हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य #87 ☆ व्यंग्य – द सेल इज आन ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक  व्यंग्य  ‘द सेल इज आनइस सार्थक, मौलिक एवं अतिसुन्दर समसामयिक विषय पर रचितकालजयी व्यंग्य के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 87 ☆

☆ व्यंग्य – द सेल इज आन ☆

द सेल इज आन. सब कुछ  बिकाऊ है. आन लाइन वेबसाइट्स पर भी और बेशुमार माल्स में,  माल बिकाऊ है,उपलब्ध है, होम डिलीवरी सुलभ  है.

पार्टी की टिकिट,  लुभावने नारे, बैनर रुपहले, झंडे और डंडे, जीतने के फंडे,एवरी थिंग इज अवेलेबल. वोट की कीमत सपने बस, बड़ी बात नेता का चरित्र पूरा का पूरा सोल्ड आउट है. विधायको के रेट बड़े तगड़े हैं. हार्स ट्रेडिंग में घोड़ो के दाम, दम वाले ही लगा सकते हैं. जनता की फिकर है, जिगर हथेली पर लेकर सौदे होते हैं.

चटपटी खबरें, चाय के साथ, सुबह के अखबार, मिड डे न्यूज, सांध्य समाचार, चैनल की बहस, इंटरव्यू के प्रश्न, प्रवक्ता का प्रतिकार, सजी संवरी न्यूज एंकर बाला, खबर नवीस टाई सूट वाला, हर कुछ सुलभ है. बड़ी बात टी आर पी  भी बिकाऊ है.

कार्यालय कल्चर, फाईलो के पच्चर, छोटे बाबू के बड़े काम, सरकारी खरीद, झूठी रसीद. होते हैं ठेके मिलने के भी ठेके. बिल पासिंग के तौर तरीके.  दो परसेंट के कमाल, सरकारी दलाल, मिली भगत से सब मालामाल.  गरीब के लिये सिंगल विंडो है. आनलाइन के बहाने, आश्वासन सुहाने. मंत्री की फटकार, नोटशीट जोरदार, क्या नही हैं ?  बड़ी बात अफसर की आत्मा पूरी बिक चुकी है.

स्कूल कालेज के एडमीशन, आनलाइन पढ़ाई, किताब, कम्प्यूटर, डिग्री, जानकारी तो बेहिसाब है, बस ज्ञान का थोड़ा टोटा है.  नौकरी  लेखको के लिये किताबों का प्रकाशन, समीक्षा, पुरस्कार, शाल, श्रीफल, सम्मान के पैकेज हैं, हर तरह के रेंज हैं.

अस्पताल का बैड ही नही, किस ब्लड ग्रुप का खून चाहिये,  है. माँ की कोख, गरीब की किडनी, मरना डिले करना हो तो वेंटीलेटर, आक्सीजन सिलेंडर, ग्लूकोज की बोतल सब कुछ है. मर भी जाओ और अंतिम संस्कार डिले करना हो तो डीप फ्रीजर भी है. बस डाक्टर का संवेदनशील मन आउट आफ स्टाक हो चुका है. बड़ी बात अब ऐसे सहृदय डाक्टर्स का प्रोडक्शन ही बंद हो चुका है. पसीजने वाला दिल लिये कुछ ही नर्सेज बची हैं, मिल जायें तो किस्मत. मूर्तियां खूब हैं बाजार में, इंसानो की कमी है।

आई पी एल में खिलाड़ी क्रिकेट के होते हैं नीलाम सरे आाम. वो तो अच्छा ही है कि अब सब कुछ पारदर्शी है. वरना बिकते तो अजहर और जडेजा के समय भी थे पर सटोरियों के हाथों ब्लैक में.

यूं सारे खिलाड़ी, और फिल्मी सितारे विज्ञापनो में बेचने के काम हैं आते पोटेटो चिप्स, साबुन और टिप्स.

पोलिस केस, कोने में कैश. कोर्ट में न्याय, काले कोट के दांव,  एफेडेविट का वेट, एग्रीमेंट से सब सैट, मुश्किल मगर, केस बेशुमार हैं जज साहब बीमार हैं.

मन की शांति के योग, संगीत के सुर, लेक व्यू, सी व्यू, हिल व्यू वाले हाई टेक सूइट, स्विमिंग पूल, एरोमा मसाज कूल.  पांच सितारा फूड, एग व्हाईट आमलेट, ब्रेड और कटलेट, सब एंपल में है.  सन्यासी के प्रवचन, रामधुन, कीर्तन भी मिलते हैं. धर्म की गिरफ्त है, भीड़ अंधी मुफ्त है.

गरीब का दर्द और किसान का कर्ज वोटो में तब्दील करने की टेक्नीक नेता जी जानते हैं. तभी तो सब उनको मानते हैं.

शुक्र है कि ऐसे मार्केटिंग और सेल के माहौल में बीबी का प्यार और मेरी कलम दोनो अनमोल हैं. एक्सक्लूजिव आनली फार मी सोल हैं.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 73 – हस्ताक्षर सेतु ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “ हाइबन – हस्ताक्षर सेतु। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 73☆

5 Interesting Facts To Know About Delhi's Iconic Signature Bridge

☆  हाइबन- हस्ताक्षर सेतु ☆

मनुष्य को अद्वितीय चीजों से प्यार होता है। यही कारण है कि वह एफिल टावर पर खड़े होकर शहर की खूबसूरती का नजारा देखने में आनंद का अनुभव करता है। अब यही सुखद अनुभव आप हस्ताक्षर सेतु के सबसे ऊंचे हिस्से में जाकर आप भी उठा सकते हैं। इसके लिए आप को भारत से बाहर जाने की जरूरत नहीं है।

11 साल के लंबे इंतजार के बाद उत्तरी दिल्ली को उत्तर-पूर्वी दिल्ली से जोड़ने वाला दिल्ली का सबसे ऊंची इमारतों से भी ऊंचा सेतु बनकर तैयार हो गया है । इस सेतु की 154 मीटर ऊंचाई पर स्थित दर्शक दीर्घा से आप दिल्ली के लौकिक और अलौकिक नजारे को देख सकते हैं। 15 तारों पर झूलते हुए इस सेतु में ऊंचाई पर जाने के लिए 4 लिफ्ट लगाई गई है।

350 मीटर लंबे इस सेतु की दर्शक दीर्धा से पर झूलते हुए सेतु को एक साथ 50 दर्शक यहां का खुबसूरत नजारा देख सकते हैं। इस सेतु की ऊंचाई दिल्ली के कुतुब मीनार से भी ऊंची है । इस सेतु के निर्माण ने दिल्ली के हजारों व्यक्तियों के रोजमर्रा के जीवन के 30 मिनट बचा दिए हैं। यमुना नदी पर बना अनोखा हस्ताक्षर सेतु है । इसे सिग्नेचर ब्रिज भी कहते हैं।

चांदनी रात~

सिग्नेचर की लिफ्ट

में फंसे वृद्ध।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

23-12-20

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 49 ☆ वायरल पोस्ट ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “किस्म किस्म के ढक्कन”। इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 49 – किस्म किस्म के ढक्कन ☆

भावनाओं में बह कर व्यक्ति अक्सर गलतियाँ कर जाता है। परंतु जो पूर्वाग्रह से मुक्त होकर केवल सकारात्मक ही सोचता है, वो अंधकार में भी प्रकाश की किरण ढूँढ़ ही लेता है। ऐसे लोग न केवल दूरदर्शी होते हैं वरन अपनी उन्नति के मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। उम्मीद का दामन थामें उम्मीदवार बस भगवान को मनाते रहते हैं कि सब कुछ उनके पक्ष में हो पर होगा कैसे ?  ये तो आपका पक्षकार ही बता सकता है।

इसी तरह तत्काल जो निर्णय किए जाते हैं, वे भावनाओं से प्रभावित होते हैं किंतु कुछ समय के बाद जब हम कोई फैसला करते हैं तो वो दोनों पक्षों को ध्यान में रखकर किया जाता है। ये सही है कि उपेक्षा और अपेक्षा दोनों ही हमारे लिए घातक साबित होते हैं किंतु हम सब इनके प्रभाव से अछूते नहीं रह पाते हैं। सच कहूँ तो इनके बिना तरक्क़ी ही नहीं हो सकती है। जब तक लोभ मोह की छाया हमारे चारों ओर नहीं होगी तब तक कोई कार्य किए ही नहीं जायेंगे। लोग हाथों में हाथ धरे बैठे हुए जीवन व्यतीत कर देंगे।

अब बात आती है ऐसे अजूबों की जो समझाने पर भी कुछ नहीं समझते ,समझ में नहीं आता या अनजान बनने का ढोंग करते हैं, या वास्तव में ही नासमझ होते हैं, भगवान ही जाने। खैर ये सब तो चलता  रहेगा।  दुनिया ऐसे ही भेड़चाल चलते हुए अपना विकास करती जा रही है। मजे की बात ये है कि बोतल कोई भी हो ढक्कन तो बस एक ही कार्य करते हैं। अपना बचाव करते हुए उल्लू सीधा करना। हद तो तब हो जाती है जब चमचों की बड़ी फौज बस सिर हिलाकर अपनी सहमति  देने में ही अपना सौभाग्य समझती है।

बिना ढक्कनों के डिब्बों की पूछ परख भी नहीं होती है। उन्हीं में समान रखा जा सकता है जो इनके साथ हों। सफाई करते समय डिब्बों को भले ही बाहर से साफ कर दिया जाए किन्तु ढक्कनों को धो पोंछ कर ही इस्तेमाल करते हैं क्योंकि यही तो हैं जो वस्तुओं के असली रक्षक होते हैं। डिब्बे का समान तभी सही रह सकता है जब एयरटाइट डिब्बा हो और इस एयर को टाइट करने का कार्य ये ढक्कन ही करते हैं सो ऐसे लोगों को नमन जो इसको आदर्श बना कर जीवन एक गति से जिए जा रहे हैं।

 

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 56 ☆ राष्ट्र हित में सदा हम जिएँगे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं   “राष्ट्र हित में सदा हम जिएँगे.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 56 ☆

☆ राष्ट्र हित में सदा हम जिएँगे ☆ 

राष्ट्र हित  में सदा हम  जिएँगे।

हिन्द पर प्राण अर्पित करेंगे।।

आन इसकी सदा हम रखेंगे,

शत्रु से हम न हरगिज डरेंगे ।।

 

कर्म पथ पर कदम हम बढ़ाकर।

भाग्य की रेख अपनी बना कर।।

भूल अपनी सभी हम सुधारें,

ईश का नाम हर पल पुकारें ।।

 

वक्त थोड़ा मिला हम सभी को,

व्यर्थ – बातों में क्यों कर लड़ेंगे।।

 

मान सम्मान दें गुरुजनों को।

ख़त्म कर दें सभी दुश्मनों को।।

कार्य शुभ हो शुभम कामना हो,

आँधियों से नहीं सामना हो।।

 

शूल से पथ अगर ये पटा हो।

मंजिलों को सदा हम बढ़ेंगे।।

 

आपसी बैर से जंग जारी।

तोड़ती दम मनुजता बिचारी।।

दिल मिला लें, दिलों से चलो हम,

प्यार हो क्यों धरा पर कभी कम।।

 

पौध क्यों कीकरों की उगाएँ,

हम बदी से नहीं अब डरेंगे।।

 

नित्य हँसना सभी को सिखाएँ।

स्वर्ग हम मिल धरा को बनाएँ।।

जग भलाई करें जिंदगी में।

बीत जाए उमर सादगी में।।

 

नाम हरजीत अपनी लिखा कर,

हम उड़ानें गगन की भरेंगे।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

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मराठी साहित्य – सूर संगत ☆सूर संगीत राग गायन (भाग ५) – अभंग/भजन/भावगीत गायन ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

सुश्री अरुणा मुल्हेरकर

☆ सूर संगत ☆ सूर संगीत राग गायन (भाग ५) – अभंग/भजन/भावगीत गायन ☆ सुश्री अरुणा मुल्हेरकर☆ 

शास्त्रीय संगीतावर लिहीत असतांना भक्तीगीत गायन, भावगीत गायन ह्यावर विचार होणे आवश्यक आहे असे मला वाटते कारण रागदारी संगीताला आपण “Music of class म्हटले तर अभंग, भावगीत गायनाला Music of mass म्हणणे योग्य होईल.

संगीताची आवड नाही असा मनुष्य विरळाच! त्याला गायनाविषयी कसलीही जाण नसली तरी देव माझा विठू सांवळा सारखे एखादे भक्तीगीत किंवा शुक्रतारा सारखे भावगीत कानांवर आले की मनाला कसे प्रसन्न वाटते. श्रोताही ते नकळतपणे गुणगुणु लागतो.

ज्ञानेश्वर महाराज, नामदेव, तुकाराम आदि महाराष्ट्रांतील संत मंडळींनी असंख्य अभंगरचना करून ठेवल्या आहेत आणि त्यांतील कित्येक अभंगांना र्‍हुदयनाथ मंगेशकर, सुधीर फडके, जितेंद्र अभिषेकीसारख्या दिग्गज संगीतकारांनी स्वरबद्ध केल्यामुळे ते अभंग आपल्या ओठांवर रेंगाळत रहातात.

शास्त्रीय संगीताचा आधार असलेली ही एक स्वतंत्र गायन शैली असे आपल्याला अभंग/भजन याविषयी म्हणतां येईल. अभंग एक व्यक्ति गाऊ शकते आणि भजन हे टाळ, झांजा यांच्या गजरांत सामूहिकरित्या सादर केले जाते असा अभंग व भजनांतील फरक! दोन्हीही प्रकार पूर्णतया भक्तीरसांत भिजलेले. यमन, यमनकल्याण, भीमपलास हे अभंग~ गायनाचे अगदी खास राग! समाधी साधन। संजीवन नाम। हा श्री सुधीर फडके यांनी संगीतबद्ध केलेला व गायिलेला अभंग, किंवा माणिकबाईंची कौसल्येचा रामबाई, धननीळा लडिवाळा ही भक्तीगीते ही यमन, यमन कल्याणची उदाहरणे नमूद करता येतील, तसेच मा. कृष्णराव यांनी संगीत दिलेला अवघाची संसार सुखाचा करीन हा ज्ञानेश्वर माऊलींचा अभंग भीमपलासीच्या सुरांनी नटलेला आहे. माणिक वर्मांचे अमृताहुनी गोड हे भीमपलासांतील भक्तीगीत तर वर्षानुवर्ष्ये संगीतप्रेमी गात आहेत. याचा अर्थ असा नाही की दुसर्‍या कोणत्या रागांत भक्तिरचना नसतात. अबीर गुलाल उधळीत रंग यांत देसकारचे दर्शन घडते, ओंकार स्वरूपा या एकनाथ महाराजांच्या अभंगाला श्रीधर फडके यांनी बैरागीचा स्वरसाज चढविला आहे. आजि सोनियाचा दिनु हा ज्ञानेशांचा अभंग र्‍हुदयनाथांनी भैरवीच्या स्वरांनी भक्तीरसांत बुडविलेला आहे. कानडा राजा पंढरीचा हा तर मधूर मालकंस, भीमसेन अण्णांनी अजरामर केलेला आणि आता यूट्यूबवरून राहूल देशपांडे आणि महेश काळे ह्या द्वयीॅनी घराघरांत पोहोचविलेला. एकूण रागदारी संगीतावर आधारित हे अभंग गायन!

साथीला एकतारी, टाळ आणि मृदुंग असले की भक्तीचे वातावरण चांगलेच तयार होते आणि पट्टीचा कलावंत समर्थपणे सूर, ताल व लय सांभाळून जेव्हा भक्तीगायनाची कला सादर करतो तेव्हा तो श्रोत्यांच्या ह्रुदयाचा ठाव घेतो.गायकाने अभंग संपवितांना विविध ढंगाने पांडुरंग पांडुरंग किंवा विठ्ठला मायबापा असा नामाचा गजर सुरू केला की आपण गाण्याच्या कुठल्या मैफिलीत नसून प्रत्यक्ष ईश्वरदरबारीच बसलो आहोत अशी मनोधारणा होते. हेच खरे भक्तीगीत/अभंग गायन!

भावगीत गायन हा गाण्याचा अगदी स्वतंत्र आणि वेगळा प्रकार! भावनांचा मेळ दर्शविणारी काव्य रचना~कविता, मग त्या मीलनाच्या असतील,  विरहाच्या असतील,प्रीतीच्या असतील अथवा निसर्गांतील रंगछटांविषयी असतील,त्या त्या भावरूपी शब्दांना चढविलेला स्वरसाज म्हणजे कवितेचे होणारे भावगीत!

शांताबाई शेळके, मंगेश पाडगांवकर,  सुरेश भट आदि काव्य रत्नांच्या कवितांना ह्रुदयनाथ मंगेशकर, यशवंत देव, श्रीनिवास खळे, अरूण दाते वगैरे संगीत कारांनी व गायकांनी कवितांचा हा अनमोल ठेवा भावगीतांच्या स्वरूपांत जनतेला,आम्हा रसिकांना दिला.ह्या भावगीत गायनांत आलापी, तानबाजी यांची जराही अपेक्षा नसते. अमूक एक रागांतच ते असले पाहीजे असेही काही बंधन नाही.मात्र शब्दांतून भावना प्रकट करतांना सुरांच्या श्रृतींवर विशेष लक्ष दिल्यास ते भावगीत श्रोत्यांच्या मनाचा ठाव घेते.

कांटा रुते कुणाला, शूर आम्ही सरदार, ऋतु हिरवा ऋतु बरवा, काय बाई सांगू कसं ग सांगू, दिवस तुझे हे फुलायचे,या जन्मावर या जगण्यावर शतदां प्रेम करावे,दिल्या घेतल्या वचनांची शपथ तुला आहे, मेंदीच्या पानावर,तरूण आहे रात्र अजुनी,श्रावणांत घननीळा बरसला ही व अशी कित्येक भावगीते अवीट गोडीची आहेत नि ती आपल्याला कायम आवडतात,आपल्या ओठांवर गुणगुणली जातात याचे कारण त्यांच्यावर चढविलेले स्वरालंकार हे बनावट नसून अस्सल बावनकशी आहेत. ही अशी गीते ऐकली की मनांत येतं, गाणं कोणतंही असो जे कानाला गोड वाटेल आणि मनांत रेंगाळत राहील तेच खरं संगीत!

क्रमशः….

©  सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

डेट्राॅईट (मिशिगन) यू.एस्.ए.

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 77 – जीवन यह है….. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज  श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  के 72 वे  जन्म दिवस के अवसर पर  ई – अभिव्यक्ति परिवार की ओर से  आपके स्वस्थ एवं दीर्घायु के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।  जीवन के बहत्तरवें वर्ष में प्रवेश पर, मंगल भावनाओं सहित आपके ही कुछ दोहे – 

☆  तन्मय साहित्य  #  77 ☆ जीवन की इस जंग में…. ☆ 

इकहत्तर    पूरे   हुए,   बहतरवें   से   भेंट।

सांस-सांस के खेल में,पल-छिन रहे समेट।।

 

हुआ  बराबर  मूलधन, बाकी है बस  ब्याज।

मन में अब चिन्ता नहीं, कल जाएं या आज।।

 

मंगल भावों के लिए, सब के  प्रति  आभार।

अपनों से मिलता रहा, अतुलनीय बहु प्यार।।

 

जीवन की इस जंग में, अगणित हैं  गुण-दोष।

जैसा, जो  प्रभु  ने  दिया,  है  मन  में  संतोष।।

 

मंगलमय नव वर्ष हो, जन-मन मंगल भाव।

पग पग करुणा, प्रेम के, जलते रहें अलाव।।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

1 जनवरी 2021

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 28 ☆ तुम कब आओगे ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता हे राम ! तुम नहीं आये। ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 28 ☆ हे राम ! तुम नहीं आये

हे राम ! तुम नहीं आये,

यहां हर गली-मौहल्लें चौराहे पर सैकड़ों रावण प्रकट हो गए,

हर वर्ष रावण को हम जलाते,

मगर जलकर पुर्नजीवित हो जाता, रावण कभी  मरता नहीं||

हे कृष्ण ! तुम नहीं आये,

यहां हर चौराहे, हर गली- मौहल्लें में खुले आम चीरहरण होने लगे हैं,

रोकने की कोशिशे व्यर्थ जाती,

हैवानियत लोगों की बढ़ती जा रही, अब सब की इज्जत पर आ पड़ी ||

हे राम ! अब तो राम तुम आ जाओ,

यहां अब लक्ष्मण जैसा कोई भाई नहीं, यहां अब भाई-भाई दुश्मन है,

भाई-चारा वापस बढ़ाना है,

राम राज्य लाकर लक्ष्मण जैसे भाई बनने की सौगंध दिला जाओ ||

अब तो कृष्ण तुम आ जाओ,

यहां भाई-भाई कौरव हो गए हैं और घर-घर में महाभारत हो रही ,

अपने गीता के ज्ञान से,

भाई-भाई में प्यार-त्याग और सम्मान की शिक्षा का अलख जगा जाओ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 80 – नवीन वर्षा …. ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा सोनवणे जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 80 ☆

☆ नवीन वर्षा …. ☆

नवीन वर्षा नवीन  आशा घेवून ये आता

मनात माझ्या सदैव श्रद्धा होवून ये आता

 

जुनाट झाल्या पहाट वेळा  सूर्यास सांगा ना

उन्हात ओल्या दवास ताज्या प्राशून ये आता

 

खुणा सुखाच्या किती विखुरल्या सांडून दुःखाला

तसाच तू ही उनाड वारा होवून ये आता

 

मलाच ठावे कशा कुणाच्या नजरा विषारी त्या

पियुष मिळावे तुझे दयाळा धावून ये आता

 

नवीन वर्षा नकोच आहे फुकटी उधारी ती

तुला हवी ती लगेच रोकड पेरून ये आता

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 65 ☆ क़ैद ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है “क़ैद”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 65 ☆

☆ क़ैद

हाँ, बहुत खूबसूरत दिख रहा था वो

इंसान को, दुनिया को,

पर छलनी में फंसा हुआ चाँद

किसी तरह क़ैद से निकलने के लिए

तड़प रहा था…

 

उसे देखकर कितनी सखियों ने

उस दिन अपने उपवास भी तोड़ दिया थे,

और उनके प्रीतम उनका हाथ पकड़ ले गए थे उन्हें भीतर

अपने हाथों से खाना खिलाने के लिए;

पर चाँद तो क़ैद था

छलनी में

और वो उसके पलकों के कोने से

आंसू की कुछ बूँदें

लुढ़ककर उसके गालों को गीला कर रही थीं!

 

न जाने कहाँ से

मुझे सुनाई दे गया उसका वो सुबकना

और मैं उसे सीढ़ी पर चढ़कर

ऊपर टंगी हुई छलनी में से निकाल दिया!

 

वो ख़ुशी-ख़ुशी आसमान में उड़ गया

और अपनी मदमस्त चाल में

घूमने लगा आवारा सा!

 

क़ैद किसे अच्छी लगती है-

चाहें वो कितनी भी खूबसूरत हो?

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 87 ☆ व्यंग्य संग्रह – अब तक ७५, श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायें – संपादन – डा लालित्य ललित और डा हरीश कुमार सिंह ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़  सकते हैं ।

आज प्रस्तुत है व्यंग्य संग्रह “अब तक ७५, श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायें” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – अब तक ७५, श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायें # 87 ☆ 
पुस्तक चर्चा

पुस्तक – व्यंग्य संग्रह – अब तक ७५, श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायें

संचयन व संपादन –  डा लालित्य ललित और डा हरीश कुमार सिंह

प्रकाशक – इंडिया नेट बुक्स गौतम बुद्ध नगर, दिल्ली

पृष्ठ – २३६

मूल्य – ३०० रु

☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य संग्रह – अब तक ७५, श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायें – संचयन व संपादन –  डा लालित्य ललित और डा हरीश कुमार सिंह ☆ समीक्षा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र☆

लाकडाउन अप्रत्याशित अभूतपूर्व घटना थी. सब हतप्रभ थे. किंकर्त्व्यविमूढ़ थे. कहते हैं यदि हिम्मत न हारें तो जब एक खिड़की बंद होती है तो कई दरवाजे खुल जाते हैं. लाकडाउन से जहां एक ओर रचनाकारो को समय मिला, वैचारिक स्फूर्ति मिली वहीं उसे अभिव्यक्त करने के लिये इंटरनेट के सहारे सारी दुनियां का विशाल कैनवास मिला. डा लालित्य ललित वह नाम है जो अकेले बढ़ने की जगह अपने समकालीन मित्रो को साथ लेकर दौड़ना जानते हैं. वे सक्रिय व्यंग्यकारो का एक व्हाट्सअप समूह चला रहे हैं. देश परदेश के सैकड़ो व्यंग्यकार इस समूह में उनके सहगामी हैं. इस समूह ने अभिनव आयोजन शुरू किये. प्रतिदिन एक रचनाकार द्वारा नियत समय पर एक व्यंग्यकार की नयी रचना की वीडीयो रिकार्डिंग पोस्त की जाने लगी. उत्सुकता से हर दिन लोग नयी रचना की प्रतीक्षा करने लगे, सबको लिखने, सुनने, टिप्पणिया करने में आनंद आने लगा. यह आयोजन ३ महीने तक अविराम चलता रहा. रचनायें उत्कृष्ट थी. तय हुआ कि क्यो न लाकडाउन की इस उपलब्धि को किताब का स्थाई स्वरूप दिया जाये, क्योंकि मल्टी मीडिया के इस युग में भी किताबों का महत्व यथावत बना हुआ है. ललित जी की अगुआई में हरीश जी ने सारी पढ़ी गई रचनायें संग्रहित की गईं, वांछित संपादन किया गया. इस किताब में स्थान पाना व्यंग्यकारो में प्रतिष्ठा प्रश्न बन गया. इ्डिया नेटबु्क्स ने प्रकाशन भार संभाला, निर्धारित समय पर महाकाल की नगरी उज्जैन में भव्य आयोजन में विमोचन भी संपन्न हुआ. देश भर के समाचारो में किताब बहुचर्चित रही.

अब तक पचहत्तर में अकारादि क्रम में अजय अनुरागी की रचना लॉकडाउन में फंसे रहना, अजय जोशी की छपाक लो एक और आ गया, अतुल चतुर्वेदी की कैरियर है तो जहान है,  अनीता यादव की रचना ऑनलाइन कवि सम्मेलन के साइड इफेक्ट, अनिला चाड़क की रचना करोना का रोना, अनुराग बाजपाई की रचना प्रश्न प्रदेश बनाम उत्तर प्रदेश, अमित श्रीवास्तव की भैया जी ऑनलाइन, अरविंद तिवारी की खुद मुख्तारी के दिन, अरुण अरुण खरे की रचना साब का मूड,  अलका अग्रवाल नोट नोटा और लोटा, अशोक अग्रोही की रचना करोना के सच्चे योद्धा, अशोक व्यास चुप बहस चालू है, आत्माराम भाटी सपने में कोरोना,आशीष दशोत्तर संक्रमित समय और नाक का सवाल, मेरी राजनीतिक समझ कमलेश पांडे, मेरा अभिनंदन कुंदन सिंह परिहार, 21वीं सदी का ट्वेंटी ट्वेंटी  केपी सक्सेना दूसरे, मैं तो पति परमेश्वर हूं जी गुरमीत बेदी, नाम में क्या रखा है चन्द्रकान्ता, चीन की लुगाई हमार गांव आई जय प्रकाश पांडे,  अगले जन्म मोहे खंबानी कीजो जवाहर चौधरी, बाप रे इतना बुरा था आदमी टीका राम साहू, टथोफ्रोबिया  दिलीप तेतरवे, जाने पहचाने चेहरे दीपा गुप्ता शामिल हैं.

कहानी कान की देवकिशन पुरोहित, हे कोरोना कब तक रोएं तेरा रोना देवेंद्र जोशी, पिंजरा बंद आदमी और खुले में टहलते जानवर निर्मल गुप्त, टांय टांय फिस्स नीरज दैया, हिंदी साहित्य का नया वाद कोरोनावाद पिलकेंद्र अरोड़ा, बहुमत की बकरी प्रभात गोस्वामी, स्थानांतरण मस्तिष्क का प्रमोद तांबट, सुन बे रक्तचाप प्रेम जनमेजय, यस बास प्रेमविज, सेवानिवृति का संक्रमण काल बल्देव त्रिपाठी, मन के खुले कपाट बुलाकी शर्मा, मेरा स्कूल ब्युटीफुल भरत चंदानी, जी की बात मलय जैन, आवश्यकता गरीब बस्ती की मीनू अरोड़ा, हिंदी साहित्य की मदद मुकेश नेमा, श्रद्धांजलि की ब्रेकिंग न्यूज़ मुकेश राठौर, छबि की हत्या मृदुल कश्यप, और सपने को सिर पर लादे चल पड़ा रामखेलावन गांव की ओर रण विजय राव, यमलोक में सन्नाटा रतन जेसवानी, चालान रमाकांत ताम्रकार, छूमंतर काली कंतर रमेश सैनी, बुरी नजर वाले रवि शर्मा मधुप,  झक्की मथुरा प्रसाद रश्मि चौधरी, डरना मना है राकेश अचल, करोना से मरो ना राजशेखर चौबे,  वाह री किस्मत राजेंद्र नागर,  स्वच्छ भारत राजेश कुमार,  लॉकडाउन में आत्मकथा लिखने का टाइम रामविलास जांगिड़,  पांडेय जी बन बैठे जिलाधिकारी गाजियाबाद लालित्य ललित, कोरोना वायरस वर्षा रावल के लेख हैं

फॉर्मेट करना पड़ेगा वायरस वाला 2020 विवेक रंजन श्रीवास्तव, आई एम अनमैरिड वीणा सिंग, सरकार से सरकार तक वेद प्रकाश भारद्वाज, रतन झटपट आ और करोड़पति बन वेद माथुर, दीपिका आलिया और मेरी मजबूरी शरद उपाध्याय, नैनं छिद्यन्ति शस्त्राणि श्याम सखा श्याम, करोना तुम कब जाओगे संजय जोशी, टीपूजी से कपेजी संजय पुरोहित, अंगुलीमाल का अहिंसा का नया फंडा संजीव निगम, मैडम करुणा की प्रेस कान्फ्रेंस संदीप सृजन,  हमाई मजबूरी जो है समीक्षा तैलंग, तस्वीर बदलनी चाहिये  सुदर्शन वशिष्ठ, रुपया और करोना सुधर केवलिया, लॉकडाउन के घर में सुनीता शानू, मन लागा यार फकीरी में सुनील सक्सेना, तुम क्या जानो पीर पराई सुषमा राजनीति व्यास, लाकडाउन में तफरी सूरत ठाकुर, भाया बजाते रहो स्वाति श्वेता, क्वारंटाइन वार्ड स्वर्ग में हनुमान मुक्त, मैं तो अपनी बैंक खोलूंगा पापा हरीश कुमार सिंह और अस्पताल में एंटरटेनमेंट हरीश नवल के व्यंग्य सम्मलित हैं.

जैसा कि व्यंग्य लेखों के शीर्षक ही स्पष्ट कर रहे हैं किताब के अधिकांश  व्यंग्य करोना पर केंद्रित तत्कालीन पृष्ठभूमि के हैं. जब भी भविष्य में हिन्दी साहित्य में कोरोना काल के सृजन पर शोध कार्य होंगे इस किताब को संदर्भ ग्रंथ के रूप में लिया ही जायेगा यह तय मानिये. आप को इन व्यंग्य लेखो को पढ़ना चाहिये. देखना सुनना हो तो यूट्यूब खंगालिये शायद लेखक के नाम या व्यंग्य के नाम से कहीं न कही ये व्यंग्य सुलभ हों. क्योकि हर व्यंग्य का वीडियो पाठ मैंने व्हाट्सअप ग्रुप पर कौतुहल से देखा सुना है. बधाई सभी सम्मलित रचनाकारो को, जिनमें वरिष्ठ, कनिष्ठ, नियमित सक्रिय, कभी जभी लिखने वाले, महिलायें, इंजीनियर, डाक्टर, संपादक, सभी शामिल हैं. बधाई संपादक द्वय को और प्रकाशक जी को.

समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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