  अपने और अपने जीवन साथी के स्वास्थ्य के लिए मंगल के शांति हेतु किसी योग्य ब्राह्मण से पाठ करवाएं  । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आप सुख संबंधी कोई सामग्री खरीद सकते हैं । आपको सुख मिलने का अद्भुत योग है।  कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी । आपके बॉस से आप का टकराव हो सकता है । 9 ,10 और 11 नवंबर को आपको धन की प्राप्ति हो सकती है । भाग्य  आपका थोड़ा कमजोर है।  आपके स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी हो सकती है । 7 और 8 नवंबर को आपके द्वारा  किए गए सभी कार्य सफल होंगे । 12 और 13 नवंबर को आप कुछ कई कार्यों में असफल हो सकते हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं । सप्ताह  का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य पिछले सप्ताह से उत्तम रह सकता है । धन आने में कमी आएगी । भाई बहनों से संबंध उत्तम रहेंगे । संतान के साथ संबंध में कमी आ सकती है । भाग्य कम साथ देगा । इस सप्ताह आपके लिए 9 , 10 और 11  नवंबर उत्तम हैं । इन तारीखों में आप जो भी कार्य करेंगे उनमें  पूर्णतया सफल होंगे । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का अभिषेक करें । पूरे सप्ताह आपको रुद्राष्टक का पाठ भी करना चाहिए । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है ।

कन्या राशि

आपका स्वास्थ्य इस सप्ताह उत्तम रहेगा । धन आने का अच्छा योग है । 9 ,10 और 11 तारीख को आप  शेयर में पैसे लगाने जैसे कार्य कर सकते हैं । दुर्घटनाओं से सतर्क रहें । आपके जीवन साथी को शारीरिक कष्ट हो सकता है । आपको अपने पुत्री से सुख मिलेगा । इस सप्ताह आपके सुख में कमी आएगी । 12 और 13 नवंबर को आप अधिकांश कार्यों में सफल रहेंगे । 7 और 8 नवंबर को आपको सतर्क रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गुरुवार का व्रत करें और गुरुवार को ही रामचंद्र जी या कृष्ण भगवान के मंदिर में जाकर उनकी पूजा अर्चना करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपको कई क्षेत्रों में सफलता मिलेगी ।  इस सप्ताह भाग्य आपका कम साथ देगा। । पेट में पीड़ा हो सकती है ।  लोगों के बीच में आप की छवि उत्तम होगी ।  भाइयों से तकरार हो सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 7 और 8 नवंबर उत्तम फलदायक है । 9 ,10 और 11 नवंबर को आपको सचेत रहना चाहिए । 12 और 13 नवंबर को भाग्य आपका थोड़ा साथ देगा । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का अभिषेक करें और नित्य प्रतिदिन उनका पूजन करें । सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह मुकदमों में सफलता का बहुत अच्छा योग है । आपको अपनी बहन का बहुत अच्छा सपोर्ट मिलेगा। । दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें। । व्यय में कमी करें ।  शत्रु पराजित होंगे । छात्रों को पढ़ाई में परेशानी आएगी । भाग्य आपका साथ नहीं देगा। 9, 10 और 11 नवंबर को आप अधिकांश कार्यों में सफल होंगें । सप्ताह के बाकी दिन आपको सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ किसी विद्वान ब्राह्मण से करवाएं ।  सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर में धन आने का बहुत अच्छा योग है । अगर आप थोड़ा भी प्रयास करेंगे तो उत्तम धन की प्राप्ति होगी । आपका व्यापार बहुत अच्छा हो सकता है । शनि से संबंधित पदार्थों के व्यापार में आपको सफलता मिल सकती है । आपका और आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी तकलीफ आएगी । संतान से आपको बहुत कम सहयोग प्राप्त होगा । इस सप्ताह आपके लिए 12 और 13 नवंबर उत्तम फलदायक है।  9, 10 और 11 नवंबर को आपके कार्यों में सफलता की मात्रा कम हो जाएगी । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

शासकीय कार्यों में सफलता का योग है । अधिकारियों का बहुत अच्छा सहयोग आपको प्राप्त होगा । व्यापार भी ठीक ठाक  चलेगा । जनता में आपकी प्रतिष्ठा में थोड़ी गिरावट आएगी । संतान से सहयोग प्राप्त होगा । इस सप्ताह आपके लिए 7 और 8 नवंबर  उत्तम एवं लाभकारी है । 12 और 13 नवंबर को आपको कुछ कार्यों में असफलता मिल सकती है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गाय को हरा चारा खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है ।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका भाग्य आपका बहुत अच्छा साथ देगा ।  आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा ।  जीवन साथी के स्वास्थ्य में थोड़ी गिरावट आ सकती है  ।   मुकदमे बाजी में सफलता का योग है ।  भाई बहनों से तकरार हो सकती है। । संतान का सहयोग इस सप्ताह आपको प्राप्त नहीं हो पाएगा ।  कम मात्रा में धन आने का योग है ।  इस सप्ताह आपके लिए 9 , 10 और 11 नवंबर सफलता दायक है । 9 , 10 और 11 नवंबर को आप सभी कार्यों में सफल होंगे ।  आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह चिड़ियों को दाना दें ।  सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर में धन आने का उत्तम योग बन रहा है । परंतु यह धन संभवत गलत रास्तों से ज्यादा आएगा । आपको इस सप्ताह दुर्घटना से बचना चाहिए । भाग्य का सामान्य साथ आपको मिलेगा । आपको अपने परिश्रम से ही सब कुछ बनाना पड़ेगा । आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य थोड़ा नरम गरम रहेगा । इस सप्ताह आपके लिए 12 और 13 नवंबर उत्तम और लाभप्रद हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इसके प्रभाव के बारे में बताएं । शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें।

जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 127 – आधार ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 127 – आधार ☆

जरी ईश्वरा तू निराकार आहे

मनाला तुझा एक आधार आहे

 

नको वासना ती वृथा लोभ सारे

मनी मानसी एक ओंकार आहे

 

घडावा सदा संग तो सज्जनांचा

वृथा वागणे हा अहंकार आहे

 

स्मरावे तुझे रूप चित्ती असे तू

अनादी आनंता निराकार आहे

 

उणे वैगुणाला नसे येथ कांही

क्षमा याचनेला पुढाकार आहे

 

असावी कृपाही मला बालकाला

सदा ह्या पदांना नमस्कार आहे

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #157 ☆परिस्थितियाँ व पुरुषार्थ ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  वैश्विक महामारी और मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख परिस्थितियाँ व पुरुषार्थ । यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 157 ☆

परिस्थितियाँ व पुरुषार्थ ☆

‘पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है; जप से पाप दूर होता है; मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता’ चाणक्य की इस उक्ति में जीवन-दर्शन निहित है। मौन व सजगता जीवन की अनमोल निधियां हैं। मौन से कलह का दूर का भी नाता नहीं है, क्योंकि मौन को नवनिधि की संज्ञा से अभीहित किया जाता है। मौन रहना सर्वोत्तम व सर्वश्रेष्ठ है, जिससे बड़ी से बड़ी समस्या का स्वत: समाधान हो जाता है,  क्योंकि जब एक व्यक्ति क्रोधवश अपना आपा खो बैठता है और दूसरा उसका उत्तर अर्थात् प्रतिक्रिया नहीं देता, तो वह भी शांत हो जाता है और कुछ समय पश्चात् उसका कारग़र उपाय अवश्य प्राप्त हो जाता है।

सजगता से भय नहीं होता से तात्पर्य है कि जो व्यक्ति सजग व सचेत होता है, उसे आगामी आपदा व बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ता। दूसरे शब्दों में वह हर कदम फूंक-फूंक कर रखता है, क्योंकि वह व्यर्थ में कोई भी खतरा मोल लेना नहीं चाहता। वह भविष्य के प्रति सजग रहते हुए वर्तमान के सभी कार्य व योजनाओं को अंजाम देता है। सो! मानव को भावावेश में कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए, बल्कि हर स्थिति में विवेक से निर्णय लेना चाहिए अर्थात् किसी कार्य को प्रारंभ करने से पहले मानव को उसके सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श व चिंतन-मनन करने के पश्चात् ही उसे करने का मन बनाना चाहिए। उस स्थिति में उसे भय व शंकाओं का सामना नहीं करना पड़ता। वह निर्भय व नि:शंक होता है तथा उसका तनाव व अवसाद से कोसों दूर का भी नाता नहीं रहता। उसका हृदय सदैव आत्मविश्वास से आप्लावित रहता है तथा वह साहसपूर्वक विषम परिस्थितियों का सामना करने में समर्थ होता है। सो! पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, क्योंकि जो व्यक्ति साहसी व निर्भीक होता है, उसे अपने परिश्रम पर भरोसा होता है और वह सदैव आत्मविश्वास से लबरेज़ रहता है।

सुखी जीवन जीने के लिए मानव को यह सीख दी गयी है कि ‘अतीत की चिंता मत करो; भविष्य पर विश्वास न करो और वर्तमान के महत्व को स्वीकारते हुए उसे व्यर्थ मत जाने दो।’ दूसरे शब्दों में अतीत अर्थात् जो गुज़र गया, लौटकर नहीं आता। इसलिए उसकी चिंता करना व्यर्थ है। भविष्य अनिश्चित है, जिससे सब अनजान हैं। यह शाश्वत् सत्य है कि संसार में कोई भी प्राणी इस तथ्य से अवगत नहीं होता कि कल क्या होने वाला है? इसलिए सपनों के महल सजाते रहना मात्र आत्म-प्रवंचना है। परंतु मूर्ख मानव सदैव इस ऊहापोह में उलझा रहता है। सो! संशय अथवा उधेड़बुन में उलझे रहना उसके जीवन का दुर्भाग्य है। ऐसा व्यक्ति अतीत या भविष्य के ताने-बाने में उलझा रहता है और अपने वर्तमान पर प्रश्नचिह्न लगा देता है। सो! वह संशय अनिश्चय अथवा किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति से मुक्ति नहीं प्राप्त सकता। वह सदैव अधर में लटका रहता है और उसका कोई कार्य समय पर संपन्न नहीं होता। वह भाग्यवादी होने के कारण दरिद्रता के चंगुल में फंसा रहता है और सफलता से उसका दूर का संबंध भी नहीं रहता।

कबीरदास जी का यह दोहा ‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब/ पल में प्रलय होएगी, मूर्ख करेगा कब’  वर्तमान की महत्ता को दर्शाता है और वे मानव को सचेत करते हुए कहते हैं कि कल कभी आता नहीं। इसलिए मानव को वर्तमान में सब कार्यों को संपन्न कर लेना चाहिए और आगामी कल के भरोसे पर कोई भी काम नहीं छोड़ना चाहिए। यह सफलता प्राप्ति के मार्ग में प्रमुख अवरोध है। दूसरी ओर समय से पहले व भाग्य से अधिक मानव को कभी कुछ भी प्राप्त नहीं होता। ‘माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय’ द्वारा भी यह संदेश प्रेषित है कि समय आने पर ही सब कार्य संपन्न होते हैं।

‘सुमिरन कर ले बंदे! यही तेरे साथ जाएगा’ स्वरचित गीत की ये पंक्तियाँ मानव को प्रभु का नाम स्मरण करने को प्रेरित करती हैं, क्योंकि यह मुक्ति पाने का सर्वश्रेष्ठ साधन है। इंसान संसार में खाली हाथ आता है और उसे खाली हाथ ही जाना है। परंतु जप व नाम-स्मरण से पापों का नाश होता है। वह मृत्यु के उपरांत भी मानव के साथ जाता है और जन्म-जन्मांतर तक उसका साथ निभाता है। ‘यह दुनिया है दो दिन का मेला/ हर शख्स यहां है अकेला/ तन्हाई संग जीना सीख ले/ तू दिव्य खुशी पा जाएगा’ स्वरचित गीत की पंक्तियों से तात्पर्य है कि जो व्यक्ति स्व में केंद्रित व आत्म-मुग्धावस्था में जीना सीख जाता है; उसे ज़माने भर की अलौकिक खुशियाँ प्राप्त हो जाती हैं।

मानव जीवन क्षणभंगुर है और संसार मिथ्या है। परंतु वह माया के कारण सत्य भासता है। सब रिश्ते-नाते झूठे हैं और एक प्रभु का नाम ही सच्चा है, जिसे पाने के लिए मानव को पंच विकारों काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार से मुक्ति पाना आवश्यक है, क्योंकि वही मानव को लख चौरासी से मुक्त कराता है। परंतु यह मानव की नियति है कि वह दु:ख में तो प्रभु का नाम स्मरण करता है, परंतु सुख में उसे भुला देता है। इसीलिए कबीरदास जी सुख में उस अलौकिक सत्ता को स्मरण करने का संदेश देते हैं, ताकि दु:ख उसके जीवन में पदार्पण करने का साहस ही न जुटा सके।

सुख, स्नेह, प्रेम, सौहार्द त्याग में निहित है अर्थात् जिन लोगों में उपरोक्त दैवीय गुण संचित होते हैं, उन्हें सुखों की प्राप्ति होती है और शेष उनसे वंचित रह जाते हैं। रहीम जी प्रेम की महत्ता बखान करते हुए कहते हैं ‘रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय/ टूटे से फिर ना जुरै, जुरै ते गांठ परि जाए।’ मानव को प्रत्येक कार्य नि:स्वार्थ भाव से करना चाहिए और गीता में भी निष्काम कर्म का संदेश प्रषित है, क्योंकि मानव को कर्म करने का अधिकार है; फल की इच्छा करने का नहीं है। जो संसार में जन्मा है, उसकी मृत्यु निश्चित है। इसलिए मानव को सत्कर्म व सत्संग करना चाहिए, क्योंकि यही मानव की कुंजी है। इंसान इस संसार में खाली हाथ आया है और उसे खाली हाथ लौट जाना है। इसलिए मानव को माया-मोह व राग-द्वेष के बंधनों का त्याग कर प्रभु से लौ लगानी चाहिए।

जीवन संघर्ष का पर्याय है। जो व्यक्ति पुरुषार्थी व परिश्रमी है; जीवन में सदैव सफलता प्राप्त करता है और वह कभी भी दरिद्र नहीं हो सकता। जो मौन साधना करता है; विवादों से दूर रहता है, क्योंकि संवाद संबंधों में स्थायित्व प्रदान करते हैं। संवाद संवेदनशीलता का प्रतीक हैं, परंतु उनमें सजगता की अहम् भूमिका है। रिश्तों में माधुर्य व विश्वास होना आवश्यक है। सो! हमें रिश्तों की अहमियत को स्वीकारना चाहिए। परंतु जब रिश्तों में कटुता आ जाती है, तो वे नासूर बन सालने लगते हैं। इससे हमारा सुक़ून सदा के लिए नष्ट हो जाता है। इसलिए हमें दूरदर्शी होना चाहिए और हर कार्य को सोच-समझकर अंजाम देना चाहिए। लीक पर चलने का कोई औचित्य नहीं है और अपनी राह का निर्माण स्वयं करना श्रेयस्कर है। इतना ही नहीं, हमें तीसरे विकल्प की ओर भी ध्यान देना चाहिए और निराशा का दामन नहीं थामना चाहिए। स्वामी रामतीर्थ के अनुसार प्रत्येक कार्य को हिम्मत व शांति से करो, यही सफलता का साधन है अर्थात् मानव को शांत मन से निर्णय लेना चाहिए तथा साहस व धैर्यपूर्वक प्रत्येक कार्य को संपन्न करना चाहिए। जो व्यक्ति सजगता व तल्लीनता से कार्य करता है और प्रभु नाम का स्मरण करता है– उसके सभी कार्य संपन्न होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #157 ☆ भावना के दोहे … ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से \प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 157 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

कलकल बहती जा रही, पीर सहे चुपचाप।

नदी सुनाती है हमें, गाथा अपनी आप।।

 

पथरीले राह चलती, है हमको अहसास।

सभ्यता की हूं जननी, पढ़ लो तुम इतिहास।।

 

पर्वतों से निकल रही, गंग जमुन की धार।

निर्मल नदिया बह रही, मिलती सागर पार।।

 

घाट -घाट ढूंढ रही, कहां छुपे घन श्याम।

यमुना मिलने जा रही, वो मोहन के धाम।।

 

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य #149 ☆ देव देव्हार्‍यात नाही …! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 149 – विजय साहित्य ?

☆ देव देव्हार्‍यात नाही …! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

पैशामधे मोजमाप

देव देव्हार्‍यात नाही

शोधूनीया पाही

जगतात . . . !

 

सेवाभाव जाणायला

हवे नात्यांचे गोकुळ

विसंवादी मूळ

देखाव्यात. . . !

 

देवरुप जाणायला

नररूप आधी जाण

देव्हार्‍याची खाण

सापडेल. . . !

 

अशा देव्हार्‍यात

देव राही जागा

ह्रदयाचा धागा

विचारात.

 

देवरूप शोधायला

मायबाप आधी जाणा

कैवल्याचा राणा

अंतरात. . . . !

 

गरजेस बघा

येतो धावून माणूस

नसे मागमूस

उपकारी.. . . !

 

अशा देवासाठी

मनी हवी भूक

देव्हार्‍याचे सुख

कश्यासाठी. . . . !

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ गीत ऋग्वेद– (ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त ४ (इंद्र सूक्त)) — मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ गीत ऋग्वेद– (ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त ४ (इंद्र सूक्त)) — मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

 

ऋषी – मधुछंदस् वैश्वामित्र : देवता – इंद्र : छंद – गायत्री

मराठी भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री

सु॒रू॒प॒कृ॒त्‍नुमू॒तये॑ सु॒दुघा॑मिव गो॒दुहे॑ । जु॒हू॒मसि॒ द्यवि॑द्यवि ॥ १ ॥

उत्तमश्या अन्नासी भक्षुन धेनु मुदित होते

सकस देऊनी पान्हा अपुल्या पाडसासि पाजिते

विश्वनिर्मित्या  हे शचीनाथा हवी तुला अर्पण

स्वीकारुनिया देवा होई तू आम्हासि प्रसन्न ||१||

उप॑ नः॒ सव॒ना ग॑हि॒ सोम॑स्य सोमपाः पिब । गो॒दा इद्रे॒वतो॒ मदः॑ ॥ २ ॥

तुझियासाठी सोमरसाचा सिद्ध घेउनी हवि

प्रतीक्षा तुझी आतुरतेने प्राशण्यास तू येई

अपार ऐश्वर्य तुझे आमुचे डोळे दिपविते

तुझ्या कृपेने गोधन देवा सहज प्राप्त होते ||२||

अथा॑ ते॒ अन्त॑मानां वि॒द्याम॑ सुमती॒नाम् । मा नो॒ अति॑ ख्य॒ आ ग॑हि ॥ ३ ॥

दयावान तू अंतर्यामी सर्वश्रुत असशी

आम्हा जवळी घे माया वर्षुन अपुल्या पोटाशी

देई आम्हालाही कटाक्ष एक करुणेचा

येई सत्वर नकोस पाहू अंत प्रतीक्षेचा ||३|| 

परे॑हि॒ विग्र॒मस्तृ॑त॒मिन्द्रं॑ पृच्छा विप॒श्चित॑म् । यस्ते॒ सखि॑भ्य॒ आ वर॑म् ॥ ४ ॥

बुद्धी होते समर्थ प्रज्ञेने विश्वामाजी

प्रियसख्याहुनी तोची श्रेष्ठ त्रैलोक्यामाजी 

सत्वर जावे त्याच्या जवळी कृपा मागण्यासाठी

इंद्र करिल तव तृप्त कामना तुझिया भक्तीसाठी ||४||

उ॒त ब्रु॑वन्तु नो॒ निदो॒ निर॒न्यत॑श्चिदारत । दधा॑ना॒ इन्द्र॒ इद्दुवः॑ ॥ ५ ॥

उपासना इंद्राची फोल कुटिल किती वदती

कल्याण न होई सांगूनी मार्गभ्रष्ट करती

त्यांची धारणा त्यांना लाभो अम्हा काय त्याचे

देवेन्द्राची भक्ती करण्या आम्ही सिद्ध व्हायचे ||५||

उ॒त नः॑ सु॒भगाँ॑ अ॒रिर्वो॒चेयु॑र्दस्म कृ॒ष्टयः॑ । स्यामेदिन्द्र॑स्य॒ शर्म॑णि ॥ ६ ॥

भाग्य आमुचे थोर ऐसे इंद्रभक्त म्हणती

मस्तक अमुचे सदैव आहे तुमच्या पायावरती

पराक्रमी अति हे  शचीपतये अमुचे न दुजे कोणी

तुझ्या आश्रयाचीच कामना वसते अमुच्या मनी ||६|| 

एमा॒शुमा॒शवे॑ भर यज्ञ॒श्रियं॑ नृ॒माद॑नम् । प॒त॒यन्म॑न्द॒यत्स॑खम् ॥ ७ ॥

यज्ञाला मांगल्य देतसे पवित्र  सोमरस

सर्वव्यापि देवेंद्राला करुmm अर्पण सोमरस

चैतन्यासी जागृत करतो पावन सोमरस

संतोष स्फुरण इंद्रासी देई सोमरस ||७||

अ॒स्य पी॒त्वा श॑तक्रतो घ॒नो वृ॒त्राणा॑मभवः । प्रावो॒ वाजे॑षु वा॒जिन॑म् ॥ ८ ॥

पान करुनिया सोमरसाचे वृत्रा निर्दाळिले

चंडप्रतापि हे सूरेंद्रा असुरा उच्छादिले

शौर्य दावुनी शूर सैनिका रणात राखीयले

तव चरणांवर अर्पण करण्या सोमरसा आणिले ||८||

तं त्वा॒ वाजे॑षु वा॒जिनं॑ वा॒जया॑मः शतक्रतो । धना॑नामिन्द्रसा॒तये॑ ॥ ९ ॥

पराक्रमी तू शौर्य दाविशी अचंबीत आम्ही

वैभवप्राप्तीच्या वरदाना आसुसलो आम्ही 

तुझ्या प्रतापाने दिपूनीया भाट तुझे आम्ही

यशाचे तुझ्या  गायन करितो धन्य मनी आम्ही ||९||

यो रा॒योऽ॒वनि॑र्म॒हान्सु॑पा॒रः सु॑न्व॒तः सखा॑ । तस्मा॒ इन्द्रा॑य गायत ॥ १० ॥

संपत्तीचा स्वामि समस्त संकटविमोचक

थोर अति जो सदैव सिद्ध भक्तांचा तारक

याजक करितो सोमरसार्पण सखा तया हृदयीचा 

बलाढ्य देवेंद्राला  स्तविता प्रसन्न तो व्हायचा ||१०||

 

YouTube Link:  https://youtu.be/mS8oUKS-61o

Attachments area:  Preview YouTube video Rugved Mandal 1 Sukta 4

भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री 

९८९०११७७५४

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 124 ☆ पढ़े चलो बढ़े चलो ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “पढ़े चलो बढ़े चलो। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 124  ☆

☆ पढ़े चलो बढ़े चलो ☆ 

त्याग,तपस्या, उपवास से दृढ़ निश्चय की भावना बलवती होती है। इसे कार्यसिद्धि का पहला कदम माना जा सकता है। लगातार एक दिशा में कार्य करने वाला कमजोर बुद्धि का होने पर भी सफलता हासिल कर लेता है। अक्सर देखने में आता है कि लोग अपनी विरासत को सम्हालने के लिए कुछ न कुछ करते रहते हैं और जैसे परिस्थितियाँ बदलीं बस झट से खुद को मुखिया साबित कर पूरी बागडोर अपने हाथ में ले लेते हैं। राजनीतिक क्षेत्रों में ऐसा प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है। कोई इसे परिवार वाद का नाम देता है तो कोई इसे अपना अधिकार मानकर खुद झपट लेता है। सियासी दाँव- पेंच के बीच छुट भैया नेताओं को भी गाहे- बगाहे मौका मिल जाता है। पिता की चुनावी सीट को अपनी बपौती मानकर टिकट लेना और न मिलने पर अलग से पार्टी बना लेने का चलन खूब तेजी से बढ़ रहा है।

जैसे-जैसे लोग शिक्षित हो रहे हैं वैसे- वैसे उनके चयन का आधार भी बदल रहा है। वे भावनाओं के वशीभूत होकर उम्मीदवार का चयन नहीं करते हैं। चुनावी घोषणा पत्र से प्रभावित होकर पाँच वर्षों के लिए नए प्रत्याशी को मौका देने लगें हैं।

कथनी और करनी में भेद सदैव से जनतंत्र का अघोषित मंत्र रहा है। कोई इसी चुनावी जुमला कह के पल्ला झाड़ लेता है तो कोई केंद्र सरकार पर दोषारोपण करते हुए सहायता न मिलने की बात कह देता है। कुल मिलाकर लोग जहाँ के तहाँ रह जाते हैं। अब तो लोगों को भी मालूम है कि ये सब प्रलोभन बस कुछ दिनों के हैं किंतु चयन तो करना है सो मतदान को अपना अधिकार मानते हुए मत दे देते हैं।

इन सबके बीच एक बात अच्छी है कि सभी दल सारे मतभेदों से ऊपर अपने राष्ट्र को रखते हुए तिरंगे का सम्मान करते हैं और आपदा पड़ने पर एकजुटता का परिचय देते हैं। शिक्षा के महत्व को जीवन के हर क्षेत्रों में देखा जा सकता है। आइए मिलकर एक दूसरे का सहयोग करते हुए शत प्रतिशत साक्षरता की ओर अग्रसर हों।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #125 – “संस्कार” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख  लघुकथा – “संस्कार”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 125 ☆

☆ लघुकथा – संस्कार ☆ 

जैसे ही अनाथ आश्रम से वृद्ध को लाकर पति ने बैठक में बिठाया वैसे ही किचन में काम कर रही पत्नी ने चिल्लाकर कहा, “आखिर आप अपनी मनमानी से बाज नहीं आए,” वह ज़ोर से बोली तो पति ने कहा, “अरे भाग्यवान! धीरे बोलो। वह सुन लेंगे।”

“सुन ले तुम मेरी बला से। वे कौन से हमारे रिश्तेदार हैं?” पत्नी ने तुनक कर कहा, “मैंने पहले भी कहा था हम दोनों नौकर पेशा हैं। बेटे को उसके मामा के यहां रहने दो। वहां पढ़ लिखकर होशियार और गुणवान हो जाएगा। पर आप माने नहीं। उसे यहां ले आए।”

“हां तो सही है ना,” पति ने कहा, “बुजुर्गवार के साथ रहेगा तो अच्छी-अच्छी बातें सीखेगा। हमें घर की भी चिंता नहीं रहेगी।”

“अच्छी-अच्छी बातें सीखेगा,” पत्नी ने भौंहे व मुँह मोड़  कर कहा, “ना जाने कौन है? कैसे संस्कार है इस बूढ़े के। ना जाने क्या सिखाएगा?” कहते हुए पत्नी ना चाहते हुए भी बूढ़े को चाय देने चली गई।

“लीजिए! चाय !” तल्ख स्वर में कहते हुए जब उस ने बूढ़े को चाय दी तो उसने कहा, “जीती रहो बेटी!” यह सुनते ही बूढ़े का चेहरा देखते ही उसका चेहरा फक से सफेद पड़ गया।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

13-05-22

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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