श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )
आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता – हरितमा फूल फल लकड़ी और आक्सीजन… ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 167 ☆
कविता – हरितमा फूल फल लकड़ी और आक्सीजन…
रोप पोस कर पौधे, अनगिन हरे भरे
अपनी जमीं को चूनर, हरी ओढ़ानी है
होंगे संकल्प सारे हमारे फलीभूत
हम प्रयास तो करें, सफलता आनी है
जब खरीदा, इक सिलेंडर आक्सीजन
तब वृक्षों की कीमत उसने जानी है
जहाँ अंकुरण बीजों का है संभव
ब्रम्हाण्ड में सारे, धरा यही वरदानी है
घाटियां गहराईयां, ऊँचाईयां पाषाण की
वादियां होंगी हरी, हमने यह ठानी है
आसमां से ऊपर, नीले अंतरिक्ष से
दिखेगा हरा जो नक्शा, वो हिंदुस्तानी है
वृक्ष झीलें, चूनर में टंके सलमा सितारे
कुदरत की मस्ती उसकी कारस्तानी है
इंद्र ले सतरंगा धनुष, अब जब कभी आये
पाये पहाड़ो पर हरियाली, ये ही कहानी है
बांस के हरे वन और साल के घने जंगल
लगाये होंगे किसने , ये उसकी मनमानी है
हरितमा फूल फल लकड़ी और आक्सीजन
हुआ हिसाब तब समझा कि पौधा दानी है
वृक्षों से वन हैं वनों से पशु , पशु से प्रकृति
काट रहे हैं जो जंगल ये उनकी नादानी है
अरसे से रहा जंगल में जंगल के साथ
जंगल के बारे में आदिवासी ज्यादा ज्ञानी है
योग सिखाता बेहतर जीवन की शैली
वृक्ष बताते वृक्षासन अपनाना आसानी है
पर्यावरण संतुलन, मतलब जलवायु का साथ
याद रखना , वृक्ष हैं पर्यावरण है , तो पानी है
नकली पौधे फूल सजावट वाले कागज के
हर घर पौधे रोपें जाये ऐसी जुगत लगानी है
बस फोटो और अखबार में न हो वृक्षारोपण
बंजर जमीन पर हरी चादर सचमुच बिछानी है
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈