ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (22 अगस्त से 28 अगस्त 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (22 अगस्त से 28 अगस्त 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

संस्कृत के 1 श्लोक का अर्थ है जैसे रथ (गाड़ी) एक पहिये से नहीं चल सकता, वैसे ही बिना भाग्य के  केवल परिश्रम से फल प्राप्त नहीं होता है। आप सभी को पंडित अनिल पाण्डेय का नमस्कार। आइए, हम सभी 22 अगस्त से 28 अगस्त 2022 अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी से भाद्रपद शुक्ल पक्ष की परिवा तक के सप्ताह के साप्ताहिक भाग्य फल के बारे में राशि वार चर्चा करते हैं।

इस सप्ताह सूर्य सिंह राशि में , मंगल वृष राशि में, बुध कन्या राशि में, शुक्र कर्क राशि में रहेंगे। गुरु शनि,राहु और केतु वक्री रहेंगे । जिनमें से गुरु मीन राशि में  रहेगा शनि मकर राशि में राहु मेष राशि में और केतु तुला राशि में  रहेंगे। आइए अब हम साप्ताहिक राशिफल  बताते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके संतान को उन्नति प्राप्त होगी । आपकी संतान आपके कार्यों में उत्तम रुप से सहयोग  करेगी । शत्रु शांत रहेंगे । भाग्य सामान्य है । आपके शरीर से किसी कारणवश खून निकल सकता है । आपका स्वास्थ्य खराब हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 24 25 और 26 अगस्त अत्यंत लाभकारी है । इन तारीखों में आप द्वारा किए गए समस्त कार्य सफल होंगे । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए अपने भोजन में से एक रोटी निकालकर बाद में उस रोटी को इसी काले कुत्ते को खिलाएं । यह कार्य आपको पूरे वर्ष भर करना है सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

आपके जीवन साथी को का स्वास्थ्य ठीक रहना चाहिए । जनमानस के बीच में आप की छवि में निखार आएगा । माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा । आपके संतान को उन्नति मिलेगी । धन हानि हो सकती है । बहनों के साथ टकराव हो सकता है । भाइयों से भी संबंध खराब हो सकते हैं । इस सप्ताह आपके लिए 26 ,27 और 28 अगस्त किसी भी कार्य को करने के लिए फलदायक समय है । इन तारीखों में किये जाने वाले सभी कार्यों में आप सफल रहेंगे । आपको चाहिए कि आप  शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनिदेव की पूजा अर्चना करें । सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके पास गलत रास्ते से धन आने का योग है । भाइयों से तकरार हो सकती है । माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । पिताजी के पेट में पीड़ा हो सकती है । व्यवसाय ठीक चलेगा । सुख के साधन आएंगे।  जनता में आपकी छवि में निखार आएगा । क्रोध की मात्रा बढ़ सकती है । ‍इस सप्ताह आपके लिए 22 और 23 तारीख उत्तम है आपको चाहिए क्या आप इस सप्ताह दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका अपने भाई बहनों से संबंध उत्तम रहेगा । थोड़ी बहुत मात्रा में धन आ सकता है । आपके स्वास्थ्य में थोड़ी गिरावट हो सकती है । आपके जीवनसाथी के दांत गर्दन या कमर में दर्द हो सकता है । नौकरी में परेशानी आ सकती है । इस सप्ताह आपके लिए  24, 25 और 26 तारीख उत्तम है ।  22 और 23 को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए । आपको चाहिए कि आपनी परेशानियों को कम करने के लिए इस सप्ताह शुक्रवार को मंदिर में जाकर पूजन करने के उपरांत भिखारियों के बीच में चावल का दान दें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके लग्न में सूर्य देव विराजमान है । जिसके कारण आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा परंतु क्रोध की मात्रा बढ़ सकती है । इस सप्ताह आपको भाग्य के स्थान पर अपने परिश्रम पर  विश्वास करना चाहिए । आपको भाग्य से कोई लाभ नहीं होगा ।  धन आने का अच्छा योग है । इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 तारीख कार्यों को करने हेतु उपयुक्त है । 24  25 और 26 को आप कोई भी कार्य पूर्ण सावधानी के साथ ही करें । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप राहु की शांति हेतु उपाय करवाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर में उच्च के बुद्ध लग्न में विराजमान है । जिसके कारण आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा । धन आने की पूरी संभावना है । व्यापार में कुछ बाधा आ सकती है । न्यायालय के कार्य में आपको सफलता मिलेगी। इस सप्ताह आपको 22 और 23 तारीख को कार्यों में सफलता प्राप्त हो सकती है । 27 और 28 तारीख को आपको सचेत रहकर कार्य करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने भाग्य को ठीक करने के लिए और बच्चों के उन्नति लिए भगवान शिव का अभिषेक करवाएं । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है ।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का योग है । आपके या आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है । आपके माताजी और पिताजी को कष्ट हो सकता है । आपके पेट में पीड़ा हो सकती है । इस सप्ताह आपके लिए 24 25 और 26 तारीख उपयोगी एवं फलदाई है ।  सभी कष्टों को दूर करने के लिए आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन  गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ पूरे विधि विधान के साथ करें या किसी विद्वान ब्राह्मण से करवाएं। सप्ताह का शुभ दिन  शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपको  शासकीय कार्यों में सफलताएं प्राप्त होंगी । आप के कार्यालय में आपकी इज्जत बढ़ेगी । धन आने का योग है । आपके जीवनसाथी को कष्ट हो सकता है । आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । आपका अपनी बहनों से संबंध खराब हो सकता है । आपके संतान को कष्ट होने की संभावना है । इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 तारीख  अच्छे एवं लाभ कारक है । 22 और 23 अगस्त को आपको कार्यों को करने में सावधान रहना चाहिए । कष्टों को दूर करने के लिए आपको इस सप्ताह रुद्राष्टक का पाठ करना चाहिए और शिवजी पर अभिषेक करना चाहिए । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में उन्नति होगी । धन लाभ भी हो सकता है । आपके संतान को कष्ट हो सकता है । भाग्य आपका आपकी मदद करेगा । आपके सभी शत्रु आपके प्रयासों से समाप्त हो सकते हैं । आपके माताजी को कष्ट हो सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 22 और 23 अगस्त उत्कृष्ट और लाभदायक है । इन तारीखों में आप जो भी कार्य करेंगे उनमें आपको सफलता मिलने की उम्मीद 90% है ।  24 ,25 और 26 तारीख को आपको कुछ कार्यों में ही सफलता मिल सकती है । इन तारीखों में आपके कई कार्य असफल हो सकते हैं ।  आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह राम रक्षा स्त्रोत का पूरे विधि विधान के साथ पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

मकर राशि

मकर राशि के जातकों का भाग्य  अद्भुत रूप से उनके उनकी मदद करेगा। उनका अपने भाइयों से विवाद हो सकता है । संतान को कष्ट हो सकता है । संतान सहयोग नहीं करेगी । छोटी मोटी दुर्घटना का योग है । आपके स्वास्थ्य में खराबी आ सकती है । आपके जीवन साथी को भी कष्ट होने की संभावना है । इस सप्ताह आपके लिए 24 ,25 और 26 तारीख फलदाई है । इन तारीखों में आप द्वारा किए गए सभी कार्य सफल होंगे ।   सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप  प्रतिदिन अपने घर की बनी पहली रोटी गौ माता को खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार और शुक्रवार है ।

कुंभ राशि

आपके जीवनसाथी के लिए यह सप्ताह बहुत अच्छा है । आपका स्वास्थ्य थोड़ा कम ठीक रहेगा ।भाइयों से क्लेश होगा । जनता में आप की छवि को धक्का लगेगा शासकीय कार्यालयों में आपके कार्य संपन्न होंगे भाग्य आपकी मदद करेगा इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 अगस्त महत्वपूर्ण हैं इन तिथियों में आप जो भी कार्य करेंगे उनमें आपको सफल होने की उम्मीद बहुत ज्यादा है 24 25 और 26 अगस्त को आपको कोई भी कार्य सावधानीपूर्वक  करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शुक्रवार के दिन मंदिर में जाकर  किसी ब्राह्मण को सफेद वस्त्रों का दान दें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

मीन राशि के जीवनसाथी के लिए यह सप्ताह अति उत्तम रहेगा। अगर आप ठीक से प्रयास करेंगे तो आपके सभी शत्रु आपके सामने नतमस्तक हो सकते हैं  । पैसे आने में कुछ बाधा रहेगी । आपका आपके भाई बहनों से संबंध में दूरी बढ़ेगी । कुछ विवाद भी हो सकता है । आपको अपने संतान से भी पर्याप्त सुख प्राप्त नहीं हो पाएगा । इस सप्ताह आपके लिए 22 और 23 अगस्त किसी भी कार्य को करने हेतु उपयुक्त है । 27 और 28 अगस्त को आपको कोई भी कार्य बहुत सावधानीपूर्वक करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार को  किसी पीपल के पेड़ के नीचे  दीप को प्रज्वलित कर पीपल की परिक्रमा 7 बार करनी है । इसके उपरांत शनि मंदिर में जाकर शनिदेव की विधिवत पूजा करनी चाहिए। यह कार्य आपको दिसंबर 2022 तक करना चाहिए। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

प्रकृति को विकास के कार्यों हेतु लगातार नष्ट किया जा रहा है जिसके कारण असमय बाढ़ का आना बारिश तूफान आदि विपदाएं हो रही है । हमें चाहिए कि हम अधिकतम वृक्ष लगाएं और उनकी सुरक्षा करें।

मां शारदा से मेरी प्रार्थना है कि आप सभी स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 116 – दिलदार मित्र ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 116 – दिलदार मित्र ☆

दिलदार मित्र माझा

लाख काढतो रे खोडी।

तुझ्या छेडण्याने गड्या

वाढे जीवनाची गोडी।

 

चिमणीच्या दाताची ती

अशी अवीट माधुरी ।

तिच्यापुढे फिकी होती

पंच पक्वान्नेही सारी।

 

तुझा प्रेमळ कटाक्ष

देई लढण्यास धीर।

कौतुकाच्या थापेला रे

मन आजही अधीर।

 

शब्दाविना कळे तुला

व्यथा माझिया मनाची।

हृदयीच्या बंधानाला

भाषा लागेना जनाची।

 

जीवनाच्या वाळवंटी

तुझ्या मैत्रीचा ओलावा।

लाख मोल सोडूनिया

शब्द सख्याचा तोलावा।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – पुस्तकांवर बोलू काही ☆ ‘शिदोरी’ – सौ.उज्वला सहस्त्रबुद्धे ☆ परिचय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? पुस्तकावर बोलू काही ?

 ☆ ‘शिदोरी’ – सौ.उज्वला सहस्त्रबुद्धे ☆ परिचय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ 

पुस्तकाचे नाव :शिदोरी

लेखिका: सौ.उज्वला सहस्त्रबुद्धे

किंमत रू.240/-

संपर्क:9423029985

☆ शिदोरी – भावनांच्या मंजि-यांनी बहरलेली काव्य वृंदा – सुहास रघुनाथ पंडित ☆

सौ.उज्वला सहस्त्रबुद्धे यांचे ‘शिदोरी’ हे पुस्तक नुकतेच प्रकाशित झाले आहे. या पुस्तकाचे वैशिष्ट्य म्हणजे यात बत्तीस ललित लेख व पन्नास कविता आहेत. पहिला विभाग हा लेखांचा आहे व दुसरा विभाग हा कवितांचा काव्य मंजिरी या नावाने प्रसिद्ध करण्यात आला आहे. आज आपण काव्य मंजिरी तील कवितां विषयी जाणून घेऊ.

काव्य-मंजिरी हा  काव्यसंग्रह येण्यापूर्वी त्यांनी गद्य व पद्य लेखन केलेले आहे. त्यामुळे लेखनकला ही काही त्यांच्यासाठी नवीन नाही. सर्वांत महत्त्वाची गोष्ट ही आहे की त्या शब्दांच्या माध्यमातून व्यक्त होऊ इच्छितात. त्यामुळे मनात जसे तरंग उठतील तसे त्यांना शब्दरूप देऊन त्या लेखन करू शकतात. मनाची संवेदनशीलता त्यांना काव्य लिहिण्यास उद्युक्त करते. हे मन एके ठिकाणी स्थिर न राहता सर्वत्र भिरभिरत असते आणि सारे काही टिपून घेते.  मग त्यांच्या कवितेतून निसर्ग फुलतो, कधी भक्तीचे दर्शन होते,कधी कुटुंबवत्सलता दिसून येते, कधी जीवनविषयक दृष्टिकोन व्यक्त करते, कधी चिंतनशील मनाला मोकळे करते, तर कधी वर्तमानाची दखल घेते.एखाद्या कॅनव्हासवर वेगवेगळे रंग उधळावेत आणि त्याच्या मिश्रणातून एक आकर्षक कलाकृती तयार व्हावी त्याप्रमाणेच या काव्य तुलसीच्या शब्द मंजि-या फुलून आल्या आहेत.

या काव्यसंग्रहात आपल्याला विविध विषयांवरील कविता वाचायला मिळतात. देशभक्ती बरोबरच ईश्वरावरील श्रद्धाही दिसून येते. स्वातंत्र्याच्या अमृतमहोत्सवी वर्षात लिहीलेली ‘स्वातंत्र्यदिनी स्मरण’ ही कविता किंवा तिरंगा, स्व. सावरकर या कविता मनातील देशप्रेमाची साक्ष देतात. तर गणपती, विठूमाऊली यांच्याबरोबरच सांगलीजवळील बागेतील गणपती मंदिराचे त्यांनी केलेले वर्णन डोळ्यासमोर चित्र उभे करणारे आहे. ‘कृष्ण वेडी’ ही कविता तर भक्तीमय प्रेमकाव्याचा सुंदर नमुनाच आहे.  

वर्तमानात घडणा-या घटनांची नोंदही त्यांनी घेतली आहे. कोरोनाग्रस्त काळामध्ये सहन कराव्या लागणा-या परिस्थितीचे, समस्यांचे यथार्थ वर्णन करून त्यातून बाहेर पडण्याचा आशावादही त्या व्यक्त करतात.

सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे

कवयित्री या जीवनाविषयी आशावादीच आहेत. मनावरची उदासीनतेची काजळी निघून जाईल असा विश्वास त्यांना वाटतो. उगवतीच्या सूर्याकडे पाहून, ठप्प झालेल्या समाजजीवनाला संयम सोडू नकोस असा धीर त्या देतात. श्रावणाची चाहूल लागताच त्यांना खात्री वाटते की ‘एक दिवस नक्की येईल, पूर्ववत होता तसा’. मृत्यूच्या छायेखाली गुदमरणारा श्रावण अनुभवताना त्यांना बालकवींचा श्रावणही आठवतो हे त्यांच्या जीवनावरील श्रद्धेचे प्रतिक आहे.

कवयित्रीच्या हातून स्त्रीसुलभ कुटुंबवत्सलता स्त्रवली नाही तरच नवल! नात्यांच्या रेशीमधाग्यात शब्द गुंफून सजलेल्या त्यांच्या कविता आजी होण्याचा आनंद व्यक्त करतात, आजी आणि नात यांच्या नात्यातील भावविश्व दाखवतात आणि नव्या पिढीबरोबर जुळवून घेण्याची तयारीही दाखवतात. मग ही कविता तीन पिढ्यांची होऊन जाते.

जीवन विषयक भाष्य करणा-या त्यांच्या कविताही वाचनीय आहेत. मनाच्या भोव-याला दैवाची गती मिळत असते. त्यामुळे जगत असताना पराधिनता ही असतेच असे सुचवणारी ‘भोवरा’ कविता असो किंवा ‘माती असशी, मातीत मिसळशी’ या उक्तीची आठवण करून देणारी ‘आयुष्याची उतरंड’ ही कविता असो, जीवनावर केलेले भाष्य हे सात्विक आस्तिकतेतूनच आले आहे हे जाणवते. ‘पिंपळ’ या कवितेतही मनाला दिलेली पिंपळाची उपमा किंवा आठवणींची घरटी या कल्पना नाविन्यपूर्ण वाटतात. याच कवितेतील

आसक्तीची मुळं इतकी

घट्ट रूजली आहेत भूमीत

की त्यांना जाणीव नाहीये

अस्तित्व धोक्यात आल्याची

या काव्यपंक्तीतून मानवी मनाची नेमकी अवस्था त्यांनी सांगितली आहे. ‘भरजरी शालू’ या कवितेतून तर त्यांनी आयुष्याचा आलेखच मांडला आहे.

आत्ममग्नता,चिंतनशिलता हा तर कविचा उपजत गुणधर्म. याच चिंतनशिलतेतून, असं असलं तरी, मन क्षेत्र, विसाव्याचे क्षण, मन तळं यासारख्या कविता जन्माला आल्या आहेत.विचारांच्या मंडलात मती गुंग होत असताना नेमके शब्द सापडले की कविता कशी जन्माला येते हे ही त्यांनी ‘कवितेचा जन्म’ या कवितेतून सांगितले आहे.

रसिक मनाला खुणावणारा,चारी बाजूला पसरलेला निसर्ग कविमनाला स्वस्थ बसू देईल का? अनेक सुंदर निसर्ग कवितांची निर्मिती त्यांच्या हातून झाली आहे. केवळ निसर्ग वर्णन न करता त्यांनी काही ठिकाणी त्याचा संबंध मनाशी जोडला आहे. मनरूपी तुळशीला येणा-या विचाररूपी मंजि-या या त्यांच्या भावुक मनाचे प्रतिकच आहेत. ‘ॠतुंची फुलमाला’ ही एक नितांत सुंदर निसर्ग कविता आहे. निसर्गात बहरणारा प्रत्येक ऋतू मनही बहरवून टाकतो हे प्रसन्न मनाचे द्योतक आहे.एकीकडे सागराची साद ऐकताना त्याना समोर साहित्य सागरही दिसू लागतो. साहित्याच्या अथांगतेची जाण असणे म्हणजेच भविष्यकाळात या साहित्य सागरातील मोत्यांचा त्यांना शोध घ्यायचा आहे याची कल्पना येते. उनझळा, पावसास, रंगपंचमी या निसर्ग कविताही सुंदर दर्शन घडवतात. शब्दझरे या कवितेतून निसर्गातील सौंदर्य शब्दातून खुलवून शब्दांचे मोती बनवण्याचा त्यांचा प्रयत्न कौतुकास्पद वाटतो.

काव्याचा असा रसास्वाद घेताना, सौ. सहस्त्रबुद्धे यांच्याकडून खूप अपेक्षा आहेत. त्यांनी यापूर्वी कविता लेखन केले आहे. आता काव्यसंग्रह काढून पुढचे पाऊल टाकले आहे.संवेदनशीलता आणि भावनाशीलता याबरोबरच त्यांनी काव्याकडे अधिक अभ्यासू वृत्तीने पाहिल्यास त्यांच्याकडून वृत्तबद्ध कविताही लिहून होतील असा विश्वास वाटतो. विषयांची आणि काव्यप्रकारांची विविधता त्यांच्या काव्यलतेला बहर आणत आहे. यापुढील काव्यसंग्रहात त्यांनी नवीन वाटा धुंडाळल्या आहेत याचा अनुभव वाचकांना यावा अशी अपेक्षा व्यक्त करणे चुकीचे ठरणार नाही. त्यांच्या साहित्य प्रवासास शुभेच्छा!!.

© सुहास रघुनाथ पंडित

सांगली.

9421225491

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #146 ☆ मौन भी ख़लता है ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  वैश्विक महामारी और मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख मौन भी ख़लता है। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 146 ☆

☆ मौन भी ख़लता है

‘ज़रूरी नहीं कि कोई बात ही चुभे/ बात न होना भी बहुत चुभता है।’ यह हक़ीकत है आज के ज़माने की… आजकल हर इंसान एकांत की त्रासदी से जूझ रहा है। पति-पत्नी भले ही एक छत के नीचे रहते हैं, परंतु उनमें अजनबीपन का एहसास चरम सीमा पर व्याप्त है। सिंगल पेरेंट का प्रचलन बढ़ने के कारण बच्चे नैनी व घर की बाईयों की छत्रछाया में रहते हैं और वे मां की ममता और पिता की छत्रछाया से महरूम रहते हैं। आजकल घर में मातम-सा सन्नाटा पसरा रहता है। इसलिए अक्सर बात होती ही नहीं, फिर उसके चुभने का प्रश्न ही कहाँ पैदा होता है? 

संवादहीनता की स्थिति वास्तव में अत्यंत घातक होती है, जो संवेदनहीनता का प्रतिफलन है। आजकल पति-पत्नी लोगों की नज़रों में तो पति-पत्नी दिखाई पड़ते हैं,परंतु उनमें दांपत्य संबंध नदारद रहता है। अक्सर बच्चों के कारण वे एक घर की चारदीवारी में रहने को विवश होते हैं। इस प्रकार समाज में बढ़ती विसंगतियों को देख कर हृदय आहत हो उठता है। बच्चों से उनका बचपन छिन रहा है। वे नशे के शिकार हो रहे हैं और उनके कदम ग़लत दिशा की ओर अग्रसर हो रहे हैं। लूटपाट,अपहरण, फ़िरौती, हत्या आदि उनके मुख्य शौक हो गए हैं। इस कारण दुष्कर्म जैसे हादसे भी सामान्य हो गए हैं और इन जघन्य अपराधों में उनके आत्मजों की लिप्तता का पता उन्हें एक लंबे अंतराल के पश्चात् लगता है। ‘अब पछताए होत क्या,जब चिड़िया चुग गई खेत’ इस प्रकार उनके तथाकथित माता-पिता हाथ मलते रह जाते हैं।

‘रिश्ते कमज़ोर नहीं होने चाहिएं। यदि एक ख़ामोश हो तो दूसरे को आवाज़ देनी चाहिए।’ परंतु कहाँ हो पाता है वह सब? आजकल ‘तू नहीं और सही’ का प्रचलन बेतहाशा जारी है। अक्सर अपने ही,अपने बनकर,अपनों को छलते हैं। सो! कुंठा व तनाव का होना स्वाभाविक है। वैसे भी ‘आजकल पहाड़ियों से ख़ामोश हो गये हैं रिश्ते/ जब तक न पुकारो, आवाज़ ही नहीं आती।’ सो! आत्मकेंद्रितता के कारण पारस्परिक दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं। सब अपने-अपने अहं में लीन हैं, परंतु कोई भी पहल नहीं करना चाहता और उनके मध्य बढ़ती खाइयों को पाटना असंभव हो जाता है।

आजकल संयुक्त परिवार व्यवस्था के स्थान पर एकल परिवार व्यवस्था काबिज़ है। इसलिए रिश्ते एक निश्चित दायरे में सिमट कर रह गये हैं और कोई भी संबंध पावन नहीं रहा। नारी अस्मिता हर पल दाँव पर लगी रहती है। खून के रिश्तों पर विश्वास रहा नहीं। पिता-पुत्री व गुरु-शिष्य के संबंधों पर भी क़ालिख पुत गयी है। हर दिन औरत की अस्मत शतरंज की बिसात पर बिछाई जाती है तथा चंद सिक्कों के लिए चौराहे पर नीलाम की जाती है। माता-पिता भी उसका सौदा करने में कहां संकोच करते हैं? इन विषम परिस्थितियों में मानव-मूल्यों का पतन होना स्वाभाविक है।

शब्द-बाण अत्यंत घातक होते हैं। संस्कार व जीवन-मूल्य हमारी संस्कृति के परिचायक हैं। यदि आप मौन रहकर मात्र सहन करते हैं तो रामायण लिखी जाती है, वरना महाभारत का सृजन होता है।’अंधे का पुत्र अंधा’ महाभारत के युद्ध का कारण बना, जिसका अंत सर्वनाश में हुआ। कैकेयी के दशरथ से वचन मांगने पर राम, सीता व लक्ष्मण के वनवास- गमन के पश्चात् दशरथ को प्राण त्यागने पड़े… ऐसे असंख्य उदाहरण इतिहास में हैं। सो! मानव को सोच-समझ कर बोलना व वचन देना चाहिए। मानव को बोलने से पहले स्वयं को उस सांचे में रखकर देखना चाहिए, क्योंकि शब्दों के भी ज़ायके होते हैं। इसलिए सदैव चखकर बोलना कारग़र होता है, अन्यथा वे नासूर बन आजीवन रिसते रहते हैं और प्राण-घातक भी हो सकते हैं। अक्सर दिलों में पड़ी दरारें इतनी गहरी हो जाती हैं; जिन्हें पाटना असंभव हो जाता है। सो! मानव का मौन रहना भी उतना ही कचोटता है; जितना बिना सोचे-समझे अनर्गल वार्तालाप करना। आइए! विवाद को तज संवाद के माध्यम से जीवन में समन्वय,सामंजस्यता व समरसता लाएं ताकि जीवन में अलौकिक आनंद संचरित हो सके।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

16.7.22.

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 98 ☆ पुत्र का मान ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा ‘पुत्र का मान’।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस लघुकथा रचने  के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 98 ☆

☆ लघुकथा – पुत्र का मान ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

तुमने अपने भाई को फोन किया ? पिता ने बड़ी बेसब्री से बेटी से दिन में तीसरी बार पूछा।

नहीं, हम करेंगे भी नहीं। वह जब आता है गाली-गलौज करता है। आप दोनों को भी कितनी गालियां सुनाता था। दो समय का खाना भी बिना ताना मारे नहीं देता था आपको।हम यह सब सहन नहीं कर पा रहे थे इसलिए आप दोनों को अपने घर ले आए।

वह तो ठीक है बेटी! पर माँ का अंतिम समय है – पिता ने दुखी स्वर में कहा, उसे तो बताना ही पड़ेगा। क्या पता कब प्राण निकल जाए।

तब देखा जाएगा। जब हम अपनी ससुराल में रखकर आप दोनों की देखभाल कर सकते हैं तो आगे भी सब निभा सकते हैं। आप उसकी चिंता मत करिए।

पिता ने सोचा बेटी के घर में माँ चल बसीं तो बेटा समाज को क्या मुँह दिखाएगा। मौका पाकर बेटे को फोन कर बता दिया। बेटा – बहू घड़ियाली आँसू बहाते आए और बोले क्या हाल कर दिया मेरी माँ का। जी – जान से वर्षों माता- पिता की सेवा करनेवाली बहन पर माँ की ठीक से देखभाल ना करने के आरोप लगाए।

‘राम नाम सत्य है’ के उद्घोष के साथ माँ की अंतिम यात्रा बेटे के घर से निकल रही थी। अर्थी को कंधा देकर बेटे ने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया था और पिता ने पुत्र का मान बचाकर।

©डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #146 ☆ जन्माष्टमी विशेष – उपदेश दिया कृष्ण ने… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “जन्माष्टमी विशेष – उपदेश दिया कृष्ण ने…।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 146 – साहित्य निकुंज ☆

☆ जन्माष्टमी विशेष – उपदेश दिया कृष्ण ने

विनती मेरी प्रभु सुनो,

      दे दो मुझको ज्ञान।

युद्ध नहीं करना हमें,

       रख लो सबका मान।।

 

उपदेश दिया कृष्ण ने ,

   सुनते अर्जुन मान।

चलो सत्य की राह पर,

    अंतर्मन पहचान।।

 

 पीड़ा मन में हो रही,

      कैसे समझें आप।

युद्ध भूमि में सामने,

     हो जाए ना पाप।।

 

अपने जो अपने नहीं,

  करो नहीं तुम मोह।

सच को तुम पहचान लो,

    करना नहीं  विमोह।।

   

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #133 ☆ जन्माष्टमी विशेष … मोरे केशव कुँज बिहारी ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “जन्माष्टमी विशेष…मोरे केशव कुँज बिहारी। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 133 ☆

☆ जन्माष्टमी विशेष… मोरे केशव कुँज बिहारी ☆ श्री संतोष नेमा ☆

राधा के हैं श्याम मनोहर, मीरा के गिरधारी

ललना पुकारें माँ यसोदा, देवकि के अवतारी

नन्दबाबा के प्रभु गोपाला, सखियन कृष्ण मुरारी

ग्वाल-बाल सखा सब टेरें, कह कह कर बनवारी

वृजवासी कन्हैया कहते, कर चरणन बलिहारी

चरण शरण “संतोष” चाहता, रखियो लाज हमारी

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य #138 ☆ साद…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 138 – विजय साहित्य ?

☆ साद…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

हळू हलवा पाळणा

साद घाली गं बासरी

आली कृष्णाची अष्टमी

छबी कान्हाची हासरी….! १

 

साद घालते गोकुळ

आली यमुना डोळ्यात

सजे पाळणा कान्हाचा

कान्हा दंगला मेळ्यात…! २

 

साद घालितो हा  कान्हा

मित्रा ,  ये रे बा ,सुदामा…..

अंतर्यामी या  गोकुळी

सार मैत्रीचे सुदामा ……! ३

 

साद घालितो हा  कान्हा

गोकुळच्या गोपसुता

दहीहंडी,  दहीकाला

पाझरते शब्दसुता.. . . ! ४

 

साद घालितो हा  कान्हा

रंगे उत्सव  अंतरी

गोविंदाची दहिहंडी

मना मनाच्या संकरी. . . . ! ५

 

साद घालितो हा  कान्हा

वारा श्रावण दारात

आला आनंद पाहुणा

सण सौख्याचा श्वासात. . . . ! ६

 

 नाम राधा माधव  हे

ध्यास  अंतरी प्रेमाचा

भाव भक्तीच्या मिलनी

नाद संयमी स्नेहाचा. . . ! ७

 

साद घालितो हा  कान्हा

संकीर्तन हे प्रितीचे

मैत्र रूजले अंतरी

वेणू वादन भक्तीचे. . . . . ! ८

 

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

१८/८/२०२२

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ चं म त ग ! ☆ शालन, मालन आणि मोरू ! (भाग 1) ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? चं म त ग ! 😅

😂 शालन, मालन आणि मोरू ! (भाग 1) 😅 श्री प्रमोद वामन वर्तक ⭐

“पंत, पंत, पंत हे तुम्ही काय चालवलं आहे ?”

“अरे मोऱ्या मी काय चालवलं आहे ते नंतर, आधी मला सांग, किती दिवस झाले आपल्याला भेटून, काय पत्ता काय तुझा?”

“माझा पत्ता तोच आहे, जो गेली पाच वर्ष आहे तो. पंत तुम्हीच सासू सुनेच्या गोष्टीत रमला होतात गेले काही महिने, त्याच काय ?”

“ते जाऊदे रे ! पण आता इतक्या दिवसांनी आलास ते बरंच झाले.”

“का ?”

“हा प्रसाद घे, कालच श्रावणातली सत्यनारायणाची पूजा केली होती, घरातल्या घरात.”

“मी प्रसाद घ्यायला नंतर येतो पंत, माझी अजून अंघोळ व्हायची आहे.”

“मोऱ्या गाढवा, दुपारची जेवायची वेळ झाली तरी अजून तुझी अंघोळ नाही झाली ?”

“हॊ !”

“कारण कळेल मला मोऱ्या ?”

“तुम्ही !”

“अरे मी काय तुला रोज अंघोळ घालायला घरी येतो की काय तुझ्या ?आणि आज आलो नाही म्हणून अजून पारोसा राहिलायस ते ?”

“तसं नाही पंत, पण सकाळ पासून आम्ही नवरा बायको भांडतोय नुसते, त्यामुळे वेळच नाही मिळाला मला अंघोळीला.”

“अरे मोऱ्या पण तुमच्या भांडणाचं कारण काय ?”

“तुम्ही !”

“परत तुम्ही ! अरे काय सारखं तुम्ही, तुम्ही लावलंयस, नीट काय सविस्तर सांगशील की नाही ? आणि असा नुसती लुंगी लावून कसा आलास ? पावसामुळे कपडे वाळले नाही का तुझे ?”

“पंत इथे माझं लग्न मोडायची वेळ आल्ये आणि तुम्ही मला माझ्या कपड्याबद्दल विचारताय ?”

“बरं बाबा नाही विचारात, आता मला सांग तुझं लग्न मोडायची वेळ कुणी आणली बाबा तुझ्यावर ?”

“तुम्ही !”

“मी ? आणि ती कशी काय बुवा ?”

“सांगतो, आपल्या सोसायटीची पावसाळी पिकनिक जाणार आहे १२ सप्टेंबरला, बरोबर ?”

“हॊ, मीच सगळी व्यवस्था करतोय त्याची, जवळ जवळ ६० लोकांचे प्रत्येकी १,५००/- रुपये पण जमा झालेत ! आणि तुमच्या दोघांचे पैसे सुद्धा आलेत बरं का पावसाळी पिकनिकचे.”

” हॊ ना, मग हे सगळं शालनला सांगा !”

“मी कशाला सांगू सुनबाईला, तू नाही  सांगितलंस ?”

“सांगितलं ना ! पण तिचा विश्वास बसायला तयार नाही.”

“का ?”

“अहो आज सकाळी उठल्या उठल्या  मला म्हणते १,५००/- रुपये द्या आधी, मला सोसायटीच्या पावसाळी पिकनिकला जायचं आहे !”

“अरे पण तू तर सुनबाईचे आणि तुझे पिकनिकचे पैसे कधीच भरलेस, हे मी तुला आत्ताच सांगितलं ना ?”

“हॊ पंत, पण ती मला म्हणाली, तुम्ही माझे कुठे पैसे भरलेत पिकनिकचे ? तुम्ही तर त्या सटविला घेवून जाणार आहात ना पिकनिकला आणि लागली भांडायला.”

“आता ही सटवि कोण मोऱ्या ?”

“मालन !”

“कोण मालन ?”

“मला काय ठाऊक ?”

“अरे तू आत्ताच तीच नांव सांगितलंस ना मला मालन म्हणून ?”

“हॊ पंत, पण तुम्ही ते मला सांगितलंत म्हणून, मी ते नांव तुम्हाला सांगितलं.”

“असं कोड्यात बोलू नकोस मोऱ्या गधडया. मी कधी तुला सांगितलं मोऱ्या?”

“अहो पंत, तुम्ही या पावसाळी पिकनिकसाठी व्हाट्स अपचा एक वेगळा ग्रुप बनवला आहे आपल्या सोसायटीचा, हॊ की नाही ?”

“हॊ !”

“त्यात ज्या, ज्या लोकांनी पावसाळी पिकनिकसाठी पैसे दिलेत त्यांची नांव आणि इतर माहिती दिली आहे, बरोबर ?”

“अगदी बरोब्बर मोऱ्या !”

“इथंच लफड झालं पंत !”

“कसलं लफड ?”

“अहो पंत, तुम्ही माझ्या नावापुढे माझ्या बायकोच नांव म्हणून मालन असं टाकलं आहे, शालनच्या ऐवजी!”

“अच्छा, अच्छा असा घोळ झालाय तर !”

“पंत नुसता घोळ नाही, महाघोळ घातलाय तुम्ही. तुमच्या एका ‘शा’च्या ऐवजी ‘मा’मुळे ध चा मा करणाऱ्या आंनदीबाईच्या पंक्तीत तुम्ही जाऊन बसलात आणि मला आता ‘पंत मला वाचवा वाचवा’ असं गार्द्याऐवजी, शालन माझ्या मागे लाटण घेवून लागल्यामुळे ओरडायची वेळ आल्ये माझ्यावर, त्याच काय ?”

“त्यावर माझ्याकडे एक उपाय आहे मोऱ्या.”

“कोणता पंत ?”

“मी एक काम करतो, सुनबाईला फोन करून माझी चूक कबूल करतो आणि तू दुसरं एक काम कर.”

“काय ?”

“बायकांचा वीक पॉईंट काय सांग बघू.”

“नवीन साडी खरेदी, दुसरं काय.”

“बरोब्बर, म्हणून तू माझ्या चुकीमुळे तुला झालेला त्रास कमी करायला सुनबाईला नवीन साडीच प्रॉमिस करून टाक, म्हणजे बघ तिचा राग कुठल्या कुठे पळून जाईल ते !”

“म्हणजे हे बरं आहे पंत, चूक तुम्ही करायची आणि माझ्या खिशाला खड्डा !”

“खड्डा ? कसला खड्डा ?”

“अहो आता नवीन साडी घ्यायची म्हणजे तीन चार हजार गेले ना.”

“मोऱ्या, मी तुला काय सांगितलं ते तू नीट ऐकलं नाहीस.”

“अहो तुम्हीच सांगितलंत ना शालनचा राग घालवायला तिला नवीन साडी घे म्हणून ?”

“बघ तू परत चूक करयोयस.”

“कसली चूक पंत ?”

“मोऱ्या मी म्हटलं तिला नवीन साडी घ्यायच ‘प्रॉमिस’ कर, नवीन साडी कुठे घे म्हटलं ?”

“म्हणजे ?”

“अरे फक्त प्रॉमिस करायच, आपल्या नेत्यां सारखं ! त्याने सुद्धा सुनबाईचा राग जावून ती खूष होते की नाही बघ.”

“कमाल झाली तुमची पंत, आत्ताच घरी जातो आणि तुमचा उपाय अंमलात आणतो. येतो मी पंत. “

“जा वत्सा, तुजप्रत कल्याण असो !”

© प्रमोद वामन वर्तक

१९-०८-२०२२

दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086

ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 113 ☆ धक्का मुक्की ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक एक विचारणीय एवं समसामयिक ही नहीं कालजयी रचना “धक्का मुक्की ”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 113 ☆

☆ धक्का मुक्की ☆ 

अपने आपको श्रेष्ठ दिखाने की होड़ में जायज- नाजायज सभी कार्य अनायास ही होते जाते हैं। संख्या बल के बल पर लोग नए- पुराने रिश्ते बनाते हुए एक दूसरे को कब धता देकर भाग जायेंगे कहा नहीं जा सकता।

दीवार  की सारी ईंट, कम सीमेंट की वजह से हिल डुल रहीं  थीं,  अब प्रश्न ये था कि सबसे पहले कौन सी ईंट गिरे, गिरना तो उसके ऊपर सभी चाहती थीं, बस शुरुआत कैसे करें ? यही प्रश्न सबके मन में था।

जब कोई उच्च पद पर हो तो थोड़ा मुश्किल होता है।

खैर जब  मन में चाह लो तो रास्ता निकल ही आता है, वैसे ही मौका मिल गया हितेश को उसने थोड़ा सा मुख खोला, कुछ अधूरे शब्द ही आ पाए जो दूसरे ने पूरे किए, अब धीरे – धीरे सभी ईंटे बिखरने लगीं,  देखते ही  देखते ईंटो का ढेर  लग गया, अन्ततः केवल दो ईंट बची  जो  एक दूसरे को देखकर पहले तो मुस्करायीं फिर अपनी आदत अनुसार एक दूसरे के सिर पर ईंट दे मारीं, देखते ही देखते विशाल भवन के निर्माण की परिकल्पना धाराशायी हो गयी।

प्रकृति बदलाव चाहती है, कई बार संकेत भी देती है। पर लोग आँख, नाक, कान सब बंद कर बैठ जाते हैं, ऐसा लगता है जैसे वे प्रतीक्षा करते हैं ऐसे ही पलों की।

बदलाव की आँधी किसको कब और कहाँ उड़ा ले जायेगी ये बड़े- बड़े राजनीतिक ज्योतिषी भी नहीं बता सकते हैं। उठा- पटक का किस्सा अब पाँच वर्षों का इंतजार नहीं कर पा रहा है। मध्य राह अर्थात ढाई वर्षों में ही धुर विरोधियों से जुड़कर नया राग अलापने का दौर हमको कहाँ ले जायेगा ये तो वक्त तय करेगा। किन्तु साहित्यकार दूरदर्शी होते हैं सो पहले से सारी भविष्यवाणी कर देते हैं। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद या प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जी इन्होंने जो भी लिखा वो उस काल में मात्र कल्पना थी पर आज का कड़वा सत्य है। जब इन्हें पढ़ो तो ऐसा लगता है मानो इन्होंने सारी खबरों को देखकर अपनी पुस्तकें लिखी थी।

खैर ये तो परम सत्य है कि पद की गरिमा को कायम रखना व  पद पर बने रहना सरल नहीं होता है। जोड़ें या तोड़ें पर जनता की नब्ज़ को पहचाने तभी शासन कायम रह पायेगा। योग्यता का होना बहुत जरूरी है, सदैव कार्य करते रहें, कुछ सीखें कुछ सिखाएँ सभी को अपना बनाएँ।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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