मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ ‘डॉ. तारा भवाळकर कोण आहेत !’ — लेखक : हेमंत राजोपाध्ये ☆ प्रस्तुती : डॉ. सोनिया कस्तुरे ☆

डॉ. सोनिया कस्तुरे

? इंद्रधनुष्य ?

डॉ. तारा भवाळकर कोण आहेत !‘ — लेखक : हेमंत राजोपाध्ये ☆ प्रस्तुती : डॉ. सोनिया कस्तुरे ☆

८७ वर्षाची तरुण, तडफदार लेखिका!

इथल्या उग्र जातीय दर्प आणि पुरुषप्रधान दुर्गंधीने बरबटलेल्या विषम समाजव्यवस्थेची चीड असलेली..

केवळ परंपरेतील सत्त्वाचे पोवाडे गात बसण्यापेक्षा त्या परंपरातील हीण कसे दूर करता येईल, यासाठी आयुष्यभर लेखन- संशोधनासोबतच प्रत्यक्ष जमिनीवर उतरून काम करणारी..

उच्चभ्रू पेठांमधल्या आणि गढींमधल्या पवित्र सरंजामी वातावरणात झाकून ठेवलेल्या दुर्गंधी वास्तवांना समाजासमोर आणणारी…

तंजावरमधल्या राजे आणि दरबारी कवींपासून ते कैकाडी समाजातल्या उन्मुक्त बाणेदार ‘महामाये’पर्यंत सर्वांमध्ये सहज मिसळून जाणारी…

शनिवार पेठेतील वेदशास्त्रसंपन्न चित्रावशास्त्रींच्या व्युत्पन्न सहवासाच्या बालपणीच्या स्मृतींविषयी चिकित्सक आदर बाळगणारी…

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामाच्या नावाखाली शिरजोर झालेल्या अमर्याद मुजोर पुरुषप्रधानतेच्या ‘हलक्या दिलाची’ चिरफाड करणाऱ्या आदिवासी बाईचं तेज अंगी बाणवणारी…

भरतमुनीच्या नाट्यशास्त्रापासून, देवल, खाडिलकरांच्या नाटकांपर्यंत कानोसा घेत लोकनाट्य आणि अभिजन व बहुजन समाजातील विविध लोकपरंपरांचा समग्र, साक्षेपी आढावा घेणारी,

आदिशक्ती महामायेच्या महन्मंगल रूपाला कुबटपणा आणणाऱ्या व्यवस्थेत पिचलेल्या कैकाडी समाजातील स्त्रीपासून कथित उच्चभ्रू जातीय, वर्गीय सोन्याच्या पिंजऱ्यात डाळिंबाचे दाणे मिटक्या मारत खाणाऱ्या ब्राह्मण, मराठा स्त्रीपर्यंत समस्त स्त्रियांच्या मुक्तीची गरज ओळखणारी,

लोकश्रद्धांना गौण न मानता त्यांचं सामाजिक, राजकीय स्थान ओळखणारी मात्र अंधश्रद्धा आणि त्यातील शोषण यांच्याविरोधात ८४-८५ व्या वर्षीही खणखणीत आवाज उठवणारी,

अभिजन आणि बहुजन संस्कृतीतील अमर्याद विविधांगी मर्यादा आणि त्यांना उन्नत, समावेशक आणि प्रगल्भ करू शकणाऱ्या त्याच सांस्कृतिक संचितातले सत्त्व आधुनिकतेच्या चौकटीत बसवू पाहणारी,

डॉ. रा. चिं. ढेरेंसारख्या महविद्वानासोबत अभ्यास, संशोधन, लेखन करणारी, लक्ष्मण मानेंसारख्या शोषित समाजातून आलेल्या माणसासोबत तळागाळातील लोकांच्या दुःखांना वाचा फोडण्यात अग्रणी असणारी,

तर्कतीर्थ लक्ष्मणशास्त्री जोशींसारख्या प्रागतिक विचारवंतांच्या कौतुक/आदरास पात्र ठरलेली,

हरिवंशराय बच्चन यांच्या संस्कृतप्रचुर मधुशालेचा अनुवाद करण्यापासून ते तेलुगू, तमिळ प्रदेशातील भटक्या स्त्रियांच्या गाण्यांतील शब्द आणि भावनांचा तरल पण चिकित्सक भाष्यासह अनुवाद करणारी,

अन्याय पाहून चिडणारी, रस्त्यावर उतरणारी, जवळच्या माणसांपासून ते मोठाल्या पदांवरील माणसांच्या चुका परखडपणे मांडणारी,

बाणेदार, आक्रमक, सहृदय, ग्रेसफुल, प्रेमळ बाई म्हणजे डॉ. ताराबाई भवाळकर.

त्यांची ९८ व्या अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलनाच्या अध्यक्षपदी निवड होणं हे मराठी समाज आणि एकूण महाराष्ट्राच्या राजकीय, सामाजिक, सांस्कृतिक विश्वासाठी सुखावह बाब आहे.

कर्कश, एकांगी आणि मुजोर झालेल्या राजकीय सामाजिक भवतालात अशा विद्वान, परखड आणि सहृदय व्यक्तींना पुन्हा अशा जबाबदारीची धुरा देणं हे येऊ घातलेल्या बदलाचं लक्षण आहे, ही आणखी सुखावह बाब!

ताराताई भवाळकर यांच्या ग्रंथसंपदेची आणि निवडक मानसन्मानांची सूची ज्येष्ठ, साक्षेपी लेखिका डॉ. वीणा गवाणकर यांनी दिली आहे, ती अशी:

ग्रंथसंपदा 

अभ्यासक स्त्रिया (ज्येष्ठ लेखिका मालती दांडेकर, विदुषी दुर्गा भागवत यांच्यापासून ते प्रसिद्ध कवयित्री डॉ. अरुणा ढेरे यांच्यापर्यंत ज्ञात-अज्ञात अशा २५ अभ्यासक स्त्रियांच्या संशोधन कार्याचा परिचय करून देणारे पुस्तक)

आकलन आणि आस्वाद (साहित्यिक)

तिसऱ्या बिंदूच्या शोधात (वैचारिक)

निरगाठ सुरगाठ (लेखसंग्रह)

प्रियतमा ( गडकरी साहित्यातील स्त्री प्रतिमा)

बोरी बाभळी (रा. रं. बोराडे यांच्या ग्रामीण स्त्रीविषयक कथांचे संपादन आणि प्रस्तावना)

मधुशाळा (हरिवंशराय बच्चन यांच्या ‘मधुशाला’चे मराठीतले पहिले मराठी भाषांतर)

मरणात खरोखर जग जगते (कथासंग्रह)

मराठी नाटक : नव्या दिशा, नवी वळणे

मराठी नाट्यपरंपरा : शोध आणि आस्वाद

महामाया

माझिये जातीच्या (सामाजिक)

मातीची रूपे (ललित)

मायवाटेचा मागोवा

मिथक आणि नाटक

यक्षगान आणि मराठी नाट्य परंपरा

लोकनागर रंगभूमी (माहितीपर)

लोकपरंपरा आणि स्त्री प्रतिभा (माहितीपर)

लोकपरंपरेतील सीता

लोकसंचित (वैचारिक)

लोकसाहित्य : वाड्मयप्रवाह

लोकसाहित्याच्या अभ्यासदिशा (माहितीपर)

लोकांगण (कथासंग्रह)

संस्कृतीची शोधयात्रा (माहितीपर)

स्त्रीमुक्तीचा आत्मस्वर (वैचारिक)

स्नेहरंग (वैचारिक)

सन्मान आणि पुरस्कार 

पीएच. डी. च्या प्रबंधाला सर्वोत्कृष्ट प्रबंधाचा पुणे विद्यापीठाचा पुरस्कार.

आवास (अलिबाग) येथे भरलेल्या कोकण मराठी साहित्य परिषदेच्या महाराष्ट्रातील पहिल्या महिला साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद.

इस्लामपूर येथे भरलेल्या जागर साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद.

इस्लामपूर येथे भरलेल्या राजारामबापू ज्ञानप्रबोधिनी साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद.

उचगाव (बेळगाव) येथे भरलेल्या महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा प्रदेशीय साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद.

कादरगा येथे भरलेल्या महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा प्रदेशीय साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद.

जळगाव येथे भरलेल्या सूर्योदय साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद.

मुंबईतील मुलुंडच्या महाराष्ट्र सेवा संघातर्फे सुं. ल. गद्रे साहित्य पुरस्कार. (२२-१-२०१७)

‘लोकसंचित’ या पुस्तकाला महाराष्ट्र सरकारचा १९९१ सालचा पुरस्कार

पुणे शहरात ५ जानेवारी २०१९ रोजी झालेल्या पर्यावरण साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद.

(१. ताराबाईंच्या ग्रंथांची आणि मानसन्मानांची सूची आयती उपलब्ध करून दिल्याबद्दल ज्येष्ठ, साक्षेपी लेखिका Veena Gavankar यांचे आभार

२. चौफेर व्यासंगी वाचक, रसिक असलेले पुण्यातील ज्येष्ठ, सुप्रतिष्ठ व्यावसायिक आणि आर्याबाग सांस्कृतिक मंचाचे संस्थापक श्री. Kalyan Taware यांनी सूचना केल्याने हा परिचय लिहायची प्रेरणा मिळाली.)

लेखक : हेमंत प्रकाश राजोपाध्ये

प्रस्तुती : डॉ. सोनिया कस्तुरे.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 261 ☆ कथा-कहानी – कवच ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम विचारणीय व्यंग्य – ‘जीवन और भोजन। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 261 ☆

☆ कथा-कहानी ☆ कवच

बस-स्टैंड रात भर सोता नहीं। सब तरफ लगी तेज़ ट्यूबलाइट के बीच बसों के हॉर्न और यात्रियों की भाग-दौड़ गूंजती रहती है। पान की दुकानों पर लोगों के गुच्छे इकट्ठे होते और बिखरते रहते हैं। बीच-बीच में किसी बददिमाग़ आदमी से पुलिस वाले का संवाद सुनाई पड़ता है। कभी दो आदमियों या दो गुटों के बीच उठा-पटक हो जाती है, और कुछ देर के लिए वहां सोते या ऊंघते लोगों की नींद भाग जाती है।

बस-स्टैंड पर भैयालाल की चाय की दुकान रात बारह  एक बजे तक चलती है। फिर मुंह-अंधेरे ही वह हरकत में आ जाती है। भैयालाल दुकान के दोनों  छोकरों को जगा कर सरंजाम देखता घूमने लगता है। ज़्यादातर वक्त गुल्लक के बाजू में जमे रहने की वजह से उसकी  तोंद खासी बढ़कर झूलती रहती है। दुकान के खुलते ही बसों के कर्मचारी, मुसाफिर-खाने में इन्तज़ार करते यात्री और बस-स्टैंड को ही अपना घर मानने के लिए मजबूर लोग सवेरे की नींद भगाने वाले कप के लिए इकट्ठे होने लगते हैं।

और थोड़ा दिन फूटते ही दूर सड़क के किनारे लोकनाथ आता दिखायी पड़ता है, हमेशा की तरह झटका खाकर चलता हुआ और दाहिने पांव को थोड़ा  घसीटता हुआ। सवेरे बस-स्टैंड पहुंचने के बाद शाम की रोशनियां  जलने पर  ही उसका लौटना होता है। दोपहर के खाने के लिए वह रोटियों का थैला अपने साथ लाता है, जिसे वह पुरस्वानी बस सर्विस के केबिन में रख देता है।

लोकनाथ का काम यहां घूम-घूम कर विभिन्न प्राइवेट बसों के यात्रियों के लिए पुकार लगाते रहना है। वह चिल्ला-चिल्ला कर यात्रियों को विभिन्न मार्गो की तैयार बसों की सूचना और उन्हें अपनी अपनी बसों में बैठने की हिदायत देता रहता है। इस काम के लिए उसे मालिकों से रोज़ शाम को कुछ पैसे मिल जाते हैं।

इससे ज़्यादा कठिन काम के काबिल लोकनाथ नहीं है। कभी वह प्राइवेट बसों पर कुली का काम करता था। तब उसका काम सामान को रिक्शा-स्टैंड से लाकर बसों में चढ़ाने और बसों से उतार कर रिक्शा-स्टैंड तक ले जाने का था। तब वह अच्छी कमाई कर लेता था। एक दिन एक बस की छत से एक यात्री की छोड़ी हुई भारी भरकम पेटी उसके हाथों से चलती हुई उसकी टांग पर गिरी, और उसके घुटने के नीचे फ्रैक्चर हो गया। डॉक्टर ने डेढ़ महीने का प्लास्टर चढ़ाया और उसके बाद जांच कराने और एक्स-रे कराने को कहा। इतने में ही लोकनाथ की सब जमा-पूंजी खर्च हो गयी। पचीस दिन घर में पड़े रहने के बाद उसने हंसिया उठाकर प्लास्टर फाड़ डाला और वापस बस-स्टैंड पर आ गया। उसके बाद वह कोई भारी वज़न उठाने के काबिल नहीं रहा।

बस-स्टैंड तक पहुंचने के लिए लोकनाथ को करीब तीन किलोमीटर चलना पड़ता है। ट्रस्ट की ज़मीन में उगी झोपड़पट्टी में एक खोली उसकी भी है। पूरी झोपड़पट्टी पांच छः बार उजड़ चुकी है, लेकिन वह हर बार रक्तबीज की तरह वापस पैदा हो जाती है। जब नगर निगम के कर्मचारी और पुलिस वाले उसके घोंसले के तिनकों को खींच- खींच कर इधर-उधर फेंकते हैं तब वह बैठा तटस्थ भाव से देखता रहता है। जब यह फौज अपने ताम- झाम के साथ लौट जाती है तब वह अपनी पत्नी की तरफ मुड़ता है, जो ऐसे वक्त हमेशा बाहों में मुंह देकर आंसू बहाने के लिए बैठ जाती है। वह उसकी बांह पकड़कर उसे उठाता है और फिर से तिनके जमाने में लग जाता है।

लोकनाथ के तीन बेटों में से दो शादी करके उससे अलग हो चुके हैं। बहुएं बेहतर ज़िन्दगी की आकांक्षी हैं और इसीलिए वे बूढ़े सास- ससुर का बोझ ढोना नहीं चाहतीं। पंद्रह साल का छोटा बेटा स्कूल में पढ़ता है, लेकिन वह कितना पढ़ता है इसकी जानकारी हासिल करने की फुरसत लोकनाथ को नहीं है। बेटे की ज़्यादा दिलचस्पी फैशन के कपड़ों और सिनेमा में है। अपनी तरफ से वह अपने को फिल्मी हीरो बनाए रखने में कसर नहीं छोड़ता। अपनी नयी-नयी ज़रूरतों को लेकर उसकी रोज़ ही मां-बाप से किचकिच होती रहती है। लोकनाथ के मन में कहीं है कि यह लड़का भी बुढ़ापे में उसका साथ नहीं देगा, लेकिन वह इस आशंका को दिमाग में बैठने नहीं देता, न ही उसे पत्नी के सामने प्रकट करता है।

पास ही रघुबर की खोली है। रघुबर भीतर से कमज़ोर, जल्दी परेशान हो जाने वाला आदमी है। पुलिस और निगम के अमले को देखकर उसकी तबीयत बिगड़ने लगती है। शाम को अक्सर वह अपने भय और अपनी आशंकाओं को लेकर लोकनाथ के पास आकर बैठ जाता है। कहीं यह हो गया तो? कहीं वह हो गया तो? कई बार उसे भय होता है कि ट्रस्ट इस ज़मीन को किसी को बेच देगा और फिर उन्हें सिर छिपाने के लिए कोई नई जगह तलाशनी होगी।

लोकनाथ उससे कहता है, ‘ए भाई, तू अपने साथ-साथ मुझे कमजोर मत बना। अभी की सोच और अभी का इंतजाम कर। कल जो होगा उसका भी कुछ इंतजाम करेंगे। तू तो फालतू बातें सोच-सोच कर सूख ही रहा है, मुझे भी सुखाएगा। शरीर में बल तो रहा नहीं, मन का बल बचा रहने दे। यह भी टूट गया तो कुछ भी करने लायक नहीं रहेंगे।’

रघुबर सहमति में सिर तो हिलाता है, लेकिन उसकी आंखों में कोई चमक नहीं आती।

लोकनाथ कहता है, ‘देख भाई, सब चीजें मेरे तेरे खिलाफ हैं। न सरकार हमारी तरफ है, न पुलिस, न अफसर बाबू। सब रास्ते बन्द हैं। पैसे वालों की तरफ सब हैं। हवा ऐसी है कि हमारी सन्तान भी हमारी नहीं रह पाती। बड़े लोगों की दुनिया की चमक-दमक उन्हें भी हमसे खींच लेती है। वे भी इस नरक से छुटकारा चाहते हैं। इसलिए मन को मजबूत रखो और हालात का मुकाबला करो। चिन्ता करने से कोई फायदा नहीं।’

आज सवेरे जब लोकनाथ बस-स्टैंड पहुंचा तो वह हमेशा की तरह सीधे भैयालाल की दुकान पर रुका। बाहर पड़ी बेंच पर बैठकर बोला, ‘गुड मॉर्निंग, सेठ।’

भैयालाल का थोबड़ा उसे देखकर लटक गया। वह कुछ भुनभुना कर चुप हो गया।

लोकनाथ ने आवाज़ दी, ‘फटाफट चाय ला, छोकरे। एकदम गरम। फस्ट क्लास।’

भीतर से भैयालाल गुर्राया, ‘पैसे लाया है या मुफ्त में चाय पीने आया है?’

लोकनाथ गर्दन अकड़ा कर बोला, ‘ओ! एकदम कैश। हमको फटीचर समझता है? कह तो दस बीस हजार रुपया दे दूं।’

सेठ फिर भुन्नाया बोला, ‘रहने दे, रईस की औलाद।’

छोकरा चाय ले आया। लोकनाथ गुनगुनाता हुआ चाय पीता रहा। फिर उठकर उसने भैयालाल के सामने पांच रुपये फेंके, बोला, ‘ले पैसे। तू भी क्या याद करेगा।’

भैयालाल बोला, ‘और पिछले तीस रुपये?’

लोकनाथ बोला, ‘वे भी मिल जाएंगे। मुझे एक जायदाद मिलने वाली है। मिलते ही तुझे तीस की जगह तीन  सौ दे दूंगा। फिकर मत कर। तू मर जाएगा तो तेरे चीटके पर रुपये रख दूंगा और तुझे डाक से खबर कर दूंगा। नहीं दूंगा तो तू भूत बनकर रोज मेरे पास तीस रुपये वसूलने आएगा।’

भैयालाल फिर भुनभुनाने लगा और लोकनाथ उठकर इधर-उधर घूमता हुआ आवाज़ें लगाने लगा।

शाम को जब वह पैसे मांगने बसों के मैनेजरों के पास पहुंचता है तो वे भी झिकझिक करने से बाज़ नहीं आते। अक्सर कहते, ‘आज तूने हमारी बस के लिए कम आवाज लगायी। हमें तो तेरी आवाज सुनायी ही नहीं पड़ी। आज तू आया कब था, हमें तो कुछ पता ही नहीं चला।’

जवाब में लोकनाथ कहता है, ‘आप यहां एक रिकार्डर लगवा दो। शाम को रिकार्डर चला कर सबूत ले लिया करो। मैं रोज-रोज कहां तक सबूत दूं ?’

पैसे वसूल कर वह लंगड़ाता हुआ घर की तरफ चल दिया। करीब एक घंटे में वह उस इलाके में पहुंच गया जहां रोशनी के नाम पर असंख्य ढिबरियां टिमटिमाती थीं। ढिबरियों की रोशनी पर हावी अंधेरे के बीच लोगों के खांसने, रोने, हंसने, चीखने और लड़ने की आवाज़ें गूंजती थीं। कई तरफ से टीन के डिब्बों पर ताल देकर गाने के स्वर उठ रहे थे। दूर से वह किसी प्रेत-नगरी का भ्रम देती थी, सिर्फ आवाज़ों की नगरी।

लोकनाथ अपनी खोली के सामने पहुंचा तो उसने पत्नी को बाहर बैठे पाया। उसे देखकर बोली, ‘छुटका सवेरे का निकला अभी तक नहीं आया। दोपहर को रोटी भी नहीं खायी। जाने कहां चला गया मरा।’

लोकनाथ भीतर घुसता हुआ बोला, ‘तू मुझे रोटी दे। बहुत थक गया हूं ।’

रोटी खाकर वह ज़मीन पर बिछे बिस्तर पर कुहनी के बल उठंगकर बीड़ी पीने लगा। पत्नी खाना ढककर उसके पास आकर बैठ गयी, बोली, ‘तुम कैसे बाप हो? लड़का दिन भर जाने कहां घूमता रहता है और तुम कुछ फिकर नहीं करते?’

लोकनाथ बोला, ‘मैं सब सोचता हूं और सब फिकर करता हूं। मैं वह भी सोचता हूं जो तू नहीं सोचती। बहुत फिकर करके मुझे जल्दी मरना नहीं है। लोग यही तो चाहते हैं कि  तेरे-मेरे जैसे लोग फिकर में घुलें और जल्दी खतम हों। तू जाकर रोटी खा ले और सो जा। उसके लिए ढककर रख दें। जब आएगा तब खा लेगा।’

इसके बाद वह करवट बदलकर सो गया।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ शेष कुशल # 46 ☆ व्यंग्य – “इस दयार में तन्हा न वादियाँ बचीं हैं न फ़िज़ाएँ…” ☆ श्री शांतिलाल जैन ☆

श्री शांतिलाल जैन

 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक अप्रतिम और विचारणीय व्यंग्य  इस दयार में तन्हा न वादियाँ बचीं हैं न फ़िज़ाएँ…” ।)

☆ शेष कुशल # 45 ☆

☆ व्यंग्य – “इस दयार में तन्हा न वादियाँ बचीं हैं न फ़िज़ाएँ…” – शांतिलाल जैन 

प्रिय अतिथि,

तुम मत आना हमारे शहर में.

तुम अकेले तो आते नहीं,  पर्यटक के भेष में लाख की संख्या के औसत में रोज़ चले आते हो. तुम्हारे बूट के नीचे हमारे शहर की जमीन ही नहीं काँपती, शहरवासी भी काँपने लगते हैं. चलते तुम हो, हाँफने हम लगते हैं. तुम्हारे टेम्पो ट्रेवेलरों के काले धुएँ से सैर सपाटे के शहर के फेफड़ों में कजली जमने लगी है. कहते हैं दमा दम के साथ जाता है. जाता होगा मगर, आता तो पर्यटकों के साथ है. जिन्दगी किसी तरह इन्हेलर, नेबुलाईजर, डेरिफाइलीन के सहारे कट रही है. तुम्हारे वाहनों के शोर ने बुजुर्गों में बैचेनी और बच्चों में चिढ़चिढ़ापन बढ़ा दिया है. उनकी तीखी चुभती हेडलाइट्स ने जन-प्रतिनिधियों को अकल का अंधा बना दिया है. शहर में आती भीड़ के रेलों को वे विकास समझने भी लगे हैं, समझाने भी लगे हैं. तुम्हारे वाहनों की पींsss पाँsss पोंsss पोंsss ने जन-प्रतिनिधियों को बहरा कर दिया है. पर्यटन-विकास के नक्कारखाने में जन-कराह की तूती गुम हो गई है. जरूरी नहीं कि प्रलय भूकंप, तूफ़ान, बाढ़, भूस्खलन की शक्ल में ही आए, वो सैलानियों के सैलाब की सूरत में भी आ सकता है. हमारी मिन्नतें हैं अतिथि, तुम मत आना.

तुम्हारी गाड़ियों के काफिलों ने निस्तब्ध, नीरव, मंद गति वाले शहर को फ़ास्ट फॉरवर्ड मोड में ला दिया है. कभी शांत, सुन्दर, सौम्य रहा अध्येताओं, लेखकों, कलाकारों, ऋषियों, तपस्वियों का यह शहर अब रात में भी सो नहीं पाता, भारतीय रेल को सवारी रात में ही उतराने में मज़ा जो आता है. जहाँ तुम्हारी इनोवाएँ खड़ीं हैं वहाँ कुछ समय पहले हमारे आशियाने हुआ करते थे. उजाड़ दिए गए कि तुम्हारे लिए पार्किंग प्लाजा बनाया जा सके. तुम्हारी लैंड-रोवरों को निर्बाध गति देने के हेतु से चौड़ी की गई सड़क ने दोनों ओर के हमारे आब-ओ-दाने लील लिए हैं. नीड़ नष्ट कर दिए जाने का क्रंदन वातानुकूलित एसयूवी के अन्दर सुनाई नहीं देता. जेसीबी का दैत्य देखकर ही सिहरन पैदा होती है. और नया घर ? अब न अफोर्डेबल किराए पर मिल पा रहा है न खरीद पाने की हैसियत ही बची है. आसमान नीचे है, छत की कीमत उसके ऊपर. बेरिकेड्स की दीवारें जगह-जगह उग आई हैं. चीन की दीवार से बस एक इंच नीची इन दीवारों के उस ओर ही तो थे बाऊजी, मुँह में गंगाजल डलवाए बगैर चले गए. पास के मोहल्ले तक में न जाने पाने का दर्द किसी अभागे रहवासियों से पूछो. कभी निकला करते थे भगवन् अपनी आँखों से नगरवासियों का हाल जानने. तुम्हारी भीड़ के चलते अब वे मंदिर की चौखट से बाहर नहीं आ पा रहे, और हम हैं कि अन्दर नहीं जा पाते. बेबसी इधर भी है, बेबसी उधर भी. बेबसी अब और मत बढ़ाना. अतिथि, तुम मत आना.

सावधान, आगे पर्यटक सेल्फी ले रहे हैं. टू-व्हीलर में ब्रेक लगाईए और रुके रहिए. फोटो सेशन कब फिनिश होगा, कब हम दफ्तर पहुँच पाएंगे. खडूस बॉस का खौफ तुम क्या जानों अतिथि,  आग उगलती निगाहों का सोचकर ही द्रव किडनी से तेज़ी से छूट जाने की मांग करने लगता है. यूरिनरी ब्लैडर फटना चाहता है और इस भीड़ में सड़क किनारे हलके हो पाना संभव नहीं. रिक्शे अपन के दाम में मिलते नहीं. लोकल सवारी को ऑटोवाले हेय दृष्टि से देखते हैं. उन्हें सिर्फ तुम्हारी दरकार होती है. चोरी के बेर मीठे लगते हैं कमीशन के बेर उससे अधिक मीठे. होटल में चेक-इन करा करा कर मीठे बेर का चस्का लग गया है. चारों ओर उग आए होटलों, सरायों, धर्मशालाओं, गेस्ट हाउसों के जंगलों में कोर-सिटी में भटक गई है. फिर, हमारे बच्चे कम पढ़े-लिखे हों, बड़े होकर तुम्हारा रिक्शा खींचे ऐसा कोई पाप तो उन्होंने किया नहीं है. तुम बड़ी संख्या में आते हो उनके स्कूलों की छुट्टी हो जाती है. हमारे बच्चों पर तरस खाना अतिथि, तुम मत आना.

हम जानते हैं तुम रुकनेवाले नहीं हो, आओगे और पुण्य कमाकर चले जाओगे. हम तुम्हारा छोड़ा कचरा बीनते रह जाएँगे. पुण्य सलिला तुम्हें पवित्र कर देगी और तुम उसे गंदला,  इस कदर कि सदानीरा स्वयं के नीर का स्वयं आचमन नहीं कर पाए. तुम तो अपना परलोक सुधारकर निकल जाओगे अतिथि, हम अपने इहलोक का क्या करें!! तुम्हारी भीड़ में मोक्षदायिनी का मोक्ष गुम हो गया है. तुम क्या आए पीछे पीछे शहर में जेबकतरे, उचक्के, लुच्चे, उठाईगिरे चले आए हैं. इनसे बचाना अतिथि, तुम मत आना.

तुम्हारे आगमन ने अभिसार के एकांत उजाड़ने का अपराध किया है अतिथि. कुछ अंतरंग पल प्रियतमा के संग सुकून से गुजार सकें ऐसी सारी जगहें लील गए हो तुम. शब्-ए-मालवा का पुरसुकूं अहसास रफ्ता रफ्ता काफूर हो गया है. इस दयार में तन्हा न वादियाँ बचीं हैं न फ़िज़ाएँ. वे शहर खुशनसीब होते हैं जो पर्यटन के नक़्शे पर नहीं होते. ये सवाल बेमानी हो चला है अतिथि कि तुम कब जाओगे? अब तो तुमसे आगे और न आने की मिन्नतें बचीं हैं. हम पर मेहर होगी अतिथि, तुम मत आना.

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© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 261 – आओ संवाद करें… (2) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 261 ☆ आओ संवाद करें…(2) ?

लगभग डेढ़ माह पहले डेंगू ने जकड़ लिया था। परिणामस्वरूप सप्ताह भर अस्पताल में रहना पड़ा। व्याधि की जकड़न और अशक्ति के चलते लेखन भी विशेष नहीं हो पा रहा था। औषधि के प्रभाव से दिन में सोने लगा था जिससे देर रात तक जागता रहता। तथापि भोर के समय उठने का अभ्यास बना रहा।

हाँ, बिस्तर पर पड़े होने के कारण निरर्थक बीत रहा समय, निरर्थक बीत रहा जीवन, निरंतर व्यथित कर रहे थे‌। इसी स्थिति में पाँच दिन बीत गए। आज छठा दिन था। स्वास्थ्य में सुधार था पर अशक्ति भी थी।

इस समय भोर के साढ़े चार बजे थे। मैं अस्पताल के कॉरिडोर में यथासंभव चक्कर लगा रहा था। बदली हुई स्थितियों में यह मेरा ‘मॉर्निंग वॉक’ था। मुख्य फाटक बंद था। अतः बाहर जाने की सुविधा नहीं हो सकती थी। स्टाफ, मरीज़ सब सोए हुए और बिना पदचाप के, दबे पाँव मैं भ्रमण कर रहा था। 

लगभग छह बजे फाटक खुला। अस्पताल शहर की मुख्य सड़क पर है पर ‘स्मार्ट सिटी प्रकल्प’ के अंतर्गत बने चौड़े फुटपाथ के चलते भ्रमण की सुविधा थी। यह अस्पताल एक डॉक्टर मित्र का है। अत: मेरे लिए बाहर जाने में कोई कठिनाई नहीं थी। यहाँ से लगभग दो सौ मीटर दूर पोहे के लिए प्रसिद्ध एक होटल की शाखा है। वहाँ की चाय भी लोकप्रिय है। आज अनेक दिनों बाद चाय पीने की इच्छा जागी।

मैंने मनोबल बटोरा और धीरे-धीरे चलता हुआ उस होटल तक जा पहुँचा। होटल के सामने बड़ा अहाता था। तीनों ओर लगी हरी बाड़, गमलो में सजाकर रखे बड़े पौधे और उनके बीच करीने से लगी हुई टेबल- कुर्सियाँ। वातावरण से मन प्रसन्न हो उठा। मैं एक कुर्सी पर बैठ गया। बैठने से जैसे जान में जान आई।

देखता हूँ कि किसी महाविद्यालय के बारह-पंद्रह छात्र-छात्राएँ वहाँ जलपान कर रहे हैं। हँसी-मज़ाक करते, खाते-पीते युवा। फिर देखता हूँ कि उन विद्यार्थियों के समूह में से एक युवक अपने साथियों से कुछ कह रहा है और उसके साथी मुझे निहार रहे हैं। अनुमान लगाया कि संभवत: मेरी अस्त-व्यस्त स्थिति, बढ़ी हुई दाढ़ी, सलाइन लगाने के लिए हाथ में लगे आई.वी.सेट को देखकर वे कुछ चर्चा कर रहे हों।

इस बीच मेरी चाय आ गई। मैं धीरे-धीरे चुस्कियाँ लेकर चाय पीने लगा। उधर उन छात्र-छात्राओं का जलपान भी समाप्त हो चुका था। वे अब होटल से बाहर जा रहे थे। मैंने पाया कि वह युवक मेरी ओर आ रहा है। अनुभव हुआ कि वह मुझसे कुछ कहना चाहता है। निकट आकर उसने नमस्कार किया। फिर बोला, ‘अंकल आपको क्या हुआ है? अब बहुत कमज़ोर लग रहे हैं? क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ?” उस बच्चे के शब्दों की आत्मीयता ने भाव-विभोर कर दिया। उसे धन्यवाद देते हुए मैंने अपनी स्थिति की संक्षिप्त जानकारी दी। फिर वह बोला, “आप बिल्कुल मेरे चाचा की तरह दिखते हैं। आप आए तब से मैं आपको ही देख रहा था। अपनी तबीयत का ध्यान रखिए। क्या मैं आपको अस्पताल तक छोड़ दूँ?” मैंने सधन्यवाद इंकार किया। मालूम चला कि वह हिमाचल प्रदेश से है। ये सारे विद्यार्थी कोई शॉर्ट कोर्स करने यहाँ आए हुए हैं। कोर्स पूरा हो चुका। अब अपने-अपने घर लौटेंगे। जाते-जाते भी वह लड़का मुझे स्वास्थ्य का ध्यान रखने का आग्रह करता गया। एक बार फिर उसने अस्पताल तक छोड़ने की बाबत पूछा।  एक बार फिर मैंने इंकार किया।

वह चला गया और मानस में विचार उठा कि  हम आपस में परिचित नहीं थे। इस जीवन में हमारा कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्बंध इससे पूर्व नहीं आया था। तब भी वह युवक आत्मीय संवाद कर गया।… सचमुच मनुष्य और मनुष्य के बीच संवाद कितना आवश्यक है!

कोरोनाकाल में मैंने ‘आओ संवाद करें’ शीर्षक से तात्कालिक स्थितियों पर लेखन और यू-ट्यूब के माध्यम से प्रबोधन का प्रयत्न किया था। उसी शृंखला को आगे बढ़ाते हुए कहना चाहूँगा कि  परिस्थितियाँ जैसी भी हों, मनुष्य और मनुष्य का संवाद युगों से जमी बर्फ़ पिघला सकता है। अपनी एक कविता याद हो आई,

विवादों की चर्चा में युग जमते देखे,

आओ संवाद करें,

युगों को पल में पिघलते देखें..।

मेरे तुम्हारे चुप रहने से बुढ़ाते रिश्ते देखे,

आओ संवाद करें,

रिश्तों में दौड़ते बच्चे देखें..।

तो देर किस बात की, “आओ संवाद करें।”

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 नवरात्रि साधना सम्पन्न हुई। अग ली साधना की जानकारी शीघ्र ही दी जाएगी 💥 🕉️

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 208 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 208 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 208) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 208 ?

☆☆☆☆☆

चलो अब जाने भी दो

क्या करोगे दास्तां सुनकर

खामोशी तुम समझोगे नहीं

और हमसे बयाँ होगा नहीं…

☆☆

Let’s leave it at that now….

What’ll you do by hearing my story

You won’t understand the silence

And I’ll not be able to explain…!

☆☆☆☆☆

मेरी तमन्ना न थी कभी

तेरे बगैर रहने की मगर

मजबूर को मजबूर की

मजबूरीयां मजबूर कर देती हैं!

☆☆

Never did I desire to

Live without you but…

The helplessness compels 

the helpless to live without!

☆☆☆☆☆

कैदी हैं सब यहाँ…

कोई ख्वाबों का..

तो कोई ख्वाहिशों का..

तो कोई ज़िम्मेदारियों का…

☆☆

Everyone is prisoner here,

Some of their dreams,

While some of their desires…

Others of responsibilities…

☆☆☆☆☆

होती तो हैं ख़ताएँ

हर एक से मगर…

कुछ जानते नहीं हैं

कुछ मानते नहीं…

☆☆

Committal of mistakes

Happens by everyone…

Some are not aware of it

While others don’t accept it…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 208 ☆ जागो माँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवरात्रि पर्व पर विशेष जागो माँ…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 208 ☆

जागो माँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

जागो माँ! जागो माँ!!

सीमा पर अरिदल ने भारत को घेरा है

सत्ता पर स्वार्थों ने जमा लिया डेरा है

जनमत की अनदेखी, चिंतन पर पहरा है

भक्तों ने गाली का पढ़ लिया ककहरा है 

सैनिक का खून अब न बहे मौन त्यागो माँ

जागो माँ! जागो माँ!!

*

जनगण है दीन-हीन, रोटी के लाले हैं 

चिड़ियों की रखवाली, बाज मिल सम्हाले हैं

नेता के वसन श्वेत, अंतर्मन काले हैं

सेठों के स्वार्थ भ्रष्ट तंत्र के हवाले हैं

रिश्वत-मँहगाई पर ब्रम्ह अस्त्र दागो माँ

जागो माँ! जागो माँ!!

*

जन जैसे प्रतिनिधि को औसत ही वेतन हो

मेहनत का मोल मिले, खुश मजूर का मन हो

नेता-अफसर सुत के हाथों में भी गन हो 

मेहनत कर सेठ पले, जन नायक सज्जन हो

राजनीति नैतिकता एक साथ पागो माँ

*

सीमा पर अरिदल ने भारत को घेरा है

सत्ता पर स्वार्थों ने जमा लिया डेरा है

जनमत की अनदेखी, चिंतन पर पहरा है

भक्तों ने गाली का पढ़ लिया ककहरा है 

सैनिक का खून अब न बहे मौन त्यागो माँ

जागो माँ! जागो माँ!!

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-४-२०१४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (14 अक्टूबर से 20 अक्टूबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (14 अक्टूबर से 20 अक्टूबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

आप सभी को पंडित अनिल पांडे का नमस्कार समय की इस नए बेला में मैं एक नए सप्ताह का साप्ताहिक राशिफल लेकर आपके सामने प्रस्तुत हूं। यह साप्ताहिक राशिफल 14 अक्टूबर से 20 अक्टूबर 2024 अर्थात विक्रम संवत 2081 शक संवत 1946 के अश्विनी शुक्ल पक्ष की द्वादशी से कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रितीया तक का है।

इस सप्ताह चंद्रमा प्रारंभ में कुंभ राशि में रहेगा। 15 अक्टूबर को 2:56 दिन से मीन राशि में प्रवेश करेगा 17 तारीख को 5:14 शाम से वह मेष राशि में गोचर करने लगेगा इसी प्रकार 19 तारीख को 7:48 रात से वह वृष राशि का हो जाएगा।

इस सप्ताह प्रारंभ में सूर्य कन्या राशि में रहेगा तथा 17 तारीख को 10:08 से तुला राशि में प्रवेश करेगा। मंगल प्रारंभ में मिथुन राशि में रहेगा और 20 तारीख को 10:44 दिन से कर्क राशि में गोचर करने लगेगा। बुध पूरे सप्ताह तुला राशि में, और शुक्र पूरे सप्ताह वृश्चिक राशि में रहेगा। पूरे सप्ताह वक्री गुरु वृष राशि में, शनि कुंभ राशि में और बक्री राहु मीन राशि में गमन करेंगे।

आईये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में परेशानी हो सकती है। आपका व्यापार ठीक चलेगा। धन आने की रफ्तार में कमी आएगी। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 अक्टूबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 15 16 और 17 अक्टूबर को आपको कोई भी कार्य सावधान रहकर करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गरीबों के बीच में तिल का दान दें और शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव का पूजन करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

वृष राशि

अविवाहित जातकों के पास विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में परेशानी हो सकती है। कार्यालय में आपको सचेत रहने की आवश्यकता है। आपके शत्रु आपको परेशान करने का प्रयास कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 14 और 20 अक्टूबर किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 15 अक्टूबर के दोपहर तक भी आपके कुछ कार्य संपन्न हो सकते हैं। 18 और 19 अक्टूबर को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। ‌आपका व्यापार ठीक चलेगा। आपके संतान को कुछ परेशानी हो सकती है। कार्यालय में आप कठोर भाषा का प्रयोग ना करें। इस सप्ताह आपके लिए 15, 16 और 17 अक्टूबर किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 20 अक्टूबर को आपके कार्यों को करते समय सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके सुख में वृद्धि होगी। भाइयों के साथ संबंध इस सप्ताह ठीक हो जाएगा। कचहरी के कार्य में सावधानी से कार्य करें। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 अक्टूबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 14 और 15 अक्टूबर को आपको कोई भी कार्य करने के पहले पूर्ण सतर्कता वरतनी चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विषू सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहना चाहिए। धन आने की उम्मीद है। भाइयों से संबंध थोड़ा सुधरेगा। आपके सुख में कमी आ सकती है। दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें। इस सप्ताह आपके लिए 14 और 15 तारीख की दोपहर तक का समय तथा 20 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 20 तारीख को आपके द्वारा किए गए सभी कार्य संपन्न होंगे। इसके अलावा सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भिखारियों के बीच प्रतिदिन मसूर की दाल का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपका, आपके जीवनसाथी का और माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाग्य से इस सप्ताह आपको थोड़ी बहुत मदद मिल सकती है। शत्रु शांत रहेंगे। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक नहीं रहेगा। व्यापार अच्छा चलेगा। धन आने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके लिए 15 तारीख की दोपहर के बाद से 16 और 17 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गरीब लोगों के बीच में चावल का दान दें तथा शुक्रवार को मंदिर में जाकर पुजारी जी को चावल या सफेद वस्त्र का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में वृद्धि होगी। धन आने की मात्रा में कमी हो सकती है। भाग्य से कोई विशेष सहयोग नहीं मिलेगा। संतान से आपको सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 अक्टूबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 15, 16, 17 तथा 20 तारीख को आपको कोई भी कार्य बड़ी सतर्कतापूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए आप कि प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके माता जी का और जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके स्वास्थ्य में थोड़ी गिरावट हो सकती है। कचहरी के कार्यों में आपको सावधान रहना चाहिए। धन आने की मात्रा में थोड़ी कमी हो सकती है। संतान का सहयोग आप कम मिलेगा। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 20 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 18 और 19 तारीख को आपको कोई भी कार्य में सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपको अपने वेतन के अलावा कोई अन्य धन प्राप्त हो सकता है। स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक-ठाक रहेगी। आपका व्यापार ठीक चलेगा। इस सप्ताह आपके लिए 15, 16 और 17 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 20 तारीख को आपको कोई भी कार्य बड़े सोच विचार कर करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत भगवान सूर्य को सूर्य मंत्रों के साथ में तांबे के पात्र में जल और लाल पुष्प डालकर जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार ठीक-ठाक चलेगा। लंबी यात्रा का योग बन सकता है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई अच्छी चलेगी। शत्रु शांत रहेंगे। इस सप्ताह आपको कार्यालय के कार्यों में सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपको अपने कार्यों में भाग्य की मदद मिल सकती है। माता जी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। आपके सुख में वृद्धि होगी। कार्यालय में आपको सतर्क रह कर कार्य करना चाहिए। आपका व्यापार उत्तम चलेगा। आपके पुत्र को थोड़ी तकलीफ हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 20 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। दुर्घटनाओं से आप बच जाएंगे। भाग्य से कोई विशेष मदद नहीं प्राप्त होगी। आपको अपने संतान से कोई विशेष मदद प्राप्त नहीं हो पाएगी। इस सप्ताह आपके लिए 15 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 16 और 17 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 14 और 15 तारीख को आपको कोई भी कार्य करने में पूरी सावधानी रखना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

 

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको किसी अच्छे ज्योतिषी से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – परिचर्चा ☆ “साहित्य में कोई शाॅर्टकट नहीं होता…” – श्री शेखर जोशी ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित। कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4। यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार। हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष। दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ परिचर्चा ☆ “साहित्य में कोई शाॅर्टकट नहीं होता…” – श्री शेखर जोशी ☆ – श्री कमलेश भारतीय  

श्री शेखर जोशी जी से बातचीत

= साहित्य में कोई शाॅर्टकट नहीं होता

= खुली आंखों देखें दुनिया, अच्छा साहित्य पढ़ें नये रचनाकार

हरियाणा ग्रंथ अकादमी की ओर से शुरू की गयी पत्रिका के प्रवेशांक नवम्बर, 2012 के अंक में हिंदी के लब्ध प्रतिष्ठित कथाकार शेखर जोशी से कथा विधा पर चर्चा की गयी थी। पंचकूला के सेक्टर 14 स्थित हरियाणा अकादमी भवन जाना हुआ तो प्रवेशांक ले आया।

– हिंदी कहानी में वाद और आंदोलन कैसे शुरू हुए ?

– हिंदी कहानी में वाद और आंदोलन की शुरूआत का रोचक तथ्य यह है कि पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था ‘ सन् 1915 में प्रकाशित हुई थी। संवेदना व शिल्प की दृष्टि से यह कहानी अपने रचनाकाल में बेजोड़ थी और आज भी है ! इस नयेपन के बावजूद गुलेरी ने इसे नयी कहानी नहीं कहा।

प्रेमचंद, सुदर्शन, जैनेंद्र, अज्ञेय, पहाड़ी, इलाचंद्र जोशी और अमृत राय ने भी सहज ढंग से कहानी के विकास में अपना योगदान दिया लेकिन किसी आंदोलन की घोषणा नहीं की।

संभवतः सन् 1954 में कवि दुष्यंत कुमार ने ‘कल्पना’ पत्रिका में कहानी विधा पर केंद्रित एक आलेख लिखा और स्वयं खूब जोर शोर से ‘नयी कहनी’ का नारा बुलंद किया। अपने अभिन्न मित्रों मार्कंडेय व कमलेश्वर की कहानियों को नयी कहानी की संज्ञा दी ! संपादक भैरव प्रसाद गुप्त और आलोचक नामवर सिंह ने भी इस नामकरण पर अपनी मुहर लगा दी तो यह नाम पड़ा !

नयी कहानी के प्रवक्ता कहानीकारों की दिगंतव्यापी कीर्ति को देखकर ही शायद आने वाली पीढ़ियों के कहानीकारों ने भी अपने लिए एक नया नाम खोजने की परंपरा चलाई ताकि अपना वैशिष्ट्य रेखांकित किया जा सके ! जो भी हो कहानी को किसी वाद या आंदोलन से लाभ या नुकसान नहीं हुआ। कालांतर में वे ही कहानियां सर्वमान्य हुईं जिनमें अपना युग का यथार्थ प्रतिबिंबित था और कथ्य और शिल्प के स्तर पर बेजोड़ थीं !

– क्या कविता में सन्नाटा है ?

– कौन कहता है कि कविता में सन्नाटा है ? नये ऊर्जावान, प्रतिभाशाली कवि बहुत अच्छी कविताएं लेकर आ रहे हैं। हिमाचल, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्यप्रदेश और देश के अन्य भागों से कवि अच्छा लिख रहे हैं। प्रकाशकों से पूछ कर देखिए उनके पास कितने काव्य संग्रहों की पांडुलिपियां प्रकाशन की बाट जोह रही हैं !

– क्या कविता की तरह कथा में भी सन्नाटे की बात की जा सकती है ?

– कहानी में भी कोई सन्नाटा नहीं। जितने नये कहानीकार इस दौर में उभरे हैं उतने तो पचास दशक में भी नही थे !

– क्या कहानी पर बौद्धिकता भारी पड़ रही है ?

– कहानी पर बौद्धिकता हावी नहीं हो रही। कुछ लोग कई माध्यमों से अर्जित ज्ञान को अपनी कहानियों में प्रक्षेपित कर रहे हैं ! ऐसा प्रतीत होता है कि बौद्धिकता हावी हो गयी ! हां, कुछ प्रबुद्ध कहानीकार वाकई अच्छे बौद्धिक हैं। सहज ढंग से अपनी अभिव्यक्ति में बौद्धिकता का आभास देते हैं। यह स्वागत् योग्य है।

– पत्र पत्रिकाओं में साहित्य का स्थान कम होता जा रहा है। ऐसा क्यों ?

– कथा के ही नहीं समाचारपत्रों के रविवारीय अंकों में भी पहले जो साहित्यिक सामग्री रहा करती थी अब वह लुप्त होती जा रही है। कहानी के लिए यदि पत्रिकाओं में पृष्ठ कम होने की शिकायत है तो यह स्वीकार करना होगा कि कुछ पत्रिकायें कहानी पर ही केंद्रित हैं। बहुत कहानियां आ रही हैं। कितना पढ़ेंगे ? संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, निंदापुराण इस कमी को पूरा कर ही रहे हैं न !

– नये रचनाकारों के नाम कोई संदेश देना चाहेंगे ?

– नये रचनाकारों के नाम कोई संदेश देने की पात्रता मैं स्वयं में नही देखता ! जैसे हमने खुली आंखों दुनिया को देखकर लिखा, उस्ताद लेखकों के साहित्य को पढ़कर सीखा, अपने समकालीन रचनाकारों की रचनाओं की बारीकियों को समझा वैसे ही किया जाये तो कुछ हासिल किया जा सकता है। आज के समाज को समझने के लिए साहित्य के अलावा अन्य विषयों की भी अच्छी जानकारी उतनी ही जरूरी है। सबसे बड़ी बात है आत्मविश्वास। धैर्य की ! साहित्य में कोई शाॅर्टकट नहीं होता !

श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 134 ☆ मुक्तक – ।। विजयदशमी पर्व ।। भीतर का भी रावण मारें ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 134 ☆

☆ मुक्तक ।। विजयदशमी पर्व ।। भीतर का भी रावण मारें ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

समाज का  सुधार भी  करें और  खुद  को   भी  सुधारें।

दूसरों की ही  गलती    नहीं अंतःकरण को भी   निहारें।।

विजयदशमी  का  यह   पर्व है  बुराई  पर  जीत   का।

बस पुतला दहन  ही काफी नहीं  भीतर का रावण  मारें।।

[2]

हमारे भीतर  छिपा  दशानन उसको भी हमें  हराना   है।

काट-काट कर दस शीश हमें नामो   निशान  मिटाना है।।

यही होगा  विजयदशमी पर्व का  सच्चा  हर्ष  उल्ल्हास।

अपने भीतर के रावण  पर भी हमें विजय को पाना है।।

।। विजयदशमी पर्व की अनन्त असीम शुभकामनाओं सहित।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 198 ☆ हे सिंहवाहिनी, शक्तिशालिनी, कष्टहारिणी माँ दुर्गे… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “हे सिंहवाहिनी, शक्तिशालिनी, कष्टहारिणी माँ दुर्गे। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 198 ☆ हे सिंहवाहिनी, शक्तिशालिनी, कष्टहारिणी माँ दुर्गे☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

हे सिंहवाहिनी, शक्तिशालिनी, कष्टहारिणी माँ दुर्गे 

महिषासुर मर्दिनि, भव भय भंजनि, शक्तिदायिनी माँ दुर्गे 

*

तुम निर्बल की रक्षक, भक्तों का बल विश्वास बढ़ाती हो 

दुष्टो पर बल से विजय प्राप्त करने का पाठ पढ़ाती हो 

हे जगजननी, रणचण्डी, रण में शत्रुनाशिनी माँ दुर्गे 

*

जग के कण कण में महाशक्ति की व्याप्त अमर तुम चिनगारी 

दृढ़ निश्चय  की निर्भय प्रतिमा, जिससे डरते अत्याचारी 

हे शक्ति स्वरूपा, विश्ववन्द्य, कालिका, मानिनि माँ दुर्गे 

*

तुम परब्रम्ह की परम ज्योति, दुष्टो से जग की त्राता हो 

पर भावुक भक्तो की कल्याणी परंवत्सला माता हो 

निशिचर विदारिणी, जग विहारिणि, स्नेहदायिनी माँ दुर्गे . 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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