हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 77 ☆ अब शाखे गुलिस्ता पै नहीं एक भी पत्ता… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “अब शाखे गुलिस्ता पै नहीं एक भी पत्ता“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 77 ☆

✍ अब शाखे गुलिस्ता पै नहीं एक भी पत्ता… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

इख़्लास की नायाब सदा ढूंढ रहा हूँ

पागल हूँ जमाने में वफ़ा ढूंढ रहा हूँ

 *

बारूद के ढेरों पै लिए हाथ में मश्अल

महकी हुई पुर कैफ़ फ़ज़ा ढूंढ रहा हूँ

 *

मैं तेरी जुस्तज़ू में भटकता हूँ जा-ब-जा

दुनिया समझ रही है ख़ुदा ढूंढ रहा हूँ

 *

दुनिया है कि सुख चैन से महरूम हुई है

इक मैं हूं कि मदहोश अदा ढूंढ रहा हूँ

 *

दफ़्तर में घिरी रहती है अग्यार से हरदम

मैं उसकी निगाहों में हया ढूंढ रहा हूँ

 *

अब शाखे गुलिस्ता पै नहीं एक भी पत्ता

नादान हूँ बुलबुल की सदा ढूंढ रहा हूँ

 *

अब कृष्ण सुदामा की कहाँ मित्रता अरुण

मैं व्यर्थ ही अब ऐसे सखा ढूंढ रहा हूँ

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ऋतूओं का राजा बसंत… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कविता ?

☆ ऋतूओं का राजा बसंत☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

है वसुंधरा सजधज के तैयार,

छायी है  सृष्टी पे बसंत बहार।

फूल फूल पर भँवर मंडराए

प्राणी मात्र गीत मिलन के गाए ।

 *

मौसम आया है प्यार का

पशु पंछियों के शृंगार का।

बेहद खुश है सब किसान,

फसल हुई है अब जवान ।

 *

आए फसल कटाई के त्यौहार

पोंगल, बिहू ,बैसाखी शानदार।

बोले कोयल भी मीठे बोल

कुहूऽऽऽ कुहू  स्वर बडे अनमोल।

 *

पीले वसन पहिन सुंदरियाँ  

हँसती नाचती है सजनियाँ।

मस्त हवा में लहराती है पतंग,

खुश है सभी ऋतू राजा के संग ।

 *

मर्द गाते हैं, ढोल बजाते हैं

पीते और…..  पिलाते हैं ।

रंग लाता है बसंत भरपूर,

हो जाता है ये मौसम मशहूर।

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा # 42 – बुढ़ापा…  ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – बुढ़ापा।)

☆ लघुकथा # 42 – बुढ़ापा  श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

अम्मा क्या हो गया? आज सुबह जल्दी उठकर तुम खाना बना रही हो। अम्मा से पूछा अमित ने।

बेटा आज तुम्हारे दादा-दादी का श्राद्ध है।

तभी बहू अवंतिका भी आ गई उसने कहा क्या हो गया मां बेटे हल्ला मचा रहे हो ये श्राद्ध क्या होता है ?

बेटे जो हमारे पूर्वज भगवान के पास चले गये, या जिंदा नहीं है। पितृ पक्ष  मे धरती पर आते हैं उनके पसंद के  पकवान बनाकर ब्राह्मण को भोजन कराते और रुपया वस्त्र देकर विदा करते हैं। इसी को श्राद्ध कहते हैं।

बहू ने कहा – क्या माँ यह सब  दिखावा करके उनकी आत्मा को शांति मिलती है? पता नहीं बहू लेकिन मैंने सोचा तुम्हारे टिफिन के लिए भी कुछ अच्छा बना देती हूं और इसी बहाने ऐसा सोचो कि हम लोग अच्छे पकवान बनाकर खा लेते हैं।

नवमी और अमावस्या के दिन मेरी मां और सास भी बनाती थी।

सुन बेटा अमित मुझे कुछ पैसे दे देना तुम लोग तैयार हो जाओ नाश्ता कर लो तुम्हारे लिए टिफिन पैक कर दिया है।

तभी बहू ने कहा – माँ मैं खीर तो ले जाऊंगी पर पूरी की जगह मुझे रोटी दे दो और थोड़ा ही रखना मुझे ज्यादा तेल का खाना पसंद नहीं है।

इतना सब जब आपने बनाया है तो पैसे लेकर क्या करेंगे।

बेटा बाजार से जलेबी रसगुल्ला और समोसे भी लाऊंगी।

तो ऐसा क्यों नहीं कहती मां कि आपका खाने का मन है और दादा दादी सास का बहाना कर रही हैं।

तभी पिताजी को जोर से गुस्सा आ गया उन्होंने कहा बहू और अमित तुम लोगों के पैसों की  कोई जरूरत नहीं है। देखो कमला जितना हो सके तुम उतना ही ढंग से श्राद्ध करो और पूजा भी अब हमें कमी कर देनी चाहिए क्योंकि अब यह हमारे ऊपर एहसान कर रहे हैं। हमारे मरने  के बाद श्राद्ध का  नाटक मत करना।  

अमित ने कहा मां आपको क्या चाहिए? आप बताओ मैं बाजार से लाता  हूँ। थोड़ी देर बाद ऑफिस चला जाऊंगा।

नहीं बेटा रहने दो? अवंतिका बहू  सच बोल रही है। फालतू फिजूल खर्ची करने की कोई जरूरत नहीं है।

तू मेरा भी श्राद्ध,  कर्मकांड और ब्राह्मण को बुलाकर भी कुछ मत देना, ज्यादा खर्च मत करना क्योंकि श्राद्ध तो श्रद्धा से होती है…।

उनकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं।

अच्छा है बेटा जो हमारे जमाने में हमारे माँ-बाप हमें ज्यादा नहीं पढ़ा पाये, नहीं तो मुझे लगता है कि यह संस्कार जिंदा नहीं रहते।

हे प्रभु किसी को बुढ़ापा न देना ये बहुत लाचारी से भरा होता है।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कथा-कहानी # 119 –पुरखे, असहमत और चौबे जी ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है एक विचारणीय संस्मरणात्मक कथा पुरखे, असहमत और चौबे जी

☆ कथा-कहानी # 119 –  पुरखे, असहमत और चौबे जी ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

बहुत दिनों के बाद असहमत की मुलाकात बाज़ार में चौबे जी से हुई, चौबे जी के चेहरे की चमक कह रही थी कि यजमानों के निमंत्रणों की बहार है और चौबे जी को रोजाना चांदी की चम्मच से रबड़ी चटाई जा रही है. वैसे अनुप्रास अलंकार तो चटनी की अनुशंसा करता है पर चौबे जी से सिर्फ अलंकार ज्वेलर्स ही कुछ अनुशंसा कर सकता है.असहमत के मन में भी श्रद्धा, 😊कपूर की भांति जाग गई. मौका और दस्तूर दोनों को बड़कुल होटल की तरफ ले गये और बैठकर असहमत ने ही ओपनिंग शाट से शुरुआत कर दी.

चौबे जी इस बार तो बढिया चल रहा है, कोरोना का डर यजमानों के दिलों से निकल चुका है तो अब आप उनको अच्छे से डरा सकते हो, कोई कांपटीशन नहीं है.

चौबे जी का मलाई से गुलाबी मुखारविंद हल्के गुस्से से लाल हो गया. धर्म की ध्वजा के वाहक व्यवहारकुशल थे तो बॉल वहीँ तक फेंक सकते थे जंहां से उठा सकें. तो असहमत को डपटते हुये बोले : अरे मूर्ख पापी, पहले ब्राह्मण को अपमानित करने के पाप का प्रायश्चित कर और दो प्लेट रबड़ी और दो प्लेट खोबे की जलेबी का आर्डर कर.

असहमत : मेरा रबडी और जलेबी खाने का मूड नहीं है चौबे जी, मै तो फलाहारी चाट का आनंद लेने आया था.

चौबे जी : नासमझ प्राणी, रबड़ी और जलेबी मेरे लिये है, पिछले साल का भी तो पेंडिंग पड़ा है जो तुझसे वसूल करना है.

असहमत : चौबे जी तुम हर साल का ये संपत्ति कर मुझसे क्यों वसूलते हो, मेरे पास तो संपत्ति भी नहीं है.

चौबे जी : ये संपत्ति टेक्स नहीं, पूर्वज टेक्स है क्योंकि पुरखे तो सबके होते हैं और जब तक ये होते रहेंगे, खानपान का पक्ष हमारे पक्ष के हिसाब से ही चलेगा.

असहमत : पर मेरे तो पिताजी, दादाजी सब अभी इसी लोक में हैं और मैं तो घर से उनके झन्नाटेदार झापड़ खाकर ही आ रहा हूं, मेरे गाल देखिये, आपसे कम लाल नहीं है वजह भले ही अलग अलग है.

चौबेजी : नादान बालक, पुरखों की चेन बड़ी लंबी होती है जो हमारे चैन का स्त्रोत बनी है. परदादा परदादी, परम परदादा आदि आदि लगाते जाओ और समय की सुइयों को पीछे ले जाते जाओ. धन की चिंता मत कर असहमत, धन तो यहीं रह जायेगा पर ब्राह्मण का मिष्ठान्न भक्षण के बाद निकला आशीर्वाद तुझे पापों से मुक्त करेगा. ये आशीर्वाद तेरे पूर्वज तुझे दक्षिणा से संतुष्ट दक्षिणमुखी ब्राह्मण के माध्यम से ही दे पायेंगे.

असहमत बहुत सोच में पड़ गया कि पिताजी और दादाजी को तो उसकी पिटाई करने या पीठ ठोंकने में किसी ब्राह्मण रूपी माध्यम की जरूरत नहीं पड़ती.

उसने आखिर चौबे जी से पूछ ही लिया : चौबे जी, हम तो पुनर्जन्म को मानते हैं, शरीर तो पंचतत्व में मिल गया और आत्मा को अगर मोक्ष नहीं मिला तो फिर से नये शरीर को प्राप्त कर उसके अनुसार कर्म करने लगती है तो फिर आपके माध्यम से जो आवक जावक होती है वो किस cloud में स्टोर होती है. सिस्टम संस्पेंस का बेलेंस तो बढता ही जा रहा होगा और चित्रगुप्तजी परेशान होंगे आउटस्टैंडिंग एंट्रीज़ से.

चौबे जी का पाला सामान्यतः नॉन आई.टी.यजमानों से पड़ता था तो असहमत की आधी बात तो सर के ऊपर से चली गई पर यजमानों के लक्षण से दक्षिणा का अनुमान लगाने की उनकी प्रतिभा ने अनुमान लगा लिया कि असहमत के तिलों में तेल नहीं बल्कि तर्कशक्ति रुपी चुडैल ने कब्जा जमा लिया है. तो उन्होंने रबड़ी ओर जलेबी खाने के बाद भी अपने उसी मुखारविंद से असहमत को श्राप भी दिया कि ऐ नास्तिक मनुष्य तू तो नरक ही जायेगा.

असहमत : तथास्तु चौबे जी, अगर वहां भी मेरे जैसे लोग हुये तो परमानंद तो वहीं मिलेगा और कम से कम चौबेजी जैसे चंदू के चाचा को नरक के चांदनी चौक में चांदी की चम्मच से रबड़ी तो नहीं चटानी पड़ेगी.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 74 – इसने झेले हैं जलजले कितने… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – इसने झेले हैं जलजले कितने।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 74 –इसने झेले हैं जलजले कितने… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

मेरे दिल पर तेरी हुकूमत है 

तेरी हस्ती मेरी बदौलत है

*

पहले ठोकर दी, अब उठाते हो 

तुमको शायद मेरी जरूरत है

*

काम, सय्याद अब दिखायेगा 

उड़ने की, दी तुम्हें इजाजत है

*

जंग, उनके खिलाफ जारी है 

जिनसे, हमको बहुत मुहब्बत है

*

इसने झेले हैं जलजले कितने 

देश की, सांस्कृतिक इमारत है

*

आप ‘आचार्य’, गर समझ पाते 

प्यार पूजा है, प्यार दौलत है

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 147 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 147 – मनोज के दोहे ☆

मुक्त छंद के काव्य में, सुर- संगीत-अभाव।

दिल को छूता छंद है, स्वर-सरिता की नाव।।

*

सब को छप्पर चाहिए, जहाँ करें विश्राम।

श्रम की दौलत से सजे, दरवाजे पर नाम।।

*

मानवता कहती यही, होगी युग में भोर।

मुलाकात होती रहे, कुशल-क्षेम पर जोर।।

*

मौसम करवट ले रहा, धूप कहीं बरसात।

जहाँ न वर्षा थी कभी, बरसे अब दिन रात।।

*

संकट के बादल बढ़े, छिड़ा हुआ है युद्ध।

भारत का प्रस्ताव यह, अब तो पूजो बुद्ध।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मेरी डायरी के पन्ने से # 29 – गुजरात के दर्शनीय स्थल – भाग – 6 – स्टैच्यू ऑफ युनिटी ☆ सुश्री ऋता सिंह ☆

सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से …  – संस्मरण – गुजरात के दर्शनीय स्थल)

? मेरी डायरी के पन्ने से # 29– गुजरात के दर्शनीय स्थल – भाग – 6 – स्टैच्यू ऑफ युनिटी ?

वडोदरा में एक दिन बिताने के बाद हम स्टैच्यू ऑफ यूनिटी देखने के लिए दूसरे दिन प्रातः रवाना हुए।

बरोदा या बड़ोदरा से कावेडिया 100 कि.मी से कम है। स्टैच्यू ऑफ युनिटी इसी कावेडिया में स्थित है। यह बड़ोदरा से एक दिन में जाकर लौट आने लायक यात्रा है।

 हम सुबह -सुबह ही निकल गए ताकि हमें भीड़ का सामना न करना पड़े। हम बड़ोदरा के एक बड़े बाज़ार से गुज़रे अभी यहाँ सब्ज़ी और फलवाले अपनी वस्तुएँ सजा ही रहे थे। हमने यात्रा के लिए कुछ फल ले लिए। हम अब गुजरात में रहते यह जान गए थे कि मार्ग पर भोजन की कोई व्यवस्था या ढाबे की सुविधएँ नहीं मिलेगी।

तो हमने मार्केट से गुज़रते हुए ही पर्याप्त फल और कुछ बेकरी पदार्थ साथ ले लिए।

बीच रास्ते में ही हमने एक छोटी सी टपरीनुमा जगह पर गाड़ी रोककर चाय खरीदी और उसके साथ बेकरी पदार्थ नाश्ते के रूप में खा लिए।

हम जब कावेडिया पहुँचे तब नौ बजे थे। यह स्थान नौ से शाम छह बजे तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है। सोमवार के दिन यह बंद रहता है।

भीतर अद्भुत सुंदर व्यवस्था दिखाई दी। एक स्थान पर हमें अपनी गाड़ी पार्किंग में ही छोड़ देनी पड़ी और वहाँ खड़ी बसें हमें सुरक्षित भीतर ले गई। भीतर बड़ा -सा बस स्टॉप बना हुआ है। सभी बसें भीतर के विविध स्थान देखने के लिए पर्यटकों को ले जाती है।

यहाँ यह बता दें कि इस स्थान के दर्शन के लिए हमने प्रति सदस्य ₹1000 दिए थे। यह रकम ऑनलाइन पे करने की आवश्यकता होती है। यहाँ प्रतिदिन सीमित संख्या में ही पर्यटकों को भीतर प्रवेश दिया जाता है। यही कारण है कि टिकट न केवल महँगे हैं बल्कि ऑनलाइन भी है ताकि भीड़ पर काबू रख सकें।

भीतर कैक्टस गार्डन है। बटरफ्लाय पार्क है, न्यूट्रीशन पार्क तथा चिड़िया घर है। हमने भीतर प्रवेश करते ही साथ सबसे पहले सरदार सरोवर पर मोटर बोट द्वारा सैर करने का निर्णय लिया क्योंकि हम धूप बढ़ने से पूर्व ही इस सैर का आनंद लेना चाहते थे। हमें यहाँ कुछ मगरमच्छ भी नज़र आए। यह नर्मदा नदी का ही हिस्सा है। मोटर बोट अत्यंत आरामदायक थे। घंटे भर की सैर के बाद हम फिर से मुख्य सड़क पर बस की प्रतीक्षा में रहे।

मज़े की बात यह है कि हर जगह पर बसस्टॉप बने हुए हैं और पर्यटक कहीं से किसी भी बस में बैठ सकते हैं।

हम पुनः मुख्य बस स्टॉप पर लौट आए। यहाँ सब तरफ सुंदर चौड़ी सड़कें बनी हुई हैं। बसों पर गंतव्य का नाम लिखा हुआ होता है और पर्यटक उसी हिसाब से बसों में बैठकर सैर करते हैं।

हमने बटरफ्लाय गार्डन और कैक्टस गार्डन का आनंद लिया। भीड़ से बचने के लिए हम तुरंत ही मुख्य स्टैच्यू की ओर रवाना हुए। चिड़ियाघर अभी खुला न था।

मुख्य स्टैच्यू देखने का आकर्षण है सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति। यह 182 मीटर (597 फीट) ऊँचा है। इसे स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी नाम दिया गया है। यह संसार की सबसे ऊँची मूर्ति है। इसका निर्माण 2013 में प्रारंभ हुआ था। इसे पूर्ण होने में तैंतीस माह लगे। यह नर्मदा नदी के कावेडिया गाँव गुजरात में विद्यमान है। यहाँ काम करनेवाले सभी इसी गाँव के और आसपास की जगहों के निवासी हैं। मूर्ति सरदार सरोवर बाँध की ओर मुख किए हुए है। चारों ओर पहाड़ी इलाका है। अत्यंत रमणीय दृश्य है।

मूर्ति तक पहुँचने से पूर्व एक लंबे तथा सुंदर सुसज्जित मार्ग से होकर गुज़रना पड़ता है। मूर्ति के नीचे बड़ा सा सभागृह है। सभागृह में जाने से पूर्व हमने स्वतंत्रता संग्रामी तथा प्रथम उप प्रधान मंत्री के चरणों को स्पर्श कर प्रणाम करना चाहा। यहाँ तक पहुँचने के लिए एसकेलेटर की व्यवस्था है। हमने सरदार पटेल जी के चरणों को प्रणाम किया। यह स्थान एक ऊँची दो मंज़िली इमारत की छत जैसी है। चारों ओर घूमकर दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है। चारों ओर जल और पहाड़ी इलाका और बीच में भव्य मूर्ति किसी अलग प्रकार की दुनिया की सैर करा देती है।

हम पुनः एसकेलेटर से नीचे सभागृह में आए। यह एक विशाल सभागृह है। इसमें ऑडियो तथा विविध विडियो द्वारा स्वतंत्रता की लड़ाई का इतिहास दिखाया जाता है। अंग्रेज़ों ने जिस तरह हम पर अत्याचार किए तथा देश को लूटा उसका इतिहास भी प्रमाण के रूप में उपलब्ध है। भीतर बैठकर देखने व सुनने की पर्याप्त व्यवस्था है। अत्यंत आधुनिक ढंग से इस स्थान का निर्माण किया गया है। सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन पर रोशनी डालते कई तथ्य यहाँ पढ़ने को मिले। पर्यटकों से निवेदन है कि वे इस स्थान को महत्त्व दें तथा अधिकाधिक समय देकर उपलब्ध जानकारियों का लाभ उठाएँ।

31 अक्टोबर सन 2018 के दिन प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने इस स्थान का उद्घाटन किया था। श्री राम व्ही सुतार नामक सज्जन ने इस मूर्ति के डिज़ाइन को बनाकर दिया था। इसे भव्य रूप में खड़ा करने में कई विदेशी कंपनियों का भी बहुत बड़ा सहयोग रहा है। कहा जाता है कि देश भर से लोहे इस्पात जो अब किसी काम के न थे उन्हें मँगवाए गए थे। चीन के कुछ खास शिल्पकारों का भी योगदान रहा है। स्टैच्यू स्टील फ्रेम से बनाया गया है फिर उसमें कॉन्क्रीट भरा गया है। संपूर्ण स्टैच्यू पर काँसे की परत चढ़ाई गई है जिससे न चमक कम होगी न जंग लगने की ही संभावना है और लंबे समय तक यह मूर्ति गर्व से खड़ी रहेगी। देश का गौरव बढ़ाएगी।

इस मूर्ति का निर्माण किस तरह से किया गया है उसकी भी पूरी जानकारी सभागृह में स्लाइड शो द्वारा दी जाती है। कुछ अंश सभागृह में दिखाए गए हैं।

पटेल जी के चेहरे पर जो भाव है उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि बस अभी बोल ही पड़ेंगे।

हमने कुछ तीन घंटे सभागृह में बिताए। भरपूर वास्तविक इतिहास और तथ्यों को जानकर सच में मन ग्लानि से भर उठा कि अगर पटेल जी देश के प्रथम प्रधानमंत्री होते तो देश आज कहाँ से कहाँ पहुँच गया होता। उनकी सोच, सिद्धांत और देश के प्रति जो निःस्वार्थ समर्पण की भावना थी वे अत्यंत महान थे।

हम लिफ्ट से स्टैच्यू की छाती तक पहुँचे। पटेल जी धोती कुर्ता पहनते थे। कुर्ते के ऊपर वे एक बंडी (कोट जैसा) पहना करते थे। इस मूर्ति में हम भीतर से इसी जगह पहुँचे जहाँ बंडी के चौकोर छिद्र से सारा परिसर ऊपर से दिखाई देता है। यह इतना विशाल है कि एक साथ 200 लोग आराम से खड़े होकर दृश्य का आनंद ले सकते हैं। स्टैच्यू भीतर से खोखली है और वहीं से लिफ्ट चलती है।

स्टैच्यू आकर्षक, भव्य तथा अद्भुत सौंदर्य से परिपूर्ण है। धोती पहने जाने पर उसकी सिलवटों को, कुर्ते के आस्तीन और बंडी पर का डिज़ाइन सब कुछ अद्भुत और वास्तविक से हैं। बटन तक इतने खूबसूरत और असली लगते हैं कि हर दर्शक दाँतो तले उँगली दबाए बिना नहीं रह सकता। मुझे स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर (1993) देखने का सुअवसर मिला था। आज इस मूर्ति को देखने के बाद सब कुछ फीका लगने लगा। मन गर्व से भर उठा। मेरा देश सच में महान है।

शाम के पाँच बज रहे थे। हम सब नीचे उतर आए। यहाँ एक बड़ा सा कैफेटेरिया बनाया हुआ है। यहाँ पर्याप्त लोगों के बैठने की व्यवस्था है। हमने चाय और कुछ भोजन का आनंद लिया।

सूरज ढलने लगा और मूर्ति अधिक चमकने लगी। छह बजे के बाद स्टैच्यू के भीतर प्रवेश नहीं मिलता और जो भी भीतर होते हैं उन्हें भी बाहर प्रस्थान करना पड़ता है।

संध्या सात बजे लाइट ऍन्ड साउंड शो था। लोगों के बैठने के लिए बेंच लगाए जाते हैं। सभी पर्यटक धीरे धीरे बेंचों पर बैठ गए। शो प्रारंभ हुआ। संपूर्ण श्रद्धा और सम्मान के साथ पर्यटकों ने इसका आनंद लिया यह भी अद्भुत और आकर्षक रहा।

कार्यक्रम की समाप्ति पर हमें बस में बिठाकर मुख्य गेट पर छोड़ा गया। सब कुछ इतना सुव्यवस्थित था कि हमने बहुत आनंद लिया।

यहाँ पास -पड़ोस में रहने के लिए भी जगहें बनाई जा रही हैं ताकि पर्यटक एक दो दिन रहकर इस पूरे परिसर का भरपूर आनंद ले सकें। एक दिन में सब कुछ देख पाना संभव नहीं होता है।

हम बडोदरा लौट आए। दूसरे दिन हमें पुणे लौटना था। हम अभी ट्रेन में ही थे कि चीन में कोविड नामक बीमारी के फैलने तथा दुनिया भर में फैलने की खबर मोबाइल पर समाचार के रूप में पढ़ने को मिला। हम चिंतित हुए और आनंद मिश्रित भय के साथ घर लौट आए।

ऋता सिंह

मार्च 2020

2022 में मुझे पुनः कावेडिया जाने का सुअवसर मिला। इस वर्ष हम नर्मदा परिक्रमा के लिए निकले थे। अबकी बार इस स्थान पर अनेक परिवर्तन दिखाई दिए। आस पास आवास की अच्छी व्यवस्था हैं। अनेक रेस्तराँ तथा ढाबे हैं। परिसर के भीतर बैटरीवाली टमटम चलती है जो गुलाबी रंग की हैं और विशेष बात इन्हें केवल महिलाएँ ही चलाती हैं। उन्हें गुलाबी रंग के गणवेश धारण करने की बाध्यता है। ये सभी महिलाएँ कावेडिया तथा उसके आस पास की निवासी हैं।

भीतर और अधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई हैं। 2023 अक्टोबर तक 400करोड़ की आय इस स्थान से सरकार को प्राप्त हुई है।

हमारे देश में अनेक पर्यटन के तथा ऐतिहासिक स्थान हैं अगर सभी जगहें दर्शनीय तथा सुविधा युक्त हो जाएँ तो विदेशी भी बड़ी संख्या में भ्रमण करने आएँगे।

संपूर्ण परिसर में सुव्यवस्था देखकर मन बाग बाग हो उठा।

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 306 ☆ कविता – “आप निगरानी में हैं…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 306 ☆

?  कविता – आप निगरानी में हैं…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

चौबीस घंटे

एलेक्सा, गूगल

सब सुन रहे हैं,

हमारी बातें।

मोबाइल सब ट्रेस कर रहा है,

कहां , कब गए ,

कितनी देर रुके.

फायर अलार्म सूंघ रहा है

हर पल हमारी सांसे,

हवा की ठंडक।

जाने किन किन

कैमरों की निगाहों में

होते हैं हम

क्रेडिट या डेबिट कार्ड

को सब पता होता है

कहां क्या कितना

किस पर खर्च

कर रहे हैं हम

हजारों आभासी मित्रों

के बीच

फिर भी

कितने अकेले हैं

सब

अपने वितान में ।

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 207 – संतुष्टि ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा संतुष्टि”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 208 ☆

🌻लघु कथा🌻 🐧संतुष्टि🐧

तीन मंजिला मकान। प्रत्येक मंजिल पर शानदार फर्नीचर, मछली वाला एक्वेरियम और शो पीस जगह-जगह कालीन बिछे, बिना सिलवट पड़े चादर बिछे पलंग और वह तमाम मन को आकर्षित करने वाली वस्तुएं। सभी जगह दिखाई दे रही है।

आज उनके यहाँ दो भाइयों के बीच में बात चल रही थी कि पिताजी का श्राद्ध विधि विधान से कराया जाएगा और उनकी आत्मा की शांति के लिए साथ-साथ सभी आसपास पड़ोसियों को भोजन खिलाया जाएगा।

पड़ोसियों को भी अच्छा लगा। कम से कम इसी बहाने उनका घर तो देखने को मिलेगा। उनका रहन-सहन पता चलेगा।

निश्चित समय पर सभी को बुलाया गया। पूरे घर को बढ़िया सजाया गया था। सभी घूम-घूम कर देख रहे थे और अंत में एक आउट हाउस बना हुआ था। छोटा सा कमरा जहाँ दो पलंग।

किनारे पर रखा एक लोटा गिलास और एक टेबल जिसमें स्वर्गीय पिताजी की तस्वीर रखी गई थी सभी को वहाँ पर बैठा कर बारी- बारी भोजन कराया गया।

अब आ तो गए थे। सभी ने थोड़ा-थोड़ा खाना खाया और पूछते गए… क्या पिताजी यहीं पर रहते थे पुत्रों ने जवाब दिया.. हाँ पिताजी को यहाँ ही रखा गया था। पर उनकी आत्मा की शांति के लिए भोजन की व्यवस्था में हम लोगों ने कोई कमी नहीं की है, बताइएगा जरूर।

एक दूसरे का मुँह ताकते सभी लोग कहने लगे.. अगर यही पितरों का श्राद्ध है तो शायद उन्हें कभी भी संतुष्टि नहीं मिलेगी।

परंतु घर के सभी लोग बड़े प्रसन्न दिखाई दे रहे थे कि पिताजी का श्राद्ध चल रहा है। सभी लोग भोजन मुस्कुरा मुस्कुरा कर परोस रहे थे। किसे संतुष्टि थी… तीन मंजिल मकान की मुंह दिखाई या वक्त में पितरों का श्राद्ध???

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 103 – देश-परदेश – शिक्षण संस्थाएं: जिम्मेवारियां ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 103 ☆ देश-परदेश – शिक्षण संस्थाएं: जिम्मेवारियां ☆ श्री राकेश कुमार ☆

गुरुकुल जैसी शिक्षण संस्थाओं के बारे में पुस्तकों या टीवी सीरियल जैसे प्लेटफार्म से जानकारी प्राप्त हुई है, कि वहां किस प्रकार से कठोर नियम और दिनचर्या का पालन करना पड़ता था।

आज निजी क्षेत्र में अधिकतर पाठशालाएं कार्य कर रहीं हैं। निजी क्षेत्र हमेशा स्वार्थहित के लिए कार्य करता है। बच्चों पर आज भी शिक्षक का प्रभाव माता पिता से अधिक होता हैं।

प्रातः भ्रमण के समय देखा कि अभिभावक घर के बाहर अपने बच्चों को स्कूल जाने के लिए इंतजार में खड़े रहते हैं, या स्कूल की बस / टेंपो आदि बच्चों को बुलाने के लिए तीव्र गति वाले हॉर्न बजाकर इंतजार करते हुए मिल जाते हैं। कुछ अभिभावक प्रतिदिन बच्चों को अपने साधन से स्कूल तक छोड़ कर भी आते हैं।

अल सुबह जल्दी के चक्कर में बस / टेंपो आदि गलत दिशा से आकर बच्चों के दरवाज़े पर आते हैं। वाहन की क्षमता से अधिक बच्चे बैठा कर ले जाना एक आम बात हैं। इसमें किसकी जिम्मेवारी है, कि नियमों का पालन सुनिश्चित हो, अभिभावक और स्कूल दोनो इसके दोषी हैं।

टीनेज बच्चे अपने निजी स्कूटर आदि से बिना लाइसेंस के वाहन चलाते हुए,तीन बच्चों के साथ बिना हेलमेट,गलत दिशा से सड़क पर हमेशा मिल जाते हैं। स्कूल में प्रवेश के समय प्रबंधन को यातायात नियमों का पालन सुनिश्चित करना होगा। जो पैरेंट्स भी बिना हेलमेट आदि के बच्चों को छोड़ने आए, उनको घर वापस कर देना चाहिए।

कक्षा में बच्चों को भी नियमों की जानकारी देकर उनके माध्यम से पैरेंट्स को बाध्य किया जा सकता है। लाल बत्ती पर रुकना हो या कार में बेल्ट लगाना, बच्चे अपने पेरेंट्स को मना सकते हैं।

सुपर रईसों के स्कूल में तो ड्राइवर, पैरेंट्स आदि बड़ी और लंबी गाड़ियों से बच्चों को छोड़ने और लेने आते हैं। इसके लिए भी शिक्षण संस्थानों को नियम बना कर सिर्फ स्कूल वाहन से ही बच्चों को स्कूल प्रवेश की अनुमति देनी चाहिए। स्कूल के आसपास महंगी कारों के प्रतिदिन लगने वाले मेले से यातायात की परेशानियों से निजात पाई जा सके।

शिक्षण संस्थाओं को सकारात्मक सोच से बच्चों के विकास का कार्य करना चाहिए। आने वाले समय में एक अच्छे समाज के निर्माण में स्कूल एक अहम भूमिका निभा सकते हैं।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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