श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
🕉️ मार्गशीष साधना सम्पन्न हो गई है। 🌻
अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी
आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं । यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है। ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
☆ संजय उवाच # 166 ☆ कबिरा संगत साधु की… ☆
जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं,
मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति।
चेत: प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं,
सत्संगति: कथयं किं न करोति पुंसाम्।।
अर्थात् अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जड़ता को हर लेता है, वाणी में सत्य का संचार करता है, मान और उन्नति को बढ़ाता है और पाप से मुक्त करता है | चित्त को प्रसन्न करता है और हमारी कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाता है। आप ही बताइए कि सत्संगति मनुष्यों का कौन- सा भला नहीं करती!
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। सामाजिक है अर्थात समाज में रहनेवाला है। समाज, समूह से बनता है। तात्पर्य है कि मनुष्य समूह में रहनेवाला प्राणी है। ऐसे में एक-दूसरे की संगति स्वाभाविक है। साथ ही यह भी स्वाभाविक है कि समूह के हर सदस्य पर एक-दूसरे के स्वभाव का, विचारों का, गुण-अवगुण का प्रभाव पड़े। ऐसे में अपनी संगति का विचारपूर्वक चुनाव आवश्यक हो जाता है।
अध्यात्म में सत्संगति का विशेष महत्व है। ‘सत्संग’ के प्रभाव से मनुष्य की सकारात्मकता सदा जाग्रत रहती है।
सत्संग के महत्व से अनजान एक युवा कबीरदास जी के पास पहुँचा। कहने लगा, ‘मैं शिक्षित हूँ, समझदार हूँ। अच्छाई और बुराई के बीच अंतर ख़ूब समझता हूँ। तब भी मेरे माता-पिता और परिवार के बुज़ुर्ग मुझे सत्संग में जाने के लिए बार-बार कहते हैं। अब आप ही बताइए कि भला मैं सत्संग में क्यों जाऊँ?”
कबीर कुछ नहीं बोले। केवल एक हथौड़ा उठाया और पास ही ज़मीन में गड़े एक खूँटे पर दे मारा। कोई उत्तर न पाकर युवक वहाँ से लौट गया।
अगले दिन युवक फिर आया। उसने फिर अपना प्रश्न दोहराया। कबीर फिर कुछ नहीं बोले। फिर हथौड़ा उठाकर उसी खूँटे पर दे मारा। खूँटा ज़मीन में कुछ और गहरा गड़ गया। युवक लौट गया।
तीसरे दिन वह फिर आया। फिर वही प्रश्न, उत्तर में कबीर द्वारा फिर खूँटे को हथौड़े से ज़मीन में और गहरा गाड़ना। अब युवक का धैर्य जवाब दे गया। रुष्ट स्वर में बोला, “महाराज आप मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं जानते या नहीं देना चाहते तो न सही पर रोज़-रोज़ यूँ मौन धारण कर इस खूँटे पर हथौड़ा क्यों चलाते हैं?” कबीर मुस्कराकर बोले, “मैं रोज़ तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देता हूँ पर तुम समझदार होकर भी समझना नहीं चाहते। मैं रोज़ खूँटे पर हथौड़ा मारकर ज़मीन में इसकी पकड़ मज़बूत कर रहा हूँ अन्यथा हल्की-सी ठोकर से भी इसके उखड़ने का डर है।..बेटा, मनुष्य का मन इस खूँटे की तरह है। मन के खूँटे पर सत्संग का प्रहार और संस्कार निरंतर होता रहना चाहिए ताकि मनुष्य सकारात्मक चिंतन कर सके, बेहतर मनुष्य बन सके। सकारात्मकता जितनी गहरी होगी, जीवन में कठिनाइयाँ और संकट उतने ही उथले लगेंगे। इसलिए सत्संग अनिवार्य है।”
सत्संग या सज्जनों के साथ के इसी महत्व ने कबीरदास जी से लिखवाया,
कबिरा संगत साधु की, ज्यों गंधी की बास।
जो कुछ गंधी दे नहीं, तो भी बास सुबास।।
गंधी या इत्र बेचनेवाला कुछ न भी दे तब भी उसकी उपस्थिति से ही वातावरण में सुगंध फैल जाती है। सत्संगति का भी यही आनंद है।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत