हिन्दी साहित्य – जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग -17 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी

सुश्री शिल्पा मैंदर्गी

(आदरणीया सुश्री शिल्पा मैंदर्गी जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जीवन में किसी भी उम्र में कोई भी कठिनाई हमें हमारी सफलता के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। नेत्रहीन होने के पश्चात भी आपमें अद्भुत प्रतिभा है। आपने बी ए (मराठी) एवं एम ए (भरतनाट्यम) की उपाधि प्राप्त की है।)

☆ जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग – 17 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी  ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी☆ 

(सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी)

(सुश्री शिल्पा मैंदर्गी के जीवन पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ “माझी वाटचाल…. मी अजून लढते आहे” (“मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”) का ई-अभिव्यक्ति (मराठी) में सतत प्रकाशन हो रहा है। इस अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद कार्य हेतु आदरणीया सौ. अंजली दिलीप गोखले जी का साधुवाद । वे सुश्री शिल्पा जी की वाणी को मराठी में लिपिबद्ध कर रहीं हैं और उसका  हिंदी भावानुवाद “मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”, सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी जी कर रहीं हैं। इस श्रंखला को आप प्रत्येक शनिवार पढ़ सकते हैं । )  

जैसे कली से कमल थोड़ा-थोड़ा बडा होकर खिलता है, वैसे ही मेरी प्रगति धीरे-धीरे बढ़ रही थी। मेरे व्यक्तित्व के अच्छे गुण भी पल्लवित हो रहे थे। नवरत्न दीपावली अंक के माध्यम से हमारा छोटा सा ‘वाचन कट्टा’ महिलाओं की कविता, कहानियों से भर गया। उसी के कारण हमारा कविता सुनाना शुरू हो गया। उनमें की सहेली सौ. मुग्धा कानीटकर ने अपने घर के हॉल में मेरा अकेली का नृत्य का कार्यक्रम रखा था। उसी के साथ हमारे सहेलियों को भी आमंत्रित किया था। उसमें मैंने भरतनाट्यम का नृत्याविष्कार पेश किया। कविता भी सुनाई। सभी सहेलियों ने हृदय से मेरी प्रशंसा की। उनके प्रतिसाद के कारण मुझे प्रोत्साहन मिला।

उसके साथ-साथ मिरज के पाठक वृद्धाश्रम में ८ मार्च ‘महिला दिन’ पर कार्यक्रम में मेरी अदा का सादरीकरण करने का मौका मिल गया। सभी दीदियों ने मुझ पर आनंद और खुशियां बरसा दी।

५ जानेवारी २०२० में हमारे ‘नवरत्न’ दीपावली अंक का पुरस्कार प्रदान समारोह सेलिब्रिटी श्री प्रसाद पंडित इनके साथ संपन्न हुआ। उस वक्त मुझे स्वातंत्रवीर सावरकरजी के ‘जयोस्तुते’ गीत नृत्य के रूप में पेश करने को मिला। विशेषता यह थी कि सब दर्शकों ने हाथ से नृत्य और गाने को ताल लगाकर अभिवादन किया। यह सब अर्थ मुझे बाद में समझ आ गया। सब दर्शकों ने पूरा सहयोग दिया। विशेषता यह है कि श्री. प्रसाद पंडित जी ने मेरे प्राविण्यता को पीठ थपथपाकर गर्व से कहा, “शिल्पा ताई हमें आपके साथ एक फोटो खींचना है।”

मेरी वक्तृत्व की कला देखकर मैं सूत्रसंचालन भी कर सकूंगी ऐसा समझ में आने के बाद मुझे तीन बड़े कार्यक्रम का सूत्र संचालन करने का मौका दिया गया। ‘नवरत्न’ दीपावली अंक के प्रकाशन में वक्त सूत्रसंचालन करके गोखले चाची की मदद से यशस्विता प्राप्त कर ली। अध्यक्ष जी बहुत भावुक हो गए, उन्होंने ही मुझे शॉल और श्रीफल देकर गौरव किया। उसके बाद मेरे भाई न्यायाधीश होने के बाद मेरे माता और पिता जी ने भाई की विद्वता को जानकर एक छोटे से समारोह का आयोजन किया था। उसके भी सूत्र संचालन की जिम्मेदारी मैंने संपन्न की। लोगों ने मेरा बहुत बड़ा सम्मान किया। दूसरे दिन पंकज भैया मुझे बोले, शिल्पा ने कल सामने कागज नहीं होते हुए भी मुंह से जोर-जोर से शब्दों का भंडार सबके सामने रखा। मेरी सहेली सौ. अनीता खाडीलकर के ‘मनपंख’ पुस्तक का प्रकाशन भी संपन्न हुआ। उस पुस्तक के प्रकाशन का सूत्र संचालन भी मैंने यशस्विता के साथ संपन्न किया।

मेरी आंखों के सामने हमेशा के लिए सिर्फ काला-काला अंधेरा होते हुए भी मैं नजदीक वाले लोगों के सामने प्रकाश का किरण ला सकी। इस बात की मुझे बहुत बड़ी खुशी है। यह सब करिश्मा भगवान का है।

प्रस्तुति – सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी, पुणे 

मो ७०२८०२००३१

संपर्क – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी,  दूरभाष ०२३३ २२२५२७५

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 66 – बाळ गीत – शाळेत जाऊ द्याल का? ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 66 – बाळ गीत – शाळेत जाऊ द्याल का?

आई बाबा आई बाबा

पाटी पेन्सिल घ्याल का!

पाटीवरती घेऊन दप्तर

शाळेत जाऊ द्याल का!

 

भांडीकुंडी भातुकली

आता नको मला काही।

दादा सोबत एखादी

द्याल का घेऊन वही।

 

नका ठेऊ मनी आता

मुले मुली असा भेद।

शिक्षणाचे द्वार खोला

भविष्याचा घेण्या वेध।

 

कोवळ्याशा मनी माझ्या

असे शिकण्याची गोडी।

प्रकाशित जीवन  होई

ज्योत पेटू द्या ना थोडी।

 

पार करून संकटे

उंच घेईल भरारी।

आव्हानांना झेलणारी

परी तुमची करारी।

 

सार्थ करीन विश्वास

थोडा ठेऊनिया पाहा।

थाप अशी कौतुकाची

तुम्ही  देऊनिया पाहा।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 93 ☆ ग़लत सोच : ग़लत अंदाज़ ☆ डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  एक अत्यंत विचारणीय आलेख ग़लत सोच : ग़लत अंदाज़। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन।  कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 93 ☆

☆ ग़लत सोच : ग़लत अंदाज़ 

ग़लत सोच, ग़लत अंदाज़ इंसान को हर रिश्ते से  गुमराह कर देता है। इसलिए सबको साथ रखो, स्वार्थ को नहीं, क्योंकि आपके विचारों से अधिक कोई भी आपको कष्ट नहीं पहुंचा सकता– यह कथन कोटिशः सत्य है। मानव की सोच ही शत्रुता व मित्रता का मापदंड है। ग़लत सोच के कारण आप पूरे जहान को स्वयं से दूर कर सकते हैं; जिसके परिणाम-स्वरूप आपके अपने भी आपसे आंखें चुराने लग जाते हैं और आपको अपनी ज़िंदगी से बेदखल कर देते हैं। यदि आपकी सोच सकारात्मक है, तो आप सबकी आंखों के तारे हो जाते हैं। सब आपसे स्नेह रखते हैं।

ग़लत सोच के साथ-साथ ग़लत अंदाज़ भी बहुत ख़तरनाक होता है। इसीलिए गुलज़ार ने कहा है कि लफ़्ज़ों के भी ज़ायके होते हैं और इंसान को लफ़्ज़ों को परोसने से पहले अवश्य चख लेना चाहिए। महात्मा बुद्ध की सोच भी यही दर्शाती है कि जिस व्यवहार की अपेक्षा आप दूसरों से करते हैं, वैसा व्यवहार आपको उनके साथ भी करना चाहिए, क्योंकि जो भी आप करते हैं; वही लौटकर आपके पास आता है। इसलिए सदैव अच्छे कर्म कीजिए, ताकि आपको उसका अच्छा फल प्राप्त हो सके।

मानव स्वयं ही अपना सबसे बड़ा शत्रु है, क्योंकि जैसी उसकी सोच व विचारधारा होती है, वैसी ही उसे संपूर्ण सृष्टि भासती है। इसलिए कहा जाता है कि मानव अपनी संगति से पहचाना जाता है। उसे संसार के लोग इतना कष्ट नहीं पहुंचा सकते; जितनी आप स्वयं की हानि कर सकते हैं। सो! मानव को स्वार्थ का त्याग करना कारग़र है। इसके लिए उसे अपनी मैं अथवा अहं का त्याग करना होगा। अहं मानव को आत्मकेंद्रिता के व्यूह में जकड़ लेता है और वह अपने घर-परिवार के इतर कुछ भी नहीं सोच पाता। सो! मानव को सदैव ‘सर्वे भवंतु सुखीन:’ की कामना करनी चाहिए, क्योंकि हम भारतीय वसुधैव कुटुंबकम् की संस्कृति में विश्वास रखते हैं, जो सकारात्मक सोच का प्रतिफल है।

सुख व्यक्ति के अहंकार की परीक्षा लेता है और दु:ख धैर्य की और सुख और दु:ख दोनों परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने वाला व्यक्ति ही सफल होता है। मानव को सुख-दु:ख में सदैव सम रहना चाहिए, क्योंकि सुख में व्यक्ति अहंनिष्ठ हो जाता है और किसी को अपने समान नहीं समझता। दु:ख में व्यक्ति के धैर्य की परीक्षा होती है। परंतु दु:ख में वह टूट जाता है और पथ-विचलित हो जाता है। उस स्थिति में चिंता व तनाव उसे घेर लेते हैं और वह अवसाद की स्थिति में पहुंच जाता है। सुख-दु:ख का चोली दामन का साथ है; दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। एक की उपस्थिति होने पर दूसरा कभी दस्तक नहीं देता और उसके जाने के पश्चात् ही वह आता है। सृष्टि का क्रम आना और जाना है। मानव संसार में जन्म लेता है और कुछ समय पश्चात् उसे अलविदा कह चला जाता है और यह क्रम निरंतर चलता रहता है।

परमात्मा हमारा भाग्य नहीं लिखता। हर कदम पर हमारी सोच, विचार व कर्म ही हमारा भाग्य निश्चित करते हैं। जैसी हमारी सोच होगी, वैसे हमारे विचार होंगे और कर्म भी यथानुकूल होंगे। हमें किसी के प्रति ग़लत विचारधारा नहीं बनानी चाहिए, क्योंकि यह हमारे अंतर्मन में शत्रुता का भाव जाग्रत करती है और दूसरे लोग भी हमारे निकट आना तक पसंद नहीं करते। उस स्थिति में सब स्वप्न व संबंध मर जाते हैं। इसलिए मानव को ग़लत सोच कभी नहीं रखनी चाहिए और बोलने से पहले सदैव सोचना चाहिए, क्योंकि हमारे बोलने के अंदाज़ से शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं। इसलिए रहीम जी का यह दोहा मानव को मधुर वाणी में बोलने की सीख देता है– ‘रहिमन वाणी ऐसी बोलिए, मनवा शीतल होय/  औरन को शीतल करे, ख़ुद भी शीतल होय।’ इसी संदर्भ में मैं इस तथ्य का उल्लेख करना चाहूंगी कि मानव को तभी बोलना चाहिए जब उसके शब्द मौन से बेहतर हों अर्थात् यथासमय, अवसरानुकूल सार्थक शब्दों का ही प्रयोग करना श्रेयस्कर है।

                  

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

#239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ किसलय की कलम से # 45 ☆ चेदि के नंदिकेश्वर ☆ डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका  एक अत्यंत ज्ञानवर्धक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक आलेख  “चेदि के नंदिकेश्वर”.)

☆ किसलय की कलम से # 45 ☆

☆ चेदि के नंदिकेश्वर ☆

देवाधिदेव महादेव भगवान शिव की पूजा आराधना तो बहुत बाद की बात है, भोले शंकर के स्मरण मात्र से मानव अपने तन-मन में उनका अनुभव करने लगता है। पावन सलिला माँ नर्मदा की जन्मस्थली अमरकंटक से खंभात की खाड़ी तक 16 करोड़ शिवलिंग तथा दो करोड़ तीर्थ होने की मान्यता सुनकर आश्चर्य होता है। अतैव हम नर्मदातट को शिवमय क्षेत्र भी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं माना जाएगा। नर्मदा तट के जनमानस में भगवान शिव के प्रति प्रारंभ से ही अगाध आस्था के प्रमाण उपलब्ध हैं। सोमेश्वर , मंगलेश्वर , तपेश्वर , कुंभेश्वर , शूलेश्वर , विमलेश्वर , मदनेश्वर , सुखेश्वर , ब्रम्हेश्वर , परमेश्वर , अवतारेश्वर एवं बरगी जबलपुर (मध्य प्रदेश) के नजदीक नंदिकेश्वर शिवलिंग आज भी विद्यमान हैं। नर्मदा में डुबकी लगाकर निकाले गए पाषाणों की शिवलिंग के रूप में स्थापना कर भक्तगण पूरी आस्था के साथ पूजा करते हैं। माँ नर्मदा की धारा में शिव रूपी पाषाण सहजता से देखे जा सकते हैं। ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ के परिवर्तन की स्थिति में नर्मदेश्वर की ही स्थापना की जाती है। नर्मदा एवं भगवान शिव की कृपा से नर्मदा के दोनों तटों के एक डेढ़ किलोमीटर क्षेत्र में कभी अकाल या दुर्भिक्ष नहीं पड़ता। इसीलिए यह क्षेत्र सुभिक्ष क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र में यह भी देखा गया है कि हमारे अनेक ऋषियों ने नर्मदा के किनारे जिस स्थान को अपनी तपोस्थली बनाया अथवा जहाँ ठहरे वहाँ उन्हीं नाम से उस स्थान अथवा कुंड का नामकरण हो गया।

पौराणिक कथाओं, नर्मदा पुराण, धार्मिक ग्रंथों एवं ऐतिहासिक अभिलेखों के आधार पर प्राचीन चेदि के अंतर्गत महिष्मती एवं त्रिपुरी आती थी। महिष्मती के महाबली सहस्रार्जुन, परशुराम के पिताश्री जमदग्नि एवं चेदि नरेश शिशुपाल को कौन नहीं जानता। नर्मदा तट भगवान दत्तात्रेय, शिवभक्त रावण की तपोभूमि एवम् भ्रमण स्थली रही है। चेदि की प्राचीनता का प्रमाण इसी से लगाया जा सकता है कि चेदि नरेश स्वयं सीता जी के स्वयंवर में गए थे। बाल रामायण के अनुसार:-

सीतास्वयंवर निदान धनुर्धरेण

दग्धात्पुर त्रितयतो बिभूना भवेन्।

खंड निपत्य भुवि या नगरी बभूव

तामेष चैद्य तिलकस्त्रिपुरीम् प्रशस्ति।।

इसी तरह स्वयं भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान भी नर्मदा तट पर ही किया था। परशुराम द्वारा सहस्रार्जुन के पुत्रों को मारने के उपरांत भयभीत हैहयवंशी राजा सुरक्षा की दृष्टि से त्रिपुरी (जो वर्तमान में जबलपुर, भेड़ाघाट मार्ग पर पश्चिम दिशा में 13 किलोमीटर दूर तेवर है) आ गए और त्रिपुरी को ही राजधानी के रूप में अपनाया । प्रमाणित है कि इसी त्रिपुरी में त्रिपुरासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने त्रिपुर नामक राक्षस का वध किया था।

बलशाली त्रिपुरासुर ने भगवान शिव के विश्वकर्मा द्वारा निर्मित अद्भुत रथ को भी जब छतिग्रस्त कर दिया तब अपने आराध्य की सहायतार्थ भगवान विष्णु ने मायावी बैल नंदी का रूप धारण कर रथ को अपने सींगों से ऊपर उठा लिया था। उसी समय  भगवान शिव त्रिपुर राक्षस का वध करके त्रिपुरारि अर्थात त्रिपुर के अरि (दुश्मन) नाम से विख्यात हुए। इसी तरह जैसा सभी जानते हैं कि विष्णु के आराध्य भगवान शिव ही हैं। अतः इस त्रिपुरासुर संग्राम स्थल पर विष्णु ने नंदी का रूप धारण किया था, जिस कारण नंदी के ईश्वर (आराध्य) अर्थात नंदिकेश्वर शिवलिंग की स्थापना की गई यहाँ से लगभग 7 किलोमीटर दूर जिस स्थान पर नंदी रूपी विष्णु भगवान ने विश्राम किया था वह स्थान नाँदिया घाट नाम से विख्यात है। नंदिकेश्वर के समीप ही भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि की तपोभूमि के पास जमदग्नि कुंड एवम् ब्रह्महत्या के पाप से भी मुक्ति दिलाने वाले हत्याहरण कुंड का स्थित होना समसामयिक तत्त्वों की पुष्टि करता है। ज्ञातव्य है कि इनमें से अनेक स्थल नर्मदा नदी पर बरगी बाँध बनने के कारण जलमग्न हो चुके हैं। हम पाते हैं कि त्रिपुरासुर वध विषयक शिलालेख से प्रतीत होता है कि शिव द्वारा त्रिपुरासुर का वध देवासुर संग्राम की कथा नहीं वरन आर्य एवं अनार्य जातियों के संघर्ष का प्रतीक है। महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 5-4 छंद 8 में त्रिपुरी एवं चेदि का उल्लेख मिलता है। प्रामाणिक रूप से उपरोक्त तथ्यों की ओर ध्यानाकर्षण का मात्र उद्देश्य वर्तमान प्रामाणिक स्थल हमारे पुराने एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कहे जा सकते हैं । जबलपुर जिले के बरगी नगर स्थित नंदिकेश्वर शिवलिंग की स्थापना परशुराम काल में ही की गई थी विद्वानों द्वारा की गई काल गणना के अनुसार राम जन्म के पूर्व परशुराम हुए थे। नंदिकेश्वर शिवलिंग का स्थापना काल लगभग 8 लाख वर्ष ही माना जाना चाहिए।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 92 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 92 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

मन से पूजा कर रहा,

करें समर्पित आप।

राम राम जपते रहो,

मिट जायेंगे पाप।।

 

जन प्रियता की खोज में,

भटक रहे हैं लोग।

सिर्फ दिखावे के लिए,

रोज लगाए भोग।।

 

वादा तुमने जो किया,

लगी टकटकी द्वार।

सभी प्रतीक्षा रत यहां,

मानेंगे ना हार।।

 

पत्रों का हमने बहुत,

किया प्रेम व्यवहार।

जीवन में अब मिल रहा,

बस अपनों का प्यार।।

 

प्यार कहां अब दिख रहा,

दिखता है बस लोभ,

देखें ऐसा चेहरा,

छा जाता है शोभ।।

 

लोग स्वार्थी हो रहे,

नहीं समझते प्यार।

बात बात पर किया है,

बस केवल तकरार।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 82 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण कविता  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 82 ☆

☆ संतोष के दोहे ☆

पूजा निश दिन कीजिये, हैं ईश्वर अवतार

मात-पिता से जो करें, गर वो सच्चा प्यार

 

सेवा से प्रियता मिले, मिलता प्रेम अपार

पर हित से बढ़ कर नहीं, धरम न दूजा यार

 

कोरोना में ही लगा, यहाँ सभी का ध्यान

जाने की अब प्रतीक्षा, करता सकल जहान

 

मोबाइल के दौर में, कम ही लिखते पत्र

कमी आ गई डाक में, बदल गए नक्षत्र

 

जहाँ प्यार के नाम पर, नव पीढ़ी स्वछंद

संस्कार दूषित हुए, तँह क्यूँ है मुँह बन्द

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 83 – विजय साहित्य – ओवी बद्ध रामायण – काही ओव्या  ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 83 – विजय साहित्य ☆ ओवी बद्ध रामायण – काही ओव्या  ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

(ओवी बद्ध रामायण या खंडकाव्य यातील काही ओव्या… काव्य प्रकारसाडे तीन चरणी ओवी)

 

धर्मपरायण राजा , शोभे अयोध्या नरेश

अवतारी परमेश , राजगृही.. . !  25

 

पोटी नाही पुत्र सौख्य, पूर्ण व्हावे मनोरथ

खंतावला दशरथ,  मनोमनी. . . !   26

 

वसिष्ठांना पाचारण काश्यपांना निमंत्रण

जाबालींना आमंत्रण, धर्मकार्ये.. . !  27

 

पुत्रकामेष्टीचा यज्ञ,  शृंगऋषी पुरोहित

दथरथे समर्पित, यज्ञाहूती . . . !  28

 

गोरस नी गोधृताने, आरंभीला यज्ञयाग

यथोचित द्रव्यभाग, केला दान.. !   29

 

दानधर्म, कुलाचार,  आणि पुण्याहवाचन

वेदमंत्रांचे पठण,  यज्ञस्थली.. . !   30

 

अग्निदेव प्रगटले ,  दिले पायसाचे दान

पुत्रसौख्य वरदान, चिरंजीवी  . . . !  31

 

आनंदल्या तिन्ही राण्या, केले पायस भक्षण

गर्भी आले नारायण,  कौसल्येच्या.. . ! 32

 

चैत्र मासी नवमीस , राणी कौसल्येस राम

आनंदाने भरे धाम , जन्मोत्सव . . !  33

 

माध्यान्हीला जन्मोत्सव  कौसल्येचे नुरे भान

रामजन्मी गाती गान, प्रजाजन   . .!  34

 

सूर्यवंशी रामराया , विष्णू रूप अवतार

बालरूप  अंगीकार ,मोहमयी . . . ! 35

 

राजा दशरथापोटी ,जन्मा आले पुत्र चार

झाला राम  अवतार,  अयोध्येत .. !  36

 

चार पुत्र तेजोमय, यश, कीर्ती समाधान

विष्णूरूप शोभे सान,  रामचंद्र … ! 37

 

माता कौसल्येचा राम, राम सुमित्रा नंदन

चाले वात्सल्य मंथन,  कैकेयीचे.. . !  38

 

लक्षुमण , शत्रुघ्नाची, सुमित्रेस लाभे ठेव

वात्सल्याचे फुटे पेव, बालांगणी . . !  39

 

राजराणी कैकयीने , दिला जन्म भरताला

धन्यवाद संचिताला,  पुत्रजन्मी.. . ! 40

 

राम लक्षुमण जोडी, शत्रुघ्नाचा बंधुभाव

भरताच्या ह्रदी ठाव, स्नेहपाश .. . ! 41

 

धन्य कौसल्या जननी , हट्ट करी नारायण

आसवांचे पारायण , राम कुक्षी. .!  42

 

जगावेगळेच खेळ, हवे विश्व खेळायला

राम लागे मागायला ,साप दोरी . . ! 43

 

आकाशीचा चंद्र मागे,बाललीला बालपणी

दमवतो रघुमणी, प्रासादास  . . ! 44

 

काय वर्णू बालरूप , हरितेज सामावले

नरदेही विसावले ,परब्रह्म   . . !  45

 

दुडू दुडू धावताना, प्रासादाचे होई रान

हरपले देहभान, रामरंगी   . . . !  46

 

वात्सल्यात तिन माता, बालहट्टी सुखावल्या

रामरंगी तेजाळल्या , दिन रात.. !  47

 

रघुकुल शिरोमणी, वेड लावी चक्रपाणी

कौतुकाची बोलगाणी ,  आप्तेष्टांची .! 48

 

राजा दशरथ धन्य, धन,धान्य करी दान

वस्त्र, दक्षिणा, गोदान, मुक्तहस्ते. . . ! 49

 

चार बोबडेसे वेद, दिसामासी झाले मोठे

बाल कुमार छोटे ,तेजाळले. . ! 50

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 66 ☆ आग ☆ डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  मानवीय संवेदनाओं पर आधारित  एक विचारणीय लघुकथा आग।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस संवेदनशील लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 66 ☆

☆ आग ☆

तपती धूप में वह नंगे पैर कॉलेज आता था । एक नोटबुक हाथ में लिए चुपचाप आकर क्लास में पीछे बैठ जाता। क्लास खत्म होते ही  सबसे पहले बाहर निकल जाता। मेरी नजर उसके नंगे पैरों पर थी। पैसेवाले घरों की लडकियां गर्मी में सिर पर छाता लेकर चल रही हैं और इसके पैरों में चप्पल भी नहीं। एक दिन वह सामने पडा तो मैंने बिना उससे कुछ पूछे चप्पल खरीदने के लिए पैसे दिए। उसने चुपचाप जेब में  रख लिए।

दूसरे दिन वह फिर बिना चप्पल के दिखाई दिया। अरे! पैर नहीं जलते क्या तुम्हारे ?  चप्पल क्यों नहीं खरीदी ? मैंने पूछा।  बहुत धीरे से उसने कहा  – पेट की आग ज्यादा जला रही थी मैडम।

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ धारावाहिक लघुकथाएं – नारियल #5 – ये तो नारियल है ☆ डॉ. कुंवर प्रेमिल

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह  पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। 
आपने लघु कथा को लेकर एक प्रयोग किया है।  एक विषय पर अनेक लघुकथाएं  लिखकर। इस श्रृंखला में  नारियल विषय पर हम प्रतिदिन आपकी एक लघुकथा धारावाहिक स्वरुप में प्रस्तुत  करने का प्रयास करेंगे । आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला की  लघुकथा  ये तो नारियल है। हमें पूर्ण विश्वास है कि आपका स्नेह एवं प्रतिसाद प्राप्त होगा। )

☆ धारावाहिक लघुकथाएं – नारियल #5 – ये तो नारियल है ☆

गंगा घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ जयकारे लगा रही थी – जय गंगा मैया, जय हो पाप नासनी।

भीड़ गंगा में साबुत नारियल फेंक रही थी।

खूब नारियल बिक रहे थे।दूकानदार मौज में गा रहा था- ‘ये तो नारियल है रे__ये तो नारियल है ये।’

श्रद्धालु साबूत नारियल गंगा में फेंक रहे थे।

लोग बहती गंगा से बटोरकर दूकानदार को आधे में नारियल बेच रहे थे।

दुकानदार उन्हें फिर पूरी कीमत में बेच रहा था। मुनाफा ही मुनाफा।

उसका दो मंजिला मकान नारियलों ने बनवा दिया था।

© डॉ कुँवर प्रेमिल

एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 63 ☆ अधूरे हिसाब ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “अधूरे हिसाब”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 63 – अधूरे हिसाब

मोबाइल की गैलरी से सारे चित्र तो एक झटके में रिमूव हो जाते हैं, किंतु क्या मानस पटल पर अंकित चित्रों से हम दूर हो सकते हैं। इसी उधेड़बुन में  दो घण्टे बीत गए। दरसल कोरोना का टीका तो लगवा लिया पर उसकी फोटो नहीं खिंचवा पाए थे। अब सारे डिजिटल फ्रैंड  हैशटैग कर अपनी-अपनी फोटो मेरी वाल पर चस्पा किए जा रहे हैं और एक मैं इस सुख से अछूती ही रह गयी।

मेरी पक्की सहेली ने समझाया कोई बात नहीं ऐसा करो कि डिजिटल सर्टिफिकेट ही पोस्ट कर दो, अपने नाम वाला, उससे भी काम चल जायेगा। मन को तसल्ली देने के लिए मैंने मैसेज खंगालना शुरू किया तो वहाँ भी मेरा नाम नदारत था। कोई प्रूफ ही नही टीकाकारण का ,अब तो मानो मेरे पैरो तले जमीन ही खिसक गई हो। खैर बुझे मन से स्वयं को समझाते हुए 6 हफ्ते बीत जाने की राह ताकने लगी, पर कहते हैं कि जब भाग्य रूठता है तो कोई साथ नहीं देता, सो जिस दिन बयालीस दिन पूरे हुए उसी दिन ये खबर मिली कि अब तीन महीनें  बाद टीका लगेगा। डॉक्टरों की टीम ने नई रिसर्च के बाद कहा कोविशिल्ड वैक्सीन के दूसरे डोज में जितनी देरी होगी उतना ज्यादा लाभ होगा।

लाभ और हानि के बारे में तो इतना ही पता है कि कोई डिजिटल प्रमाण न होने से टीके की फोटो पोस्ट नहीं हो पाई ,चिंता इस बात की है कि जब दोनों प्रमाणपत्र एक साथ पोस्ट करूँगी तो मेरा क्या होगा? मैंने तो सबकी दो पोस्टों पर लाइक करूँगी पर मेरी तो एक ही पोस्ट पर होगा।

आजकल अखबारों में मोटिवेशनल कॉलम की धूम है और मैं तो पूर्णतया सकारात्मक विचारों को ही आत्मसात करती हूँ, तो सोचा चलो टीकाकरण केंद्र में जाकर ही पता करते हैं। झटपट गाड़ी उठाई और पहुँची तो पता चला ये केंद्र बंद हो चुका है। अब आप दूसरी जगह जाइए। उम्मीद का दामन थामें दूसरे केंद्र में पहुँची। वहाँ पर पूछताछ की तो उन्होंने कहा अभी बहुत भीड़ है, कुछ देर बाद बतायेंगे। पर अब तो 18 प्लस का जलवा चल रहा था तो वे लोग धड़ाधड़ आकर टीका लगवाते जा रहे थे और हाँ सेल्फी लेना भी नहीं भूलते। ये सब देखकर जितनी पीड़ा हो रही थी उतनी तो पहला टीका लगवाने के बाद भी नहीं हुई थी। शाम चार बजे जाकर मेरा नंबर आया तब कंप्यूटर ऑपरेटर ने सर्च किया और माथे पर हाथ फेरते हुए बोला अभी सर्वर डाउन है, कुछ पता नहीं चल पा रहा है, आप कल सुबह 9 बजे आइए तब कुछ करते हैं।

उदास मन से अपना मुँह लिए, मंद गति से गाड़ी चलाते हुए, चालान से बचने की कोशिश कर रही थी। घर पहुँचने ही  वाली थी तभी , बहन जी गाड़ी रोकिए की आवाज कानों में पड़ी। किनारे गाड़ी लगाकर खड़ी की तब तक लेडी पुलिस आ गयी।

कहाँ घूम रहीं हैं , लॉक डाउन है पता नहीं है क्या ?

जी, मैं तो टीका लगवाने का प्रमाणपत्र लेने गयी थी।

अच्छा कोई और बहाना नहीं मिला।

मेम, मुझे दो महीने पहले ही टीका लग चुका है, पर कोई प्रूफ नहीं था, सो उसे ही लेने के लिए टीका केंद्र गयी थी।

कहाँ है दिखाओ ?

वहाँ सर्वर डाउन था इसलिए नहीं  मिला।

कोई बात नहीं चलो 500 रुपये निकालो, चालान कटेगा , तब आपके पास प्रूफ होगा।

मैंने बुझे मन से 500 दिए और  तेजी से गाड़ी भगाते हुए घर पहुँची।

बच्चे गेट पर ही इंतजार कर रहे थे।उतरा हुआ चेहरा देखकर बच्चों ने पूछा क्या हुआ ?

चालान की पर्ची दिखाते हुए मैंने कहा, काम तो हुआ नहीं, 500 की चपत ऊपर से लग गई।

तभी मेरी बिटिया ने तपाक से कहा कोई बात नहीं मम्मी, आप इसी की फोटो खींच कर पोस्ट कर दो, कम से कम एक प्रूफ तो मिला कि आप दूसरी डोज वैक्सीन की लगवाने के लिए कितनी जागरूक है।

तभी मेरे दिमाग़ की बत्ती जल उठी कि सही कह रही है, अब मैं फेसबुक व इंस्टा पर यही पर्ची पोस्ट कर लाइक व कमेंट के अधूरे हिसाब पूरे करूँगी।   

 

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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