हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 146 ☆ वेदवाणी माँ सरस्वती… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’… ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 146 ☆

वेदवाणी माँ सरस्वती… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

वेदवाणी माँ सभी का

आप ही जीवन सँवारो।

ज्ञान का आलोक देकर

तमस से सबको उबारो।।

 

दूर हो अज्ञान सब ही

आप संशय को मिटा दो।

जगत की करके भलाई

हर तमिस्रा को हटा दो।

 

तेज से परिपूर्ण कर दो

दुर्गणों से आप तारो।

ज्ञान का आलोक देकर

तमस से सबको उबारो।।

 

आप ही सद्बुद्धि देना

विश्व का कल्याण करना।

मन , हृदय में प्रेम भरकर

नव सुरों की तान भरना।

 

पाप, कष्टों से बचाकर

आप जीवन को सँवारो।

ज्ञान का आलोक देकर

तमस से सबको उबारो।।

 

दुःख सारे दूर कर दो।

कीर्तियों से आप भर दो।

मूर्खता, आलस्य, जड़ता

आदि सब अज्ञान हर दो।

 

आप हो ऐश्वर्यशाली

हर बुराई आप मारो।

ज्ञान का आलोक देकर

तमस से सबको उबारो।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #147 ☆ संत सावता माळी… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 147 ☆ संत सावता माळी… ☆ श्री सुजित कदम ☆

अरणचे दैवू माळी

पंढरीचे वारकरी

संत सावता जन्मले

कुटुंबात शेतकरी…! १

 

वृत्ती सज्जन  धार्मिक

शुद्ध चारित्र्य सचोटी

नाम सावता शोभले

सांप्रदायी ठैव मोठी…! २

 

पिढीजात शेतकरी

फुलवला शेतमळा

ऐसी माळियाची जात

हरी भक्ती कळवळा….! ३

 

भक्ती आणि संसाराचा

साधुनीया ताळमेळ

बागायती शेतमळा

शेतीसाठी दिला वेळ…! ४

 

मोट नाडा बैलजोडी

सावत्याची ही पंढरी

मोक्ष मुक्ती नको म्हणे

नांदे विठ्ठल अंतरी…! ५

 

जप जाप्य कर्मकांड

हवा कशाला देखावा

पिकवोनी शेतमळा

त्यात विठ्ठल शोधावा… ! ६

 

अनासक्त वृत्तीतून

साधियला परमार्थ

कांदा मुळा भाजी संगे

दिला सात्विक भावार्थ…! ७

 

अंधश्रद्धा दांभिकता

घणाघाती केले वार

नामसंकीर्तन करा

पहा विठ्ठल साकार…! ८

 

नीतिमत्ता, सहिष्णुता

निर्भयता सदाचार

ईश्वरास आळविले

सावत्याने शब्दाकार…! ९

 

कर्मयोग सावत्याचा

निष्ठा जीवन अभंग

नवरस परीपुर्ण

रससिद्ध काव्य रंग…! १०

 

शांत वत्सल करुण

दास्य भक्ती अभंगात

राखी सावत्याचा मळा

नाचे विठ्ठल मळ्यात…! ११

 

देई सावत्या संदेश

वाचे आळवावा हरी

केली नाही कधी वारी

आला विठू शेतावरी…! १२

 

वैकुंठीचा देव त्यांनी

मेळवीला संकीर्तनी

माळी सावत्याचे घरी

विठू ‌रंगला‌ कीर्तनी….! १३

 

संतवाणी सावत्याची

जनलोकी प्रासादिक

हरिभक्ती वानवळा

झाला अभंग ‌पौष्टिक …! १४

 

कर्म कर्तव्याची जाण

हीच खरी ईशसेवा

शेतमळा राखणीने

दिला हरी भक्ती ठेवा…! १५

 

आषाढीच्या वारीतून

संत जाती पंढरीला

पांडुरंग करी वारी

येई अरणी भेटीला…! १६

 

नवे शब्द रुपकांनी

शब्द मोती अभंगात

निजरूपे विठ्ठलाची

सावत्याच्या अंतरात..! १७

 

आषाढीची चतुर्दशी

घेई सावत्या निरोप

समाधिस्थ होता क्षणी

अभंगांचे फुले रोप…! १८

 

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – कविता स्मरण… – कवी बा. भ. बोरकर ☆ प्रस्तुती – सौ. वंदना अशोक हुळबत्ते ☆

सौ. वंदना अशोक हुळबत्ते

 

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– कविता स्मरण… – कवी बा. भ. बोरकर? ☆ प्रस्तुती – सौ. वंदना अशोक हुळबत्ते

स्मरते कधी भरली नदी

अन गर्द झाडी काठची

पावसाळी चांदणे

अन साऊली घनदाटशी

हिरवे दिवेसे काजवे

मरवा हवेचा तीक्ष्णसा

दूर कोण्या पाखरांचा सूर जख्मी क्षीणसा

तो धुराने फासलेला, झोपड्यांचा पुंजका

गोठलेले ते धुके – छे! कोंडलेला हुंदका…..

 

कवी – बा. भ. बोरकर

प्रस्तुती – सौ.वंदना अशोक हुळबत्ते

संपर्क – इंदिरा अपार्टमेंट बी-१३, हिराबाग काॅनर्र, रिसाला रोड, खणभाग, जि.सांगली, पिन-४१६  ४१६

मो.९६५७४९०८९२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #168 – तन्मय के दोहे – अपनी निजता खो रहा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं तन्मय के दोहे – “अपनी निजता खो रहा…”)

☆  तन्मय साहित्य  #168 ☆

☆ तन्मय के दोहे – अपनी निजता खो रहा… 

चौपालें  चौपट  हुई,   ठंडे  पड़े  अलाव।

लुप्त हुई पगडंडियाँ, बढ़े सड़क के भाव।।

पहनावे  के  संग में,  लगे बदलने  लोग।

खेती-बाड़ी छोड़ कर, जोड़-तोड़ उद्योग।।

खेत खले बिकने लगे, नव फैशन की चाल।

घुसे  शहर के सेठिये,  शातिर चतुर दलाल।।

अब ना कोयल की कुहुक, ना कौवों की काँव।

नहीं  रही  अमराइयाँ, बड़ – पीपल  की  छाँव।।

रोजगार  की खोज  में, चले  शहर की ओर।

चकाचौंध से दिग्भ्रमित,भटके युवक किशोर।।

अपनी निजता खो रहा, ग्राम्य-प्रेम पहचान।

सूख  रहा  रस  प्रीत का, रिश्तों का  उद्यान।।

प्रेमपगा सम्मान सुख, अनुशासित परिवार।

छूट गया वह गाँव-घर,  जहाँ  प्रेम  रसधार।।

हँसी ठिठौली दिल्लगी,  किस्से गल्प तमाम।

राम – राम  भुले सभी,  अभिवादन के नाम।।

काँकरीट सीमेंट सँग, दिल भी हुए कठोर।

मीठे वचनों  की जगह,  तू-तू  मैं-मैं  शोर।।

पनघट अब सूने हुए, बड़-पीपल की छाँव।

मिटे  नीम  जंगल कटे,  बदल गए हैं गाँव।।

बूढ़ा   बरगद   ले  रहा,  अंतिम  साँसें   आज।

फिर होगा नव-अंकुरण, प्रमुदित मन के साज।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 54 ☆ ग़ज़ल – मेरा साया जुदा हो गया… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण ग़ज़ल “मेरा साया जुदा हो गया…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 54 ✒️

?  ग़ज़ल – उन्वान – मेरा साया जुदा हो गया…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

?

आज वह बेवफ़ा हो गया ।

मेरा साया जुदा हो गया ।।

?

प्यार की जिसने खाई  क़सम ।

वो आज मुझसे ख़फ़ा हो गया ।।

?

सामने रखा जब आईना ।

 ज़िन्दा रहना सज़ा हो गया ।।

?

आंधियों में भी जलते रहे ।

इन चिराग़ों को क्या हो गया।।

?

मैंने जुगनू को सूरज कहा ।

 वोह तभी से ख़फ़ा हो गया ।।

?

मौत से हो गया सामना ।

फ़र्ज़ सलमा अदा हो गया ।।

?

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 168 ☆ माझे जीवन आधार ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 168 ?

☆ माझे जीवन आधार ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

आई आणखी वडील

शैशवी जीवनाधार

लाभणे प्रौढत्वातही

भाग्यच अपरंपार!

वडील होते पाटील

 दरारा गावात फार

आईही वाघीण माझी

शब्दा तिच्या अति धार !

शुभ्र वस्त्रातील तात

आठवती  वारंवार,

पुष्कराज,पाचू हाती

अंगठ्या सोन्याच्या चार

आई चांदणी शुक्राची

सोन्यात साजिरी दिसे

चंदेरी डाळिंबी साडी

  झंपर हिरवे असे !

ऐश्वर्याचा काळ गोठे

अवचित एकाएकी

शब्दच नाही वर्णाया

नसे मुळी फुशारकी !

शापित कुणी गंधर्व

आणि अस्वस्थ आत्मा ती

” हंसोका जोडा” बिछडे

काळ रडे का एकांती!

 असा नियतीचा डाव

जगणे झाले अंगार

 सदैव होते ते दोघे

माझे जीवन आधार!

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 38 – भाग 3 – काळं पाणी आणि हिरवं पाणी ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 38 – भाग 3 ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ काळं पाणी आणि हिरवं पाणी  ✈️

दुसऱ्या दिवशी पहाटे लवकर उठून बसने निघालो. जारवा आदिवासींच्या जंगलात जायचे होते. त्या संरक्षित जंगलात जाण्या- येण्याच्या वेळा ठराविक असतात. सर्व प्रवासी बसेसना एकदम एकत्र सोडण्यात येतं. त्या जंगल विभागाशी पोहोचेपर्यंत दुतर्फा आंबा, फणस, नारळ, सुपारी, केळी, एरंड, भेंडी अशी झाडं व विविध प्रकारचे पक्षी  दिसत होते. संरक्षित जंगल विभागात साधारण ३०० जारवा आदिवासी राहतात. बंद काचेच्या धावत्या बसमधून त्यातील काही आदिवासी दिसले. स्त्री व पुरुषांच्या फक्त कमरेला झाडाच्या सालींचे उभे उभे पट्टे रंगवून कमरेच्या दोरात अडकवलेले होते. पुरुषांच्या हातात तिरकमठा होता व स्त्रियांच्या कडेवर छोटी मुलं होती. लोखंड खूप तापवलं तर त्याचा जसा तांबूस काळा रंग दिसतो तसा त्यांचा तकतकीत रंग होता. काही छोटी मुलं बसमागे धावत होती. सरकारतर्फे त्यांना कपडे, धान्य देण्याचा प्रयत्न होतो. मानव वंशशास्त्रज्ञ त्यांचा अभ्यास करीत असतात पण सारे त्यांचे रीतीरिवाज सांभाळून, त्यांचा विश्वास संपादन करून करावं लागतं.

जंगल ओलांडल्यावर थोड्यावेळाने आम्ही बसमध्ये बसूनच बार्जवर चढलो. पलिकडे उतरल्यावर स्पीड बोटीने, लाईफ जॅकेट घालून, ‘बाराटांगा’ वन विभागात पोहोचलो. दुतर्फा  मॅनग्रोव्हजचे घनदाट जंगल आहे. नीलांबर गुंफा बघायला जाताना स्पीड बोटीच्या दोन्ही बाजूंनी असलेल्या मॅनग्रोव्हज् व इतर झाडांची सुंदर दाट हिरवी कमान तयार झाली होती. हे गर्द हिरवे ट्रॉपिकल रेन फॉरेस्ट आहे.  हजारो वर्षी पाणी या गुंफेमध्ये ठिबकल्याने त्यांचे नैसर्गिक आकार तयार झाले आहेत.

. एलिफंट बीच २. एलिफंट बीचला जाताना वाटेत दिसलेले एक बेट ३. समुद्री कोरल्स

हॅवलॉक आयलँडला जायला लवकर उठून सहाची बोट पकडली. तिथल्या हॉटेलवर आज मुक्काम होता. जेवून दुपारी राधानगर समुद्रकिनाऱ्यावर गेलो. तीव्र उन्हामुळे समुद्राचे पाणी व वाळू चकाकत होती.  दुसऱ्या दिवशी सकाळी हॉटेलजवळच्या बीचवर फिरायला गेलो . अंदमानच्या जवळजवळ सर्व बेटांवर सदाहरित जंगलं व किनाऱ्याजवळ खारफुटीची दाट वनं आहेत. किनारे प्रवाळाने समृद्ध आहेत.  विविध पक्षी आहेत. तिथल्या समुद्रकिनाऱ्यावरील शंख- शिंपले, कोरल्स बाहेर नेण्यास बंदी आहे. इथला निसर्ग लहरी आहे आणि बंगालचा उपसागर सदैव अस्वस्थ असतो.

हॅवलॉकवरून छोट्या होडीतून ( डिंगीतून ) एलिफंट बीचसाठी केलेला प्रवास थरारक होता. वाटेतल्या एका डोंगराचं टोक गरुड पक्षाच्या नाकासारखं पुढे आलं आहे. त्यावर दीपगृह आहे.  एलिफंट बीचवर नितळ समुद्रस्नानाचा आनंद घेतला. पूर्वी इथे लाकडाचे भले मोठे ओंडके  वाहण्यासाठी हत्तींचा उपयोग करीत म्हणून या किनाऱ्याला ‘एलिफंट बीच’ असं  नाव पडलं. आता तिथे हत्ती नाहीत. तिथून हॅवलॉक आयलँडला परत आलो.

दुसऱ्या दिवशी संध्याकाळी हॅवलॉक बंदरात छान गोरीगोमटी कॅटामरान उभी होती. हलत्या बोटीच्या बंद काचेतून तसंच वरच्या डेकवरून सूर्यास्त टिपण्यासाठी सगळ्यांनी कॅमेरे सरसावले होते. एकाएकी सारं बदललं. आकाश गडद झालं. सूर्य गुडूप झाला. जांभळे ढग नंतर दाट काळे झाले.  कॅटामरान जोरजोरात उसळू लागली. टेबल टेनिसचा चेंडू उडवावा तसा समुद्र बोटीला उडवत होता. सारे जण जीव मुठीत धरून बसले. बऱ्याच परदेशी प्रवाशांना, लहान मुलांना उलट्यांनी हैराण केलं. ‘समुद्री तुफान आया है’ असं म्हणत बोटीचा स्टाफ धावपळ करीत साऱ्यांना धीर देत होता, ओकाऱ्यांसाठी पिशव्या पुरवीत होता. दीड तास प्रवासापैकी हा एक तास भयानक होता. निसर्गापुढे माणूस किती क्षुद्र आहे हे दाखविणारा होता.

पोर्ट ब्लेअरला तुफान पावसाने स्वागत केलं. आभाळ फाडून वीज कडाडली. जीव घाबरला, पण आता पाय जमिनीवर टेकले होते. किनाऱ्यावर सुखरूप उतरलो म्हणून त्या अज्ञात शक्तीचे आभार मानले. आकाशातून बरसणाऱ्या धारा आता आशीर्वादासारख्या वाटत होत्या.

 भाग ३ व अंदमान समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 68 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 68 – मनोज के दोहे  ☆

फसल खड़ी है खेत में, चिंता करे किसान।

पल-पल आँख निहारती, बैठा हुआ मचान ।।

सोना उगता खेत में, कृषक बने धनवान।

श्रम की सुखद शिला यही, मिले सदा सम्मान।।

कृषक बदलता जा रहा, ट्रैक्टर कृषि संयंत्र।

इन उपकरणों से रचा, जागृति का नवमंत्र।।

कुसुम खिलें जब बाग में, बहती नवल बयार।

मुग्ध हो रहे लोग सब, बाग हुए गुलजार ।।

बसंत ऋतु की पाहुनी, स्वागत करें मनोज।

बाग बगीचे खेत में, दिखता चहुँ दिश ओज।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 195 ☆ आलेख – हिंदी नाटकों का अभाव ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय   आलेख – हिंदी नाटकों का अभाव।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 195 ☆  

? आलेख  – हिंदी नाटकों का अभाव?

आज नाटक अपेक्षकृत कम लिखे जा रहे हैं. लोगो की बदलती अभिरुचि के चलते जीवंत नाट्य प्रस्तुति की जगह कैमरे में कैद संपादित फिल्म या धारावाहिक ज्यादा लोकप्रिय हैं.

कथावस्तु, नाटक के पात्र, रस, तथा अभिनय नाटक के प्रमुख तत्व  होते हैं. पौराणिक, ऐतिहासिक, काल्पनिक या सामाजिक विषय  नाटक की कथावस्तु हो सकते हैं. कथा वस्तु को नाटक के माध्यम से दर्शको के सम्मुख प्रस्तुत करके नाटककार विषय को संप्रेषित करता है.ऐतिहासिक नाटको में कथावस्तु सामान्यतः ज्ञात होती है पर फिर भी दर्शक के लिये नाटक में जिज्ञासा बनी रहती है, और इसका कारण पात्रो का अभिनय तथा नाटक का निर्देशन होता है. नाटक की कथा वस्तु का दर्शको तक संप्रेषण तभी सजीव होता है जब नाटक के पात्रों व विशेष रूप से कथावस्तु के अनुरूप नायक व अन्य पात्रो का चयन किया जावे. यह दायित्व नाटक के निर्देशक का होता है. पात्रों की सजीव और प्रभावशाली प्रस्तुति ही नाटक की जान होती है. नाटक में नवरसों में से आठ का ही परिपोषण  होता है.  शांत रस नाटक के लिए निषिद्ध माना गया है,  वीर या श्रंगार में से कोई एक नाटक का प्रधान रस होता है. अभिनय  नाटक का प्रमुख तत्व है. इसकी श्रेष्ठता पात्रों के वाक्चातुर्य और अभिनय कला पर निर्भर है.

आज हिंदी में नाटक लेखन अत्यंत सीमित है, पर इस क्षेत्र में व्यापक संभावना है.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ परदेश – भाग – 20 – अंधविश्वास मान्यताएं☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 20 – अंधविश्वास मान्यताएं ☆ श्री राकेश कुमार ☆

विदेशों में हमारे देश के बारे में अंधविश्वास/ मान्यताएं आदि से ही परिचय दिया जाता था। पश्चिम देश हमारे देश को अनपढ़ और पिछड़ा हुआ के परिचय से ही जानते थे। विगत कुछ सप्ताहों के प्रवास के समय हमें विदेशियों की भी ऐसी ही कुछ जानकारियां प्राप्त हुई, जैसे कि तेरह अंक को यहां अच्छा नहीं मानते हैं। इसलिए अनेक होटलों में तेरह नंबर का कमरा नहीं होता हैं। कुछ ऊंचे भवनों में भी बारह के बाद चौदहवीं मंजिल रहती हैं।

साथ का फोटो स्वर्गीय जॉन हारवर्ड का है। उनके द्वारा ही हारवर्ड विश्वविद्यालय की स्थापना अमेरिका स्थित बोस्टन शहर में की गई थी।

इनकी मूर्ति में बाएं पैर का जूता सोने जैसा चमक रहा हैं।

भ्रमण के समय गाइड ने जानकारी दी कि इस विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने हेतु अधिकतर विद्यार्थी उनके चमकने वाले जूते को अपने हाथ से साफ करने के पश्चात नम्रता पूर्वक प्रवेश के लिए प्रार्थना करते हैं।

इस विश्वविद्यालय में प्रवेश अत्यंत कठिन है, क्योंकि पूरी दुनिया में इसकी स्थिति हमेशा प्रथम तीन में ही रहती है। वैसे बोस्टन शहर में ही एक और भी प्रसिद्ध विश्वविद्यालय MIT (मैसेच्यूट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) भी है। हमारे देश के श्री रतन टाटा और श्री आनंद महिंद्रा भी इसके सफल छात्र रहे हैं। जिन पर हमें नाज़ हैं।

वैसे बॉलीवुड महानायक के पुत्र और सुश्री श्रद्धा कपूर भी बोस्टन शहर के किसी अन्य महाविद्यालय में अध्ययन अधूरा छोड़ कर फिल्मी दुनिया में रोज़ी रोटी कमाने चले गए थे।                    

मान्यताएं हमेशा प्रेरणा और धनात्मक सोच की परिचायक रहती हैं।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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