मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ गीत ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १२ (अग्नि सूक्त) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ गीत ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १२  (अग्नि सूक्त) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १२ ( अग्नि सूक्त )

ऋषी – मेधातिथि कण्व : देवता – अग्नि 

ऋग्वेदातील पहिल्या मंडलातील बाराव्या सूक्तात मधुछन्दस वैश्वामित्र या ऋषींनी अग्निदेवतेला आवाहन केलेले आहे. त्यामुळे हे सूक्त अग्निसूक्त म्हणून ज्ञात आहे. 

मराठी भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री

अ॒ग्निं दू॒तं वृ॑णीमहे॒ होता॑रं वि॒श्ववे॑दसम् । अ॒स्य य॒ज्ञस्य॑ सु॒क्रतु॑म् ॥ १ ॥

समस्त देवांचा अग्नी तर विश्वासू दूत

अर्पित हवि देवांना देण्या अग्नीचे हात 

अग्नी ठायी वसले ज्ञान वेदांचे सामर्थ्य

आवाहन हे अग्निदेवा होउनिया आर्त ||१||

अ॒ग्निम॑ग्निं॒ हवी॑मभिः॒ सदा॑ हवन्त वि॒श्पति॑म् । ह॒व्य॒वाहं॑ पुरुप्रि॒यम् ॥ २ ॥

मनुष्य जातीचा प्रिय राजा पवित्र  अनलाग्नी

सकल देवतांप्रती नेतसे हविला पंचाग्नी

पुनःपुन्हा आवाहन करितो अग्नीदेवतेला

सत्वर यावे सुखी करावे शाश्वत आम्हाला ||२||

अग्ने॑ दे॒वाँ इ॒हा व॑ह जज्ञा॒नो वृ॒क्तब॑र्हिषे । असि॒ होता॑ न॒ ईड्यः॑ ॥ ३ ॥

दर्भाग्रांना सोमरसातून काढूनिया सिद्ध

अर्पण करण्याला देवांना केले पूर्ण शुद्ध

हविर्भाग देवांना देशी पूज्य आम्हासी 

सवे घेउनी समस्त देवा येथ साक्ष होशी ||३|| 

ताँ उ॑श॒तो वि बो॑धय॒ यद॑ग्ने॒ यासि॑ दू॒त्यम् । दे॒वैरा स॑त्सि ब॒र्हिषि॑ ॥ ४ ॥

जावे अग्निदेवा होउनिया अमुचे दूत

कथन करी देवांना अमुच्या हवीचे महत्व

झणी येथ या देवांना हो तुम्ही सवे घेउनी

यज्ञवेदिवर विराज व्हावे तुम्ही दर्भासनी ||४||

घृता॑हवन दीदिवः॒ प्रति॑ ष्म॒ रिष॑तो दह । अग्ने॒ त्वं र॑क्ष॒स्विनः॑ ॥ ५ ॥

सख्य करूनीया दैत्यांशी रिपू प्रबळ जाहला

प्राशुनिया घृत हवनाने तव प्रज्ज्वलीत ज्वाला 

अरी जाळी तू ज्वालाशस्त्रे अम्हा करी निर्धोक 

सुखी सुरक्षित अम्हास करी रे तुला आणभाक ||५||

अ॒ग्निना॒ग्निः समि॑ध्यते क॒विर्गृ॒हप॑ति॒र्युवा॑ । ह॒व्य॒वाड् जु॒ह्वास्यः ॥ ६ ॥

स्वसामर्थ्ये प्रदीप्त अग्नी वृद्धिंगत होई 

प्रज्ञा श्रेष्ठ बुद्धी अलौकिक गृहाधिपती होई

चिरयौवन हा सर्वभक्षक याचे मुख ज्वाळांत 

मुखि घेउनी सकल हवींना देवतांप्रती नेत ||६|| 

क॒विम॒ग्निमुप॑ स्तुहि स॒त्यध॑र्माणमध्व॒रे । दे॑वम॑मीव॒चात॑नम् ॥ ७ ॥

अग्नी ज्ञानी श्रेष्ठ देतसे जीवन निरामय

ब्रीद आपुले राखुनि आहे विश्वामध्ये सत्य

यज्ञामध्ये स्तवन करावे अग्नीदेवाचे

तया कृपेने यज्ञकार्य हे सिद्धीला जायचे ||७||

यस्त्वाम॑ग्ने ह॒विष्प॑तिर्दू॒तं दे॑व सप॒र्यति॑ । तस्य॑ स्म प्रावि॒ता भ॑व ॥ ८ ॥

अग्निदेवा तुला जाणुनी  देवांचा दूत

पूजन करितो हवी अर्पितो तुझिया ज्वाळात

यजमानावर कृपा असावी तुझीच रे शाश्वत

रक्षण त्याचे तुझेच कर्म प्रसन्न होइ मनात ||८||

यो अ॒ग्निं दे॒ववी॑तये ह॒विष्माँ॑ आ॒विवा॑सति । तस्मै॑ पावक मृळय ॥ ९ ॥

प्रसन्न करण्या समस्त देवा तुम्हालाच पुजितो

यागामाजी यज्ञकर्ता तुमची सेवा करितो

सकल जनांना पावन करिता गार्हपत्य देवा 

प्रसन्न होऊनी यजमानाला शाश्वत सुखात ठेवा ||९||

स नः॑ पावक दीदि॒वोऽ॑ग्ने दे॒वाँ इ॒हा व॑ह । उप॑ य॒ज्ञं ह॒विश्च॑ नः ॥ १० ॥

विश्वाचे हो पावनकर्ते आवहनीय देवा

यज्ञामध्ये हवी अर्पिल्या आवसस्थ्य देवा

यज्ञ आमुचा फलदायी हो दक्षिणाग्नी देवा

सवे घेउनिया यावे यज्ञाला या समस्त देवा ||१०||

स नः॒ स्तवा॑न॒ आ भ॑र गाय॒त्रेण॒ नवी॑यसा । र॑यिं वी॒रव॑ती॒मिष॑म् ॥ ११ ॥

अग्निदेवा तुमची कीर्ति दाही दिशा पसरली

गुंफुन स्तोत्रांमाजी मुक्तकंठाने गाइली

आशीर्वच द्या आम्हा आता धनसंपत्ती मिळो

तुझ्या प्रसादे आम्हापोटी वीर संतती मिळो ||११||

अग्ने॑ शु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॒ विश्वा॑भिर्दे॒वहू॑तिभिः । इ॒मं स्तोमं॑ जुषस्व नः ॥ १२ ॥

प्रज्ज्वलित तुमची आभा ही विश्वाला व्यापिते

हवी अर्पितो समस्त देवांना तुमच्या ज्वालाते

प्रसन्न होउन अर्पियलेले हविर्भाग स्वीकारा

देऊनिया आशीर्वच आम्हा यज्ञा सिद्ध करा ||१२||

हे सूक्त व्हिडीओ  गीतरुपात युट्युबवर उपलब्ध आहे. या व्हिडीओची लिंक येथे देत आहे. हा व्हिडीओ ऐकावा, लाईक करावा आणि सर्वदूर प्रसारित करावा. कृपया माझ्या या चॅनलला सबस्क्राईब करावे. 

https://youtu.be/2_RrKUNjD7s

© डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 108 ☆ लघुकथा – मान जाओ ना माँ ! ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  स्त्री विमर्श पर आधारित एक संवेदनशील, हृदयस्पर्शी एवं विचारणीय लघुकथा ‘मान जाओ ना माँ !’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस लघुकथा  रचने   के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 108 ☆

☆ लघुकथा – मान जाओ ना माँ !  ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

मम्माँ किसी से मिलवाना है तुम्हें।

अच्छा, तो घर बुला ले उसे, पर कौन है? 

मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त है।

मुझसे भी अच्छा? सरोज ने हँसते हुए पूछा।

इस दुनिया में सबसे पहले तुम ही तो मेरी दोस्त  बनी। तुम्हारे जैसा तो कोई हो ही नहीं सकता मम्माँ, यह कहते हुए विनी माँ के गले लिपट गई।

अरे ! दोस्त है  तो फिर पूछने की क्या बात है इसमें, आज शाम को ही बुला ले।  हम  सब  साथ में ही चाय पियेंगे।

सरोज ने शाम को चाय – नाश्ता  तैयार कर लिया था और बड़ी बेसब्री से विनी और उसके दोस्त का इंतजार कर रही थी। हजारों प्रश्न मन में उमड़ रहे थे। पता नहीं किससे मिलवाना चाहती है? इससे पहले तो कभी ऐसे नहीं बोली। लगता है इसे कोई पसंद आ गया है। खैर, ख्याली पुलाव बनाने से क्या फायदा, थोड़ी देर में सब सामने आ ही जाएगा, उसने खुद को समझाया। 

तभी दरवाजे की आहट सुनाई दी। सामने देखा विनी किसी अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ चली आ रही थी।

मम्माँ ! आप  हमारे कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर  हैं – विनी ने कहा।

नमस्कार, बैठिए – सरोज ने विनम्रता से हाथ जोड़ दिए। विनी बड़े उत्साह से प्रोफेसर  साहब  को अपनी पुरानी फोटो  दिखा रही थी। काफी देर तक तीनों बैठे बातें  करते रहे। आप लोगों के साथ बात करते हुए समय का पता ही नहीं चला, प्रोफेसर  साहब ने घड़ी देखते हुए कहा – अब मुझे चलना चाहिए।

सर ! फिर आइएगा विनी बोली।

हाँ जरूर आऊँगा,  कहकर वह चले गए।

सरोज के मन में उथल -पुथल मची हुई  थी। उनके जाते ही विनी से बोली – तूने प्रोफेसर  साहब की उम्र देखी है? अपना दोस्त कह रही है उन्हें? कहीं कोई गलती न कर बैठना विनी – सरोज ने चिंतित स्वर में कहा।

विनी मुस्कुराते हुए बोली – पहले बताओ तुम्हें कैसे लगे प्रोफेसर  साहब? 

बातों से तो भले आदमी लग रहे थे पर – 

तुम्हारे लिए रिश्ता लेकर आई हूँ प्रोफेसर साहब का, बहुत अच्छे इंसान हैं। मैंने उनसे बात कर ली है। सारा  जीवन तुमने मेरी देखरेख में गुजार दिया। अब अपनी दोस्त को  इस घर में अकेला छोड़कर मैं  तो शादी नहीं  कर सकती।  मान जाओ ना माँ !

©डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 127 – “अर्घ, कविता संग्रह” – सुश्री दामिनी खरे ☆ चर्चाकार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है सुश्री दामिनी खरे जी द्वारा लिखित काव्य संग्रह “अर्घ…” पर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 127 ☆

☆ “अर्घ, कविता संग्रह” – सुश्री दामिनी खरे ☆ चर्चाकार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’ ☆

पुस्तक चर्चा

अर्घ, कविता संग्रह

दामिनी खरे

आवरण.. यामिनी खरे

प्रकाशक … कृषक जगत, भोपाल

काव्य रचनाओ  को गहराई से समझने के लिये वांछित होता है कि रचनाकार के व्यक्तित्व, उसके परिवेश, व कृतित्व का किंचित ज्ञान पाठक को भी हो, जिससे परिवेश के अनुकूल लिखित कविताओं को  पाठक उसी पृष्ठभूमि से  हृदयंगम कर आनन्द की वही अनुभूति कर सके,  जिससे प्रेरित होकर लेखक के मन में रचना का प्रादुर्भाव हुआ होता है. शायद इसीलिये किताब के  पिछले आवरण पर  रचनाकार का परिचय प्रकाशित किया जाता है. प्रस्तुत कृति अर्घ का  आवरण चित्र प्रसिद्ध अव्यवसायिक महिला चित्रकार यामिनी खरे ने बनाया है, छोटे छोटे चित्रों से बना कोलाज ठीक वैसे ही हमारी संस्कृति के विभिन्न आयाम मुखरित करता है जैसे शब्द चित्र किताब की कविताओं से अभिव्यक्त होते हैं ।  आत्मकथ्य में कवियत्री ने लिखा है की उनके रचनात्मक व्यक्तित्व पर उनके पिता की छाप है, मैंने स्व  वासुदेव प्रसाद खरे जी की देवयानी सहित कुछ रचनाएँ सूक्ष्म दृष्टि से पढ़ी हैं, मैं कह सकता हूँ की दामिनी जी की लेखनी में पिता की  प्रति छाया शैली, छंद विधान, शब्द सागर में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। भारतीय सामाजिक परिवेश में अनेक महिलाएं विलक्षण व्यक्तित्व रखती हैं किन्तु विवाह के उपरांत परिवार, बच्चो तथा पति के साथ कदमताल करते हुए उनका निजी व्यक्तित्व शनैः शनैः कहीं खो जाता है, दामिनी जी जैसी बिरली महिलाये ही अपने भीतर उस क्षमता को दीर्घ काल तक सुशुप्त रहते हुए भी प्राणवान बनाये रख पाती हैं।

उन्होंने लिखा ही है

“करके अपना ही पिंड दान, बन दीप शिखा जलती जाती “, बेटियां  शीर्षक से लिखी गई यह कविता उनका भोगा हुआ यथार्थ है।  उनके सुपुत्र ने लैंडमार्क के बहाने उनकी लेखन प्रतिभा को पुनः जागृत करने में  भूमिका निभाई, और लेखिका संघ के व्हाट्स अप ग्रुप ने वह  धरातल दिया जहां बचपन से अब तक के उनके संवेदनशील मन ने जो मानस चित्र बना रखे थे वे शब्दों का रूप लेकर कागज पर उभर सके। पिता के काव्य संस्कारो को पति  का साथ मिला और यह किताब हिंदी जगत को मिल सकी ।  छोटी छोटी सधी हुई, गंभीर, उद्देश्यपूर्ण,समय समय पर लिखी गईं और डायरी में संग्रहित रचनाओं के पुस्तकाकार  प्रकाशन से साहित्य के प्रति अपनी एक जिम्मेदारी पूरी कर लेखिका ने उस प्रसव पीड़ा से मुक्ति पाने की कोशिश की  है जिसकी छटपटाहट उनमें कविताओं के लेखन काल से रही होगी.कविताओ  में शाश्वत तथ्य मुखरित हुए हैं। यथा..

“ सुख दुःख में गोते लगाना है जीवन, हर पल ख़ुशी से बिताना है जीवन “

संग्रह में कुल ६१ कविताये हैं, प्रकृति, नारी, राष्ट्र, लोकचेतना, समाज जैसे विषयों पर कलम उठाई गई है।   मैं लेखिका की  कलम की उसी यात्रा में अपने आप को सहगामी पाता हूं, जिसमें कथित पाठक हीनता की विडम्बना के बाद भी प्रायः रचनाकार समर्पण भाव से लिख रहे हैं,स्व प्रकाशित कर, एक दूसरे को पढ़ रहे हैं. नीलाम्बर पर इंद्रधनुषी रंगो से एक सुखद स्वप्न रच रहे हैं. लेखिका चिर आशान्वित हैं, वे मां को इंगित करते हुए लिखती हैं ” धैर्य धरा सा तुमसे सीखा, सीखा कर्म किये जाओ, फल देना ईश्वर के हाथो, तुम केवल चलते जाओ “

बादलों को लक्ष्य कर वे लिखती हैं “कनक कलश से छलक रहे ये वन उपवन को महकाते, नहीं जानते लेना ये बस देना ही देना जाने “

“ जीवन है इक भूल भुलैया, रह ढूँढना रे मन, नई  राह पर चलते चलते धैर्य न खोना रे मन “  इन कसी हुई पंक्तियों की विवेचना प्रत्येक पाठक के स्वयं के अनुभव संसार के अनुरूप व्यापक होंगी ही.

धूप का टुकड़ा शीर्षक से एक रचना का अंश है.. ” सुनो संगीत जीवन का, नहीं मालूम क्या हो कल, मुझे भाता है संग इनका, तुम्हें भी रास आएगा”  जीवन विमर्श के ये शब्द चित्र बनाते हुये  दामिनी जी किसी परिपक्व वरिष्ठ कवि की तरह  उनकी लेखनी पर शासन कर रही दिखाई देती है.

अर्घ, पुस्तक की शीर्षक रचना में वे लिखती हैं…

भावना के अर्घ देकर चल मना

लौ प्रकम्पित कर रहा मन अर्चना

पंछियों सी अब गगन में उड़ चली

फलक पर नित नवल करती सर्जना

भारत माता शीर्षक से वे लिख रही हैं ” लेते हैं हम शपथ विश्व मे उन्नत मां  का भाल करे, सेवा का प्रण लेकर हम सब सदा स्वार्थ का त्याग करें  ” काश कि यही भाव हर भारतीय के मन में बसें तो दामिनी जी  की लेखनी सफल हो जावे.

उनका  ज्ञान व चिंतन परिपक्व है.  एक रचना अंश  उधृत है ” नैन कह जाते अकथ कहानी, मुखर ह्रदय की वाणी, शीतल सरिता के स्वर, नैन झरे झर झर “

छंद, शब्द सामर्थ्य, बिम्ब योजना हर दृष्टि से कवितायेँ  पठनीय तथा मनन, चिंतन योग्य सन्देश समाहित किये हुए है।  अपनी ” मौन स्वर “कविता में वे लिखती हैं ” जिंदगी के इस सफर में त्याग ही अनुगामिनी है,मौन स्वर तू रागिनी है “

प्रत्येक  रचना के भाव पक्ष की प्रबलता के चलते  आप को इस कृति  पढ़ने की सलाह देते हुये मैं आश्वस्त हूं.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

वर्तमान मे – न्यूजर्सी अमेरिका

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 140 ☆ बाल गीत – हँसी का छक्का… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 140 ☆

☆ बाल गीत – हँसी का छक्का… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

नयन लड़ावें चुन्ना – मुन्ना।

मिट्टी से लिखते किटकन्ना।।

 

प्यारी जोड़ी भोली – भाली।

खूब बजाते जमकर ताली।।

 

कभी ठुमककर लाड़ जतावें।

लप्पा – लोरी खूब सुनावें।।

 

खूब खेलते घोड़ा – घोड़ी।

मन को भाएँ सेव , पकोड़ी।।

 

गिनती करते एक दो तीन।

एबीसीडी बोल प्रवीन।।

 

कभी मारते हँसी का छक्का।

प्यार लुटाएं कक्की – कक्का।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #141 ☆ संत मुक्ताबाई… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 141 ☆ संत मुक्ताबाई… ☆ श्री सुजित कदम ☆

ज्ञाना निवृत्ती सोपान

बंधू संत मुक्ताईचे

सांप्रदायी प्रवर्तक

बाळकडू अध्यात्माचे…! १

 

आदिमाता मुक्ताईस

ब्रम्हचित्कलेचा मान

मंत्र सोहम साधना

ज्ञानदेव देई ज्ञान…! २

 

करी मुक्ता उपदेश

गुरू बंधू ज्ञानदेवा

केले लेखन प्रवृत्त

दिला ज्ञानमयी ठेवा…! ,

 

बेचाळीस रचनांनी

सजे ताटीचे अभंग

मुक्ता बाई योग राज्ञी

विश्व कल्याणात दंग..! ४

 

ज्ञानेश्वर संवादाने

दिली सनद मानाची

झाली प्रकाश मुक्ताई

ज्ञानगंगा ज्ञानेशाची…! ५

 

भक्त श्रेष्ठ मुक्ताबाई

प्रबोधन गुणकारी

ताटीच्याच अभंगाने

झाली संकट निवारी…! ६

 

गुरू विसोबा खेचर

संकीर्तनी विवेचन

संतश्रेष्ठ सहवास

अध्यात्मिक प्रवचन…! ७

 

योगीराज चांगदेवे

मुक्ताईस केले  गुरू

पासष्ठीचा अर्थबोध

गुरू शिष्य नाते सुरू…! ८

 

अंगाईच्या अभंगांने

मुक्ता झाली रे मुक्ताई

ज्ञानबोध हरिपाठ

अनुबंध मुक्ताबाई…! ९

 

नाथ संप्रदायातील

पहिल्याच सद्गुरू

मुक्ताबाई सांगतसे

उपदेश मनीं धरूं…! १०

 

मुक्ताबाई मुक्तीकडे

करी जीवन प्रवास

संत साहित्य प्रेरक

लाभे संत सहवास…! ११

 

गुरू गोरक्षनाथांचा

झाला कृपेचा वर्षाव

संजीवन अमृताचा

पडे सर्वांगी प्रभाव..! १२

 

समाधीचे आले अंग

मुंगी उडाली आकाशी

धन्य धन्य मुक्ताबाई

झेप घेई अवकाशी…! १३

 

जळगावी तापीतीरी

मुक्ता स्वरूपा कारात.

वैशाखात दशमीला

मुक्ता मुक्तीच्या दारात…! १४

 

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ हरित स्वप्न ☆ सौ. अमृता देशपांडे ☆

सौ. अमृता देशपांडे 

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– हरित स्वप्न – ?सौ. अमृता देशपांडे 

उतरुनि पर्णसंभार सारा

व्यक्त झालो मुक्त मी

हा नसे की अंत माझा

ना कुणी संन्यस्त मी

हे निसर्गी बांधलेपण

सर्वस्व धरेला वाहिले मी

ऋतुजेच्या उदरात पेरला

नवचैतन्याचा थेंब मी

ढाळुन सारे पर्णपंख हे

आज मोकळा त्रयस्थ मी

ऋतुचक्राच्या पुढच्या पानी

हरित स्वप्न हे अंतर्यामी

थेंबातुन त्या कोंब फुटुनिया

फिरून बहरे कृतज्ञस्थ मी

पर्णलेकरे लेवुन अंगी

लेकुरवाळा गृहस्थ मी.

(चित्र साभार – सौ अमृता  देशपांडे)

© सौ. अमृता देशपांडे 

पर्वरी – गोवा

9822176170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #162 – जो नहीं कुछ भी… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी  एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता  “जो नहीं कुछ भी…”। )

☆  तन्मय साहित्य  #162 ☆

☆ जो नहीं कुछ भी…

जो, नहीं कुछ भी बोलते होंगे

दिल तो उनके भी खौलते होंगे।

 

हाथ में, जिनके न  तराजु है

सबको आँखों से तौलते होंगे।

 

जहर भरा है  द्वेष, ईर्ष्या का

विषधरों  से  वे  डोलते  होंगे।

 

बोल अमृत से हैं जिनके वे भी

विष  कहीं पर तो घोलते होंगे।

 

बातें  इतिहास की सुनाते जो

शब्द  उनके भूगोल  के  होंगे।

 

उनके भाषण सुनें तो पायेंगे

गरीब   के  मखौल के  होंगे।

 

है मजूरों के  पास जो कुछ भी

वो   पसीने  के  मोल  के  होंगे।

 

बाद, तकरार  के, बुलाया है

मन्सूबे  मेल – जोल  के  होंगे।

 

बेखबर  जो हैं, स्वयं अपने से

खुद  को  बाहर  टटोलते  होंगे।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 50 ☆ गीत – हो मुबारक नया साल… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण बुन्देली गीत “नाचो मोर…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 49 ✒️

?  गीत – हो मुबारक नया साल…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

दो हज़ार बाइस

आपको पुराना लगे ।

तेइस का सवेरा

सभी को सुहाना लगे ।।

 

गिरती हुई ईंट को

फ़िर से लगायें आओ ।

हमें बीती यादों का

हुज़ूम फ़साना लगे ।।

 

नव वर्ष से मिल जायें

सबको ख़ुशियों के अंबार ।

पिछले सारे ग़म

केवल एक बहाना लगें ।।

 

भुलाओ गिले-शिकवे

हो मुबारक नया साल ।

पुकारो सलमा सपनों

को जो तराना लगे ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘चयन’… श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Selection…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “~ चयन ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – चयन ??

समुद्र में अमृत पलता,

समुद्र ही हलाहल उगलता,

शब्दों से गूँजता ऋचापाठ,

शब्द ही कहलाते अवाच्य,

चिंतन अपना-अपना,

चयन भी अपना-अपना!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 11.31, 14.9.20

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Selection ~ ??

Ocean nurtures the nectar,

Ocean only oozes out the ‘Halahal’, – the poison,

Words echo the

‘Richas’- holy hymns of the Veda

Words only are termed as unspeakable;

Contemplation of thoughts is very own,

and so is its choice of selection.

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 62 – राजनीति… भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय  आलेख  “राजनीति…“।)   

☆ आलेख # 62 – राजनीति  – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

राजनीति अपने शैशवकाल में सामाजिक मुद्दों और स्वाभाविक नेतृत्व के संयोग से आगे बढ़ती है. अपना समय और अपनी जमापूँजी को देकर इसमें ऐसे लोग आते हैं जिन्हें अपनी आर्थिक सुरक्षा और निश्चिंत भविष्य से ज्यादा परवाह समाज और देश- दुनिया के वर्तमान को सुधार कर और कुछ मायनों में बदलकर भी उनके बेहतर भविष्य को सुनिश्चित करने की होती है. इन्हें सोशल इंजीनियरिंग के अभियंता भी कहा जा सकता है और सामाजिक अस्वस्थता का इलाज करने वाले डॉक्टर भी. ये उन्हें भी ठीक करने की कोशिश करते हैं जो हमेशा इस भ्रम में बने रहना चाहते हैं कि “हमें तो कुछ हुआ ही नहीं है, हम तो पूरी तरह ठीक हैं तो डॉक्टर साहब या इंजीनियर साहब, आपकी इलाज रूपी मुफ्त सलाहों की हमें जरूरत ही नहीं है, निश्चिंत रहिए कि हम आपके बहकावे में आने वाले नहीं हैं.”

ऐसे लोग मनोरोगियों के समान ही व्यवहार करते हैं कि उनसे ज्यादा तो उनके परामर्शदाता को खुद के इलाज की जरूरत है. बहुतायत में पाये जानेवाले इन लोगों के नज़रिये से तो वैचारिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से बेहतर तो पराधीनता की सौगात के साथ मिली आर्थिक निश्चिंतता और शान शौकत, रौब दाब पाना ज्यादा व्यवहारिक और सुरक्षित होता है. ये वही लोग होते हैं जिनके लिये राजनीति तो अपना घर फूंककर तमाशा देखने जैसा है.

अतः इस दौर की राजनीति और ऐसे नेतृत्व गुण से संपन्न लोग बहुत दुर्लभ हुआ करते थे और “नेताजी” जैसा उपनाम और उपाधि “नेताजी सुभाषचंद्र बोस” जैसे महान और उच्चतम कद वाले ही पाते थे. ये दौर राजनीति का स्वर्णिम दौर था जो नैतिक मूल्य, त्याग, साहस और बलिदान के शाश्वत स्तंभों पर सुदृढ़ता के साथ खड़ा था. इस दौर में उनका साथ देने वाले भी उनके लक्ष्यों के प्रति समर्पित हुआ करते थे और इस यात्रा में नेतृत्व के प्रति निष्ठा और विश्वास भी बहुत बड़ी भूमिका का निर्वहन किया करता था. नेता और अनुयायी निज स्वार्थ से परे हुआ करते थे और बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के लिये काम करते थे.

राजनीति के बदलते दौरों की समीक्षा अगले भाग में  

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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