हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख – आत्मानंद साहित्य #141 ☆ प्रेरणा ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 141 ☆

☆ ‌ आलेख ☆ ‌प्रेरणा ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

वैसे तो प्रेरणा शब्द हिन्दी साहित्य के आम शब्दों जैसा ही है, लेकिन यह है बहुत महत्वपूर्ण,  इसका बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक महत्व है तथा इसका संबंध मानव मन की उर्जा से है, यह मानव के जीवन में उत्साह तथा उमंग का संचार करता है, उत्साहहीन मानव के जीवन से खुशियों के पल रूठ जाते हैं, और जीवन उद्देश्यविहीन हो जाता है। जब कि प्रेरित मानव जीवन में ऐसे-ऐसे काम कर जाता है, जिसकी उससे आप अपेक्षा नहीं किए होंगे।

इसका महत्व समझने के लिए हमें कुछ पौराणिक घटना क्रम पर विचार मंथन करना होगा।प्रेरक ही कार्य संचालन हेतु हृदय में प्रेरणा पैदा करता है प्रेरणा के गर्भ में उत्साह पलता है इसे हम पौराणिक काल में घटे कुछ घटना क्रम से समझते हैं।

उदाहरण नं १ – जरा उस समय की कल्पना कीजिये जब रामायण कथा लिखी जा रही थी। सीता हरण भी हो चुका था, उनका कुछ भी पता नहीं चल रहा था, सीता का पता लगाने के लिए, वानर राज सुग्रीव ने धमकी भरा चुनौती पूर्ण कार्य समस्त वानर समूहों को सौंपा गया था। और सुग्रीव द्वारा मधुवन में बिना कार्य सिद्धि के फल खाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। तथा बिना लक्ष्य पूरा किए असफल हो कर लौटने पर जान गंवाने का भय था।

उस समूह के संरक्षक जामवंत तथा तथा नायक श्री हनुमान जी महाराज को बनाया गया था, सारे वानर समूह भूख प्रयास से थके हारे उत्साह हीन हो समुद्र किनारे बैठ कर पश्चाताप कर रहे थे। उनकी प्रेरणा मर चुकी थी, सीताहरण की ख़बर मिल चुकी थी पता भी चल चुका था कि माता सीता सौ योजन दूर समुद्र के भीतर रावण की स्वर्ण नगरी लंका में कैद है। लेकिन प्रश्न यह था कि आखिर लंका जाएगा कौन। इसी पर सबकी क्षमताओं का आकलन हो रहा था कोई चार कोई छ कोई दस योजन जाने की बात कर रहा था युवराज अंगद ने भी अपनी क्षमता का वर्णन कर दिया था। स्पष्ट बता भी दिया था कि-

अंगद कहइ जाउँ मैं पारा।

जियँ संसय कछु फिरती बारा॥

अर्थात्- मैं जा तो सकता हूं। लेकिन लौट कर आने में संदेह प्रकट किया था। वहीं समूह के नायक वीर हनुमान मौन हो सिर झुकाए बैठे थे। ऋषि के श्राप के कारण उनका हृदय प्रेरणा हीन था। बल और बुद्धि भूल गए थे। एक किनारे बैठे थे उनकी हालत उस मनुष्य जैसी थी  कि जो धन की गठरी पर बैठा धन  न होने की चिंता में पड़ा हुआ हो। उसे इसका ज्ञान ही नहीं है वह अपार धन-संपदा का मालिक है। आखिर में चिंता ग्रस्त हनुमान जी को उनकी बल बुद्धि की याद जामवंत जी को दिलाना ही पड़ा-

कहइ रीछपति सुनु हनुमाना।

का चुप साधि रहेहु बलवाना।।

पवन तनय बल पवन समाना।

बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।

और उस प्रेरक वचन के सुनते ही हनुमान जी का बल पौरुष जाग उठा था और शक्ति प्रदर्शन का मूल श्रोत बना जय श्री राम का उद्घोष।  फिर क्या था- 

जेहि गिरि चरन देइ हनुमंता|

चलेउ सो गा पाताल तुरंता||

उदाहरण नं २ – उस दृश्य की कल्पना कीजिये जब गांडीवधारी अर्जुन युद्ध क्षेत्र में मोह ग्रस्त खड़ा है, उसे युद्ध क्षेत्र में मृत्यु के पदचाप की आहट सुनाई दे रही है लेकिन प्रेरणा हीन अर्जुन भीख मांग कर खाने की बातें कर रहा है लेकिन, युद्ध करने से भाग रहा है क्यों कि हताशा निराशा ने उसे घेर रखा है जो बार-बार उसे कर्त्तव्य पथ से विमुख कर रहा है लेकिन भगवान श्री कृष्ण के प्रेरक वचनों ने अर्जुन के हृदय में प्रेरणा जगाई, और परिणाम महाभारत युद्ध में उसकी विजय। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सफलता का प्रयास प्रेरणा के गर्भ में पलता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #157 – ग़ज़ल-43 – “सबका इलाज़ तो किया…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “सबका इलाज़ तो किया …”)

? ग़ज़ल # 43 – “सबका इलाज़ तो किया …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

वीरान खंडहरों की सैर को दो मायूस दिल गये,

ज़माने से उलझे दोज़ख़ के दरवाज़े मिल गये।

ज़िंदगी तब ख़ुशनुमा लिबास में मुसकाती थी,

चढ़ती उम्र के झौंके में वजूद के पत्ते हिल गये।

ग़म सलीके में रहे जब तलक लब खामोश थे,

हमारी ज़ुबां क्या खुली दर्द बेशुमार मिल गये।

सबका इलाज़ तो किया बस अपना न कर सके,

ज़माने के गरेबां रफ़ू किए ख़ुद के फटे मिल गये।

दर्द के फटे गलीचे सिलवाने जा रहा था शायर,

खुर्दबीन नुक़्ताचीं मगर नुक्कड़ पर मिल गये।

मैं ढूँढता रहा आस्तीन के साँपों को इर्द गिर्द,

ठीक से देखा ‘आतिश’ ने ज़हन में मिल गये।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 34 ☆ मुक्तक ।। झूठ  के पाँव  नहीं  होते हैं ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। झूठ  के पाँव  नहीं  होते हैं।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 34 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। झूठ  के पाँव  नहीं  होते हैं ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

यही सच  कि  सत्य  का  कोई  जवाब नहीं है।

एक सच ही जिसके चेहरे पर नकाब नहीं है।।

सच   सा  नायाब  कोई  और  नहीं  है  दूसरा।

इक  सच  ही  तो   झूठा  और  खराब  नहीं  है।।

[2]

सच   मौन   हो   तो   भी   सुनाई   देता है।

सात परदों के पीछे से भी दिखाई देता है।।

फूस में चिंगारी सा छुप कर आता है बाहर।

सच ही हर मसले की सही सुनवाई देता है।।

[3]

चरित्र   के   बिना   ज्ञान  इक  झूठी  सी  ही  बात है।

त्याग   बिन   पूजन   तो   जैसे   दिन   में   रात है।।

सिद्धांतों बिन राजनीति भी विवेकशील होती नहीं।

मानवता बिन विज्ञान  भी  इक  गलत  सौगात   है।।

[4]

सत्य  स्पष्ट  सरल  नहीं   इसमें  कोई  दाँव  होता  है।

जैसे   धूप   में   लगती  शीतल सी   छाँव   होता   है।।

गहन   अंधकार   को   भी   सच  का सूरज चीर देता।

सच के सामने नहीं टिकता झूठ का पाँव नहीं होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 100 ☆ ’’अपना भाग्य बनाइये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  “अपना भाग्य बनाइये…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 100 ☆ गज़ल – अपना भाग्य बनाइये” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

कोसिये मत भाग्य को, निज भाग्य को पहचानिये

भाग्य अपने हाथ में है, कुछ तो, इतना जानिये।

 

ज्ञान औ’ विज्ञान हैं आँखें दो, इनसे देखिये

भाग्य अपना, अपने हाथों, आप स्वयं सजाइये।

 

बीत गये वे दिन कि जब सब आदमी मजबूर थे

अब तो है विज्ञान का युग, हर खुशी घर लाइये

 

एक मुँह तो हाथ दो-दो, दिये हैं भगवान ने

बात कम, श्रम अधिक करने को तो आगे आइये।

 

अब न दुनियाँ सिर्फ, अब तो चाँद-तारे साथ हैं

क्या, कहाँ, कब, कैसे, क्यों प्रश्नों को भी सुलझाइये।

 

जरूरी है पुस्तकों से मित्रता पहले करें

हम समस्या का सही हल उनको पढ़कर पाइये।

 

पढ़ना-लिखना है जरूरी जिससे बनता भाग्य है

जिंदगी को नये साँचे में समझ के सजाइये।

 

बदलती जाती है दुनियॉ अब बड़ी रफ्तार से

आप पीछे रह न जायें तेज कदम बढ़ाइये

 

जो बढ़े, बन गये बड़े, हर जगह उनका मान है

आप भी पढ़ लिख के खुद सबकों यही समझाइये।

 

सोच श्रम औ’ योजनायें बदलती परिवेश को

खुद समझ सब, अपने हाथों अपना भाग्य बनाइये।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

 

मो. 9425484452

 

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार # 107 – ईमानदार राजा ☆ श्री आशीष कुमार ☆

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)

☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #107 🌻 ईमानदार राजा 🌻 ☆ श्री आशीष कुमार

एक बड़ा सुन्दर शहर था, उसका राजा बड़ा उदार और धर्मात्मा था। प्रजा को प्राणों के समान प्यार करता और उनकी भलाई के लिए बड़ी-बड़ी और सुन्दर राज व्यवस्थाएं करता। उसने एक कानून प्रचलित किया कि अमुक अपराध करने पर देश निकाले की सजा मिलेगी। कानून तोड़ने वाले अनेक दुष्ट आदमी राज्य से निकाल बाहर किए गये, राज्य में सर्वत्र सुख शांति का साम्राज्य था।

एक बार किसी प्रकार वही जुर्म राजा से बन पड़ा। बुराई करते तो कर गया पर पीछे उसे बहुत दुःख हुआ। राजा था सच्चा, अपने पाप को वह छिपा भी सकता था पर उसने ऐसा किया नहीं।

दूसरे दिन बहुत दुखी होता हुआ वह राज दरबार में उपस्थित हुआ और सब के सामने अपना अपराध कह सुनाया। साथ ही यह भी कहा मैं अपराधी हूँ इसलिए मुझे दण्ड मिलना चाहिए। दरबार के सभासद ऐसे धर्मात्मा राजा को अलग होने देना नहीं चाहते थे फिर भी राजा अपनी बात पर दृढ़ रहा उसने कड़े शब्दों में कहा राज्य के कानून को मैं ही नहीं मानूँगा तो प्रजा उसे किस प्रकार पालन करेगी? मुझे देश निकाला होना ही चाहिये।

निदान यह तय करना पड़ा कि राजा को निर्वासित किया जाए। अब प्रश्न उपस्थित हुआ कि नया राजा कौन हो? उस देश में प्रजा में से ही किसी व्यक्ति को राजा बनाने की प्रथा थी। जब तक नया राजा न चुन लिया जाए तब तक उसी पुराने राजा को कार्य भार सँभाले रहने के लिए विवश किया गया। उसे यह बात माननी पड़ी।

उस जमाने में आज की तरह वोट पड़कर चुनाव नहीं होते थे। तब वे लोग इस बात को जानते ही न हों सो बात न थी। वे अच्छी तरह जानते थे कि यह प्रथा उपहास्पद है। लालच, धौंस, और झूठे प्रचार के बल पर कोई नालायक भी चुना जा सकता है। इसलिए उपयुक्त व्यक्ति की कसौटी उनके सद्गुण थे। जो अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित करता था वही अधिकारी समझा जाता था।

उस देश का राजा जैसा धर्मात्मा था वैसा ही प्रधान मंत्री बुद्धिमान था। उसने नया राजा चुनने की तिथि नियुक्त की। और घोषणा की कि अमुक तिथि को दिन के दस बजे जो सबसे पहले राजमहल में जाकर महाराज से भेंट करेगा वही राजा बना दिया जायेगा। राजमहल एक पथरीली पहाड़ी पर शहर से जरा एकाध मील हट कर जरूर था पर उसके सब दरवाजे खोल दिये गये थे, भीतर जाने की कोई रोक टोक न थी। राजा के बैठने की जगह भी खुले आम थी और वह मुनादी करके सब को बता दी गई थी।

राजा के चुनाव से एक दो दिन पहले प्रधान मंत्री ने शहर खाली करवाया और उसे बड़ी अच्छी तरह सजाया। सभी सुख उपभोग की सामग्री जगह-जगह उपस्थित कर दी। उन्हें लेने की सब को छुट्टी थी किसी से कोई कीमत नहीं ली जाती। कहीं मेवे मिठाइयों के भण्डार खुले हुए थे तो कहीं खेल, तमाशे हो रहे थे कहीं आराम के लिए मुलायम पलंग बिछे हुए थे तो कहीं सुन्दर वस्त्र, आभूषण मुफ्त मिल रहे थे। कोमलांगी युवतियां सेवा सुश्रुषा के लिए मौजूद थीं जगह-जगह नौकर दूध और शर्बत के गिलास लिये हुए खड़े थे। इत्र के छिड़काव और चन्दन के पंखे बहार दे रहे थे। शहर का हर एक गली कूचा ऐसा सज रहा था मानो कोई राजमहल हो।

चुनाव के दिन सबेरे से ही राजमहल खोल दिया गया और उस सजे हुए शहर में प्रवेश करने की आज्ञा दे दी गई। नगर से बाहर खड़े हुए प्रजा भीतर घुसे तो वे हक्के-बक्के रह गये। मुफ्त का चन्दन सब कोई घिसने लगा। किसी ने मिठाई के भण्डार पर आसन बिछाया तो कोई सिनेमा की कुर्सियों पर जम बैठा, कोई बढ़िया-बढ़िया कपड़े पहनने लगा तो किसी ने गहने पसंद करने शुरू किए। कई तो सुन्दरियों के गले में हाथ डालकर नाचने लगे सब लोग अपनी-अपनी रुचि के अनुसार सुख सामग्री का उपयोग करने लगे।

एक दिन पहले ही सब प्रजा को बता दिया गया था कि राजा से मिलने का ठीक समय 10 बजे है। इसके बाद पहुँचने वाला राज का अधिकारी न हो सकेगा। शहर सजावट चन्द रोज है, वह कल समय बाद हटा दी जायेगी, एक भी आदमी ऐसा नहीं बचा था जिसे यह बातें दुहरा-दुहरा कर सुना न दी गई हों, सभी ने कान खोलकर सुन लिया था।

शहर की सस्ती सुख सामग्री ने सब का मन ललचा लिया उसे छोड़ने को किसी का जी नहीं चाहता था। राज मिलने की बात को लोग उपेक्षा की दृष्टि से देखने लगे। कोई सोचता था दूसरों को चलने दो मैं उनसे आगे दौड़ जाऊँगा, कोई ऊंघ रहे थे अभी तो काफी वक्त पड़ा है, किसी का ख्याल था सामने की चीजों को ले लो, राज न मिला तो यह भी हाथ से जाएगी, कोई तो राज मिलने की बात का मजाक उड़ाने लगे कि यह गप्प तो इसलिये उड़ाई गई है कि हम लोग सामने वाले सुखों को न भोग सकें। एक दो ने हिम्मत बाँधी और राजमहल की ओर चले भी पर थोड़ा ही आगे बढ़ने पर महल का पथरीला रास्ता और शहर के मनोहर दृश्य उनके स्वयं बाधक बन गये बेचारे उलटे पाँव जहाँ के तहाँ लौट आये। सारा नगर उस मौज बहार में व्यस्त हो रहा था।

दस बज गये पर हजारों लाखों प्रजा में से कोई वहाँ न पहुँचा। बेचारा राजा दरबार लगाये एक अकेला बैठा हुआ था। प्रधान मंत्री मन ही मन खुश हो रहा था कि उसकी चाल कैसे सफल हुई। जब कोई न आया तो लाचार उसी राजा को पुनः राज भार सँभालना पड़ा

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (19 सितंबर से 25 सितंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (19 सितंबर से 25 सितंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

कहाँ गया है

हमारे भाग्य में सब कुछ है देखो,

कभी मंजिल पहचान करके देखो ।

वक्त तो लगेगा ही ऊंचाइयों तक पहुंचने में,

अपने हौसलों को कभी तो बढा कर देखो।

हमारे भाग्य में सब कुछ है परंतु सही समय पर कार्यक्रम करके, कार्य करके, हम आगे बढ़ पाएंगे और यही सही समय बताने में, मैं पंडित अनिल पाण्डेय आपकी सहायता करूंगा। आप सभी को मेरा नमस्कार । आज मैं आपको 19 सितंबर से 25 सितंबर 2022 अर्थात विक्रम संवत 2079 ई शक संवत 1944 के अश्वनी कृष्ण पक्ष की नवमी से अश्वनी कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक का राशिफल बताने जा रहा हूं।

इस सप्ताह के प्रारंभ में चंद्रमा मिथुन राशि में रहेगा । कर्क और सिंह से होता हुआ 25 सितंबर को 11:54  दिन में कन्या राशि में प्रवेश करेगा।  पूरे सप्ताह सूर्य कन्या राशि में रहेगा । मंगल वृष राशि में रहेगा । बुध गुरु और शनि क्रमशः कन्या मीन और मकर राशि में वक्री रहेंगे । शुक्र प्रारंभ में सिंह राशि में रहेगा तथा 24 तारीख को 8:56 रात से कन्या राशि में प्रवेश करेगा । राहु मेष राशि में रहेंगे। आइए हम राशि वार राशिफल की चर्चा करें ।

मेष राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका  साथ देगा । दुर्घटनाओं से सावधान रहने की आवश्यकता है । संतान का सहयोग प्राप्त होगा । छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी । शत्रुओं की संख्या में वृद्धि होगी । 20 सितंबर के दोपहर के बाद से 21 और 22 सितंबर आपके लिए उत्तम और फलदायक है । 25 सितंबर को आपको सचेत रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप  में प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है ।

वृष राशि

इस सप्ताह आपकी संतान आपका विशेष रुप से सहयोग करेगी । आपके स्वास्थ्य में कमी आ सकती है । जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके सुख में कमी आ सकती है । माताजी का स्वास्थ्य खराब हो सकता है ।  23 और 24 सितंबर आपके लिए शुभ एवं फलदायक हैं । आपको चाहिए कि आप शुक्रवार को किसी मंदिर पर जाकर भिखारियों के बीच में चावल का दान दें । सप्ताह का  शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके शत्रुओं का पतन होगा । आपका स्वास्थ्य सामान्य रहेगा । जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा । भाइयों से संबंध अच्छे रहेंगे । बहनों के साथ संबंध में थोड़ी कड़वाहट आ सकती है ।  इस सप्ताह आपके लिए 19 सितंबर एवं 20 सितंबर के दोपहर तक तथा 25 सितंबर लाभदायक हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार को शनि मंदिर में जाकर पूजन अर्चन करें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके स्वभाव में क्रोध की मात्रा बढ़ सकती है । कृपया अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें। धन थोड़ी मात्रा में आ सकता है । संतान से आपको सहयोग प्राप्त होगा । शत्रुओं का पतन होगा । 20 के दोपहर के बाद से 21 और 22 तारीख को आपके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य सफल होंगे । 19 तारीख और 20 तारीख के दोपहर तक का समय आपके लिए सावधान रहने का है । अगर आप सावधान नहीं रहेंगे तो कोई गलत निर्णय ले सकते हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर में धन आने का उत्तम योग है । आपके स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी हो सकती है । आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । भाग्य के स्थान पर परिश्रम से आपके कार्य संपन्न होंगे । कार्यालय में आपको  थोड़ा कम सहयोग प्राप्त होगा । इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 सितंबर सफलता दायक हैं । 20 सितंबर के दोपहर के बाद से 21 और 22 सितंबर को आपको सावधान होकर कोई कार्य करना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का अभिषेक करें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में उन्नति होगी । आपको अपनी संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो सकेगा । भाग्य के स्थान पर परिश्रम से आपके कार्य संपन्न होंगे । आपके और आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी-थोड़ी खराबी आ सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 19 एवं 20 सितंबर के दोपहर तक का समय तथा 25 सितंबर का समय उत्तम फलदायक है । 23 और 24 सितंबर को आपको कम कार्यों में सफलता प्राप्त होगी । इस सप्ताह  आपको चाहिए कि आप गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में सफलता मिलेगी । सामान्य धन ही प्राप्त होगा । सुख में कमी आएगी । दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें । आपका या आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य खराब हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 20 की दोपहर के बाद से 21 और 22 तारीख हितवर्धक हैं । 25 सितंबर को आप को सावधान रहने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें ।  सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर में धन आने का अच्छा योग है । कार्यालय में आपको अपने सहयोगियों से कम सहयोग प्राप्त होगा । आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य खराब हो सकता है ।  आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 अगस्त मंगल दायक है । 19 सितंबर और 20 सितंबर के दोपहर तक का समय सावधान रहने योग्य है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन गौ माता को घर की बनी पहली रोटी खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपको अपने कार्यालय में अधिकारियों से उत्तम सहयोग प्राप्त होगा । आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा । भाग्य सामान्य  है । शत्रु पराजित होंगे ।सुख में वृद्धि हो सकती है । यह सप्ताह आपके लिए 19 तथा 20 की दोपहर तक और 25 सितंबर लाभप्रद है । 20 की दोपहर के बाद से 21 और 22 तारीख को आप कोई भी कार्य पूरी सावधानी से ही करें । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शुक्रवार को मंदिर में जाकर किसी ब्राह्मण को सफेद वस्त्र का दान दें । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा ।  संतान से आपको सहयोग प्राप्त नहीं होगा। । धन आने का योग है ।। भाइयों से स्नेह बढ़ेगा । इस सप्ताह आपके लिए 20 की दोपहर के बाद से 21 और 22 तारीख सितंबर शुभ और लाभदायक है   । 19 ,20 की दोपहर तक, 23 और 24 सितंबर को आप को कम कार्यों में सफलता प्राप्त होगी ।  अतः सावधान रहें। । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शिव जी का अभिषेक करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है धन आएगा कार्यालय में आपको सफलताएं प्राप्त होगी इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 सितंबर हितवर्धक है । 20 की दोपहर के बाद से 21 और 22 तारीख तथा 25 तारीख को आप को सावधान रहने की आवश्यकता है । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप सोमवार को विशेष रूप से तथा  प्रतिदिन भगवान शिव का अभिषेक करें । सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है ।

मीन राशि

इस सप्ताह आपके  जीवन साथी का समय उत्तम है । उनको कई कार्यों में सफलता मिल सकती है । आपका अपने भाइयों बहनों के साथ तनाव हो सकता है । शत्रुओं की संख्या बढ़ेगी। ।  इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 की दोपहर तक तथा 25 तारीख उत्तम है ।  23 और 24 सितंबर को आपको कम सफलताएं प्राप्त होगी । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

माँ शारदा से प्रार्थना है कि आप सभी को सुख समृद्धि और वैभव प्राप्त हो। जय माँ शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 120 – बाळ गीत – अंगत पंगत  ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 120 – बाळ गीत – अंगत पंगत 

अंगत पंगत छान छान

झाडाखाली वाढले पान ।। धृ।।

वारा आलाय गार गार ।

जेवणाची ती रंगत फार।

गप्पागोष्टी धमाल छान ।।१।।

पिठले भाकरी गरम-गरम ।

दशमी पोळी नरम-गरम ।

घट्ट दह्याची रंगत छान ।।२।।

आंबट वरण लज्जतदार ।

लोणचे चटणी चटकदार ।

पुलाव पाहून भरले मन।।३।।

पापड भजी कुरुम कुरुम

साजूक तुप साखर वरून।

कोशिंबीर ने सजले पान।।४।।

गप्पागोष्टी केल्या खूप ।

ताईने मधून आणले सूप।

वरून सोडली मलाई छान।।५।।

जेवणासोबत खेळले खेळ ।

कळेना कसा गेला वेळ ।

पोटा सोबत भरले मन ।६।।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – पुस्तकांवर बोलू काही ☆ पुण्यभूमी नृसिंहवाडी ☆ परिचय -श्री राजीव गजानन पुजारी ☆

श्री राजीव गजानन पुजारी

? पुस्तकावर बोलू काही?

☆ पुण्यभूमी नृसिंहवाडी ☆ परिचय – श्री राजीव ग पुजारी 

पुस्तकाचे नाव :- पुण्यभूमी नृसिंहवाडी 

लेखक:- डॉ. बाळकृष्ण महादेव जमदग्नी व डॉ. सौ. मृणालिनी बाळकृष्ण जमदग्नी

प्रकाशक : श्री वामनराज प्रकाशन 

पृष्ठसंख्या : ८१६ 

किंमत : रु. ७०० /- 

मागील पंधरा दिवसांत बाळकृष्ण महादेव जमदग्नी व त्यांच्या सुविद्य पत्नी  डॉ. सौ. मृणालिनी बाळकृष्ण जमदग्नी लिखित ” पुण्यभूमी नृसिंहवाडी “ हे पुस्तक वाचले. खरोखर हे पुस्तक म्हणजे तीर्थक्षेत्र नृसिंहवाडीचा विश्वकोश किंवा ज्ञानकोषच आहे. महाभारताविषयी असे म्हंटले जाते की, महाभारतात जे आहे ते जगात सर्वत्र आहे व महाभारतात जे नाही ते जगात कोठेही असू शकत नाही. तद्वतच मी असे म्हणेन कि, नृसिंहवाडीविषयी जी माहिती या पुस्तकात आहे ती इतरत्र कोठेही असू शकणार नाही.

पहिल्यांदा लक्ष वेधून घेते ते पुस्तकाचे मुखपृष्ठ. श्री नृसिंहसरस्वती स्वामीमहाराजांच्या गंधलिंपित मनोहर पादुका व पार्श्वभूमीवर श्री नृसिंहसरस्वती स्वामीमहाराज आशिर्वचन मुद्रेत विराजमान झालेले– बघूनच मन प्रसन्न होते. नंतर लक्ष जाते ते पुस्तकाची बांधणी व मुद्रणाकडे. हे पुस्तक हार्ड बाउंड प्रकारात उपलब्ध असून मुद्रणाची गुणवत्ता उच्चदर्जाची आहे. संपूर्ण पुस्तकात एकही मुद्रणदोष आढळून येत नाही. याचे श्रेय श्रीवामनराज प्रकाशनाला नक्कीच जाते. पुस्तकामध्ये प्रसंगानुरूप कृष्णधवल छायाचित्रे आहेतच, तसेच पुस्तकाच्या शेवटी श्रीक्षेत्र नृसिंहवाडीशी निगडीत एकेचाळीस रंगीत चित्रांचा संच आहे. लेखकद्वयीने संदर्भासाठी वापरलेल्या ग्रंथांची सूची – जी विभाग सातवा : परिशिष्ठ्ये म्हणून अंतर्भूत आहे – त्यावर फक्त नजर टाकली तरी ऊर दडपून जातो, व लेखकांनी घेतलेल्या मेहनतीची कल्पना येते. 

डॉ. बाळकृष्ण जमदग्नी हे मूळ वाडीचेच. ते कृषीतज्ञ असून, कृषी या विषयात त्यांनी डॉक्टरेट केली आहे. त्यांच्या पत्नी डॉ. सौ. मृणालिनी या देखील हिंदी विषयात डॉक्टरेट आहेत. दोघांचाही अध्यात्माकडे अत्याधिक ओढा असल्यामुळेच श्री दत्तगुरूंनी त्यांच्याहातून हे कार्य करवून घेतले असे म्हणावे लागेल.

पुस्तक एकूण सहा विभागांत आहे. पहिल्या विभागात दोन भाग आहेत. पहिल्या भागात वाडीमध्ये दैनंदिन केल्या जाणाऱ्या नित्य सेवेची विस्तृत माहिती आहे. अगदी पहाटे म्हणजे साडेतीन चार वाजता ‘दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा’ असा मंत्रजागर करत सर्व गल्ल्यांमधून फेरी काढणारे दत्तभक्त (वाडीमध्ये याला ‘दिगंबरा आला’ असे म्हणतात), पहाटेची काकड आरती, पंचामृत अभिषेक पूजा, महन्मंगल महापूजा, पवमान पंचसुक्त, सायंकालीन धुपारती, रम्य पालखी सोहळा, भक्तीसुमनांची शेजारती आदींची अगदी सविस्तर माहिती आहे.

पहिल्या विभागातील दुसऱ्या भागात वाडीमध्ये साजऱ्या केल्या जाणाऱ्या संवत्सर सोहळ्यांची विस्तृत माहिती आहे. प्रत्येक महिन्यात वाडीत वेगवेगळी अनुष्ठाने व सोहळे साजरे केले जातात. जसे की, चैत्रात संततधार अनुष्ठान व प. प. श्री. नारायणस्वामी पुण्यतिथी उत्सव, वैशाखात भगवान श्री नृसिंह जयंती व प. प. श्री. गोपाळ स्वामी महाराज पुण्यतिथी, जेष्ठ महिन्यात प. पू . श्री. रामचंद्र योगी महाराजांचे पुण्यस्मरण, आषाढ महिन्यात प. प. श्री. टेंबे स्वामी महाराजांच्या पुण्यतिथी उत्सवातील समाराधना, श्रावण महिन्यातील दक्षिणद्वार स्नान, भाद्रपद महिन्यातील भगवान श्री. श्रीपाद श्रीवल्लभ स्वामी महाराज जयंती, अश्विन महिन्यातील दसरा व श्री गुरुद्वादशी, कार्तिक महिन्यातील तुलसीविवाह व त्रिपुरारी पौर्णिमा, मार्गशीर्ष महिन्यातील भगवान श्री दत्तात्रेय जयंती, पौष महिन्यातील भगवान श्रीमन् नृसिंहसरस्वती स्वामी महाराज जयंती, माघ महिन्यातील कृष्णावेणी उत्सव व श्री गुरुप्रतिपदा आणि फाल्गुन महिन्यातील रंगपंचमी आणि प. प. श्री. काशीकर स्वामी पुण्यतिथी. ही सर्व माहिती इतकी काटेकोर व भावगम्य आहे की  जणू आपण दैनंदिन सेवा व संवत्सर सोहळ्यांसाठी वाडीतच उपस्थित आहोत असे वाटते.

पुस्तकाच्या दुसऱ्या विभागात वाडीतील आराध्य देवतांविषयीची माहिती आहे. यामध्ये अत्रिनंदन दत्तात्रेय, दत्त महाराजांचे प्रथम अवतार श्री श्रीपाद श्रीवल्लभ व दुसरे अवतार श्री नृसिंहसरस्वती यांचेविषयी अतिशय सविस्तरपणे लिहिले आहे. दत्त संप्रदायामध्ये ज्याला पाचवा वेद म्हंटले जाते, त्या गुरुचरित्रातील अनेक कथा व घटनांचा यात समावेश आहे.

पुस्तकाच्या तिसऱ्या विभागात गुरुचरित्रात वर्णिलेल्या घटनांपैकी ज्या घटना नृसिंहवाडी परिसरात घडल्या त्यांच्या कथा आहेत. यात श्रीक्षेत्र औदुंबर येथे घडलेली मूढ द्विजपुत्र उद्धाराची कथा, श्री क्षेत्र अमरापूर ( सध्याचे औरवाड ) येथे घडलेली घेवड्यांच्या शेंगांची कथा, गंगानुज नावाड्यावर झालेला कृपानुग्रह व त्याला घडवलेली त्रिस्थळी यात्रा, शिरोळचे दत्त भोजनपात्र, शिरोळच्या गंगाधर ब्राह्मणाचे मृत बालक सजीव करणे आदि कथा आहेत.

पुस्तकाच्या चौथ्या विभागात नृसिंहवाडीक्षेत्री जे महामहिम होऊन गेले त्यांचेविषयी अत्यंत सविस्तर माहिती दिली आहे. यामध्ये श्री रामचंद्र योगी महाराज, सद्गुरू श्री ब्रह्मानंद यतिराज, श्रीमद् गोपाळस्वामी महाराज, प. प. श्रीमन्नारायण स्वामी महाराज, श्री कृष्णानंद स्वामी महाराज उर्फ श्री काशीकर स्वामी, श्रीमद् मौनी स्वामी महाराज, श्री शांताश्रम स्वामी महाराज, प. प. श्री. वासुदेवानंद सरस्वती (टेंबे ) स्वामी महाराज, प. प. श्री. नृसिंह सरस्वती (दीक्षित ) स्वामी महाराज, सद्गुरू श्री सीताराम महाराज टेंबे, श्री शांतानंद स्वामी महाराज, प. पू. सद्गुरू योगीराज श्री वामनराव गुळवणी महाराज, श्री शंकर स्वामी महाराज (पातकर ) आदि महापुरुषांसंबंधी साद्यंत माहिती आहे. वरील सर्व महापुरुषांना वाडीमध्ये ‘सनकादिक’ म्हणतात व त्यांची पूजाअर्चा श्रीमन्नृसिंहसरस्वती स्वामींच्या पादुकांच्या बरोबरीने होते; यावरून त्यांची अध्यात्मिक क्षेत्रातील थोरवी लक्षात यावी. वरील सर्व महापुरुषांविषयी लेखकांनी अगदी सविस्तर माहिती दिली आहे. म्हणजे त्यांचे मूळ गांव,त्यांची जन्मतारीख,त्यांचे पूर्वज, त्यांचे गोत्र, त्यांचे शिक्षण, त्यांचे गुरु, त्यांनी केलेली गुरुसेवा, त्यांनी केलेल्या यात्रा, त्यांना आलेली दैवी अनुभूती वगैरे. हे सर्व वाचून,  लेखकांनी ही माहिती गोळा करण्यासाठी किती कष्ट घेतले असतील याची जाणीव होते. आपण वाडीला गेल्यावर वरीलपैकी काही महात्म्यांच्या समाधी पाहतो व त्यांना सवयीने नमस्कार करतो. पण सदरचे पुस्तक वाचल्यावर त्या महात्म्यांची थोरवी कळते व आपण त्यांना आदरपूर्वक नमन करतो. यातच या पुस्तकाचे यश दडले आहे.

पुस्तकाच्या पाचव्या विभागात श्रीक्षेत्र नृसिंहवाडीतील विशेष कथा दिल्या आहेत. त्यात वाडीतील पुजारी घराण्याचे मूळपुरुष श्री. भैरंभट जेरे, दत्तभक्त रामभटांना मिळालेली सोन्याची लेखणी व श्रीमन्नारायण स्वामी महाराज यांच्या कृपेने ‘गुरुभक्त’ उपाधी प्राप्त झालेले श्री विठ्ठल ढोबळे यांच्या कथा आहेत. भैरंभट जेरे यांना श्रीमन्नृसिंहसरस्वती स्वामींच्या कृपेने उतारवयात पुत्ररत्न झाले, त्या मुलाला पुढे चार पुत्र झाले, त्या चार पुरुषांचे वंशज म्हणजेच वाडीतील पुजारी परिवार होय.

पुस्तकाच्या सहाव्या विभागात  नृसिंहवाडीचे क्षेत्रमहात्म्य वर्णिले आहे. त्यात श्रींच्या मनोहर पादुका व पादुकांवरील शुभचिन्हे, कृष्णवेणीमाता व दक्षिणद्वार सोहळा, कृष्णाघाट, ब्रह्मानंद मठ, पालखी सोहळा, सानकादिक महात्मे, औदुंबर वृक्ष, श्रीक्षेत्र नृसिंहवाडी येथील अष्टतीर्थे, कन्यागत महापर्वकाळ, ‘दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा ‘ या अष्टदशाक्षरी मंत्राचा गूढार्थ, ‘ घोरकष्टोध्दरण ‘ स्तोत्राचा सरलार्थ व भावार्थ, प. प. श्री वासुदेवानंद सरस्वती (टेंबे ) स्वामी महाराजांची ‘प्रश्नावली’ व नृसिंहवाडीतील पुजारीजनांची थोरवी आदि विषयांचा विस्तृत परिचय करून देण्यात आला आहे.

सर्वार्थाने हे पुस्तक अत्यंत वाचनीय व संग्राह्य आहे.

||श्री गुरुदेव दत्त||

परिचयकर्ता : श्री राजीव  गजानन पुजारी 

विश्रामबाग, सांगली

मो. 9527547629

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #150 ☆ वाणी माधुर्य व मर्यादा ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  वैश्विक महामारी और मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख वाणी माधुर्य व मर्यादा। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 150 ☆

☆ वाणी माधुर्य व मर्यादा 

‘सबद सहारे बोलिए/ सबद के हाथ न पाँव/ एक सबद औषधि करे/ एक सबद करे घाव,’  कबीर जी का यह दोहा वाणी माधुर्य व शब्दों की सार्थकता पर प्रकाश डालता है। शब्द ब्रह्म है, निराकार है; उसके हाथ-पाँव नहीं हैं। परंतु प्रेम व सहानुभूति के दो शब्द दोस्ती का विकल्प बन जाते हैं; हृदय की पीड़ा को हर लेने की क्षमता रखते हैं तथा संजीवनी का कार्य करते हैं। दूसरी ओर कटु वचन व समय की उपयुक्तता के विपरीत कहे गए कठोर शब्द महाभारत का कारण बन सकते हैं। इतिहास ग़वाह है कि द्रौपदी के शब्द ‘अंधे की औलाद अंधी’ सर्वनाश का कारण बने। यदि वाणी की मर्यादा का ख्याल रखा जाए, तो बड़े-बड़े युद्धों को भी टाला जा सकता है। अमर्यादित शब्द जहाँ रिश्तों में दरार  उत्पन्न कर सकते हैं; वहीं मन में मलाल उत्पन्न कर दुश्मन भी बना सकते हैं।

सो! वाणी का संयम व मर्यादा हर स्थिति में अपेक्षित है। इसलिए हमें बोलने से पहले शब्दों की सार्थकता व प्रभावोत्पादकता का पता कर लेना चाहिए। ‘जिभ्या जिन बस में करी, तिन बस कियो जहान/ नाहिं ते औगुन उपजे, कह सब संत सुजान’ के माध्यम से कबीरदास ने वाणी का महत्व दर्शाते हुये उन लोगों की सराहना करते हुए कहा है कि वे लोग विश्व को अपने वश में कर सकते हैं, अन्यथा उसके अंजाम से तो सब परिचित हैं। इसलिए ‘पहले तोल, फिर बोल’ की सीख दिन गयी है। सो! बोलने से पहले उसके परिणामों के बारे में अवश्य सोचें तथा स्वयं को उस पर पलड़े में रख कर अवश्य देखें कि यदि वे शब्द आपके लिए कहे जाते, तो आपको कैसा लगता? आपके हृदय की प्रतिक्रिया क्या होती? हमें किसी भी क्षेत्र में सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में अमर्यादित शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इससे न केवल लोकतंत्र की गरिमा का हनन होता है; सुनने वालों को भी मानसिक यंत्रणा से गुज़रना पड़ता  है। आजकल मीडिया जो चौथा स्तंभ कहा जाता है; अमर्यादित, असंयमित व अशोभनीय भाषा  का प्रयोग करता है। शायद! उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। इसलिए अधिकांश लोग टी• वी• पर परिचर्चा सुनना पसंद नहीं करते, क्योंकि उनका संवाद पलभर में विकराल, अमर्यादित व अशोभनीय रूप धारण कर लेता है।

‘रहिमन ऐसी बानी बोलिए, निर्मल करे सुभाय/  औरन को शीतल करे, ख़ुद भी शीतल हो जाए’ के माध्यम से रहीम जी ने मधुर वाणी बोलने का संदेश दिया है, क्योंकि इससे वक्ता व श्रोता दोनों का हृदय शीतल हो जाता है। परंतु यह एक तप है, कठिन साधना है। इसलिए कहा जाता है कि विद्वानों की सभा में यदि मूर्ख व्यक्ति शांत बैठा रहता है, तो वह बुद्धिमान समझा जाता है। परंतु जैसे ही वह अपने मुंह खोलता है, उसकी औक़ात सामने आ जाती है। मुझे स्मरण हो रही हैं यह पंक्तियां ‘मीठी वाणी बोलना, काम नहीं आसान/  जिसको आती यह कला, होता वही सुजान’ अर्थात् मधुर वाणी बोलना अत्यंत दुष्कर व टेढ़ी खीर है। परंतु जो यह कला सीख लेता है, बुद्धिमान कहलाता है तथा जीवन में कभी भी उसकी कभी पराजय नहीं होती। शायद! इसलिए मीडिया वाले व अहंवादी लोग अपनी जिह्ना पर अंकुश नहीं रख पाते। वे दूसरों को अपेक्षाकृत तुच्छ समझ उनके अस्तित्व को नकारते हैं और उन्हें खूब लताड़ते हैं, क्योंकि वे उसके दुष्परिणाम से अवगत नहीं होते।

अहं मानव का सबसे बड़ा शत्रु है और क्रोध का जनक है। उस स्थिति में उसकी सोचने-समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है। मानव अपना आपा खो बैठता है और अपरिहार्य स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, जो नासूर बन लम्बे समय तक रिसती रहती हैं। सच्ची बात यदि मधुर वाणी व मर्यादित शब्दावली में शांत भाव से कही जाती है, तो वह सम्मान का कारक बनती है, अन्यथा कलह व ईर्ष्या-द्वेष का कारण बन जाती है। यदि हम तुरंत प्रतिक्रिया न देकर थोड़ा समय मौन रहकर चिंतन-मनन करते हैं, तो विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न नहीं होती। ग़लत बोलने से तो मौन रहना बेहतर है। मौन को नवनिधि की संज्ञा से अभिहित किया गया है। इसलिए मानव को मौन रहकर ध्यान की प्रक्रिया से गुज़रना चाहिए, ताकि हमारे अंतर्मन की सुप्त शक्तियाँ जाग्रत हो सकें। 

जिस प्रकार गया वक्त लौटकर नहीं आता; मुख से नि:सृत कटु वचन भी लौट कर नहीं आते और वे दांपत्य जीवन व परिवार की खुशी में ग्रहण सम अशुभ कार्य करते हैं। आजकल तलाक़ों की बढ़ती संख्या, बड़ों के प्रति सम्मान भाव का अभाव, छोटों के प्रति स्नेह व प्यार-दुलार की कमी, बुज़ुर्गों की उपेक्षा व युवा पीढ़ी का ग़लत दिशा में पदार्पण– मानव को सोचने पर विवश करता है कि हमारा उच्छृंखल व असंतुलित व्यवहार ही पतन का मूल कारण है। हमारे देश में बचपन से लड़कियों को मर्यादा व संयम में रहने का पाठ पढ़ाया जाता है, जिसका संबंध केवल वाणी से नहीं है; आचरण से है। परंतु हम अभागे अपने बेटों को नैतिकता का यह पाठ नहीं पढ़ाते, जिसका भयावह परिणाम हम प्रतिदिन बढ़ते अपहरण, फ़िरौती, दुष्कर्म, हत्या आदि के बढ़ते हादसों के रूप में देख रहे हैं।  लॉकडाउन में पुरुष मानसिकता के अनुरूप घर की चारदीवारी में एक छत के नीचे रहना, पत्नी का घर के कामों में हाथ बंटाना, परिवाजनों से मान-मनुहार करना उसे रास नहीं आया, जो घरेलू हिंसा के साथ आत्महत्या के बढ़ते हादसों के रूप में दृष्टिगोचर है। सो! जब तक हम बेटे-बेटी को समान समझ उन्हें शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध नहीं करवाएंगे; तब तक समन्वय, सामंजस्य व समरसता की संभावना की कल्पना बेमानी है। युवा पीढ़ी को संवेदनशील व सुसंस्कृत बनाने के लिए हमें उन्हें अपनी संस्कृति का दिग्दर्शन कराना होगा, ताकि उनका उनका संवेदनशीलता व शालीनता से जुड़ाव बना रहे।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #150 ☆ शिक्षित होती बेटियाँ ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना “शिक्षित होती बेटियाँ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 150 – साहित्य निकुंज ☆

👮‍♀️ शिक्षित होती बेटियाँ 👮‍♀️  

बेटी देखो पढ़ रहीं,

 पाती हैं वह ज्ञान।

पढ़ लिखकर वे बन रहीं,

एक नेक इंसान।।

 

बस्ता भारी टाँगकर,

जाती शाला रोज।

खेल खेल में सीखती,

जीवन की हर खोज।।

 

शिक्षित होती बेटियाँ,

हुआ शिक्षित समाज।

घर आंगन को देखती,

बिटिया घर की लाज।।

 

शिक्षित बेटी आजकल,

दे रही संस्कार।।

 उसके अपने ज्ञान से,

शिक्षित है परिवार।।

 

शिक्षा सबके जीवन में,

लाती अमृत विचार।।

बेटी की शिक्षा उसके,

जीवन का उपहार।।

 

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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