हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #164 ☆ व्यंग्य – लेखक के पत्र, मित्र के नाम ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर आधारित आपका एक मज़ेदार व्यंग्य ‘लेखक के पत्र, मित्र के नाम’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 164 ☆

☆ व्यंग्य – लेखक के पत्र, मित्र के नाम

📩 पत्र क्रमांक – 1 📩

प्रिय बंधु,

मेरा पत्र पाकर आपको आश्चर्य होगा। याद दिला दूँ कि हम 2019 में लखनऊ के लेखक सम्मेलन में मिले थे। तब मैंने आपको अपनी सात किताबें भेंट की थीं। आपको जानकर खुशी होगी कि इस साल विविध विधाओं में मेरी 135 पुस्तकें लुगदी प्रकाशन संस्थान,दिल्ली से प्रकाशित हुई हैं। इन्हें देखकर आपको महसूस होगा कि मेरी प्रतिभा कैसे दिन दूनी,रात चौगुनी निखर रही है। कनाडा में निवासरत अंतर्राष्ट्रीय कवयित्री रेणुका देवी ने मेरी किताबों के आवरण पर ही तीन पेज का लेख लिखा है। उन्होंने लिखा है कि कवर इतने सुन्दर हैं कि किताबों को खोलने की इच्छा ही नहीं होती। मैं अपनी 135 किताबें आपके पास भेजना चाहता हूँ ताकि आप और आपके मित्र उन्हें पढ़कर आनन्द प्राप्त करें। आपका उत्तर प्राप्त होते ही पुस्तकें रवाना कर दी जाएँगीं।

आपका

प्रीतम लाल ‘निरंकुश’

📩 उत्तर क्रमांक – 1 📩

भाई साहब,

आपका पत्र प्राप्त हुआ। 135 पुस्तकों के प्रकाशन पर मेरी बधाई लें। आपने ये पुस्तकें भेजने की बात लिखी है। मेरी दिक्कत यह है कि मैं उच्च रक्तचाप का मरीज़ हूँँ और अचानक इतनी किताबों को सँभाल पाना मेरी कूवत से बाहर है। दूसरी बात यह कि मेरे पास लेखक-मित्रों से प्राप्त इतनी किताबें इकट्ठी हो चुकी हैं कि उन्हें रखने के लिए घर में जगह नहीं बची है। मेरी पत्नी अलमारी से बची किताबों को चार बोरों में भरकर स्टोर में रख चुकी है। मुझे डर है कि किसी दिन मेरी अनुपस्थिति में वे कबाड़ी को सौंप दी जाएँगीं। इसलिए आप फिलहाल किताबें भेजने के अपने इरादे को स्थगित रखें। स्थितियाँ अनुकूल होने पर मैं स्वयं आपको सूचित करूँगा।

आपका

सज्जन लाल

📩 पत्र क्रमांक – 2 📩

बंधुवर,

आपका पत्र मिला। आपके स्वास्थ्य का हाल जानकर चिन्ता हुई, लेकिन मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि ब्लड-प्रेशर होने से किताबों को सँभालने में क्या दिक्कत हो सकती है। आप मेरे घर आएँगे तो देखकर ही आपका ब्लड-प्रेशर बढ़ जाएगा। सब तरफ मेरी किताबें अँटी पड़ी हैं। तिल धरने को जगह नहीं है। अतिथि आते हैं तो उन्हें किताबों के बंडल पर ही बैठाना पड़ता है। आपने किताबों के लिए स्थानाभाव की बात लिखी तो मेरा एक सुझाव है। मैं आपके पास एक अलमारी की कीमत भेज दूँगा। उस अलमारी में सिर्फ मेरी किताबें रखी जाएँ। उसमें किसी अन्य लेखक की घुसपैठ न हो। आपका उत्तर मिलते ही राशि भेज दूँगा।

आपका

प्रीतम लाल ‘निरंकुश’

📩 उत्तर क्रमांक – 2 📩

भाई साहब,

अलमारी के लिए पैसे भेजने के आपके प्रस्ताव के लिए आभारी हूँँ, लेकिन समस्या वह नहीं है। समस्या यह है कि अलमारी रखने के लिए जगह नहीं बची है। अतः एक ही रास्ता है कि ऊपर एक हॉल बनवाकर किताबों की सारी अलमारियाँ वहाँ प्रतिष्ठित कर दी जाएँ। इसमें कम से कम डेढ़ दो लाख का व्यय आएगा। यदि आप इसमें पच्चीस तीस हज़ार का योगदान कर सकें तो आभारी हूँगा। फिर आप अपनी कितनी भी पुस्तकें भेज सकेंगे। अन्य लेखक-मित्रों से भी अनुरोध कर रहा हूँ। मैं वादा करता हूँ कि चार छः साल में व्यवस्था करके सबके पैसे लौटा दूँगा। आप विचार करके यथाशीघ्र सूचित करें।

आपका

सज्जन लाल

📩 पत्र क्रमांक – 3 📩

भाई साहब,

मुझे इल्म नहीं था कि आप मेरे साथ मसखरी करेंगे। मैं भला आपको पच्चीस तीस हजार रुपये क्यों देने लगा? उतने में मैं अपनी दो किताबें और छपवा लूँगा। मैं आपको अपनी 135 किताबें मुफ्त में दे रहा हूँ, और आप मज़ाक कर रहे हैं! सो इट इज़ योर लॉस, नॉट माइन। आपको मेरी किताबों की कद्र नहीं है तो हज़ारों और कद्रदाँ हैं। अब ये किताबें किसी और भाग्यशाली को मिलेंगीं। नमस्कार।

भवदीय

निरंकुश’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 113 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 113 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 113) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 113 ?

Solitude ☆

 कभी फुर्सत से मिलोगे

तो बताएँगे तुम्हें कि…

तन्हाई भी कितनी

शिद्दत से काटी है हमने…!

If you ever meet me

at leisure, I will tell you

With what severity I’ve

dealt with my loneliness…!

 हर धड़कते दिल को

लोग दिल समझते हैं,

इक उम्र बीत जाती है,

पत्थर को दिल बनाने में…!

 

 People consider every

beating-heart, a heart…

An era passes by in making

a stone into a heart…!

 

 बहुत मुद्दतों के बाद

तेरी तस्वीर क्या मिली…

यादों के पुराने ज़ख्म

फिर से रिसने लगे…!

 

What to say of finding your

picture after a long long time…

It triggered off oozing of the old

wounds of memories again…!

 मैं जब कहूँ

जरूरत नहीं तुम्हारी,

बस उस ही वक्त

तुम मेरे पास ठहर जाना…

 

Whenever I say

I don’t need you…

At that time only

just be with me…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 160 ☆ को जागर्ति? ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रीमहालक्ष्मी साधना 🌻

दीपावली निमित्त श्रीमहालक्ष्मी साधना, कल शनिवार 15 अक्टूबर को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी तदनुसार शनिवार 22 अक्टूबर तक चलेगी।इस साधना का मंत्र होगा-

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

☆  संजय उवाच # 160 ☆ को जागर्ति? ☆?

विगत सप्ताह शरद पूर्णिमा सम्पन्न हुई। इसे कौमुदी पूर्णिमा अथवा कोजागरी के नाम से भी जाना जाता है।

अश्विन मास की पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा कहलाती है। शरद पूर्णिमा अर्थात द्वापर में रासरचैया द्वारा राधारानी एवं गोपिकाओं सहित महारास की रात्रि, जिसे देखकर आनंद विभोर चांद ने धरती पर अमृतवर्षा की थी।

चंद्रमा की कला की तरह घटता-बढ़ता-बदलता रहता है मनुष्य का मन भी। यही कारण है कि कहा गया, ‘चंद्रमा मनसो जात:।’

यह समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी के प्रकट होने की रात्रि भी है। समुद्र को मथना कोई साधारण कार्य नहीं था। मदरांचल पर्वत की मथानी और नागराज वासुकि की रस्सी या नेती, कल्पनातीत है। सार यह कि लक्ष्मी के अर्जन के लिए कठोर परिश्रम के अलावा कोई विकल्प नहीं।

लोकमान्यता है कि कोजागरी की रात्रि लक्ष्मी जी धरती का विचरण करती हैं और पूछती हैं, ‘को जागर्ति?’.. कौन जग रहा है?..जगना याने ध्येयनिष्ठ और विवेकजनित कर्म।

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान का उवाच है,

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।

यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः॥

(2.69)

सब प्राणियोंके लिए जो रात्रि के समान है, उसमें स्थितप्रज्ञ संयमी जागता है और जिन विषयोंमें सब प्राणी जाग्रत होते हैं, वह मुनिके लिए रात्रि के समान है ।

सब प्राणियों के लिए रात क्या है? मद में चूर होकर अपने उद्गम को बिसराना,अपनी यात्रा के उद्देश्य को भूलना ही रात है। इस अंधेरी भूल-भुलैया में बिरले ही सजग होते हैं, जाग्रत होते हैं। वे निरंतर स्मरण रखते हैं कि जीवन क्षणभंगुर है, हर क्षण परमात्म तत्व को समर्पित करना ही लक्ष्य है। इन्हें ही स्थितप्रज्ञ कहा गया है।

साधारण प्राणियों का जागना क्या है? उनका जागना भोग और लोभ में लिप्त रहना है।  मुनियों के लिए दैहिकता कर्तव्य है। वह पर कर्तव्यपरायण तो होता है पर अति से अर्थात भोग और लोभ से दूर रहता है। साधारण प्राणियों का दिन, मुनियों की रात है।

अब प्रश्न उठता है कि सर्वसाधारण मनुष्य क्या सब त्यागकर मुनि हो जाए? इसके लिए मुनि शब्द का अर्थ समझना आवश्यक है। मुनि अर्थात मनन करनेवाला, मननशील। मननशील कोई भी हो सकता है। साधु-संत से लेकर साधारण गृहस्थ तक।

मनन से ही विवेक उत्पन्न होता है। दिवस एवं रात्रि की अवस्था में भेद देख पाने का नाम है विवेक। विवेक से जीवन में चेतना का प्रादुर्भाव होता है। फिर चेतना तो साक्षात ईश्वर है। ..और यह किसी संजय का नहीं स्वयं योगेश्वर का उवाच है।

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।

इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना॥

(10.22)

श्रीमद्भगवद्गीता में ही भगवान कहते हैं कि मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में इंद्र हूँ, इंद्रियों में मन हूँ और प्राणियों की चेतना हूँ।

जिसने भीतर की चेतना को जगा लिया, वह शाश्वत जागृति के पथ पर चल पड़ा। ‘को जागर्ति’ के सर्वेक्षण में ऐसे साधक सदैव दिव्य स्थितप्रज्ञों की सूची में रखे गए।

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 112 ☆ सॉनेट ~ शरतचंद्र… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित सॉनेट ~ शरत्चंद्र…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 112 ☆ 

☆ सॉनेट ~ शरत्चंद्र ☆

शरत्चंद्र की शुक्ल स्मृति से

मन नीलाभ गगन हो हँसता

रश्मिरथी दे अमृत, झट से

कंकर हो शंकर भुज कसता

 

सलज उमा, गणपति आहट पा

मग्न साधना में हो जाती

ऋद्धि-सिद्धि माँ की चौखट आ

शीश नवा, माँ के जस गाती

 

हो संजीव सलिल लहरें उठ

गौरी पग छू सकुँच ठिठकती

अंजुरी भर कर पान उमा झुक

शिव को भिगा रिझाकर हँसती

 

शुक्ल स्मृति पायस सब जग को

दे अमृत कण शरत्चंद्र का

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९-१०-२०२२, १५-४३

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #144 ☆ आलेख – आशंका ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 144 ☆

☆ ‌आलेख – आशंका ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

आशंका शब्द मन की नकारात्मकता की कोख से जन्म लेता है। यह बहुधा संशय, दुविधा, हताशा, निराशाजन्य परिस्थिति की देन है। यह वर्तमान में जन्म लेकर भविष्य में पृष्ठ पोषित होती है। आशंकाएं ज्यादातर निर्मूल होती है, लेकिन कभी कभी लाक्षणिक आधार पर सच भी साबित होती है। आशंकित मानव अनेक प्रकार के मानसिक तनाव झेलता है और यही तनाव एक समय  के बाद अवसाद का रूप ले लेता है तथा मानव अवसाद की बीमारी के चलते आत्महत्या भी कर लेता है। आशंका मानव का स्वभाव बन जाता है वह व्यक्ति के आत्म विश्वास की जड़ें हिला देता है। आशंकित व्यक्ति का खुद पर भी भरोसा उठ जाता है।  वह सकारात्मक सोच नहीं सकता नकारात्मकता मानव के मन पर बहुत बुरी तरह हावी हो जाती है। आशंकित इंसान प्राय: अकेला रहना चाहता है व अपने आप में घुटता रहता है,वह किसी पर भरोसा नहीं करता। उसकी आंखों की नींद उड़ जाती है और वह प्राय: नकारात्मक विचारों के चलते भयाक्रांत रहता है। सही निर्णय नहीं ले पाता अपना निर्णय बार बार बदलता रहता जिससे हानि उठानी पड़ती है

ऐसे व्यक्ति कुंठा का शिकार होते हैं, लोगों के लिए ऐसे व्यक्ति उपहास का पात्र बन जाते हैं। जबकि उन्हें दया नहीं सहानुभूति चाहिए उनका मानसिक इलाज होना चाहिए, और उन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल किया जाना चाहिए। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आशंकित स्वभाव मनोरोग है समय से हम रोगी के आचार विचार व्यवहार को समझ कर उसे नया जीवन शुरू करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (17 अक्टूबर से 23 अक्टूबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (17 अक्टूबर से 23 अक्टूबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

पंडित सोहनलाल द्विवेदी जी ने  लिखा है

 “लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती”

“कोशिश करने वालों की हार नहीं होती”

और आपके कार्य को सिद्ध करने में भाग्य  की मदद करता है । पंडित अनिल पाण्डेय का आप सभी को नमस्कार । दिनांक 17 अक्टूबर से 23 अक्टूबर 2022 अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के कार्तिक कृष्ण पक्ष की सप्तमी से कार्तिक  कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी  तक  के सप्ताह में भाग्य आपकी कहां-कहां मदद करेगा यह बताने के लिए मैं साप्ताहिक राशिफल लेकर आपके पास पहुंच रहा हूं।

सप्ताह के प्रारंभ में चंद्रमा मिथुन राशि में रहेगा कर्क और सिंह से गोचर करता हुआ 22 अक्टूबर को 7:16 रात से कन्या राशि में प्रवेश करेगा।

इस सप्ताह के प्रारंभ में सूर्य कन्या राशि में रहेगा तथा 18 तारीख के 9:43 दिन से तुला राशि में प्रवेश करेगा इसी प्रकार सप्ताह के प्रारंभ में शुक्र कन्या राशि में रहेगा तथा अट्ठारह के ही 9:10 रात तुला राशि में प्रवेश करेगा पूरे सप्ताह मंगल मिथुन राशि में और बुध कन्या राशि में रहेंगे गुरु मीन राशि रहेगा शनि मकर राशि में वक्री रहेगा मेष राशि रहेगा।

आइए अब राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह मेष राशि के अविवाहित जातकों के यहां पर शादी के सुंदर प्रस्ताव आएंगे। अगर  विंशोत्तरी दशा में योग ठीक हैं  तो शादी तय भी हो जाएगी । स्वास्थ्य ठीक रहेगा । आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है । व्यापार अच्छा चलेगा । भाग्य साथ देगा । कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी । इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 अक्टूबर शुभ एवं लाभदायक हैं । 23 अक्टूबर को आपको कई कार्यों में सफलता प्राप्त नहीं होगी। आपको चाहिए क्या आप इस सप्ताह आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

आपको इस सप्ताह महिलाओं से अच्छा सहयोग मिलेगा। आपके संतान को उन्नति प्राप्त होगी । इस सप्ताह आपको अपनी संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा ।  धन की कमी बन सकती है । भाग्य साथ देगा । इस सप्ताह आपके लिए 20 ,21 और 22 अक्टूबर सफलता दायक हैं । इन तारीखों में आप अधिकांश कार्यों में सफल रहोगे । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार का व्रत करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर पूजन करें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके पास उसके वस्तुओं में बढ़ोतरी होगी अर्थात आप नई कार नया ऐसी नया फेस ऐसी कोई नई चीज खरीद सकते हैं आपके संतान की उन्नति होगी संतान के साथ आपके संबंध बहुत अच्छे रहेंगे धन की मात्रा में काफी वृद्धि होगी भाग्य कम साथ देगा दुर्घटना हो सकती है उस से सावधान रहें इस सप्ताह आपके लिए 17 और 23 अक्टूबर फलदाई एवं लाभप्रद हैं शनिवार को व्रत रखें और उस दिन पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाकर सात बार परिक्रमा करें सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि होगी । आप अपने सुख हेतु कोई नई सामग्री का क्रय कर सकते हैं । व्यापार उत्तम चलेगा । आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । भाग्य से कम मदद मिलेगी ।  भाइयों से संबंध अच्छे रहेंगे । आपके जीवन साथी  को कष्ट हो सकता है । एक भाई से संबंधों में गिरावट आएगी या आपके एक भाई को कष्ट हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 अक्टूबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है । 18 और 19 अक्टूबर को आपको अधिकांश कार्यों में सफलता मिलेगी । 17 अक्टूबर को आपको कई कार्यों में असफलता प्राप्त होगी । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप अपने जीवन साथी के उत्तम स्वास्थ्य के लिए शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम 7 बार हनुमान चालीसा का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके पास धन की आवक ज्यादा होगी। व्यापार उत्तम चलेगा । आपके क्रोध में वृद्धि होगी । भाग्य सामान्य रहेगा । शत्रुओं की संख्या बढ़ सकती है । परंतु उनसे कोई डरने की आवश्यकता नहीं है । पेट में पीड़ा हो सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 20 21 और 22 अक्टूबर उत्तम और लाभप्रद हैं । इन तारीखों में आप जो भी कार्य करेंगे उनमें आपको सफलता प्राप्त होगी । 18 और 19 अक्टूबर को आपके कई कार्य असफल हो जाएंगे । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

कन्या राशि के जातकों के लिए यह सप्ताह अति उत्तम है । उनका स्वास्थ्य अत्यंत अच्छा रहेगा । हर जगह सफलताएं प्राप्त होंगी । भाग्य अच्छा साथ देगा । धन की प्राप्ति होगी । आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में गिरावट आ सकती है । कार्यालय में आपका अपने अधिकारियों से संघर्ष हो सकता है । दुर्घटना हो सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 17 अक्टूबर तथा 23 अक्टूबर उत्तम फलदायक है । 20 ,21 और 22 अक्टूबर को आप कार्यों को करने का प्रयास न करें । उस दिन आप जिन कार्यों करने का प्रयास करेंगे उसमें कई में आपको  असफलता मिलेगी । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार का व्रत करें तथा मंगलवार को ही हनुमान जी के मंदिर में जा कर पूजा अर्चन करें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

तुला राशि के जातकों का स्वास्थ्य सप्ताह थोड़ा नरम थोड़ा गरम रहेगा । कार्यालय में आपकी स्थिति में मजबूती आएगी । अविवाहित जातकों के विवाह के उत्तम प्रस्ताव आएंगे । भाग्य से कम मदद प्राप्त होगी । कचहरी के कार्यों में असफलता का योग है । भाइयों से संबंध ठीक होंगे । इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 अक्टूबर लाभप्रद है । इस दिन कार्यों में सफलता का भी योग है । 23 अक्टूबर को आपको कोई भी कार्य बहुत संभलकर करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने और अपने जीवनसाथी के स्वास्थ्य के लिए राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके कुंडली के गोचर में धन आने का उत्तम योग है । व्यापार में वृद्धि होगी । कचहरी के कार्य में सफलता प्राप्त होगी । आपके संतान को और बहनों  को कष्ट होगा । आपको दुर्घटनाओं के प्रति सतर्क रहना चाहिए । आपके लिए 20, 21 और 22 अक्टूबर  लाभप्रद और सफलता दायक है ।  20 ,21 और 22 को आप अधिकांश कार्यों में सफल रहेंगे । 17 अक्टूबर को आपको कोई भी कार्य बहुत सचेत होकर करना चाहिए ।  आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

धनु राशि के जातकों के लिए यह सप्ताह धन प्रदान करने वाला है । इस सप्ताह आप जिन योजनाओं पर कार्य प्रारंभ करेंगे वे आगे चलकर के आपको अत्यंत  धन प्रदान करेंगी । आपके जीवनसाथी को कष्ट हो सकता है । आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । इस सप्ताह आपके लिए 17 और 23 अक्टूबर अद्भुत और लाभदायक हैं । 18 और 19 अक्टूबर को आपको सचेत रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का अभिषेक करवाएं । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है ।

मकर राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी । आपका या आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है । सुख के साधनों में कमी आएगी । भाग्य आपका बहुत  साथ देगा  । व्यापार में वृद्धि का योग है । शत्रु परास्त होंगे । कचहरी के कार्य में सफलता प्राप्त होगी । इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 अक्टूबर लाभप्रद और   सुविधादायक है । 17 अक्टूबर तथा 20 ,21 और 22 अक्टूबर को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप रुद्राष्टक का पाठ करें और शिवजी का अभिषेक करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका भाग्य आपका भरपूर साथ देगा। अगर आप छात्र हैं तो पढ़ाई में बाधा आ सकती है । संतान आपका सहयोग नहीं करेगी । दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें ।  कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है  । धन की सामान्य प्राप्ति ही संभव है ।  इस सप्ताह आपके  लिए 20 , 21 और 22 अक्टूबर उत्कृष्ट है । आपको इन दिनों का भरपूर फायदा उठाना चाहिए। । अट्ठारह 19 और 23 अक्टूबर को आपको सावधान रहकर कार्यों को अंजाम देना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार तेजी से आगे बढ़ेगा । आपके स्वास्थ्य में गिरावट आ सकती है । गलत रास्ते से धन आने का योग है । कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी । विवाह संबंधों में बाधा आएगी । इस सप्ताह आपके लिए 17 अक्टूबर तथा 23 अक्टूबर उन्नति दायक है । 20, 21 और 22 अक्टूबर को आपके कार्य असफल हो सकते हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें , तथा प्रतिदिन भगवान सूर्य को जल अर्पण करें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मां शारदा से प्रार्थना है कि आप सभी को सुख समृद्धि और वैभव प्राप्त हो। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #161 – 47 – “वो जो चले गए और भी याद आने लगे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “वो जो चले गए और भी याद आने लगे …”)

? ग़ज़ल # 47 – “वो जो चले गए और भी याद आने लगे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

भूलता नहीं शमशान का ख़ौफ़नाक मंजर भुलाने से,

वो जो चले गए और भी याद आने लगे भुलाने से।

कमरा वीराँ हो गया, फ़क़त इक तस्वीर हटाने से,

दिल आबाद कहाँ रह पाया, उनकी याद भुलाने से।

घुट-घुट कर मरना लिखा था उनकी क़िस्मत में,

अब कहाँ लौट कर आएँगे वे बदनसीब बुलाने से।

हर शहर हर गाँव हर नगर में हाहाकर मच रहा,

एम्बुलेंस डॉक्टर दवा कोई नहीं आया बुलाने से।

भ्रष्टाचार कालाबाज़ारी खेला खुलेआम नंगा नाच,

अखंड राष्ट्र विश्वगुरु ठेकेदार सहमे कुलबुलाने से।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 38 ☆ मुक्तक ।। तेरी ही दी खुशियां, आती दुगनी वापिस होकर ।।☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।तेरी ही दी खुशियां, आती दुगनी वापिस होकर।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 38 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। तेरी ही दी खुशियां, आती दुगनी वापिस होकर ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

ख़ुशियाँ हर मोड़ पर कि, चाहो तो मौज मिलती है।

बात नहीं एक दिन की, ढूंढो तो रोज़ मिलती है।।

खुशी बसती नहीं कहीं दूर, बहुत ऊपर आसमान में।

तेरे भीतर बसेरा इनका, खोज वहीं पर मिलती है।।

[2]

बहुत आसान इन खुशियों, से रोज़ मुलाकात करना।

बांटते रहो फिर इन्हें, अपनों में आबाद  करना।।

यही छोटी मोटी खुशियां, लौट कर आती बड़ी होकर।

फिर इन खुशियों को तुझ, को ही है प्राप्त करना।।

[3]

मत ढूंढता रह हमेशा धन, दौलत की सौगातों  को।

निकाल कर ला हर बात, में खुशी की अफरातों  को।।

तेरी ही खुशी जान ले कि, दुगनी होकर आती वापिस।

बस अहसास कर महसूस, कर इन मुस्कराहटों को।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 104 ☆’’हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक रचना “हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #104 ☆’’हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण

सुख, विभव, आनंद-दायक, शांति प्रद प्रभु तव चरण।।

 

कामना तव कृपा की ले नाथ हम आये शरण

आशुतोष अपारदानी कीजिये सब दुख हरण।।

 

हृदय की सब जानते हो भक्त के, भगवान तुम

तुम्हीं संरक्षक जगत के प्राणियों के प्राण तुम।।

 

विधि न मालूम अर्चना की भावना के हैं सुमन

नेह आलोकित हृदय है, धवल हिम सा शुद्ध मन।।

 

तमावृत हर पथ जगत का मोह के अंधियार से

बढ़ रहे हैं कष्ट नित नव स्वार्थ के विस्तार से।।

 

है भयावह रात काली, कहीं न दिखती है किरण

तव कृपा की कामना ले हैं बिछे पथ में नयन।।

 

दीजिये वर अब हो सत्यं शिवं शुभ सुंदरम

मन में करूणा का उदय हो, क्लेश, प्रभु हो जायें कम।।

 

अश्रु- जल कर सके उठती द्वेष- लपटों का शमन

विनत तव चरणों में शंकर हमारा शत शत नमन।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार # 111 – पाप का भागी कौन—पाप किसने किया? ☆ श्री आशीष कुमार ☆

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)

☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #111 🌻 पाप का भागी कौन—पाप किसने किया? 🌻 ☆ श्री आशीष कुमार

एक ब्राह्मण ने बगीचा लगाया। उसे बड़े मनोयोग पूर्वक संभालता, पेड़ लगाता, पानी देता। एक दिन गाय चरती हुई बाग में आ गई और लगाये हुए कुछ पेड़ चरने लगी। ब्राह्मण का ध्यान उस ओर गया तो उसे बड़ा क्रोध आया। उसने एक लट्ठ लेकर उसे जोर से मारा। कोई चोट उस गाय पर इतने जोर से पड़ी कि वह वहीं मर गई। गाय को मरा जानकर ब्राह्मण बड़ा पछताया। कोई देख न ले इससे गाय को घसीट के पास ही बाग के बाहर डाल दिया। किन्तु पाप तो मनुष्य की आत्मा को कोंचता रहता है न। उसे संतोष नहीं हुआ और गोहत्या के पाप की चिन्ता ब्राह्मण पर सवार हो गई।

बचपन में कुछ संस्कृत ब्राह्मण ने पढ़ी थी। उसी समय एक श्लोक उसमें पढ़ा जिसका आशय था कि हाथ इन्द्र की शक्ति प्रेरणा से काम करते हैं, अमुक अंग अमुक देवता से। अब तो उसने सोचा कि हाथ सारे काम इन्द्र शक्ति से करता है तो इन हाथों ने गाय को मारा है इसलिए इन्द्र ही गोहत्या का पापी है मैं नहीं?

मनुष्य की बुद्धि की कैसी विचित्रता है, जब मन जैसा चाहता है वैसे ही हाँककर बुद्धि से अपने अनुकूल विचार का निर्णय करा लेता है। अपने पाप कर्मों पर भी मिथ्या विचार करके अनुकूल निर्णय की चासनी चढ़ाकर कुछ समय के लिए कुनैन जैसे कडुए पाप से सन्तोष पा लेता है।

कुछ दिनों बाद गौहत्या का पाप आकर ब्राह्मण से बोला— मैं गौहत्या का पाप हूँ तुम्हारा विनाश करने आया हूँ।

ब्राह्मण ने कहा—गौहत्या मैंने नहीं की, इन्द्र ने की है। पाप बेचारा इन्द्र के पास गया और वैसा ही कहा। इन्द्र अचम्भे में पड़ गये। सोच विचारकर कहा— ‛अभी मैं आता हूँ।’ और वे उस ब्राह्मण के बाग के पास में बूढ़े ब्राह्मण का वेश बनाकर गये और तरह−तरह की बातें कहते करते हुए जोर−जोर से बाग और उसके लगाने वाले की प्रशंसा करने लगा। प्रशंसा सुनकर ब्राह्मण भी वहाँ आ गया और अपने बाग लगाने के काम और गुणों का बखान करने लगा। “देखो मैंने ही यह बाग लगाया है। अपने हाथों पेड़ लगाये हैं, अपने हाथों से सींचता हूँ। सब काम बाग का अपने हाथों से करता हूँ। इस प्रकार बातें करते−करते इन्द्र ब्राह्मण को उस तरफ ले गये जहाँ गाय मरी पड़ी थी। अचानक उसे देखते इन्द्र ने कहा। यह गाय कैसे मर गई। “ब्राह्मण बोला—इन्द्र ने इसे मारा है।”

इन्द्र अपने निज स्वरूप में प्रकट हुआ और बोला—‟जिसके हाथों ने यह बाग लगाया है, ये पेड़ लगाये हैं, जो अपने हाथों से इसे सींचता है उसके हाथों ने यह गाय मारी है इन्द्र ने नहीं। यह तुम्हारा पाप लो।” यह कहकर इन्द्र चले गये। गौ हत्या का पाप विकराल रूप में ब्राह्मण के सामने आ खड़ा हुआ।

भले ही मनुष्य अपने पापों को किसी भी तरह अनेक तर्क, युक्तियाँ लगाकर टालता रहे किन्तु अन्त में समय आने पर उसे ही पाप का फल भोगना पड़ता है। पाप जिसने किया है उसी को भोगना पड़ता, दूसरे को नहीं। यह मनुष्य की भूल है कि वह तरह−तरह की युक्तियों से, पाप से बचना चाहता है। अतः जो किया उसका आरोप दूसरे पर न करते हुए स्वयं को भोगने के लिए तैयार रहना चाहिए।

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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