English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 212 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 212 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 212) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 212 ?

☆☆☆☆☆

वो मेरे दिल से बाहर

निकलने का रास्ता न ढूंढ़ सके

दावा करते थे जो मेरी

रग-रग से वाक़िफ़ होने का…

☆☆

Couldn’t even find a way 

to get out of my heart

One who used to claim

of knowing me inside out…

☆☆☆☆☆

हिचकियों को ना भेजो

अपना मुखबिर बनाकर

हमें और भी काम है

तुम्हें याद करने के सिवाय…

☆☆

Do not send hiccups as

your snooping informer

Have got plenty of other work

than remembering you…!

☆☆☆☆☆

पुरानी होकर भी खास 

होती जा रही है…

मोहब्बत बेशर्म है जनाब     

बेहिसाब होती जा रही है…!

☆☆

Getting older but becoming 

Distinctively  more special…

Love is brazenly shameless sir!

Growing incalculably day by day!

☆☆☆☆☆

सिमटते जा रहे हैं दिल

और ज़ज्बातों के रिश्ते..

सौदा करने में जो माहिर है

बस वही कामयाब है…

☆☆

Shrinking are the relationships

of the hearts and emotions…

Just the experts in bargaining,

Are the ones who’re successful!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 212 ☆ गीत – समा गया तुम में  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय गीत – समा गया तुम में )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 212 ☆

☆ गीत – समा गया तुम में ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

समा गया है तुममें

यह विश्व सारा

भरम पाल तुमने

पसारा पसारा

*

जो आया, गया वह

बचा है न कोई

अजर कौन कहिये?

अमर है न कोई

जनम बीज ने ही

मरण बेल बोई

बनाया गया तुमसे

यह विश्व सारा

भरम पाल तुमने

पसारा पसारा

*

किसे, किस तरह, कब

कहाँ पकड़ फाँसे

यही सोच खुद को

दिये व्यर्थ झाँसे

सम्हाले तो पाया

नहीं शेष साँसें

तुम्हारी ही खातिर है

यह विश्व सारा

वहम पाल तुमने

पसारा पसारा

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१७-२-२०१७

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (18 नवंबर से 24 नवंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (18 नवंबर से 24 नवंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

आज मैं आपको सबसे पहले इस सप्ताह अर्थात 18 नवंबर से 24 नवंबर 2024 में जन्म लेने वाले बच्चों के भविष्य के बारे में बताऊंगा। उसके उपरांत इस सप्ताह के राशिवार राशिफल की चर्चा की जाएगी।

इस सप्ताह के प्रारंभ में 18 तारीख को रात के 00 बजे से प्रातः काल 7:28 a.m. तक जन्म लेने वाले बालक की राशि वृषभ होगी। यह बालक अपनी पूरी आयु में सुख सुविधाओं का अच्छा उपभोग करेंगे।

18 नवंबर को 7:28 a.m. से लेकर 20 तारीख को 12:52 p.m. तक के बच्चों की राशि मिथुन होगी। ये बालक भाग्यशाली होंगे।

 20 तारीख के 12:52 p.m. से लेकर 22 तारीख को 8:28 p.m.तक जन्म लेने वाले बच्चों कर्क राशि के होंगे। इन बालकों को अपनी संतान से बहुत सुख मिलेगा।

 इसके उपरांत इस सप्ताह के अंत तक जन्म होने वाले बच्चों की जन्म राशि सिंह रहेगी। यह बालक उच्च अधिकारी हो सकते हैं।

 आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

 इस सप्ताह आपके पास धन आने का योग है। भाग्य भी थोड़ा बहुत आपका साथ दे सकता है। सुख सुविधाओं में कमी आएगी। समाज में प्रतिष्ठा में भी कमी आएगी। इस सप्ताह आपके लिए 20 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 21 और 22 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। सप्ताह के बाकी दिन ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें। मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपको थोड़ी सी मानसिक परेशानी हो सकती है। आपके जीवनसाथी और पिताजी का स्वास्थ्य भी उत्तम रहेगा। माता जी को थोड़ा सा कष्ट हो सकता है। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 नवंबर हितवर्धक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मिथुन राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के उत्तम प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में प्रगति होगी। भाग्य आपका एकाएक साथ दे सकता है। आपका व्यापार ठीक चलेगा। इस सप्ताह आपके लिए 18, 19 और 20 नवंबर के दोपहर तक का समय अनुकूल है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। आपके शत्रु आपको परेशान करने का प्रयास कर सकते हैं। इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 20 तारीख की दोपहर से 21 और 22 तारीख किसी भी कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। 18, 19 और 20 तारीख की दोपहर तक आपको कोई भी कार्य पूर्ण सावधानी के साथ करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का जल और दूध से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी, आपके माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक रहेगी। आपके सुख में वृद्धि होगी। शत्रुओं को आप आसानी से परास्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 20, 21 और 22 नवंबर को आपको कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपका अपने भाई बहनों के साथ संबंध थोड़ा ठीक हो सकता है। आपके शत्रु इस सप्ताह शांत रहेंगे। भाग्य से आपको मदद मिलेगी। आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 18, 19 और 20 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 23 और 24 तारीख को आपको कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपको धन की अच्छी प्राप्ति हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। आपको अपनी संतान से सहायता प्राप्त होगी। इस सप्ताह आपके लिए 20 तारीख के दोपहर के बाद से 21 और 22 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका आपकी माता जी का और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके सुख में वृद्धि होगी। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 20, 21 और 22 तारीख को भाग्य आपका साथ दे सकता है। इस सप्ताह आपको 18, 19 और 20 तारीख को सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। दुर्घटनाओं से सतर्क रहें। इस सप्ताह आपके लिए 18, 19 और 20 के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए मंगल दायक है। 20 की दोपहर के बाद से 21 और 22 तारीख को आपको सतर्क रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का अच्छा योग है। व्यापार में वृद्धि होगी। कचहरी के कार्यों में सतर्क रहें। लंबी यात्रा का योग भी बन सकता है। आपके जीवनसाथी को शारीरिक कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 20 की दोपहर के बाद से 21 और 22 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए परिणाम दायक है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कार्यालय में आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। सुख संबंधी सामग्रियों को आप खरीद सकते हैं। शत्रुओं से आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 20, 21 और 22 तारीख को आपको सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। व्यापार में वृद्धि होगी। कचहरी के कार्य सावधानी पूर्वक करें। आपके संतान को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 18, 19 और 20 की दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए लाभ वर्धक है। 23 और 24 तारीख को आपको सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको किसी अच्छे ज्योतिषी से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “मेरे शब्दों में छुपकर मुस्कुराते हो तुम” (काव्य संग्रह) – कवयित्री : सुश्री पल्लवी गर्ग ☆ समीक्षा – श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ “मेरे शब्दों में छुपकर मुस्कुराते हो तुम” (काव्य संग्रह) – कवयित्री : सुश्री पल्लवी गर्ग ☆ समीक्षा – श्री कमलेश भारतीय ☆

पुस्तक : मेरे शब्दों में छुपकर मुस्कुराते हो तुम (काव्य संग्रह )

कवयित्री : पल्लवी गर्ग

प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर

मूल्य 225, पृष्ठ ; 132 (पेपरबैक)

☆ “काव्यगंध‌ से महकतीं कवितायें – पल्लवी गर्ग की मुस्कुराते हो तुम” – कमलेश भारतीय ☆

मेरे लिए पल्लवी गर्ग की कविताओं से  गुजरना यूं तो फेसबुक और पाठक मंच पर अक्सर होता है लेकिन कविताओं को एकसाथ पढ़ने का सुख कुछ और ही होता है। पल्लवी ने बड़े चाव से अपना ताज़ा प्रकाशित काव्य संग्रह ‘मेरे शब्दों में छुपकर मुस्कुराते हो तुम’ भेजा तो वादा किया कि सिर्फ पढ़ूंगा ही नहीं, अपने मन पर इसकी छाप भी लिखूंगा। कुछ दिन इसके पन्ने पलटता रहा, पढ़ता रहा, एक दो यात्राओं में यह मेरे साथ ही चलता रहा। शीर्षक इतना लम्बा कि कमलेश्वर की कहानी का शीर्षक याद आ गया- उस दिन वह मुझे ब्रीच केंडी पर मिली थी’ जैसा ! इसलिए प्रकाशक ने भी मुस्कुराते हो तुम बोल्ड कर दिया, जैसे यही शीर्षक हो !

प्रसिद्ध लेखक व ‘अन्विति’ के संपादक राजेंद्र दानी की भूमिका से यह विश्वास हो गया कवितायें पढ़कर कि कविताओं में ‘काव्यगंध’ है और मुझे भी ऐसी ही महक आई कविताओं को पढ़ते पढ़ते ! खुशी इसलिए भी हुई कि बहुत लम्बे समय बाद ताज़गी भरी छोटी छोटी कवितायें पढ़ने को मिलीं, सार्थक भी और स़देशवाहक भी। आपको बानगी दिखाता हूं :

परत दर परत

मन को उधेड़ना तब

सामने रफ़ूगर अच्छा हो तब

(रफ़ूगर)

……

प्रेम वह कमाल है

जिसमें दूरियां पाटी न जा सकें

नजदीकियां आंकीं न जा सकें !

(प्रेम)

…….

रुचता है मुझे हिमालय पर जाना

उसकी उत्ताल भुजाओं में

शिशु सा समा जाना !

(यात्रा)

…….

हाथ तो पकड़ लिया उसने

काश जान जाता

हाथ पकड़ने और थामने का अंतर !

(अंतर)

…….

धूप का एक टुकड़ा

तुम्हरी यादों की तरह

नजदीक आया

हटाने की कोशिश भी की

पर वह ढीठ भी तुम सा !

(धूप का टुकड़ा)

……

वक्त के बेहिसाब घाव दिखते हैं

तुम्हारी आंखों में

किसी दिन उन पर

प्रेम का मरहम लगायेंगे !

(वक्त के घाव)

……

पल्लवी गर्ग लिखती हैं कि मन के कोने तो बरसों से हर बात पी जाने के अभ्यस्त हो चुके होते हैं, यकायक उनमें एक कांप उठती है ! शून्य, चीत्कार, दर्द, मुस्कुराहट और अश्रु सब उफन पड़ते हैं! पल्लवी की कविताओं में ये सब मिल जायेंगे जगह जगह ! बस, दबे पांव आई पल्लवी की कवितायें उसकी पहली ही कविता नीलकुरिंजी की तरह ! कोई शोर नहीं, कोई प्रचार नहीं लेकिन ये कवितायें पाठकों के मन में खिल जायेंगीं, ऐसा मेरा विश्वास है।

बहुत बहुत शुभकामनाओं सहित पल्लवी !

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-३ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-३  ☆ श्री सुरेश पटवा ?

सतपुड़ा पर्वतमाला दक्कन पठार के उत्तरी विस्तार को और हिन्द महासागर दक्षिणी छोर को परिभाषित करती है। पश्चिमी घाट, पश्चिमी तट से मिलकर दक्षिणी पठार की एक सीमा को चिह्नित करते हैं। पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच हरी-भरी भूमि की संकीर्ण पट्टी कोंकण क्षेत्र है; वही दिखने लगा है। पश्चिमी घाट दक्षिण की ओर बढ़ते हुए, कर्नाटक तट के साथ मालनाड (केनरा) क्षेत्र का निर्माण करते हैं, और नीलगिरि पहाड़ों पर समाप्त होते हैं, जो पश्चिमी घाट का पूर्वी विस्तार है। नीलगिरी लगभग उत्तरी केरल और कर्नाटक के साथ तमिलनाडु की सीमाओं पर एक अर्धचंद्राकार रूप में फैली हुई पर्वत श्रृंखलाएँ हैं, जिसमें पलक्कड़ और वायनाड पहाड़ियाँ और सत्यमंगलम पर्वतमालाएँ शामिल हैं। तमिलनाडु- आंध्र प्रदेश सीमा पर तिरूपति और अनाईमलाई पहाड़ियाँ इस श्रेणी का हिस्सा हैं। इन सभी पर्वत श्रृंखलाओं द्वारा सी-आकार से घिरा विशाल ऊंचा क्षेत्र है। पूर्व में पठार की सीमा पर कोई बड़ी ऊंचाई नहीं है। धरातल पश्चिमी घाट से पूर्वी तट तक धीरे-धीरे ढलान पर है। इसीलिए कृष्णा और कावेरी नदियाँ पश्चिम से पूर्व दिशा में बहकर बंगाल की खाड़ी में समाहित होती हैं।

हवाई जहाज़ ने पश्चिमी तट को अलविदा कह दक्कन के पठार का रुख़ किया है। आसमान साफ़ होने से हरीभरी भूमि पर जलाशय और नदियाँ सूर्य की तीखी किरणों से चमकती दिख जाती हैं। बीच में कुछ छोटी बस्तियाँ और खेतों की रंगोली भी दिखती हैं। दक्कन का पठार महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों के बड़े हिस्से को परिभाषित  करता है, जबकि केरल, तेलंगाना और आंध्र समुद्र तटीय क्षेत्र हैं। भूगोलवेत्ता बताते हैं कि दक्कन के इस विशाल ज्वालामुखीय बेसाल्ट बेड का निर्माण विशाल डेक्कन ट्रैप विस्फोट से 67 मिलियन वर्ष पहले क्रेटेशियस काल के अंत में हुआ था। कई हज़ार वर्षों तक चली ज्वालामुखीय गतिविधि से परत दर परत बनती गई। जब ज्वालामुखी शांत हो गए, तो उन्होंने ऊंचे इलाकों का एक क्षेत्र छोड़ दिया, जिसके शीर्ष पर आमतौर पर एक मेज की तरह समतल क्षेत्रों का विशाल विस्तार निर्मित हुआ। इसलिए इसे “टेबल टॉप” के नाम से भी जाना जाता है। भूविज्ञानियों ने डेक्कन ट्रैप का निर्माण करने वाला ज्वालामुखीय हॉटस्पॉट हिन्द महासागर में वर्तमान रियूनियन द्वीप के नीचे स्थित होने की परिकल्पना की है।

हमारे एक साथी ने हमसे पूछा कि हम लोग हुगली कब पहुँचेंगे। हमने उन्हें बताता कि हम हुबली जा रहे हैं, हुगली नहीं। उन्होंने फिर पूछा हुबली जा रहे हैं या हुगली, स्थान का सही नाम क्या है। उनको बताया कि भैया हुबली दक्षिण भारत में एक जगह का नाम है जहां हम जा रहे हैं। वहाँ से वातानुकूलित बस में बैठ कर बेल्लारी ज़िले के हॉस्पेट पहुँचेंगे। जबकि हमारी गंगा मैया मुर्शिदाबाद से आगे कलकत्ता पहुँच कर हुगली नाम से जानी जाती हैं। उनके दिमाग़ की बत्ती जली तो बोले- हाँ मुझे पता था, कन्फर्म कर रहा था।

हम साढ़े चार बजे हुबली पहुँच गए । समूह के दो यात्री हैदराबाद उड़ान से पहुँच रहे थे। उनकी उड़ान शाम को पाँच बजे हुबली पहुँची। उनके पहुँचने पर साढ़े पाँच बजे हुबली से हम्पी के लिए रवाना हुए। दक्षिण के टेबल टॉप पर खिली धूप में चमकते नज़ारे देखते बनते हैं। हुबली से चले क़रीब एक घंटा हो चला है। दोपहर के बाद की चाय की याद सताने लगी है। कुछ साथी नींद निकालकर अंगड़ाई लेने लगे हैं। हुबली से चालीस किलोमीटर चलकर शीरगुप्पी नामक स्थान पर भारत फ़ैमिली रेस्टोरेंट पर निस्तार से फ़ारिग हो चाय निपटाई। फोटो और सेल्फी के ज़रूरी काम निपटा बस में सवार हो फिर चल दिए।

रास्ते में बाजरा, ज्वार, कपास और मूँगफली के हरे भरे खेत दिखाई देते हैं। चारों तरफ़ हरियाली का आलम है। यह इलाक़ा मराठों और हैदराबाद रियासत के बीच लंबे समय तक झगड़े की जड़ रहा। बीच-बीच में गढ़ियो के खंडहर दिखते हैं। हमारी हुबली से हम्पी यात्रा के रास्ते में ज़िला मुख्यालय कोप्पल आया, जिसे बाईपास से पार किया। कोप्पल जिला कर्नाटक का सर्वश्रेष्ठ बीज उत्पादन केंद्र है। यहां कई राष्ट्रीय बीज कंपनियों के फूल, फल, सब्जियों और दालों के बीज उत्पादन केंद्र स्थापित किए गए हैं।

क्रमशः… 

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 138 ☆ मुक्तक – ।। किसीके अंधेरे का चिराग बनके देखो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 138 ☆

☆ मुक्तक – ।। किसीके अंधेरे का चिराग बनके देखो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

किसी के अंधेरे  का चिराग बन  कर देखिए।

किसी की आँखों का ख्वाब बन कर  देखिए।।

दर्द दूसरों का  भी    अपना कर   जरा देखो।

किसी   मुश्किल का  जवाब बन  कर देखिए।।

[2]

गिरते हुए को जरा   संभाल कर    देखो  तुम।

अपनी नज़र के  जरा    पार  भी   देखो  तुम।।

हाथ बढ़ाओगे तो  आँसुओं में मुस्कान मिलेगी।

किसी का दर्द  लेकर    जरा उधार देखो तुम।।

[3]

दूसरों के गमों को जो समझें वो इंसान होता है।

तकलीफ में दे  साथ    वही  एहसान  होता है।।

नेकी कर   दरिया  में   डाल देना ही है   जरूरी।

जला कर  हाथ जो बचाए वो भगवान होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 203 ☆ राम का नित ध्यान है… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “राम का नित ध्यान है। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 203 ☆ राम का नित ध्यान है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पुण्य सलिला सरयू तट पर बसी शांति प्रदायानी

जन्म नगरी राम की है अयोध्या अति पावनी

*

स्वप्न पावन तीर्थ पुरियों में प्रथम जो मान्य है

सकल भारतवर्ष की है प्रिय सतत सन्मानिनी

*

सहन की जिसने उपेक्षा विधर्मी प्रतिकार की

सहेजे चुप रही मन में भावना उद्धार की

*

न्याय सदियों बाद पा रही नूतन सृजन

मन में आकाँक्षा सजाए राम के दरबार की

*

एक लंबी प्रतीक्षा के बाद आई है अब वह घड़ी

राम भक्तों के मन में भी मची है दर्शनों को हड़बड़ी

*

चाहते सब पूर्ण हो अब राम मंदिर का सृजन

जहां कर दर्शन प्रभु का पाए मन शांति बड़ी

*

राम हैं आदर्श जग के अपने सद व्यवहार से

सबके प्रिय औ’ पूज्य भी हैं सहज पावन प्यार से

*

विश्व को अनुराग उन पर उनके नित आदर्श पर

सभी मानव जाति को उनका सतत आधार है

*

सभी को सुख शांति दाई राम जी भगवान हैं

जिनको हर धर्मावलंबी व्यक्ति एक समान है

*

भेद छोटे बड़े का कोई दृष्टि में उनकी नहीं

हर एक की जीवन दशा पर सदा उनका ध्यान है

*

सदा सबका हो भला कोई ना कहीं विकार हो

दीन दुखियों का सदा कल्याण हो उद्धार हो

*

🙏💐जगत में सुख शांति सद्भावना विश्वास से प्राणियों के मनों में शुभकामना हो प्यार हो💐🙏

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक समीक्षा ☆ संजय दृष्टि – वह हँसती बहुत है – कवयित्री – सुश्री स्वरांगी साने — ☆ समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। आज से प्रत्येक शुक्रवार हम आपके लिए श्री संजय भारद्वाज जी द्वारा उनकी चुनिंदा पुस्तकों पर समीक्षा प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

? संजय दृष्टि –  समीक्षा का शुक्रवार # 21 ?

?ह हँसती बहुत है  — कवयित्री – सुश्री स्वरांगी साने  ?  समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज ?

पुस्तक का नाम- वह हँसती बहुत है

विधा- कविता

कवयित्री- सुश्री स्वरांगी साने

? स्त्रीत्व का वामन अवतार- ‘वह हँसती बहुत है।’  श्री संजय भारद्वाज ?

कविता और संवेदना का चोली-दामन का साथ है। अनुभूति कविता का प्राणतत्व है। जैसा अनुभव करेंगे, वैसा जियेंगे। जैसा जियेंगे वैसी ढलेगी, बहेगी कविता। यह अखंड जीना किसी को कवि या कवयित्री बना देता है। कवयित्री स्वरांगी साने इस जीने को स्त्री जीवन के अमर पक्ष अर्थात पीहर तक ले जाती हैं। यहीं से उनकी कविता में सदाहरी बेल पनपने लगती है-

कविता में जाना मेरे लिए पीहर जाने जैसा है..*

‘वह हँसती बहुत है’ संग्रह की कविताएँ स्त्री जीवन के विविध आयामों को अभिव्यक्त करती हैं। प्रेम, जीवन का डीएनए है‌। यही प्रेम प्राय: दोराहे पर ला खड़ा करता है।  एक राह मिलन के बाद की टूटन और दूसरी ना मिल पाने की कसक अथवा बिछुड़न। दूसरी राह शाश्वत है। ये शाश्वत की कविताएँ हैं। इस शाश्वत की बानगी ‘मेडिकल टर्म्स’ में देखिए-

धुंधला दिख रहा है/ सब कह रहे हैं मोतियाबिंद हो गया है/ पर वह जानती है/ ठहर गए हैं सालों साल के आँसू /आँखों में आकर..*

आह और वाह को एक साथ जन्म देती शाश्वत की यह अभिव्यक्ति जितनी कोमल है, उतनी ही प्रखर भी। यह शाश्वत ‘धोखा’, ‘ऐसे करना प्रेम’,  ‘मीरा के लिए’, ‘ललक’, ‘पार हो जाती’, ‘तुमने कहा था’, ‘चाहत’, ‘रसोई’, ‘यात्रा’, ‘जो बना रहा’  जैसी अन्यान्य कविताओं के माध्यम से इस संग्रह में यत्र, तत्र, सर्वत्र दिखाई देता है। शाश्वत प्रेम की एक हृदयस्पर्शी बानगी ‘फेसबुक’ कविता से,

फेसबुक पर तुम्हारे नाम के पास/  ले जाती हूँ कर्सर/ लगता है/  तुम्हें छू कर लौटी हूँ…*

बिछुड़न का कारण और निवारण, गहरे से निकलता है, पाठक को गहरे तक भिगो देता है,

उसकी संजीवनी बूटी हो तुम/  जो नहीं हो उसके पास… * 

प्रेम कोमल अनुभूति है पर प्रेम चीर देता है। प्रेम टीस देता है, व्याकुलता और विकलता देता है लेकिन यही प्रेम संबल और बल भी देता है। खंडित होकर अखंड होने का संकल्प और ऊर्जा भी देता है। कवयित्री प्रेम की मखमली अभिव्यक्ति से आगे बढ़ती हैं और सांसारिक यथार्थ को निरखती, परखती और उससे लोहा लेती हैं,

मैंने बंद कर दिया है तुमसे अपना वार्तालाप/ अब शुरू हुआ है मेरा खुद से संवाद..*

समय के थपेड़े व्यक्ति पर पाषाण कठोरता का आवरण चढ़ा देते हैं,

बाहर से वह कठोर दिखती है/  इतनी कि लोग उसे अहिल्या कहते हैं..*

पत्थर के भीतर भी स्त्री बची रहती है पर स्त्री  की देह उसे डरने के लिए विवश भी करती है,

कछुआ नहीं लड़की है वह/  और तभी वह समझ गई यह भी कि/  सुरक्षित नहीं है वह/  फिर सिमट गई अपनी खोल में..*

खोल या आवरण को तोड़कर बाहर लाती है शिक्षा। शिक्षा अर्थात पढ़ना। पढ़ना अर्थात केवल साक्षर होना नहीं। पढ़ना अर्थात देखना, पढ़ना अर्थात गुनना, पढ़ना अर्थात समझना। पढ़ना अर्थात विचार करना, पढ़ना अर्थात विचार को अभिव्यक्त करना।  समाज स्त्रीत्व की खोल से बाहर आती स्त्री को देखकर, उसके चिंतन को समझ कर चिंतित होने लगता है, 

खतरा तो तब मंडराता है/ पढ़ने लगती है/ औरत कोई किताब..*

औरत पढ़ने लगती है किताब। औरत लिखने लगती है किताब। स्त्री जीवन का अनंत विस्तार  सिमटकर उसकी कलम की स्याही में उतर आता है,

किसी तरह चुरा लेनी है/  मेहंदी की गंध और उसका रंग भी/ तो बेटियां निकल सकती हैं/  इस तिलिस्म से बाहर/ सच अभी इतनी भी देर नहीं हुई..*

………

इतिहास कहता है/ वह वैशाली की नगरवधू थी/ इतिहास में नहीं कहा कि/ वह एक स्त्री थी..*

‘सौरमंडल’, ‘हँसी’, ‘नर्तकी’ और ऐसी अनेक कविताओं में स्त्री के ब्रह्मांड का मंथन है। ‘प्याज़’ नामक कविता इसका क्लासिक उदाहरण है। 

बहुत सारा प्याज़/ काटने बैठ जाती थी माँ/ कहती थी मसाला भूनना है/ तब समझ नहीं पाती थी/ इतना अच्छा क्या है प्याज़ काटने में/ आज पूछती है बेटी/ क्या हुआ?/ और वह कह देती है/ कुछ नहीं/ प्याज़ काट रही हूँ..*

अपनी जिंदगी अपनी तरह से नहीं जी पाने की निराशा अपनी तरह से मरने की आज़ादी का शंख फूँकती है।

उसे मरने का कॉपीराइट चाहिए..*

‘वह हँसती बहुत है’ संग्रह की कविताएँ स्त्रीत्व का वामन अवतार हैं। इस संग्रह की कविताएँ स्त्री जीवन की विराटता को अल्प शब्दों में जीने का सामर्थ्य रखती हैं, यथा-

एक कदम में लांघा माँ का घर/ दूसरे में पहुँच गई ससुराल/ विराट होने की ज़रूरत ही नहीं रही/और उसने नाप ली दुनिया..* 

इस संग्रह की रचनाएँ स्त्री जीवन की विसंगत स्थितियों का वर्णन अवश्य करती हैं पर अपना स्त्रीत्व नहीं छोड़तीं। यह स्त्रीत्व है जिजीविषा का, सपने देखने का, सपना टूटने पर फिर सपना देखने का। सदाहरी विस्तार पाती है,  और शब्द फूटते हैं,

खुली आँखों से सपना देखती/ सपने को टूटता देखती/ खुद को अकेला देखती/  फिर भी वह सपना देखती..*

कवयित्री के सपने फलीभूत हों, कवयित्री निरंतर लिखती रहें।

© संजय भारद्वाज  

नाटककार-निर्देशक

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #29 – गीत – आहत स्वप्न हुए सारे हैं… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतआहत स्वप्न हुए सारे हैं

? रचना संसार # 29 – गीत – आहत स्वप्न हुए सारे हैं…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

(मात्रा भार 16/14)

☆ 

सन्नाटा गलियों में पसरा,

बाँध धैर्य का टूट गया।

सकल विश्व में संकट छाया,

देख लुटेरा लूट गया।।

 *

गंगा तट लाशों का डेरा,

पड़ी भँवर जीवन नैया।

सस्ती देखो मौत हुई है,

छिपे कहाँ थाम खिवैया।।

धीरज अब  पंथी ने खोया,

सारा तन ये कूट गया।।

 *

नित्य हलाहल धरती पीती,

नील गगन खामोश खड़ा।

जीवन राग द्वेष में बीता,

पिँजरे में तन कैद पड़ा।।

बैठे किस्मत  को कोसें सब,

घड़ा पाप का फूट गया।

 *

आज सृजन भी मौन हुआ है,

भाव शब्द का रूठ रहा।

मानवता की बात करो मत,

हरा वृक्ष भी ठूँठ कहा।।

बना शिकारी देख मनुज है,

सँग अपनों का छूट गया।

 *

आहत स्वप्न हुए सारे हैं,

अपनों ने हैं घाव दिए ।

घोर तिमिर की छाया है अब,

उजियारे हैं होंठ सिए।।

टूटी हर मर्यादाएँ अब,

छोड़ धरा रँगरूट गया।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #256 ☆ भावना के दोहे – गुड़िया, फूल और तितली☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 256 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  – गुड़िया, फूल और तितली ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

फूलों पर मंडरा रही, तितली रानी खूब।

बैठी हो चुपचाप क्यों, नहीं लगी क्या ऊब।।

*

 फूलों का रस चूसती, खुश हो जाते फूल।

साथ फूल का मिल रहा, उसको यही कबूल।।

*

उड़ती तितली देखती, पकडूँ उसको हाथ।

मन तो उसका कर रहा, खेलूँ उसके साथ।।

*

सौरभ की बगिया में, लगी झूमती खूब।

हरियाली की हरितिमा, देख रही है डूब।।

*

तितली देखें राह में, गुड़िया रानी पास।

मंद-मंद मुस्कान है, बस छूने की आस।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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