हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३९ – “सहृदय भावुक कवि स्व. अंशलाल पंद्रे” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।

प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन

(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व सहृदय भावुक कवि स्व. अंशलाल पंद्रेके संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)

आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆ कहाँ गए वे लोग – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ७ ☆ “स्व गणेश प्रसाद नायक” – लेखक – श्री मनोहर नायक ☆ प्रस्तुति  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “बुंदेली की पाठशाला- डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ९ ☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ११ – “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १२ ☆ डॉ. रामदयाल कोष्टा “श्रीकांत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆   

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १३ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकप्रिय नेता – नाट्य शिल्पी सेठ गोविन्द दास ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १४ ☆ “गुंजन” के संस्थापक ओंकार श्रीवास्तव “संत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १५ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆ 

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १७ – “डॉ. श्री राम ठाकुर दादा- समाज सुधारक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १८ – “राजकुमार सुमित्र : मित्रता का सगुण स्वरुप” – लेखक : श्री राजेंद्र चन्द्रकान्त राय ☆ साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १९ – “गेंड़ी नृत्य से दुनिया भर में पहचान – बनाने वाले पद्मश्री शेख गुलाब” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २० – “सच्चे मानव थे हरिशंकर परसाई जी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २१ – “ज्ञान और साधना की आभा से चमकता चेहरा – स्व. डॉ कृष्णकांत चतुर्वेदी” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २२ – “साहित्य, कला, संस्कृति के विनम्र पुजारी  स्व. राजेन्द्र “रतन”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २३ – “मेरी यादों में, मेरी मुंह बोली नानी – सुभद्रा कुमारी चौहान” – डॉ. गीता पुष्प शॉ ☆ प्रस्तुती – श्री जय प्रकाश पांडे ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २४ – “संस्कारधानी के सिद्धहस्त साहित्यकार -पं. हरिकृष्ण त्रिपाठी” – लेखक : श्री अजय कुमार मिश्रा ☆ संकलन – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २५ – “कलम के सिपाही – मुंशी प्रेमचंद” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २६ – “यादों में रहते हैं सुपरिचित कवि स्व चंद्रकांत देवताले” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २७– “स्व. फ़िराक़ गोरखपुरी” ☆ श्री अनूप कुमार शुक्ल ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २८ – “पद्मश्री शरद जोशी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २९ – “सहकारिता के पक्षधर विद्वान, चिंतक – डॉ. नंद किशोर पाण्डेय” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३० – “रंगकर्मी स्व. वसंत काशीकर” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३१ – “हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, फारसी के विद्वान — कवि- शायर पन्नालाल श्रीवास्तव “नूर”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३२ – “साइकिल पर चलने वाले महापौर – शिक्षाविद्, कवि पं. रामेश्वर प्रसाद गुरु” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३३ – “भारतीय स्वातंत्र्य समर में क्रांति की देवी : वीरांगना दुर्गा भाभी” ☆ डॉ. आनंद सिंह राणा ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३४ –  “जिनके बिना कोर्ट रूम भी सूना है : महाधिवक्ता स्व. श्री राजेंद्र तिवारी” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३५ – “सच्चे मानव – महेश भाई” – डॉ महेश दत्त मिश्रा” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३६ – “महिलाओं और बच्चों के लिए समर्पित रहीं – विदुषी समाज सेविका श्रीमती चंद्रप्रभा पटेरिया” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३७ – “प्यारी स्नेहमयी झाँसी वाली मामी – स्व. कुमुद रामकृष्ण देसाई” ☆ श्री सुधीरओखदे   ☆

 

 

स्व. अंशलाल पंद्रे

☆ कहाँ गए वे लोग # ३९ ☆

☆ सहृदय भावुक कवि स्व. अंशलाल पंद्रे” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव

अत्यंत सहज, सामान्य से दिखने वाले अंशलाल पंद्रे को उनके ज्ञान, कर्तव्य निष्ठा, ईमानदारी, सहृदयता, मिलनसारिता, देशभक्ति और सशक्त लेखनी ने उनके जीवन काल में ही विशिष्ट बना दिया था। एक समय ऐसा था जब न सिर्फ जबलपुर वरन आसपास के अनेक नगरों की साहित्यिक – सांस्कृतिक, आध्यात्मिक संस्थाओं के कार्यक्रमों के सूत्रधार और शक्तिपुंज पंद्रे जी ही हुआ करते थे। पंद्रे जी ने धर्म – आध्यात्म, प्रकृति, महापुरुषों और देशभक्ति पर अविस्मरणीय  मधुर, प्रेरणादायी, सहज – सरल भावभरे गीत लिखे।

एकता और समानता पर उनकी पंक्तियां –

राम, कृष्ण, ईसा, मोहम्मद,

नानक का सम्मान यहां।

जाति धर्म का भेद नहीं है,

हम सब एक सामान यहां।।

 

,,,,और प्रकृति प्रेम –

रिमझिम गाए सावनी घटा।

बहलाए मन फगुनी छटा।।

जो दिखे लगे निखरा – निखरा।

है नमन तुझे हे ! वसुंधरा।।

,,,,श्रम का पूजन –

हाथों में लेकर कुदाल खेतों को हम जाते।

सूरज की पहली किरन से रोज ही नहाते।

श्रम की पूजा करने में विश्वास हमारा है।

सबसे अच्छी फुलवारी – हिन्दुस्तान हमारा है।।

12 सितम्बर 1954 में ग्राम विजयपानी खुर्द में जन्में अंशलाल पंद्रे की प्रारंभिक शिक्षा एवं कर्म भूमि का केंद्र छपारा जिला – सिवनी रहा। आपने अर्थशास्त्र में एम. ए. तथा गायन में संगीत प्रभाकर किया। सफलता के लिए निरंतर प्रयत्न एवं कर्म पर विश्वास रखने वाले अंशलाल पंद्रे जी मध्यप्रदेश के लोकप्रिय क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी रहे। शासकीय सेवा में अति व्यस्तता के बाद भी उन्होंने साहित्य सृजन जारी रखा। उनकी रचनाएं देश की प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन से प्रसारित होती रहीं। पंद्रे जी आकाशवाणी से अनुबंधित गीतकार, सुगम संगीत व ड्रामा आर्टिस्ट भी रहे हैं। आप जबलपुर की संस्था “वर्तिका” के अध्यक्ष सहित अनेक संस्थाओं व पत्रिकाओं के संरक्षक भी रहे।  दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय, भोपाल के परिषद सदस्य पंद्रे जी का देश की अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मान किया गया। यों तो आपके गीत अनेक संग्रहों में शमिल हैं तथापि आपके द्वारा रचित कृतियों में प्रमुख हैं – सच्चिदानंद साईं हरि, गीत गुंजन, गीत मेरे मीत, प्यारा मध्यप्रदेश, सुर हरसिंगार (संगीत साधकों के लिए), जय मां हे भारती, किलकारी – फुलवारी, अंश भजनामृत एवं जननी भारत माता। देश के प्रसिद्ध शायर साज़ जबलपुरी के अनुसार कविता में अनेक विषयों पर अपनी सशक्त अभिव्यक्ति करने वाले अंशलाल पंद्रे में रसिकता, आध्यात्मिकता, राष्ट्रचिंतन तथा सरसता का अदभुत योग है।

साहित्य साधिका संध्या जैन “श्रुति” कहती हैं –

पंद्रे जी के गीतों का सरस सुवासित काम।

सद्भावी वाणी सरल अंशलाल है नाम।।

डॉ. हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के तत्कालीन प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग डॉ.आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने लिखा था कि “व्यक्तिगत जीवन में भी पंद्रे जी की सरलता, सहजता और भावप्रवणता को देखकर हर कोई मुग्ध हो उठता है। व्यक्तित्व की यही छाप पंद्रे जी के गीतों में देखी जा सकती है।”

पंद्रे जी की देशभक्ति पूर्ण भावभरी रचनाएं सदा आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करती रहेंगी।

© श्री प्रतुल श्रीवास्तव

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

संकलन –  जय प्रकाश पाण्डेय

संपर्क – 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 201 ☆ # “सर्दी का मौसम…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता सर्दी का मौसम…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 201 ☆

☆ # “सर्दी का मौसम…” # ☆

यह सर्दी का मौसम

ये चुभती हवाएँ

मेरे दिल की धड़कन

तुमको बुलाएँ  

 

यह बर्फ की सफेद चादर

तुम ओढ़कर पड़ी हो

ये हिमखंडो के टुकड़े

जैसे तुम खुद से लड़ी हो

अब तुम इनसे ना लड़ना

कहीं यह पिघल ना जाएँ

मेरे दिल की धड़कन

तुमको बुलाएँ

 

ये शाम के धुंधलके

ये दिलकश  नजारे

ये बर्फ के उड़ते बादल

अब तुमको पुकारे

आ जाओ , कहीं ये  

मौसम बदल ना जाए

मेरे दिल की धड़कन

तुमको बुलाएँ

 

यह कड़कड़ाती ठंड

ये खोजती निगाहें

ठिठुरते हुए जिस्म को

बांहों में लेना चाहें

तुम्हारे लरजते हुए होंठ देख

कहीं दिल मचल ना जाएँ

मेरे दिल की धड़कन

तुमको बुलाएँ

 

कितनी फब रही है तुम पर

यह बूटेदार शाल

तुम्हारा यौवन देख

बुरा है दिल का हाल

दिल की यह हसरत

कहीं यूंही निकल ना जाएँ

यह सर्दी का मौसम

ये चुभती निगाहें

मेरे दिल की धड़कन

तुमको बुलाएँ  /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 198 ☆ बंधनातून मुक्त ही होतात !! ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 198 ? 

☆ बंधनातून मुक्त ही होतात !! ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

(अंत्यओळ काव्य)

तुझ्यानंतर तुझे इथे काही नाही

तुझ्यानंतर, तुझे नावं उरतं नाही

कशाला गर्व करतो वेड्या मनुजा

तुझेच तुला शिवत ही नाही.!!

*

तुझेच तुला शिवत ही नाही

तुझ्यापाठी राखही उरत नाही

छी थू करतात सर्व तुझ्यावर

अंघोळीला पाणी तापत नाही.!!

*

अंघोळीला पाणी तापत नाही

आहे तसेच मढ्यावर ओततात

लवकर उरकवून प्रस्तुत विधी

तुझ्या घराला रिक्त करतात.!!

*

तुझ्या घराला रिक्त करतात

कपडे ही जाळून टाकतात

पैसा अडका सोडून बाकी

तुझ्याच सवे, रवाना करतात.!!

*

तुझ्याच सवे रवाना करतात

दहा दिवसाचे सुतक पाळतात

डोक्यावरचे केस काढून

बंधनातून मुक्त ही होतात.!!

*

बंधनातून मुक्त ही होतात

सत्य घटना इथे मांडली

जीवनाचा प्रवास भयंकर

राज-शब्द, कविता प्रसवली.!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – ☆ पुस्तकांवर बोलू काही ☆ “स्वामी विवेकानंद समग्र चरित्र – ३ खंड” – लेखक : प्रा. एस. एन धर – अनुवाद : डॉ. सुरुची पांडे / सौ. संगीता तपस्वी /प्रा. सुषमा कर्णिक ☆ परिचय – श्री हर्षल सुरेश भानुशाली ☆

श्री हर्षल सुरेश भानुशाली

? पुस्तकावर बोलू काही ?

☆ “स्वामी विवेकानंद समग्र चरित्र – ३ खंड” – लेखक : प्रा. एस. एन धर – अनुवाद : डॉ. सुरुची पांडे / सौ. संगीता तपस्वी /प्रा. सुषमा कर्णिक ☆ परिचय – श्री हर्षल सुरेश भानुशाली ☆

(स्वामी विवेकानंद यांचे विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी या प्रकाशनाने प्रकाशित केलेलं समग्र चरित्र !)

पुस्तक : स्वामी विवेकानंद समग्र चरित्र (खंड एक, दोन आणि तीन)

(कॉम्प्रेशन बायोग्राफी ऑफ स्वामी विवेकानंद या इंग्रजी पुस्तकाचा मराठी अनुवाद.)

लेखक : प्रा. एस. एन धर

अनुवाद : डॉ. सुरुची पांडे / सौ. संगीता तपस्वी /प्रा. सुषमा कर्णिक ☆ परिचय – श्री हर्षल सुरेश भानुशाली

(तिन्ही ग्रंथाची एकत्रित) पृष्ठे : २११२

मूल्य : २५००₹ 

स्वामी विवेकानंद यांच्या नावाची भुरळ आजही भारतीयांच्या मनावर आहे. आणि ती तसूभरही कमी झालेली नाही. त्यांचे विचार, त्यांचा संदेश पौर्वात्य जगतातच नव्हे, तर पश्चिमात्य विश्वातही सगळ्यांना आकर्षून घेत आहे.

स्वामी विवेकानंद एक महायोगी होते. हिमनगाचा पाण्याखालील अदृश्य भाग असतो, तसे त्यांचे जीवन आपल्या मानवी जाणिवांच्या पलीकडचे होते. स्वामीजींचे जीवन आणि कार्य सर्व जगतकल्याणासाठीच होते. इतर सत्पुरुषांसारखे त्यांचे जीवन नव्हते. शिकागोमध्ये १८९३ साली भरलेल्या जागतिक धर्मपरिषदेपासून, जगाच्या पटलावर त्यांना एक थोर ऐतिहासिक विभूती अशी ओळख मिळाली होती. आधुनिक भारताचे ते कित्येकांच्या मते एक सर्वश्रेष्ठ निर्माते होते, ज्यांचे ध्येय जागतिक होते. जगाला भौतिक प्रगती प्रदान करण्याबरोबरच, नवीन जीवनमूल्ये किंवा जुन्या जीवनमूल्यांची पुनर्स्थापना करण्यासाठी ते अखंड झिजले. दुसरे म्हणजे, त्यांच्या जीवनाविषयी आणि कार्याविषयी उदंड साहित्य जमा होत गेले आणि भारताबरोबरच जगातही त्यावर खूप संशोधन सुरू आहे.

 हे पुस्तक लिहिण्यामागे स्वामी विवेकानंदाच्या जीवन आणि कार्याचा एक सरळ आणि तटस्थ आढावा घेणे हा लेखकाचा हेतू आहे. उपलब्ध असलेले सर्व प्रकाशित आणि अप्रकाशित साहित्याचा संदर्भ घेऊन केलेले हे लेखन कुठल्याही सिद्धांताचा/ तत्त्वाचा अथवा विचारपद्धतीच्या प्रसारासाठी अथवा छापील गोष्टीचा अपभ्रंश करण्यासाठी केलेले नाही. या चरित्रातील व्यक्ती आणि प्रसंग वेगवेगळ्या प्रकारे पारखून आणि निरखून घेतलेले आहेत. ज्यायोगे वाचकांना एक समग्र चरित्र उपलब्ध होईल. या अभ्यासात पार्श्वभूमीवरचे आणि अग्रस्थानी असलेले अनेक प्रसंग, आणि त्याकाळची सामाजिक, राजकीय, आर्थिक आणि धार्मिक परिस्थिती समाविष्ट करण्यात आली आहे. तसेच स्वामी विवेकानंदांच्या जडणघडणीत मोलाचा वाटा उचलणारे श्रीरामकृष्ण यास अभ्यासात अध्याहृत आहेत.

या खंडात्रयीचा पहिला भाग १८६३ ते १८९३ हा स्वामीजींच्या आयुष्यातील पहिल्या तीस वर्षाच्या कालावधीवर आधारलेला आहे. हा टप्पा आहे त्यांचा जन्म ते भारत परिक्रमा आणि त्यानंतर अमेरिकेतील शिकागो शहरात भरलेल्या जागतिक धर्मपरिषदेला त्यांनी केलेले संबोधन, या घटनाक्रमावर आधारलेला. स्वाभाविकपणेच त्यात स्वामीजींचे बालपण, शाळा – कॉलेजातील दिवस, श्रीरामकृष्णांशी झालेली भेट, गुरु म्हणून त्यांचा केलेला स्वीकार, त्यांच्याकडून घेतलेली संन्यासदीक्षा, श्रीरामकृष्णांनी घेतलेली महासमाधी, वराहनगर मठाची स्थापना आणि ध्येयमार्गाच्या दिशेने वाटचाल सुरू करण्यापूर्वी गुरू आज्ञेनुसार केलेले भारत भ्रमण, इतक्या घटनांचे विस्तृत तपशील आले आहेत. स्वामीजी जागतिक धर्म परिषदेला गेले, तिथे प्रवेश मिळवण्यासाठी त्यांना आलेल्या अडचणी, यावर त्यांनी केलेली मात, स्वामीजींच्या अचाट व्यासंगाची अनुभूती घेतल्यानंतर या परिषदेत स्वामीजींना प्रवेश मिळावा यासाठी काही अमेरिकन नागरिकांनीच केलेले प्रयत्न आणि अखेरीस त्या महापरिषदेसमोर स्वामीजींनी केलेले उदबोधन हा सगळाच रोमांचित करणारा कालखंड पहिल्या खंडात प्रा. धार यांनी उलगडला आहे. हे लेखन रोचक आहेच, परंतु अंत:करणाला भिडणारे आहे, नितांत सुंदर वाचनानंद देणारे आहे. श्रीरामकृष्णांच्या महासमाधीनंतरही स्वामीजींना जे दैवी संकेत मिळत गेले, जे दृष्टांत घडले त्यांचे वर्णन वाचणे हा एक अनमोल आनंदाचा ठेवा ठरावा.

या खंड त्रयीचा दुसरा भाग आधारला आहे तो ११ सप्टेंबर १८९३ ते १६ डिसेंबर १८९६ या तशा तीनच वर्षांच्या कालावधीतील घटनांवर. या घटना बहुतांशी अमेरिका आणि इंग्लंडमधील आहेत. स्वामीजींनी या देशांच्या दौऱ्यात भारतीय संस्कृतीचा केवळ पायाच रचला नाही, तर त्याचे मजबुतीकरणही केले. या सर्वच घटना स्वामीजींच्या व्यक्तिमत्त्वाला आंतरराष्ट्रीय महती प्राप्त करून देणाऱ्या असल्याने, त्याचे तपशील वाचकांना प्रेरणादायक असेच वाटतील यात शंका नाही. अमेरिका आणि इंग्लंडचा हा दौरा सुरू असताना आणि तिथल्या शिष्यांना स्वामीजी अधिक काळ रहावेत असे वाटत असताना, स्वामीजींना मात्र भारतात परतण्याची विलक्षण होऊ लागली होती.

स्वामीजी ३० डिसेंबर १८९६ ला परतीच्या प्रवासाला निघाले. कोलंबोपासून कोलकात्यापर्यंत ठीकठिकाणी स्वामीजींचे उत्स्फूर्त स्वागत झाले, त्याचे वर्णन मुळातूनच वाचण्यासारखे आहे.

खंडत्रयीचा तिसरा भाग फेब्रुवारी १८९७ ते जुलै १९०२ असा सुमारे साडेपाच वर्षाचा आहे. हा कालखंड स्वामीजींच्या जीवनातील अनेक विविध प्रसंगांनी आणि घटनांनी भरलेला आहे. त्याचे शब्दांकन अंगावर रोमांच उभे करणारे ठरले आहे. २० जून १८९९ ते ९ डिसेंबर १९०१ या कालखंडातील स्वामीजींनी पुन्हा एकदा पश्चिमेचा दौरा केला; परंतु या दौऱ्याचा हेतूच प्रकृतीस उतार पडावा हा होता. काही प्रमाणात स्वामीजींची प्रकृती सुधारलीही, त्यामुळेच बेलूर मठासाठी निधीसंकलन करून पाश्चात्त्य जगात सुरु झालेल्या कार्याचं मजबुतीकरण करण्यासाठीही त्यांना वेळ काढता आला. तिथल्या कामाचा व्यवस्थापन मार्गी लावता आलं, हेही महत्त्वाचं.

या पुस्तकाचे वैशिष्ट्य म्हणजे स्वामीजींची अत्यंत दुर्मिळ आणि पूर्वी कधीही प्रसिद्ध न झालेली छायाचित्रे समाविष्ट करण्यात आलेली आहेत.

परिचय : श्री हर्षल सुरेश भानुशाली

पालघर 

मो. 9619800030

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 268 ☆ व्यंग्य – तलाश बकरों की ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य – ‘तलाश बकरों की’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 268 ☆

☆ व्यंग्य ☆ तलाश बकरों की

सरकार के सब विभागों ने ज़ोर-शोर से विज्ञापन निकाले हैं। विज्ञापन बकरों के लिए है, ऐसे लोगों के लिए जो हर विभाग में किसी बड़े लफड़े के लिए ज़िम्मेदारी लेंगे। दे विल टेक द ब्लेम फ़ाॅर एवरी बिग स्कैम ऑर मिसडूइंग।

दरअसल कई दिनों से विभागों में यह चर्चा चल रही थी कि सरकारी विभागों में कोई न कोई लफड़ा, कोई न कोई भ्रष्टाचार होता ही रहता है, जिससे बच पाना बहुत मुश्किल है। कौटिल्य के शब्द अक्सर दुहराए जाते रहे कि ‘जैसे जीभ पर रखा रस इच्छा हो या न हो, चखने में आ ही जाता है, इसी प्रकार राज्य के आर्थिक कार्यों में नियुक्त अधिकारी, इच्छा हो या न हो, राजकोष का कुछ न कुछ तो अपहरण करते ही हैं।’ आर्थिक भ्रष्टाचार के अलावा रेल दुर्घटनाएं, पुलों का ध्वस्त होना, परीक्षा- पेपर लीकेज जैसी घटनाएं होती हैं जिससे मंत्री-अफसर संकट में पड़ते हैं और ज़िम्मेदारी थोपने के लिए बकरे की तलाश की जाती है।

यह बात भी चलती थी कि जब लफड़ा  उजागर होता है तो आखिरी छोर पर बैठे सबसे जूनियर और सबसे निर्बल कर्मचारी के ऊपर ठीकरा फोड़ दिया जाता है और ऊपर के लोग चैन की सांस लेते हैं। कारण यह है कि नेताओं-मंत्रियों पर तो हाथ डाला नहीं जा सकता क्योंकि पार्टी की छवि खराब होगी और वोट खतरे में पड़ेंगे। अफसरों को पकड़ेंगे तो शासन चलाना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए जूनियरमोस्ट को बलि का बकरा बना देना ही सबसे सुरक्षित होता है। इसी झंझट से मुक्ति पाने के लिए बकरों की सीधी भर्ती का निर्णय लिया गया।

अंग्रेज़ी में बलि के बकरे के लिए ‘स्केपगोट’ शब्द है जिसमें ‘गोट’ यानी ‘बकरा’ शब्द निहित है। ‘स्केपगोट’ शब्द की उत्पत्ति प्राचीन इज़राइल में हुई जहां पवित्र दिन पर एक बकरे के सिर पर समाज के सारे पाप आरोपित कर दिये जाते थे और फिर उसे जंगल में छोड़ दिया जाता था। इस तरह समाज साल भर के लिए पापमुक्त हो जाता था। यानी, ‘स्केपगोट’ वहां वही काम करता था जो हमारे यहां गंगाजी करती हैं।

गरीब, निर्बल लोग हमेशा रसूखदारों की गर्दन बचाने के लिए ‘स्केपगोट’ बनते रहे हैं। जैसे देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बकरे की बलि दी जाती थी, ऐसे ही किसी दुर्घटना के बाद जनता के गुस्से को शान्त करने के लिए किसी मरे- गिरे बकरे को सूली पर चढ़ा दिया जाता है। कहीं पढ़ा था कि रसूखदार लोग मजबूर लोगों को अपनी जगह जेल में सज़ा काटने के लिए स्थापित करवा देते हैं।

अंग्रेज़ी में एक और दिलचस्प शब्द ‘व्हिपिंग बाॅय’ आता है जो कई देशों में उन लड़कों के लिए प्रयोग होता था जो राजकुमारों और रसूखदार लोगों के बालकों के साथ स्कूल भेजे जाते थे और जिन्हें रसूखदार बच्चों की गलतियों की सज़ा दी जाती थी। कारण यह था कि मास्टर साहब की हैसियत रसूखदारों के बच्चों को सज़ा देने की नहीं होती थी।

विज्ञापन में लिखा गया कि बकरा सिर्फ बारहवीं पास हो ताकि दस्तखत  वस्तखत कर सके। उसे दफ्तर के बाबू के बराबर तनख्वाह मिलेगी। उसे दफ्तर आने-जाने से छूट मिलेगी, दो-चार दिन में कभी भी आकर हाज़िरी रजिस्टर में दस्तखत कर सकेगा।

उसकी ड्यूटी सिर्फ इतनी होगी कि जब विभाग में कोई बड़ा लफड़ा हो जिसमें अफसर और दूसरे कर्मचारियों के फंसने का डर हो तो वह बहादुरी से अपनी गर्दन आगे बढ़ाये और कहे, ‘सर, आई एम द कलप्रिट। आई टेक द ब्लेम।’

विज्ञापन में यह ज़िक्र किया गया कि नियुक्ति से पहले बकरे की मनोवैज्ञानिक जांच होगी ताकि वह ऐन मौके पर डर कर ज़िम्मेदारी लेने से पीछे न हट जाए।

विज्ञापन में यह भी बयान किया गया कि बकरे के सस्पेंड होने पर उसकी पगार में कोई कटौती नहीं की जाएगी और जेल जाने की नौबत आने पर पूरी तनख्वाह उसकी फेमिली को पहुंचायी जाएगी। इसके अलावा उसके फंसने पर उसे बचाने के लिए महकमे की तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी।

इस नीति के बारे में पूछे जाने पर आला अफसर भारतेन्दु हरिश्चंद्र के नाटक ‘अंधेर नगरी’ का हवाला देते हैं जिसमें फांसी का फन्दा उसी के गले में डाला जाता था जिसके गले में वह अंट सकता था।

ताज़ा ख़बर यह है कि सिंधुदुर्ग में शिवाजी की 35 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित होने के एक साल के भीतर ज़मींदोज़ हो गयी है और उसके लिए मूर्तिकार की गिरफ्तारी हो गयी है। अब मूर्ति का प्रसाद पाने वाले ऊपर बैठे लोग निश्चिन्त हो सकते हैं। अब 60 फीट ऊंची नयी मूर्ति का टेंडर ज़ारी हो गया है। टेंडर में यह शर्त है कि मूर्ति 100 साल खड़ी रहनी चाहिए। उम्मीद है कि नये मूर्तिकार इस शर्त को खुशी-खुशी मान लेंगे क्योंकि 100 साल में वे खुद मूर्ति बनने लायक हो जाएंगे। बकौल  ‘ग़ालिब’, ‘ख़ाक हो जाएंगे हम तुमको ख़बर होने तक।’

उधर बिहार में पुल जितनी तेज़ी से बन रहे हैं उससे ज़्यादा तेज़ी से गिर रहे हैं। नतीजतन छोटे-मोटे बकरों को पकड़ कर लाज बचायी जा रही है, और जनता मजबूरी में नावों पर सवार होकर उनके पलटने से मर रही है। जब तक ज़िम्मेदारी ओढ़ने के लिए बकरे उपलब्ध हैं तब तक कोई चिन्ता की बात नहीं है।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 269 – मढ़ी न होती चामड़ी…! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 269 मढ़ी न होती चामड़ी…! ?

संध्या भ्रमण के लिए मुझे सूनी सड़क के सूने फुटपाथ पसंद हैं। यद्यपि महानगर में यह पसंद स्वप्न से अधिक कुछ नहीं होती। तथापि भाग्यवश कैंटोन्मेंट प्रभाग में निवास होने के कारण ऐसी एकाध सड़कें बची हुई हैं। ऐसी ही तुलनात्मक रूप से सूनी एक सड़क के कम भीड़भाड़ वाले फुटपाथ पर भ्रमण कर रहा हूँ।

सूर्यास्त का समय है। डूबते सूरज के धुँधलके में  मनुष्य साये में बदलता दिखता है। साँझ और साया..! जीवन की साँझ और साया रह जाना! यूँ दिन भर साथ चलती परछाई भी साया होने के सत्य को इंगित कर रही होती है। सूर्योदय से सूर्यास्त की परिक्रमा दैनिक रूप से मनुष्य को नश्वरता का शाश्वत स्मरण कराती है।

अस्तु! भ्रमण जारी है। भ्रमण के साथ अवलोकन भी जारी है। मुझसे कुछ आगे एक युवक चल रहा है। वह सिगरेट का कश लेकर धुआँ आसमान की ओर छोड़ रहा है। देखता हूँ कि यह धुआँ एक आकार लेकर धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। धुएँ का  आकार देखकर अवाक हूँ। यह कंकाल का आकार है। मनुष्य द्वारा फूँका जाता धुआँ, मनुष्य को फूँकता धुआँ। कंकाल पर देह ओढ़ता मनुष्य, देह का ओढ़ना खींचकर मनुष्य को कंकाल करता धुआँ।

यूँ देखें तो देह का भौतिक अस्तित्व कंकाल पर ही टिका है। कंकाल आधार है, माँस-मज्जा  आधार पर चढ़ी सज्जा है। चमड़ी की सज्जा न होती तो क्या मनुष्य दैहिक आकर्षण में बंध पाता?

दृष्टांत  है कि एक गाँव में एक रूपसी अकेली रहती थी। गाँव के जमींदार का उसके रूप पर मन डोल गया। वासना से पीड़ित जमींदार उस स्त्री के घर पहुँचा। महिला ने प्राकृतिक चक्र की दुहाई देकर चार दिन बाद आने के लिए कहा। जमींदार के लौट जाने के बाद उस रूपसी ने  रेचक का बड़ी मात्रा में सेवन कर लिया। रेचक के प्रभाव के चलते उसे पुन:- पुन: शौच के लिए जाना पड़ा। स्थिति यह हुई कि सारा का सारा माँस शरीर से उतर गया और वह कंकाल मात्र रह गई। चार दिन बाद आया जमींदार उल्टे पैर लौट गया।

लोकोक्ति है,

सुंदर देह देखकर उपजत मन अनुराग।

मढ़ी न होती चामड़ी तो जीवित खाते काग।

प्रकृति सुंदर है। दैहिक सौंदर्य का आकर्षण भी स्वाभाविक है। तथापि आत्मिक सौंदर्य न हो तो दैहिक सौंदर्य व्यर्थ हो जाता है। सहज रूप से उगे गुलाब पुष्प की सुगंध नथुनों में गहरे तक समाती है। वहीं बड़े करीने से तैयार किए हाईब्रीड गुलाब दिखते तो सुंदर हैं पर सुगंध के नाम पर शून्य। सुगंध आत्मिकता है, शेष सब धुआँ है।

दूर श्मशान से धुआँ उठता देख रहा हूँ। किसी देह का ओढ़ना धुआँ-धुआँ हो रहा है। सबके लिए समान रूप से लागू इस नियम में बिरले ही होते हैं जो धुआँ होने के बाद भी अपनी आत्मिकता के कारण चिर स्मरणीय हो जाते हैं। दैहिक सौंदर्य के साथ मनुष्य आत्मिक सौंदर्य के प्रति भी सजग हो जाए तो धुआँ होने से पहले जग को सुवासित करेगा और आगे धुआँ इस सुवास को अनंत में प्रसरित करेगा।

हर मनुष्य आत्मिक सौंदर्य का धनी हो।…  तथास्तु!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 215 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 215 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 215) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 215 ?

☆☆☆☆☆

ख़ुद का दर्द महसूस होना

ज़िंदा होने का एक सबूत है..!

मग़र औरों के दर्द का अहसास होना 

ज़िंदादिल इंसान होने का सबूत है..!

☆☆

 To feel your own pain

Is a proof of being alive but

Proof of compassionate human

Is to feel the pain of others!

☆☆☆☆☆

काश एक ख्वाहिश पूरी हो

इबादत के बगैर

वो आके गले लगा ले

मेरी इजाजत के बगैर…

☆☆

If only one  wish could be fulfilled

Without offering the prayers

That she came and hugged me

Without my  permission…!

☆☆☆☆☆

दर्द की तुरपाइयों की 

नज़ाकत तो देखिये

एक धागा छेड़ते ही 

ज़ख्म पूरा खुल गया…

☆☆

Look at the tenderness of

the hemstitch of the pain…

Just disturbing one thread was

enough to open the whole wound!

☆☆☆☆☆

सूरज ढला तो कद से

ऊँचे हो गए साये

कभी पैरों से रौंदी थी

यहीं परछाइयां हमने..!

☆☆

Setting sun elong☆☆☆☆☆ated the

Shadows bigger than the stature,

Thes’re the shadows which once

were trampled under my feet..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 214 ☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका  दोहा सलिला)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 214 ☆

☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

निज माता की कीजिए, सेवा कहें न भार।

जगजननी तब कर कृपा, देंगी तुमको तार।।

*

जन्म ब्याह राखी तिलक गृह-प्रवेश त्योहार।

सलिल बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।

*

कोशिश करते ही रहें, कभी न मानें हार।

पहनाए मंजिल तभी, पुलक विजय का हार।।

*

डरकर कभी न दीजिए, मत मेरे सरकार।

मत दें मत सोचे बिना, चुनें सही सरकार।। 

*

कमी-गलतियों को करें, बिना हिचक स्वीकार।

मन-मंथन कर कीजिए, खुद में तुरत सुधार।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२.४.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (16 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (16 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

हमारे जीवन में आने वाली कई शिक्षाएं एक दूसरे के से भिन्न होती हैं। जैसे एक शिक्षा है सठे-साठ्यम् समाचरेत। अर्थात दुष्ट के साथ दुष्ट का व्यवहार करो। दूसरी शिक्षा है जो तू को कांटा बुये ताहि बोई तूं फूल। यह दोनों शिक्षाएं एक दूसरे के विरुद्ध है परंतु हमें समय-समय पर दोनों को मानना पड़ता है। इसी तरह से किस समय आपको सफलता प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए यह बताने के लिए आज मैं पंडित अनिल पाण्डेय 16 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024 के राशिफल के साथ उपस्थित हूं।

राशिफल बताने के पहले मैं आपको इस सप्ताह जन्म लिए बच्चों के भविष्य के बारे में बताऊंगा।

सप्ताह के प्रारंभ से 17 तारीख को 8:48 रात तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि मिथुन होगी। भाग्य इनका साथ देगा। एकाएक इनके काम बन जायेंगे। 17 तारीख को 8:48 रात से 20 तारीख को प्रातः काल 4:18 a. m. तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि कर्क होगी। इन बच्चों को अपने जीवनसाथी और अपनी संतान से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। 20 दिसंबर के प्रातः काल 4:18 a. m. से लेकर 22 तारीख को 2:30 दिन तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि सिंह होगी। इन बच्चों को अपने जीवनसाथी से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। उनकी संतान बहुत ऊंचे पद तक पहुंचेगी। इनको भी बहुत अच्छी शिक्षा प्राप्त होगी। 22 तारीख को 2:30 दिन से सप्ताह के अंत तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि कन्या होगी।

आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपको अपने कार्यालय के कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। भाग्य आपका साथ देगा। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जनता में आपकी प्रतिष्ठा अच्छी रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर अच्छे हैं। 22 दिसंबर को 2:00 बजे दोपहर के बाद से आपको सतर्क होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृष राशि

आपका व्यापार ठीक चलेगा। भाई बहनों के साथ थोड़ा बहुत तनाव हो सकता है। भाग्य आपका साथ देगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। दुर्घटनाओं से आप बचेंगे। आपको अपने संतान का सहयोग थोड़ा कम मिलेगा। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 दिसंबर लाभदायक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें तथा बृहस्पतिवार को विष्णु भगवान या उनके किसी अवतार के मंदिर में जाकर पूजा पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। एकाएक आपके काम बन सकते हैं। कार्यालय में आप फालतू के बहस में ना पड़े। आपको अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। थोड़ा बहुत धन आने का योग है। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 तारीख किसी भी कार्य के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। आपको अपने जीवनसाथी का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा। संतान भी आपके साथ सहयोग करेगी। भाग्य से आपको कोई विशेष लाभ नहीं होगा। अगर आप प्रयास करेंगे तो शत्रुओं को आप परास्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर परिणाम दायक हैं। 16 और 17 दिसंबर को आपको सावधान होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन कम से कम तीन माला गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

अगर आपके ऊपर किसी प्रकार का ऋण है तो उसमें कमी होगी। आपको कमर या गर्दन में दर्द हो सकता है। जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। आपको इस सप्ताह अपने शत्रुओं से भी सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 तारीख लाभ वर्धक है। 18 और 19 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह भाग्य से आपको सामान्य मदद मिलेगी। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ अच्छा संबंध रहेगा। माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। धन आने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 दिसंबर मंगलप्रद हैं। 20-21 और 22 तारीख को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार उत्तम चलेगा। संतान से आपके सहयोग प्राप्त होगा। आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। आपके क्रोध में भी वृद्धि हो सकती है। जनता में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। धन आने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर मंगल दायक हैं। 22 दिसंबर को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द की दाल का दान दें। शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव की पूजा करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी को थोड़ी परेशानी हो सकती है। आपके व्यापार में वृद्धि होगी। भाग्य आपका साथ दे सकता है। धन आने की पूरी उम्मीद है। आपको अपने संतान से इस सप्ताह कोई सहयोग नहीं मिल पाएगा। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 दिसंबर अनुकूल हैं। इस सप्ताह आप 16 और 17 दिसंबर को सावधान रहकर कोई भी कार्य करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें तथा शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने की उम्मीद है। कचहरी के कार्यों में सावधानी से कार्य करें। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ सकती है। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। दुर्घटनाओं से आप बच जाएंगे। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 18 और 19 दिसंबर को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ दे सकता है। लंबी यात्रा का भी योग बन सकता है। कार्यालय में आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है। धन आने का योग है। कचहरी के कार्यों में प्रयास करने पर सफलता मिल सकती है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कचहरी के कार्यों में आपको सफलता मिलेगी। धन आने की उम्मीद है। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। कार्यालय में आपका समय ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 20, 21 और 22 की दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 18, 19 और 22 तारीख के दोपहर के बाद का समय सावधानी से कार्य करने का है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपके प्रतिष्ठा मैं वृद्धि होगी। भाग्य आपका साथ देगा। धन आने का योग है। शत्रुओं से आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है। संतान से आपके सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। माता-पिता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 दिसंबर लाभदायक हैं। 20-21 और 22 दिसंबर को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #259 ☆ दर्द और समस्या… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख दर्द और समस्या। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 259 ☆

☆ दर्द और समस्या… ☆

“दर्द एक ऐसा संकेत है कि तुम ज़िंदा हो; समस्या एक संकेत है कि तुम मज़बूत हो;- परिवार, मित्र और संगठन एक संकेत हैं कि तुम अकेले नहीं हो’ में जीवन जीने की कला का संदेश निहित है। दु:ख हमारे जीवन का अभिन्न अंग है जो हमें अपने-परायों से अवगत कराता है। यह जीवन की कसौटी है जो मित्र-शत्रु, उचित-अनुचित, भाव-सद्भाव व मानव में निहित दैवीय गुणों प्रेम, स्नेह, करुणा, सहानुभूति व संवेदनशीलता का परिचायक है।

दर्द हमारी सहनशीलता की परीक्षा लेता है और मूल्यांकन करता है कि हम कितने संवेदनशील है तथा हमारी सोच कैसी है? छोटी सोच शंका को जन्म देती है और बड़ी सोच समाधान से अवगत कराती है। यदि सुनना सीख लिया तो सहना सीख जाओगे और सहना सीख लिया तो रहना सीख जाओगे। सो! दर्द हमारे जीवित होने का प्रमाण है और समस्या हमारी दृढ़ता की परिचायक है। समस्याएं हमारी परीक्षा लेती हैं। यह हमें अपनी आंतरिक शक्तियों से अवगत कराती हैं तथा उनसे हमारा साक्षात्कार कराती हैं कि हममें कितना धैर्य, साहस व दृढ़ता कायम है? हम विषम परिस्थितियों का सामना करने में कितने सक्षम है? समस्याएं हमारी प्रेरक हैं, जीवन का आधार व पथप्रदर्शक हैं। यदि राहों में अवरोध ना हो तो जीने का आनंद ही नहीं आता। हम अपनी जीवनी शक्ति अर्थात् ऊर्जा को पहचान नहीं पाते। सो! यदि जीवन समतल धरातल पर चलता रहता है तो हम अंतर्मन में निहित शक्तियों से अवगत नहीं हो पाते तथा जीने का वास्तविक आनंद प्राप्त नहीं कर सकते।

समय व प्रकृति परिवर्तनशील हैं और समय अविराम चलता रहता है। जीवन में सुख-दु:ख, हानि-लाभ, खुशी-ग़म, हँसी-रूदन समयानुसार  आते-जाते रहते हैं। संसार मिथ्या है तथा सृष्टि-नियंता के अतिरिक्त सब नश्वर है। सो! कभी मानव चाँदनी में अवगाहन कर प्रसन्न होता है तो कभी अमावस के घने अंधकार में जुगनूँ का प्रकाश पाकर कृतज्ञता ज्ञापित करता है। कभी भोर होते सूर्य की रश्मियाँ धरा पर कुँकुम बिखेर देती हैं और मलय वायु के झोंके मानव को मदमस्त बना देते हैं। मानव उन पलों में सुधबुध खो बैठता है। कभी सागर में उठती लहरें साहिल से टकराकर लौट जाती है, मानो कोई भक्त अपने प्रभु के चरण स्पर्श कर लौट जाता है और सागर अनमोल मोती, रत्न आदि साहिल पर दुआओं के रूप में छोड़ देता है। परंतु कभी-कभी सागर सुनामी के रूप में हृदय के क्रोध को भी प्रदर्शित करता है और सागर की आकाश को छूती लहरें अपनी राह में आने वाले समस्त पदार्थों को तहस-नहस कर बहा ले जाती हैं। चहुँओर उजाड़-सा भासता है, मानो मातम पसरा हो।

कभी-कभी भगवान भी हमें दु:खों के भँवर में फंसा कर हमारे धैर्य की परीक्षा लेते हैं। इससे ज्ञात होता है कि हम कितने अडिग, अचल, दृढ़  व मज़बूत हैं। यदि हम उस स्थिति में विचलित हो जाते हैं तो हम सामान्य मानव हैं और हममें साहस की कमी है; सहनशीलता हमसे कोसों दूर है। उस स्थिति में हमारी नौका सागर में डूबती-उतराती है और उसमें विलीन हो जाती है। दूसरे शब्दों में हम लहरों के थपेड़ों को सहन नहीं कर पाते और अंतत: डूब के सागर बन जाते हैं।

परिवार, मित्र व संगठन एक संकेत हैं कि तुम अकेले नहीं हो। वे सुख-दुःख व सम-विषम परिस्थितियों में आपके साथ खड़े रहते हैं। परिवार का हर सदस्य व सच्चे मित्र आपके हितैषी होते हैं। वे आपको मँझधार में छोड़कर कहीं नहीं जाते। वैसे भी मानव अपनी स्वार्थ वृत्ति व संकुचित दृष्टिकोण के कारण दु:ख बाँटने पर सुक़ून पाता है और सुख को एकांत में भोगना चाहता है। परंतु ‘हमारे मित्र हमें हर पल एहसास दिलाते हैं कि हम तुम्हारे साथ हैं। आगे बढ़ो, बीता हुआ कल तुम्हारे मन में है और आने वाला कल तुम्हारे हाथ में है।’ अतीत लौटता नहीं और भविष्य अनिश्चित् है। परंतु आप वर्तमान में अथक परिश्रम द्वारा आगामी कल को सुंदर बना सकते हैं।

सत्य की नौका डगमगाती अवश्य है, परंतु डूबती नहीं। सत्य कटु होता है, परंतु शाश्वत् होता है। यह शिवम् व सुंदरम् भी होता। इसे सामने आने में समय तो लग सकता है, परंतु यह असंभव नहीं है। भले ही सत्य सात परदों के पीछे छिपा होता है, परंतु यह हकीक़त को सामने ला देता है। यह कल्याणकारी होता है तथा किसी का अहित नहीं करता। सबका मंगल भव की भावना  इसमें निहित रहती है। परिणामत: जीवन में कोई समस्या नहीं रहती।

वैसे भी हर प्रश्न का उत्तर व समस्या का समाधान होता है। आवश्यकता होती है– हमारी लग्न की, प्रयास की, परीक्षा की, अथक परिश्रम, धैर्य व साहस की। ‘संसार में असंभव शब्द तो मूर्खों के शब्दकोश में होता है।’ तुम सब कर सकते हो, जीवन का मूलमंत्र होना अपेक्षित है। मानव में असीम शक्तियां व्याप्त हैं, जिनके बल पर वह आगामी आपदाओं का सामना कर सकता है। इसलिए आत्मविश्वास की, सत्य का मूल्यांकन करने की, अपनी सुप्त अथवा विस्मृत शक्तियों को पहचानने की ज़रूरत है।

मानव का दर्द से अटूट रिश्ता है। हमें खुशियों को तलाशना है; खुद से मुलाक़ात करनी है। जब हम ख़ुद में ख़ुद को तलाशते हैं तो हमारे अंतर्मन में दिव्य शक्तियां संचरित हो जाती हैं। हम ‘शक्तिशाली  विजयी भव’ को स्वीकार जीवन- पथ पर अग्रसर होते हैं, क्योंकि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ तथा ‘आप जो चाहोगे वही अवश्य पाओगे।’

काँच की तरह होता है मन/ इसे जितना साफ रखोगे/ दुनिया उतनी आपको साफ दिखाई देगी’ के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि ‘तोरा मन दर्पण कहलाए/ भले-बुरे सब कर्मन को/ देखे और दिखाए।’ सो। सत्कर्म कीजिए, सदैव अच्छा सोचिए, अच्छा कीजिए। दुनिया रूपी रंगमंच पर मानव को अपना क़िरदार अवश्य निभाना पड़ता है, जो हमारे पूर्वजन्म के कर्मों पर आधारित होते हैं।

अपनापन, परवाह, आदर व व्यवहार वक्त की वह दौलत है, जिससे बड़ा किसी को देने के लिए कोई उपहार नहीं हो सकता है। सो! यह वे दैवीय गुण हैं, जिन्हें आप दूसरों को दे सकते हैं। यह अनमोल हैं और वक्त से बड़ी तो कोई दौलत हो ही नहीं सकती है। यदि आप किसी को चंद लम्हें देते हैं तो वे उसके हृदय की ऊहापोह को समाप्त करने में सक्षम होते हैं। उस स्थिति में आप अपनी अनमोल पूंजी अर्थात् उपहार उसे दे रहे हैं। किसी के हृदय की पीड़ा, दुख-दर्द को दूर करना सर्वोत्तम उपाय है। दुनिया में सुख बाँटिए व दु:खों का हरण कीजिए। आपदाओं व विषम परिस्थितियों में आप पर्वत की भांति अचल, अडिग व डटकर खड़े रहिए।

परिवार, मित्र व संगठन को महत्व दीजिए। सदैव मिलजुल कर अहं का त्याग कर जीवन-यापन कीजिए। अहं दिलों में दरारें उत्पन्न करता है। ‘फ़ासले दिलों के मिटा दीजिए। बेवजह न किसी से ग़िला कीजिए/ यह समाँ तो गुज़र जाएगा किसी ढब/ सबसे मिलजुल कर रहा कीजिए।’ दर्द, आपदाएं व समस्याएं स्वत: मिट जाएंगी और चहुँओर उल्लास व प्रसन्नता का साम्राज्य होगा।

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© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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